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विषय प्रमाद
उपन्यास, एवं शृंगाररस के गानों से उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। भोजन संबंधी कथा की भूख आलीशान होटल, रिफ्रेशमेंट रूम या टी स्टॉलों के मधुरतम खाद्यों व पेयों से अतृप्त रहकर नित्य नई प्रगति करती है। कषाय प्रमाद से ज्ञान तंतुओं पर पर्दा छा जाता है और आत्मा उत्तरोत्तर पतित होता जाता है । प्रभु महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र में फरमाया है कि:
दुमपत्तए पण्डुयए जहानिवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं गोयम मा पमायए। ...
अर्थात्-समय जाने पर पीला पड़ा हुवा वृक्ष का पत्ता (अचानक) गिर जाता है, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी (अचानक) गिर जाता है, अतः हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । [ १०-१] .
पांचवां प्रमाद निद्रा है इसको जितना बढ़ाया जाय बढ़ती -है, घटाया जाय घटती है अतः बुद्धिमान पुरुष अल्पनिद्रा लेकर बने जहां तक आत्म ध्यान में प्रवृत्त रहे। इस प्रकार से विषय प्रमाद का त्याग कर स्वदशा को प्राप्त करना चाहिए।
.. इति विषयप्रमावनामः षष्ठाधिकारः