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अध्यात्म-कल्पद्रुम
चुरा लेता है और जो प्रायः अन्य के ही उपभोग में आता है। वैसे धन को हे बुद्धिमानो ! आप छोड़ दो ॥ ६ ॥
शार्दूलविक्रीडित
विवेचन शास्त्रों की परिभाषा में भारी वह है जो पाप कर्मों में रत है व लिप्त है और हल्का वह है जो पापकर्मों में कम लिप्त है या उनको काटने का प्रयत्न कर रहा है । जैसे भारी वस्तु समुद्र में डूब जाती है वैसे हो पापात्मा भी संसार समुद्र में डूब जाता है अर्थात बारंबार अनेक दुर्गतियों में जन्मता रहता है । प्रायः धन कमाने में हिंसा के कार्य करने पड़ते हैं एवं हिंसा ही पाप है, अतः वैसा धनी भारी या पापी हुवा ही, अतः उसका संसार समुद्र में डूबना निश्चित हुवा । संसार में रहते हुए भी अन्यायी राजा या उसके कर्मचारी या चोर धनी का छिद्र देखते रहते हैं और जबरदस्ती से उसका धन छीन लेते हैं । जेब कटे या चोर कंपनियां भी ऐसा ही काम करती हैं । कहा भी है कि "माया को भय है काया को नहीं" । छोटे छोटे बच्चों के गले या हाथों में सोने के ज़ेवर होने से वे मारे जाते हैं यह तो इसके अतिरिक्त संग्रह किया हुवा धन जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट है
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सब ही जानते हैं । दूसरा ही भोगता है
for संचितं धान्यं, मक्षिका संचितं मधुः ।
कृपणैः संचितं वित्तं परैरेवोपभुज्यते ॥
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कड़ी द्वारा संग्रह किया गया धान्य, मधुमक्खी द्वारा संग्रह किया गया शहद और कंजूस व्यक्ति द्वारा एकत्रित किया गया धन दूसरों के द्वारा ही भोगा जाता है ।