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अध्यात्म-कल्पद्रुम
सिद्ध है | विश्वास करने के लिए वह दूसरों की सुनी हुई बातों का प्रालंबन लेता है, उसके लिए अशक्य है कि आरोग्य शास्त्र को पढ़े या डाक्टरी विद्या पढ़ने के पश्चात ही अपनी बुद्धि से अपने रोग का निदान करे एवं अमुक डाक्टर द्वारा दी जाने वाली दवा का विश्वास करे । यह नितांत कठिन है कारण कि समय का अभाव है । अत: उसे विश्वस्त लोगों द्वारा निर्दिष्ट वैद्य या डाक्टर का विश्वास करना ही पड़ेगा । उसी तरह भव रोग से संतप्त प्राणी के लिए वीतराग अरिहंत देव ही वैद्य व उनकी वाणी ही रामबाण दवा है उसी पर श्रद्धा करना चाहिए । यद्यपि उसकी परीक्षा के लिए साधनों में से, वीतराग दशा, शुद्धमार्ग कथन, अपेक्षाओं का शुद्ध स्थापन नयस्वरूप का विचार, स्याद्वाद विचार श्रेणी आदि हैं । विशेष क्षयोपशम हो और अनुकूलता हो तो विशेष परीक्षा भी की जा सकती है, परन्तु मनुष्य को अपना उदर पोषण करते हुए शास्त्राभ्यास की फुरसत नहीं है अतः जिन वाणी पर श्रद्धा करने वाला और कुविल्प चिंतन नहीं करने वाला प्राणी यदि कम पढ़ा लिखा भी हो तो भी आत्मकल्याण साधने से अधिक भाग्यवान है अपेक्षा उस प्राणी के जो कि सतत पठनपाठन में व्यस्त रहता है, दूसरों को उपदेश देता है लेकिन स्वयं कुविल्प चिंतन करता रहता है । बारीक बारीक तर्क निकालकर दूसरों को परास्त कर अपनी जिद्द रखने के लिए उन्मार्ग ढूंढता है व शुभ क्रियाओं में आलसी रहता है अतः कम पढ़ा लेकिन सरल मानव ज्यादा उत्तम है, अपेक्षा उसके जो अधिक पढ़ा हो लेकिन धर्म क्रिया में आलसी हो ।