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अध्यात्म-कल्पद्रुम
वशीभूत होकर उनके संसर्ग से प्राप्त हुए अनेक प्रसंगों पर क्यों पद पद पर शोक करता है ।
दलबल देई देवता, मात पिता परिवार, मरती बिरियां जीव को कोई न राखनहार ॥
श्रेणिक राजा को भी जिसकी ऋद्धि सिद्धि ने आकर्षित व आश्चर्यान्वित किया था, जिसके घर प्रतिदिन वस्त्र अलंकार की पेटियां उतरती थी, जिसका सुकुमार शरीर श्रेणिक राजा के देह की क्षणिक उष्णता को सहन न कर सका था, जिसने कभी घर से बाहिर पैर भी नहीं धरा था, जिसने नगर के राजा श्रेणिक का नाम भी न सुना था वही शालिभद्र अपने सिर पर राजा जैसी व्यक्ति का आधिपत्य, स्वामित्व जानकर संसार के बंधनों को तोड़ने पर उतारू होकर बत्तीस पत्नियों में से एक एक पत्नि को प्रतिदिन त्यागता है । इससे भी बढ़कर त्याग व वैराग्य तो धन्ना सेठ का है जो शालिभद्र का बहनोई था । स्नान विलेपन कराते वक्त ऊपर बैठी हुई सुभद्रा की आंख में से एक उष्ण बूंद, सेठ के शीतल शरीर पर गिरती है और वह ऊपर देखता है । अपनी पत्नी की आंखों में पानी देखकर उनका सागरवत वक्षस्थल उथल पुथल होता है । उनका वार्तालाप उनके ही शब्दों में पढ़िए:धन्नाजी - गोभद्र सेठनी बेटड़ी भद्राबाई तोरी मावड़ी । सुण सुन्दरजी तें केम प्रांसु खेरीयुंजी ॥ सुभद्रा - जगमाँ एकज भाई माहरे, संयम लेवा मनकरे; नारी एक एक जी, दिन दिन प्रत्येपरिहरे जी ॥