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अध्यात्म-कल्पद्रुम
हीरों की जड़ाई अधूरी थी । ओह ! राजा के पार नहीं रहा । वैसा बैल वह दे कहां से? भंडार में भी ऐसे कीमती रत्न न थे । देखिए, मम्मण सेठ को वे बैल क्या काम आए ।
आश्चर्य का उसके राज्य
जगत में राज्य लिप्सा से खून की नदियां बहती हैं, यद्यपि अब मारने के साधनों की एवं युद्धों की रीति में अन्तर पड़ गया है तथापि णु बम व हाईड्रोजन बम से अल्पकाल में व अल्पप्रयास से अनेकों की हत्या की जा सकती है । ह ! धन की कामना ने विद्या का उपयोग भी नाश के यंत्र बनाने में किया ! जो विद्या आत्मकल्याण के लिए थी, वह आत्मघातक सिद्ध हो रही है । विज्ञान का तात्पर्य है आत्मा को पहचानकर परमात्मा की तरफ बढ़ना परन्तु हो यह रहा है कि इसके द्वारा जीव को नित्य प्रति विनाश की ओर ले जाया जा रहा है । जगत शांति की अपेक्षा प्रशांति का अनुभव अधिक कर रहा है । यदि धन की ममता दूर हो जाय तो आज का मानव, दानव से देव बन जाय या कम से कम मानव तो बना रहे ।
'धन ऐहिक और आमुष्मिक दुःख को करने वाला है यानि द्विषामप्युपकारकाणि, सर्पोदुरादिष्वपि यगतिश्च ।
शक्या च नापन्मरणामयाद्या, हन्तु ं धनेष्वेषु क एव मोहः || २ || अर्थ - जो धन शत्रु का भी उपकार करने वाला हो जाता
है, जिस धन के द्वारा सर्प, चूहा आदि में धन मृत्यु रोग आदि किसी भी विपत्ति को दूर नहीं है, वैसे धन पर मोह क्यों ? || २ ||
गति होती है, जो करने में समर्थ
इंद्रवज्रा