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देहममत्व
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अर्थ —शरीर पर मोह करके तू पाप करता है, परन्तु तुझे मालूम क्यों नहीं है कि तू शरीर में रहा हुवा है इसीलिए संसार के दु:ख जाल में फंसा हुवा है । जैसे लोह में रहते हुए ही अग्नि, घण ( हथोड़ा - एरण) की चोट सहती है | अतः जब तू आकाश की तरह से निरालंबन (ग्रालंबन रहित - निर आश्रय ) स्वीकार करेगा तब तुझे भी कोई पीड़ा नहीं होगी जैसे कि अग्नि से मुक्त लोह को चोट नहीं लगती है ॥ ४ ॥ वसंततिलका
विवेचन – जैसे अकेली पड़ी हुई सुशील युवा स्त्री अपने सौंदर्य के कारण गुण्डों के चंगुल में फंसने का भय रखती है लेकिन एक युवा कुरूप स्त्री को इसका रंचमात्र भी भय नहीं होता । दोनों की युवावस्था होते हुए भी रूप के कारण से ही भय रहता है । वैसे ही हे आत्मा ! तू रूप या शरीर में रहा हुवा है इसीलिए संसार का भय बना हुवा है । जब तू शरीर से मुक्त हो जाएगा तो कोई भय नहीं रहेगा । जैसे जंगल के रास्ते में जाते हुए केले धनवान को अपने धन व गहनों का भय रहता है लेकिन अकेले भिखारी को उसी रास्ते जाते हुए कोई भय नहीं रहता है । डर माया को है काया को नहीं है, यह लौकिक उक्ति है उसी तरह से देहातीत को कोई भय नहीं है । देह के संग से सब तरह का कष्ट व भय है अतः विदेह बनो ।