________________
१३४
अध्यात्म-कल्पद्रुम
सुकुमाल ने मोक्ष प्राप्त किया तथा मैतार्य मुनि ने अपना कल्याण साध लिया।
क्रोध करने से स्वयं को व अन्य को परिताप लगता है। पूरा वातावरण कटु हो जाता है, घर श्मशान बन जाता है, अपने कुटुम्बी शत्रुवत हो जाते हैं, कोई पास नहीं फड़कता है, क्रोध वह अग्नि है जिसमें बाह्य ईंधन की अपेक्षा आंतरिक ईंधन भस्म होता है, वह दूसरों की अपेक्षा खुद को अधिक जलाती है। क्रोध के कारण बना हुवा भोजन पड़ा रह जाता है, त्योहार हत्यारा दिन हो जाता है और पाए हुए महमान शत्रुदल का काम देते हैं। क्रोध वह अग्नि है जो कि दियासलाई की डब्बी में बंद रहती है जिसे जरासी रगड़ से प्रज्वलित किया जा सकता है। प्रायः घर के लोगों के प्रति अधिक क्रोध रहता है। कभी २ पिता पुत्र, भाई भाई, पति पत्नी, सासु बहु, गुरु, शिष्य, स्वामी, सेवक ये बिना ही ईंधन के जलते रहते हैं । उपदेश के शीतल जल से इनकी ज्वालाएं अधिक धधकती हैं। इनकी प्राग राख के ढेर के नीचे बढ़ती है, ऊपर से दृष्टिगोचर नहीं होती, वह दिखावटी स्वभाव के कारण बाहर के लोगों के सन्मुख नहीं आती है। दूसरों के सम्पर्क में आते वक्त ये लोग ठण्डे हिम जैसे बन जाते हैं, शांतमूर्ति तपस्वी सी दिखावटी बातें करते हैं परन्तु पारस्परिक अग्नि ज्वालामुखी पर्वत की तैयारी करती रहती है। अतः ऐसी दुर्दशा के समय शांतरस का पान करना चाहिए । शच्छास्त्रों का अध्ययन कर, उनका मनन कर, उन्हें जीवन में