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कषायत्याग
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बलिभ्यो बलिनः संति, वादिभ्यः संति वादिनः । धनिभ्यो धनिनः संति, तस्माद्दपं त्यजेद् बुधः ।। अर्थात् बलवान् से भी अधिक बलवान, वादी से भी अधिक वादी, धनवान से भी अधिक धनवान दुनिया में हैं अतः चतुर पुरुष को अभिमान का त्याग करना चाहिए। ... लोभ को शास्त्रकार आकाश की उपमा देते हैं। जैसे आकाश अनंत है वैसे ही लोभ भी अनंत है । लोभी मनुष्य की दुर्दशा निश्चित है। मम्मण सेठ तथा धवल सेठ के दृष्टांत ज्वलंत प्रमाण हैं । माया को नागिनी की उपमा दी है, इसके पाश बड़े तीव्र होते हैं, मल्लिनाथजी को स्त्री वेद इसी कारण से भुगतना पड़ा था। अतः क्रोध, मान, माया और लोभरूप कषाय को अवश्य ही नष्ट करना चाहिए । यह मनन से ही सम्भव है।
इति कषाय निग्रह नामः सप्तमोधिकारः