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कषायत्याग
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हमारी सच्ची भूल किसी ने बताई हो तो उस भूल को सुधारना तो कहीं रहा वरन उसका बदला लेने को हमारा मन छटपटाता है यह बुरा है । चाहे किसी भी तरह से उसका अपमान करना नेष्ट कार्य है और जब यह सिलसिला बढ़ता जाता है तो अपमान के प्रति अपमान होता है तो इससे आघात प्रत्याघात भी होता जाता है। समरादित्य केवली ग्रंथ में क्रोधादि कषाय का परिणाम स्पष्ट वर्णन किया है अतः इनको जीतने वाला ही बुद्धिमान है । क्रोध दुर्जय है इसी को जीतना दुष्कर है ।
षड्पुि पर क्रोध-उपसर्ग करने वाले के साथ मैत्री . धत्से कृतिन् ! यद्यपकारकेषु क्रोधं ततो धेशरिषट्क एक । प्रथोपकारिष्वपि तद्भवात्तिकृत्कर्महृन्मित्रबहिद्विषत्सु ॥१०॥ __ अर्थ हे पण्डित ! यदि तू अपने अहित करने वालों पर क्रोध करना चाहता है तो षड्रिपु पर क्रोध कर और यदि तू अपने हितैषी कर क्रोध करना चाहता हो तो संसार की समस्त व्याधियों के मूल जो कर्म हैं उनको छेदने वाले जो वास्तविक मित्र हैं और बाह्य दृष्टि से तुझे शत्रुवत दीखते हैं उन पर क्रोध कर ॥ १० ॥
उपजाति ___विवेचन–मनुष्य अपने अपकारी पर क्रोध करता है, न कि उपकारी पर परन्तु उसे अपकारी और उपकारी की पहचान नहीं है। हानिकर्ता शत्रु कहलाता है और हितकर्ता मित्र कहलाता है। मानव की दृष्टि विपरीत हो रही है । वह कड़वी दवा देने वाले या ओपरेशन करने वाले डाक्टर को शत्रु समझता है और चटपटे खाने व मीठी दवा देने वाले लोभी