Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003420/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि नयमान्य संचालक, राजस्थान पाच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर 7 ग्रन्थाङ्क ५० चारण किसनाजी पाढ़ा विरचित रघुवरजसप्रकास प्रकाशक राजस्थान राज्य-संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान STHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR जोधपुर ( राजस्थान) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक - पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि [ सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] ग्रन्थाङ्क ५० चाररण किसनाजी श्राढ़ा विरचित रघुवरजसप्रकास नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR जोधपुर ( राजस्थान ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान परातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यत : अखिल भारतीय तथा विशेषत: राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषानिबद्ध विविध वाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि प्रधान सम्पादक पुरातत्वाचार्य जिनविजय मुनि [ ऑनरेरि भेम्बर प्रॉफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी । सम्मान्य सदस्य भाण्डारकर प्राच्यविद्यासंशोधनमन्दिर, पूना; गुजरातसाहित्य-सभा, अहमदाबाद; विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध-संस्थान, होशियारपुर; निवृत्त सम्मान्य नियामक ( प्रानरेरि डायरेक्टर )-भारतीय विद्याभवन, बम्बई ग्रन्थाङ्क ५० चारण किसनाजी आढ़ा विरचित रघुवरजसप्रकास प्रकाशक राजस्थान राज्याज्ञानुसार संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारण किसनाजी आढ़ा विरचित रघुवरजसप्रकास सम्पादक श्रीसीताराम लालस वृहद राजस्थानी कोशके कर्ता प्रकाशनकर्ता राजस्थान राज्याज्ञानुसार संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) विक्रमाब्द २०१७ भारतराष्ट्रीय शकाब्द १८८२ ( ख्रिस्ताब्द १६६० । मूल्य ८.२५ न.पै. प्रथमावृत्ति १००० मुद्रक-हरिप्रसाद पारीक, साधना प्रेस, जोधपुर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके कुछ ग्रन्थ प्रकाशित ग्रन्थ संस्कृतभाषाग्रन्थ-१. प्रमाणमंजरी-तार्किकचूड़ामणि सर्वदेवाचार्य, मूल्य ६०० । २. यन्त्रराजरचना-महाराजा सवाई जयसिंह, मूल्य १.७५ । ३. महर्षिकुलवैभवम्-स्व० श्रीमधुसूदन अोझा, मूल्य १०७५। ४. तर्कसंग्रह-पं० क्ष्माकल्याण, मूल्य ३.०० । ५. कारकसम्बन्धोद्योत-पं० रभसनन्दि, मूल्य १७५ । ६. वृत्तिदोपिका-पं० मौनिकृष्ण, मल्य २.००। ७. शब्दरत्नप्रदीप, मूल्य २.००। ८. कृष्णगीति-कवि सोमनाथ. मल्य १.७५ है. शृङ्गारदारावली-हर्षकवि, मल्य २.७५ १०. चक्रपाणिविजयमहाकाव्य-पं० लक्ष्मीधरभद्र, मल्य ३.५० । ११. राजविनोद-कवि उदयराज, मल्य २.२५। १२. नत्तुसंग्रह, मूल्य १.७५। १३. नृत्यरत्नकोश, प्रथम भाग-महाराणा कुम्भकर्ण, मूल्य ३.७५ । १४. उक्तिरत्नाकर-पं० साधुसुन्दरगरिण, मूल्य ४.७५ । १५. दुर्गापुप्पाञ्जलि-पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी, मूल्य ४.२५ । १६. कर्णकुतूहल तथा कृष्णलीलामृत-भोलानाथ, मूल्य १.५० । १७. ईश्वरविलास महाकाव्य-श्रीकृष्ण भट्ट, मूल्य ११.५० । १८. पद्यमुक्तावली-कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट, मूल्य ४ ०० । १६. रसदीपिका-विद्याराम भट्ट, मूल्य २.०० । राजस्थानी और हिन्दी भाषा ग्रन्थ-१. कान्हडदे प्रबन्ध-कवि पद्मनाभ, मूल्य १२.२५ । २. क्यामखांरासा-कवि जान मूल्य ४.७५ । ३. लावारासा-गोपालदान मूल्य ३.७५। ४. वांकीदासरी ख्यात-महाकवि वांकीदास मूल्य ५.५० । ५. राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग १, मूल्य २.२५। ६. जुगल-विलास-कवि पीथल, मूल्य १.७५। ७. कवीन्द्रकल्पलता-कवीन्द्राचार्य मूल्य २.०० । ८. भगतमाळ-चारण ब्रह्मदासजी, मूल्य १.७५ । है. राजस्थान पूरातत्त्वान्वेषण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग १, मूल्य ७.५० । १०. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १, मूल्य ८.५० न.पं.। ११. रघुवरजसप्रकास, किसनाजी प्राढ़ा, मूल्य ८.२५ न.पै. प्रेसोंमें छप रहे ग्रन्थ संस्कृत-भाषा-ग्रन्थ- १. त्रिपुराभारतीलघुस्तव-लघुपंडित । २. शकुनप्रदीप-लावण्यशर्मा। ३. करुणामृतप्रपा-ठक्कुर सोमेश्वर । ४. बालशिक्षा व्याकरण-ठक्कूर संग्रामसिंह ५. पदार्थ रत्नमञ्जषा-पं० कृष्ण मिश्र। ६. काव्यप्रकाशसंकेत-भट्ट सोमेश्वर । ७. वसन्तविलास फागु। ८. नृत्यरत्नकोश भाग २ । ६. नन्दोपाख्यान । १०. वस्तुरत्नकोश । ११. चान्द्रव्याकरण । १२. स्वयंभूछंद-स्वयंभू कवि। १३. प्राकृतानंद-कवि रघुनाथ । १४. मुग्धावबोध प्रादि औक्तिक-संग्रह । १५. कधिकौस्तुभ-पं० रघुनाथ मनोहर । १६. दशकण्ठवधम्-पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी। १७. भुवनेश्वरीस्तोत्र सभाष्य-पृथ्वीधराचार्य, भा. पद्मनाभ । १८. इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध । १६. हम्मीरमहाकाव्यम्-जयचन्द्र सूरि। २०. ठक्कूर फेरू रचित रत्नपरीक्षादि। राजस्थानी और हिन्दीभाषा ग्रन्थ-१. मंहता नैणसीरी ख्यात, भाग २-मंहता नैणसी । २ गोरावादल पदमिणी चऊपई-कवि हेमरतन । ३. चंद्रवंशावली-कवि मोतीराम । ४ सुजान संवत-कवि उदयराम । ५. राजस्थानी दहा संग्रह । ६. वीरवांरण-ढाढी बादर । ७. राठोड़ारी वंशावली। ८. सचित्र राजस्थानी भाषा-साहित्य ग्रंथ सूची। ६. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रंथोंकी सची, भाग २। १०. देवजी बगड़ावत और प्रतापसिंह म्होकमसिंधरी वात । ११. पुरोहित बगसीराम और अन्य वार्ताएँ। १२. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग १।। इन ग्रंथोंके अतिरिक्त अनेक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश. प्राचीन राजस्थानी और हिन्दी भाषामें रचे गये ग्रंथोंका संशोधन और सम्पादन किया जा रहा है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सञ्चालकीय वक्तव्य राजस्थानी भाषामें इतिहास, धर्मशास्त्र, पुराण और कथा आदि अनेक विषयोंके साथ ही काव्यशास्त्रकी विशेष उन्नति हुई है, जिसके परिणाम-स्वरूप विभिन्न काव्य-शैलियोंका अनूठे रूप में विकास हुआ है। उदाहरणार्थ रास, रूपक, मङ्गल, वचनिका, वेलि, पवाड़ा, विलास, प्रकाश और सतसई आदि सहस्रों राजस्थानी रचनागोंको लिया जा सकता है। अनेक काव्य-ग्रन्थोंमें गीत, दूहा, नीसाणी, झूलणा, चौपाई, झमाळ आदि छन्दोंका प्रयोग भाव, भाषा एवं काव्य-कलाकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार राजस्थानी काव्योंकी विपुलताके आधार पर राजस्थानी काव्य-शास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थोंका निर्माण भी हुआ जिनमें रस, छन्द, अलङ्कार और नायक-नायिका-भेदादि विषयोंका विस्तृत एवं सम्यक् विवेचन प्राप्त होता है। चारण कवि किसनाजी आढ़ा रचित 'रघुवरजसप्रकास' राजस्थानी छन्दःशास्त्र-विषयक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। ग्रन्थकर्त्ताने इसमें राजस्थानी काव्योंमें प्रयुक्त विभिन्न छन्दोंके लक्षण प्रस्तुत करते हुए स्वरचित उदाहरणोंके रूपमें भगवान् श्रीरामचन्द्रका सुयश गान भी किया है। राजस्थानी काव्य-शास्त्रके विद्वानों में 'रघुवरजसप्रकास'के प्रकाशनकी बहुत समय से प्रतीक्षा थी। राजस्थानके सुपरिचित साहित्यसेवी और वृहद् राजस्थानी शब्दकोशके कर्ता श्रीसीतारामजी लाळसने कुछ मास पूर्व हमें प्रस्तुत ग्रन्थकी प्रति बताई तो हमने 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के लिए उपयोगी समझते हुए इसका प्रकाशन स्वीकार कर लिया। प्रसन्नताका विषय है कि यह ग्रन्थ प्रकाशित होकर काव्य-प्रेमियों के हाथोंमें पहुँच रहा है। श्रीसीतारामजी लाळसने सपरिश्रम इसका सम्पादन किया है और भूमिकामें सम्बद्ध विषयोंकी आवश्यक सूचनाएँ दी हैं, तदर्थ वह धन्यवादके पात्र हैं। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] इस ग्रन्थके प्रकाशनमें जो व्यय हुआ है उसका अर्धांश केन्द्रीय भारत सरकारने प्रदान किया है। तदर्थ सरकारको धन्यवाद अपित हैं। महाशिवरात्रि, वि०सं० २०१६ भारतीय विद्या भवन, बम्बई। मुनि जिनविजय सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर। ernational www.jainel Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका संस्कृत साहित्यमें छंदशास्त्रका विशेष स्थान है । वेदके छः अंगों (१ छंद, २ कल्प, ३ ज्योतिष, ४ निरुक्त, ५ शिक्षा और ६ व्याकरण) में छंदशास्त्र भी एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका स्थान पाद (चरण) माना गया है । कारण कि इसके बिना गति-क्रिया किसीकी सम्भव नहीं, अतः वेदमें भी छन्दस्तु वेदपाद: कहा गया है । यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं कि हमारे पूर्वाचार्योने काव्य-रचनामें छंदशास्त्रकी उतनी ही आवश्यकता मानी है जितनी व्याकरणकी। कालान्तरमें अनेक भाषागोंका प्रादुर्भाव संस्कृत भाषासे हुआ जैसे कि प्राकृत, अपभ्रश अादि । इन भाषाओंके साहित्यमें भी छंदशास्त्रको उतना ही महत्त्व दिया गया जितना कि संस्कृत साहित्य में ; फल-स्वरूप प्राकृतपैगलम् आदि रीति-ग्रंथोंकी रचना संस्कृतेत्तर छंदोंके लक्षणोंको बतलाते हुए प्राकृत भाषामें की गई। भाषाका विकास निरंतर काल-गतिके साथ होता रहा। अपभ्रंश भाषासे अनेक देशी भाषाओं तथा लोक भाषाओंका जन्म हुआ; उनमें मरु-भाषा भी एक है। इसी मरु-भाषाने कालान्तरमें डिंगल या राजस्थानी भाषाके नामसे प्रसिद्धि प्राप्त की। भाषाकी विकासको गतिके साथ साथ मरु-भाषा डिंगल या राजस्थानीका भो नवीन व मौलिक साहित्य बढ़ता गया । पूर्व पद्धत्यानुसार डिंगल भाषाके मर्मज्ञोंने अपने साहित्यमें छंदशास्त्रको महत्त्व दिया जिसके फलस्वरूप उच्च कोटिके मौलिक छंदग्रंथों की रचना की गई जिससे भाषा और साहित्य को पूर्ण बल मिला। . मरु-भाषाके मर्मज्ञ विद्वानोंने हिन्दी भाषाके समान ही कुछ संस्कृत एवं प्राकृत छंदोंको ज्यों का त्यों अपना लिया और उनमें अपनी भाषाकी रचना की। वेदोंके बाद' पद्यमय रचनाका सर्वप्रथम ग्रंथ वाल्मीकि रामायण है। उसमें तेरह प्रकारके छंदोंका प्रयोग मिलता है। फिर महाभारतमें भी यही प्रयोग वृद्धिको प्राप्त हुआ और महाभारतमें १८ प्रकारके छंदोंका प्रयोग हुअा। तत्पश्चात् श्रीमद्भागवतमें छंदों की संख्या बढ़ कर २५ तक पहुँची। इसके बादमें ज्यों ज्यों भाषा और साहित्यका विकास हुआ त्यों त्यों छंदोंके रूप भी १ भारतका प्राचीनतम साहित्य वेद प्रायः छंदोबद्ध है । इसके बादके साहित्यकी रचना भी विशेषकर छंदोंमें हुई है । साहित्यकी वृद्धि के साथ-साथ छंदोंकी भी संख्या बढ़ी। वेदोंमें मुख्य सात छंद पाये जाते हैं, यथा-गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप् और जगती। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] निरंतर बढ़ते ही गये, जिसके फलस्वरूप प्रागेके ग्रंथोंमें अनेक प्रकारके छद हमें मिलते हैं । अन्य भाषाओं के समान ही राजस्थानी भाषा में विशिष्ट रीति-ग्रन्थों की रचना प्रारम्भ हुई । रीति-ग्रन्थकारोंने अनेक मौलिक छंदों का भी निर्माण किया । वर्णवृत्त एवं मात्रिक छंद हिन्दीमें भी बहुत अधिक संख्या में प्राप्त हैं, परन्तु गीत नामक छंद डिंगलकी अपनी नवीनतम एवं मौलिक रचना है । यद्यपि राजस्थानी साहित्य के निर्माण में चारण कवियोंकी ही प्रधानता है, फिर भी यहां पर यह कहना होगा कि डिंगल गीत छंदके रचयिता तो चारण कवि ही हैं । छंदशास्त्रका सबसे प्राचीनतम संस्कृतका पिंगल मुनिकृत पिंगल छंदशास्त्र है । ग्रन्थकारने अपने पिंगल छंद शास्त्रमें पूर्वाचार्योंका उल्लेख किया है परन्तु उन सबके नाम सूत्रोंमें ही रह गये उनके ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होते हैं । पिंगल मुनिके छंदशास्त्र के बाद छंदों का विशद वर्णन ग्रग्निपुराण में मिलता है परंतु पिंगल छंदशास्त्र और अग्निपुराण में वर्णन किये गये छंदशास्त्रका प्रकरण परस्पर मिलता-जुलता ही है । इसके बाद छंद शास्त्र पर अनेक ग्रंथ रचे गये । उनमें से 'श्रुत-बोध', 'वाणी- भूषण', 'वृत्त - रत्नाकर', वृत्त दर्पण', वृत्तकौमुदी' 'सुवृत्त - तिलक' और 'छंदो-मंजरी' बहुत प्रसिद्ध हैं । केदार भट्ट विरचित 'वृत्त - रत्नाकर' और गंगादास रचित 'छंदो - मंजरी' का तो घर-घर प्रचार है । ये दोनों ग्रंथ इस विषय के पूर्ण मान्य ग्रन्थ हैं । हिन्दी भाषा में रीतिकालीन कवियोंने अनेक छंदशास्त्रोंकी रचना की । उनमें कई प्राकृतके छंदों और उपर्युक्त संस्कृत रीतिग्रंथोंके छंदों को ग्रहण किया गया । इस प्रकार पूर्वापर पद्धत्यानुसार हिन्दी में भी छंदों के लाक्षणिक ग्रंथ पृथक लिखे गये । इधर मरु भाषा डिंगल या राजस्थानी में भी समय समय पर छंदों के लाक्षणिक ग्रन्थ रचे गये । सर्वप्रथम पिंगल मुनिके संकेत मात्र लेकर नागराज पिंगळ' डिंगल छंदशास्त्र नामक बृहद् ग्रंथ रचा गया, परन्तु मूल ग्रंथके रचयिता के नामका पता न चला और यह ग्रन्थ पूर्णरूपमें प्राप्त भी नहीं है । दो स्थानों पर मैंने इस ग्रन्थकी पांडुलिपियां देखी हैं; छंदोंके साथ-साथ गोतों के भी लक्षण दिए गए हैं, परन्तु यह ग्रन्थ अभी अप्राप्य सा हो है । उपर्युक्त ग्रन्थ के प्रतिरिक्त अद्यावधि डिंगलके छंदशास्त्र पर प्राप्त ग्रंथ हैं जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं १ नागराज पिंगळ छंदशास्त्रकी एक प्रति सिवाना नगर में एक जैन यतिके अधिकार में सुरक्षित है। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३ ] १. पिंगळ-सिरोमणि ... रावळ हरराज कृत २. पिंगळ-प्रकास ... हमीरदांन रतनू कृत ३. लखपत पिंगळ ... , , , ४. हरि-पिंगळ ... जोगीदास चारण कृत ५. कविकुळबोध ... उदयराम बारहठ कृत ६. रघुनाथरूपक ... मंशाराम सेवग कृत ७. रघुवरजसप्रकास ... किसनाजी आढा कृत ८. रण-पिंगळ दीवाण रणछोड़जी द्वारा संग्रहीत ६. डिंगल कोश ... कविराजा मुरारिदानजी मीसण कृत उपर्युक्त छंदोंके लाक्षणिक ग्रंथोंमें लखपत पिंगळको छोड़ कर छंदोंके लक्षणोंके साथ साथ गीतोंके लक्षण व रचना-नियम दिये गये हैं । लखपत पिंगळमें केवल गीतोंके रचनाके नियम न देकर केवल गोत ही दिए गए हैं। हमने जिन ग्रंथों के नाम ऊपर दिए हैं उनमें केवल तीन ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं और चौथा यह रघुवरजसप्रकास है । शेष पाँच ग्रन्थ अप्रकाशित हैं। कवि परिचय प्रस्तुत रीतिग्रन्थ रघुवरजसप्रकासको समाप्ति पर स्वयं कविने एक छप्पय लिख कर अपना वंश-परिचय दिया है, वह इस प्रकार है - छप्पै 'दुरसा' घर "किसनेस', "किसन' घर सुकवि 'महेसुर'। सुत 'महेस' 'खुमाण' 'खांन साहिब' सुत जिण घर ।। 'साहिब' घर पनसा' है 'पना' सुत 'दुलह' सुकव पुण । 'दूलह' घर खट पुत्र 'दान' 'जस' 'किसन' 'बुधो' भण ।। 'सारूप' 'चिमन' मुरधर उतन, परगट नगर पांचेटियौ । चारण जात पाढ़ा विगत, 'किसन' सुकवि पिंगळ कियौ ॥ स्वयं कवि द्वारा प्रदत्त वंश-परिचयसे हमें ज्ञात होता है कि लाक्षणिक ग्रंथ रघुवरजसप्रकासके रचयिता सुकवि किसनजी राजस्थानके प्रसिद्ध एवं राष्ट्रभक्त कवि पाढा गोत्रके चारण श्रीदुरसाजीकी वंश-परम्परामें थे। प्रस्तुत ग्रंथ-रचयिताके परिचयके पूर्व उनके पूर्वज चारण-कुल-भूषण सुकवि दुरसाजीका संक्षिप्त परिचय देना आवश्यकीय होगा। __सुकवि दुरसाजी आढ़ा गोत्रके चारण थे जिनका जन्म जोधपुर राज्यांतर्गत सोजत तहसीलके धुंधला नामक ग्राममें अमराके पुत्र महाके घर संवत् Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] १५६२ में हुआ था । दुर्भाग्य से बाल्यावस्था में ही पितृ-प्रेमसे वंचित हो गये' । अत: बगड़ी गाँव के ठाकुर श्री प्रतापसिंहजी सूंडाने इनका पालन-पोषण किया और वयस्क होने पर अपने यहां कार्य पर रख लिया । दुरसाजी अपनी काव्य प्रतिभा के कारण शीघ्र ही विख्यात हो गये और दिल्ली के सम्राट अकबर के दरबार में भी अच्छा सम्मान प्राप्त किया । दुरसाजी राजस्थानके बहुत लोकप्रिय और यशस्वी कवि हुए हैं । ग्रापने कविताके नामसे बहुत सम्मान व धन प्राप्त किया । काव्य-रचना के दृष्टिकोणसे भी दुरसाजीका स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं । इनके लिखे तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं - १. बिरुद - छिहत्तरी, २. किरतारबावनी और ३. श्रीकुमार ग्रज्जाजीनी भृधर मोरीनी गजगत । इन ग्रंथोंके अतिरिक्त दुरसाजी के लिखे पचासों डिंगल गीत उपलब्ध होते हैं । दुरसाजी के दो स्त्रियां थीं जिनसे चार पुत्र हुए। ये अपने सबसे छोटे पुत्र किसनाजीके साथ पांचेटिया में ही रहते थे । वहीं सं० १७१२ में इनका देहावसान हुआ । इन्हीं दुरसाजीकी वंश-परम्परा में किसनाजीने मारवाड़ राज्यांतरगत पांचेटिया ग्राममें जन्म लिया जिसका वंश क्रम इस प्रकार है १ दुरसौ, २ किसोजी, ३ महेस, ४ खुमान, ५ साहिबखांन, ६ पनजी ७ दूल्हजी, ८किसनोजी, इस प्रकार कवि-परिचय के प्रारम्भ में दिए हुए छप्पयके अनुसार रघुवरजसप्रकासके रचयिता सुकवि किसनाजी आढ़ाका जन्म दुरसाजी आढ़ाकी आठवीं पुश्त में (पीढ़ी में ) दूल्हाजी नामक कविके घर हुआा। दूल्हजी के कुल छः पुत्र थे जिनमें किसनोजी तीसरे थे । इनके जीवनके सम्बंध में श्रीमोतो १ नोट- इनके पिताने सन्यास ले लिया था । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लालजी मेनारिया द्वारा लिखित राजस्थानी भाषा और साहित्यमें बहुत संक्षिप्त परिचय ही प्राप्त है। किसनाजी संस्कृत, प्राकृत, वृजभाषा एवं राजस्थानी भाषाके उद्भट विद्वान थे । लाक्षणिक ग्रंथोंका भी इनका ज्ञान पूर्ण परिपक्व था। इतिहासकी ओर भी आपकी विशेष रुचि थी। कर्नल टॉडको अपना राजस्थानका वृहद् इतिहास लिखनेमें किसनाजीके अथक परिश्रमसे पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध हुई थी। ये उदयपुरके तत्कालीन महाराणा भीमसिंहजीके पूर्ण कृपापात्र थे। महाराणा भीमसिंहजीने आपको काव्य-रचनासे प्रभावित होकर सीसोदा नामक ग्राम प्रदान किया था जो अद्यावधि इन्हींके वंशजोंके अधिकारमें रहा। महाराणा भीमसिंहजी द्वारा इस ग्रामको किसनाजीको प्रदान करनेका किसनाजी कृत निम्नलिखित एक डिंगल गीत हमारे संग्रहमें है गीत कीजै कुरण-मीढ न पूजै कोई, धरपत झूठी ठसक धरै । तो जिम 'भीम' दिये तांबा पत्र, कवां अजाची भला करै ॥१॥ पटके अदत खजांना पेटां, देतां बेटां पटा दिये। सीसोदौ सांसण सीसोदा, थारा हाथां मौज थिय ॥ २ ॥ मन महारांण धनौ मेवाड़ा, दाखै धाड़ा दसू दसा । राजा अन बांधे रजवाड़ा, तू गढवाड़ा दिये तसा ॥ ३ ॥ अधपत तनै दियारौ अंजस, लोभी अंजस लियारौ। भाण साच जणायौ 'भीमा', हाथां हेत हियारौ ॥ ४ ॥ किसनाजी द्वारा रचे हुए मुख्य दो ग्रंथ उपलब्ध हैं-एक भीमविलास और दूसरा रघुवरजसप्रकास । भीमविलास महाराणा भीमसिंहजीकी आज्ञासे संवत् Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७६ में लिखा गया था जिसमें उक्त महाराजाका जीवन-वृत्त है । रघुवरजसप्रकास प्रकाशित रूपमें आपके समक्ष है । इनके अतिरिक्त कविके रचे हुए फुटकर गीत अधिक संख्या में उपलब्ध होते हैं जो कविकी विशिष्ट काव्य-प्रतिभा एवं प्रौढ ज्ञानका परिचय देते हैं । रघुवरजसप्रकास प्रस्तुत ग्रंथ रघुवरजसप्रकास राजस्थानी भाषाका छंद - रचनाका उत्कृष्ट लाक्षणिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश व हिन्दीके छंदोंका अपनी मौलिक रचनामें पूर्ण विवेचन है । ग्रंथ में कविने मुख्य विषय छंद-रचनाके लक्षणों व नियमोंका बड़ी सरल व प्रसादगुरगपूर्ण भाषामें वर्णन किया है । छंदोंके वर्णनमें कविने अपनी रामभक्तिका पूर्ण परिचय दिया है । राम-गुणगान ही कविका मुख्य ध्येय था । अतः छंद-रचनाके लक्षणोंके साथ-साथ रामगुण-वर्णन करते हुए कविने एक पंथ दो काजकी कहावतको पूर्ण रूपसे चरितार्थ किया है। प्रकाशित रीति ग्रन्थ रघुनाथरूपकमें लाक्षणिक वर्णनके अतिरिक्त उदाहरणके गीतोंमें रामकथाका ही सहारा लिया है । इसमें रामायणकी भांति रामगाथा क्रमबद्ध चलती है । परन्तु किसनाजीने अपने ग्रन्थ में मुक्तक रूपसे राममहिमाका वर्णन किया है। इसमें कोई कथाका क्रम नहीं है। कविने रीतिके अनुसार ग्रंथको पांच भागोंमें विभाजित किया है। छंद-लक्षण जैसे अरुचिकर विषयको अत्यंत सरल बना कर ग्रन्थको पर्ण प्रसादगुणयुक्त कर दिया है । ग्रंथका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - प्रथम प्रकरण में मंगलाचरण, गरणागण, गणागणदेव, गणागरणका फलाफल, गण मित्र शत्रु, दोषादोष, आठ प्रकारके दग्धाक्षर, गुरु, लघु, लघु गुरुकी विधि, मात्रिक गण, मात्रिक गणोंके भेदोपभेद व उनके नाम तथा छंदशास्त्रके आठ प्रत्ययों-१ प्रस्तार, २ सूची, ३ उद्दिष्ट, ४ नष्ठ, ५ मेरु, ६ खंडमरु, ७ पताका, ८ मवर्कटिका संक्षिप्त वर्णन व विवेचन किया गया है। - द्वितीय प्रकरणमें मात्रिक छंदका वर्णन किया गया है । कविने इस प्रकरण में कुल २२४ मात्रिक छंदोंके लक्षण देकर उनके उदाहरण भी दिए हैं। लक्षण कहीं-कहीं पर प्रथम दोहोंमें या चोपईमें दिये गये हैं। फिर छंदोंके उदाहरण दिये हैं। कहीं-कहीं लक्षण और छंद सम्मिलित ही दे दिये गये हैं। इस प्रकरणमें Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ ] राजस्थानीकी साहित्यिक गद्य-रचनाके नियम भी समझाए हैं। उनके भेदोपभेद संक्षिप्त रूपमें दिये हैं जो राजस्थानी साहित्यका ही एक मुख्य अंग है। ऐसी गद्य-रचनाओंका हिन्दी में अभाव ही है । इस प्रकरणमें चित्र-काव्यके भी उदाहरण कमलबंध, छत्रबंध आदि समझाए गये हैं। तृतीय प्रकरण में छंदोंके दूसरे भेद, वर्णवत्तोंके लक्षण व उदाहरण दिए हैं। प्रारम्भमें कविने एक अक्षरसे छब्बीस अक्षरके छंदोंके नाम छप्पय कवित्तमें गिनाए हैं। ये सब छंद संस्कृत छंद हैं-इनका स्वतंत्र उदाहरण राजस्थानी में नहीं मिलता । तत्पश्चात् क्रमशः ११७ वर्णवृत्तोंके लक्षण व उदाहरण दिये हैं। कविने अपनी अनन्य रामभक्ति प्रकट करते हुए छंदोंके उदाहरणस्वरूप रामगुणगान किया है। ग्रंथके इस चौथे प्रकरणमें राजस्थानी (डिंगल) गीतका (छंदोंका) विस्तारपूर्वक विशद् वर्णन है जो इस ग्रंथका मुख्य विषय है और साथमें डिंगल भाषाके छंदशास्त्र या लाक्षणिक ग्रन्थकी अपनी विशेषता भी है । गीत नामक छंद, उसके भेद डिंगल भाषाके कवियोंकी अपनो मौलिक देन है । ग्रन्थकारने गीतोंके वर्णनमें गीतोंके अधिकारी, गीतोंके लक्षण, गीतोंकी भाषा, गोतोंमें वैणसगाई, वैणसगाईके नियम, वैरणसगाई और अखरोट, अखरोट और वैणसगाईमें अंतर, गीतोंमें नौ उवितयाँ, गीतोंमें प्रयुक्त होने वाली जथाएं, गीत-रचनामें माने गये ग्यारह दोष एवं विभिन्न गीतोंकी रचना, नियम आदिका पूर्ण और सरल भाषामें विशद् वर्णन दिया है। राजस्थानीमें प्राप्त छंद-रचनाके लाक्षणिक ग्रन्थों में इतना विस्तारपूर्ण एवं इतने गीतोंका वर्णन किसी भी ग्रन्थमें प्राप्त नहीं होता है। प्राप्त ग्रन्थोंमें जो गीत दिये गये हैं उनकी जानकारी यहां दी जाती है १ पिंगल-सिरोमरिण- इसमें कुल तेतीस गीतोंके लक्षण व उदाहरण दिए गए हैं। २ हरि-पिंगल-इसमें प्रथम छंदोंके लक्षण दिये गये हैं। तत्पश्चात् बाईस गीतोंके भी लक्षण दिये गये हैं । इसकी रचनाका समय संवत् १७२१ है । ३ पिंगळप्रकास-इसमें केवल 'छोटा सांणोर' और उसके तीस भेदों तथा 'वडौ सांणोर' और उसके चार भेदोंका ही वर्णन है; शेष पुस्तकमें छंदोंके लक्षण हैं। १ इस प्रकरणमें राजस्थानीकी गद्य सम्बन्धी रचनायें दवावत, वनिका और वारता आदि समझाई गई हैं। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ लखपपिंगल-इसमें गीत-रचनाके लक्षण तो नहीं हैं परंतु ग्रन्थ के अंतमें चौबीस भिन्न-भिन्न गीतोंकी जाति व गीत दिए गए हैं। ५ कविकुलबोध- इसमें चौरासी प्रकारके गीत, अट्ठारह उक्तियाँ, बाईस जथाएं आदिका बड़ा विशद् वर्णन है । यह अत्युत्तम लाक्षणिक ग्रंथ है। ६ रघुनाथरूपक-यह प्रकाशित ग्रन्थ है । इसमें बहत्तर प्रकारके गीतोंका वर्णन है। ७ डिंगल-कोश-यह ग्रन्थ प्रधान रूपसे पद्यबंध शब्दकोश है। इसमें भी पंद्रह गीतोंके लक्षण दिए हैं और उदाहरणके गीतोंमें डिंगलके पर्यायवाची कोशके शब्दोंका वर्णन है। ८ रण-पिंगल-यह छंदशास्त्रका बृहद् लाक्षणिक ग्रंथ है। इसके तीन भाग हैं। इसके तृतीय भागमें भिन्न-भिन्न प्रकारके तीस गीतोंके लक्षण व उदाहरण दिए गये हैं। अधिकांश रघुनाथरूपकके ही गीत इसमें हैं। यह ग्रंथ प्रकाशित है किन्तु अप्राप्य है। ९ रघुवरजसप्रकास-प्रस्तुत ग्रन्थ रघुवरजसप्रकासमें ११ प्रकारके गीतोंके लक्षण आदिका विस्तृत वर्णन है। केवल गीतोंका ही वर्णन नहीं, गोतोंके विभिन्न अंगोंका वर्णन भी बड़े ही सुन्दर एवं विस्तृत ढंगसे किया गया है। गीतोंके ग्यारह प्रकारके दोष, गीतोंमें वैणसगाईके प्रयोगका महत्त्व आदिका सुन्दर वर्णन है । गीतोंमें वैणसगाईके प्रयोगके जो उदाहरण दिए गये हैं वे कविको रचनाके महत्त्वको द्विगुणित कर गंथकारकी काव्य-प्रतिभाका परिचय देते हैं। छंद शास्त्रमें चित्र काव्यका अपना एक विशेष स्थान है। साहित्यकारोंने इसे एक स्वतन्त्र रूपसे अलंकार माना है जो शब्दालंकारका एक भेद माना गया है। संस्कृत व व्रज भाषामें चित्र काव्य पर्याप्त मात्रामें उपलब्ध होता है परन्तु राजस्थानी (डिंगल) गीतोंमें चित्र काव्यका उल्लेख नहीं मिला। अद्यावधि डिंगल गीतोंके लाक्षणिक ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं-उनमें किसी में भी चित्रकाव्य सम्बन्धी विवरण नहीं है; परन्तु रघुवरजसप्रकासमें एक 'जाळीबंध वेलियो सांणोर' गीतका चित्र-काव्यके रूप में उदाहरण मिला है। मेरे निजी संग्रहमें इस जाळीबंध गीतके चित्र बने हुए हैं । एक-दो उदाहरण प्राचीन भी मिलते है । इन उदाहरणोंसे पता चलता है कि डिंगल गीतमें भी चित्रकाव्यकी रचना प्रारंभ हो गई थी। