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कषायत्याग
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चाहिए । मदमत्त मनुष्य की दुर्दशा अवश्य होती है अतः किसी भी वस्तु का किसी भी हालत में मद नहीं करना चाहिए।
. संसार वृक्ष का मूल कषाय विना कषायान्न भवात्तिराशिर्भवद्भवेदेव च तेषु सत्सु । मूलं हि संसारतरोः कषायास्तत्तान् विहायव सुखी भवात्मन्।१८।
अर्थ-बिना कषाय के संसार की अनेक पीड़ाएं नहीं होती हैं और कषाय होते हैं तब तो पीड़ाएं अवश्य होती ही हैं। संसार वृक्ष का मूल ही कषाय है। अतः हे चेतन ! उनको छोड़कर तू सुखी हो जा ॥ १८ ॥
उपजाति विवेचन हम अपने जीवन में अनुभव करते हैं कि सुख या आनंद बहुत जल्दी मिट जाते हैं; और दुःख या संताप जल्दी छा जाते हैं, कारण कि उनके मूल में क्रोधादि कषाय रहे हुए होते हैं और जहां क्रोधादि कषाय हैं वहां पीड़ा होती ही है । वास्तव में संसार वृक्ष का मल ही क्रोध, मान, माया, लोभ, (कषाय) है । अतः हे प्रात्मा! यदि तू वास्तव में सुखी रहना चाहता है तो इस मूल को आत्मशक्ति से काट दे । कषाय रहित बन जा।
कषाय के सहचर विषयों का त्याग समीक्ष्य तिर्यङ नरकादि वेदनाः, श्रुतेक्षणैर्धर्मदुरापतां तथा । प्रमोदसे यद्विषयैः सकौतुकैस्ततस्तवात्मन् विफलैव चेतना॥१६।।
अर्थशास्त्ररूपी नयनों से तिर्यंच, नरकादि की वेदना देखते हुए एवं धर्म प्राप्ति की दुर्लभता जानते हुए यदि तू