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समता
धन्नाजी - ए तो मित्र कायरुं, शु ले संयम ; भायरूं; जीभलड़ीजी, मुख माथानी जुदी जाणवीजी ॥
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सुभद्रा - कहे ं तो घणु सोहिल, पण करवु प्रति दोहलु । सुणो स्वामीजी, अहेवी ऋद्धि कुण परिहरेजी ॥ धन्नाजी – कहे तो घणु सोहिल, पण करवु ं प्रति दोहिल ; सुण सुन्दरीजी, आजथी त्यागी आठनेजी ॥ हो महाश्चर्य ! जिसकी ऋद्धि सिद्धि का पार नहीं था, जिसके समान सोभाग्यशाली कोई नहीं था, वह धन्ना सेठ उसी क्षण स्नान से विरत हो जाता है, उठकर शालिभद्र के घर जाता है, स्नान अधूरा ही रहता है। वहां जाकर उसे कहता है :
उठो मित्र कायरूं, संयम लइये भायरूं ।
आपण दोय जणाजी, संयम शुद्ध आराधीयेजी || कर्मेशूरा सो धर्मेशूरा । सिंह की पुकार सिंह पहचानता है । सब बंधनों को छोड़कर तथा सुख के साधनों को लात मारकर वे दोनों
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शालिभद्र वैरागिया, शाह धन्नो प्रति त्यागिया; दोनु रागीयाजी, श्री वीर समीपे आवीयाजी ॥ महावीर प्रभु के समीप जाकर दीक्षित होकर अपना कल्याण करते हैं ।
हे मूढ़ आत्मा ! इनकी संपत्ति, सुख व कोमलता के सामने, इनके परिवार व दास दासियों के सामने तेरी क्या हस्ती है ? धन, स्त्री, मित्र व राजा कोई भी उन्हें भवदुःखों