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ & ] पंचम प्रकरण ग्रन्थका अंतिम प्रकरण है । इसमें ग्रन्थाकारने एक राजस्थानी छंद विशेष निसांणीका वर्णन करते हुए इसके मुख्य बारह भेदोंके साथ इसके भेदोपभेदोंका तथा एक मात्रिक छंद कड़खाका भी वर्णन किया है । प्रकरण के प्रारम्भ में प्रथम निसांणीके लक्षणोंको देकर उदाहरणोंको प्रस्तुत किया है । फिर रामगुण- गाथा गाते हुए निसांणीके अन्य भेदोंका उत्तम रीति से वर्णन किया है । प्रकरणके अंत में कविने अपनी वंशपरम्पराका परिचय देकर ग्रंथको समाप्त किया है । स्वयम् कवि द्वारा दिए गये इस वंश-परिचयसे कविके जीवन वृत्तको जाननेमें बहुत सहायता प्राप्त होती है । ग्रन्थ रचना-काल इस ग्रन्थकी रचनाका प्रारंभ और समाप्ति सम्बन्धी स्वयं कविने अपने वंश परिचय के पश्चात् एक छप्पय कवित्त इस प्रकार दिया है जिससे पता चलता है कि यह ग्रन्थ वि. सं. १८८०की माघ शुक्ला चतुर्थी बुधवारको प्रारंभ किया गया था । कविने अपनी कुशाग्र बुद्धि और प्रौढ़ ज्ञानके सहारे वि. सं. १८८१के आश्विन शुक्ला विजयादशमी, शनिवारको ग्रंथ पूर्ण रूपसे तैयार कर लिया । ग्रन्थ-रचनाके सम्बन्ध में स्वयं कविने अपने ग्रन्थके समाप्ति प्रकरण में लिखा हैछप्पय कवित्त उदियापुर प्राथांग रांग, भीमाजळ कवरां मुकट'जवान' नीत मग जग अठार से समत वरस सियौ बुद्धवार तिथ चौथ हुवौ प्रारम्भ ग्रन्थ हद ॥ अठारै नै अकासिये, सुद प्रासोज सराहियौ । माह सुद । सनि बिजंदसमी रघुबर सुजस 'किसन' सुकवि सुभकत कियौ ॥ भूमिका समाप्त करने के पूर्व हम राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके प्रति ग्राभार प्रदर्शित किए बिना नहीं रह सकते । कारण कि प्रतिष्ठान इस प्रकार के अमूल्य ग्रन्थ जो, साहित्यकी अप्राप्य निधि हैं " राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला " के अन्तर्गत प्रकाशित कर साहित्य के कलेवरको बढ़ाने में सतत प्रयत्नशील है । प्रस्तुत ग्रन्थको इस रूपमें प्रकाशित करानेका श्रेय श्रद्धेय मुनिवर श्रीजिनविजयजीको है जिन्होंने राजस्थानीके छंद शास्त्र के इस अमूल्य ग्रन्थका प्रकाशन राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला द्वारा करना स्वीकार किया । श्रीगोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए. व श्रीपुरुषोत्तमलालजी मेनारिया, एम. ए. प्री. साहित्यरत्नका भी पूर्ण रूपसे आभार मानता हूँ कि इन्होंने समय-समय पर पुस्तक के प्रूफ संशोधन और सम्पादन- कार्य में योग दिया । राजत । नीवाजत ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] हमारे संग्रहमें ग्रंथकी प्रतिलिपि मौजूद थी परन्तु उनके क्षतविक्षत होनेके कारण उसका सम्पूर्ण प्रकाशन सम्भव नहीं था। इस कार्यके लिए मेवाड़के अन्तर्गत मेंगटिया ग्रामके ठा. श्री ईश्वरदानजी आसियाने प्रस्तुत ग्रन्थकी हस्तलिखित प्रति, जो पूर्ण सुरक्षित थी, हमें प्रदान कर अपूर्व सहयोग दिया है। उसके लिए वे धन्यवादके पात्र हैं और मैं उनके इस सहयोगके लिए कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। जोधपुर, २१ फरवरी, १९६० ई. सीताराम लालस सम्पादक ernational www.jaineli Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय - सूची m or Mor worroworror owww MAKKWWWWWW » » »xx w क्र.सं. विषय पृष्ठ सञ्चालकीय वक्तव्य सम्पादकीय भूमिका सोडस करम वरणण १ श्रीगणेश स्तुति २ गणागण वरणण ३ गणागण देवता ४ गणागण देवता और उसके फलाफल ५ गरण मित्र सत्रु कथनं ६ दुगण कथनं ७ मित्रदास, उदास और शत्रुगण ८ दोसादोस कथन ६ प्रस्ट दगध प्रखिर कथनं हकारादि अस्टदगध १० गुरू लघु कथनं ११ संजोगी पाद वरण विचार १२ लघ दीरघ दीरघ लघुकरण विधि वरणणं १३ अथ मंगलादिक वरणग ण नाम कथनं १४ मात्रा पंचगण नाम कथनं प्रथम टगण छः मात्रा तेरह भेदनांम ८ दुतीय ठगण पंच मात्रा पाठ भेद नांम त्रतीय डगण च्यार मात्रा पंचभेद नांम चौथे ढगण तीन मात्रा तीन भेद । लघ्वादि नाम पंचमौ णगण द्विमात्रादि भेद प्रथम एक गुरू नाम १५ द्विमात्रा द्विलघ भेद नाम १६ साधारण गरण नाम १७ सोडसकरम वरणण (i) प्रथम लछरण (ii) संख्या विधि क्र. सं. विषय पृष्ठ १८ प्रस्तार लछण मात्रा प्रस्तार विधि वरण प्रस्तार विधि १६ सूची लछण मात्रा सूची विधि मात्रा सूची संख्या रूप वरण सुची विधि वरण सूची संख्या रूप २० ऊदिस्ट लछण (i) मात्रा ऊदिस्ट (ii) वरण ऊदिस्ट २१ नस्ट लछण (i) मात्रा नस्ट (ii) वरण नस्ट २२ मात्रा स्थान विपरीत कडोट फेर प्रस्तार लछण २३ मात्रा स्थान विपरीतको प्रकारांतर २४ मात्रा प्रस्ट प्रकार नस्ट उदिस्ट कथन २५ मात्रा स्थान विपरीत अदिस्ट विधि २६ वरण सुद्ध प्रस्तारका प्रकारांतरको लछण २७ वरण स्थान विपरीत कडौटफेर प्रस्तार लछण २८ वरण स्थान विपरीतको प्रकारांतरकौलछण २६ वरण संख्या विपरीतको प्रकारांतर लछण ३० वरण संख्या स्थान विपरीत कडोटफेर लछण ३१ वरण संख्या विपरीत प्रकारांतर लछण ३२ प्रस्ट विधवरण प्रस्तार 9 9 9 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] २५ Kc mr mmm B0०० " WWW WWW... ०० क्र.सं. विषय पृष्ठ ३३ अस्टविध वरण प्रस्तार ज्यांका उदिस्ट, नस्ट ३४ वरण स्थान विपरीतका प्रकारांतर दोयको उदिष्टको लछण ३५ वरण स्थान विपरीत ईका प्रकारांतरको नस्ट ३६ वरण संख्या विपरीतको हर ईंका प्रकारको उदिस्ट ३७ वरण संख्या विपरीत हर प्रकारांतर दोन को नस्ट ३८ वरण संख्या स्थान विपरीतको हर ईंका प्रकारांतरको उदिस्ट २६ ३६ वरण संख्या स्थान विपरीतको हर ईका प्रकारांतरकौ दोन्यांकी नस्ट २६ ४० सोडस प्रस्तार मात्रा वरणका सुगम लिखण विध ४१ मात्रा वरण उदिस्ट नस्ट सुगम लछरण ४२ मेर लछण मात्रा मेर विध वरण मेर भरण विध एकादस मात्रा मेर स्वरूप ४३ पताका लछण मात्रा पताका विध दस मात्रिक पताका दस मात्रिक पताकाका दूसरा रूप ३२ मात्रा पताका अन्य विधि सप्त मात्रा पताका स्वरूप ४४ वरण मेर खण्ड विध ४५ सप्त वरण मेर स्वरूप ३५ ४६ वरण खंड मेर स्वरूप ३६ ४७ प्राचीन मत च्यार वरण पताका स्वरूप ४८ वरण पताका विध ४६ वरण पताका नवीन मत अन्य विध सुगम ३७ क्र. सं. विषय ५० मरकटी लखरण कथन मात्रा मरकटी विध कथन दस मात्रा मरकटी स्वरूप वरण मरकटी भरण विध प्रस्ट वरण मरकटी स्वरूप सात मात्रा मरकटी स्वरूप मात्रा प्रति वरणण ५१ चंद्रायणौ ५२ गमक ५३ बांम ५४ कंता ५५ सुगति ५६ पगरण ५७ मधुभार ५८ रसकळ ५६ दीपक ६० रसिक ६१ प्राभीर ६२ उद्धौर ६३ अनांम ६४ हाकळ ६५ झंपताळ ६६ जैकरी ६७ चौपई ६८ दही ६६ सिंहाविलोकरण ७० चरनाकुळक ७१ अरिल ७२ पद्धरी ७३ बैख्यरी ७४ रडु ७५ चूडामण ७६ पवंगम ग्रन्थांतरे चंद्रायणी ७७ महादीप ७८ हीर .०० XXX Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ पृष्ठ ३ ] क्र. सं. क्र.सं. विषय विषय rr """XX सरभ सैन मंडूक मरकट करभ नर मराळ मदकळ पयोधर चळ वानर त्रिकळ मच्छ कछप सादूळ अहिबर r ri or urur, 29 ७६ रोळा ८० बथुवा १ काव्य ८२ मात्रा उपछंद वरणरण ८३ हरि गीत ८४ राम गीत ८५ सवैइया ५६ मरहट्टा ८७ चतुर पदी तथा रुचिरा ८८ धत्ता ८९ धत्तानंद ६० त्रिभंगी ६१ खट सदस्य छंद लछरण १२ पदमावती ९३ दंडकळ ९४ दुमिळा ९५ लीलावती ६६ जनहरण १७ वरवीर १८ झूलरणा ६६ उपझलण १०० मदन हरा १०१ खंज १०२ गगनागा १०३ दू पदी १०४ उद्धत १०५ माळा १०६ पंचवदन १०७ मात्रा असम चरण छंद वरणरण ६१ १०८ दोहा अन्य लछरण दूहा सांकळियौ दूही तूंबेरौ दूही भ्रमर भ्रांसर विडाळ सुनक ऊंदर सरप चरणा ISIS is w पंचा ६ ० . ० . aa ७ "Targi नंदा दूहा तथा बरवै छंद मोहणी लछरण चौटियो १०६ दूहाको नाम काढरण विध ११० चूळियाळा छंद १११ निस्रणका ११२ चौबोला ११३ ककुभा ११४ सिख ११५ रस उल्लाला ११६ रस उल्लालारा भेद ११७ माहा छंद 6 6 6 6 ७२ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] पृष्ठ mur ७७ देवी 9 9 9 UUS IS CW 9 9 9 9 क्र.सं. विषय पृष्ठ ११८ गाथा गुणदोष कथन ११६ बेप्रखरी १२० गाथा छद छब्बीस नाम कथन लछी रिद्धि बुद्धी लज्जा ७७ विद्या खम्या ওও ७७ गौरी मात्री चूरणा छाया कांती महामोया कीरती सिद्धी मांगरणी रांमा गाहेगी वसंत सोभा हरिगी चक्कवी सारसी कुररी सिंघी हंसी १२१ गाहा, गाहू, विगाहा, उगाहा, गाहेरणी, सोहणी खंधारण विचार लछरण वरणग १२२ एकसू लगाय छबीस ताई गाथा काढरण विध १२३ गद्य छंद लछरण विध दवावैत ८५ क्र. सं. विषय वचनका वारता १२४ मात्रा दंडक छंद वरणरण १२५ मात्रा दंडक छंद लछरण १२६ छप्पै लछरण १२७ कवित छप्प १२८ अजय छप्पै १२६ यकहत्तर छप्पै नाम कथन १३० छप्प नाम काढरण विध १३१ मात्रा छंद, मात्रा उपछंद, मात्रा असम चरण, मात्रा दंडक छंद गुरु लधु काढरण विध १३२ बावीस छप्पै नाम उक्ता समबळ विधान नाता संख वळता संख संकळ जात कमळ बन्ध छत्रबंध मझखिरा लघुनाळीक ब्रधनाळीक १०१ निसरणी बंध नाट चौपाई मुकताग्रह १०३ कुंडळिया १०४ चौटीबंध १०५ हीराबेधी १०५ करपल्लव १०६ हेकल्लवयरण १०७ हल्लव ताळूरब्यंब प्रहर अळग १०६ १३३ विधांनीक जात १०६ 644 WW ० ००G 9 9 9 ل ० ० سه ८ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय सप्त विधांन स्त्री प्रत विधनिक छप्प क्र. सं. १३४ नाटसला छप्प १३५ सुद्ध कुंडलियो कुंडलियो झड़उलट लछण कुंडलियो जात दोहाळ कुंडलियो दोहाळ १३६ कुंडळी वररण व्रत प्रकरण १३७ एक वररणसूं लगाय छबीस वरण तांई छंदांरी जातरा नांम वरणण उक्ता कांम मधु मही सार ससी प्रिया रमरण पंचाळ म्रिद्र मंद कमळ च्यार अखिर छंद जात प्रतिष्ठा जीरणा धांनी निगल्लिका पंच गुरु अखिर पंचा श्रखिर छंद वरणण जात प्रतिष्ठा समोहा हारी हंस जमक [ ५ ] पृष्ठ १०६ ११० ११० १११ ११२ ११२ ११२ ११३ ११५ ११५ ११६ ११६ ११६ ११६ ११७ ११७ ११७ ११७ ११७ ११८ ११८ ११८ ११८ ११६ ११६ ११६ ११६ ११६ १२० १२० १२० क्र. सं. विषय खड़ाखर छंद गायत्री सेखा तिलका विजोहा चऊरस संखनारी तथा विराज तथा रसावळा मंथांणी मदनक मालती सप्त वरण छंद जात उस्कि समानिका सबासन करहची सिखा अस्टाखिर छंद वररणरण जात धनुस्टप विद्य ुन्माळा मल्लिका प्रमांणी तथा श्ररधनागज तथा तुंग त्वंग तथा तुंग कमल मांन क्रीड़ा अनुष्टुप नव खिर छंद वरणरण जात बहती महालक्षमी सारंगिका पायत रतिपद बिब तोमर रूपाली पृष्ठ १२१ १२१ १२१ १२२ १२२ १२४ १२४ १२४ १२४ १२४ १२५ १२५ १२५ १२५ १२६ १२६ १२६ १२७ १२७ १२७ १२८ १२८ १२८ १२८ १२ १२६ १२६ १३० १३० Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. सं. विषय दस अखिर छंद वरणरण जात पंक्ति संजुतका चंपकमाला सारवती सुखमा प्रमित गीत एकादस अखिर छंद वरणण जात त्रिस्टुप दोधक समुखी सालिनी मदनक सैनिका मालतिका इंद्रवज्र उपेंद्रवज्रा उपजात रथोद्धिता स्वागता द्वादसाखिर छन्द जात जगती भुजंगप्रयात लक्ष्मीधर तोटक सारंग मोतीदांम मोदक तरळनयण सुन्दरी प्रमिताखिरा त्रयोदस अखिर छंद जात प्रति जगति माया तारक [ ६ ] पृष्ठ १३० १३० १३१ १३१ १३२ १३२ १३२ १३२ १३२ १३३ १३३ १३४ १३४ १३४ १३५ १३५ १३६ १३६ १३६ १३६ १३७ १३८ १३८ १३८ १३६ १३६ १३६ १४० १४० १४० १४० क्र. सं. विषय कंद पंकावली प्रजास चतुरदस अखिर छंद जात सक्री वसंततिलका चक्र पनरह अखिर छन्द वरणरण जात प्रतिसक्विरी चांमर सालिनी भ्रमरावळी कळहंस रभस सोळ श्रखिर छंद वरणण जात श्रस्टि निसपालिका ब्रद्धिनाराज पदनील चंचळा सतरं वरण छंद जात frस्टी प्रथ्वी माळाधर सिखरणी मंदाक्रांता हरिणी अठारै खिर छंद वरणण जात प्रति मंजीर चरचरी क्रीड़ा उगणीस प्रख्यर छंद वरणण जात प्रतिघ्रति १५१ सारदूळ विक्रीड़त पृष्ठ १४१ १४१ १४२ १४२ १४२ १४३ १४३ १४३ १४४ १४४ १४४ १४५ १४८ १४५ १४६ १४६ १४७ १४७ १४७ १४८ १४८ १४६ १४६ १५० १५० १५० १५१ १५१ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ पृष्ठ क्र. सं. विषय १५२ । x धवळ शंभ वीस अखिर छंद वरणरण जात ऋति गीतिका गल्लिका अकवीस वरण छंद वरणरण जात प्रक्रति स्रग्धरा नारद १५४ १५४ १५४ १५५ १५५ हंसी मदिरा सुन्दरी MMMM - MMEN १५७ मत्तगयंद चकोर १५७ चौबीस अखिर छंद जात संस्क्रति १५८ किरीट दुमिळा महा भुजंगप्रयात १३८ वरण उप छंद वरणण सालूर १६० मनहर तथा इकतीसौ कवित्त १६१ घणाखिरी गोत व्रत प्रकरण १३६ गीत छंद वरणण १६६ १४० गीत लछण १४१ गीतकी भाखा वरणरण १६७ १४२ अगण दखिर दोस हरग १६७ १४३ छंद नव उक्ति नाम १६८ सुद्ध सनमुख गरभित सनमुख सुध परमुख गरभित मरमुख १६६ सुद्ध परामुख १७० गरभित परामुख १७० सुद्ध स्रीमुख १७० कवि कल्पित स्रीमख १७१ मिस्रित १७१ १४४ अग्यारह जथा नाम विधांनीक जथा १७२ सर जथा १७३ सिर नामा जथा १७३ ७ ] क्र. सं. विषय वरण नाम जथा १७४ अहिगत जथा १७५ प्राद नाम जथा १७६ अंत नाम जथा सुद्ध नाम जथा १७७ अधिक नाम जथा १७७ सम नाम जथा १७८ न्यन नाम जथा १७८ १४५ गीतांका एकादस दोखनिरूपण १७६ १४६ निसांणी त्रिविधि वैण सगाई नाम लछण १८२ १४७ सावरणी अखिरांरी अखरोट वणसगाई वरणण १८३ १४८ गीतांका नाम निरूपण १८५ १४६ सात सांणोरका नाम कथन १८५ १५० अन्य प्रकार गीत नाम कथन १८६ १५१ वसंतरमणी नाम गीत लछण १८५ वसंतरमणी नाम सावझड़ी १८८ मणाल नाम गीत सावझडौ १८६ गीत जयवंत सावझड़ो बड़ा सांणौर प्राद सप्त गीत निरूपण १६२ गीत बड़ा सांणौर लछण १६२ सुद्ध सांणौर १६३ प्रहास सांणौर छोटा सांणौर वेलिया सांणौर सूहणी सांणौर पूणिया सांणौर ने जांगड़ा सांणौर २०२ सोरठियौ सांणोर २.३ खुड़द छोटौ सांणार २०४ पाड़गत, पाड़गती वरणण लछण पाड़गती सुपंखरौ त्रिवड़ तथा हेलो गीत बंक गीत त्रबंकड़ा गीत चौटियाळ गीत लैहचाळ गीत गौख गीत चितईलोळ गोत २१७ पालवणी तथा दुमेळ गीत २१९ هه مه له س ०. م १६८ १६६ ०००now १७१ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. सं. विषय सावन श्रडियाळ गीत धड़उथल गोत सोहचलो गीत बध चितविलास लघु चितविलास घोड़ादमौ अरटियौ सेलार झमाळ मुड़ैल ठताळ हिरणप कवार दोढ़ा हंसावळ सांगौर रसखरा भाखड़ी गोखौ ढोलचलौ तथा ढोलहरौ त्रकुट बंध सुपंख हे कलवयरण तथा मात्रारहित हंस गमरण भुजंगी ast सांरगौर प्रहरणखेड़ी विडकंठ तथा वीरकंठ गीत श्रौ भांरण गीत दुमेळ उवंग सावभड़ौ अरध गोखौ सावकड़ौ धमळ तथा रिराधमळ त्रिभंगी सीहलोर सारसं गीत सीहवग सांगौर श्रहिगन सांगौर रेख मुड़ियल सावझड़ौ प्रौढ़ सांगोर निरूपरण दीपक श्रहिबंध श्ररट गीत श्रठताळौ काछौ [८] पृष्ठ २२१ २२२ २२३ २२४ २२५ २२७ २२८ २२६ २३० २३२ २३२ २३६ २३७ २३८ २४० २४१ २४५ २४७ २४८ २५३ २५५ २५६ २५७ २५६ २६० २६२ २६४ २६५ २६६ २६७ २६६ २.० २७० २७१ २७१ २७१ २७२ २७२ २७३ २७४ २७६ २७७ २७८ क्र. सं. विषय सवैयौ सालूर त्रिबंकौ धमाळ रसावळौ सतखरगौ उमंग खरौ (इकखरौ ) श्रमेळ भंवरगंजार चौटियो मंदार झडलुपत त्रिमेळ पालवरणी तथा झड़ लुपत त्रिपंख ast सावझड़ौ तथा श्ररध सावभड़ौ झड़ मुकट दुतीय सेलार त्राटकौ मनमोह ललितमुकट मुकताग्रह पंखाळौ दुतीय साळूर भाख अरध भाख जाळीबंध गहांगी कंठ सुख जयवंत सावड़ौ रूपग गजगत १५२ निसांरगी छंद वररणरण १५३ निसांरगी छंद गरभितनांम निसांणी छंद दुमळा नांम जांगड़ी सुद्ध निसांरगी जांगड़ी मारू निसांरगी पृष्ठ २८० २८१ २८२ २८३ २८४ २८५ २८७ २८८ २८६ २६० २६२ २६३ २६५ २६५ २६६ २६८ ३०० ३०१ ३०२ ३०३ ३०६ ३०८ ३१० ३१० ३११ ३१२ ३१३ ३१५ ३१७ ३२१ ३२२ ३२५ ३२५ ३२५ ३२६ ३२७ ३२८ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगणेशाय नमः । श्रीगुरुगणपतीष्ट देवताभ्यो नमः * ॐ नमः श्रीसीतारामाय अथ आढ़ा किसनाजी क्रत पिंगल रघुवरजसप्रकास लिख्यते श्रीगणेस स्तुति छप्पै कवित्त-भाखा मुरधर श्री लंबोदर परम संत बुद्धवंत परम सिद्धिबर । आच फरस ओपंत, विघन-बन हंत ऊबंबर ॥ मद कपोल महर्कत, मधुप भ्रामंत गंधमद। नंद महेसुर जन निमंत, हित दयावंत हद ॥ उचरंत 'किसन' कवि यम अरज, तन अनंत भगति जुगत । जानकी-कंत अक्खण सुजस, एकदंत दीजै उगत ॥ १ प्रथम भ्रहंम मझ बेद, छंद मौरग दरसायौ । खग अग पिंगळनाग, 'नागपिंगळ' कर गायौ ।। 'काळिदास', 'केदार', 'अमर गिर पिंगळ अक्खे। भाखा ब्रज सुखदेव, 'सुरतचिंतामण' भक्खे ॥ लछ भाखा पिंगळ ग्रंथ लख, एकठ बोह मत आंणियो। रघुबरप्रकास जस नाम रख, 'किसन्न' सुकव पिंगळ कीयौ ॥२ १. पाच-हाथ । फरस-परशू । प्रोपंत-शोभा देता है। हत-नाशक । ऊबंबर-समर्थ । निमंत-नमते हैं, झकते हैं। हद-असीम । यमइस प्रकार । लिए, वर्णन करनेके लिए। एकदंत-गणेश। उगत-उक्ति । २. मझ-मध्य । खग-गरुड़। अग-सम्मुख। पिंगळनाग-शेषनाग ।' नागपिंगळ 'नागराज पिंगळ' नामक छंदशास्त्र का ग्रंथ । गायौ-वर्णन किया। अक्खे-कहा, सूनाया। भक्खे-कहा, वर्णन किया। लच्छ-लक्षण। एकठ-एकत्रित । बोह-बहत । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] रघुवरजसप्रकास बिबुध-भाख ब्रज-भाख बिच, पिंगळ बोहत प्रसिद्ध । मुरधर-भाखा जिण निमंत, 'किसनै' रूपग किद्ध ।। ३ जांणण छंदां मुख जपण, राघव -जस दिन - रात । भाडो सांठौ ज्यू भरै, जाणौ पोहकर जात ॥ ४ पेट काज नर जस पढे, औ कारज अहलोक । जस राघव जपणौ जिकौ, लेख काज परलोक ॥ ५ जुध करणौ जमराज हू, काज विलंब केण । तव नस-दीहा हर तिको, जीहा दीधी जेण ॥ ६ अथ गरणागरण वरणरण* मगण त्रिगरु यगणह लघु, प्राद कहै सह कोय । ३. बिबुध-भाख-देववाणी। निमंत-लिए। रूपग-वह काव्य-ग्रंथ जिसमें किसी महान योद्धाका चरित्र हो या वह रीतिग्रंथ जिसमें विशेषकर डिंगलके गीत छंदोंकी रचना आदिके नियमों का वर्णन हो। किद्ध-किया । ४. भाड़ौ-(सं. भाटक) किराया। सांठी-अधिक, ईख । पोहकर-पुष्कर । जात-यात्रा। ५. अहलोक-इहलोक, यह संसार । लेख-समझ, समझना। ६. केण-किसलिए। तव-(स्तवन) स्तुति । नस-दीहा-निशि-दिन। हर-(हरि) ईश्वर । जीहा-जिह्वा। जेण-जिससे, जिसने । नाम रेखारूप वर्णरूप लघु संज्ञा शुभाशुभ मगरण मागाना यगरण 555 । 55 ऽ ।। यगाना भागन नमन रामना भगरण नगरण रगरण सगरण तगण जगण । ।। SSI ।5। सगना तागान जगान Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३ भगण आाद गुरु नगणसौ, त्रिलघु चिहु सुभ जोय ॥ ७ रगणमध्य लघु सगणरै, अंत गुरु लघु अंत | तगण मध्य गुरु जगण , च्यारू' असुभ कहंत ॥ ८ गणागण देवता * दूहौ देव धरा जळ चंद ह, आग पवन नभ भांग | फलाफल सुख मुद मंगळ घी जळण । दुख निफळ घर हांण ॥ ६ ७. चिहुं चार । ६. श्रह - स्वर्ग | भांण- सूर्य । जळण - दाह । हांण-हानि । नाम मगरण यगरण भगरण नगरण रगरण सगरण तगरण जगरण *गरणागण देवता और उनके फलाफल रूप SS S ISS ऽ । । || 5 15 ।।s ss 1 ।ऽ । देवता पृथ्वी जल चंद्र स्वर्ग अग्नि पवन नभ भानु फल सुख प्रसन्नता मंगल धी दाह दुख निष्फल गृह हानि Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ गण मित्र सत्रु कथनं* दूहौ म न सुमित्र य भ दास मुण, दख ज त विहुउदास । र स बिह वै गण सत्र रट, पढ़ फिर दुगण प्रकास ॥१० अथ दुगण कथनं कवित्त छप्पा मित्र मित्र रिध सिध, मित्र दासह जय पावत । हितु उदास धन हांण, मित्र अरि रोग बधावत ॥ दास मित्र सिध काज, दास दासह सुवसीकत । दास उदासह हांण, दास अरि हार सु आवत ॥ उदास मित्र फळ तुच्छ गिण, विपत उदास जु दास कर । उदास उदास सु निफळ कह, मिळ उदास रिपु सत्रु कर ॥ ११ १०. मुण-कह । दख-कह । बिहुं-दोनों। *मित्र दास उदास और शत्र गरण मित्र दास मगण, नगण यगण भगरण फल सिद्धि जय मित्र+मित्र मित्र + दास मित्र + उदासीन मित्र + शत्रु दास + मित्र दास + दास दास + उदास दास + शत्रु सिद्धि वशीकरण हानि पराजय हानि रोग उदासीन शत्रु रगण, सगरण जगरण, तगरण फल उदासीन + मित्र अल्पफल उदासीन + दास विपत् (विपत्ति ) उदासीन+उदासीन निष्फल (शून्य) उदासीन-+-शत्रु । शत्रूत्पत्ति शत्रु + मित्र शत्रु + दास शत्रु + उदासीन | शत्रु + शत्रु शून्य जीवहानि शत्रुहानि क्षय www Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास दूहौ सत्रु मित्र मिळ सुन्य फळ, सत्रु दास जिय हांण । सत्रु उदाससं हांण अरि, अरि नायक खय जांण ॥ १२ दोसादोस कथन दूह नर- कायब करवा निमत, वद गण गण विचार | गुण राघव मझ असुभ गण, न कौ दोस निरधार || १३ अथ स्टदगध अखिर कथनं दूह ह झ ध र घ न ख भ आठ ही, दगध अखिर दाखंत | काय वरजित तिकरण, भल किव नह भाखंत ॥ १४ हकारादि स्टदगध ग्रखिर क्रमसूं उदाहरण दूहौ ܘ हेत हांण तन रोग व्है, नरपत भय धन नास | त्रीया घात निरफळ तवां, जस खय भ्रमण प्रवास ।। १५ अथ भाखा पिंगळ तथा डिंगळका रूपग गीत कंवित, दूहा, गाहा, छंद तथा सरवत्र छंदरं याद दस ग्राखिर नहीं प्रावै नै वरजनीक छै सौ लिखां छां । दूहौ अंमळ अग्रका, दाखल क्ष ह दोय | क च ट त वरगका अंतका, पद दस वरणन होय ॥ १६ अरथ - ऐ १ २ : ३ य ४ स ५ ल्ल ६ क्ष ७ ड़ पण १० । १२. खय - (क्षय) नाश । १३. नर-काय - ( नरकाव्य) मनुष्यकी प्रशंसाका काव्य । वद - कह । कौ— कोई । १४. कायब - काव्य | १५. तवां - कहता हूँ । किव - कवि | भाखंत-कहता है । श्राद - श्रादि, प्रथम | वरजनीक- त्याज्य । [ ५ श्राखिर - श्रक्षर । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६] रघुवरजसप्रकास ___ अ दस अखिर गीत कवित छंदकै पैल्ही न होय । एकार आगलौ अईकार (ऐ) अोकार आगलौ अऊकार (औ) । अंकार पागलौ अः कार । मकार आगलौ यकार । लकार आगलौ सकार। सकार आगलौ ल्लकार नै क्षकार । अ दस आखर भाखारै पाद न होवै । नाग यूं कहयौ छै । इति अरथ । अथ गुरु लघु कथनं गण संजोगी आद गुरु, संजुत ब्यंदु गुरेण । गुरु फिर बक्र दुमत्त गणि, लघु सुद्ध एक कळेण ॥ १७ . उदाहरण दूहौ लंक अम्हींणा भाग लग, सुपनै लिखीउ सोय । मौजी राघव पलकमैं, जन सरणागत जोय ॥ १८ संजोगी पाद वरण विचार दहौ संजोगी पहलौ अखिर, वस कोई ठौड़ वसेख । कियां विचार प्रकार किण, लघु संग्या तिण लेख ॥ १६ उदाहरण रे नाहर रघुनाथरा, यळ जाहर दत अंक । विगर लिन्हाई छिनक विच, लहर दिन्हाई लंक ॥२० १७. संजोगी-संयुक्त। संजुत-संयुक्त। व्यंदु-बिंदु। कळेण-(कला) मात्रासे । १८. लंक-लंका। अम्होंणा-मेरा। सोय-वह। मौजी-उदार । १६. वसेख-विशेष । २०. यळ-इला, पृथ्वी। दत-दान । छिनक विच-क्षण भरमें । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७ रघुवरजसप्रकास लघु दीरघ दीरघ लघु करण विधि वरणणं दूही लघु दीरघ दीरघ लघु, पढ़ियां सुधरै छंद । दीह लघु लघु दीह करि, पढ़ि कविराज अनंद ॥ २१ उदाहरण दूहौ सिर दस दस सिर साबतै, रांम हतै धख राख । बिबुधांणी चक्रत हुवा, अह ह ह वाणी पाख ॥ २२ अथ मंगळादिक वरण गण नाम कथनं दूही मगण नाम संभू मुणै, राक्षस तगण रसाळ। यगण बाज आखै इळा, जगण उरोज विसाळ ॥ २३ तगण व्यौम कर सगण तव, रगण सूरमौ राख । वरण गणां वाळा विहद, यम कवि नाम स ाख ॥ २४ अथ मात्रा पंच गण नाम कथनं कवित्त छप्पै ट ठ ड ढ ण गण अरेह, मात्र गण पंच प्रमाणे । टगण छ कळ तेरह सुभेद, कवि ठगण बखाणे ॥ पंच कळा अठ भेद, डगण चव कळ सु भेद पंच। ढगण तीन कळ तीन, भेद भाखंत नाग संच ।। णगणहसु दु कळ दुव भेद निज, लिख प्रसतार निहारियै। तिण भेद तेर अठ पंच त्रय, दुव जिण नाम उचारियै ॥ २५ २१. दोह-दीर्घ। २२. धख-क्रोध । विबुधांणी-देवता। पाख-कहना । २३. रसाळ-रसयुक्त । इटा-पृथ्वी । २४. विहद-असोम । यम-ऐसे । २५, प्ररेह-पवित्र । छकळ-छ मात्रा। सत्य । www.jainel Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ :] रघुवरजसप्रकास प्रथम टगण छ मात्रा तेरह भेद नांम दूहौ हर १ ससि २ सूरज ३ सुर ४ फणी ५, सेस ६ कमळ ७ भ्रहमांण ८ । कळ & सु चंद्र १० ध्रुव ११ धरम १२ कहि, जपै 'साळिकर' १३ जांण ॥२६ A दुतीय ठगण पंच मात्रा ग्राठ भेद नांम दूहौ रवि २ चाप ३ कहि, हीर सु४ सेखर ५ संच | हिगण ७ पाप ८ कह, आठ भेद कळ पंच ॥ २७ B त्रतीय डगण च्यार मात्रा पंच भेद नांम दौ करण दु गुरु १ करताळ सौं, अंत गुरु २ मन ऋण | पय हर ३ वसुपय ४ मध्यः, अहिप्रिय चौ लघु पहिचांग || २८ इंद्रासण १ कुसुंम ६ २६. भ्रमण - ब्रह्मा । २८. चौ-चार । १ २ ३ ४ रूप *टगण, ठगण और डगण मात्रिक गणों का नकशा- SSS 1155 ISIS SIIS सुर ५ ||115 फणी ६ 1551 शेष ७ SIS! कमल ८ IIISI ब्रम्हा ह SSII कळि १० 115:1 चंद्र ११ ISI11 ध्रुव १२ SIIII धर्म १३ संज्ञा १ गण हर शशि सूर्य १ २ ३ ४ ५ रूप ७ Sill A Ill संज्ञा ISS इंद्रासन SIS रवि 1115 चाप SSI हीर IISI शेखर 1511 २ ठगण कुसुम ग्रहिगरण पाप 1।।।।। साळिकर नोट- मूल ठगरण में पायक है किन्तु शुद्ध पाप है ।' १ ss २ 115 ISI S11 ५ ।।।। m xx रूप ४ B संज्ञा ३ डगण कर्ण करताळ पयहर वसु पय अहिप्रिय Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्वज चिन्ह वास चिराळ, चिर तौमर तू मर घास । नूत माळ रस वलय , लादि त्रिमात्र प्रकास ॥ २६ त्रिमात्रा गुरुवादि दुतिय भेद नांम दूहौ सुरपति पट्टह ताळकर, ताळ अनंद छंद आदि गुरु त्रय मत्तकौ, नांम द्विभेद भावा रस तांडव कहौ, कुस और है त्रय लघुका नाम अ, त्रय मत्ता पंचमी णगण द्विमात्रादि भेद प्रथम एक गुरु नांम २६. लादि -लघ्वादि । १ २ ३ १ २ रूप 15 SI 111 रूप रघुवरजसप्रकास चौथे ढगण तीन मात्रा तीन भेद लघ्वादि नांम दूहौ S = 11 त्रिमात्रा त्रतीय सरव - लघु भेद नांम दूहौ 弱 संज्ञा [ & + संज्ञा सार । उचार ॥ ३० ४ ढगण ध्वज, चिन्ह, वास, चिराळ, चिर, तौमर, तूंमर, घास, नूंत माळ रस वलय सुरपति, पट्टह, ताळकर, ताळ, अनंद, छंद, सार भावारस, तांडव आंकुस, अन्तर अनार । प्रस्तार ॥ ३१ ५ णगण नूपुर, रसना, भरण, फरिण, चांमर, कुंडळ, हिमेरण, मुग्ध, वक्रमांण, वलय, हार । प्रिय, परमप्रिय | Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] रघुवरजसप्रकास दूहौ नपुर रसना भरण फणि, चांमर कुंडळ हिमेण । मुग्ध वक्रमांणसु वलय, हारसु गुरु यकेण ॥ ३२ द्विमात्रा द्विलघु भेद नाम दूही निज प्रिय कहिये परम प्रिय, दु लघु द्वि मत्ता नाम । गुण यम मात्रा पंच गण, रट कीरत रघुराम ॥ ३३ अथ साधारण गण नांम दूहा . आयुध गण कह पंच कळ, दुज तुरंग कळ च्यार । करण दु गुरु प्रिय दोय लघु, लघु गुरु ध्वज गुरु हार ॥ ३४ तविया गण एता तकौ, समझण छंद सुजाण । ल कहिये समझे लघु, ग कहिये गुरु जाण ॥ ३५ अथ सोडस करम वरणण दूहा संख्या प्रस्तर सूचिका, नस्ट उदिस्ट सुमेर । ध्वजा मरकटी जांण सुध, अाठू करम अफेर ॥ ३६ आठ सुमत्ता करम श्रे, आठ वरण अपणाय । पिंगळ मत श्रे कवि पढ़े, सोड़स करम सुभाय ॥ ३७ ३२. यकेण-एक । ३३. गुण-समझ । यम-इस प्रकार । ३५. तविया-कहे। ३६. प्रस्तर-प्रस्तार । सुध-(सुधि) विद्वान् । अफेर-पटल । www.jainelik Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ११ प्रथम लछण दूहौ यतरी मत यतरा वरण, कितरा रूप हुवंत । अन किव, किव पूछे उठे, संख्या तटै सझत ॥ ३८ संख्याविधि दूहौ एक दोय लिख पुरव जुगै, संख्या मत्त सुभाय । दोय हूत दुगणा वधै, संख्या वरण सझाय ॥ ३६ अथ प्रस्तार लछण दही संख्यामें कहिया सकौ, परगट रूप प्रकास । जे लिख सरब दिखाळजे, सौ प्रस्तार सहास ॥ ४० मात्रा प्रस्तार विधि दूही पहला गुरु तळ लघु परठ, सद्रस पंथ अग्र साय |* वंचे जिको मात्रा वरण, ऊरध परठौ आय। ४१ ३८. प्रन-अन्य। ४१. परठ-रख । वंचे-शेष रहना । ऊरध-ऊपर । ___* आदिमें जहां गुरु हो उसके नीचे लघु लिखो (गुरुका चिन्ह ऽ लघुका चिन्ह । है) फिर अपनी दाहिनी ओर ऊपरके चिन्होंकी नकल उतारो । बांई ओर जितने स्थान रिक्त हों (क्रमशः दाहिनी ओरसे बांई अोर तक) गुरुके चिन्ह 5 तब तक रखते चले जानो जब तक कि सर्व लघु न पा जाय । जब सर्व लघ पा जाय तब उसीको उसका अन्तिम भेद समझो। प्रत्येक भेदमें यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि वह मात्रिक प्रस्तार है तो, उसके प्रत्येक भेदमें उतने ही चिन्ह आवेंगे जितने मात्राका प्रस्तार होगा। यदि वह वणिक प्रस्तार है तो उसके प्रत्येक भेदमें उतने ही चिन्ह पावेंगे जितने वर्णका प्रस्तार होगा। मात्रिक प्रस्तारके सम कलमें पहला भेद गुरुप्रोंका तथा विषम कल में पहला भेद लघुसे प्रारंभ होता है। वणिक प्रस्तारमें पहला भेद गुरुओंका ही रहता है। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास वरण प्रस्तार विधि दूही वरण तणा प्रस्तार विधि, गुरु तळ लघू गिणंत । उबरै सौ कीजै उरध, सब ही गुरू सुभंत ॥ ४२ सूची लछण सोरठौ दूहौ तवौ अमुक प्रस्तार, भेद किता लघु आद भल। अर लघु अंत उचार, गुर अंतर गुर आद गुण ॥ ४३ आद अंत (फिर) लघु ऊचरै, आद अंत गुरु अक्ख । सूचीसू जद समझणौ, पेख आंक परतक्ख ॥ ४४ ४३. तवौ-कहो। भल-ठीक । ४४. पेख-देख कर। परतक्ख-प्रत्यक्ष । (१) परिणक प्रस्ता (३ वर्ण (२) वरिंगक विषम कल सम कल प्रस्तार ४ वर्ण (प्रस्तार ५ मात्रा) (प्रस्तार ६ मात्रा) । १ २ । ।। म 555 य ।55 र । स ।। त 55। ज । । भ ।। न ।।। 4444 ४ ५ ६ ७ । ।। । । ।। ।।। १ 5555 २ ।sss 3 SISS ४ ।। 55 ५ 5515 & ISIS ७ ।। ८ ।।। & sss १० । । ११ । । १२ ।। । १३ ।। १४ । ।। १५ ।।। १ 555 २ ।।55 ३ । । ४ ।। ५ ।।।। ६ । । ७ । । ८ ।।। । है ।। १० ।।5।। ११ । ।।। १२ ।।।। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १३ मात्रा सूची विधि पूरब जुगळ पहलां पढ़ी, संख्या मत्त सहास । पूरण अंक नेडौ तिको, पूरब अंक प्रकास ॥ ४५ आद लघु, लघु अंतमें, जितरा है कवि जाण । तिणसू पूरब अंक ते, आद अंत गुरु आंण ॥ ४६ चौपई पूरण अंकसू तीजौ अंक, श्राद अंत लघु जिता निसंक। जिणसूतीजौ अंक जिताय, आद अंत गुरु जिता कहाय ॥ ४७ मात्रा सूची संख्या रूप अथ वरण सूची विधि चौपई वरण संख बे दुगणी वेस, सम लघु गुरुचा रूप सरेस । पूरण निकट पुरव अंक होय,आद अंत लघु गुरु है सोय ॥ ४८ अंक तीसरौ पूरण हूत, आद अंत लघु गुरुचौ कूत।। सूची कौतक अरथस कीजै, तौ के आंन विधांन तवीजै ॥ ४६ वरण सूची संख्या रूप अथ ऊदिस्ट लछण चौपई बीयौ रूप लिख कहै बताय। किसौ भेद ऊदिस्ट कहाय ॥ ५० ४५. जुगळ-दो। नेडो-नजदीक । ४६. प्रांण-लामो। ४८. गुरुचा-गुरुका। ४६. गुरुचौ-गुरुका । कूत-समझ । कौतक-शेष केवल कौतुकं । तवीजै-कहा जाता है । ५०. बीयौ-दूसरा। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] रघुवरजसप्रकास अथ मात्रा ऊदिस्ट* दूहा मत ऊदिस्ट सुरूप लिख, पूरब जुगळ सिर अंक। लघु सिर एकही अंक लिख, गुरु अध ऊरध अंक ॥ ५१ गुरु सिर ऊपर अक जे, विच प्रस्तार घटाय । सेख रहै सौ जांण यम, भेद कहौ कविराय ॥ ५२ वरण ऊदिस्टा दूही आखर वरण उदीठ पर, दुगण अंकां देह । ऊपरलां लघु अंकड़ां, यक वद भेद अखेह ॥ ५३ ५३. उदीठ-उद्दिष्ठ । अखेह-कहना । *मात्रिक उद्दिष्ट मात्रिक उद्दिष्टमें जहां गुरुका चिन्ह हो उसके ऊपर और नीचे सूचीके अंक क्रमशः लिखो । लघुके ऊपर भी क्रमशः सूचीके अंक लिखो। गुरुके ऊपरके अक्षरोंको पूर्णाङ्कमेंसे घटा दो तो भेद संख्या मालुम हो जावेगी। उदाहरण, मात्रिक उद्दिष्ट प्रश्न-बतायो ६ मात्रामों में से यह । 55। कौनसा भेद है ? उ०---पूर्ण सूची--१२ ५ १३ पूर्णाङ्क १३ 55 गुरुके चिन्हों पर २ और ५ हैं दोनोंका योग ७ हुआ। पूर्णाङ्क १३ में से ७ घटाने पर ६ शेष रहते हैं अतः यह छटा भेद है । वणिक उद्दिष्ट वणिक उद्दिष्टमें सूचीके अंक प्राधे प्राधे लिखो । उसके नीचे रूप लिखो । गुरु चिन्होंके ऊपर जो संख्या हो उसे पूर्णाङ्कमेंसे घटा दो। जो शेष रहेगा, वही उत्तर है । उदाहरण । प्रश्न-बतायो ४ वर्गों में यह । 55। कौनसा भेद है ? उ०--अर्ध सूची-१ २ ४८ पूर्णाङ्क १६ । । गुरुके चिन्होंके ऊपर २ और ४ हैं। दोनोंका योग ६ हुआ। ६को पूर्णाङ्क १६में से घटाया तो शेष १० रहे । अतएव १०वां भेद है । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १५ अथ नस्ट लछण विण लखियां मात्रा वरण, पूछे भेद सुपात । बुधबळसू अखु जेण विध, क्रमसौ नस्ट कहात ॥ ५४ अथ मात्रा नस्ट% कवित्त छप्प मात्रा नस्ट विधांन, कहत कविराज प्रमाणहु । सब लघु कर तिण सीस, पूरब जुग अंकां ठाणहु ॥ पैलौ पूछे भेद, अंक तिणरौ विलोप कर। तिण लोपै फिर रहै सेस, सौ अंक लोप धर ॥ पुरब जु अंक तिण अंकसू, पर मिळाय गुरु कर कहौ । औ मात्र निस्ट पिंगळ अखत, सुकवि किसन' यण विध लहौ ॥५५ ५४. विण लखियां-बिना समझे । सुपात-(सुपात्र) कवि । बुधबळ-बुद्धिबल । अखं-कहता हूँ *मात्रिक नष्ट ___ मात्रिक नष्ट में सूचीके पूरे-पूरे अंक स्थापित करो। छंदके पूर्णाङ्कसे प्रश्नाङ्क घटायो, शेष बचे उसके अनुसार दाहिनी ओरसे बांई ओरके जो जो अंक क्रमपूर्वक घट सकते हों उनको गुरु कर दो किन्तु जहां-जहां गुरु हों उनके आगेकी एक एक मात्रा मिटा दो। प्रश्न-बतायो ६ मात्रामोंमें ११वां भेद कैसा होगा ? रीति-पूर्णाङ्क १३में से ११ घटाये, शेष २ रहे । २ में से २ ही घट सकते हैं अत: २ को गुरु कर दिया और उसके प्रागेकी मात्रा मिटा दी। यथा-पूर्ण सूची-१ २ ३ ५८ १३ साधारण चिन्ह ।।।।।। उ०-15।।। यही ११वां भेद है। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] भाग चींतवौ वरण नव, लघु करि सम जिण वोड़ | विसम भागमें मेल यक, गुर कर कवि सिर मोड़ ॥ ५६ अथ सोस विधि मात्रा वरण प्रस्तार लिखरण विधि कौतुकार्थे लिख्यते । वारता एक तो पिंगळ मत सुधौ प्रस्तार ऊपरासू नीचौ लिख्यौ जाय सौ, ज्यौं ही सुद्ध प्रस्तार नीचासू ऊंचो लिख्यो जाय जीनै प्रकारांत कहीजै । इतरै प्राठ प्रकार तौ मात्रा प्रस्तार । हर ग्राठ प्रकार ही वरण प्रस्तार छै जे कहै छै । अथ नांम जथा रघुवरजसप्रकाश अथ वर्णं नस्ट विधि दूहौ सुद्ध, मात्रा सुद्ध १, मात्रा सुद्ध प्रकारांतर २, मात्रा स्थान विपरीत ३, मात्रा स्थान विपरीत प्रकारांतर ४, मात्रा संख्या विपरीत ५, मात्रा संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर ६ मात्रा संख्या स्थान विपरीत ७, मात्रा संख्या स्थान विपरीतकौ प्रकारांतर ८, ए ग्राठ मात्रा प्रस्तार विधि । वणिक नष्ट वरिंगक नष्टमें सूचीके अंक आधे-आधे लिखो । छंदके पूर्णाङ्कमेंसे प्रश्नाङ्क घटाश्रो । शेष बचे उसके अनुसार दाहिनी ओरसे बांई ओरके जो-जो अंक क्रमपूर्वक घट सकते हों उनको गुरु कर दो । प्रश्न- बताओ ४ वर्णों में ध्वां रूप कौन सा होगा ? रीति - पूर्णाङ्क ८x२= १६ में से 8 घटाये, शेष ७ रहे । ७ में से ४, २ और १ ही घट सकते हैं । इसलिए इन तीनोंको गुरु कर दिया । यथा - अर्ध सूची - १२४८ पूर्णाङ्क १६ साधारण चिन्ह ।।।। उ०--ऽ ऽ ऽ । यही नवां भेद है । दूसरा प्रकार जितने वर्णका वर्रिएक नष्ट निकालना हो उतने ही अंकों तक प्रश्नाङ्क में २का भाग देकर भागफलको क्रमशः बांई श्रोरसे रख दीजिये किन्तु जिन विषम संख्याओं में २का भाग पूरा-पूरा नहीं जाता हो उनमें १ जोड़ देना चाहिए । सम संख्या के नीचे लघु और विषमके नीचे गुरु रखने पर उत्तर मिल जायगा । चार वरणों का हवां रूप रोति - ६ ५ ३ २ ऽ ऽ ऽ । यही 5 5 5 उत्तर है । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्रकास [ १७ अथ मात्रा स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण । दूहौ अंत गुरु तळ लघु धरौ, आगै पंत समांण । ऊबरे सौ गुरु लघु धरौ, पाछै एह प्रमाण ॥ ५७ अथ मात्रा स्थान विपरीतकौ प्रकारांतर । चौपई अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ, अधर पंत सम अग्र विचारौ। ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, कळा थांन विपरीत कहावै ॥ ५८ अथ मात्रा संख्या विपरीतको प्रकारांतर दोनू भेळा कहै छै । . चंद्रायणौ आद अंत लघु संनिध तळ गुरु आंणजै । जेम प्रकारांतर गुरु सिर लघु जांणजै॥ धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर कीजियै । संख्या बिहु प्रकार उलट्ट सुणी जियै ॥ ५६ वारता संख्या विपरीतका पाद लघुका अंतको लघु जीके नीचे गुरु करणौ । प्रागै उरध पंत, सम पंत, ऊबरे सौ लघु करणा । अथ मात्रा संख्या स्थान विपरोतको प्रकारांतर दोनू भेळा कहां छां । चंद्रायणौ अंत रेख तिण आद, हेठ गुरु अख्यजै । भल प्रकार गुरु अंत, सीस लघु भख्यजै॥ ५७. तळ-नीचे। पांत-पंक्ति । समांण-समान । एह-यह । ५९. संनिध-पास । धर-प्रथम । पछ-पश्चात् । ६०. हेठ-नीचे। अख्यज-कहिए । भख्यज-कहिए । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] रघुवरजसप्रकास धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर धारजै। संख्या थळ विपरीत उभय संभारजै ॥ ६० वारता स्थांन विपरीतके सरव लघु कर अंत लघुका पाद । लघु नीचे गुरु लखजै । प्रागै उरध पंगत सम पंगत करणी पाछै ऊबरे सौ सरब ही लघु करणा । इति अरथ। मात्रा संख्या प्रकारांतरे आदरा गुरु सिर लघु धरजै। आगे पंगत नीचली पंगत समांन अर पाछै ऊबरे सौ दोय ऊबरे तौ गुरु करणौ नै तीन ऊबरे तौ गुरु करे नै लघु करणौ। प्ररथ प्रकारांतरे स्थान विपरीतके सरव गुरु कर अंतका गुरुके सिर लघु धरणौ । आगे नीचली पंगत समांन पंगत करणी । पाछै एक ऊबरे तौ लघु करणौ, दोय ऊबरे तो गुरु करणा, गुरु कर लघु करणौ । इति अरथ । इति अष्ट प्रकार मात्रा प्रस्तार संपूरण । अथ मात्रा अस्ट प्रकार नस्ट उदिस्ट कथन । वारता मात्रा सुधको अरु मात्रा सुद्धका प्रकारांतरको तौ निस्ट उदिस्ट आगे सनातनी कहै छै जेहीज जांणणा । हर छः प्रकारका फेर कहां छां । अथ मात्रा स्थान विपरीत उदिस्ट विधि । थळ विपरीत उदिस्ट सिर, उलटा दीजै अंक। गुरु सिर अंकां उरध अध, लघु सिर एकही अंक ॥ ६१ गुरु सिर वाळा अंक गिणि, पूरण अंकसू टाळ । बाकी रहैस भेद कवि, वेडर कहे वताळ ॥ ६२ ६०. धुर-प्रथम । पछ–पश्चात् । थळ-स्थान । संभारजै-सम्हालना। लख-लिखिए । सनातनी-पूर्वाचार्य । हर-प्रत्येक । ६२. वेडर-निर्भय । वताळ-वतला कर । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६ मात्रा स्थान विपरीत हर प्रकारांतको नष्ट उदिष्ट एकही छै । मात्रा स्थान विपरीत भेद छठौ। | १३ | ५ ३ २ १ | भेद पाठमौ स्थान विपरीत उदिस्टको । अथ मात्रा स्थान विपरीत हर प्रकारांतर दोनूंको नस्ट कहै छै । चौपई थळ विपरीत नस्ट कळ कीजै, दखिण उलट अंक क्रम दीजै । पूछ्यौ भेद पूरणसू' टाळे , पाछै रहैस लोप दिखाळे ॥ उलट क्रम सिर अंकां आवै, पूरब मत्त पर मत्त मिळावै । गुरु कर रूप भेद सौ गावै, थळ विपरीत नस्ट यम थावै॥६३ ६३. थळ-स्थान । थावे-होता है । मात्रा सुद्ध प्रस्तार को प्रकारांतर नीचा मात्रा स्थान विपरीत मात्रा स्थान विपरीत मात्रा सुद्ध प्रस्तार सूऊंचौ लिख्यौ कौट फेर प्रस्तार को प्रकारांतर प्रस्तार जाय छ SSS sss sss 555 ।।55 ।। 55 SSI 55।। ISIS 1515 5। । SIS! SIIS 5।। 5।। ।।5 ।।।। ।।।। ।।।। 5।।।। 1551 ISS! 155 155 515 SI51 ISIS ISIS ।।।51 ।।।।। ।5।।। । ।।। SSII 55।। ।।55 ।।55 ।।5।। ।।5।। ।।5। ।।।। ।।।।। । ।।। ।।।5। ।।।।। ।।।।। 5।।।। ।।।।। ।।।। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] मात्रा संख्या प्रस्तार विपरीत प्रस्तार ।। ऽ। SSII ।।। ऽ। 5 15 1 । ऽ ऽ । IIIIS SIIS ISIS IISS SSS रघुवरजसप्रकास मात्रा संख्या विपरीत के प्रकारांतर प्रस्तार 1111 ।।5।। ऽ ऽ । । ।।।5। SISI ISSI ।।।।ऽ SIIS ISIS ।। ऽ ऽ SSS मात्रा संख्या स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार " ।।।।ऽ ।।। ऽ। ।। ऽ।। IISS । 5 ।।। ISIS 1 55 1 ऽ ।।।। SIIS SISI SSII SS S मात्रा संख्या स्थांन विपरीत प्रकारांतर कड़ौट फेर नीचा सूं ऊंचो लिख्यौ जाय सो प्रस्तार 1111 कौट-पंक्ति के उलटने की क्रिया या भाव। ६४. सू - सीधा । विध-विधि । श्रभीत-निर्भय । दोयां दोनोंका । ६५. मांझ-मध्य | ।।।15 मात्रा संख्या विपरीत संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर ज्यौं दोयांईकौ उदछु । दूहौ ।।। ऽ। ।। 5 ।। IISS सुधै कमदै अंक सिर, विध संख्या विपरीत । गुरु सिर अंकां एक विध, भेद उदिस्ट अभीत ॥ ६४ अथ मात्रा संख्या विपरीत हर संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर यां दोयां कोई नस्ट कहूं छू । चौपई 151 ।। ISIS ISSI ऽ ।।।। SIIS SISI SS11 SSS नस्ट संख्य विपरीत निदान, मत्त सीस कम अंक मांन । पूछया भेद मांझ घट एक, बाकी रहै सगुरु कर देख ॥। ६५ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २१ पूरब मत्त पर मत्त मिळाय, गुरु करि नस्ट भेद यम गाय ॥ ६६ अथ मात्रा संख्या स्थान विपरीत हर प्रकारांतर यां दोयांईकौ उदिस्ट कहू छू । चौपई भेद सीस दखिण ब्रत अंक, दै उलटा क्रम हूत निसंक । गुरु सिर अंकां मझ सिवाय, एक मेळ कर भेद बताय ॥ ६७ अथ मात्रा संख्या स्थान विपरीतको हर संख्या स्थान विपरीतको प्रकारांतर यां दोयांईको नस्ट कहू छु। चौपई क्रम विपरीत अंक लघु सीस, दै पूछ ल यक घाट करीस। रहैस पूरब जोड़ पर मत, नस्ट संख्य उलट थळ सत ॥ ६८ दूहा आठ भांत प्रस्तार मत्त, नस्ट ऊदिस्ट प्रकार । 'किसन' सुकवि जस रांम कज, रटिया मत अनुसार ॥ ६६ इति अस्ट प्रकार मात्रा प्रस्तार उदिस्ट नस्ट संपूरण । ___ अथ प्रस्ट प्रकार वरण प्रस्तार विधि लिख्यते । वारता वरण सुध प्रस्तारको तौ लछण आगे कह्यौईज छै । अथ अस्ट वरण प्रस्तार नाम । यथा-- वरण सुध प्रस्तार १, वरण सुध प्रकारांतर २, नीचासू ऊंचौ लख्यौ जाय जींको नाम प्रकारांतर कहियै, वरण स्थान विपरीत ३, प्रस्तार नै कड़ौट फेरावणी सौ स्थान विपरीत कहीजै । वरण स्थान विपरीत प्रकारांतर ४, वरण ६६. यम-इस प्रकार । गाय-कह । ६७. सीस-ऊपर । ब्रत-व्रत । सिर-ऊपर । ६८. घाट-घटाना । करीस-करना । पर-पागेकी। सत-साथ । ६६. मत-मात्रा। कज-लिए। मत-(मति)बुद्धि । कडोट-पंक्तिके उलटनेकी क्रिया या भाव । फेरावणी-उलटना। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] रघुवरजसप्रकास संख्या विपरीत ५, वरण संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर ६, वरण संख्या स्थांन विपरीतकौ कड़ौट फेर ७, वरण संख्या स्थांन विपरीतकौ प्रकारांतर में प्रस्ट वरण प्रस्तारकौ तुकारथ लिखां छां । अथ वरण सुद्ध प्रस्तारका प्रकारांतरकौ लछण । चौपई धुर लघुके ऊरध गुरु धरौ, आगे अरघ पंत सम करौ ऊबरे सौ पाछै लघु वै वरण प्रकार यम सुध गावै अथ वरण स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण । चौपई अंत गुरु हे लघु ऋणौ, जुगति अग्र ऊरध सम जांणौ । ऊबरे सौ पाछै गुरु लेखौ, वरण स्थान विपरीत विसेखौ || ७१ 1 अथ वरण स्थान विपरीतकौ प्रकारांतरकौ लछण । चौपई अंत लघु सिर गुरु परठीजै, रूप रध सम अग्र करीजै । ऊबरे सौ पाछै लघु लेखौ, प्रकारांतर उलट थळ पेखौ ॥ ७२ ॥ ७० अथ वरण संख्या विपरीत लघवादिकसू प्रस्तार चालै जींनै संख्या विपरीत कहीजै चौपई फेर - फिर । तुकारथ-पंक्तिका अर्थ | ७० धुर - प्रथम । ऊरध- ऊपर । पंत-पंक्ति । येम - इस प्रकार । ७१. हेठ - नीचे । विसेखौ - विशेष । ७२. सिर- ऊपर । परठीजै - रखिये । पेखौ - देखिए । द लघु तळ गुरु धरिये एम, तव उरध सम आगे तेम | ऊबरे सौ पाछै लघु ण, वरण संख्या विपरीत बखांण ॥ ७३ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास वरण संख्या विपरीतकौ प्रकारांतर लछण । चौपई धुर गुरु सीस प्रथम लघु धारौ, अग्र अरध सम पंत उचारौ । ऊबरे सौ पाछै गुरु देह, वरण प्रकार उलट थळ एह ॥ ७४ अथ वरण संख्या स्थान विपरीत कड़ौट फेर लछण । चौपई अंत लघू तळ गुरु धरि हौ, उरध पंत सम अग्र हो I ऊबरे सौ पाछै लघु ऋण, संख्या वरण उलट थळ जांण ॥ ७५ अथ वरण संख्या विपरीत प्रकारांतर लछण । चौपई [ २३ थिर गुरु अंत सीस लघु थाप, अग्र अरध समपंत माप । वचै स पाछै गुरु करिवेस, संख्या उलट प्रकार सु देस ॥ ७६ पुणिया आठ वरण प्रस्तार, वडा सुकव लीजियौ विचार ॥ ७७ इति प्रस्ट विधि वरण प्रस्तार संपूरण । ७४. एह-यह । ७५. एहौ - ऐसा । श्रछेहौ - अच्छा । ७६. थाप - स्थापित कर । करिवेस - करिये । देस - दीजिये | ७७. पुणिया कहे । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] रघुवरजसप्रकास अथ अष्टविध वरण- प्रस्तार वरण सुद्ध प्रस्तार वरण सुद्ध प्रस्तार प्रकारांतर वरण स्थान विपरीत कौट फेर प्रस्तार वरण स्थान विपरीतकौ प्रकारांतर कडोट फेर SSSS 1555 SI55 ।।55 5515 ISIS 5।।5 SSSS 5551 SSIS 55।। SISS 5151 SSSS 1555 5155 ।। 55 SSS 1515 SIIS ।।। SSS! 1551 SIS ।।5। 55।। ।5।। 5।।। SSSS SSS SSS 55।। SISS 5151 s।।5 5।।। 1555 I551 ISIS 15।। ।।55 ।।5। ।।।5 51।। ISSS 15s। ISIS ।5।। ।। 55 5551 5151 ।।।। 5511 ।5।। 5।।। ।।।5 वरण संख्या विपरीत प्रस्तार वरण संख्या विपरीतके प्रकारांतर वरण संख्या विपरीतको स्थान विपरीत प्रस्तार वरण संख्या विपरीत स्थान विपरीतको प्रकारांतर प्रस्तार SII 1511 55।। ।।5। SIS! 1551 5551 ।।। s115 1515 SSIS ।।55 5055 ISSS SSSS SIL! ।5।। 55।। 1151 5151 155 SSSI ।।। SIIS 1515 SSIS ।।55 SISS 1555 ssss । ।। 5 115। ।।55 ।5।। 1515 155 1555 5।।। ।।5 515 SISS 55।। 5515 5551 SSSS ।।। ।।5। ।।5s ।5।। ISIS 1551 ISSS 5।।। SIIS SIS SISS SSII SSIS 5551 Ssss Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २५ अथ अस्ट विध वरण प्रस्तार ज्यांका उदिस्ट, नस्ट लिखां छां । वारता वरण सुद्ध १ हर वरण सुद्धका प्रकारांतरको तौ सदा व्है छ ज्यू हीज छ । हर बाकीरा छ प्रकारको लिखां छां । अथ वरण स्थान विपरीतका प्रकारांतर दोयको उदिस्टको लछण । चौपई ऊलट क्रम दखिणसू अंक, रूप वरण सिर धरौ नसंक। ऊपर गुरु अंक जे आवै, पूरण अंक मधि तिके घटावै ।। ७८ बाकी रहैस भेद बिचार, सब तज भज राघौ गुण सार ॥ ७६ अथ वरण स्थान विपरीत ईका प्रकारांतरको नस्ट कहां छां । दूहौ दखिण क्रमसू भाग दै, सम लघु रूप सराह । विखम एक दे गुरु करौ, उलट नस्ट आ राह ॥ ८० अथ वरण संख्या विपरीतको हर ईंका प्रकारको उदिस्ट कहां छां । दूहौ यक सूं दुगणा रूप सिर, दै क्रम अंक कवेस । गुरु सिर अंकां एक मिळ, आखव रूप असेस ॥ ८१ अथ वरण संख्या विपरीत हर प्रकारांतर दोनू को नस्ट कहां छां। चौपई सूधा क्रमस कळपौ भाग, विखम थांन लघु करि अनुराग । विखम एक मिळ आध कराय, समथळ गुरू विखम लघु थाय ॥८२ है छै-होते हैं। ७८. नसंक-निःसंदेह । मधि-मध्य । कहां छां-कहता हूँ। ८०. श्रा-यह । राह-तरीका। ८१. कवेस-कवीश। पाखव-कह । प्रसेस-अपार । ८२. कळपौ भाग-भाग करो। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] रघुवरजसप्रकास विधयण नस्ट संख्य विपरीत, बुध बळ समझौ सुकवि बिनीत ॥ ८३ अथ वरण संख्या स्थान विपरीतकौ हर ईंका प्रकारांतरकौ उदिस्ट कहां छां। चौपई रूप सीस दखिण ब्रत अंक, दै उलटै क्रमसू कवि निसंक। गुरु सिर अंकां एक मिळाय, भेद कहौ कवि 'किसन' सुभाय ॥ ८४ अथ वरण संख्या स्थान विपरीतकौ हर ईंका प्रकारांतरको दोन्यांकौ नस्ट कहां छां । चौपई भाग कळप दखिण कर ओर, विखम भाग लघु करौ सतौर । एक भेळ वांटा कर दोय, समथळ गुरू विखम लघु होय ॥ ८५ नस्ट उदिस्ट आठ परकार, निज कहि 'किसन' वरण निरधार । तू अन आळ जंजाळ तियाग, रघुबर सुजस सार चित राग ॥ ८६ अथ सोड्स प्रस्तार मात्रा वरणका सुगम लिखण विध । दहा सुध सुध विपरीत थळ, संख्या उलट प्रकार । संख्या उलट प्रकार थळ, गुरु लघु पच्छु विचार ॥ ८७ सुध सुध विपरीत थळ, प्रकारांत बिहु जांण । संख्य विपरजय संख्यथळ, उलट पच्छ लघु आंण ॥ ८८ वारता सुधकै १ । सुध स्थांन विपरीतकै २ । संख्या विपरीतका प्रकारांतरकै ३ । ५४. सीस-ऊपर। ब्रत-वृत्त । हर ई-प्रत्येक । दोन्यांको-दोनोंहीका। ८५. सतौर-ठीक । वांटा-विभाजन । थळ-स्थान । ८६. परकार-प्रकार । अन-अन्य । प्राळ जंजाळ-झूठा मायामोह। तियाग-त्याग । सार-तत्व । राग-अनुराग । ८७. पच्छु-पीछे। ८८. बिहुं-दोनों। विपरजय-विपर्यय । वारता-गद्य । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुबरजसप्रकास [ २७ संख्या स्थान विपरीतका प्रकारांतरकै ४ । सम ऊबरे तो गुरु करणा, बिसम ऊबरे तो गुरु करनै लघु करणा। सुधका १ । सुध स्थान विपरोतका प्रकारांतर दोयांईके २ । हर संख्या विपरीतके ३ । हर संख्या स्थान विपरीतके ४ । प्रां च्यार प्रस्तांरांके ऊबरे, सौ सरवे पाछै लघु करणा । इति प्रस्तार सुगम विध । मात्रा वरण उदिस्ट नस्ट सुगम लछण । दूहा सुद्ध बिहु उदिस्ट नस्ट, सुद्धा क्रमसू अंक । बे संख्या बिपरीतरै, निज सुद्ध अंक निसंक ॥ ८६ बे सुद्ध थळ विपरीतरै, बि थळ संख्य विपरीत । आं चहुनिस्ट उदिस्ट सिर, अंक उलट क्रम दीत ॥ ६० क्रम संख्या विपरीत बे, बि क्रम बि थळ बिपरीत। पूछ ल यक घट नस्ट गुरु, वध उदिस्ट कहीत ॥ ६१ सुद्ध बे सुद्ध थळ उलट बे, क्रम बी क्रम धर अंक। पूछ सेस घट नस्ट कर, वध उदिस्ट गुरु अंक ॥ ६२ इति रघुवरजसप्रकास ग्रंथे आढ़ा किसना त मात्रा वरण सोडस प्रस्तार उदिस्ट निरूपण संपूरण । अथ मेर लछण । मुण अमका प्रस्तार मझ, सरब गुरू केह । एक एक घट फिर अखौ, सब लघु घट लघु जेह ॥ ६३ ऊबरे-शेष रहते हैं। प्रां-इन । ८६. बिहुँ-दोनों। १०. बि-दो। संख्य-संख्या। सिर-ऊपर। दीत-दीजिये । ६१. वध-विधि। कहीत-कहते हैं। ६२. घट-घटाना। ६३. मुरण-कह । अमका-इसका। प्रखौ-कहो । जेह-जिस । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] रघुवरजसप्रकास पूछ यूं अन कवि प्रसन, थाप मेर जिण ठांम। प्रथम मेर मत कवि परठ, रट कीरत रघुराम ॥ ६४ अथ मात्रा मेर विध। ___ कवित छप्प कर सम बे बे कोठ, अंत यक अंक भरीजै। आद कोठ यक अंक, दुवौ तिण तर हर दीजै ।। ऊरध जुगळ फिर अंक, देह पैलां कोठां दख । विध मध कोठा भरण, लछ आखंत सुकवि लख ।। सिर अंक त्याग दछ अंक सौ, समिळ लेख अध कोठ सुज। कह मत मेर यण विध ‘किसन', तूं रट राघव आंन तज ।। ६५ १४. यू-इस प्रकार। अन-अन्य। प्रसन-प्रश्न । थाप-स्थापित कर। मेर-मेरु । ठांम-स्थान । परठ-रच । ६५. कोठ-कोठा। दुवौ-दूसरा। तिण-उस। तर-तल, नीचे । ऊरध-उर्ध्व । दख-कह। विध-विधि। मध-मध्य । लछ-लक्षण। पाखंत-कहते हैं। समिळ-साथ । प्रध-नीचे। सूज-वह। प्रान-अन्य। Education International For Private & Personal use only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २६ अथ वरण मेर भरण विध अथ एकादस मात्रा मेर स्वरूप । १ | १ | भेद १ २११ भेद २ ७४ १०६ १ भेद २१ ६ ५ २० २१ ८ १ भेद ५५ १० | १ | १५ ३५ २८ ८ १ भेद ८६ ११ ६ ३५ | ५६ ३६ | १० १ भेद १४४ ernational www.jainel Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] रघुवरजसप्रकास अथ पताका लछण । दूही मुणिया भेळा मेरमें, गुरु लघु रूप गिनांन । जपौ जेण थळ जूजुवा, थपि पताक कह थांन ॥ ६६ अथ मात्रा पताका विध । कवित छप्पै अंक रीत उदिस्ट देहु, पूरण अंक बांमह । अंक पूरब ता अंक मेटि, क्रम क्रम विधि तामह ॥ एक अंक लोपंत, एक गुरु ग्यांन गिणीजै । दोय अंक ओपंत, दोय गुरु ग्यांन भणीजै ॥ त्रय लोप त्रि गुरु चव लोप चव, गुरु गियांन यम जांणिये। लिख्य मेर संख्य ध्वज मत सौ, जस राघव ध्वज जांणियै ॥ ६७ ६६. मुणिया-कहे । भेळा-शामिल । गिनांन-ज्ञान । जूजुवा-पृथक्-पृथक् । थपि-स्थापित कर थान-स्थान । ६७. देहु-देकर । बामह-बायां । तामह-उसमें । लोपंत-लोप होते हैं। प्रोपंत-शोभा देता है। चव-कहो। चव-चार । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ४ २२ ५६ ३ ६ ७ १४ १५ १७ ३५ ३६ ३८ ४३ ५ १० ११ १२ २३ २४ २५ २७ २८ ३० ५७ ५८ ५६ ६१ ६२ ६४ ६६ ७० ७२ ७७ ८ १६ १८ १९ २० ३७ ३६ . ४० ४१ ४४ . ४५ ४६ . ४८ . दस मात्राकी पताका ४६ ५१ . रघुवरजसप्रकास १३ २६ २६ ३१ ३२ ३३ ६० ६३ ६५ ६६ ६७ ७१ ७३ ७४ ७५ ७८ ७६ ८० ८२ ८३ ८५ २१ ४२ ४७ ५० ५२ ५३ ५४ ३४ ६८ ७६ ८१ ८४ ८६ ८७ ८८ ५५ [ ३१ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] रघुवरजसप्रकास दस मात्राकी पताका दस मात्राकी पताकाका दूसरा रूप यह भी होता है। १५ २८ SSSSS TISSSS ||Husss Il ss sini ३ १० ६ ११ ६२ १२ ६४ m» urwa Xr9UUUU 1 GKons w i wo २३ ७७ rror ro"" NU094 66MMMMMccxcckwww cWW.MAKKwGW.KWWGWWWom UUUU ernational www.jainel Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३ अथ मात्रा पताका अन्य विध । दूहा अंक मत्त उदिस्ट लिख, समझ विचार सुजाण । वळे पताखा दंड विच, विध एही बुधवांण ॥ ६८ विरळी पूरण अंक विण, बे बे पंकत बंध । ऊपरली बे पांतरौ, आंक उपंत समंध ।। ६६ असौ अंक पूरण अंकसू, परठव तीजी पंत । गुणीयण कहणौ गुरु लघु, पहली तरह पढ़त ॥ १०० अन्य प्रकार नवीन मत दस मात्रा पताका स्वरूप ।* ६८. वळे-फिर । बुधवांण-बुद्धिमान् । ६९. पांत-पंक्ति । उपंत-उपांत्य । समंध-सम्बन्ध । १००. परठव-रच । गुणीयण-कवि। * दूसरे प्रकारसे सप्त मात्रा पताकाके स्वरूपकी तरह १० मात्रा पताकाका स्वरूप भी निकाला जा सकता है। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] रघुवरजसप्रकास अथ सप्त मात्रा पताका स्वरूप । * ७ मात्राओंकी पताका निम्न प्रकारसे भी लिखी जाती है। ७ मात्रामोंकी पताका २१ १० - १६ ११ २० 3 २४ १७ ernational www.jaineli Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ वरण मेर भरण विध । दूहौ संख्या अक्खर कोठ सभ्झ, एकौ आदर अंत । सून कोठ सिर बे, समिल लेख अध संत ॥ १०१ अथ वरण मेर खंड विध । हौ परठ दच्छ सुधी पंगत, उत्तर चढ़ा उतार । आदत भर एकड़ौ, न अग्र उपहार ॥ १०२ १ १०२. उणहार - समान । अथ सप्त वरण मेर स्वरूप । सप्त वरण मेर । १ ७ १ १ १ २१ १ ५ १० १५ ३ २ २ ६ १ ३५ ३ १ ४ भेद २ १ भेद ४ १० ५ १ २० १५ ६ भेद ८ १ ३५ २१ ७ भेद १६ १ भेद ३२ १ [ ३५ भेद ६४ भेद १२८ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६] रघुवरजसप्रकास अथ वरण खंड मेर स्वरूप ६ । १५ १ | ७ | २१ | ३५ ३५ २१ / ७. १ प्राचीन मत च्यार वरण पताका स्वरूप १६ ernational www.jainel Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ वरण पताका विध । दूहा यक दौ च्यार सु आठ विध, अंक वरण उदिच्छ । पुरण अंकसू वांम तिण, परलौ लोपव पच्छ ॥ १०३ एक अंक लोपै तिकण, पंत एक गुरु ग्यांन । दोय अंक दु गुरू त्रियंक, तीन गुरू मन मांन ॥१०४ ४ | ६ ७ | १० | ११ | १३ | १८ १९ २१, २५ | १२ | १४ | १५ | २० २२ २३ २६ / २७ । २६ | २४ २८ ३० ३१ अथ वरण पताका नवीन मत अन्य विध सुगम । दूहा वरण पताका आंन विध, अंक उदिस्ट विधांन । पूरण अंक संनिधि जिको, पूरब अंकसु मांन ॥ १०५ पूरब अंक सिर अंकसू, जोड़ अंक गिण जेह। सौ पूरणसू दूसरी, पंकत धरौ सप्रे ॥१०६ पूरब अंक सिर पंतसू, पह भर छेल्ही पंत । त्रतीय अंक गुण पुब्बसू, पंत दुती भर संत ॥ १०७ १०५. संनिधि-निकट। १०६. सप्रेह-सप्रयत्न । १०७. सिर-ऊपर । पंत-पंक्ति । पह-प्रथम। छेल्ही-अंतिम । पुब्बसू-पूर्वसे । दुती द्वितीय । संत-सज्जन । www. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] रघुवरजसप्रकास यण विध पूरब अंक जुड़, सिर पंकतरा अंक। वरण पताका नवीन विध, सूधौ मत निरसंक ॥ १०८ अथ मरकटी लखण कथन । छप्पै किव पूछे जौ कोय, ग्यांन खट भांत एक थळ । जिणरी अखु जुगत, सुणौ कवि सुमति सउज्जळ ॥ किती वत्तिके भेद, मात्र कितरीके वरणह । कितरा गुरु लघु किता, रटौ हिक ठौड़ सु निरणह ॥ मांडजै तेण पुळ मरकटी, खट विध ग्यांन दिखाइयै । 'किसनेस'सुकव धन जनम किव,गुण जौ राघव गाइयै ॥१०६ अथ मात्रा मरकटी विध कथन । ___ कवित छप्प पंकत खट करि प्रथम, संख्य मत्ता कोठा सम । पांत व्रत्त भर प्रथम, एक दो त्रय चव यण क्रम ॥ पूरव जुगळ भर भेद पंत, त्री चवथ पंच तज । पंत छटी भर पहल, एक बे अंक परठ सुज ॥ धर बीय सीस अकौं सधर, बियौ भेद पंकत सुमिळ । लख बीया अग्र पांचौं सुलछं, पांत छठी यम भर प्रघळ ॥ ११० आद सुन्य गुरु पंत, अंक अन गुरु लघु पारख । गुरु लघु पंकति गिणे, वरण पंकत भर बेधख ॥ १०८. निरसंक-निशंक । ११०. पांत-पंक्ति । त्रय-तीन । चव-चार । यण- इस । त्री-तीन । चवथ-चौथा । बे-दो। परठ-रख । बीय-दूसरा। बियौ-दूसरा। सुलछे-अच्छे लक्षण । प्रघळ अच्छी प्रकार । १११. पारख-समझ । बेधख-निर्भय । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३६ रघुवरजसप्रकास व्रत भेद गुण विन्हें पंत, विच मत्त पंत धर। यम खट पंकत सुकवि, सुमत हूता पूरण भर ।। मरकटी मत्त यम ‘किसन' मुण,खट विध ग्यांन स एक थळ । जनम कर सफळ पायौ जिको, आख क्रीत रघुबर अमळ ॥१११ अथ दस मात्रा मरकटी स्वरूप वृत्ति १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० भेद १ । २ । ३ ५ ८ | १३ | २१ | ३४ | ५५ ८६ मात्रा १ | ४ | | २० ४० ७८ | १४७ २७२ | ४६५ ८६० वर्ण १ । ३ । ७ | १५ | ३० | ५८ | १०६ २०१|३६५ ६५५ २. ५१०, २० ३८ | ७१ १३० २३५ लघु १ २ ५ १० | २० | ३८ | ७१ १३० | २३५ ४२० . ه ام अथ वरण मरकटी भरण विध ___ कवित छप्पै प्रथम परठ खट पंत, कोठ वरणां समांन कर । व्रत पंत यक दोय तीन, चव पंच सस्ट भर ॥ भेद पंत बे च्यार आठ भर दुगुण अंक भण। व्रत्ति भेद गुण बिहु, वरण वंकत चौथी वण ॥ वरण पंत अंक कर अरध धर, गुरु लघु पंकत भर गहर । गुरु वरण पंत जै अंक मिळ, भल मत पंकत त्रतीय भर ॥ ११२ इति वरण मरकटी। १११. विन्हैं-दोनों । हूंता-से । मुण-कहना। एक थळ-एक स्थान । पाख-कह । क्रीत-कीर्ति । अमळ-निर्मल । ११२. कोठ-कोष्ठक । व्रत-वृत। बिहुं-दो । गहर-गंभीरता। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] रघुवरजसप्रकास अथ प्रष्ट बरण मरकटी स्वरूप । वृत्ति १ २ ३ ४ ५ ६ भेद २ ४ ८ १६. ३२ ६४ १२८ मात्रा ३१२ ३६ ६६२४० ५७६१ ४. वरण २, ८ । २४ | ६४ | १६० ३८४ ८६६ गुरु। १ । ४ | १२ | ३२ / ८० १६२ ४४८ २५६ ३०७२ २०४८ १०२४ | १०२४ ४४८ लघु | १ ४ अथ सात मात्रा मरकटी स्वरूप। m ma9rx इति मात्रा वरण सोड़स करम संपूरण । ++ + + + + + + . . ernational www.jaineli Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ४१ अथ मात्रा वत्ति वरणण दूहा मत्त व्रत्तमें सुकव मुण, मात्र प्रमाण मुकाम । आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम ।।१ मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार । मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार ॥ २ छंद चंद्रायणौ * लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै। सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै॥ वरण मत सम नहीं असम पद जांणाजै। बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै ॥ ३ ___अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद पंच मत, गमक सत। सीत बर, राम रर ॥४ ___ छंद बाम छ मात्रा छ मत 'बांम' समरि स्यांम। झठ धंध, मन म बंध ॥५ १. मुकाम-स्थान । आखिरां-अक्षरोंमें । ठांम-स्थान । २. हिक-एक । प्रह-शेषनाग । मुणी-कही। ३. लेखजै-समझिये । ४. सत-सत्य । रर-राम शब्दकी ध्वनि । ५ छ-६, है। मत-मात्रा, मति । बाम-एक छंदका नाम, स्त्री। स्यांम-स्वामी, ईश्वर । धंध-सांसारिक प्रपञ्च । म-मत । रे मूर्ख ! तेरी बुद्धि स्त्रीमें है । तू सांसारिक झूठे प्रपञ्चोंमें अपने मनको मत फंसा और ईश्वरका स्मरण कर । * एक मात्रासे २४ मात्रा तकके पद्यको छंद कहते हैं। २४.मात्रासे अधिक को उपछंद तथा छंद और उपछंदके मेलको दंडक छंद कहते हैं। मतान्तर से ३२ मात्राके छन्दको भी दंडक कहते हैं। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] रघुवर जसप्रकास छंद कंता सात मात्रा कळ सत 'कंत', जिण जगणंत । रट रघुराय, थिर सुख थाय ॥ ६ हौ सात मत्तपद प्रत पड़े, सुगति छंद सौ था । आठ मत्त अंतह तगण, पगण छंद कहवाय ॥ ७ छंद सुगति भूप रघुबर, सझत धनु सर । जूझ मंडे, दैत दंडे ॥ ८ छंद पगरण प्रस्ट मात्रा राम महराज, करण जन काज । कोट रिव क्रत, देह दुतिवंत ॥ ६ छंद मधु-भार चव कळ जगांण, मधु भार जांण । भधि भूप, रवि कोट रूप || श्रीरामचंद्र, बिबुधेस बंद | तन दीघ तास, जपि क्रीत जास ॥ १० ६. कळ - मात्रा, संसार । सत-सात सत्य । जिण जगणंत - जिसके अन्त में जगण होता हो । जिसमें सारा जग विलीन होता हो । थिर - स्थिर । थाय - होता है । संसार में सत्य केवल ईश्वर है जिसमें ही जगत रामचन्द्रजीको रट जिससे तेरे सब सुख स्थिर हो जायें । ७. पद प्रत पड़े- प्रत्येक चरण में 1 विलीन होता | अतः हे मन ! तू ८. जूझ - युद्ध । मंडे - रचा। दैत- दैत्य | दंडे - दण्ड दिया । ६. अंत-क्रांति । दुतिवंत - दीप्तिमान् । १०. चव - चार, कह । कळ - मात्रा, दुःख । जगांण- जिसके अंत में जगरण हो, संसार । मधुभार - एक छंद का नाम ( मधु - नशा । भार - बोझ ) । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ४३ अथ नव मात्रा छंद ___ छंद रसकल नौ मात जैरै, गुरु अंतपै । रसकळ सूछंद, भज्जि कवसलैंद ॥११ अथ दस मात्रा छंद छंद दीपक मुण पाय दह मात, दीपक्क सुखदात । जीहा अढूजांम, संभार स्त्री राम ॥ १२ इग्यारे मात्रा छंद छंद रसिक चव लघु सिव मत चरण । वळ खट पय तिण वरण ॥ रसिक जिकण जग रटत । मुण रघुबर अघ मटत ॥ धनख धरण धुर धमळ । 'किसन' समर मुख कमळ ॥ १३ बिबुधेस-इंद्र। दीध-दिया। तास-उसने। क्रीत-कीर्ति । जास-जिसकी। हे मन ! तू इस संसारको दुःखका घर और सांसारिक नशेको बोझ समझ । देवताओंके स्वामी इन्द्रके वन्दनीय और करोड़ों सूर्योके समान तेजस्वी अयोध्याके स्वामी श्रीरामचंद्रजी, जिन्होंने तुझे यह शरीर दिया है उनका स्मरण एवं सदैव कीर्ति-गान कर । ११. नौ-नव, न। मात-मात्रा । जैर-जिसके। अंतपै-अंतमें। कवसलैंद-कौशलेन्द्र, श्री रामचंद्र। १२. पाय-चरण । दह-दस । जीहा-जिह्वा । अढूजाम-अष्टयाम । संभार-स्मरण कर । १३. चव-कह । सिव-ग्यारह । मत-मात्रा। वळ-फिर । तिण-उस । जिकण-जिसको। मटत-मिटते हैं। धनख धरण-धनुर्धारी । धुर-बोझ । धमळ-वहन करने वाला। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] रघुवरजसप्रकास छंद आभीर जै पय सिव मत जांण । अंत पयोधर आंण ॥ छंद आभीर अछेह । रट रघुनाथ अरेह ॥ हर जस गावण हार । धन मांनुख तन धार ॥१४ बारै मात्रा छंद - उद्धौर कळ भांण पाय कहत। उद्घोर जिण जगणंत ॥ रे किसन भजि सियरांम । धांनंख धर सुख धाम ॥१५ त्रयोदस मात्रा छंद छंद अनांम तेरै मत्त गुर लघु अंत । किव छंद अनांम कहंत ॥ रट सीता नायक राम । करौ चित तणा सिध काम ॥१६ १४. जै-जिस । पय-चरण। सिव-ग्यारह। पयोधर-मध्यगुरुकी चार मात्राका नाम ।।। अछेह-अखंड । अरेह-निष्कलंक । १५. भांण-(भानु) बारह । पाय-चरण । जगणंत-जिसके अंत में जगण हो । १६. किव-कवि । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास चतुरदस मात्रा छंद छंद हाकल 1 त्रै दुज गुर कळ चवद तठै जांणौ हाकळ छंद जठै 11 भव सागर तर रांम तै विण आंन उपाय तजौ ॥ १७ भजौ । छंद संपताल गुर अंत मत चवदह गिरौ । भल कंपताळी कवि भौ ॥ रघुनाथ जेण रिझावियौ 1 पद उरध तै कवि पाइयौ ॥ १८ पंचदस मात्रा छंद छंद जैकरी 11 कळ दह पंच जांण जैकरी | दुज मुरप्रिय तै गुरु धरी भज भज सीता राघव भई I दस सिर जेता अघ हर दई ॥ १६ छंद चौपई पद दस पंचह मत्त प्रमांण, जगण अंत चौपई सजांण । पायौ जै धन मानव पिंड, आखै राघव क्रीत अखंड ॥ २० १७. - तीन । दुज -४ मात्रा । तै विण- उसके बिना । प्रांत - अन्य । १८. भल-ठीक । रिभावियो - प्रसन्न किया । उरध-ऊर्ध्वं । पाइयौ प्राप्त किया । १६. दह-दस । दुज-४ मात्रा मुर-तीन प्रिय-दो मात्रा । जेता- विजयी । २०. पायौ - प्राप्त किया। जै-जो। पिंड शरीर । श्रखं- कह । क्रीत - कीर्ति । [ ४५ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] रघुवरजसप्रकास सौड़स मात्रा छंद दूहौ च्यार चतुकळ सोळमत, सगा अंत पय साज । सिंह बिलोकण छंद सौ, रट कीरत रघुराज ॥ २१ छंद सिंह विलोकरण धन धन हरि चाप निखंग धरी। धर सील सधर क्रत ऊंच करी ॥ करतार करां जग झोक जपै । जय क्रती जिकै खळ पाप खपै ॥ २२ छंद चरना कुलक सौ पदकूळ पय मत्त सोळे । अंतक सं निरभै हर अोळे ॥ जै कज हे किव राम जपीजै। जांण करंजुळ आयुख छीजै ॥ २३ छंद अरिल दौ लघु अंत पयं मत्त खोड़स। छंद अरिल्ल विना हर खोड़स ॥ केसव नाम विना अणभै कर। कौसळनंद जनं नरभै कर ॥ २४ २१. सौ-(सः) वह । २२. धन-धन्य । निखंग-(निषंग) तर्कश । सधर-द्रढ़, अटल । ऋत-कार्य। ऊंच-श्रेष्ठ । ___झोक-धन्य-धन्य । जयति-विजयी । जिकै-जिसके । खळ-दुष्ट । खपै-नाश होते हैं । २३. सौ-उसके। पदकूळ-चरनाकुल। अंतक-यमराज। हर-(हरि) ईश्वर । पोळ-प्रोट। जै-जिस । कज-लिये । करंजुळ-हाथका जल । प्रायुख-पायु। छीज-नष्ट होती है। २४. प्रणभै-निर्भय । जनं-भक्त। नरभै-निर्भय । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद पाद्धरी अख मत्त सोळ यक जगण अंत | पादरी छंद कवि जे राजाधिराज माराज ते ताज सीस आलम 'अरिहंत' भरत अग्रज जांनुकी कंत मतिवंत पढ़ंत ॥ राम | तमांम ॥ हेस । जेस ॥ तन स्यांम घणा घण रूप ताय । पट पीत बरण तड़िता प्रभाय ॥ आजांणबाहु अद्वितीय अंग | जि प ब धनु कटि निखंग ॥ सीय बांग अंग मुख अग्र सेख । बजरंग पाय सेवत बिसेख 11 इण रूप ध्यान निज वध ईस । कर भजन 'किसन' निस दिन कवीस ॥ २५ छंद बै प्रख्य गुरु लघु अनियंम सोळ मता गण । छंद बै आखरी सोय बिचच्छण ॥ दाटक रांम लाटक दंडण | हाटक कोट अधीस विहंडण || घणाघण प्रभाय - चमक । २५. श्रालम-संसार । अरिहंत - शत्रुघ्न । श्रहेस - लक्ष्मण । मतिवंत - बुद्धिमान् । ( घनाघन ) बादल । तड़िता - बिजली । प्राजांणबाहु -प्राजानुबाहु | पण - (परिण) हाथ । सेख - लक्ष्मण । बजरंग - हनुमान । पाय - चरण । २६. अनियंम - नियम नहीं । बिचच्छण - विचक्षरण | दाटक - समर्थ । श्रालाटक- दुष्ट । दंडण दंड देने वाला | हाटक- स्वर्ण । कोटगढ़ । श्रधीस-स्वामी । विहंडण - नष्ट करने वाला । [ ४७ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] रघुवरजसप्रकास आस्रय आय भभीखण आतुर । बेख ब्रवी जिण लंक सियाबर ।। एक घड़ी मझ दास उधारै । धांनुंखधार बडा वद धारै ।। सौ नित गाव किसन' सुभायक । नाथ अनाथ धणी रघुनायक ॥ २६ छंद रडु सप्तदस मात्रा दूहौ कीजै दूही प्रथम यक, सत्तरह मत्ता पाय । तिथ रिव तिथ सिव तिथ, सुपय रडु छंद कहाय ॥ २७ छंद ग्रंथां तरे चूडामरण नाम धारत कर सायक धनुख, त्रेभोयण सिरताज । भजियां जन कारक अभै, जै राघव माहराज ॥ राज भभीखण लाज राखण, सरणागत साधारण । धनंख सायक भुजांधारण, मह असुर खळ मारण ॥ जांनुकीवर मरम जांणंग, तेग अरेसां तायक। 'किसन' भज जन मान रखके, दांन अभै वरदायक ॥ २८ २६. प्रातुर-दुखी । बेख-देख । ब्रवी-इनायत की। मझ-मध्य । दास-भक्त। धांनुखधार धनुषधारी। वद-विरुद । सुभायक-सुरुचिकर । धणी-स्वामी । २७. तिथ-१५। रिव-१२ । सिव-११ । २८. भोयण-त्रिभुवन । साधारण-रक्षा करने वाला। मह-(महि) पृथ्वी। मरम-मर्म । जांणंग-जानने वाला। अरेसां-(अरि+ईस) शत्रु । तायक-नाश करने वाला। नोट-सप्तदस मात्राके रडु छंदका लक्षण जैसा ग्रंथकारने दिया है उसके अनुसार उदाहरण नहीं है, क्योंकि सत्रह मात्रा किसी भी चरणमें नहीं हैं। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ४६ अथ वीस मात्रा पवंगम छंद । ग्रंथांतरे चंद्रायणौ छंद दूहौ त्रे खट कळ लघु गुरु चरण, अंत मत्त इक वीस। चुरस छंद चंद्रायणी, आख सुजस अवधीस ॥ २६ छंद चंद्रायणौ स्यांम घटा तन रूप विराजत सांमळा । बेखौ दुपटा पीत छटा जिम बीजळा ॥ कट तट ओप निखंग कोट छिब कामकी। रूप अनुप सचूप यसी दुति रांमकी ॥ ३० तेवीस मात्रा छंद महादीप महदीप छंद तेरहै दस मत पय जांणौ । यण जोड़ सुजस रांम नूपत उर मझ्झ आणौ ।। जनपाळ स्री दयाळ सुलख जियगतजांमी । सरण सधार बिरधार हणूंमांन सांमी ।। ३१ छंद हीर त्रय खटकळ अंत रगण नाम छंद हीर है। सौ पसु कव धन्य पढ़त कीरत रघुबीर है ।। २६. ३-३ । खट-६ । चुरस-श्रेष्ठ ।। ३०. बेखौ-देखिए। छटा-दीप्ति। बीजळा-बिजली। कटतट-कटितल । प्रोप-शोभित । निखंग-तर्कश । सचूप-सुन्दर । यसी-ऐसी। दुति-द्युति । ३१. मझ-मध्य । जनपाळ-भक्तोंकी रक्षा करने वाले। जीयगतजमी-अन्तर्यामी। सरणसधार-शरण में आये हएकी रक्षा करने वाला। हणंमांन-हनुमान । सामी-स्वामी । ३२. पसु-पशु, मूर्ख । कव-कवि, विद्वान । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० रघुवरजसप्रकास धरण धनुस बांम पांण बांण दच्छ हाथ है। भंजण गढ़ लंक भूप गजण दस माथ है ॥ ३२ __ छंद रोला औयण मत चौवीस होय जिण रोळा आखत । भल कवि जोड़ग छंद मांझ, राघौ जस भाखत ॥ गैल औण रज परसत रीजै नारी गौतम । प्रतिपल 'किसना' रामचंद्र सौ भज पुरसोतम ॥ ३३ छंद बथुवा भव तेरह मत औरण, कोय उप दोहा भाखै । अख रोळा बथु ऊभै, त्रिविध आनंद बथु आखै । दस तेरह मत्त रुद्र रुद्र रुद्रह नव आवै। राय बिथु तिण नाम रुद्र दस अंन मत गावै॥ ३४ अथ छंद काव्य आद मत्त अगीयार, दुतीय पद तेर मात दख । काव्य छंद तिण कहत, अवध ईस्वर कीरत अख । जिग कोसिक रख जेण, असुर मारीच उडायो। मार सुबाह मदंध, प्रगट रघुबर जय पायौ ॥ ३५ ३२. बांम-बायां। पांण-(पाणि) हाथ । दच्छ-दाहिना। भंजण-तोड़ने वाला । लंक लंका। गंजण-पराजित करने वाला। दसमाथ-रावरण । ३३. प्रौयण-चरण । मत-मात्रा। पाखत-कहते हैं। भल-उत्तम, श्रेष्ठ। जोड़ग रचना करने वाला। मांझ-मध्य। राघौ-श्री रामचंद्र भगवान । गैल-रास्ता । प्रौण-चरण । ३४. भव-ग्यारह । भाखै-कहते हैं। रुद्र-ग्यारह । ३५. पाद-पादि। अगीयार-ग्यारह। मात-मात्रा। दख-कह। प्रख-कह, वर्णन कर। जिग-यज्ञ । कोसिक-विश्वामित्र। रख-रक्षा कर । जेण-जिस । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ रघुवरजसप्रकास दूहौ मत्त छंद 'किसनै' मुणै, निज कीरत रघुनंद। सुणौ सुकव अखं सकौ, अब मत्ता उप छंद ॥ ३६ ___ इति मात्रा छंद संपूरण अथ मात्रा उप छंद वरणण दही जिण पय मंदाकिण जनम, अघ नासिणी अपार । जिण भजतां अघ जाणरौ, विसमय किसुं विचार ॥ ३७ तत्रादि हरि गीत छंद चव आद खटकळ दुकळ गुरु यक पाय मत अठ वीसयं । हरि गीत सौ जिण अंत लघु सौ राम गीत मती सयं ॥ बपु स्यामसुंदर मेघ रुचि फबि तड़ित पीत पटबरं । सुज बांम चाप निखंग कटि तट दच्छ कर भ्रांमत्त सरं ॥ ३८ छंद राम गीत दसमाथ भंज समाथ भुज रघुनाथ दीन दयाळ । गुह ग्राह ग्रीधक बंध तै गत व्रवण भाल विसाळ ॥ सुग्रीव निरबळ राखि सरणे सबळ बाळ संघार । पह जोय 'किसना' नाम परचौ तोय गिरवर तार ॥ ३१ ३७. पय-चरण । मंदाकिण-(मंदाकिनी) गंगा। अध-पाप । नासिणी-नाश करने वाली, मिटाने वाली। विसमय-(विस्मय) आश्चर्य । किसू-कैसा । ३८. चव-कह । प्राद-(प्रादि) प्रथम। वपु-शरीर। रुचि-कांति। तड़ति-बिजली बांम–बायां। चाप-धनुष । निखंग-तर्कश। वच्छ-दक्षिण । ३६. दसमाथ-रावण । समाथ-समर्थ । गत (गति) मोक्ष। व्रवण-देने वाला। बाळ बालि नामक बंदर। परचौ-चमत्कार। तोय-पानी। गिरवर-पर्वत । नोट-हरि गीत और राम गीतमें यही अंतर है कि राम गीतमें अंतिम वर्ण ह्रस्व रहता है। परन्तु उपर्युक्त राम गीत में छब्बीस मात्रा ही हैं। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] रघुवरजसप्रकास छंद सवैइया अंत भगण इकतीस मत्त पद छैस सवैयौ छाजत । लख कारज तज समर रांम पद बीजां भजतौ मुढ़ न लाजत ॥ संत अनेक उधार सियाबर पै सरणा अनाथां पाळण | गढ़वा जै पढ़ वीज सची गथ जनमां तरणा दुख सौ जाळण ॥ ४० दूह पद प्रत मत गुणतीस पढ़ि, अंत गुरु लघु होय । राघव जस जिण मझ रटां, कहै मरहट्टा सोय ॥ ४१ छंद मरहट्टा सीता सीरांगी वेद वखांणी, सारंगपांगी सांग | मी न मघवांगी बळ ब्रहमांगी, नहिं रुद्रांणी नांम ॥ ४२ जे अंतर जांमी वार नमांमी, स्वांमी जग साधार । जोड़ी चिरजीवं पतनी पीयं, सुज सस दीवं सार ॥ ४३ दूहौ सात चतुकळ चरण मैं, एक होय गुरु अंत | चतुर पदी कोइक चवै, रुचिरा कोय रटंत ॥ ४४ छंद चतुरपदी तथा रुचिरा दस माथ विहंडण सुर खंडण, राघव भूप अरोड़ा । पाथर रच पाजं समुद्र सकाजं, तै गड हाटक तोड़ा ॥ ४०. छाजत - शोभा देता है । लख-लाखों । बीजां- दूसरोंको । ४१. पद-चरण । प्रत प्रति । सोय- वह | ४२. सारंगपांणी - ( सारंगपारिग) विष्ण ु, श्रीरामचंद्र | सांम - (स्वामी) पति । मीढ़ - समता । मघवांणी - इन्द्राणी | ब्रहमांणी - ब्रह्माणी । रुद्रांणी-पार्वती, सती । ४३. साधार-रक्षक । पतनी-पत्नी । पीयं पति । सस - शशि, चंद्रमा । दीवं सूर्य । ४४. कोइक - कोई । चवै - कहते हैं । रटंत - कहते हैं । ४५ विहंडण - नाश करने वाला । अरोड़ा - जबरदस्त । हाटक-स्वर्ण । रिव - (रवि) सूर्य । पाथर - पत्थर । पाजं - सेतु पुल । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ५३ सीताचौं स्वांमी अंतरजांमी रिव कुळ मंडण राजा। जिण सुजस जपीजै लभ तन लीजै कीजै सुक्रत काजा ॥ ४५ छंद धत्ता सत दुजबर ठाणौ त्रय कळ आणौ कहि धत्ता यक तीस कळ । रटजै मझ राघौ दुख अघ दाघौ फिर तन धारण पाय फळ ।। द्रुम सात बिभेदण क्रमगत छेदण तै जस कह भव सिंधु तर । सुत स्री कौसल्या तार अहल्या, करुणानिध सौ याद कर ॥ ४६ ग्रंथांतरे धतानंद अन्य विध दस सात मात्रा पर विस्रांम अंत लघु सतरै मात्रा सौ धतानंद छंद । छंद त्रिभंगी दस अठ अठ छामं चव विस्रांमं छंद सुनांमं तिरभंगी। रघुनाथ समथ्थं हणि दसमथ्थं रखि यळ गथ्थं रिण संगी। ससिबदनी सीता कंत पुनीता दास अभीता कुळदीता। 'किसना' जिण कीता गुण मुख गीता प्रगट पुणीता जगजीता ॥ ४७ खट सदस्य छंद लछण दूही तिरभंगी १ पदमावती २ दंडकळ ३ लीलावती ४ । दुमिळा ५ जनहर ६ छंद दख झै सम छहं अखंत ॥ ४८ ४५. मंडण-प्राभूषण । लभ-लाभ । काजा-कार्य। ४६. सत-सात । दुजबर-चार मात्राका नाम। ठाणौ-रखो। त्रय-तीन । मझ-मध्य । दाघौ-जलायो। बिभेदण-भेदन करने वाला। क्रमगत-कर्मगति । छेदण-नाश करने वाला। भव-संसार। ४७. छाम-छ मात्रा । चव-कह । समथ्थं-समर्थ । हणि-मार कर । दसमथ्थं-रावण । रखि-रख कर । यळ-पृथ्वी। गथ्थं-गाथा, वृत्तान्त । ससिबदनी-चन्द्रमुखी। कंतपति । पुनीता-पवित्र । दास-भक्त । अभीता-निर्भय। कुळदीता-(कुल+आदित्य) सूर्यवंशी। कीता-कीति । गीता-गाया। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] रघुवरजसप्रकास छंद पदमावती दस वसु खट आठ इक पद पाठ सौ पदमावती छंद सही । सौ सुकव सुभागी हरि अनुरागी मत लागी जस रांम मही ॥ सीता वर सुंदर मह गुण मंदर पाय पुरंदर दास पड़े । चव जै जस चारण 'किसन' सकारण धारण सौ यक एक घड़े ॥ ४६ छंद दंडकल दस अठ चवदेसं दंडकळसं मत्त बतेसं जेण पयं । कह जे मझ कीरत पावत स्रीपत लाभ सधारण देह लयं ॥ अवधेस अभंग, जीपण जंग कोटि अनंगं धारी कळ । खर दूखर खंडण बाळ विहंडण दाप निवारण पाप दळ ॥ ५० छंद दुमिला दस वसुख ठांणौ फिर वसु गौ दुर्मिळा ठांणौ करता । दसरथ सुत नूपवर कळख खयंकर, सौ भव दुध तिर निज संता ॥ रवि कौट प्रकासं जपि मुख जासं, देश भेपद निज दासं । निस दिन पत्रास, हरखि हुलास, जस प्रतिसासं जपि जासं ॥ ५१ । ४६. वसु-आठ । खट प्राठं चौदह । सौ - वह मत-मति । मह - महि, महान् । पाय-पैर । पलड़े में । सुकव - सुकवि । सुभागी - भाग्यशाली । पुरंदर - इंद्र । दास-भक्त । धड़े-तराजू के ५०. चवदेसं - चवदह । मत्त मात्रा । बतेसं - बत्तीस । पय-चरण । मझ - ( मध्य में ) । अभंग - वीर । जीपण - जीतने वाला । जंग-युद्ध । कळं-कांति । खर दूखर - खर दूषण । खंडण-मारने वाला । बाळ-बालि । विहंडण - नष्ट करने वाला । दाप- दर्प, श्रभिमान । दळ - समूह | ५१. वसुखट - चौदह । ठांणौ- स्थापित करो । प्रांणौ-लाभो । करणंता-जिसके अंत में कर (SS) हो । कळख - कलुष । खयंकर - नष्ट करने वाला । समुद्र । प्रभेपद- निर्भयता । पत्रासं पत्ते खाकर । जस-यश प्रत्येक श्वास | भव-संसार । दध - ( उदधि) प्रतिसास - ( श्वास प्रतिश्वास) Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद लीलावती गुरु लघु विण नियमं तीस बि मत्ता । लीलावती गुरु अंत कहै। जौ रघुबर गावै सब सुख पावै , निभय जिकां जम ताप नहै। सर गिरवर तारे पदम अठारै , सेन उतारे जगत सखै । भिड़ रांवरण भंजे गढ़हिम गंजे , अमरां रंजे ब्रहम अखै । ५२ छंद जनहरण सब लघु पय पय धरि पछ यक गुरु करि , जळहर कळ सम लछण धरै । सुज उर दुति सरवर तिम कळ तरवर , सिध रघुवर सुजस बरै । हर अकरण करा सरणा असरण हरी, तरण अतर भव जळधि तिको। कट कट अघ दुघट विकट्ट थट अ घट , झट झट रट रट 'किसन' जिको । ५३ छंद वरवीर चव कळ उरोज थळ च्यार वोज , वरवीर छंद कह यम कव्यद । ५२. विण-विना। मत्ता-मात्रा। नहै-नष्ट होते हैं। सर-समुद्र। सखै-साक्षी देता है। भिड़-योद्धा। भंजे-नाश किया। गढ़हिम-लंका। गंजे-जीत लिया। रंजे-प्रसन्न किया। ब्रहम-ब्रह्मा। प्रखं-कहता है। ५३. पय-चरण । पछ-पश्चात् । जळहर-छंदका नाम । विकट्ट-भयंकर। थट-समूह । अणघट-जो घटित न हो। ५४, कव्यंद-कवींद्र, महाकवि । