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समता
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परंपरा न बढ़ा । वरना पछतावेगा । ज्वराग्रस्त दशा में मिठाई या अचार खिलाने वाला वैद्य प्रत्यक्ष मित्र नज़र आता हुआ भी घातक शत्रु है वैसे ही मीठी लगने वाली वस्तुएं भी विपरीत फल देंगी । अतः हित शिक्षा रूप औषध को क्वीनेन की तरह ग्रहण करके भव ताप को दूर कर । आत्म रोगों को तेरे सन्मुख प्रकट करने वाला, आत्म नाड़ी परीक्षक वैद्य ही सच्चा हितैषी है अतः अपना भला बुरा पहचान कर योग्य समय में योग्य कर ले |
वस्तु ग्रहण के पूर्व विचार कृती हि सर्व परिणामरम्यं, विचार्य गृह्णाति चिरस्थितीह । भवान्तरेऽनन्त सुखाप्तये तदात्मन् ! किमाचारमिमं जहासि ? ।। २१ ।। अर्थ - इस संसार में वही पुरुष सुज्ञ हैं जो सुन्दर परिणाम वाली तथा चिरस्थायी वस्तु, विचार कर ग्रहण करते हैं । परभव में अनंत सुख प्राप्त करने के लिए ( उसके कारणभूत ) इस धार्मिक प्रचार को तूं है आत्मा ! क्यों छोड़ रहा है ? उपेन्द्रवज्रा
विवेचन - यदि किसी देव की कृपा से कोई मनुष्य ऐसे जंगल में पहुंच जाय जहां हीरे-माणक मोती- सोना, चांदी, तांबा, पीतल, लोहा, सीसा खूब प्रचुर मात्रा में पड़ा हुआ हो, जहां नजर जाए वहां ऐसे ही ढेर नजर आते हों उस समय वह मनुष्य यदि लोहार है तो लोहा ग्रहण करता है ठठेरा है तो तांबा पीतल ग्रहण करता है, सोनार है तो सोना चांदी ग्रहण करता है लेकिन कीमती हीरे - माणिक मोती को