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विषय प्रमाद
१२३ कर ले परन्तु पहले ठण्डे दिमाग से सोच जरूर लेना, करना अपनी इच्छा के अनुसार ही । मृग तृष्णा से दुःखी होना चाहता है तो संसार सुख अपना, वास्तविक सुख चाहता है तो मोक्ष मार्ग ग्रहण कर । पहला अंधेरा है और दूसरा प्रकाश है। पहला रात है तो दूसरा दिन है।
दुःख होने के कारणों का निश्चय कर भुंक्ते कथं नारकातिर्यगादिदुःखानि देहोत्यवधेहि शास्त्रैः । निवर्तते ते विषयेषु तृष्णा, बिभेषि पापप्रचयाच्च येन ।। ४ ॥
अर्थ यह जीव नरक, तिर्यंच आदि के दुःख क्यों पाता है यह शास्त्रों से जान ले, जिससे विषयों पर तेरी तृष्णा कम होगी और पाप इकट्ठा करते हुए तुझे भय लगेगा ॥४॥
उपजाति विवेचन-भय उसी वक्त लगता है जब कि विपरीत दशा का विचार होता है । कर्मों के कारण संसार में संतप्त प्राणियों को हम देखते हैं या जब हमारे छुपे हुए पाप प्रगट होते हैं, या अदालत-जेल, अपयश, निंदा या अपमान सामने नजर आते हैं या जन्मांध, दरिद्र, भिक्षु, या कोढ़ी को देखकर करुणा उत्पन्न होती हो साथ ही यदि उस दशा को प्राप्त होने के कारणों का विचार होता हो एवं उन्हीं सब कामों को करके हम वैसा बनने की तैयारी करते हुए पाए जाते हों तो भय उत्पन्न होता है। इस प्रकार का भय उत्पन्न होने से ही नरकादि के दुःख के कारणों का विचार होगा और शास्त्र पढ़ने की रुचि पैदा होगी और विषयों पर तृष्णा कम होगी।