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समता
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यही तो इसकी चेतावनी है । अतः इसके आने के पूर्व तैयारी कर रखना चाहिए । यह तब ही हो सकता है जब कि तू ममत्व त्यागकर समता धारण करेगा ।
चेतोहरा युवतयः स्वजनोनुकूलः सदबांधवाः प्रणयगर्भगिरश्च भृत्याः । बल्गंतिदन्तिवहास्तरलास्तुरंगाः संमीलने नयनयोर्नहि किंचिदस्ति ।
अर्थात चित्त को चुराने वाली स्त्रियां, अनुकूल संबंधी, अच्छे भाई बंधु, आज्ञाकारी मधुरभाषी सेवक, झूमते हुए हाथियों का समूह, चपल घोड़े, यदि यह सब प्राप्त हों परन्तु आंख मिची कि इनमें से कुछ भी नहीं है ।
है भोले जीव ! तू बिल्ली की तरह दूध को तो देख रहा है परन्तु मालिक के डण्डे को नहीं देख रहा है । तू उस बालक के समान है जो बारिश में गीली रेती से घरों को बनाता है, लड्डू बनाता है, या पुतलियां बनाकर खेल रहा है । उन घरों, लड्डू या पुतलियों को वास्तविक समझ रहा है । यदि कोई उनको तोड़ता है, तो वह रोता है । वैसे ही तू भी इन मिट्टी की पुतलियों को जो आत्मा के कारण चल फिर रही हैं अपना मान बैठा है । मिट्टी के घर को स्थायी रहने का स्थान, एवं पीली मिट्टी को ( सोने को ) आराध्यदेव मानकर उसकी प्राप्ति के लिए मोह मदिरा के वशीभूत रहता है । जैसे बालक के सब खिलौने थोड़ी देर में टूटने वाले हैं वैसे ही तेरे भी ये सब अपने माने हुए चलते फिरते खिलौने और भवन व धन के ढेर टूटने वाले हैं । या तो ये तुझे छोड़ देंगे या तुझे इनको छोड़