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रचना विक्रम संवत १४७५ से लेकर १५०० तक होने की संभावना श्री मोतीचन्दजी भाई ने लिखी है जिसको पांच सौ वर्ष से ऊपर हो चुके हैं ।
ग्रन्थ स्वयं ही चिन्तामणि रत्न स्वरूप है । संस्कृत के विद्वानों के लिए श्लोक ही पर्याप्त है, केवल हिन्दी के ज्ञाताओं के लिए अर्थ उपयुक्त है लेकिन सर्वसाधारण के लाभ के लिए विवेचन भी हितकर हो सकता है ।
ग्रंथ के कर्ता-श्री मुनि सुन्दरसूरोंश्वर
आपका जन्म वि० सं० १४३६ में हुवा | जन्मस्थान, माता-पिता आदि का वर्णन उपलब्ध नहीं है । मात्र ७ वर्ष की आयु में संवत १४४३ में आपने जैन धर्म की दीक्षा ली थी । सं० १४६६ में उपाध्याय पदवी तथा सं० १४७८ में सूरि पदवी श्री संघ ने अर्पण की । आप, श्री सोमसुन्दर सूरिजी के पट्टधर बने । दीक्षागुरु श्री देव सुन्दरसूरि थे या श्री सोमसुन्दरसूरि थे यह अभी तक निर्विवाद सिद्ध नहीं हुआ है । श्री देवसुन्दर सूरि उग्र पुण्य प्रकृति वाले थे जिनको वि० सं० १४४२ मे प्राचार्यपद मिला और सं० १४५७ में काल धर्म पाए जो कि सुधर्मास्वामी से पचासवें गच्छाधिपति थे । इनके पाट पर श्री सोमसुन्दर सूरि बैठे | श्री सोमसुन्दर सूरि का स्वर्गगमन वि० सं० १४ε६ में हुवा और श्री मुनि सुन्दसूरि पाट पर बैठे | आपका स्वर्गगमन वि० सं० १५०३ में हुआ । इस विषय की विशेष जानकारी "सोमसोभाग्य काव्य" से करें ।
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