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स्त्रीममत्व
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विचारता है । तू उसके मोह के वश में रहने से तमाम दिनभर धन आदि के लिए फिरता रहता है, उसे प्रसन्न करने के लिए परिश्रम करता है लेकिन इसी एक कारण से तू नरक आदि का साम्राज्य प्राप्त करने वाला है, कारण कि तूने अपने आपको भुला दिया है । तू परमात्मा को भूल गया है और परलोक के भय से विस्मृत हो गया है। हे स्वतंत्र ! क्यों परतन्त्र बनता है।
स्त्री का शरीर, स्वभाव और भोग के फल का स्वरूप अमेध्यभस्रा बहुरंध्रनिर्यन्, मलाविलोद्यत्कृमिजालकीर्णा । चापल्यमायानृतवंचिका स्त्री, संस्कारमोहान्नरकाय भुक्ता ॥७॥
अर्थ-विष्टा से भरी हुई चमड़े की थैली, बहुत छिद्रों में से निकलते हुए मल (मूत्र-विष्टा) से मलीन, (योनि में) उत्पन्न होते हुए कीड़ों से व्याप्त, चपलता माया और असत्य (माया मृषावाद) से ठगने वाली स्त्रिएं पूर्व के संस्कारों के मोह से नरक में ले जाने के लिए ही भोगी जाती हैं।
उपजाति विवेचन-नगर पालिका की तरफ से मैला ढोने वाली कोठियों या गाड़ियों को देखिए कितनी घृणा होती है ? यदि उनमें छिद्र हों और मैला छन छनकर निकलता हो, या बहता हो तो फिर तो पूछना ही क्या ? इसी प्रकार से सुन्दर दिखती हुई स्त्रियों के शरीर में से १२ मार्गों से (छिद्रों से) मैल बहता रहता है तो फिर उससे तुझे घृणा क्यों नहीं होती है ? जैसे मैले की कुण्डियों, गटरों, या गाड़ियों में जीव