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अथ द्वितीय: स्त्रीममत्व
मोचनाधिकारः
समता का रहस्य समझने के पश्चात उसे प्राप्त करने के साधनों की तरफ स्वाभाविक लक्ष होता ही है अतः प्रथम साधन जो मोहममत्व त्याग का है उसमें भी प्रथम स्थान स्त्रीममत्व के त्याग को दिया है। दूसरा, तीसरा, चौथा व पांचवां इन चारों का परस्पर संबंध है।
पुरुष के गले में बंधी हुई शिला मुह्यसि प्रणयचारुगिरासु, प्रीतितः प्रणयिनीषु कृति स्त्वम् । किं न वेत्सि पततां भववाडौं , ता नृणां खलु शिला गलबद्धाः॥१॥
अर्थ हे विद्वान् जिनकी प्रेमभरी और कर्णप्रिय मधुरवाणी से तू मुग्ध होता है और उनकी प्रीति से तू मोहित होता है, परन्तु यह क्यों नहीं जानता है कि वे भव समुद्र में गिरने वाले प्राणियों के लिए गले में बंधी हुई शिला के समान हैं ? ॥१॥
स्वागतावृत - विवेचन—जिस प्रकार मीठे बोलने वाले स्वार्थी मित्र एक भोले धनिक पुत्र को अपने शब्द जाल में फंसाकर उसके हित का स्वांग भजते हुए उसे तरह तरह के आमोद प्रमोदों से प्रसन्न रखते हैं। वे उसे भंग का नशा कराने के पश्चात