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] रघुवरजसप्रकास जस वा जास मधि चित हुलास, अख पाप नास रघुवंस दसरथ कुमार, धनुबां यंद | जुध असुर जार सरणा जांनकीनाथ गिरतार सौ है समाथ भव सिंधु धार " सधार । पाथ 9 सार । ५४ सोरठौ. वीस मत्त विसरांम, दुवै सतर गुरु अंत दस । तीस सात मत तांम, जिण पद छंद समूलगा ।। ५५ दूहौ आठ पंच कळ पाय यक, आख फेर गुरु अंत । नांम जेण पिंगळ निपुण, उप भूलणा अखंत ॥ ५६ छंद भूलणा वेद चत्र भेद खट तरक नव व्याकरण वळ खट भाख जीहा वखां । भांत पौराण दस आठ पिंगळ भरथ, उगत जुगतां तरणा भेदां ॥ राग खट तीस धुनि व्यंग भूखण सुरस पात पद | जिकै बिण समझ चंडूल पंखी जिंही जे न रघुनाथचौ नांम जांणै ॥ ५७ ५४. मधि - मध्य | यंद-इन्द्र । असुर राक्षस । जार-नष्ट कर। पाथ-जल । समाथ - समर्थ । भव-संसार | सिंधु- समुद्र | ५६. पाय - चरण । यक - एक । प्राख - कह । श्रखंत - कहते हैं । ५७. वळं फिर । भाख-भाषा । जीहा-जिह्वा । पौरांण-पुराण । उगत - उक्ति । जुगतांयुक्तियों । धुनि - (सं०ध्वनि) वह निबंध या काव्य जिसमें शब्द और उसके साक्षात् अर्थसे व्यंग में विशेषता या चमत्कार हो । ब्यंग - (सं०व्यंग्य) व्यंजना वृत्तिसे प्रकट शब्दका गूढ़ार्थ । भूखण- अलंकार । विण-समझ-मूर्ख, प्रज्ञानी । चंडूळ - एक प्रकारको खाकी रंगकी छोटी चिड़िया जो वृक्षों पर बहुत सुंदर घोंसला बनाती है और बहुत ही मधुर बोलती है। पंखी-पक्षी । जिही- जैसे । जे जो । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद उप भूलरणा " सीस दीधौ जिको नांम रघूनाथसं नैा दीघा जिकt निरख माधव नरा | जीभ दीधी जिकै क्रीत स्त्रीवर जप होठ मुसुकाय रिझवाय पातक हरा । हाथ दीघा जिकौ जोड़ आगळ हरी " " उदर परसाद चरणा- अम्रत आचरा । पाय दीधा जिकै 'किसन' पर - दछ फिर नाच राघव " गै सफळ कर तन नरा ॥ ५८ [ ५७ छंद मदन हरा लछण दूह अठ दुजबर खटकळ सुयक, एक हार गण अंत । मदन हरा सौ छंद मुणि, राघव सुजस रटंत ॥ ५६ छंद मदन हरा " रज पाय परस जिरा नार रिखी तज देह सिला छिन मांह तरी, रट सौ हरी । दिन मांन कदन नूप जनक सदन धनुभंजी जग सीय बरी, क्रत उद्धरी । " वदै ५८. दीधौ - दिया । दीधा - दिये । नरा-नर, मनुष्य । दीधी-दी । स्त्रीवर - ( श्रीवर) विष्णु । पातक- पाप । हरा- मिटाने वाला । श्रागळ-प्रगाड़ी । पर-दछ - प्रदक्षिणा । श्रागं - अगाड़ी । नोट-छंद - शास्त्र के अनुसार भूलरगा (ना) छंदके लक्षण में १०, १०, १० और ७ पर विश्रामसे कुल ३७ मात्राएं प्रत्येक चरण के अंत में यगरण सहित होती हैं। यहां पर ग्रंथकर्ता के दिए झूलरणा छंदके लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं । इसी प्रकार उपभूलगाके भी लक्षण स्पष्ट नहीं हैं । मतांतरसे आदि गुरुकी चार मात्राका ५६. प्रठ-प्राठ । दुजबर-चार मात्राका नाम । नाम ( 511 ) । हार - एक दीर्घका नाम ( 5 ) | ६०. रज - धूलि । पाय - चरण । कदन - नाश। सदन - भवन । ऋत - ( क्रतु) यज्ञ । उद्धकरीउद्धार किया । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] रघुवरजसप्रकास जांनसुकर सर जिण अतुल पराक्रम वेद खै, 'किसनेस' सुकव दख सौ सिं... भाखै, रदि चाप सुधर, सखै दिव " भखै ॥ ६० सिस सूर निस भव कंज दूहौ मत चाळीस | कर दुजवर नव रगण हिक, चव पै कवी खंजा छंद सौ, मुण कीरत लिछमीस ॥ ६१ 1 छंद खंज 1 रखण जन सरण रघुराज कौसळ कंवर, धनुख सर धरण कर सकळ सुख धांम है । भरत्थ अरिहा लछण भ्रात अग्रज सुभग महा, मन हरण घण रूप तन स्यांम है सरल तन सहज दन मुकत दायक सुमत, गजगमणी जांनकी भांम गुण ग्रांम है । रात दिन हुलस मन सुजस 'किसनेस' रट रखण जन मांग तरुकांम रघु रांम है ॥ ६२ " दूहौ बार प्रथम तेरह दुतीय, रगण अंत विस्रांम | मांझ चरण पचीस मत्त, निज गगनागा नांम ॥ ६३ ६०. श्राजांनसुकर - आजानबाहु । सर - बाण, तीर । चाप-धनुष । सिस - ( शशि ) चन्द्रमा । सूर-सूर्य । सखै - साक्षी देते हैं । दख-कह । निस दिव-रात दिन । रवि-हृदय । ६१. लिछमीस - (लक्ष्मी + ईश ) विष्णु, श्रीरामचन्द्र । ६२. भरत्थ-भरत । श्ररिहा - शत्रुघ्न । लछण- लक्ष्मण । घण - ( घन) बादल । मुक्त-मुक्ति, मोक्ष | गजगमणी - गजगामिनी । भांग - भामिनी । गुण ग्रांम - गुणोंका समूह । जनभक्त । मांम-प्रतिष्ठा, मर्यादा। तरुकांम - कल्प वृक्ष । ६३. बार-बारह | मांझ-मध्य में । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ५६ छंद गगनागा खळ दळ समर खपावत किव जण गावत कीरती। सीता वाहर सझतां वसुधा जाहर वीरती ॥ 'किसना' निस दिन जस कर गुणियण जैनं गावजै । राघव राजा सौ रट प्रगट उंच पद पावजै ॥ ६४ दही एक छकळ फिर च्यार कळ, पांच होय गुरु अंत । अठावीस कळ औण प्रत, द्रुपदी छंद दखंत ॥ ६५ छंद द्रपदी जनक सुता मन रंजण गंजण, असुर अगंजण आहवं । मैं सरणागत कदम सदा मद, मी लजा रख माहवं ॥ दीनानाथ अभै वरदाता, त्राता सेवग तारणं । तौ निज पायनि मौ दसरथ तण, घण पापां सिंघारणं ॥ ६६ दस दस पर विसरांम चव, मत चाळीस हुवंत । गुरु लघु अखिर नियम नहिं, उद्धत छंद अखंत ॥ ६७ छंद उद्धत दळ समत खळ दाह यभ बाज अणथाह , गह रचण गजगाह नरनाह रघुनाथ । ६४. खपावत-नाश करते हैं । कीरती-कीर्ति यश । वाहर-रक्षा । वसुधा-पृथ्वी। जाहर जाहिर, प्रसिद्ध । वीरती-वीरत्व, शौर्य । गुणियण-कवि । जैनू-जिसको। ६५. अठावीस-अट्ठाईस । औण-चरण । प्रत-प्रति । दखत-कहते हैं। ६६. रंजण-प्रसन्न करने वाला । गंजण-नाश करने वाला। अगंजण-वह जो जीता न जा सके, अजयी । पाहवं-युद्ध । घण-बहुत । सिंघारणं-संहार करने वाला। ६७. चव-कह । हुवंत-होते हैं, होती हैं । प्रखंत-कहते हैं। ६८. यभ-इभ, हाथी । बाज-घोड़ा । अणथाह-अपार । गह-गंभीर, महान। गजगाह-युद्ध । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] रघुवरजसप्रकास सट पटत भर सेस अति चकित अरेस , दिन धं धळ दिनेस थरराहइ अर साथ । निहसंत नीसांण ह वै बाज हींसांण , सझ काज घमसांण अपांण भड़ ओघ । नप दासरथनंद सौ कारुणासिंध , जस राच राजिंद मुख वाच आमोघ ॥ ६८ दूही दुजबर नव ता पछ रगण, करण ता पछ होय । अरध फेर गाथा अधर, माळा कहजै सोय ॥ ६६ टुंद माला अवधपति अनम सुज, तेज रवि कौट सम , सियपति सरम रख लख जनां आधार है आखां । नप राघव जगनायक लायक , भूपाळ लेण जस लाखां ॥ ७० दही सात टगण फिर त्रिकळ यक,अंत रगण इक आंण । मत सैंताळी पायमें, पंच वदन सौ जाण ॥ ७१ ६८. अरेस-(अरीश) शत्रु । धूंधळ-धूलि आच्छादित, धूमिल, धुंधला। दिनेस सूर्य । थरराहइ-कंपायमान होते हैं। पर (अरि)-शत्रु । साथ-सेना, दल, समूह । निहसंत-बजते हैं । नीसांण-नगाड़ा। व्है-होता है, होती है। हींसाण-हिनहिनाहट । घमसांण-युद्ध । अपांण-शक्तिशाली। प्रोध-समूह । सौ-वह । कारुणासिंध-(करुणा सिंधु) दयासागर । प्रामोघ (अमोघ)-प्रव्यर्थ, अचूक। ६६. करण-दो दीर्घका नाम 55। सोय-वह। ७०. रवि-सूर्य । कौट-करोड़ । लख-लाखों। आखां-कहता हूँ। ७१. पाय-चरण । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६१ रघुवरजसप्रकास छंद पंच-वदन रघुवर महाराज गाव नहचै यक पळ न लाव , रंक करै सोई राव सुद्ध भाव सांम रे। दीनबंधु देवदेव भाखत स्र ति भ्रहम भेव , जेता जग सौ अजेव गहर गरुड़ गांम रे । जळद नील देह जेह तड़िता पट पीत तेह , गोव्यंद सत कत गेह सीत नेह संजणं । राखण मिथळेसराज लाखवात अघट लाज , करि अमाप सबळ करग भरग चाप भंजणं ।। ७२ दही झै मात्रा उपछंद, कहिया मत माफक 'किसन'। नहचै सुण रघुनंद, निज सेवगां निवाजसी ॥ ७३ इति मात्रा उपछंद संपूरण। अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण . दहौ मरण जनमचौ सळ मिटण, सौ सलभ व्है संभार । जंम मौ सळ भंजै जिसौ, कौसळ राजकंवार ।। ७४ नर तन पावै जे नरा, गुण गावै गोव्यंद। जनम सफळ थावै जिकै, फिर नावै जम फंद॥ ७५ ७२. राव-राजा। सांम-स्वामी । भ्रहम-ब्रह्मा । भेव-भेद । जेता-जीतने वाला । अजेव (अजय)-जो किसीसे जीता न जा सके । गहर-गंभीर । जळद-बादल । जेह-जिस । तड़िता-बिजली। तेह-उस। गोव्यंद-गोविन्द । सीत-सीता, जानकी। नेह-स्नेह, प्रेम । संजणं-साधन करने वाला। करग-हाथ । भरग-भगु मुनि, परशुराम । चाप-धनुष । भंजणं-भजन करने वाला। ७३. अ-ये। मत-मति, बुद्धि । माफक-माफिक । निवाजसी-प्रसन्न होंगे। ७४. चौ-का । सळ-कष्ट । सलभ-सुलभ । संभार-स्मरण कर। मौ-मेरा । जिसौ-जैसा । ७५. गण-यश, कीर्ति । गोब्यंद-गोविंद । फंद-जाल, बंधन । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] रघवरजसप्रकास अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण । तत्रादि दोहा छंद दूही तेर मत्त पद प्रथम त्रय, दुव चव ग्यारह देख । अख सम पूरब उत्तर अध, लछण दूहा लेख ॥ ७६ अन्य लछण दूहा सुज उलटायां सोरठौ, सांकलियौ आदत । मध्य मेळ दूहौ मिळे, तव तं बेरौ तंत ॥ ७७ अजामेळ पर प्राविया, साठ सहंस जम साज।। नांम लियां हिक नारियण, भड़ सोह छूटा भाज ॥ ७८ __ सोरठौ प्रगट ऊब्हाणे पाय, आयौ सोह जाणै यळा । सिंधुरतणी सिहाय, कीधी धरणीधर ‘किसन' ॥ ७६ सांकलियौ हौ। मत जकड़ी भव माग, मकड़ी जाळा जेम मन । हर द्रढ़ कर पकड़ी हिया, लकड़ी हरी पळ लाग ॥ ८० ७६. तेर-तेरह । मत्त-मात्रा। त्रय-तृतीय । दुव-दूसरा द्वितीय। चव-चतुर्थ । लछण-लक्षण। ७७. मध्य मेळ दूहौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबंदी द्वितीय और तृतीय चरणसे की जाती है। इस दोहा छंदका दूसरा नाम तूंबेरा (तूंबेरी) भी है। तव-कह । तंत-उसे । ७८. सहस-सहस्र । जम-यम, यमदूत । साज-सुसज्जित होकर । हिक-एक । नारियण नारायण । भड़-योद्धा । सोह-सब । भाज-भग कर । ७९. ऊब्हाण-नंगे पैर । यळा-इला, पृथ्वी, संसार । सिंधर-गज, हाथी। तणी-की। सिहाय-सहाय, सहायता । कीधी-की। धरणीधर-ईश्वर । ८०. सांकळियौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबन्दी प्रथम चरण और चतुर्थ चरणसे की जाती है। इस दुहा (दोहा) छंदका दूसरा नाम अन्तमेळ भी है। कहीं-कहीं इसे बड़ा दूहा भी कहा गया है। मत-मति, बुद्धि । जकड़ी-बंधन में की गई। भव-संसार। मकड़ी-(सं०मर्कटक) पाठ प्रांखों और पाठ पैरों वाला एक कीड़ा जो दीवारों आदि पर अपना जाल बनाने में प्रसिद्ध है। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ६३ दूहौ तूंबेरौ मेवा तजिया महमहण, दुरजोधनरा देख । केळा छोत विसेख, जाय बिदुर घर जी म्हिया ॥८१ सौ दूहा तेईस सुज, नाम सहत निरधार । जोड़ देखाऊ जुजुवा, सुणौ राम जस सार ॥ ८२ कवित छप्पै भ्रमर १ भ्रामरौ २ सरभ ३ सैन ४ , मंडुक ५ मरकट ६ सख । करभं ७ नरह ८ सुमराळ ६ , अवर मदकळ १० पयधर ११ अख ॥ चळ १२ वानर १३ कह त्रकळ १४ , मच्छर १५ कच्छप १६ सादूळह । अहिवर १८ बाघ १६ बिडाळ २० , सुन कर २१ ऊदर २२ सप २३ थूळहा ॥ तेईस नाम दूहां तणै , वरणे ‘किसन' बखांणियौ । यळ ब्रथ जनम खोयौ अवस , ज्यां हरि नाम न जांणियौ ॥ ८३ उदाहरण दही भमर अखिर छाईस भण, चव लघु गुरु बाईस । यक गुर घट बे लघु बधै, सौ सौ नाम कवीस ॥ ८४ ८१. महमहण-विष्णु, ईश्वर । छोत-छिलका । विसेख-विशेष । जोम्हिया-भोजन किया। ५२. सौ-वे । जोड़-रच कर । जूजुवा-पृथक-पृथक । ८३. वृथ-व्यर्थ । अवस-अवश्य । ८४. अखिर-अक्षर । छाईस-छब्बीस । भण-कह । चव-चार । यक-एक । बे-द्व, दो। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] रघुवरजसप्रकास अथ भ्रमर नाम अख्यर २६ गुरु २२ लघु ४ दूही ना कीज्यौ सैणा नरां, काचौ बीजौ काम । राखै लाजा संतरी, राजा साचौं राम ॥ ८५ अथ भ्रांमर नाम अख्यर २७ गुरु २१ लघु ६ कोड़ा पापां कीजतां, कोपै धू की नास । जीहा राघौ जौ जपै, तौ नाही तिल त्रास ॥ ८६ __ अथ नाम सरभ अक्षर २८ गुरु २० लघु ८ दूही मांनौ वारंवार मैं, देखे नां नर देह । गायां स्री राघौ गुणां, अ पायां फळ एह ॥ ८७ __ अथ नाम सैन अख्यर २६ गुरु १६ लघु १० भौळा प्रांणी राम भज, तं तज झौड़ तमाम । दीहा छेल्है देख रे, कैसे हंता काम ॥ ८८ अथ मंडूक नाम अख्यर ३० गुरु १८ लघु १२ जाई बेटी जानकी, रांम जमाई रंज । भाग बडाई जनकरी, गाई बेद अगंज ॥ ८६ ८५. अख्यर-अक्षर । सैणा-सज्जन । काचौ-कच्चा। बीजौ-दूसरा। लाजा-लज्जा । साचौ-सत्य । ८६. तिल-किंचित । त्रास-भय । राघौ-श्री रामचन्द्रजी । ८८. झोड़-कलह, प्रपंच । दोहा-दिन । छल्है-अन्तिम। ८६. जमाई-दामाद । रंज-प्रसन्न, खुश । प्रगंज-न मिटने वाला। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघवरजसप्रकास [ ६५ अथ मरकट नाम अख्य र ३१ गुरु १७ लघु १४ हर मत छाडै रै हिया, लिया चहै जौ लाह । दिल साचै तेडौ दियां, नेडो लिछमी नाह ॥ ६० अथ करभ नाम अख्यर ३२ गुरु १६ लघु १६ दूहो मानवियां छाडौ मती, कर गाढ़ौ भज टेक । जाडौ दळ फिरियां जमां, आडौ राघव अक ॥ ६१ अथ नर नाम __ अख्यर ३३ गुरु १५ लघु १८ रोम रोममैं रम रियो, देख अखंड दईव ।। चोरी जिणसं नह चले, जाबक भोळा जीव ॥ ६२ अथ मराळ नाम अख्यर ३४ गुरु १४ लघु २० दहौ मूरख जाचक जाच मत, जाच जाच जगदीस । । के रंकां राजा करै, एक पलक मझ ईस ।। ६३ अथ मदकळ नाम अख्यर ३५ गुरु १३ लघु २२ दहो भख पुंहचावै भूधरौ, अजगर रै अनय्यास । किम भूलै संतां 'किसन', संभरतां सुख रास ॥ ६४ ६०. हर-इच्छा । छाडै-त्यागे । लाह-लाभ । तेडी-बुलावा । नेडी-निकट । लिछमी-लक्ष्मी। नाह-नाथ, पति । ६१. मानथियां-मनुष्यों । छाडौ-त्यागो, छोडो । गाढ़ी-दृढ़, मजबूत । जाडौ-घना, अधिक । पाडौ-रक्षक। ६२. दईव-देव, ईश्वर । जाबक-जंबुक, मूर्ख । भोळा-अज्ञानी। ६३. जात्रक-याचक । रंकां-गरीबों । मझ-मध्य, में। ईस-ईश्वर । ६४. भख-भोजन । -भूधरौ-भूधर, ईश्वर । अनय्यास-अनायास, बिनाश्रम । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] रघुवरजसप्रकास अथ पयोधर नांम अख्यर ३६ गुरु १२ लघु २४ दूहौ मन दुख दाधा डौल मत, साधा जग तज साव । मानव भव भीता मिटण, गुण सीतावर गाव ॥ ६५ अथ चळ नांम प्रख्यर ३७ गुरु ११ लघु २६ दूहौ मत बहरौ कर मांन । सह रांचै जन सादियां, कीड़ी पग नेवर झणक, भणक सुखै भगवांन ॥ ६६ अथ वांनर नांम श्रख्यर ३८ गुरु १० लघु २८ दूहौ रै चित व्रत द्रढ़ प्रेम रख, मूरत स्यांम मकार । मेल्ह सुरत नट वांस मैं, प्रगट वरत व्है पार ॥ ६७ अथ त्रिकळ नांम प्रख्यर ३६ गुरु 8 लघु ३० दूहौ केसव भजतौ हरख कर, मत कर आळस मूढ़ । जिण दीधौ मनखा जनम, गरभ कौल कर गूढ़ ॥ ६८ अथ मच्छ नांम प्रख्यर ४० गुरु ८ लघु ३२ दू चित जे मत व्है चळ विचळ, भज भज नहचळ भाय । कूक करै जि दिन कुटंब, स्त्रीवर करै सिहाय ॥ ६६ ५. दाधा-दग्ध, जला हुआ । साव-स्वाद । भव-संसार । भीता भीति, डर, भय । ६६. सादियां - पुकार करने पर । बहरौ - बहरा । नेवर - पैरोंका आभूषण विशेष । झणक ध्वनि । भणक - आवाज, शब्द । ७. मूरत - मूर्ति । स्यांम - श्याम, श्रीकृष्ण । मकार - मध्य में । सुरत- ध्यान । वरत- वरत्र, चमड़े का बना मोटा रस्सा | ६८. मूढ़ - मूर्ख । दीधौ - दिया । मनखा जनम - मनुष्य जन्म । कौल-वादा, प्ररण। गूढ़-गुप्त । ६६. चळ विचळ - डांवाडोल । कूक-पुकार । स्त्रीवर - श्रीवर, विष्णु । सिहाय सहाय । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ६७ अथ कछप नाम अख्यर ४१ गुरु ७ लघु ३४ मिळे न पुळ पुळ तन मनख,धनख-धरण चित धार । पात झडै तरवर पहव, चढ़े न फेर विचार ॥१०० अथ सादूळ नाम अख्यर ४२ गुरु ६ लघु ३६ दूहौ धन धन कुळ पित मात धन, नर अथवा धन नार । रघुबर जस अह-निस स्टै, जे धन अवन मझार ॥ १०१ अथ अहिबर नाम अख्यर ४३ गुरु ५ लघु ३८ दूहौ हर हर जप अनम कर हर, परहर अहमत पोच । व्यापक नर हर जगत विच, अंतर गत आलोच ॥ १०२ __ अथ बाघ नाम अख्य र ४४ गुरु ४ लघु ४० दूही अमरत दध नह तिय अधर, विधु यिमरत नवखाण । के जन अजरामर करण, जस हर यिमरत जाण ॥ १०३ १००. पुळ पुळ-बार बार । तन-शरीर । मनख-मनुष्य । धनख-धरण-धनुषधारी, श्री रामचंद्र । पात-पत्ता, पान । पहव-प्रथम । १०१. धन धन-धन्य धन्य । पित-पिता। मात-माता । नार-नारी, स्त्री। अह-निस रात दिन । अवन-अवनी, भूमि । मझार-मध्यमें । १०३. दध-उदधि, समुद्र । तिय-स्त्री । अधर-पोष्ठ । विधु-चंद्र, चंद्रमा । यिमरत-अमृत । अजरामर-वह जो न वृद्ध हो और न मृत्युको प्राप्त हो। हर-हरि, विष्ण, ईश्वर । जांण-समझ। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] रघुवरजसप्रकास अथ विडाळ नांम अक्षर ४५ गुरु ३ लघु ४२ जिण हर सरजत नर जनम, सुजदी रसण समाथ । कर झटपट कवियण 'किसन', नितप्रत रट रघुनाथ ॥१०४ अथ सुनक नाम अख्यर ४६ गुरु २ लघु ४४ दूहौ परगट कट तट तड़त पट, सरस सघण तन स्यांम । गह भर समपण कनक गढ़, रहचण दस-सिर राम ॥१०५ अथ ऊंदर नाम अख्यर ४७ गुरु १ लघु ४६ राघव रट रट हरख कर, मट मट अघ दळ महत । जनम मरण भय हरण जन, कज भव हर रिख कहत ।। १०६ अथ सरप नाम अख्यर ४८ गुरु ० लघु ४८ हर रिण दस-सिर विजय हित, धर निज कर सर धनक। पढ़त 'किसन' किव सरण पय, जय रघुबर जग जनक ॥ १०७ १०४. 'सरजत-रचता है : रसण-जिह्वा, जीभ । समाथ-समर्थ । झटपट-शीघ्र । कवियण कविजन, कवि । नित प्रत-नित्य प्रति, सदैव । १०५. परगट-प्रकट । कट-कटि, कमर । तड़त-तड़िता, बिजली। पट-वस्त्र। कनक गढ़ लंका। रहचण-नाश करने वाला। दस सिर-दशानन । १०६. मट-मिटते हैं। अघ-पाप। दळ-समूह । महत-महान । कज-ब्रह्मा । भव महादेव । हर-हरि, विष्णु । रिख-ऋषि । कहत-कहते हैं । १०७. कर-हाथ । सर-बार । धनक-धनुष । जग-संसार । जनक-पिता । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ६६ अथ चरणा दूहा विचार पहल तृतीय पद सोळ मत, दुव चव ग्यारह दाख । चरणा दूहा चुरस कर, भल किव तिणनूं भाख ॥ १०८ उदाहरण चरणा दूहौ दट अणघट अध विकट दळांरौ, राजा सांचौ राम । बळ सौ है दिन जन निबळांरी, नित जापौ तै नाम ॥१०६ पंचा दूहौ लछरण पहले तीजै बार पढ़, उभये वेद इग्यार । पंचा दूहा सौ पुणे, सुकव जिके मतसार ॥ ११० उदाहरण रांम भजनसं राता, महत भाग जे मांन । ज्यां सारीखौ जगमें, उत्तम न जाणै आंन ॥ १११ अथ नंदा दूहा तथा बरवै छंद ___ मोहणी लछण दूहौ धुर तीजै मत बार धर, सुज बे चौथे सात । नंदा दोहा मोहणी, बरवै छंद कहात ॥ ११२ १०८. सोळ-सोलह । मत-मात्रा। दुव-दूसरा । चव-चतुर्थ । दाख-कह । चुरस-रीति, अनुसार, नियमानुसार । भल-श्रेष्ठ । किव-कवि । तिण-उस । भाख-कह । १०६. दट-दुष्ट। अणघट-अपार। अघ-पाप। सांचौ-सच्चा । सौ-वह। जापौ-जपो। तै-उसका। ११०. पहलै-प्रथम । बार-बारह । ईग्यार-ग्यारह । पुणे-कहते हैं। मत-बुद्धि, मति । १११. राता-अनुरक्त, लीन । महत-महान । भाग-भाग्य । सारीखौ-सदृश, समान । प्रान-अन्य। ११२. धुर-प्रथम । मत-मात्रा । बार-बारह । बे-दूसरा । नोट- ग्रंथकर्ताने नन्दा मोहणी और बरवैको एक-दूसरेके पर्याय मान कर रचना नियमके एक ही लक्षण प्रथम तथा तृतीय चरणमें बारह मात्रा और द्वितीय और चतुर्थ चरणमें सात-सात मात्रा मानी हैं पर नंदा मोहणी और बरवैमें पूर्वाचार्योंके मतसे कुछ-कुछ भिन्न लक्षण होते हैं। बरवैमें प्रथम तृतीय चरणमें बारह-बारह मात्रा तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणमें सात-सात मात्रा सहित अंतमें जगण होना आवश्यक माना गया है। इसी प्रकार मोहणी छंदके अन्तमें सगरण होना आवश्यक होता है। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] रघुवरजसप्रकास उदाहरण बरवै नंदा दूही पह ज्यांरा चित लागा, रघुबर पाय । पुळ पुळमें त्यां पुरखां, थिर सुख थाय ॥ ११३ ___ अथ चौटिया दूहा लछण चौटियौ दूहौ दूहा पूरब अरध पर, अधक बार मत होय । उत्तरारध दस मत अधक, दुहौ चौटियौ सोय ॥ ११४ उदाहरण चौटियौ दूहौ महाराजा रघुवंसमण, सुज रावण समथरा धनु सर पांणां धारै । वायक सत सीतावरण, नूप नायक रघुनाथ तं संतां तारै ॥११५ अथ दूहाकौ नाम काढ़ण विध दूहा लघु गिण आध कर, ज्यां मझ घट कर एक । रहेस बाकी नाम रट, वीदग अघट विसेक ॥ ११६ ___ इति भ्रमरादिक तेवीस दूहा नांम करण विध संपूरण । छंद चूलियाला दूहा अध पर पंच मत, चूळियाळा सौ जांणसु । कविवर देह लियां फळ एह, दख बद जीहा बाखांण स रघुबर॥११७ ११३. पह-प्रथम । ज्यांरा-जिनके । पाय-चरण । थिर-स्थिर, अटल । ११४. अधक-अधिक । सोय-वह । ११५. रघुवंसमण-रघुवंशमणि । धनु-धनुष । सर-बाण । पांणां-हाथों। ११६. वीदग-विदग्ध, कवि, पंडित । ११७. एह-यह । दख-कह । बद-वर्णन कर । जीहा-जिव्हा । बाखांण-वर्णन, यश । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजस प्रकास छंद निस्र रेगका निस्र ेणी । सम तेरह धुर फेर दस, जांणौ रिख नारी तरगी हरी, परसत पग रेणी ॥ जे रांम जस दिवस निस, किव 'किसन' जपीजै । लाभ देह रसना समुख, पायांरौ लीजै ॥ ११८ [ ७१ छंद चौबोला I || धुर मत्त सोळ वर चवदह घर, गुरु चौबेल अ सौ भज 'किसन' रांम सीतावर, संत तार ब्रद निगम सखै रावण कं ूभ मेघ खर रहचे, कथ सौ बेद पुराण कही । बगसी भूपां भूप बभीखण, सरणागत हित लंक सही ॥ ११६ छंद ककुभा कळ धुर सोळ बार सौ ककुभा, उप चौबोलक कहावै । सुजै सौ सुभ छंद, जेण में गुण सीतावर गावै 11 जांमण मरण मरण फिर जांमण, जग नट गौटौ जांगो 1 सौ दुख मेट खै पद समर्पण, केसव नांम कहांणौ ॥ १२० दूहौ खट दुजवर कर प्रथम पद, अंत जगण गण आंण । दूजी तुक दुज सात घर, जगण सिखा सौ जांण ॥ १२१ ११८. धुर - प्रथम । रिख ऋषि । रेणी-धूलि । रसना - जिह्वा । ११६. सोळ - सोलह । श्रवर - अपर अन्य । निगम - वेद । सखे-साक्षी देता है । कुंभ- कुंभकर्ण, रावका छोटा भाई । मेघ-मेघनाद, रावणका पुत्र । खर- एक राक्षसका नाम । रहवे - मार डाला, संहार किया । बगसी-बख्शिश कर दी । सरणागत-शरण में ग्राया हुआ । लंक -लंका । १२०. कळ - मात्रा । सोळ-सोलह । बार-बारह । सीतावर - श्रीरामचन्द्र भगवान गावेंवर्णन करें। जांमण-जन्म । मरण - मृत्यु, मौत | नट गौटौ-नट क्रीड़ा, ऐंद्रजालिक खेल | प्रखं- अक्षय । समपण- देने वाला । कहांणौ-कहा गया । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] रघुवरजसप्रकास छंद सिख सर धनुख सफत जन सरण, रख कर सुख रट सु झट रांम । 'किसन' किव समर पल यक न कर " हर सुरण घर विरद भज सुख धांम ॥ १२२ छंद रस उल्लाला पनरै तेरह मत्त पय, छंद उल्लाल पिछांणजै । रघुनाथ सुजस सौ छंद रच, बीदग मुख वाखांराजै ॥ १२३ रस उल्लारा भेद दहा रस उल्लाल तिथ तेर मत, छवीस सम पद स्यांम | स्यांमक रस दूहा सहित, मुण तै छप्पय नांम ॥ १२४ उलटौ रस उलाल उण, आाख वरंग उलाल । दाख त्रिदस फिर पंच दस, तुक बिहं वै पड़ताळ ॥ १२५ पनर पर मत दोय पय, कांम उलाल कहंत । यण विध छंद उलालरा, भेद पांच भावंत ॥ १२६ अथ माहा छंद लछरण प्रथम त्रीये मत बार पढ़, अख पद बियै अठार | चौथे पनरह मात रच, यम गाथा उच्चार ॥ १२७ सात चतुर कळ अंत गुरु, जगरण छठे थळ जोय । उत्तर दळ छट्ठ े सुथळ, दुज कै यक लघु होय ॥ १२८ १२३. बीदग - (सं० विदग्ध) पंडित, कवि | १२४. तिथ - पन्द्रह | १२५. त्रिदस - तेरह | नोट- ग्रंथकर्ताने निम्नलिखित रस उल्लाला के पांच भेदोंके नाम दोहोंमें बतलाये हैं, उनके उदाहरण नहीं दिये । १. रस उल्लाला, २. स्यांम उल्लाला ३ छप्पय उल्लाला, ४. बरंग उल्लाला ५. कांम उल्लाला । * ग्रंथकर्ताने महाछंद शीर्षक देकर नीचे गाथा अर्थात् श्रार्या छन्दोंका विवरण दिया है । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ७३ तीस समत पूरब अरध, उत्तर सत्ताईस । सत्तावन मता सरब, आखव नाम छवीस ।। १२६ अथ गाथा उदाहरण गिरिस गिरा गौ गौरी, हर गिर हिम हंस हास सिस हीरा । सुसरि सेस सुरेसं ए, स्रीरांम क्रत प्रारख्यं ॥ १३० अथ गाथा गुण दोस कथन छंद बेअखरी निज आखै किव किसन' निरूपण, सुणौ गाहा गुण दोस सुलछण । सात चतुरकळ अंत गुरु सज्ज, देह छठे थळ जगण तथा दुज ॥१३१ बांधव पूरब अरध एण बिध, यम हिज जांण जगण उत्तरारध । काय छठे थळ यक लघु कीजै, दुसट विखम थळ जगण न दीजै ॥१३२ मत्त सतावन स्रब गाथा मह, कळातीस पूरबा अरध कह । वीस सात कळ उतर अरध विच, रेणव प्रेम छंद गाथौ रच ॥१३३ पाय प्रथम पढ़ हंस गमण पर, कह गत दुवै पाय विध केहर । गज गत तीजै पाय गुणीजै, औण चवथ गथ सरप अखीजै ॥१३४ एक जगण जिण मांहे आवै, कुळवंती सौ गाहा कहावै । बे जगण परकीया बखांणी, जगण घणा तिण गनका जांणौ ॥१३५ जगण विनां सौ रांड गणीजै, किणी मांझ सौ गाहा न कीजै। १२६. पाखव-कह । छवीस-छब्बीस । १३१. निरूपण-निर्णय। थळ-स्थान । दुज-चार मात्रा । १३२. एण-इस । यम-ऐसे । हिज-ही। यक-एक । १३३. मत्त-मात्रा। मह-में। रेणव-कवि । गाथौ-गाथा । १३४. पाय-चरण । विध-विधि । प्रौण-चरण । चवथ-चतुर्थ । १३५. माहे-में। गाह-गाथा, गाहा । नोट-गाहा छंदमें जगरण । 5 । गण पाना अनिवार्य माना गया है। जिस गाथा छंदमें एक जगण होता है उस गाहा छंदको कुलवंती गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें दो जगरण हों उसको परकीया गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें जगरण अधिक आ जाते हैं उसे गणिका गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें जगण न हो उसे विधवा गाथा कहेंगे। