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अध्यात्म-कल्पद्रुम
देता है, वह जेब में से, टोपी में से या हाथ में से रुपए निकालता है या आम लगा देता है परन्तु परिणाम कुछ नहीं होता है। सुलसासती की परीक्षा के लिए अंबड परिव्राजक ने, क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु, महेश व जिनका स्वरूप इन्द्र जाल से बनाया : परन्तु सुलसा सम्यक्त्व से डिगी नहीं । अतः जैसे इन्द्रजाल व स्वप्न के पदार्थ निरर्थक हैं वैसे ही ये दिखते हुए सांसारिक पदार्थ एवं विषय भो निरर्थक हैं। अतः है आत्मा समाधि में । (आत्मभाव में) लवलीन बना रह।
__ मृत्यु का विचार-ममत्व का स्वरूप एष मे जनयिता जननीयं, बंधवः पुनरिमे स्वजनाश्च । द्रव्यमेतदिति जातममत्वो, नैव पश्यसि कृतांतवशत्वम् ॥२८॥
अर्थ यह मेरे पिता हैं, यह मेरी माता है, ये मेरे भाई हैं, और ये मेरे स्वजन हैं, यह मेरा धन है, इस प्रकार का तुझे ममत्व हुवा है, परन्तु तूं यमराज के वशीभूत हुअा है यह नहीं देखता है ॥ २८ ॥ .
स्वागता विवेचन यह दुनिया एक बाजीगर का खेल है। इसके संबंध मिथ्या हैं, माता पिता, भाई, संबंधी और धन इनमें ही तेरा मन लगा हुवा है। इनको ही मात्र अपना मान बैठा है और हरदम इनको प्रसन्न करने में, इनके लिए कमाने में या सुख के सामान जुटाने में लगा है परन्तु यह नहीं देखता है कि तू काल के वश में फंसा हुवा है । मृत्यु देवी चेतावनी देकर तेरे पास आ रही है । बालों का सफेद होना, अंगों का शिथिल होना, दृष्टि की कमी, कानों का बहरापन, दांतों का गिरना