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अथ षष्ठ: विषय प्रमाद
त्यागाधिकारः
ममत्व के मुख्य कारणभूत स्त्री, धन, पुत्र और शरीर का विचार करने के पश्चात प्रमाद त्याग का विचार किया जाता है । ऊपर के चार बाह्य ममत्व के साधन हैं अब प्रांतरिक ममत्व के त्याग का उपदेश शास्त्रकार देते हैं । प्रमाद का सामान्य अर्थ आलस्य होता है लेकिन जैनशास्त्रों में उसका विशेष अर्थ किया जाता है । प्रमाद के पांच भेद हैं (१) मद (आठ प्रकार का-तप, श्रुत, बल, ऐश्वर्य, जाति, कुल, लाभ रूप) (२) विषय (पांचों इन्द्रियों के २३ विषय) (३) कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) (४) विकथा (राज्यकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, भोजनकथा) (५) निद्रा (निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला,प्रचला प्रचला, स्त्यानद्धि)। प्रमाद के दूसरी तरह से आठ भेद भी जिनेश्वर ने त्यागने योग्य बताए हैं। वे हैंअज्ञान, असंयम, मिथ्याज्ञान, राग, द्वेष, मतिभ्रंश, धर्म का अनादर, योगों का (मन वचन, काय) दुःप्रणिधान ।
विषय सेवन से होने वाले सुख-दुःख की तुलना अत्यल्पकल्पितसुखाय किमिंद्रियार्थं स्त्वं मुह्यसि प्रतिपदं प्रचुरप्रमादः । एते क्षिपन्ति गहने भवभीमकक्षे, जंतून यत्र सुलभा शिवमार्गदृष्टिः ॥१॥