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स्त्रीममत्व है, जरा स्वस्थ होकर उन अंगों में क्षण के लिए भी प्रवेश कर, क्योंकि तू पवित्र व अपवित्र वस्तु के विचार की इच्छा रखता है अतः सूक्ष्म दृष्टि से विचार कर उस अशुचि के पिंड से दूर हो जा।
वसंततिलका विवेचन–सती सीताजी के रूप सौंदर्य पर आकृष्ट होकर रावण ने क्या प्राप्त कर लिया ? कुछ नहीं। यदि उसने उनके शरीर के अंगों पर तात्त्विक दृष्टि से विचार किया होता तो उसका व उसके वंश का नाश न होता और आज इतने वर्षों के पश्चात भी उसे घृणा की दृष्टि से न देखा जाकर उसका दशहरे पर पूतला न जलाया जाता । सुन्दर कीमती वस्त्र भी विष्टा के एक छोटे से अपवित्र हो जाता है तो फिर जिस सुन्दर चर्माच्छादित पिंड में वह अपवित्र पदार्थ भरा हुवा है उसे तू अपवित्र और दूर रहने योग्य क्यों नहीं मानता है ? तूं पवित्र और अपवित्र के अंतर को पहचानना चाहता है अतः सूक्ष्म दृष्टि से, अंतर दृष्टि से देख और परिणाम पर पहुंच । यदि तू इन दुःखों से परिचित हो गया है और संसार के कीचड़ में अभी नहीं फंसा है तो मल्लिनाथजी, तथा नेमिनाथजी का अनुकरण कर, यदि मोहपाश में फंस गया है तो स्थूलिभद्र तथा धन्ना-शालिभद्र की तरह से वीरता दिखाकर बाहर निकल । सिद्धर्षि गणिने उपमिति भवप्रपंच कथा में तथा अन्य महात्माओं ने भी मोह को राजा की पदवी दी है, अन्य कर्म उसके मंत्री, सिपाही आदि बताए हैं । मोह का केन्द्र स्त्री है, धन पुत्र आदि उसके आश्रित हैं अतः स्त्री के मोह को जीत ले।