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] रघुवरजसप्रकास लीजै ॥१३६ विप्री तेरह लघुव दीजै, लघु यकवीस खित्रणी सतावीस लघु वैसी सोई, है लघु अधिक सुद्रणी होई । बिअनुसार अंध का वाचत, सुज अनुसार एक कांगी सत ॥१३७ व्यंदु दोय सुनयणा बिसेखौ, बहु अनुसार मनहरा बेखौ । विण सकार पदमणी विसेखत, एक सकार चित्रणी ओपत ॥१३८ च्यार सकार हसतणी चावी, बहु सकार संखणी बतावी | बोह करण जिका बाळा गण, मुगधा करतळ घरणा तिका मुख ॥१३६ भगण बहुत सौ प्रौढ़ा भंणजै, गण बोह विप्र वरधका गिराजै । १३६. रांड-विधवा | मांझ - (मध्य) में । जिस गाथा छंद में १३ लघु वर्ग होते हैं उसे विप्र कहते हैं । २१ लघु वर्ग जिस गाथामें श्रा जाते हैं उसे क्षत्रिया संज्ञा दी गई है। इसी प्रकार जिस गाथा छंद में २७ लघु वर्ण श्रा जाँय उसको वैश्य संज्ञा दी गई है और जिस गाथा छंदमें २७ से भी अधिक लघु वर्ण ग्रा जाते हैं उसकी शुद्रा संज्ञा मानी जाती है । १३७. गाथा छंद में अनुस्वार श्राना जरूरी माना गया है । जिस गाथा छंद में अनुस्वार न हो उसकी संज्ञा अंध मानी गई है । जिस गाथा छंदमें एक ही अनुस्वार होता है उसे एकाक्षी कहते हैं । इसी प्रकार जिस गाथा छंद में दो अनुस्वार आते हैं उसको सुना कहते हैं और जिसमें अनुस्वारों की बाहुल्यता होती है उसे मनोहरा गाथा कहते हैं । १३८. जिस प्रकार गाथा छंदमें ग्रनुस्वार लेना ठीक माना गया है ठीक उसके विपरीत सकार अक्षरका न प्रयोग करना ही सुंदर गिना जाता है । जिस गाथा छंदमें सकार नहीं होता है उसकी संज्ञा पद्मिनी मानी गई है । जिसमें एक भी सकार आ जाय उसे चित्रणी, जिसमें चार सकार प्रा जाय उसे हस्तिनी तथा सकार - बाहुल्या गाथाको शंखरणी कहते हैं । १३६. गण-गाथा छंद में चार मात्राके नामको गरण कहते हैं । ऐसे चतुष्कलात्मक सात गरण और एक गुरुके विन्यास गाथा छंदका पूर्वार्द्ध बनता है । वे चतुष्कलात्मक पांच गए निम्न प्रकार के होते हैं प्रथम गण-- (ss ) चार मात्राका । इसका दूसरा नाम कर भी है। द्वितीय गरण - ( 115 ) चार मात्रा | इसका दूसरा नाम करतळ या करताळ भी है । तृतीय गरण -- (151) चार मात्रा | इसका दूसरा नाम पयहर, पयोहर, पयोधर भी है । चतुर्थ गण- - ( 511 ) चार मात्रा । इसका दूसरा नाम वसु, पय भी है। जिस गाथामें दो दीर्घ मात्राका करण (कर्ण) गण बहुत प्राता हो उसे बाला गाथा कहते हैं तथा जिस गाथामें करतळ या करताळका [॥ प्रथम दो ह्रस्व मात्रा तथा एक दीर्घ मात्रा कुल चार मात्राके समूहका ] प्रयोग बहुत हो उसे मुग्धा कहते हैं । जिस गाथा छंद में भगरका [प्रथम दीर्घ फिर दो हृस्वके चार मात्राके समूहका ] प्रयोग बहुत हो उसे प्रौढ़ा कहा गया है। ठीक इसी प्रकार जिस गाथा छंदमें विप्रका [ दुज= द्विज, चार मात्राके ही समूहका ] प्रयोग बहुत हो उसे वरधका [वृद्धा ] गाथा कहा जाता है । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ७५ कका दोय मझ गौरी कहीये, चंपा अंगीक केहि कच हीयै ॥१४० भीना अंगी तीन कके भण, तव बौह ककां नाम काळी तण। भ्रांमी वसत्र सेत तन भासत, वसन लाल खित्रणी सुवासत ॥१४१ पीत दुकूळ वैसणी पहरण, गाह सुद्रणी स्यांम वसन गण । गौरे वरण विप्रणी गाहा, चंपक वरण खित्रणी चाहा ॥१४२ भीनै रंग वैसणी सुभायक, लख सुद्रणी स्यांम रंग लायक । मुगता भूखण विप्री मोहत, सुज खित्रिणि हिम भूखण सोहत ॥१४३ रूपा भरण वैसणी राजत, सुद्रणि पीतळ भूखण साजत । ऊजळ तिलक विप्रणी ओपत, तिलक सुद्रणी लाल अोपत ॥१४४ पीळी तिलक वैसणी परगट, रुच सुद्रणी स्यांम टीलो रट । गाहा तणौ छंद कुळ गायौ, वेद पिता कवि जणां वतायौ ॥१४५ सरस भाख माता सुरसत्ती, उप राजक भ्रहमांण उकती। स्रवण नखित्र मझ जनम तास सुण, कहियौ सरब गाह चौकारण । गाथा नाम छवीस गिणावै, ग्रथ अनेक वडा कवि गावै ॥१४६ १४०. जिस गाथा छंदमें दो 'क' होते हैं उसकी गौरी संज्ञा होती है । जिसमें एक ही 'क' हो उसकी संज्ञा चंपा वर्ण मानी गई है। जिसमें तीन 'क' होते हैं उसका वर्ण (रंग) श्यामता लिए हुए गौर माना गया है और जिसमें 'क' की बाहुल्यता होती है उसकी काली संज्ञा मानी जाती है। १४१. सेत-स्वेत । खित्रणी-क्षत्रिया। १४२. पीत-पीला। दुकूळ-वस्त्र । वैसणी-वैश्य (स्त्री)। सुद्रणी-शुद्रा । वसन-वस्त्र । १४३. विप्री-विप्रा । खित्रिणि-क्षत्रिया। हिम-सोना । १४४. वैसणी-वैश्य (स्त्री)। राजत-शोभा देती है। विप्रणी-ब्राह्मणी। प्रोपत-शोभा देती है । १४५. टीलो-तिलक । १४६. भाख-भाषा । उकती-उक्ति। नखित्र-नक्षत्र । मझ-(मध्य) में । तास-उस । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] रघुवरजसप्रकास अथ गाथा छंद छबीस नाम कथन कवित छप्पै लच्छी रिद्धी बुद्धी, लज्जा विद्या खंम्या। लहदेवी गौरी धात्री, कविस चूरणा छाया ।। कह कांती मह माया, ईस कीरती सिद्धी । मांणणि रांमा गाहेणि, वसंत सोभा हरणी ॥ सुण चक्कवी, सारसी, कुररी चवी, सिंघी हंसी साखिए । छावीस नाम गाथा छजै, भल राघव जस भाखिए ॥ १४७ अथ लछी नाम गाथा लछण सतावीस गुरु त्रय लघू , लछी आखर तीस । यक गुरु घट बे लघु वध, सौ सौ नाम कवीस ॥ १४८ ___ लछी गाथा उदाहरण ___ अख्यर ३० गुरु २७ लघु ३ तौ सारीखौ तं ही, जै जै स्री राम जीपणा जंगां । सीता वाळा स्वामी, भूपाळां मौड़ है. भांमी ॥ १४६ गाथा नाम रिद्धी - अख्यर ३० गुरु २६ लघु ४ रै झोका स्रीरांम, तं सातै ताळ वेधण तीरं । थरै दैतां थौका, दीनांचा नाथ जगदाता ॥ १५० १४७. चवी-कही। छज-शोभा देते हैं । १४८. त्रय-तीन । यक-एक । १४६. तौ-तेरे । सारीखौ-सदृश, समान । जीपणा-जीतने वाला। जंगां-युद्धों। मौड़-अवतंश । हूं-मैं । भांमी-वलैया लेता हूँ, न्यौछावर होता हूँ। १५०. झौका-धन्य-धन्य । ताळ-ताड़, वृक्ष । धेरै-नाश करता है । दैतां-दैत्यों। थौका-समूह । नोट-गाथाकी संख्याका छप्पय मूल प्रतिके अनुसार ही है किन्तु ठीक प्रतीत नहीं होता। गाथाओं के २६ नाम-लच्छी, रिद्धी, बुद्धी, लज्जा, विद्या,खंम्या, देवी, गौरी, धात्री, चूरणा, छाया, कांती, महामाया, कीरती, सिद्धी, मांणणि, रामा, गाहेरिण, वसंत, सोभा, हरणी, चक्कवी, सारसी, कुररी, सिंही, हंसी। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास गाथा नाम बुद्धी प्रख्यर ३२ गुरु २५ लघु ७ जीहा राघौ जं पै, मोटौ है भाग जेारौ भूमं । तोटौ नावे त्यांरै, केसौ पय सेव अधिकारी ॥ १५१ गाथा नांम लज्जा प्रख्यर ३३ गुरु २४ लघु की कहणौ कौसल्या, मोटौ तैं कीध पुन्यत्रै भ्रममं । जैकं खै खळ जेता, आखै जग रांम औतारं ॥ १५२ गाथा नांम विद्या अख्यर ३४ गुरु २३ लघु ११ वेदां भेदां वेखौ, पेखौ दह आठ हेर पौराणं । नह कौ नर देव नागिंद्र ं ॥ १५३ राधौ नांम सरीखं, गाथा नांम खम्या प्रख्यर ३५ गुरु २२ लघु १३ है कां मौताहळ, करपंची कंठमाळ पै संकळ | राघौ नांम विहंग, अनखांणौ ढोर आदम्मी ॥ १५४ गाथा नांम देवी [ ७७ अख्यर ३६ गुरु २१ लघु १५ सुंदर स्यांम सरीरं, वादळ, बाधौ कट रांम पीत पीतंबर I वीटांगी वीज वरसाळ ।। १५५ १५१. जीहा - जिह्वा । जंप जपता है । भूमं भूमि । तोटा कमी । त्यांरे - उनके । केसौ - केशव, विष्णु | पय-चरण । १५२. मोटी-महान । कोध किया । पुन्य-पुण्य । भ्रममं ब्रह्म, परब्रह्म । जै-जिस । कूंखकुक्षि | खळ- असुर, राक्षस । जेता- जीतने वाला । श्रतारं अवतार । । हेर - देख कर । पौरांणं - पुराण । १५३. वेखौ - देखिये, देखो। देखो-देखो। दह - दस सरीखं - समान, सदृश । नागिंद्र - ( नागेन्द्र ) नाग | १५४. कान - कानों में मौताहळ मोती । कर हाथ। पूंची - हाथकी कलाईका आभूषण विशेष । विण - बिना, रहित । श्रनखांणौ - अन्न खाने वाला । ढोर - पशु । १५५. कट-कटि, कमर । पीत- पीला। वोटांणी - वेष्टित हुई । वीज- बिजली । वरसाळ - वर्षा ऋतु । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] रघुवरजसप्रकास गाथा नाम गौरी अख्यर ३७ गुरु २० लघु १७ सज्झी न राघव सेवं, सेवा सौ जाय घरोघर साझै। निज सिर हरी न नायौ, उण नायौ सीस जग अग्गां ॥ १५६ गाथा नांम धात्री अख्यर ३८ गुरु १६ लघु १६ पढ़ सीतावर प्रांणी, जगचा तज ांन आळ जंजाळ। उंबर अंजुळि आब, नहचै आ जांणा थिर नाही ॥ १५७ गाथा नाम चूरणा अख्यर ३६ गुरु १८ लघु २१ रिख सिख गंगा रांम, सेवै पद कंज मंजु सीतावर । सौ राघौ पै 'किसना', चीतव निस दिवस उर चंगा ॥ १५८ गाथा नांम छाया अख्यर ४० गुरु १७ लघु २३ रट रट स्री रघुरांम, दस-सिर जे तार तारके दीनं । करुण ऊदध कर कंज, सीतावर संत साधारं ॥ १५६ गाथा नाम कांती अख्यर ४१ गुरु १६ लघु २५ अजामेळ यक वारं, आखे अजाण नारायण । जाण आण जम हरिजन, जुड़ियौ नह मग्गा घर जेणं ।। १६० १५६. सज्झी-हुई। सेवं-सेना। सौ-वह। नायौ-नमाया। उण-उस । अग्गां-अगाड़ी। १५७. प्रान-अन्य । पाळ-असत्य, झूठ । जंजाळ-प्रपंच । उंबर-उम्र, आयु । प्राब-पानी । नहचै-निश्चय । थिर-स्थिर । १५८. कंज-कमल । मंजु-सुंदर । चीतव-स्मरण कर। चंगा-श्रेष्ठ, उत्तम, स्वस्थ । १६०. यक-एक । वारं-समय । पाखे-कहा। अणजांण-अज्ञानावस्था। जुड़ियौ-प्राप्त हुआ। मग्गा-मार्ग । जेणं-जिस । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ७६ गाथा नाम महामाया अख्यर ४२ गुरु १५ लघु २७ आळस न कर अजाणं, निज मन कर हरख भजन रघुनाथं । सुपन रूप संसारं, विणा संतां देहनां वारं ॥१६१ गाथा नाम कीरती प्रख्यर ४३ गुरु १४ लघु २६ कमळनायण कमळाकर, कमळा प्रांगेस कमळकर केतौ। तन कमळ भातेसं, जे मुख च्यार कमळभू जंपै ।।१६२ गाथा नाम सिद्धो अख्यर ४४ गुरु १३ लघु ३१ रिखय मख कर रखवाळ, तारी रिख घरण चरण रजहं ता। राख जनक पण रघुबर, भागौ कोदंड भूतेसं ॥१६३ ___ गाथा नाम मांणणी अख्यर ४५ गुरु १२ लघु ३३ जिणा दिन रघुबर जंपै, सुकियाअरथ दिवस सोय नर संभळ । दखै न राघव जिण दिन, जाणे सोय आळजंजाळ ॥१६४ गाथा नाम रांमा अख्यर ४६ गुरु ११ लघु ३५ निज कुळ कमळ दिनेसं, चविसुर गण नखत जांण तिण चंदं । मुनि बन रखण मृगाधिपं, रघुबर अवतं(स) राजेसं ॥१६५ १६१. अजाणं-अज्ञान । सुपन-स्वप्न । १६२. कमळाकर-विष्ण । कमळा-लक्ष्मी । प्रांणेस-पति । कमळभू-ब्रह्मा । १६३. रिखय-ऋषि । मख-यज्ञ । रखवाळं-रक्षा। घरण-स्त्री, पत्नी। हूंता-से। पण प्रण । कोदंड-धनुष । भूतेसं-महादेव । १६४. जंपै-जपता है, स्मरण करता है। सुकियाअरथ-सफल । दिवस-दिन । सोय-वह । संभळ-समझ। दखै-कहता है। प्राळजंजाळ-व्यर्थ । १६५. दिनेसं-सूर्य । चवि-कह कर । नखत-नक्षत्र ! प्रगाधिपं-मृगेन्द्र, सिंह । अवतं (स) शिरोमणि । राजेसं-सम्राट । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० 1 रघुवरजसप्रकास गाथा नाम गाणी प्रख्यर ४७ गुरु १० लघु ३७ असमझ समझ अखीजै, तो पण हरि नाम श्रवस जन तारत । जाणं, दगधत तन समय दावानळ ॥१६६ जिम परसत गाथा नांम वसंत प्रख्यर ४८ गुरु लघु ३६ रघुबर सौ प्रभु तज कर औयण जे खित सुरसुरी तीरह, खिती कंप खणत नर मूरख ॥१६७ गाथा नांम सोभा प्रख्यर ४६ गुरु ८ लघु ४१ वर अमर अभियासत । घ हर सुख कर गावरण जिण फळ मळा, रट रट जस घट भाग धन रघुबर । गहरं, बगै बलमी करिख बिसुधा ॥१६८ गाथा नाम हरिणी प्रख्यर ५० गुरु ७ लघु ४३ नित जप जप जगनायक, वायक सत कहण सुजस कमळावर । सुकरतकरण सदीवत, सोहत करत सत पुरसं ॥ १६६ गाथा नांम चवकवी प्रख्यर ५१ गुरु ६ लघु ४५ अह मत तज भज ईसर, करणाकर सघर सु तन दसरथकौ । यक छिन तन ऊधारण, रत कर चित्त चरण रघुबर रे || १७० १६६. श्रसमझ-प्रज्ञ नावस्था । समझ-ज्ञान, बुद्धि । श्रखीजै - कहा जाय । पण भी। प्रवसअवश्य । जन-भक्त । तारत- उद्धार करता है । परसत-स्पर्श करते हैं । श्रजांणंभूलसे । दगधत - जलाता है । समथ्य - समर्थ । दावानळं-दावाग्नि । १६७. सौ - जैसा । प्रभु-प्रभु ईश्वर । श्रयण-चरण । श्रभियासत - श्रभ्यास करते हैं, स्मरण करते हैं । खितत्रषित, प्यासा । सुरसुरी - गंगानदी । तीरह-तट । खिती - पृथ्वी । खणत - खोदता है । १६८. मळं - पवित्र । गहरं - गंभीर । बलमी - बलमीकि, बांबी । बिसुधा - पृथ्वी | सदीवत सदैव, नित्य । १६६. कमळावर - कमलापति, विष्णु । सुकरत श्रेष्ठ कार्य, सुकृत्य । १७०. ग्रह - प्रभिमान, गर्व । मत-बुद्धि । करणाकर - करुणाकर, दयालु । यक-एक छिन क्षण | करिख - कर्षरण कर । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास 1 ८१ गाथा नाम सारसी अख्यर ५२ गुरु ५ लघु ४७ जन लज रखण जरूरह , दसरथ सुत सकळ सुजन सुखदायक । सिरदस घायक समहर , सत वायक राम सरसत सुभ ॥१७१ गाथा नाम कुररी अख्यर ५३ गुरु ४ लघु ४६ भुज-बळ खळ-दळ भंजण , निज जन सुख करण सरण राखण नित। कहत वरण कथ जग कर , आपण दत लंक चित अपहड़ ॥ १७२ गाथा नाम सिंधी अख्यर ५४ गुरु ३ लघु ५१ असन वसन जळ अहनिस , मत कर मन फिकर समर महमाहण । पोखण भरण दिवस प्रत , निज जन फिकर चित्त रघुनायक ॥ १७३ गाथा नाम हंसी अख्यर ५५ गुरु २ लघु ५३ जगत जनक हरि जय जय , भय जांमण मरण हरण कर निरभय । १७१. जरूरह-अवश्य। सिरदस-रावण। घायक-संहारक, नासक । समहर-युद्ध । वायक-वाक्य, शब्द । १७२. आपण-देने वाला। दत-दान । लंक-लंका। अपहड़-उदार । १७३. असन-भोजन । वसन-वस्त्र । अहनिस-रात दिन। महमाहण-विष्णु, ईश्वर । दिवस-दिन । प्रत-प्रति । १७४. जांमण-जन्म । हरण-मिटाने वाला। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] 'किसन' रखण रघुवरजसप्रकास सुकव सिर धर चरण सरण दूहौ विध यण गाथा वरणिया, सुजस रांम कथ सार | विध कोई चूकौ वरतां, सत किव पढ़ौ सुधार ॥ १७५ अथ गाहा १ गाहू २ विगाहा ३ उगाहा ४ गाहेणी ५ सीहणो ६ खंधांणा ७ । विचार लछण वरणण । गाहा विगाहा लछण कर " रघुनायक ॥। १७४ छंद बेयरी गाहा ? मात्र सतावन गावै, गाहौर उलट विगाह गणा I चौपन मत गाहू३ उचरीजै, उगाहौ४ मत्त साठ अखीजै ॥ १७६ गाणी ५ बासठ मत गावत, कियां उलट सीहणी६ कहावत । चौसठ मत खंधारण ७ चवीजै, कळ विभाग यांपद-प्रत कीजै ॥ १७७ गाथारै पद-प्रत मात्रा वरणण याद बार मत दुवै अठारह बार त्रतीय चव पनर विचारह | विगाह पद-प्रत मात्रा पद धुर बार दुवै पनरह पुण, तीयै बार अठार चवथ ति ॥ १७८ गाहू पद-प्रत मात्रा प्रथम बार मत्त पनर दुवै पद, वळ तिय बार पनर चौथै वद । उगाहा पद-प्रत मात्रा प्रमाण पहला बार अठार दुवै पढ़, तीजै बार अट्ठार चवथ द्रढ़ || १७६ चवथ-चतुर्थ | १७६. वळ - फिर । तिय-तृतीय । १७५. विध-विधि । यण- इस । किव - कवि । १७६ मात्र मात्रा | उचरीजै - कहिए। श्रखोज - कहिए । १७७. मत मात्रा । कहावत - कहा जाता है । चवीज कहिए । पदप्रत- प्रति पद, प्रति चरण । १७८. पद-चरण । धुर - प्रथम | बार- बारह । दुवै - दूसरे । पुण- कह । तीयं - तृतीय | Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास गाणी पद-प्रत मात्रा याद बार अट्ठार दुतीय ख, सुजतिय बार बीस चोथै सख । सींहणी पद-प्रत मात्रा बाद आाद दूसरे वीस बळ, कह तिय बार अठार चवथ कळ ॥१८० [ ८३ खंधांना पद-प्रत मात्रा मात्र बतीस यार तुक मांही, दोय गुरु पद अंत दियांही । निज किव किसन कियां यम निरौ, बड कवि सीय रांम जस वर ॥ १८१ अथ गाथा अथवा गाहा उदाहरण महकुळ धिन पित मातं, सौ घर न धन्य सुरग पित्रेसुर । सौ धन भवन सकाजं, बासै जै दास रघुबरकौ ॥१८२ अथ विगाही उदाहरण कौसळया, उदरे जिण रांम औतारं 1 करणी धन भण दसरथ बडभागं, जिरा घर सुत रामचंद्र जग जेता ॥ १८३ अथ गाहू उदाहरण सुखदाता सरणायां, निज संतां जानुकी नायक । दस सिर भंज दुबाहं, राहं जग कीत राजेस्वर ॥ १८४ अथ उगाही तं जौ चाहै तरबौ, जप मत मन आंन चाळ जंजाळ | नित जप राघव नांमं, तिण पाथर नाव उदध कपि तारे ॥ १८५ १८०. प्राद- प्रादि, प्रथम । दुतीय- द्वितीय । श्रख कह । सुज - फिर । तिय-तृतीय। कळ मात्रा । १८१. मात्र मात्रा | मांही- में, अंदर । १८२. धिन धन्य । पित पिता । मातं १८४. सरणायां- शरण में आया हुआ । १८५. तरबौ - तैरना, उद्धार करना । पत्थर | उदध - उदधि, सागर । कपि-बंदर | यम- इस प्रकार । माता । सुरग स्वर्ग । धन-धन्य । दुबाहं वीर । श्रांन अन्य । श्राळ जंजाळं व्यर्थका प्रपंच | पाथर Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] रघुवरजसप्रकास अथ गाहिणी तन घणस्यांम तराज, तड़िता छिब भात पीत पीतंबर । सुकर बांण सारंगं, सीता अंग बांम राम भज नप सिध ॥१८६ ___अथ सीहणी आखर बखत उचारै, जीहवा धन राम नाम रट झट जौ। पोखरणतौ भर पायौ, भोजन अढार भांतचौ भरणौ ॥१८७ अथ खंधांणा दीन करण प्रतपाळ दासरथ, भारत खळदळ सबळ बिभंजे । धनख धरण तन बरण नीरधर, रघुबर जनक सुता मन रंजे ॥१८८ सं दर रूप अनूप स्यांमता, अंजण नयण मुनी रिख अंजे । तीनकाळदरसी व्है ततपुर, गौरव काम क्रोध अध गंजै ॥१८६ अथ एकसू लगाय छवीस ताई गाथा काढण विध. गाथारा लघु अखिर गिणि, जां मझ एक घटाय । आध कियांसं ऊबरै, सोई नाम सुभाय ॥ १६० प्ररथ __हरेक गाथारा लघु अाखिर गिणणा ज्यांमेंसू पेली तौ एक अखिर घटाय देणौ, पछै बाकी रहै ज्यांनै दोय भागमांसू एक भाग परौ काढ्यां बाकी रहै अखिर जतरमौ गाही छ, यूं जांणणौ । १८६. घण-घन, बादल । तराज-समान । तड़िता-बिजली । छिब-कांति, शोभा । भात-शोभा। सुकर-हाथ । बांण-तीर । सारंग-धनूष । १८७. पाखर-आखिर, अंतिम । बखत-समय । जीहवा-जिव्हा, जीभ । पोखणतो-पोषण करता हुआ। १८८. दीन-गरीब। प्रतपाळ-पालन-पोषण । विभंज-नाश किये। नीरधर-बादल । रंजे-प्रसन्न किया। १८६. तीनकाळ दरसी-त्रिकालदर्शी । १६०. अखिर-अक्षर। जां-जिन । मझ-मध्य । प्राध-प्राधा। सोई-वही। ज्यां-जिन । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ८५ अथ गद्य छंद लछण विध दूहौ गद्य पद्य बे जगतमें, जांण छंदकी जात। सम पद पद्य सराहजै, छटक गद्य छ जात ॥१६१ दवावैत फिर बात दख, जुगत वचनका जांण । औछ अधक तुक असम श्रे, बीदग गद्य बखांण ॥ १६२ अथ दवावैत माहाराजा दसरथके घर रामचंद्र जनम लिया। जिस दिन सै आसरू नै ऊदेग देवतं नै हरख किया। विसवामित्र मख-रख्याके काज अवधेसतै जाच लिये । माहाराजा दसरथ उसी बखत तईनाथ किये। सात रोज निराहार एकासण सनद्ध रहै। रिखराजका जिगकी रछयाकाज रजवाटका बिरद भुजदंडं गहे । सुबाहूकं बांणसे छेद जमराजके भेट पुंहुचाया। मारीचके ताई वाय बांणते मार उडाया । रज पायसे तारी गौतमकी घरणी। खंडपरसका कोदंड खंड कर जांनुकी परणी । १६१. सम पद-यहां छंद-शास्त्रानुसार छंदोंके नियममें बंधे हुए शब्द व वाक्य । सराहजै सराहना कीजिए। छूटक-जिन पदोंमें छंद-शास्त्रानुसार नियम न हो, गद्य । १६२. औछ-कम । अधक-अधिक । बीदग-विदग्ध, पंडित, कवि ।। १९३. प्रासरू-असुर, राक्षस । ऊदेग-उद्वेग, चिता। मरख-रख्या-यज्ञकी रक्षा । जाच लिये मांग लिये । तईनाथ-तैनात, किसी काम पर लगाया या नियक्त । किया हया। निराहार-बिना भोजन । एकासण-एक ही प्रासन या बैठक । सनद्ध-(संनद्ध) कटिबद्ध। जिग-यज्ञ ! रछया-रक्षा । रजवाट-क्षत्रियत्व, वीरता । बिरद-बिरुद। गहेधारण किये। तांई-लिये। रज-धुलि। पाय-चरण। घरणी-स्त्री, पत्नी। खंडपरसका-खंडपरशु महादेवका। कोदंड-धनुष । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अवधकं आते दुजराजकं सुद्ध भाव किया । जननीसे सलाम कर सपूतीका बिरद लिया। ऐसा स्री रामचंद्र सपूतं का सिरमोड़। अरोड़ का रोड़। गौ बिघ्रं का पाळ। अरेसं का काळ। सरणायं -साधार । हाथका उदार, दिलका दरियाव । रजवाटकी नाव। भूपं का भूप साजोतका रूप । काछवाचका सबूत। माहाराज दसरथका सपूत । भरथ लछमण सत्रुघणका बंधु । करुणाका सिंधु । १६३ वचनका हांजी ऐसा माहाराजा रामचंद्र असरण-सरण । अनाथ नाथ बिरदकं धारै। सौ ग्राहक मार न्याय ही गजराजकं तारै । और भी नरसिंघ होय प्रवाड़ा जगजाहर किया। हरणाकुसकं मार प्रहलादकं उबार लिया। प्रळे का दिन जांण संत देस उबारणकं मच्छ देह धारी । १६३. जननी-माता । सलाम-प्रणाम । सपूती-सुपुत्र होनेका भाव । अरोड़-वह जो किसीके बंधन या रोकमें न रह सके । रोड़-रोक, बंधन । प्ररेसं-अरीश, शत्रु । काळ-मृत्यु । सरणायूं-साधार-शरणमें आने वालेकी रक्षा करने वाला । साजोतका रूप-ज्योति स्वरूप । काछवाचका सबूत-जितेन्द्रिय नियतात्मा और सत्य-संध । सिंधु- समुद्र । १६४. प्रसरण-सरण-जिसे कोई शरण न देने वाला हो उसे भी शरण देने-वाला 1 प्रवाड़ा महान् कार्य, चमत्कारपूर्ण कृत्य। हरणाकुस-हिरण्यकशिपु। प्रळ-प्रलय, नाश । मच्छ-मत्स्यावतार । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ८७ सतबतकी भगती जगजाहर करी । ऐसा स्त्रीरामचंद्र करणानिध । असरण-सरण न्याय ही वाजै। जिसके ताई जेता बिरद दीजै जेता ही छाजै ॥ १६४ वारता रामचंद्र जिसा सिध रजपूत कोई वेळापुळ होवै छै । ज्यांके प्रताप देव नर नाग खटबन सुख नींद सोवै छै । राजनीतका निधांन सींह बकरी एक घाटै नीर पावै छ। पंछीकी पर बागां बाज दहसत खावै छै। तपके प्रभाव पाणी पर सिला तरै छ। भ्रगुपत सा बंक ज्यांका बळ काढ़ सणंकसुधा करै छ । बाळ दहकंधसा अरोड़ान रोड़ जमींदोज कीजै छै । सुग्रीव भभीखण जिसा निर पखांनं केकंधा लंक दीजै छ । जांका भाग धन्य जे रामगुण गानै छै । जांमण मरण भय मेट अभैपद पावै छै ॥ १६५ १६४. करणानिध-करुणानिधि, दयासागर । ताई-लिए, निमित्त । जेता-जितने । छाजै शोभा देते हैं, शोभित होते हैं। १६५. जिसा-जैसा। सिध-सिद्ध, वीर । वेळापुळ-समय, कभी। खटबन-षडवर्ण, ब्राह्मणदि छ जातिएं विशेष । निधान-खजाना। पर-पंख । बाज-शिकारी पक्षी विशेष । दहसतभय, डर । सिला-पत्थर । भ्रगुपत-परशुराम। बंक-विकट, बांकुरा अथवा त्र्यंबक, महादेव । बळ-गर्व। सणंकासुधा-बिलकुल सीधा। बाळ-बालि बंदर। दहकंधदशकधर, रावण । अरोड़ा-जबरदस्त । जमींदोज-जो गिर कर जमीनके बराबर हो गया हो, जमीनके अंदर । भभीखण-विभीषण । निरपखां-जिसका कोई पक्ष या सहायक न हो। केकंधा-(सं. किष्किधा) मैसूरके अासपासके देशका प्राचीन नाम । जांका-जिनके। जांमण-जन्म । अभैपद-मोक्ष । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ ] रघुवरजसप्रकास दूहौ असम चरण मात्रासु यम, कहीया छंद 'किसन'। राघव जस छंदां रहस, बुध सारीख ...न ।। १६६ इति मात्रा असम चरण छंद संपूरण । अथ मात्रा दंडक छंद वरणण भगवत गीताऊ भणै, बीता अघ सरबेण । सीता नायक संभरै, जन भीता नह जेण ॥ १६७ सोरठौ पेट हेक कज पात, मेट सोच सांसौ म कर । रे संभर दिन-रात, नाम विसंभर नारियण ॥ १६८ __ अथ मात्रा दंडक छंद लछण बे छंदां मिळ छंद व्है, मात्रा दंडक सोय। छप्पे कुंड ळियौ कवित्त, फिर कंडळिया होय ॥ १६६ अथ छप्पै लछण दहौ कायब उल्लालौ मिळ, छप्पैं तिण थळ होय । ग्यार तेर मत च्यार पय, पनर तेर पय दोय ॥ २०० छप्पै उदाहरण कवित छप्पै पंखी मुनि मन पंख, तीर भव-सिंधु तरायक । मुकत त्रिया सुख मूळ, स्रवण ताटक सुभायक ॥ १६६. यम-ऐसे । रहस-रहस्य, भेद। १९७. भण-कहते हैं। बीता-व्यतीत हो गये। प्रध-पाप । सरबेण-सब, समस्त । संभर स्मरण कर । भीता-भयभीत । जेण-जिससे । १६८. पेट हेक कज-एक पेटके लिए। पात-पात्र, कवि । सोच-चिता। सांसौ-संशय, शक । संभर-स्मरण कर । विसंभर-विश्वंभर, ईश्वर । नारियण-नारायण । १६६. सोय-वह । २००. कायब-काव्य, काव्यछंद । थळ-स्थान । मत-मात्रा। पय-चरण । २०१. पंखी-पक्षी। तीर-तट,किनारा। भव-सिंधु-संसार रूपी समुद्र । तरायक-तैरने वाला। मुकत-मुक्ति। स्रवण-कान । ताटंक-कर्ण-भूषण। सुभायक-सुन्दर । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ८६ अघ कळ घोर अंधार, बिंब रवि चंद्र बिकासण। प्रगट धरम द्रुम उभय यम स्रति नयण सुभासण ॥ बद 'किसन' रकार मकार बिंहु, सत रथ चक्र समाथका । भव जन तमाम कारक अभय, नांम अंक रघुनाथका ॥२०१ अजय नाम छप्पै लछण बिध यकहत्तर छपय बद, सतर गुरु लघु बार। अजय जिको गुरु घट बधै, बेलघु नाम निहार ॥ २०२ अजय छप्पै उदाहरण छप्पय जै जै भूपां भूप, सदा संतां साधारै। दीनां दाता देव, मेछ आनेकां मारै ॥ सीता स्वामी सूर, बीर बागां बांणासां । लंका जैहा लेर, दांन देणौ तं दासां ॥ सेहाई संतां सेवगां, ताई देणा तापरां । औनाड़ा राघौ भू अखै, पांणां धाड़ा आपरां ॥ २०३ अथ यकहतर छप्पै नाम कथन छप्पै अजय १ बिजय २ बळ ३ करण ४ , बीर ५ वैताळ ६ वहंजळ ७ । मरकट ८ हरिह हर १० ब्रहम ११ , इंद १२ चंदण १३ सुभकर १४ वळ । २०१. अघ-पाप । कळ-समूह, कलियुग। बिब-प्रतिबिंब । भव-संसार । कारक-करने वाला। २०३. साधार-रक्षा करता है। मेछ-म्लेच्छ, असुर । पानेकां-अनेक । सूर-सूरवीर । बागां बजने पर, चलने पर। बांणासां-तलवारों । जैहा-जैसा। दासां-भक्तों। सेहाईसहायक । ताई-आततायी, दुष्ट । ताप-कष्ट । प्रौनाड़ा-वीर। पांणां-हाथों। धाड़ा-धन्य-धन्य। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] रघुवरजसप्रकास स्वांन १५ सिंघ १६ सादूळ १७ , कूरम १८ कोकिल १६ खर २० कुंजर २१ । मदन २२ मछ २३ तालंकर २४ , सेस २५ सारंग २६ पयोधर २७ । कह कुंद २८ कमळ २६ बारण ३० सरभ ३१ , जंगम ३२ जुतिस्ट ३३ बखांण जग। दाता ३४ सर ३५ सुसरह ३६ समर ३७ दख , सारस ३८ सारद ३६ कह सुभग ॥ २०४।। फेर नाम छप्पै मेर ४० मकर ४१ मद ४२ सिद्ध ४३ , बुद्धि ४४ करतळ ४५ कमळाकर ४६ । धवळ ४७ सुमण ४८ फिर मेघ ४६, कनक ५० क्रस्णह ५१ रंजन ५२ धर । ध्रुव ५३ ग्रीखम ५४ गरुड़ह ५५ , गिणा (य) ससि ५६ सूर ५७ सल्य ५८ सख । नवरंग ५६ मनहर ६० गगन ६१ , रतन ६२ नर ६३ हीर ६४ भ्रमर ६५ अख । सेखर ६६ कुसम ६७ कहि दीप ६८ संख ६६ , बसु ७० सबद ७१ बाखांणीये। कवि छपय नाम जसराम कज , जग यकहतर जांणीये ॥ २०५ १. अजय-अ. ८२ गु० ७० ल० १२ । २ विजय-अ० ८३ गु० ६६ ल. १४ । ३. बल-अ० ८४ गु० ६८ ल० १६ । ४. करण-अ० ८५ गु० ६७ ल. १८ । ५. बीर-अ. ८६ गु० ६६ ल० २० । ६. बैतालअ० ८७ गु० ६५ ल० २२ । ७. ब्रहंजल-अ० ८८ गु० ६४ ल० २४ । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ६१ ८ मरकट-अ० ८६ गु० ६३ ल० २६ । ६. हरि-अ० ६० गु० ६२ ल० २८ । १०. हर-ग्र० ६१ गु० ६१ ल° ३० । ११ ब्रहम-अ० ६२ गु० ६० ल० ३२ । १२. इंद-अ०६३ गु० ५६ ल० ३४ । १३. चंदरणअ० ६४ गु० ५८ ल० ३६ । १४. सुभकर-अ० ६५ गु० ५७ ल० ३८ । १५. स्वांन-ग्र० ६६ गु० ५६ ल. ४०। १६. सिंघ-अ०६७ गु० ५५ ल° ४२। १७ सारदूल-ग्र० ६८ गु० ५४ ल० ४४ । १८. कूरम-ग्र० ६६ गु० ५३ ल० ४६ । १६. कोकिल-अ० १०० गु० ५२ ल० ४८ । २०. खर-अ० १०१ गु० ५१ ल० ५० । २१. कुंजर-अ० १०२ गु० ५० ल० ५२ । २२ मदन-ग्र० १०३ गु० ४६ ल० ५४ । २३. मछ-अ० १०४ गु० ४८ ल० ५६ । २४. तालंक-ग्र० १०५ गु० ४७ ल• ५८ । २५. सेसअ० १०६ गु० ४६ ल० ६० । २६. सारंग-अ० १०७ गु० ४५ ल० ६२ । २७. पयोधर-अ. १०८ गु० ४४ ल० ६४ । २८. कुंद-अ० १०६ गु० ४३ ल. ६६ । २६ कमल-अ० ११० गु० ४२ ल. ६८ । ३०. बारग-अ० १११ गु० ४१ ल० ७० । ३१. सरभ-अ० ११२ गु० ४० ल० ७२ । ३२. जंगम-अ० ११३ गु० ३६ ल० ७४ । ३३ जुतिष्ट-ग्र. ११४ ग० ३८ ल० ७६ । ३४. दाता-अ. ११५ गु० ३७ ल० ७८ । ३५ सरअ० ११६ गु० ३६ ल° ८० । ३६ सुसर (सुस्सू)-अ० ११७ गु. ३५ ल० ८२। ३७ समर (बद्ध नाळीक जात)-ग्र० ११८ ग० ३४ ल० ८४ । ३८. सारसअ० ११६ गु० ३३ ल° ८६ । ३६. सारद (ईनै वळता संख कैवै छै)-अ० १२० गु० ३२ ल. ८८। ४० मेर-अ० १२१ गु० ३१ ल० ६० । ४१. मकरअ० १२२ गु० ३० ल० ६२ । ४२. मद-अ० १२३ गु० २६ ल० ६४ । ४३. सिंघ-अ० १२४ गु० २८ ल० ६६ । ४४. बुद्धि-अ० १२५ गु० २७ ल०६८। ४५. करतल (मुगताग्रह)-ग्र० १२६ गु० २६ ल० १०० । ४६. कमलाकर--अ० १२७ गु० २५ ल० १०२। ४७. धवल-अ० १२८ गु० २४ ल० १०४ । ४८. सुमण-अ० १२६ गु० २३ ल० १०६ । ४६. मेघअ० १३० गु० २२ ल० १०८ । ५०. कनक (कमळबंध अंत नगण सरवत्र)अ० १३१ ग० २१ ल. ११० । ५१. क्रष्ण-अ० १३२ ग०२० ल० ११२ । ५२ रंजन-अ. १३३ गु० १६ ल० ११४। ५३. ध्र व-अ० १३४ गु० १८ ल० ११६ । ५४. ग्रीखम (ग्रीष्म)- अ० १३५ गु० १७ ल० ११८ । ५५. गरुड़ (ईं कवितको नाम समवळति विधांन कहै छै) -अ० १३६ गु० १६ ल० १२० । ५६. ससि-अ० १३७ गु० १५ ल० १२२ । ५७. सूर-अ० १३८ गु० १४ ल० १२४ । ५८. सल्य (शल्य)-अ० १३६ गु० १३ ल० १२६ । ५६. नवरंग www. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] रघुवरजसप्रकास अ० १४० गु० १२ ल० १२८ । ६०. मनहर (मनोहर)-अ० १४१ गु० ११ ल. १३० । ६१. गगन-अ० १४२ गु० १० ल० १३२ । ६२. रतन-अ० १४३ गु० ६ ल० १३४ । ६३. नर-अ० १४४ गु० ८ ल० १३६ । ६४. हीरअ० १४५ गु० ७ ल० १३८ । ६५. भ्रमर-अ० १४६ गु० ६ ल० १४० । ६६. सेखर-अ० १४७ गु० ५ ल० १४२ । ६७. कुसम (ईंको नाम जातासंख कैवै छै)-अ० १४८ गु० ४ ल० १४४ । ६८. दोप-अ० १४६ गु० ३ ल० १४६ । ६६. संख-अ० १५० गु० २ ल० १४८ । ७०. वसु-अ० १५१ गु० १ ल० १५० । ७१. सब्द-अ० १५२ गु० ० ल० १५२ । अथ छप्पै नाम काढण विध। छप्पैरा लघु पाखर व्है ज्यांमेंसं दस घटाय दोय भाग करणा, एक भाग घटायां बाकी रहै जतरमौ छप्पै छ । अथ अजयादिक यकहत्तर छप्पै नाम काढण विध। गिण छप्पयंचा बरण लवु, त्यां मज्झ दळ टाळ। आधा कीधां ऊबरै, वेडर नाम वताळ ॥ २०६ इति यकहत्तर विध छप्पय अख्यर गुरु लघु प्रमाण नाम कथन संपूरण । सुभं भवतु अथ मात्रा छंद, मात्रा उपछंद, मात्रा असम चरण, मात्रा दंडक छंद गुरु लघु काढण विध । अथ दूहौ पूछ अन कवि छंद पढ़ि, गिण जिण मत्त प्रमाण । घटै स गुरु कह गुरु घटै, सेख रहै लघु जाण ॥ २०७ प्ररथ पैला कवेस्वर दूही पढे नै कहै--यणमें गुरु कितरा, लघु कितरा सौ कहौ । जठै दुहारी सरब मात्रा अड़ताळीस गिणणी, अड़ताळीसमें घट जतरा गुरु प्रखर जांणणा नै गुरु हुवै सौ घटायां बाकी रहे सौ लघु जांणणा । यूं सरब मात्रा छंद गीत कवितादिक जांणणा। २०५. ज्यांमेंसू-जिनमें । जतरमौ-उतना । यकहत्तर-इकहत्तर । २०६. वेडर-निर्भय । बताळ- बतला। २०७. काढण-निकालने । अन-अन्य । सेख-शेष । पैला-प्रथम । कवेस्वर-कवीश्वर । यण इस । कितरा-कितने । जतरा-उतने, जितने । यू-इस प्रकार । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास उदाहरण दूहौ रे चित व्रत द्रढ़ एम रख, मूरत सांम मझार । मेल्ह सुरत नट वांसमें, प्रगट वरत व्है पार ।। २०८ प्ररथ इण दूहारा अड़तीस अखिर छै, नै हौ छंद अठताळीस मात्रारौ व्है छै । अठताळीस मांहासू दस अखिर गिया जद अड़तीस रहया । ___सौ ईं दूहामें दस गुरु आखिर छ, नै अड़तीस मांसू दस गुरु आखिर घटाया जद अठाईस रहया, सौ अठाईस आखिर लघु छ, यूं समस्त मात्रा छंद जांणणा । वळ अह-पिंगळ कवितरी, वदी जात बावीस । तवं नाम सारा तिकै, वळ नोखा वरणीस ॥ २०६ __ अथ बावीस छप्पै नाम कवित छप्पे वळता १ जाता संख २ कमळबंधह ३ समबळ ४ कह । लघु ५ द्धनाळीक ६ छत्र ७ नीसरणीबंधह ८ ॥ नाट ६ चोप १० संकळह ११ अनै मुगताग्रह १२ अक्खव । कंड ळियौ १३ चौटियौ १४, वेध-हीरा १५ कर-पल्लव १६ ॥ २०८. एम-इस प्रकार । मूरत-मूर्ति । सांम-श्याम, स्वामी, श्रीरामचंद्र भगवान । मझार-मध्य, में । मेल्ह-रख । सुरत-ध्याव । वरतन-वरत्र, चमड़ेका मोटा रस्सा । २०६. वळ-फिर । अह-पिंगळ-नागराज पिंगल, शेषनाग। वदी-कही। तवू-कहता हूँ। तिक-वे २२ छप्पय कवित्तोंके नाम-- १. वळता (वळता-संख), २. जाता संख, ३. कमळबंध ४. समवळ (समवळ विधांन अथवा समवळ विधांनीक), ५. लघुनाळीक, ६. ब्रद्धनाळीक, ७. छत्रबंध, ८. नीसरणीबंध, ६. नाट, १०. चोप, (मतांतरसे चोपई, छप्प, कवित), ११. संकळ (संकळजात), १२. मुकताग्रह, १३. कुंडळियौ, १४. चौटियो (चौटीबंध), १५. वेधहीरा (हीराबेधी) १६. करपल्लव । २१०. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] रघुवरजसप्रकास एक-लवयण १७ मज्झ अक्खरौ १८, हल्लव २० विद्द | २१ अहरेअळग २२ विधांनीक १६ ताळ र-व्यंव वीस दोय छप्पय अथ अनुक्रमसे छप्पै नांम दूहा वृद्ध - नाळीक ४ | वळता १ जाता २ संख लघु ३ समवळ ५ नाट ६ चौटियौ ७, ताळ व्यंव ८ तहतीख ॥ २११ चोप & हल्लव १० कवीत ए, दिया नाग दरसाथ । कहतरसं अधिक कहि, कीधी जुगत न काय ॥ २१२ ܘ कर विचार मनहं कहूं, वरण सुद्ध वणाय । तगसीरी छिम जोतका, 'किसन' कहै कविराय || २१३ ܘ " सुवद ॥ २१० उक्त छप्पै दूहा कमळ १ छत्रबंधह २ कवित, निसरणीबंध ३ नांम । मुगताग्रह ४ करपल्लवी ५, तव कुंडळियौ ६ ही तांम ॥ २१४ हीरावेधी ७ हिक वयण ८, मझ अखिरौ विधान १० । अह्रअळग ११ संकळयता १२, मुणिया नाग सुमांन ॥ २१५ द्वादस छपय ग्रह दखे, जुगत रूप सुध जांग | बावीसह छप्पय व ू, वरणे राम वखांण् ॥ २१६ २०. हल्लव, १७. एकळवयरण (हे कलवयरण), १८. मज्भखरी, १६. विधांनीक, २१. ताळू व्यंब, २२. हरेअळग ( अहरग्रळग ) । नोट- उपर्युक्त २२ ही छप्पय कवित कविने प्रागे इसी क्रमसे नहीं दिये हैं । २११. कहतर- इकहत्तर । कीधी की जुगत-युक्ति । २१२. काय - कुछ | तगसीरी-तकसीर, कमी । छिम-क्षण, क्षीण । २१३. तब कह । २१४. मुणिया कहे । नाग- नागराज पिंगल, शेषनाग । २१६. बदूं कहता हूँ। वखांण-यश, कीर्ति । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ६५ अथ समवळ विधांन छप्पै मात्रा वरण लछण दूहौ आद अंत छप्पय नगण, गुरु पनरहै उगुणीस । यक सौ सैंतीसह अखर, बद लघु सौ बावीस ॥ २१७ अरथ छ ही चरणके आद अंत नगण आवै, एकसौ सैंतीस सरब अखिर । पनरै गुरु अखिर होवै, लघु अखिर एकसौ बावीस होवै अर उपमे उपमांनको सम भाव वरणै सौ समवळ विधांन कवित छप्पै । दहौ जिणमें समता वरणजै, उपमे अर उपमांन । जांणौ छप्पै अह जपे, सौ सम वळह विधांन ॥ २१८ ____ समबल विधांन छप्पै उदाहरण नयण कंज सम निपट, सुभग आणण हिमकर सम। जप सम ‘ग्रीवह' जळज, तवत सम हीर डसण तिम ॥ अधर ब्यंब सम अरुण, समह भुज नागरौ ज सख । सिल समांन उर समर, अथघ सम स्यंध उदर अख ॥ कह सम मयंद अतछीण कट, जयत खंभ रिण सुपय जिम । समवळ विधांन खटपद 'किसन', सुज राघव रवि कोट सम ॥२१६ जाता संख लछरण दहौ रस स्यंगार य हासरस, बिच जिण कवित बरखांण । जाता संख जिणानं कहै, वरणव राम वखांण ॥ २२० २१७ उगणीस-उन्नीस। २१८. समता-समानता, सादृश्य । उपमे-उपमेय, जिसकी उपमा दी जाय, वर्णनीय । उपमांन-वह पदार्थ जिससे किसी दूसरे पदार्थको उपमा दी जाय। अह-शेषनाग । २१६. कंज-कमल। सम-समान । निपट-अत्यन्त । सुभग-सुंदर । प्रांगण-ग्रानन, मुख । हिमकर-चंद्रमा। जळज-शंख । हीर-हीरा । डसण-दाँत । अधर-अोष्ट । ब्यंबबिब । अरुण-लाल । समह-समान । नागरौ-हाथीका। समर-युद्ध । अथघ-अपार । स्यंध-सिंधु । मयंद-सिंह। छोण-क्षीण। कट- कटि, कमर । खंभ-स्तंभ । सुपय चरण, पैर । खटपद-छप्पय । २२०. स्यंगार-शृंगार । हास रस-हास्यरस । वखांण-वर्णन । वरणव-वर्णन कर। वखांण यश, कीर्ति । www. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास जाता संख छप्पै उदाहरण हास्यरस सगर सुतण जिग करत, अगत हकनाहक दीनी। वर करतां सुपनखा, कान नासा विण कीनी ॥ जाचतां निज रूप, कियौ नारद मुख बंदर । त्यागी सौळ हजार, घाल कुबज्या धर अंदर ॥ कैळासे नरग उधार कीय, अजामेळ उतावळां । आदेस करै 'किसनौ' अनंत, राघव कौतक रावळां ।। २२१ __ अथ वळता संख छप्पै लछण वदीस तुक पाछी वळे, पर लाटानुप्रास । · वळता संख वखांणजे, सकौ कवित सर रास ॥ २२२ अरथ पैली कही सौ तुक फेर पाछी कहै, लाटानुप्रास अलंकार ज्यू तथा सीह चला गीत ज्यूं सौ वळता संख कवित तुकां पाछी वळ जींसू । अथ वळता संख उदाहरण कवित छप्पै जिण भजियौ जगदीस, जिको जमहं त न भजियौ। नह तजियौ रघुनाथ, तेण मृत जांमण तजियौ । निज लीधौ हरि नाम, जिकण जम नाम न लीधौ । तिण नंह अम्रत त्रखा, राम नामांम्रित पीधौ ॥ २२१. सुतण-सुत, पुत्र । जिग-यज्ञ । अगत-अधोगति । हकनाहक-व्यर्थ। दीनी-दी। वर पति । नासा-नाक। विण-बिना, रहित । कीनी-की। केळा-क्रीड़ा, खेल । नरगनरक । ऊतावळा-शीघ्रता करने वालों । प्रादेस-नमस्कार । अनंत-विष्ण, ईश्वर । कौतक-कौतुक, खेल, क्रीड़ा । रावळा-आपके । २२२. वदीस-कही जाती । वळे-फिर । वखांणज-वर्णन कीजिये। सकौ-वह । ज्यूं-जैसे । जीतूं-जिससे । २२३. जिण-जिस । भजियौ-भजन किया, स्मरण किया। जिकौ-वह। जमहंत-यमराजसे । भजियो-भागा । म्रत-मत्यु । जांमण-जन्म । लीधौ-लिया। जिकण-जिसका। त्रखातषा, प्यास । नामांम्रित-नाम रूपी अमृत । पीधौ-पिया । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । ६७ नर च्यार असी नाचै निकं, निज हरि आगळ नाचियो । जाचणौ जिकां रहियौ न जग, ज्यां रघुनायक जाचियो॥ अथ संकल जात छप्पै लछण एक सबदकी तेवड़ी, व्है आवरत विसेस । कहियौ अह तिण कवितरौ, संकळ नाम कवेस ॥ २२४ सांकळ कवित उदाहरण छप्पै पूर अपूरिय प्रास, तौ पिण उमरथी पूरिय । हाथ जुड़त तिल चढ़ न, हाथ डुळ हाथ हजूरिय ॥ दिल ऊजळ नर उजळ, लखिन ऊजळ सिर लेखीय । दौलत दौलत मिलि न, लगी दो लत द्रिढ़ लेखीय ।। कवि क्रिस्ण क्रिस्ण चित दुरन किय, क्रस्ण जगत देखीय कपट । रे राम मंत्र रट राम रट, राम राम रट राम रट ॥२२५ कमळबन्ध लछण दही द्वादस दळ द्वादस तुकां, अखर एक तुक अंत । सौ अधबिच तुक चौतरफ, कमळबंध स कहंत ॥ २२६ २२३. प्रागळ-अगाड़ी, अग्र । जाचणौ-याचना । जिकां-जिनको। २२४. तेवड़ी-तीन वार । प्रावरत-आवृति । २२५. पूर-पूर्ण । अपूरिय-अपूर्ण । पिण-भी। दौलत-परिभ्रमण । दौलत-धन, संपत्ति । लेखीय-समझिये। २२६. द्वादस-बारह । दळ-फूलोंकी पंखड़ी। सौ-वह । अधबिच-ठीक मध्यमें। चौतरफ चारों ओर । स-वह । कहंत-कहा जाता है । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] रघुवरजसप्रकास कमळबंध उदाहरण छप्पै कौसळ या सुख करण, नेत-बंध दसरथ नंदण । व्रत खित्रवट निरवहण, दुसट ताड़का निकंदण ॥ रिण सुबाह संघरण, असुर मारीच उडावण । रज पै अहल्या तरण, संत जम त्रास छुडावण ॥ व्रत जनक राख सीताबरण, धांनुखभंजण जटधरण । मुण 'किसन' सुजस रघु-बंस-मण, सीतापत असरण सरण ॥ २२७ नेत बंध दसरथ नंद। 3-व्रत रिवत्र वट निरवह ४- दुमट ताड़का निकंद १-कोसल्या सुरख कर anna-R ELErti-5 - 1212 सीतापत असरण सर PIEN. HIK HAPE-2 -0 १०-धानुरव भजणजट भार तजनक राव सीताबर ११-मुणकिमन सुजम रघुवंभम (- २२७. नेत-बंध-अपना निजका झंडा या ध्वजा रखने वाला, वीर। नंदण-पुत्र । व्रत-वृत, आचार । खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता, शौर्य। निरवहण-वहन करने वाला, धारण करने वाला, निभाने वाला। निकंदण-संहार करने वाला, मारने वाला। रिणयुद्ध। संघरण-संहार करने वाला, मारने वाला। रज-धुलि। पै-चरण, पैर । तरण-उद्धार करने वाला। जम-यम, यमराज। त्रास-भय, डर। बत-प्रण। सीताबरण-सीतापति, श्रीरामचंद्र । धांनुख-धनुष । भंजण-तोड़ने वाला। जटधरणमहादेव । मुण-कह, वर्णन कर । रघु-वंस-मण-रघुवंशमरिण । सीतापत-सीतापति । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ f क स सरब कवितौ रथ सौ, अंत चरण आभास । द अखर तुक नीसरै, जपै छत्रबंध जास ॥ २२८ छत्रबंध उदाहरण அ स स के स Cha धे के स रघुवरजसप्रकास अथ छत्रबंध छप्पै लछण हौ w कै 석 h व कै جاه ध व ग्र त्र स ध व ग्र स ho ध छ bhr व अ कै स कै 3 व श्र त्र छ त्र व ऋ ग्र स प छ 百 व अ त्र 希 स Ato स कै धे व ग्र त्र छ प श्रौ प छ त्र अ व धे स छप्पे कह सेवा की कहै १ ९, नांम परजंक कवरण भरण २ ? | अख के मासां यन ३ १, नांम की सिंभ जयौ जिण ४ ? || कहजै देवां सिं ५१, महत आदरैन ६ ? । दूध संघ कुरण दूध ७ ?, मित्र दाखत कीजै रिप पंड कवरण कह नांम जिण 2 ? संतां तार किव 'किसन' छत्रबंधह कवित, ओप छत्र धे व 16. कै स कै स अ व धे [ es कै ܘ नं ८ ? ॥ . २२६. परजंक- पर्यंक, पलंग । कवण - क्या । भण- क है । श्रख - कहै । के कितने । प्रयनसूर्य अथवा चंदकी उत्तर दक्षिणकी ओर गति या प्रवृत्ति जिसको उत्तरायण और दक्षिणायन भी कहते हैं । जयौ जीता ! रिप शत्र | पंड पंडव । कवण - कौन ! सुरेस - इंद्र | नोट- १ ओयण (चरण) । २ पलंग । ३ छ मासां । ४ त्रपुर । ५ अमर । ६ वडाई | ७ घेनकौ । ८ सजण । कैरव। इन शब्दों आदि प्रक्षरके पढ़नेसे अवधेसकै' इस तुकका छनबंध बनता है। 'ओप छत्र सुरेस के | अवधेस ॥२२६ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] रघुवरजसप्रकास अथ मझ अखिरा छप्पै लछण कवित अरथ बाहर लिखे, अखिर मझ विचार । और जठै प्रगटै अरथ, सौ मम अख्यर धार ॥ २३० अथ मझ अखिरा छप्पै उदाहरण स्वाद मीठा कह किसौ १?, किसं मूरखनं कहजै २ ? । की कह भ्रात कनेठ ३ ?, नाम रेखा की लहजै ४ ? ॥ कहै धरानं किसं ५ ?, रंक किण नाम जितं कह ६ ? । मंदभाग की मुणै ७ ?, ठहै तारा किण ठामह ८ ? ॥ रघुनाथ भगौ की जनकघर ह ? , भल बुध किस भणी जियै १० ? । कवि किसन' कवित मझ अख्यिर कह , जस रघुनाथ जपीजियै ॥ २३१ अथ लघुनाळीक छप्पै लछण अखर अठारह चरण चव, बे चरणां बावीस । कवित लघु नाळीक कहि, बरणत सरब कवीस ॥ २३२ अथ लघुनालीक छप्प तिण मारी ताड़का, जिकण रिख मख रखवाळे । हण सबाह मारीच, पैज खित्रवट ध्रम पाळे ॥ २३०. जठ-जहां । प्रगट-प्रकट होता है। अख्यर-अक्षर । २३१. मीठ-मीठा। किसौ-कौनसा। किसं-क्या। की-क्या। कनेठ-कनिष्ठ । धरा अवनी, पृथ्वी । जितूं-जीता। मंद भाग-प्रभाग्य । मुणे-कहते है। ठहै-ठहरते हैं। ठांमह-स्थान । भगौ-तोड़ा। अख्यिर-अक्षर । नोट-१ मिश्रीको। २ अजाण । ३अनूज । ४ लकीर। ५ अवन । ६ मल्लको। ७ अभागी। ८ गयण । ६ धनख । १० सुमत । इनके मध्याक्षरके पढ़नेसे श्री जांनुकी वल्लभाय नाम बनता है। २३२. अखर-प्रक्षर । त्रव-चार । बे-दो। २३३. तिण-जिस, उस । जिकण-जिस । रिख-ऋषि । मख-यज्ञ। रखवाळ-रक्षा की। हण-मार कर। पंज-मर्यादा, नियम, आचरण । खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता, शौर्य । ध्रम-धर्म । पाळे--पालन किया। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १०१ नग रज गौतम नार, जेण उधरी जग जाणै। धनुख भंज सीय बरी, प्रथी भुज जोर प्रमाणे ॥ रे अधम समझ मुख नाम रट, सीत-बर समराथको । कह जीहहं त 'किसना' कवी, नितप्रत जस रघुनाथको ॥ २३३ अथ ब्रधनाळीक छप्पै लछण दूही उगणीसह चव पद अखिर, अकवीसह बे औण । कवित बधनाळीक कवि, भणै नाग त्रय-भौण ॥ २३४ अथ बधनालीक छप्पै उदाहरण जिण राघव जापियां, थरू घर नवनिध थावत । जिण राघव जापियां, प्रसध ईजत नर पावत ।। जिण राघव जापियां, सुलभ भवसागर तरसी । जिण राघव जापियां, सरब मन कारज सरसी ॥ जापियां जेण रघुबर सुजस, धरै ऊच विरदां धरा । तैं नाम जोड़ नां ज्याग तप, नित राघव जप जप नरा ।। २३५ अथ निसरणीबंध छप्प लछण दही एक दोय त्रण ऐण क्रम, छप्पय करै वखांण । गत जिम चढजे गातियां, निसरणीबंध जांण ।। २३६ २३३. नग-चरण । रज-धूलि । नार-नारी, स्त्री। जेण-जिस । अधम-नीच, पतित । सीत-बर-सीतावर, श्री रामचंद्र भगवान । समराथकौ-समर्थका। जीहहंत-जिहासे । नितप्रत-नित्यप्रति । २३४. अकवीसह-इक्कीस । बे-दो। औण-चरण । त्रय-भौण-त्रिभवन । २३५. जिण-जिस । जापियां-जपने या भजन करने पर । थरू-स्थिर । नवनिध-नवनिधि । थावत-हो जाती है। प्रसध-प्रसिद्धि । पावत-प्राप्त करता है। भवसागर-संसार रूपी समुद्र। कारज-कार्य, काम । सरसी-सफल होंगे, सिद्ध होंगे। जेण-जिस । विरद-विरुद, कीर्ति । तै-उस, उसके । जोड़-समान, बराबर । ना-नहीं। ज्याग-यज्ञ। २३६. गत-प्रकार, तरह । गातियां-काष्ट या लोहकी बनी निश्रेणीके बीच-बीच में लगे वे उंडे जिन पर पैर रख-रख कर चढ़ते व उतरते हैं, पांवदान । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] रघुवरजसप्रकास अथ निसरणीबंध छप्पै कवित उदाहरण एक रमा अह निसा, दोय रवि चंद त्रिगुण दख । च्यार वेद तत पंच, सुरत छह सपत सिंध सख । आठ कुळाचळ अनड़, नाग नव नाथ निरंतर । दस दिगपाळ दुबाह, रुद्रह एकदस सर तर ।। सझ सझ उमंग बारह सघण, बिसुध चित्त कायक बयण । तेरहा भांण पय रांमतौ, भल सेवै चवदह भुयण ॥२३७ अथ नाट नाम छप्पै लछण नाट सबद जिण कवितमें, आद अंत लग होय । नाट नाम तिणनं कहै, सुकव महा-मत सोय ॥ २३८ अथ नाट छप्पै उदाहरण लाभ नहीं अहलोक, नहीं परलोकह निरभय । सुमति नहीं ज्यां स्यांन, खांत ज्यां नहीं पाप खय ॥ जीवण सुख नहिं जिकां, नहीं ज्यां मुवां मुकत निज। नहीं जिके नहच्यंत, कदे ज्यां नहीं सरै कज ॥ निकलिंक बांण ज्यांरी नहीं, दसा नहीं सुभ ज्यां दपै । ज्यां नहीं सफळ मनखा जनम, जिके नहीं रघुबर जपै ॥ २३६ २३७. अहनिसा-रात-दिन । रवि-सूर्य। चंद-चंद्र । दख-वह। तत-तत्त्व । पंच-पांच । सपत-सात । सिंध-समुद्र । कुळाचळ-पाठ पर्वतोंका समूह, मतांतरसे सात पर्वतोंका समूह, कुलपर्वत । अनड़-पर्वत । दिगपाळ-दिकपाल । दुबाह-महान, दृढ़ । उमंग-तरंग, इच्छा । सघण-घन, बादल । पय-चरण । मल-ठीक, श्रेष्ठ । भुयण-भवन । २३८. नाट-नहीं, नहीं अर्थका शब्द । महा-मत-महामतिवान । सोय-वह । २३६. अहलोक-इह लौक, इस संसार में । सुमति-श्रेष्ठ मति । स्यांन-बुद्धि । खांत-विचार । ज्यां-जिन । खय-नाश । मुकत-मुक्ति, मोक्ष । नहच्यंत-निश्चित । कज-काम । दषैशोभायमान होती है। मनखा जनम-मनुष्य जन्म । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १०३. अथ चौपई नाम छप्पै लद्रण बीस बीस चोपद बरण, दोय बीस दो पाय । चोप किवत जिण चोपसुं, रटीयौ पनंगांराय ॥ २४० अथ चौपई छप्पै उदाहरण चोप अरच हरि चरण, चोप फिर रे परदछण । चोप करे करजोड़, जनम सरजत आगळ जण ।। चोप करे चित बीच, नाम सिर अगर सु नर हर। चंनण घस जुत चोप, कमळ त्यं तिलक चोप कर ॥ अत चोप भजन सी-वर उचर, ध्यान हृदय जुत चोप धर । कवि चहै चोप रघुराजको, कर कर चोप स भजन कर ॥२४१ अथ मुकताग्रह नाम छप्पै लछण दूही आद अंत तुकरै झमक, अरथ अवर उर आंण । गंथ मुकत जिम छपय गत, मुगता ग्रह परमाण ॥ २४२ अथ मुकताग्रह कवित उदाहरण भव ब्रहमा जिण भजै, भजै तिण नांम पाप भर। भर टाळण सह भूम, भूम-पतनको जेण सर ॥ सर धनुं धार समाथ, माथ दस भंज समर मह । २४०. चोपद- चार पद या चरण। बरण-अक्षर । पाय-चरण । चोप-बुद्धि, चतुराई, दक्षता। पनंगांराय-शेषनाग । २४१. अरच-पूजा कर । परदछण-प्रदक्षिणा । जनम सरजत-जो जन्म देता है, जन्म रचता है। प्रागळ-अगाड़ी। जण-जिस । चोप-ध्यान । कमळ-शिर, मस्तक । सी-वर सीतावर, श्री रामचन्द्र । उचर-उच्चारण कर, भजन कर । चोप-कृपा, दया । २४२. झमक-यमकानुप्रास । गूंथ-रच, बना । मुकत-मोती। २४३. भव-महादेव शिव । व्राहम-ब्रह्मा । भर-भार. बोझ । भम-भमि । भमपत-भमिपति । सर-बारण, तीर । धनु-धनुष । समाथ-समर्थ । माथ-मस्तक, सिर । समर-युद्ध । मह-में। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] रघुवरजसप्रकास मह राखण मुरजाद, जादपत पब्बे तार जह ॥ जह दुसह पाळ जन सांमरथ, रथ खगेस मारुत सजव । सज मख सिहाय भंजण सुभुतज,भज रघुबर तर उद्घ भव ॥२४३ अथ छप्पै नाम कवित कुंडळिया लछण दूही पहलां दूही एक पुण, आद अंत तुक जेण । पलटै धुर पूठा कवित, तव कुंडळियौ तेण ॥ २४४ अथ कुंडलिया उदाहरण जपै रसण रघुबर जिकै, अध त्यां कपै अमाण । जनम मरण सुधरै जिकां, जे बड़भागी जाण ॥ जे बड़भागी जाण, लाभ तन पायां लीधौ । त्यां जिग किया तमांम, काम सुक्रत ज्यां कीधौ ॥ वां व्रत किया अनेक, हिरण दे दे विप्रां हथ । ज्यां सधिया अठ जोग, त्यां किया कौटक तीरथ ॥ धन मात पिता जिण वंस धर, कळ ख तिकां दरसणा कपै । कवि 'किसन' कहै धन नर तिकै, जिके रस रघुबर जपें ॥२४५ २४३. मह-महि, पृथ्वी। मरजाद-मर्यादा । जादपत-यादपति, समुद्र । पब्बै-पर्वत । जह जिस । सांमरथ-समर्थ । खगेस-गरुड़। मारुत-पवन । सजव-वेग सहित । मख यज्ञ । सिहाय-सहाय । उदध-उदधि, समुद्र । भव-संसार । २४४. पहलां-प्रथम । पुण-कह । धुर-प्रथम । तव-कह । २४५. रसण-रसना, जिह वा । अघ-पाप । कपै-नाश होते हैं। अमांण-अपार । वडभागी बड़े भाग्यशाली। जांण-समझ। जे-वे, जो। लीधी-लिया। त्यां-उन्होंने । जिग-यज्ञ। तमाम-सब, समस्त। सुक्रत-पुण्य । कोधौ-किया। वां-उन्होंने । हिरण-हिरण्य, सोना। हथ-हाथ । सधिया-साधन किये। अट-जोग-अष्ट-योग । कौटक-करोड़ों। धन-धन्य। मात-माता। कळुख-पाप। तिकां-जिनके, उनके । जिके-जो, वे। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ चौटीबंध छप्पै लछण दूहौ आद कहै सौ अंतमें, नांम गणत नरबाह । सिरै कवि बंधे सिखा, चौटीबंध चौटीबंध सराह ॥ २४६ अथ चौटीबंध छप्पै उदाहरण सूरजपणौ सतेज, स्रवण अम्रत हिमकर सम । उर दाहक सम आग, तौर सुर-राज राज तिम ॥ सत हरचंद समान, प्रगट दरियाव अथघपण । सुर तर आस सपूर, जांण पारस सेवक जण ॥ रवि अमी आग इंद चंद हरि, दुध सुरतरमण आद ले । परभाव आठ निज कांम पर, एक रांम तन ऊकळे ॥ २४७ अथ हीराबेधी छप्पै लछण दूहौ | १०५ नारंगी संसार नीम, ऊबर कर अंह | करणा सुभ करतूत, झाल हर कदमां बह ॥ एक हीरौ विहरियां, दूजौ हीरौ थाय । हीराधी कवित जिम, दोय रथ दरसाय ॥ २४८ अथ होराबेधी छप्पै उदाहरण २४६. सिर- श्रेष्ट । सराह - प्रशंसा कर, सराहना कर । २४७. सूरजपणौ -सूर्यत्व, सूर्यका गुण । स्त्रवण-श्रवण, टपकना । हिमकर-चंद्रमा । समसमान । दाहक - जलाने वाला । सुरराज- इन्द्र । सत - सत्य । हरचंद - हरिश्चंद्र, हरिचंदन | प्रथघपण - प्रथाहपन, गहरापन । श्रमी अमृत । सुरतर- कल्प वृक्ष । मणमरिण । श्रादादि । ऊभळ-प्रभाव दिखाता है । २४८. विहरियां - विदीर्ण करने पर, चीरने पर । २४६. अंबर - वृक्ष विशेष । बह- श्राम्र । करणा-वृक्ष विशेष व उसका फल । करतूत - कर्त्तव्य, काम | काल - पकड़ । कदमां-चरण, वृक्ष विशेष । बह-सहारा Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास बोर छोड़ बावळा, खैर करमद बकायण । बीजा धव बट बैत, ईख सुरतर नारायण ॥ खरबूजा जग सह जाय रे, सौ असोक अंमर सदै । सैमळ सरीस तज आन सुण, दाख रांमफळ सेवदे ॥ २४९ अथ करपल्लव नाम छप्पै लछण आंगळियां करसं अरथ, जेण कवितरौ होय । आछी विध अह अक्खियो, करपल्लव कह सोय ।। २५० ____ अथ करपल्लव छप्पै कवित उदाहरण यं जे तैं न कियौ, करसु यं जण जण आगळ। यं न लिया हरि अगै, लेस नितप्रत गदगद गळ ।। कीध यं नह कदे, करसु तोपण विध दुख तन । यं न कियौ उण हेत, देस तौ यं जग दन दन । यम येम ए मन कीयौ अधम, मूरख यं जम मारसी। यं कियौ ज तैं अहनिस अवस, यं रघुनाथ उधारसी ॥ २५१ प्ररथ हे प्रांणी तें स्री रामचंद्र प्रागै हाथ नहीं जोड्या तौ तूं जणा जणा आगळ हाथ जोड़सी। जो तें दसी आंगळ प्रभु प्रागै मुखमें न लिया, तौ जगत आग। २४६. बोर-बदरी नामक वृक्ष या उसका फल । बावळा-मूर्ख । खैर-वृक्ष विशेष, कुशल । करमदा-वृक्ष विशेष, तथा उसका फल । बकायण-नीम जैसा एक वृक्ष । बीजा- दूसरा, एक वृक्ष विशेष या उसका फल । धव--वृक्ष विशेष । बट-बरगदका वृक्ष । बैत-बेंत, एक लता । ईख-देख, गन्ना, इक्षु । सुरतर-कल्पवृक्ष । प्रान-अन्य । दाख-द्राक्षा, कह । रामफळ-सरीफा, सीताफल । २५०. अह-अहि, शेषनाग । अक्खियो-कहा। २५१. यूं-ऐसे । तें-तूने। प्रागळ-अगाड़ी। अग-अगाड़ी। लेस-किंचित । नितप्रत-नित्य प्रति । गदगद गळ-गदगद कंठ। कीध-किया। कदे-कभी। तोपण-तो भी। हेतस्नेह । अवस-अवश्य । प्रांगळ-उंगुली । