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॥ ओ३म् अहम् ॥ ओ३म् परमात्मने नमः
अध्यात्मकल्पद्रुमाभिधान
ग्रंथ: सविवरणः प्रारभ्यते
अथ प्रथमः समताधिकारः अथायं श्रीमान् शांतनामा रसाधिराजः सकलागमादिसु शास्त्रार्णवोपनिषद्भूतसुधारसायमान ऐहिकामुष्मिकानंतानंद संदोहसाधनतया पारमार्थिकोपदेश्यतया सर्वरससारभूतत्वाच्च शांतरसभावनाध्यात्मकल्पद्रुमाभिधानग्रंथांतरग्रंथननिपुणेन पद्य संदर्भेण भाव्यते ॥ __ अर्थ - सर्व प्रागम आदि सुशास्त्र रूप समुद्र के सारभूत अमृत समान रसाधिराज शांत रस का, जो कि इस लोक और परलोक संबंधी अनंत प्रानंद समूह की प्राप्ति का साधन है, पारमार्थिक उपदेश देने में योग्य होने से एवं सर्व रसों में सारभूत होने से शांत रस की भावना वाले अध्यात्मकल्पद्रुम .