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स्त्री ममत्व
है, वैसे ही स्त्री का भय भी हर समय बना रहता है न मालूम वह किस समय कौनसा भय उपस्थित कर दे । श्रीमद राजचन्द्रजी ने लिखा है :
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निरखी ने नव यौवना, लेश न विषय निदान । गणे काष्ठनी पूतली ते भगवान समान ॥ अर्थात भगवान के समान बनने वाले को स्त्री से दूर रहना चाहिए । सैकड़ों वीरों को युद्ध में पछाड़ने वाले शूरवीर नर भी नारी के नयनबाणों से बींधे जाते हैं । जो पुरुष सुन्दर स्त्री को देखकर ज़रा भी विषययुक्त नहीं होता है, जिसकी काम वासना ज़रा भी जागृत नहीं होती है, जो उसे लकड़ी की पूतली के समान गिनता है वह भगवान के समान है |
स्त्री मीठी छुरी है जो प्रात्मिक गुणों का घात करती है, सुरिकांता, नयनावाली आदि ने विषयांध होकर अपने पति तक को जहर दे दिया, उस स्थिति को सामने रखकर संसार से विरक्त दशा में विचरने वाले पुरुष को स्त्री से सर्वथा दूर रहने की आवश्यकता है । इस विषय में इन्द्रिय पराजय शतक, उपदेशप्रासाद, श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी, पुष्पमाला आदि ग्रंथ देखने चाहिए । भर्तृहरि का वैराग्यशतक भी देखने योग्य है ।
स्थूलभद्रजी जैसे या तुलसीदासजी जैसे विरले ही होते हैं जो उस प्रेम पयोधि से निकलकर आत्म श्रेय करते हैं । बहुत ही कम विष ( कुचेला आदि ) इस तरह के होते हैं जो