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अध्यात्म-कल्पद्रुम (२) शरीर तेरा स्वयं का नहीं है, परन्तु मोह राजा द्वारा बनाया गया कैदखाना है।
(३) शरीर तेरी नौकरी में नहीं है, वह तो मोह राजा की सेवा में तत्पर है।
(४) शरीररूपी जेल में से मुक्त होने के लिए तुझे असाधारण पुरुषार्थ करना चाहिए ।
(५) शरीररूपी जेल में से छूटने का उपाय, पुण्य प्रकृति का संचय करना है।
(६) शरीर की टापटीप (संभाल) कम करना चाहिए और इंद्रियों का संयम अधिक करना चाहिए ।
(७) शरीर से आत्म हित साधने के लिए धर्मध्यान करना चाहिए।
(८) शरीर को भाड़े की झोंपड़ी मानना चाहिए ।
(६) शरीर छोड़ते हुए जरा भी खेद न हो, ऐसी वृत्तियें कर देनी चाहिए।
(१०) शरीर की अशुचि पर विचार करना चाहिए ।
हे देहमय प्राणी ! तू अपना और देह का स्वभाव पहचान, इस थोड़े से काल के लिए मिले हुए उत्तम सामग्री युक्त शरीर से सबसे उत्तम कार्य अर्थात धर्म साधन कर, उत्तम फल, ध्येय रूप मोक्ष प्राप्ति कर ले वरना पछताएगा।
इति वेहममत्व मोचन नामः पंचमाधिकारः