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अध्यात्म-कल्पद्रुम
त्याग से जो सुख मिलता है (उन दोनों में से श्रेष्ठ कोन सा है, अथवा कषाय सेवन का और उनके त्याग का परिणाम कैसा आता है) उसका विचार करके इन दोनों में से जो श्रेष्ठ हो उसको हे पण्डित तू स्वीकार कर।
विवेचन-जीवन के कई ऐसे दृश्य हमारे सामने हैं जिनमें हमने क्रोध, मान, माया, लोभ, कपट, व ठगाई की और कुछ ऐसे भी हैं जिनमें हमने साधारण उपकार किया, किसी को सहायता दी, शांत रहे, इमानदारी रखी। इन दोनों प्रकार के दृश्यों में से पिछले दृश्यों की स्मृति से आनंद आता है व आत्मा उनका पुनरावर्तन करना चाहता है अतः कषाय त्याग में जो
आनंद है वह कषाय करने में नहीं है, पहला अग्नि है तो दूसरा जल है, पहला विष है तो दूसरा अमृत है ।
कषाय त्याग, माननिग्रह, बाहुबलि सुखेन साध्या तपसां प्रवृत्तिर्यथा तथा नैव तु मानमुक्तिः। प्राद्या न दत्तेऽपि शिवं परा तु, निदर्शनाबाहुबलेः प्रदत्ते ।।७।।
अर्थ-जैसे तपस्या में प्रवृत्ति करना सरल है, वैसे मान का त्याग करना सरल नहीं है । केवल तपस्या की प्रवृत्ति मोक्ष को नहीं दे सकती है. परन्तु मान का त्याग तो बाहुबलजी की तरह से मोक्ष को अवश्य दिलाता है ॥ ७ ॥
उपजाति विवेचन तपस्या का रंग लगने पर तपस्या की जाती है, शुरू में कठिनता तो आती है लेकिन बाद में यह सरल हो जाती है । यह प्रवृत्ति उत्तम है लेकिन फिर भी मान का त्याग न