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पुत्रममत्व
संतान पर स्नेह न करने के तीन कारण त्राणाशक्तेरापदि संबंधानंत्यतो मिथोंऽगवताम् । संदेहाच्चोपकृते, मापत्येषु स्निहो जीव ॥ ४॥
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अर्थ-आपत्ति के समय पालन करने में अशक्त होने से ; प्राणियों का सब प्रकार का संबंध अनंत बार होने से यह संबंध मिथ्या है इस कारण से; और उपकार का बदला मिलने का संदेह होने से हे जीव ! तू पुत्र पुत्री आदि पर स्नेह करने आर्या
वाला न बन ॥ ४ ॥
विवेचन - पहला कारण तो स्पष्ट है कि पुत्र पुत्री कोई भी माता पिता को आपत्ति में से बचा नहीं सकते हैं क्योंकि कर्मों के कारण से शारीरिक या मानसिक प्रपत्ति आई है अतः वे लाचार हैं । दूसरा कारण यह है कि आज जो पुत्र है वह पिछले भव में पिता था या प्राते भव में पिता हो सकता है अतः यह संबंध अनेक प्रकार से अनेक बार हुवा है अतः ममत्व करने योग्य नहीं हैं। तीसरा कारण उपकार का बदला न मिलने का है । बाल्यकाल में माता पिता, पुत्र व पुत्री को बड़े प्यार से पालते पोषते हैं, अनेक प्रकार से उनके लिए खर्च करते हैं एवं स्वयं कष्ट सहन करते हैं, लेकिन युवावस्था प्राप्त होने पर पुत्र अपनी स्त्री और संतान के साथ अलग हो जाता है, जितना कमाता है अपने स्त्री बच्चों के लिए खर्च करता है, वृद्ध माता पिता उसके लिए भाररूप बन जाते हैं । वह उनकी तन मन धन तीनों से बेदरकारी करता है । पुत्री भी अपने पति के घर चली जाती है उसे ही अपना सर्वस्व मानती है । कई