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अध्यात्म-कल्पद्रुम
समता का अध्याय संपूर्ण करते हुए सारांश ध्यान में रखने योग्य होने से उसकी पुनरावृत्ति की जा रही है। जिस प्रकार हमारे यहां कोई बड़े अतिथि पाने वाले हों तो हम उनके स्वागत को तैयारी करते हैं, सब जगह सफाई कराते हैं उसी प्रकार सबसे बड़े अतिथि अपने आराध्य देव को मन मंदिर में पधारने के लिए उस मन को भी साफ करना पड़ेगा उसमें जो क्रोधादि मैल रहा हुअा है उसको साफ किए बिना वह तैयारी अधूरी गिनी जाएगी, यदि आराध्यदेव की पधरामणी करनी हो तो समता द्वारा मनमंदिर को स्वच्छ करें। इसके बिना वह तैयारी वैसी ही निर्थक होगी जैसे कि नींव बिना घर बनवाना या तैरना न जानते हुए समुद्र में कुदना । सर्व प्रथम धरातल साफ करना पड़ेगा तभी सर्व मनोवांछित साधा जाएगा उसी प्रकार प्रात्मा का कल्याण चाहने वाले को या मोक्ष प्राप्ति के इच्छक को समता भाव प्रात्मा में लाना पड़ेगा, जिसके चार साधन बताए हैं :
(१) चार भावना भाना, (२) इन्द्रियों के विषयों पर चित्त को सम रखना, (३) वस्तु का स्वभाव पहचानना (४) स्व अर्थ (आत्मा का हित) प्राप्त करने में संलग्न रहना । ___ महानुभावो ! समता पर शास्त्रकार ने बहुत भार दिया है और उसी के आधार पर मैंने अपनी तुच्छ बुद्धि व अल्पज्ञान से थोड़ा सा विवेचन किया है। समता का आनंद अनुभव की वस्तु हैं । प्रत्येक वस्तु को बाह्य दृष्टि से देखने की अपेक्षा प्रांतर दृष्टि से निरीक्षण करना चाहिए कि वह क्या है ? कहां से आई है ? कहां जाएगी ? पहले कहां थी ? मेरा और