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श्लोकों की परिभाषा
अनुष्टुप या अनुष्टुभ-प्रत्येक पद में आठ अक्षर होते हैं। दूसरे
तथा चौथे पद का सातवां अक्षर ह्रस्व होता है। पहले तथा तीसरे पद का
सातवां अक्षर दीर्घ होता है। स्वागता वृत्त-११ अक्षर । स्वागता रनभगैर्गुरुणा च । (३-८) पार्यावृत्त—चार चरण होते हैं । अनुक्रम से १२, १८, १२-१५
मात्रा होती हैं। . उपेन्द्रवज्रा–११ अक्षर । उपेंद्रवज्रा पथमे लघौसा। (५-६) वंशस्थ या वंशस्थविल वृत्त प्रत्येक चरण में १२ अक्षर होते
हैं। वंदति वंशस्थविलं जतौजहौ ।
उपजाति-प्रत्येक चरण में ११ अक्षर होते हैं । इंद्रवज्रा और
उपेंद्रवज्रा के एक ही श्लोक में मिलने से यह छंद
बनता है। वसंततिलका–चौदह अक्षर होते हैं। उक्ता वसंततिलका तभजा जगौगः
(८-६) शार्दूलविक्रीड़ित-इसमें १६ अक्षर होते हैं। म, स, ज, स,
त, त तथा ग । सूर्या श्वैर्यदिमः सजौस ततगा
शार्दूलविक्रीडितम् । मृदंग-इसमें १५ अक्षर होते हैं । त, भ, ज, ज,
त्भौ जौ रो मृदंगः प्रार्यागीति–चारों पदों में अनुक्रम से १२, २०, २२, २०
मात्राएं होती हैं।