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यह नगरी नंदनवन समी देव पुरी या अमरपुरी सदृश थी आज मूर्ति विरोधी समाज के प्रभाव से यह धर्म विहोणी हो रही है । मंदिरों की दुर्दशा है, देवरिया प्रायः खाली पड़ी है, उनकी मूर्तियां वहां के संघ ने बाहर नकरे पर देकर भव्यस्थानकों की रचना की है, सेवा-पूजा करने वालों के प्रभाव से पुजारियों के भरोसे भगवान रह रहे हैं, शिखरों पर ध्वजाएं नहीं हैं, कोई २ प्रतिमाजी खण्डित हैं । देव पूजक नरों के अभाव में वानर व चामचिड़ियां को प्रभुत्व है । यह दशा इस समय इस प्राचीन नगरी को है । हे पुण्यशाली दानवोरो, धर्म वीरो और धर्म गुरु इस तरफ प्राप लक्ष दो आपसे यह प्रार्थना है | श्री सोमसुन्दर सूरि व श्री मुनिसुन्दर सूरि की विहार भूमि, निंब, विसल, साहण जैसे श्रावकों की जन्मभूमि, देवजी, रतनजी, मियाचन्दजी जैसे प्रभावशाली जैन ब्राह्मणों (माहणमहात्मा ) की पवित्र जन्मभूमि इस देलवाड़े की दुर्दशा पर आज खेद होता है । यही पुण्य पवित्र व धर्म नगरी मेरी भी जन्मभूमि है । इस नगरी के राज्य गुरू राज्यज्योति श्रीलालजी महात्मा मेरे पिताजी हैं । मेरे घर पर एक अंबिका माता की मूर्ति है जिसके मस्तक पर श्री नेमिनाथ प्रभु को छोटी सी मूर्ति बनी है उस पर वि० सं० १४७६ में प्रतिष्ठित होने का लेख है ।
इस प्रान्त में प्राचीन माहण जाति के लगभग ४०० घर हैं जो धर्म से जैन व वर्णं से ब्राह्मण हैं जिन्हें आज "महात्मा" कहते हैं । ये शुद्ध देश विरतिधर वृद्ध श्रावक हैं। श्री लक्ष्मीप्रधानजी गणि ने रत्नसागर पृष्ट ६ व आचार रत्नाकर पृष्ट
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