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समता
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वह तो अपने ही पूर्व कर्मों का दोष विचार रहा है, सोचता है कि, "जिस तरह खंधक मुनि ने एक काचरे की खाल (खीरा का छिलका) हंसते हंसते खुश होकर उतारी थी जिसका परिणाम उनके ही बहनोई (जो काचरे का जीव था) ने उनकी खाल उस्तरे से उतराई फिर भी वे प्रात्मरमण करते रहे, वैसे ही मुझे भी ध्यान में रहना चाहिए यही तो तपस्वी की परीक्षा का समय है" । इस प्रकार विचारते विचारते साधु को केवल ज्ञान होता है व शरीर निष्प्राण हो जाता है उनका मोक्ष होता है। धन्य है ऐसे मुनियों को। क्या ऐसा क्षमागुण तेरे में है जिसके लिए तू अभिमान कर रहा है ? प्रभु महावीर जैसी तपस्या; श्रीपाल राजा जैसी दाक्षिण्यता; विजय सेठ विजया सेठानी तथा स्थूलि भद्र महाणा जैसा ब्रह्मचर्य; बाहुबली जैसा मदत्याग; हेमचंद्राचार्य हरिभद्र सूरि तथा यशोविजयजी जैसा श्रुत ज्ञान, महाराजाकुमार पाल जैसा श्रावक धर्म पालन, क्या तेरे में है जिसके लिए तू अभिमान करता है ? धर्म तराजू से अपने आपको तोल और देख कि वास्तव में तेरा वजन (गुण) कितना है ?
ज्ञानी का लक्षण गुणस्तवैर्यो गुणिनां परेषामाक्रोशनिंदादिभिरात्मनश्च । मनः समं शीलति मोदते वा, खिद्यत च व्यत्ययतः स वेत्ता ॥१६॥
अर्थ ज्ञानी वही है जो अन्य गुणवानों की प्रशंसा सुनकर या दूसरों द्वारा स्वयं पर किए गए आक्रोश के (क्रोधावेश) समय या स्वयं की निंदा सुनकर अपने मन को वश में रखता