________________
स्त्रीममत्ब
'
७७
इतनी घृणा हो जाती है कि तू वहां ठहरता भी नहीं है । यह हाडपिंजर वाला शरीर ऐसे ही घृणित पदार्थों से भरा है फिर तूं इन पर क्यों लुभाता है ?
अपवित्र पदार्थों की दुर्गंधि, स्त्री शरीर का संबंध विलोक्य दूरस्थममेध्यमल्पं, जुगुप्ससे मोटितनासिकस्त्वं । भृतेषु तेनैव विमूढ योषावपुःषु तत्कि कुरुषेऽभिलाषम् ॥३॥
अर्थ हे मूर्ख ! जरासी दूर पड़ी हुई दुर्गन्धी वस्तु को देखकर तूं नाक सिकोड़ कर घृणा करता है; तब वैसी ही दुर्गन्धी से भरे हुए स्त्रियों के शरीर को तूं क्यों अभिलाषा करता है ? ।। ३ ॥
इंद्रवज्रा विवेचन सार्वजनिक शौचालयों की दुर्गन्धी तो प्रायः सभी को कष्टकर होती है, दुर्गन्ध के मारे नाक सिकोड़ते हैं, सिर दर्द होने लगता है, जितनी जल्दी हो सके दूर हटने का प्रयत्न करते हैं परन्तु वह दुर्गन्ध युक्त घृणित वस्तु पाईं कहां से ? अरे मलमूत्र के धाम ये हमारे शरीर ही तो उनके कोठार हैं !! ऐसे कोठार से भरे हुए स्त्री-शरीर की तू अभिलाषा कर रहा है। इससे बढ़कर और क्या मूर्खता होगी?
मल्ली कुमारी ने अपने विवाहोच्छुक छ: राजाओं को एक स्वर्णमयी पुतली द्वारा जिसमें से अन्न के सड़ने की दुर्गन्ध
आ रही थी बोध दिया कि जैसे इस पुतली का रूप ऊपर से स्वर्णमय है व अंदर अन्न सड़ रहा है वैसे ही हे राजाओं मेरा शरीर भी सुन्दर है परन्तु अंदर तो ऐसे ही दुर्गन्ध युक्त पदार्थ हैं । ये छ: राजा जो उसके पिछले भव के आराधक मित्र थे