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अध्यात्म-कल्पद्रुम
वृक्ष है, चूहे दिन व रात हैं जो प्रायुडाल को काट रहे हैं, कुंवा भव कूप है, चारों सांप चारों गति हैं, अजगर निगोदावस्था है, देव देवी सद् गुरू हैं, मधुबिंदु संसार के काम भोग हैं जिनके स्वाद से धर्म की तरफ रुचि ही नहीं होती है ।
हे विद्वान भाई ! यह कीमती दुर्लभ मानव जीवन इन्द्रियों के सुख के लिए मत गंवा । विषयों पर काबू करके आत्महित कर ले । एक बार मानव भव गया कि गया । जैसे समुद्र में गिरी हुई हीरे की अंगुठी फिर नहीं मिल सकती है वैसे ही हारा हुवा मानव भव फिर नहीं मिल सकेगा ।
मोक्ष सुख और संसार सुख
यदद्रियार्थैरिह शर्म बिंदवद्यदर्णवत्स्वः शिवगं परत्र च । तयोमिथः सप्रतिपक्षता कृतिन्, विशेषदृष्टयान्यतरद् गृहाण तत् ३ अर्थ – इंन्द्रियों से इस संसार में जो सुख होता है वह बिंदु जितना है और ( इनके त्याग से ) परलोक में जो स्वर्ग और मोक्ष का सुख होता है वह समुद्र जितना है; इन दोनों सुखों में पारस्परिक शत्रुता है । अतः हे भाई ! इन दोनों में से एक को अच्छी तरह से विचार कर ग्रहण कर ॥ ३ ॥
वंशस्थ
विवेचन - जैसे किसी मेले में कई दुकानों पर कई तरह के माल दिखाए जाते हैं और ग्राहक पसंद कर उन्हें खरीदता है, माल का अच्छा या बुरा निकलना उसकी परख बुद्धि पर निर्भर है, उसी तरह से शास्त्रकार ने संसार सुख और मोक्षसुख दोनों ही बता दिए हैं । हे भाई तू दोनों में से एक को पसंद