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स्त्रीममत्व
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कपिल मुनि-कौसंबी नगरी का काश्यप ब्राह्मण का पुत्र अपनी विधवा माता के उपदेश से श्रावस्ती नगरी में इंद्रदत्त नामक पंडित के यहां विद्याभ्यास करने को गया। भिक्षावृत्ति द्वारा उदरपोषण करने से अध्ययन के लिए समय कम मिलता था अतः एक विधवा ब्राह्मणो के यहां उसके भोजन का प्रबंध किया गया। प्रति दिन के समागम व हास्य आदि से दोनों मार्ग भ्रष्ट हो गृहस्थी बन गए। फलस्वरूप गर्भावस्था में ब्राह्मणी ने द्रव्य की इच्छा व्यक्त की। उसे दासीपने में भोजन वस्त्र तो मिलता था परन्तु पूजा के लिए नकद की आवश्यकता हुई। खिन्नवदना प्रिया ने उपाय बताया कि नगर का राजा सर्व प्रथम आशीर्वाददाता ब्राह्मण को दो मासा स्वर्ण देता है तुम सब में पहले पहुंचो। इस सूचना से कपिल तीन चार दिन तक नित्य वहाँ जाता रहा परन्तु उससे पूर्व भी कई ब्राह्मण पहुंच जाते थे। एक दिन अर्धरात्रि को वहां जाते समय मार्ग में ही नगर रक्षकों द्वारा वह पकड़ा गया और राजा के सन्मुख चोरी के अपराध में उपस्थित किया गया। राजा ने वास्तविकता को जानकर उसे धन मांगने को कहा। वह एकांत स्थान में जाकर सोचता हुवा दो मासे से बढ़कर पूरा राज्य मांगने की इच्छा करता है। प्रोह मनोदशा कितनी विचित्र है ! वह आगे विचारता है कि राज्य के रक्षा के लिए सेना की चिंता, शत्रु
राजा से राज्य के रक्षण की चिंता यह तो दुःखकर है वह फिर नीचे उतरता है और सोचते सोचते वास्तविक स्थिति पर आकर त्यागी बन जाता है । जंगल में जाकर तप तपता है। अनुक्रम से केवली बनकर ५०० चोरों को बोध कराता है