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अध्यात्म-कल्पद्रुम तू किस कारण से विषयों में आसक्त रहता है मृतः किमु प्रेतपतिर्दुरामया, गता, क्षयं किं नरकाश्च मुद्रिताः । ध्रुवाः किमयुर्धनदेहबंधवः, सकौतुको यद्विषयविमुह्यसि ।। ८ ।।
अर्थ क्या यमराज मर गये ? क्या संसार में से सब व्याधियां नष्ट हो गईं ? क्या नरक के फाटक बंद हो गए ? क्या आयुष्य, धन, शरीर और सगे संबंधी सदा काल रहने वाले घोषित हो गए ? जिससे तू कौतुक व हर्ष से (निर्भय बनकर) विषयों में मोह करता है ? ॥ ८ ॥
विवेचनजैसे चूहों को निर्भय से घर में नाचते हुए देखकर हमें आश्चर्य होता है, एवं जंगल में भोले प्राणियों को स्वतंत्र घूमते हुए देखकर विस्मय होता है. कि क्या शहर में से बिल्लियां नष्ट हो गईं या जंगल में से सिंह भाग गए ? यह अनहोनी बात है, चूहे व पशु दोनों की मौत प्रतीक्षा कर रहो है । इसी तरह से हे आत्मा ! तू भी यह मान बैठा है कि मौत की फौत हो गई, बिमारियों को बीमारी लग गई और नरक गरक हो गया एवं विलासियों ने वैज्ञानिकों के आधार पर यह घोषणा कर दी है कि हे लोगो तुम कभी मरने वाले नहीं हो, खूब धन कमानो यह कभी नष्ट होने वाला नहीं है, इस शरीर को खूब आराम से रखो, आनंद करो यह हमेशा आबाद रहने वाला है। प्रिया, पुत्र और मित्र हमेशा जवान व सुन्दर हालत में चिरकाल तक तुम्हारे पास ही रहेंगे।" इस पर विश्वास करते हुए तेरी भो वैसी मान्यता हो गई हो तो तू भारी भूल कर रहा है। इस मान्यता का पर्दा तब ही