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अध्यात्म- कल्पद्रुम
तत्व को जो देखते हैं उनके इन गुणों पर जो पक्षपात करना है वह प्रमोद कहा जाता है ।। १४ ।।
अनुष्टुवृत्त
विवेचन - गुणी जनों की तरफ स्वयं श्रद्धा हो जाती है और उनका बहुमान होता है इसी का नाम प्रमोद है । यहां, “सर्वेगुणाकांचनमाश्रयंते " से तात्पर्य नहीं है । क्षमा, धैर्य, सेवा, सत्य आदि जो प्रात्मिक भाव हैं वे ही गुण हैं । श्रीकृष्ण महाराज के छोटे भाई गज सुकुमाल, जो वैराग्य युक्त होकर स्मशान में ध्यान कर रहे थे उनके भावी श्वसुर ने अपनी पुत्री का सांसारिक अहित समझ कर गीली मिट्टी का घेरा बनाकर उनके सिर पर रख दिया व उसमें धधकते हुए अंगारे रखकर यह संतोष माना कि मैंने इससे बदला ले लिया है । परन्तु क्षमा के अवतार गजसुकुमाल मन में यह सोच रहे थे कि, "अहो मेरे भावी श्वसुर को धन्य है, जिन्होंने स्थायी पगड़ी बांधकर मेरा मोक्ष मार्ग साफ कर दिया है, यदि मैं विवाह करता तो वह कपड़े की पगड़ी देते जो फट जाती, परन्तु यह पगड़ी तो मेरी अग्नि परीक्षा है कि मैं ध्यान में कितना निश्चल रह सकता हूँ" । परिणामतः सिर फट गया, व साथ ही उनके कर्मों का पर्दा भी फट गया । केवल ज्ञान सूर्य का उदय हुआ और पुनरागमन रूप तम का नाश हुआ अर्थात् मोक्ष हुआ । यह क्षमा गुण है जिसके लिए प्रमोद करना चाहिए । “उत्तम ना गुण गावतां गुण आवे निज अंगे ।" ये शब्द भी प्रमोद की पुष्टि करते हैं ।
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