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विषय प्रमाद
१२६ फटेगा जब तूं स्वयं बीमार होगा, तेरे सगे स्नेही दूर भागेंगे, धन औरों के अधिकार में होगा और मृत्युदेवी को सामने देखेगा। उस वीभत्स्य दुःख को आज ही याद कर और वास्तविकता की ओर ध्यान देकर विषयों से दूर हो जा, अनासक्त बन जा।
विषय प्रमाद के त्याग से सुख विमोहसे किं विषयप्रमादर्धमात्सुखस्यायतिदुःखराशेः । तद्गर्धमुक्तस्य हि यत्सुखं ते गतोपमं चायतिमुक्तिदं तत् ॥६॥
अर्थ भविष्य में जिनसे अनेक दुःख मिलने वाले हैं उनमें तू विषय प्रमाद जन्य बुद्धि से सुख के भ्रम से क्यों मोहित होता है ? उन सुखों की अभिलाषा से मुक्त प्राणि को जो सुख होता है वह अनुपम है और मोक्षदायी है ॥ ६ ॥
उपजाति विवेचन-जिसे खुजली हुई हो या सिर में गंज हो वह बार बार खाज खणाता है और सुख मानता है लेकिन परिणामतः खून निकलता है और दर्द बढ़ता है। इसी तरह विषय सेवन से अल्पकालीन सुख चाहे मिलता हो लेकिन परिणाम भयंकर होता है । विषयरत प्राणी की वही दशा होती है जो हड्डी चबाने वाले कुत्ते की होती है। कुत्ता मानता है, कि हड्डी में से खून निकलकर उसे आनंद दे रहा है लेकिन वास्तव में तो उसके दांत या मुंह में से ही खून निकल कर उसका हड्डी चबाना जारी रखता है। परिणामतः जबड़े छुल जाने से वह अधिक दुःखी होता है । उसी