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अध्यात्म-कल्पद्रुम वैराग्ययुक्त हो गए और कुमारो सहित सातों ने अपना कल्याण किया।
"देखी दुर्गन्ध दूरथी, तू मोह मचकोड़े माणे रे; - नवि जाणे रे तेणे पुद्गले तुज तनुभर्यो ए।
हम गंदगी से दूर भागते हैं, वस्त्र से नाक ढकते है, उसमें पैर पड़ने पर पैर को धो डालते हैं तो भी उसी गंदगी युक्त नारी देह को उत्तम जानकर उसे सर्वस्व न्यौछावर कर प्रभु को भूल जाते हैं।
स्त्री के मोह से इस भव, व परभव में होने वाला फल अमेध्यमांसास्रवसात्मकानि, नारीशरीराणि निषेवमाणाः । इहाप्यपत्यद्रविणादिचिंतातापान परत्रेयतीदुर्गतीश्च । ४॥ ___ अर्थ-विष्टा, मांस, रुधिर और चरबी आदि से भरे हुए स्त्रियों के शरीर को भोगने वाले प्राणी इस भव में धन व पुत्र आदि की चिंता के ताप में तपते हैं और परभव में दुर्गति में पड़ते हैं ।। ४॥ .
उपजाती विवेचन—स्त्री के संसर्ग में आने के पश्चात परिवार बढ़ता है । पुत्र के लिए लालन पालन की चिंता, आराम के लिए व्यय की चिंता, इन दोनों की चिंता मिटाने के लिए धन की चिंता, धन के लिए नौकरी, व्यापार आदि की चिंता, इस तरह यह क्रम चलता ही रहता है व चिंता भी बढ़ती जाती है । इस अग्नि में जलते हुए प्राणी के लिए औषधी ही नहीं है। इस तरह यह भव तो दुःख में जाता है और इस भव में कुछ भक्ति आदि नहीं करने से दुर्गति निश्चित ही है।