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अध्यात्म-कल्पद्रुम
कुतूहलवश विषयों में आनंद मानेगा तो हे चेतन ! तेरा चेतनपन व्यर्थ है ॥ १६॥
वंशस्थ
विवेचन - शास्त्र पढ़ने या सुनने के पश्चात भी यदि आत्मा विषयों से दूर रहने का प्रयत्न नहीं करता है तब तो चेतनपन से ( ज्ञानमय प्रात्मत्त्व से ) लाभ ही क्या हुवा ? नरक तिर्यंच के कष्ट अत्यंत असहनीय होते हैं एवं धर्म की प्राप्ति अत्यंत कठिनता से होती है यह जानते हुए भी जो जागृत नहीं होता है या धर्म की ओर नहीं झुकता है वह नितांत मूर्ख है ।
मानव भव की दुर्लभता के लिए टीकाकार ने दस श्लोकों द्वारा दस दृष्टांत बताए हैं जो इस ग्रंथ के अंत में दिये हैं ।
कषाय के सहचर प्रमाद का त्याग
चौरेस्तथा कर्मकरंग होते, दुष्टैः स्वमात्रेऽप्युपतप्यसे त्वम् । पुष्टैः प्रमादस्तनुभिश्च पुण्यधनं न किं वेत्स्यपि लुटयमानम् ॥ २० ॥
अर्थ – चोर अथवा नौकर यदि तेरा ज़रा सा धन चुरा लेते हैं तब तो तू गरम हो जाता है ( क्रोध करता है), परन्तु गहरे या हलके प्रमाद तेरा सारा पुण्यधन लूटते हैं यह तुझे मालूम ही नहीं है ? उपजाति
विवेचन - सोना चांदी या साधारण वस्तु की ज़रा सी चोरी हो जाती है तब तू हर प्रकार से प्रयत्न करके चोर को पकड़ाता है, सजा दिलाता है और धन को फिर से प्राप्त