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अध्यात्म- कल्पद्रुम
उत्पन्न होते हैं वैसे ही स्त्रियों की योनि में भी जीव उत्पन्न होते रहते हैं व मरते रहते हैं । चंचलता, माया, झूठ आदि से वे पुरुषों को ठगती रहती हैं और पूर्व के कुसंस्कारों के कारण ही नरक में ले जाने के लिए उन्हें भोगा जाता है । असत्य, साहस, माया, मूर्खता, लोभ, अपवित्रता और निर्दयता ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं ।
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निर्भूमिविषकंदली गतदरी व्याघ्री निराव्हो महाव्याधिर्मृ त्युरकारणश्च ललनाऽनभ्रा च वज्राशनिः । बंधुस्न हेविघातसाहसमृषावादादिसंतापभूः प्रत्यक्षापि च राक्षसीति बिरुदैः ख्याताऽऽगमे त्यज्यताम् ||८||
अर्थ - (स्त्री) भूमि बिना ( उत्पन्न हुई ) विष की बेल है, बिना गुफा की सिंहनी है, बिना नाम की बड़ी व्याधि है, बिना कारण की मृत्यु है, बिना प्रकाश की बिजली है, स संबंधी एवं भाइयों के स्नेह का नाश करने वाली है । साहस, झूठ आदि संतापों का उत्पत्ति का स्थान है तथा प्रत्यक्ष राक्षसी है; ऐसे ऐसे उपनाम स्त्रियों के लिए प्रागम में दिए गए हैं, अतः इनका त्याग करो ॥ ८ ॥ शार्दूलविक्रीडित
विवेचन व्यवहारिक संबंधों का, पारस्परिक स्नेह का नाश स्त्रियों के कारण से होता है क्योंकि उनका स्वभाव माया सहित झूठ बोलने का होता है । नारी को उस सिंहणी की 'उपमा दी है जो गुफा में न रहकर जंगल में स्वछंद फिरती है । गुफा में रहने पर तो गुफा व उसके आस पास ही भय रहता है लेकिन जो स्वच्छन्द विचरती है उसका भय तो सर्वत्र बना रहता