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समता
अग्नि में भस्म हो जाते हैं; हरिण व सर्प, कर्णपटु शब्दों से छले जाते हैं एवं बंधन व वध को पाते हैं । अहो ! पांचों इन्द्रियों के २३ विषय न केवल मनुष्य को ही दुःखी करते हैं वरन कीट व पशुओं को भी नहीं छोड़ते हैं । इन्द्रियों को वश में किए बिना सब त्याग, वैराग्य, तप जप का वही परिणाम होता है, जो राख में घी डालने से होता है ।
समता प्राप्ति का तीसरा साधन के गुणास्तव यतः स्तुतिमिच्छस्यद्भतं किमकृथा मदवान् यत् । कैर्गता नरकभीः सुकृतस्ते, किं जितः पितृपतिर्यदचिन्तः ॥१८॥
अर्थ तुझमें ऐसे कौन से गुण हैं कि जिनके द्वारा तू अपनी स्तुति की इच्छा रखता है; तूने ऐसा कौन सा आश्चर्यकारी महान् कर्म किया है जिसके लिए तू अहंकार करता है ? तेरे ऐसे कौन से सुकृत्य हैं जिनसे तुझे नरक का डर मिट गया है ? क्या तू ने यमराज को जीत लिया है जिससे निश्चिन्त हो गया है ॥ १८ ॥
स्वागतावृत्त विवेचन . समताप्राप्ति का तीसरा साधन वस्तु स्वरूप एवं आत्मस्वरूप का विचार है। प्रत्येक आत्मा अपनी स्थिति को विचारे कि तू कौन है ? पुद्गलों के संसर्ग से तेरी क्या स्थिति हो गई है, अब भी तू क्यों नहीं चेतता है। इतना ही नहीं, निर्गुणी होकर भी स्तुति की इच्छा रखता है, व अपनी बड़ाई चाहता है ! जिस महा पुरुष की खाल उस्तरे से उतारी जा रही है खून के फव्वारे बह रहे हैं फिर भी ध्यान तो आत्मा और परमात्मा का ही है, क्या उन खंधक मुनि जैसी क्षमा तेरे में है ?