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समता
४६ गईं। न उपयोग कर सका न योग (धर्मध्यान) कर सका। सिकन्दर बादशाह के शब्दों में कहिए तो
जे बाहुबल थी मेलव्युं ते भोगवी पण न शक्यो। अब्जोनी मिलकत आपतां पण ए सिकन्दर न बच्यो ।
अर्थात् जो भुजबल से प्राप्त किया वह बिना भोगे ही रह गया। अरबों रुपए देते हुए भी मैं मौत से बच नहीं रहा हूं । हाय मैं मर रहा हूं। '
हे भद्र आत्मायो ! इन सांसारिक पदार्थों के मोह को छोड़कर उस चिरस्थायी आनंददायी, शांतिमय सद्धर्म का आराधन करो। जिससे इस जीवन में भी आनंद प्राप्त हो व परलोक भी सुधर जाय ।
राग द्वेष के किए हुए विभाग पर विचार निजः परोवेति कृतो विभागो, रोगादिभिस्ते त्वरयस्तवात्मन् । चतुर्गतिक्लेश विधानतस्तात्, प्रमाणयन्नस्यरिनिर्मितं किम् ॥२२॥ ___अर्थ हे आत्मन् ! अपना और पराया विभाग राग द्वेष द्वारा किया गया है। चारों गतियों में (अनेक प्रकार के) क्लेश दिलाने वाले राग द्वेष तो तेरे शत्रु हैं । तो फिर शत्रुओं द्वारा बनाए गए विधान को तू क्यों स्वीकार करता है ?
. उपजाति विवेचन-राग द्वेष के द्वारा ही हम सब प्राणियों को मित्र या शत्रु समझते हैं। अपना पराया का भेद भी इसी कारण से है। चारों गतियों में (देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक)