________________
१६८
- अध्यात्म-कल्पद्रुम
है जब कि उनका आयुष्य सागर वर्षों से मापा जाता है जिसका वर्णन उतराध्ययन सूत्र में इस प्रकार से बताया है एक योजन (८ मील) गहरा और इतना ही चौड़ा एक गोल खड़ा हो, उसे बालों के बारीक अग्रभागों से ठंस ठंस कर भर दिया जाय । प्रति सौ वर्ष के पश्चात बालों का एक एक टुकड़ा निकाला जाय, इस विधि से जब वह खड्डा खाली हो जाय तब उतने समय को एक व्यवहार पल्य कहते हैं ।
ऐसे असंख्य व्यवहार पल्य = १ उद्धार पल्य । असंख्य उद्धार पल्य = १ अद्धा पल्य । १०४ (१ करोड़ x १ करोड़) अद्धा पल्य = १ सागर
नरक भूमियों का स्पर्श करौती की धार से भी अधिक सख्त होता है । वहां की सर्दी के सामने उत्तरी ध्रुव की सर्दी व गर्मी के सामने सहारा के रेगिस्तान की गरमी भी कुछ गिनती में नहीं है। वहां कोई क्षेत्र अत्यंत गर्म है . जब कि कोई क्षेत्र अत्यंत सर्द है। वहां गरमी इतनी तीव्र होती है कि यदि उष्णक्षेत्र से एक नारकी जीव को मनुष्यलोक में लाकर खैर के लकड़ों को भट्टी में डाल दिया जाय तो उसे वहां इतना सुख महसूस होगा जैसे कि वह कमल की शैया में सोया हो, वहां वह छः माह तक सोता रहेगा उसे आग का असर ही नहीं होगा कारण कि इससे अनंतगुणी आग में वह रहता आया है।
दूसरी पीड़ा परमाधामी देवों की है । ये हलकी जाति के देव वहां जाकर उन जीवों को मारते हैं पीटते हैं, काटते