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अध्यात्म-कल्पद्रुम
आती जाती है, उसी प्रकार से सबको मृत्यु नजदीक आती जा रही है तो फिर प्रमाद क्यों ? ॥ ६॥ उपजाति
विवेचन बलिदान के लिए वधस्थल पर ले जाने वाले बकरे की क्या दशा होती है ? फाँसी पर लटकाए जाने वाले चोर की क्या दशा होती है ? उन पर मृत्यु का भय इतना अधिक छा जाता है कि खाना, पीना सोना सब छूट जाता है हर क्षण छरी, तलवार या फांसी नजर आती है। उनके सामने कोई उत्तमोत्तम खाद्य व पेय पदार्थ उपस्थित करे तो भी वे उधर नहीं देखेंगे । मृत्यु के भनकारे उनके कानों में गूंजते होंगे । ओह! कैसी भयंकर दशा । उनको आलस्य कहां ? हे मानव ! रेत घड़ी में से रेत का अणु-अणु गिरकर घड़ी को खाली करता है, जल की एक एक बूंद टपक टपककर जलपूर्ण घड़े को खाली करती है वैसे ही सेकंड-सेकंड (पलपल) में तेरा आयुष्य कम होता जा रहा है। मृत्यु नजदीक पा रही है फिर तु पालस्य व निद्रा द्वारा अपने प्रात्मधन को, आयु रत्न को क्यों खो रहा है ? समय की देवी की चोटी आगे रहती है पीछे नहीं, यदि तूने उसे आगे से पकड़ा तो सफल हो जाएगा और यदि पीछे से पकड़ने जाएगा तो उसकी गंजी खोपड़ी पर तेरा हाथ फिसल जायगा। समय रहते सावधान न हुवा तो पीछे पछताता रहेगा। माता समझती है कि मेरा बेटा बड़ा हो रहा है लेकिन यह नहीं जान रही है कि उसकी आयुष्य कम हो रही है वह मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है।