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(१३) २३ पर इनकी उत्पत्ति, इनका आचार, क्रिया, कर्म आदि का वर्णन किया है। इनके पूर्वज भरत राजा को चेतन करते रहते थे कि, "जितो वान वर्धते भयं, माहण माहणेति" इसीलिए इस जाति का नाम माहण या महात्मा कहलाया। विशेष जानकारी के लिए मेरे द्वारा प्रकाशित पुस्तकें (१)
आत्म-मार्गदर्शिका, (२) पार्श्वनाथ चरित्र, (३) जैन तीर्थ मित्र-राजस्थान व मध्यप्रदेश के जैन तीर्थों की मार्गदर्शिका (४) श्री केशरियाजी जैन गुरुकुल भजनावली देखें। कल्पक, शकटाल, स्थूलिभद्र, श्रीयक, चाणक्य आदि जैन माहण महात्मा थे। ___ देलवाड़े में एक जैन धर्मशाला है, मूर्तिपूजक श्रावक के घर कम हैं । स्थानकवासी भाइयों के करीब १०० है जो प्रति दिन दर्शन करते हैं । पास में नागदा प्राचीन नगरी है जहां शांतिनाथ प्रभु का मंदिर है। जैन तीर्थ मित्र में यह सब वर्णित हैं।
__ श्री मुनिसुन्दर सूरीश्वर ने अनेक शास्त्रों की रचना की जिनमें से कुछ का उल्लेख श्री मोतीचन्द भाई ने किया है वह निम्नलिखित है
(१) त्रिदश तरंगिणी—इसमें चौवीस तीर्थकरों का चरित्र और सुधर्मा स्वामी से मूलपाट पर बैठे हुए प्राचार्यों का, नाम निर्देष है।
(२) उपदेश रत्नाकर—इसमें उपदेश देने की विधि, उपदेश ग्रहण करने वाले की योग्यता-अयोग्यता के लक्षण आदि हैं।