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अध्यात्म-कल्पद्रुम
धन एकत्रित किया जाता है जैसे कि जंगल कटवाना या जलाना, चूना ईंट आदि पकाना, पशु भाड़े देना या तांगे, बैलगाड़ी रखकर भाड़े पर चलाना, खानें खुदवाना, हाथी दांत का व्यापार, लाख का व्यापार, रस, ( घी, दूध, तेल, पतला गुड़ आदि ) ऊन एवं विष का व्यापार करना । इनके अतिरिक्त धान्य का संग्रह कर सड़ने पर जन्तुनों सहित धूप में डालना । मशीनरी का कार्य करना, मिलें चलाना, कपास, गन्ने के चखिए रखकर व्यवसाय करना आदि पाप के कार्यों से धन संग्रह कर मनुष्य प्रसन्न होता है कि अहा ! मेरे पास इतना धन है लेकिन यह नहीं सोचता है कि मैंने अपने और अपने परिवार के मात्र ५-७ व्यक्तियों के पालन के लिए कितने ही जन्तुों के प्राण लिए हैं । जिन व्यक्तियों के लिए इतना पाप कर्म करके धन संग्रह किया है उनमें से एक भी उन पापों के फलों को भुगतने के लिए तैयार न होगा, समय आने पर तुझे भी वाल्मीकि के माता पिता की तरह से परिवार के सब लोग नरक के कष्ट भुगतने के लिए मना कर देंगे । अतः तू अकेला पाप करके परिवार को तो थोड़े समय के लिए सुखी करता है परंतु उन कार्यों से अनंत भव तक तुझे दुःख उठाना पड़ेगा यह तू क्यों नहीं जानता है ? दुनिया के वृद्धों से पूछो तो वे यही कहेंगे कि संसार में सुख नहीं है और सुख का मूल यह धन, वास्तव में दुःख का मूल है। धन में अत्यंत व्याधि है संतोष में अत्यन्त सुख है ।