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देहममत्व
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नाम के हजारों पाश ( बंधन) हैं, तुझे जरूरत हो जितने ले जा । सिर्फ तू इस जीव से सावधान रहना नहीं तो तुझे मुँह की खानी पड़ेगी यह तुझे परास्त कर देगा ।" फिर वापस शरीर को स्मरण हुवा कि काम तो कठिन है अतः राजा से निवेदन किया कि, "महाराज ! इस जीव में तो अनंत शक्ति है वह मुझे मारकर भगा सकता है, अतः कोई ऐसी वस्तु दीजिए कि जिसके नशे में वह पड़ा रहे और वह नशा इतना तेज़ हो कि उसे यह भी याद न रहे कि उसमें कोई शक्ति है अर्थात उसे शक्ति का भान ही न हो । शरीर के इस निवेदन पर बहुत विचार करने के पश्चात राजा ने उसे मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा ये पांच प्रमादरूप प्रसव (शराब) दिए और सूचना दी कि इन्द्रियरूपी प्यालों में यह प्रसव भरकर जीव को पिलाया करना ।
शरीर ने अपने राजा की आज्ञा का तुरंत पालन किया । शराब के नशे में चूर ( प्रमत्त) हुए जीव को कृत्याकृत्य का भी विवेक न रहा; और जब शरीर को निश्चय हो गया कि यह जीव अब मोक्ष में नहीं जाएगा वरन नरक में जाएगा तब वह अपने काम में विजय मानकर जीव को वहीं छोड़कर चले जाने का विचार करता है तभी अकस्मात गुरु महाराज ( मुनिसुन्दर सूरिजी ) इस जीव को मिलते हैं । कैदखाने में शराबी की दशा में पड़े हुए इस जीव को देखकर उनको बहुत दया आई, अतः उन्होंने उस जीव को जेलखाने का स्वरूप समझाया और पीछे कहा कि, "हे भाई ! इस
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