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समता
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३४६ दिन भोजन किया एवं ४८ मिनट ही (एक मुहूर्त तक) नींद ली। तप संयम द्वारा, आत्म मनन कर केवल ज्ञान प्राप्त कर दुःखी जीवों को सच्चा मार्ग बताया। तपस्या काल में, किसी ने उनके पैरों पर खीर पकाई, कानों में कीले गाड़े, सांपों ने काटा, चोरों ने मारा, देवों ने अनेक उत्पात किए, हथोड़ों की चोट सिर पर मारी, सिंह, हाथी आदि ने कष्ट दिया। सबको शांति से सहन किया। तभी सब कर्मों से मुक्त हुए । पश्चात ही करुणाकारी प्रभु ने भव में भटकते हुए, भान भूले हुए, पापरत प्राणियों को बोध दिया, “प्रात्मशक्ति को पहचानो", "कर्मों के संसर्ग से आए हुए मैल को दूर कर सच्चा सुख प्राप्त करो, प्रत्येक प्राणि में अनंत शक्ति है उसे पहचान कर उपयोग में लायो । अनंत सुख मिलेगा।" ७२ वर्ष का अायुष्य पूर्ण कर. कार्तिक कृष्णा अमावस्यादीपमालिका को सब बंधनों से मुक्त हो पावापुरी में मोक्षगामी हुए । तर गए और तार गए ।
अनुपम सुख के कारण भूत-शांतरस का उपदेश सर्वमंगलनिधौ हृदि यस्मिन्, संगते निरूपम् सुखमेति । मुक्तिशर्म च वशीभवति द्राक् तं बुधा भजत शांतरसेद्रम् ॥२॥ ___ अर्थ_ "जिसके हृदय में सर्व मंगलों के निधान (खजाना) जैसा शांतरस प्राप्त हो जाता है वह अकथनीय सुख प्राप्त करता है एवं मोक्ष के सुख का वह अधिकारी (स्वामी) हो जाता है । मोक्ष उसके वश में हो जाता है । हे पंडितो ! आप उस शांतरस का पान करो। उसे भजो-सेवो-भावो"।।२।।
स्वागतावृत्त