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अध्यात्म-कल्पद्रुम
ज़रा इस संसार चक्र को देख और तू किसी के प्रति कोई भी तरह का भेद भाव न समझ । तूही तेरा मित्र-शत्रु-सगा-संबंधी सब है। शरीर के अंदर रहे हुए पदार्थ धीरे धीरे सूखते जाएंगे एवं तुझे यह चोला छोड़ने को विवश करेंगे अतः इसका विश्वास न कर । इससे पूरी मजूरी ले ले। इसे खिलाता भी बहुत है अतः धर्म भी बहत करा ले।
माता पिता आदि के संबंध यथा विदां लेप्यमया न तत्त्वात्, सुखाय मातापितृपुत्रदाराः । तथा परेऽपीह, विशीर्णतत्तदाकारमेतद्धि समं समग्रम् ॥२४॥
अर्थ जैसे समझदार मनुष्य को चित्रित माता, पिता, पुत्र, स्त्री तात्विक सुख नहीं देते हैं उसी प्रकार इस संसार में रहे हुए प्रत्यक्ष माता पिता आदि भी सुख नहीं देते हैं। प्राकार के नष्ट होने पर दोनों बराबर हो जाते हैं ।। २४ ॥
उपजाति विवेचन भौतिक प्रगति के इस युग में बहुत कम ऐसे मनुष्य होंगे जो चलचित्र (सिनेमा) से अपरिचित होंगे, उसे देखने की कितनी उत्कंठा रहती है ? शो (दृश्य) शुरू होने के पूर्व उसे देखने की तीव्र उत्सुकता एवं समाप्त होने पर क्षणिक विचार मन को घेरे रहता है । चालू शो में चित्त की एकाग्रता रहती है, दिखाए जाने वाले दृश्यों का प्रभाव मन को उथल पुथल करता है परन्तु घर आने पर उसका कोई असर नहीं रहता। चित्र में देखे गए पात्र अपनी अपनी रुचि के अनुसार