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १०७ गदगद कंठ होय नित हाहा खासी नै प्रांगळी मूंढामें लेसी। जे ते श्री राम आगै ऊभी आंगळी न कीदी, तौ सरीरमें दुख पाय जणा जणा प्रागै ऊभी अांगळी करसी। ऊण ईस्वर निमत यूं कैतां देवाकै वासतै हाथ पांची प्रांगळयांसू ऊंचौ न कीधौ तौ थारै जगत माथामें यूं पांची आंगळयांसू डूचका देसी। यम कैतां प्रभुनै कदी पांच ही आगळ्यांसू चंदण पुसप चढ़ाया अरच्या नहीं, फेर एम कैतां प्रभुरी आरती उतारी नहीं, फेर यम कैतां प्रभुनै नमसकार प्रणांम कीधौ नहीं तौ यूं जम मार देसी, अर कदा'क तें यूं कैतां प्रांगळ्यांसू रात दिन माळा फेरे नै भजन कीधौ छै तौ यूं कहतां बांह पकड़ नै भवसागर मांसू , यूं स्री रघुनाथ उधारसी, इति करपल्लव कवित अरथ । अथ हेकल्लवयण छप्पै लछण यक सौ अर बावन अखर, जठै सरब लघु जाण । एकल बयणौ कवित यं , वदियौ नाग वखांण ॥ २५२ अथ हेकल्लवयण छप्पै कवित उदाहरण तरण सरस छब तरण, सरण असरण हरखरण सक। मरण जनम भय मटण, धरण बड बरद रहत धक ॥ अजर जरण रण असह, दन जद ससर सम वड दह । लख दन समपण लहर, कहर चत अघट अथध कह ॥ भल करम मन वतन, अत दलभ, अखत बयण अह नर अमर । कर हरख पहर अठ कव 'कसन', सधर समन रघबर समर ॥२५३ २५१. प्रांगळी-उगुली । कीदी-की। निमत-निमित्त, लिए । वासते-लिए । कोधौ-किया। डूचका-मुट्री बंद करके मध्यमा उंगलीको इस स्थितिमें रखना जिससे उसका पीछेका जोड़ दूसरी उंगलियोंसे कुछ आगे निकल! हा हो। इस उठे हए भागसे किया जाने वाला प्रहार या चोट । कदी-कभी। कदाक-कभी। २५२ यक सौ-एक सौ । जठे-जहां । वदियौ-कहा । नाग-शेषनाग । २५३. तरण-तरणि, सूर्य । सरस-समान । तरण-तरुणी। बड-बड़ा। बरद-विरुद । धक-इच्छा । रण-युद्ध । असह-असह्य। कहर-कोप । अथघ-अपार । अत दलभअति दुर्लभ । प्रखत-कहता है । अह-नाग । अमर-देवता । रघबर-रघुवर । समरयाद कर, स्मरण कर । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] रघुवरजसप्रकास अथ हल्लव नाम कवित लछण वीस वीस चौतुक अखर, बेतुक कह बावीस । हल्ल सबद वरणै सुमझ, हल्लव नाम कहीस ॥ २५४ अथ हल्लव नाम कवित उदाहरण हल हल्लिय गिर आठ, सपत हल्लिय जळ सायर । धूजह हल्लिय धरण, गिरद हल्लिय नभ छायर । सिर हल्लिय अध सेस, हहर चित्त कछप हल्लिय । हल्लिय दाढ़ वराह, दुसह हल हल्ल दहल्लिय । हल हल्लिय लंक गढ़ बंकसौ दस-धू पै हल काहल्लिय । हल्लिय पताख गजराज पै, विजै कटक राघव हल्लिय ॥ २५५ अथ कवित छप्पै नाम ताळू रब्यंब लछण दहौ । लागै पढ़तां ताळवै, जीहा अग्र जरूर । कहजे छप्पय 'किसन' कवि, तिको ब्यंब ताळ र ॥ २५६ __अथ ताळू रव्यंब छप्पै उदाहरण रट रट रे नर ईस, नाय औणे जिण सीसं । चाळ झाल कर चहू, देस ईछत जगदीसं ॥ ईस अचळ सरणाय रीझ इज्जत द्रढ़ रक्ख्य ण । दट दट अक्रत दूठ, ईस नां छोड अधक्खरण ॥ २५४. चौतुक-चार तुक । २५५. हल हल्लिय-चलायमान हुए। सपत-सप्त, सात । सायर-सागर, समुद्र । धूजह ध्रुव । वराह-विष्णुका एक अवतार विशेष । दहल्लिय-भयभीत हुए, कंपायमान हुए । दस-धू-दश शिर वाला रावण । २५६. ताळवै-तालु, तालू । जीहा-जिह्वा । तिको-वह । ब्यंब ताळूर-तालूर व्यंब । २५७. नाय-नमा कर। औणे-चरणोंमें। सरणाय-शरण देने वाला। रक्ख्यण-रखने वाला। दट-नाश कर । अक्रत-दुष्कर्म, पाप । दूठ-दुष्ट, भयंकर । नां-नहीं। अधक्खण अधक्षरण । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । १०६ तीरथां इळा अट अट स तं, देणौ चित सतसंग दुस। दस सिर खळ गंजण दाख रे, जांनंकीनायक सुजस ॥ २५७ अहर अळग कवित छप्पै पढ़तां होठ मिळे नहीं, ऊ प फ ब भ म न आंण । कहियौ अह अन कवि कहै, अहर अळग सौ जाण ॥ २५८ अथ अहर अळग छप्पै उदाहरण नारायण नरकार, नाथ नरहर जग-नायक । कंज नयण कर कंज, तरण संतां खळ-तायक ॥ धरणीधर गिरधार धनौ स्रीधर धू धारण । हाथी ग्रह निज हाथ, तोयहूता झट तारण । करुणा निधान कोदंड कर, नित चालण यळ रीत नय । रघुकुळ दिनेस जन लाज रख, जग अधार औधेस जय ॥ २५६ अथ विधांनीक जात छप्पै कवित लछण ले खटहूता नव लगै, वरणै मांझ विधांन । विधांनीक छप्पय वदै, वडा सुकवि बुधवांन ॥ २६० अथ सप्त विधांन छप्पै उदाहरण कमळ उदध कळवरछ, भांण मघाण, मेर ससि । वदन, सहज, दत, तेज, राज, गरूवत दीठ लसि ।। २५७. खळ-असुर, राक्षस । गंजण-नाश करने वाला । दाख-कह ।। २५८. अह-शेषनाग । अन-अन्य । प्रहर-अधर, होठ । अळग-दूर, पृथक । २५६. नरकार-निराकार । कंज-कमल। कर-हाथ । तरण संतां-संतोंका उद्धार करने वाला। खळ-तायक-असुरोंका संहार करने वाला। तोयहूंता-पानीसे । झट-शीघ्र । तारण-उद्धार करने वाला । कोदंड-धनुष । चालण-चलने वाला । यळ-इला, पृथ्वी। नय-नीति । दिनेस-सूर्य । पौधेस-अवधेश, श्रीरामचंद्र । २६०. विधांन-किसी कार्यकी विधि या व्यवस्था। बदै-कहते हैं। बुधवांन-बुद्धिमान । २६१. उदध-उदधि, समुद्र । कळवरछ-कल्पवृक्ष । भाण-सूर्य । मधवांण-इन्द्र । मेर-सुमेरु पर्वत । ससि-चद्र। वदन-मुख । दत-दान । गरूवत-गंभीर, भारी । दीठ-दृष्टि । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] रघुवरजसप्रकास सजळ, सलहर, सपत्र, सतप, सुरस्र ंग, ससीतळ । प्रात, पुनिम, मधु, जेठ, बखा, विग्रह, राका मिळ ॥ प्रफुलंत, अथघ, दतवार, तप, औज, सरण, स्रावण, अम्रत । तन एक रांम दसरथ सुतरण, विहद सात गुण निरवहत ॥ २६१ इति पुरस प्रत विधनिक अथ सत्री प्रत विधनिक छप्प सेस, इंदु, म्रग, दीप, जांण, कोकिल, म्रगपति, गज । बेण, वदन, चख, नाक, बोल, कटि, जंघ, चाल, सज ॥ असित, सकळ, चळ, सुथिर, गुप्त, अंगिरात, अक्रमत । सुरत्रि, व्योम, बन. अयन, नूत, पब्बय, सुब्यंध, थित ॥ मण, सरद, चकित, निस, रतिपतिह, लंघणीक, मंदह चलत । मिथलेस कुवरि सीता सुतन, कवि एती ओम कहत ॥ २६२ इतिविधानिक संपूरण अथ नाट सला छप्पै लछण दहौ रथ, अन तुक दियै उडाय । कवित नै, सुकवि कहै सुभाय ॥ २६३ यक तुक तथा नौति २६१. प्रात- प्रातःकाल । पुनिम- पूर्णिमा । मधु - वसंत, अथवा मधु-वसंत, मधु चैत है, मधु मदिरा मकरंद । मधु मधुहरि मधुसुधा मधुमाधव गोविन्द || राकापूर्णिमा | दतवार - दान | स्रावण (श्रावण) - श्रवरण करने वाला । सुतण-सुत । विहदअपार । निरवहत धारण करते, वहन करते । २६२. प्रत- प्रति । सत्री स्त्री, नारी । सेस-शेष, यहां कृष्ण-सर्प अर्थ है । इंदु - चंद्रमा | ग- हरिण । दीप-दीपक, दिया । कोकिल - कोयल । म्रगपति सिंह । गज- हाथी । बेण - वेरण, वेणी, स्त्रियोंके सिर के बालोंकी चोटी। बदन - मुख । चख-चक्षु, नेत्र बोल - शब्द, आवाज, बचन । कटि-कमर । जंघ - जांघ, ऊरू । चाल-गति । श्रसित - श्याम, काला । सकळ - शुक्ल, सफ़ेद । चळ - चंचल । सुथिर - स्थिर । सुरभि - सुगंधि, खुशबू । व्योम - प्रकाश नूत-आम्र, आम । पब्बय - पर्वत । थित-स्थित । मण-मरिण । निस - निशा, रात्रि । रतिपतिह - कामदेव । लंघणीक भूखा, कृशोदर | मंदह-मंद | मिथलेस-राजा जनक । सुतन - पुत्री । एती - इतनी । श्रोपम-उपमा | कहत - कहता है । २६३. यक - एक । थाये - होता है । श्रन - अन्य, दुसरी । उडाय - मिटा कर । सुभाय सुरुचिकर | Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १११ अथ नाट सला छप्पै उदाहरण सूर प्रभवतौ तेज, तेज नंह इम्रत स्रायक । यिम्रत स्रायक चंद, चंद नह स्यांम सुभायक ॥ स्यांम सुभायक मेघ, मेघ नह मायावंतह । मायावंतह साह, साह नाही खर अंतह ॥ खर अंत ततौ चित्रक अखव, नह चित्रक नर जांणिये । नर नहीं नरां नायक निपट, प्रभव-भांण पहचांणिये ॥ २६४ अथ सुद्ध कुडळियौ लछण कायब दूहासं मिळे, कुंडळियौ सुध कत्थ । अम्रत-धुन अनुप्रास घण, स्री रघुनाथ समत्थ ॥ स्री रघुनाथ समत्थ, हत्थ धारण धनु सायक । सेवक सरण सधार, लेख सेवै पद लायक । सीतानाथ सुजाण, पांण खग धन ब्रद पायब । कं डळियौ सौ कहै, मिळे दूहासं कायब ॥ २६५ २६४. सूर-सूर्य । प्रभवती-उत्पन्न करता है, उत्पन्न करता हुआ। इम्रत-अमृत । स्रायक श्रायक, श्रवने वाला, देने वाला। सुभायक-रुचिकर, मनोहर। मायावंतह-धनाढ्य । साह-सेठ। खर-खरदूषण राक्षससे तात्पर्य है । अखव-कह। चित्रक-हरिण । प्रभव-भांण-सूर्यवंशी। नोट-नाट नामक छप्पयका उल्लेख पूर्व २२ छप्पयोंमें मय उदाहरणके हो चुका है-यह नाटसला भी उसीका एक भेद प्रतीत होता है। २६५. कायब-काव्य छंद, यह रोला छंदका ही एक भेद है जिस रोला छंदके चारों चरणोंमें ११वीं मात्रा ह्रस्व हो उसे काव्य-छंद कहते हैं। किसी-किसीके मतसे दोहाके पश्चात् रोला छंदको जोड़ने से ही कुंडलिया छंदकी रचना मानी गई है । कत्थ-कह । अम्रतधुन-अमृत-ध्वनि । यह भी छ चरणका एक मात्रिक छंद है जो दोहा और दोहाके पश्चात् २४ मात्रा अथवा रोला छंदके जोड़नेसे ही बनता है परन्तु अमत-ध्वनिमें यमकालंकारको तीन बार झमकावके पाठ-पाठ मात्रा सहित रखा जाता है। घणबहुत । समत्थ-समर्थ । हत्थ-हस्त. हाथ । धनु-धनुष । सायक-बारण, तीर । सरणसधार-शरणागत रक्षक । लेख-देव, देवता। खग-तीर, बारण । ब्रद-विरुद, यश । पायब-प्राप्त करने वाला। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] रघुवरजसप्रकास अथ कुंडळियौ झड़ उलट लछण दूही दूही धुर धुर पच्छ तुक, आद अंत उत्नटंत । वीस मत्त चो तुक वळे, सौ झड़ उलट समंत ॥ २६६ ___कुडळिया झड़ उलट उदाहरण भुज दंड लीजै भांमणा, अध्रियांवणा अभीत । विध-विध दास वचावणा, जुध पावणा सजीत ॥ जीत जुध पावरणा, आद असुरां जरे । सीस दस कुंभ घण, नाद सा स्यंघरे ॥ सधर कर भभीखण, रिव जस रसांमणा । भुजां रघुबर अडर, लीजिये भांमणा ।। २६७ अथ कुंडळियौ जात दोहाळ लछण सुध के डळिया अंत सुज, एक दूहौ फिर आख । कुंडळियौ दोहाळ कह, भल राघव जस भाख ॥ २६८ ___ अथ कुंडळियौ दोहाळ उदाहरण केकंधा लंका कहे, जस रघुनाथ सुजाण । कहै भभीखण रविजी, मुख हू अवळीमांण ॥ २६६. धुर-प्रथम । पच्छ-पश्चात् । मत्त-मात्रा । चो-चार । तुक-चरण । बळे-फिर । २६७. भांमणा-बलैया। अध्रियांवणा-वीर, जबरदस्त, शक्तिशाली । अभीत-निडर, निर्भय । विध-विध-तरह-तरहसे । दास-भक्त । वचावणा-बचाने वाला। पावणा-प्राप्त करने वाला । सजीत-विजयी । जरे-नष्ट कर,मार कर । सीस दस-रावण । कंभ-कुंभकर्ण घणनाद-मेघनाद, इन्द्रजीत । सा-समाना, जैसा । स्यंघरे-संहार किये। सधर-हेढ़, मजबूत, निर्भय, निशंक, राज्य या धरा सहित । भभीखण-विभीषण । रिव-रवि, सूर्य । रसांमण-रश्मि, किरण । २६८. पाख-कह । भल-श्रेष्ठ, उत्तम । भाख-कह । २६६. केकंधा-किष्किधा । रविजकी-सूर्यवंशीकी, श्रीरामचंद्रजीकी। हं-से। अवळीमांण अपने ऐश्वर्यका उपभोग करने वाला वीर । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास I 11 मुखहू अवळीमांण, किसं पायक जस कत्थै दत देखा दत दहू, सुजस जग कहै समथ्यै कासीदी गुण करै, जिका कथ सह जग जां 1 केतक डमरां कुसम उरड़ भमरां दळ आणै ॥ जुग जुग मुख ‘किसना', जपै नित नव नव एहनांण । केकंधा लंका कहै, जस रघुनाथ ܘ अथ कुंडळणी लछण हौ उगाही कर आद यक, तुक पलटै धुर कायबरी तुक च्यारि कह, कुंडळणी स एक सेस अजवाळ, सरब कुळ हेक मेर - गिर हुवै, सौ भगिर विध जिण सह रघुवंस, एक रघुनाथ वंस | ११३ अथ कुंडली उदाहरण यिक रघुनाथ उजाळौ सारौ, रघुवंस जेण दुति सरसत । विध जं ू है कळ वाळौ, मझ सह नभं तेज करत तेजोमय ॥ तेजोमय नभ होत, चंदहूता जग चावौ । सरप सुजांण ॥ २६६ भंत । कहंत ॥ २७० कवित कुंडळिया १ सुध कुंडळिया २ झड़ उलट कुंडलिया ३ दोहाळ कुळिया ४ कु डळणी ५ - इति पंच प्रकार कुंडळिया संपूरण । सुभावौ ॥ सिघाळौ 1 उजाळौ ॥ २७१ २६६. प्रवळीमांण- अपने ऐश्वर्यका उपयोग करने वाला, वीर । किसूं- कैसे । पायक - सेवक । कत्थे - कहे । दत-दान । समय-समर्थ । कासीदी - कासिदका कार्य, हरकाराका कार्य । गुण - लाभ | कथ - कथा । सह सब । केतक - केतकी, केवड़ा । डमरां - सुगंधि, महक । कुसुम - पुष्प, फूल । २७१. कि- एक । दुति-द्युति । विध-विधु, चन्द्रमा । जूं - जैसा । कळ-कला | मझ-मध्य | सह- सत्र । नभ - श्राकाश । तेजोमय प्रकाशमय । चंदहंता - चन्द्रमासे । चावौ प्रसिद्ध | मेर- गिर - सुमेरु पर्वत । सौ-वैसा । भगिर - प्रयोध्या नरेश दिलीपके पुत्र, भगीरथ । सिघाळौ - श्रेष्ट । उजाळी - प्रकाश, रोशनी । I Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] रघुवरजसप्रकास दूहा मात्रा दंडक वरणिया, इण विध छंद उदार । 'किसन' रिझावण जस कियो, रामचंद्र रिझवार ।। २७२ किव राजांसं किप्सन किव, यम अक्खै अरदास । माफ करौ तगसीर मौ, देख रांम पय दास ॥ २७३ इति मात्रा ब्रत संपूरण २७२. रिझावण-प्रसन्न करनेके लिए। रिझवार-प्रसन्न होने वाला। २७३. यम-ऐसे। अक्खै-कहता है । अरदास-प्रार्थना । तगसीर (तकसीर)-कमी। मौ मेरी। पय-चरण । दास-भक्त । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ११५ अथ वरण व्रत (वृत) वरणण दूहा स्री गणनायक सारदा, दीजै उकत दराज । वरण व्रति 'किसनौ' वदै, जस राघव महराज ॥ १ वरण व्रति सौ दोय विधि, कहै वडा कवि कत्थ । वरणछंद उपउँद वद, स्री धर सुजस समथ्थ ॥ २ लेखव वरण छवीस लग, वरण धुंद सौ वेस । आखर छविसां ऊपरां, सौ उपचंद सरेस ।। ३ अथ एक वरणसूं लगाय छवीस वरण तांई छंदारी जातरा नाम वरणण । कवित छप्पै उक्ता अत्युक्ताह अखंत, मध्या, वखांणत । वळे प्रतिस्ठा वेस, जगत सु प्रतिस्ठा जाणत ॥ गायत्री ऊसणीक अनुस्टप, व्रहती पंगत । त्रिस्टुप जगती तवां, अती जगती सकरी मत । अत सकरी अस्टती यिस्टि अख ध्रति । अति ध्रती, क्रती प्रक्रतीय । आक्रति, विक्रति, फिर संसक्रती । अतक्रति, उतक्रति, हरि भजीय ॥४ दूहौ यकसं वरण छवीस लग, बरण छंदकी जात । क्रीत रांम वरणण कियां, सुकवि सुमुख सरसात ॥ ५ नोट --छप्पयमें पाए हुए छंदोंके शुद्ध संस्कृत नाम १ उक्था, २ अत्युक्था, ३ मघ्या, ४ प्रतिष्ठा, ५ सुप्रतिष्ठा, ६ गायत्री, ७ उष्णिक, ८ अनुष्टुप, ६ बृहति, १० पंक्ति, ११ त्रिष्टुप, १२ जगती, १३ अति जगती, १४ शक्वीर, १५ अति शक्वरी, १६ अत्यष्ठि, १७ अष्ठि, १८ धृति, १६ अति धृति, २० कृति, २१ प्रकृति, २२ प्राकृति, २३ विकृति, २४ संस्कृति, २५ उत्कृति, २६ अतिकृति। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] रघुवरजसप्रकास अथ छंद वरणण दूही एक गुरु स्त्री छंद कहि, दु गुरु छंद कहि काम । दोय लघु मधु, लघु गुरु, महि छंद रटि रांम ॥६ अथ स्त्री छंद, जात उक्ता (ग.) गै । गै । सी । थी । रां । कां ॥ ७ ___काम छंद (ग. ग.) गौ दौ । कांमौ । गावौ । रामौ ॥८ दोय वरण छंद जात अत्युक्ता मधु छंद (ल. ल.) हरि । हरि । ररि । ररि ॥६ ___ मही छंद (ल. ग.) रमा उमा। पियं वियं । रटौ उठौ । अधं दधं ॥१० दूहौ गुरु लघु सार वखांणजै, फेर मगण प्रस्तार । आठ छंद तिण ऊपना, वे कवि नाम उचार ॥ ११ ताळी १ ससी २ प्रिय ३ रमण ४ , तवि मुणि पंचाळ ५ म्रगिंद्र ६ । किसन फेर मंदर ७ कमळ ८ , चवि जस राघवचंद्र ॥ १२ ७. उक्ता-उक्था छंद । ६. प्रत्युक्ता-अत्युक्था छंद । ११. सार-छंद का नाम । फेर-फिर । तिण-उससे । ऊपना-उत्पन्न हुए। १२. ताळी-शब्द मूलमें भी है अतः हमने भी यहां ताली ही रखा है--परन्तु यहां पर नारी शब्द होना चाहिए। तवि-कह कर । मुणि-कह, कह कर । चवि-कह, कह कर । राघवचंद्र-रामचंद्र। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ११७ सार छंद (ग. ल.) रांम, चंद, भूप, वंद, क्रीत गाय धन्य थाय ॥ १३ तीन वरण छंद जात मध्या छंद ताळी (ग. ग. ग.) जौ बंदै, गोबंदै, तौ देही, नां रेही ॥१४ छंद ससी (ल.ग.ग. अथवा यगण) रटौ रामचंद, कटौ पाप कंदं । करौ सुद्ध देहं, बडौ लाभ एहं ॥ १५ छंद प्रिया (ग.ल.ग. अथवा रगण) रांम सीतापती, और वी अक्रती । सिंध साभाय जे, पंकज पाय जे । जीभ दीधी जकौ, क्यं न गावै तकौ ॥ १६ ___ छंद रमण (ल.ल.ग. अथवा सगण) रट दासरथी, कथ बेद कथी । रज जे पगरी, रिख नार तरी ॥ हर चाप जिया, सत खंड किया । रट सौ रसना, किव तं किसना ॥ १७ ___ छंद पंचाल (ग.ग.ल. अथवा तगण) स्री राम राजेस, सेवो ‘किसनेस' । जोवौ जसं जेस, भाखै भुजंगेस ॥ १८ १३. वंद-नमस्कार कर । क्रीत-कीर्ति । गाय-वर्णन कर । थाय-हो, हो कर । १४. गोबंदै-गोविन्द । तौ-तेरी । देही-(देह) शरीर । नां-नहीं। रही-रहेगी। १५. कंद-मूल । एहं-यह । १६. वी-उस, उसकी। अक्रती-प्राकृति, बनावट । सिंध-(सिंधु) समुद्र । साभाय-स्वभाव । जे-जो। पंकज-कमल । पाय-चरण । जकौ-जिसने । तकौ-उसको। १७. दासरथी-श्री रामचंद्र भगवान । रज-धूलि । जे-जिसके । रिख-ऋषि । नार-नारी। चाप-धनुष । रसना-जिह्वा । किव-कवि। १८. राजेस-राजाओंका राजा, सम्राट । जसं-(यश) कीर्ति । जेस-जिसका। भजगेस शेषनाग । www.ji Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] रघुवरजसप्रकास छंद मिगेंद्र (ल.ग ल. अथवा जगण) नमौं रघुनाथ, सधीर समाथ । गणां गजगाह, दसानन दाह ॥ भभीखण आय, सु प्रास्रय पाय । ब्रवी जिण रंक, लछीवर लंक ॥ १६ ___ छंद मंद (ग.ल.ल. अथवा भगण) । सीत-पती कह, ओघ अघं दह । देह अभै करि, राम रदे धरि ॥ गावत पांमर, झूठ पयंपर । ऊबर सौ वित, काय गमावत ॥२० छंद कमल (ल.ल.ल. अथवा नगण) भगत-विछळ, नयण कमळ । जगत जनक, धरण-धनक ।। सिर नमि नमि, चरण पदम । 'किसन' रसण, रघुबर भण ॥ २१ अथ च्यार अखिर छंद जात प्रतिस्ठा जीरण चरणह च्यार गुरु, धांनी रल पहिचांण । जगण निगल्ली अंत गुरु, संमोहा गुरु बांण ॥ २२ १६. म्रिगेंद्र-मृगेन्द्र । सधीर-धैर्यवान । समाथ-समर्थ । गजगाह-युद्ध। दसानन-रावण । दाह-जलाने वाला, ध्वंशक । भभीखण-विभीषण । प्रास्त्रय (पाश्रय)-शरण, पनाह । पाय-प्राप्त कर । व्रवी-प्रदान की, दे दी। रंक-गरीब । लछीवर-लक्ष्मीपति । लंकलंका। २०. सीत-पती (सीतापति)-श्रीरामचंद्र । अोघ-समूह । अघं-पाप । रदे-हृदय । पामर नीच, तुच्छ । ऊंबर (उम्र)-प्रायु । वित-धन । कांय-क्यों। गमावत-गमाता है, नाश करता है। भगत-विछळ-भक्त-वत्सल । धरण-धनक-धनुष धारण करने वाला। पदम(पद्म) कमल । रसण-जिह्वा, जीभ । भण-कह। २२. प्रतिष्ठा चतुक्षरावत्तिका नाम है जिसके प्रस्तार भेदसे क्रमशः १६ भेद होते हैं। उन सोलह भेदोंके अंतर्गत जीर्णा (मतांतरसे ती) धांनी और निगल्लिका आदि हैं। र ल रगरण पार लघु । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ११६ छंद जीरणा (जीर्णा) (म.ग.) सीता राघौ गावै सोई, जीता है जम्मारा जोई। चेता राघौ नां चीतारै, है सोई जम्मारा हा ॥ २३ छंद धांनी (र.ल.) ईद चंद्रमा अहेस, साधना करै महेस । सीतनाथ रामचंद, सीस नाम पाय बंद ॥ २४ छंद निगल्लिका (ज.ग ) दसाननं विनासनं, असेख पाप नासनं । सदाजनं सिहायकं, नमामि सीत-नायकं ॥ २५ पंचगुरु अखिर, पंचा अखिर छंद वरणण जात प्रतिस्ठा छंद समोहा (म.ग.ग.) सीता प्राणेसं, राजा-राजेसं । गावौ स्री रामं, पावौ जे धांमं ॥ २६ हारी तगण सु करण यक, हंस भगण करणेण । नगण दुलघु, मिळ जमकहि, जस भण राघव जेण ॥ २७ २३. जीरणा (जीर्णा) इसका दूसरा नाम तीर्णा या कन्या भी है। सोई-वही। जम्मारा जीवन । जोई-वही । चेता-चित्त । चीतारै-स्मरण करता है । २४. अहेस-(अहीस) शेषनाग। सीतनाथ (सीतानाथ)-श्री रामचन्द्र भगवान । नाम नमा कर, झुका कर । पाय-चरण । २५. दसाननं-रावण । विनासनं-नाश करने वाला। असेख (असंख्य)-अपार । नासनं नाश करने वाला। सिहायक-सहायक । सीत-नायकं-सीतापति । नोट-मूल हस्तलिखित प्रतिमें पांच गुरु अखिर पंचाखिर छंद वरणरण जात प्रतिष्ठा है परन्तु पंचाक्षरा वृत्तिका शुद्ध नाम सुप्रतिष्ठा पंचाक्षरा वृत्ति है । २६. प्राणसं (प्राण+ईश)-पति। राजा-राजेसं-(राजापोंका राजा) सम्राट। जे जिसका । धांम-स्थान, मोक्ष । २७. करण (कर्ण) दो दीर्घका नाम 55। करणेण-दो दीर्घ 5 5 से । भण-कह । जेण जिस, जिससे । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] रघुवरजसप्रकास छंद हारी (त.ग.ग.) धांनंख-धारी, पै नीत-चारी । सौ सीळ सींधू, बाताद बंधू ॥ सोहै सकाजं, जांनंक राजं । जामात जोई, संभार सोई ॥ रेवंस रूपं, भूपाळ भूपं । सारंगपाणं, जीहा जपणं ॥ दी औध ईस, पै बंद सीसं । तं धन्य ताम, रे सेव रामं ॥ २८ छंद हंस (भ.ग.ग) रांम भजीजे, झौड़ तजीजे, लाभ सदेही, वेद वदेही। संत सिहाई, राघवराई, वौ हरि गावौ, पै उध पावौ ।। २६ छंद जमक (न.ल.ल.) धर धनक, जग जनक । दहण दुख, समुद सुख ॥ अवधपत, सरस सत । कमळकर, समर हर ॥ ३० २८. धांनंख-धारी-धनुषधारी। पै-चरण। नीत-चारी-नीति पर चलने वाला। सींध (सिन्धु) समुद्र । बाताद-(वात+अद-पवनाशनसर्प शेषनाग) लक्ष्मण । जांनंकराजा जनक । जामात-दामाद । जोई-जो, वह। संभार-स्मरण कर । सोई-वही, उसी। रेवंस (रवि-वंश)-सूर्यवंश। सारंगपाणं (सारंगपाणि)-सारंग नाम धनुष धारण करने वाले, विष्णु, श्री रामचन्द्र । जीहा-जिव्हा। जपणं-जप कर, भजन कर। २६. हंस-इस छंदका दूसरा नाम पंक्ति भी है। झोड़-प्रपंच । ततीजे-तजिये। वदेही कहते हैं। सिहाई-सहायक । राघवराई-श्री रामचन्द्र । पै-पद । उध-उद्धार । ३०. जमक-इस छंदका दूसरा नाम करता भी है। धनक-धनुष । जनक-पिता । दहण जलाने वाला। समुद (समुद्र)-सागर। अवधपत्त (अयोध्यापति)-श्री रामचन्द्र । कमळ कर-कमल स्वरूप हाथ । समर-युद्ध । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२१ रघुवरजसप्रकास अथ खड़ाखर छंद गायत्री दोय मगण सेखा, तिलक सगण दु, रगण दोय । वीजोहा दुजबर करण, सौ चऊरसा होय ॥ ३१ छंद सेखा (म.म.) राघौजी जौ गावौ, प्राझी लच्छी पावौ । संतां कारी साता, देखी दीनां दाता ॥ ३२ छंद तिलका (स.स.) रघुनाथ रटौ, क्रत हीण कटौ। कवसल्ल सुतं, दिननाथ दुतं । तन स्यांम सुभं, घण रूप लुभं । कट पीत पटं, छज ओप छटं॥ कवि तं किसना', रट सौ रसना ॥ ३३ - छंद विजोहा (र.र.) नाम है रांमको, ओक आरामको । साच राघौ कथा, वांण दूजी व्रथा ॥ ३४ ३१. खड़ाकर-षडाक्षर, छ अक्षर । गायत्री-छ वर्णों की एक वर्ण-वृत्ति जिसके कुल ६४ भेद होते हैं। उनमेंसे कुछका उल्लेख र स्थकर्ताने भी किया है। दुजबर-चार लघु मात्रा । करण-दो दीर्घ मात्रा। ३२. प्राझी-बहुत, अपार । लच्छी-लक्ष्मी । कारी-करने वाला । साता-सुख । ३३. क्रत-कार्य, काम। हीण-तुच्छ, भद्दा। कटौ-काट डालो। कवसल्ल-कौसल्या । सुतं-पुत्र । दिननाथ-सूर्य । दुतं-(धुति) कांति, दीप्ति । तन-शरीर । सुभं-शुभ । घण-(धन) बादल । लुभं-लोभाय, मान करने वाला। कट-(कटि) कमर । पीतपीला। पट-वस्त्र । छज-शोभा, शोभा देता है। प्रोप-कांति, दीप्ति । छटं-(छटा) बिजली। रसना-जिव्हा, जीभ ।। ३४. विजोहा-विमोहा नाम ६ वर्णका छंद जिसके अन्य नाम जोहा, द्वियोधा, विज्जोदा भी मिलते हैं। प्रोक-घर। साच-सत्य । राघौ-राम। वांण-वाणी, शब्द । वथाव्यर्थ । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ | रघुवरजसप्रकास छंद चऊरस (ल.ल.ल.ल.ग.ग ) रिख मखत्राता, दित कुळ घाता । सुभुज निघायौ, किरण उडायौ ॥ गवतम नारी, रज पय तारी । भव जय भाखी, सुर मुनि साखी ॥ ३५ दूहौ यगण संखनारी उभय, दोय तगण मंथांण । दुजगण प्रियगण मिळ दहू', मदनक छंद प्रमांण ॥ ३६ छंद संखनारी तथा विराज ( य.य.) ( तथा छंद रसावळा) रिखं साथ रांमं, गये कांम धांमं । सुरं तीन भूपं, तहां आय नूपं ॥ दसग्रीव बांणं, उभै जोर बांणं । बियं प्राय तत्थं, ठयं मंच जत्थं ॥ भुजं-बीस भल्लं, धनू काज हल्लं । कसै चाप केमं, जती चीत जेमं ॥ हजार दसानं, नूपं भंग मांनं । पड़े जोर पोचं, अनंगेस सोच ॥ ३५. रिख - ऋषि । मख-यज्ञ । त्राता-रक्षक । दित - दैत्य, असुर । घाता-संहारक, ध्वंशक | गवतम - गौतम । रज-धूलि । पय-चरण । भव- महादेव । भाखी - कही । साखी - साक्षी । ३६. दुजगण-चार लघु मात्राका नाम । प्रियगण - दो लघु मात्राका नाम । ३७. संखनारी - इसका दूसरा नाम सोमराजी भी है। रिखं ऋषि । दसग्रीव - रावण । ठयंहुआ। मंच - ऊँचा बना हुआ मंडप जिस पर बैठ कर सर्वसाधारण के सामने किसी भुजं बीस - रावण । भल्लं ठीक, चाप-धनुष । केमं- कैसे । जतीदसानं - रावण । मान-प्रतिष्ठा । प्रकारका कार्य किया जाय । जत्थं - यूथ झुण्ड । श्रेष्ठ । धनू - धनुष । काज-लिये । हल्ल - चला । ( यती) जितेन्द्रिय | चीत-चित, मन । जेमं- जसे पोचं- कम । प्रनंगेस - महादेव । सोचं भय । । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । १२३ रघुवरजसप्रकास नरव्वीर रेणं, भई भांत केणं । सुणे सेख तत्थं, कहे तांम कथ्थं ॥ मिथल्लेस राज, कहौ केण काजं । नरब्बीर बांणी, महाहीण मांणी ।। हुवै राम जत्थ, अखौ नां अकथ्यं । उठे राम तामं, जगै कोप जांमं ॥ कटं पीतपट्ट', सुबंधे सुघट्ट । गतं पंचमुखं, चले चाप रूखं ॥ करं बांम चापं, उठायौ अमापं । नमायौ निखगं, गुणं वाळ अंगं ॥ रमानाथ रीसं, करते कसीसं । कुडंडं अचूकं, कियौ टूक टूकं ॥ सिया मात सुक्खं, विदेहं हरक्खं । नूपं जीत जांमं, वरी सीत वांमं ॥ जसं औधरायं, 'किसनेस' गायं ॥ ३७ ३७. नरवीर-नरवीर । रेणं-भूमि। भांत-प्रकार । केणं-किस, कैसे। सेख-(शेष) लक्ष्मण । तत्थं-वहाँ। ताम-उनको। कथ्थं-शब्द, वचन । मिथल्लेस-राजा जनक । केण-किस । कार्ज-लिए । बाणी-शब्द, वचन । महाहीण-महा तुच्छ, अति तुच्छ । अखौ-कहो । नां-नहीं। अकथ्थं-अकथनीय, बुरी बात । ताम-तब । जांम-परशुराम । कटं-(कटि) कमर। पीतपट्ट-पीताम्बर । सुघट्ट-सुन्दर, दृढ़ । गतं-प्रकार, तरह। पंचमुखं-सिंह । रूखं-अोर, तरफ। करं-हाथ । बाम-(वांम) बाया । चापं-घनुष । निखंग-(निषंग) तर्कश, तूणीर, गुण धनुषको डोरी, प्रत्यंचा । रमानाथ-लक्ष्मीपति, श्री रामचन्द्र । रीसं-रिस, कोप। करंतै-हाथसे । कसीसंधनुषको मोड़ कर प्रत्यंचा चढ़ाई, धनुष चढ़ाया। कुडंडं-(कोदंड) धनुष । अचूकंअव्यर्थ । टूक टूकं-खंड खंड। सिया-सीता। मात-माता । विदेहं-राजा जनक । हरक्खं-हर्ष, प्रसन्नता । जीत-जीत कर । जाम-परशुराम । वरी-वरण की । सीतसीता। वांम-(वाम) स्त्री। जसं-यश। प्रौधरायं-श्री रामचन्द्र । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] रघुवरजसप्रकास छंद मंथांणी (त.त.) सीता रमा सोय, कीजै समं कोय । भाखौ परीभ्रम्म, राघौ महारंभ ॥ ३८ छंद मदनक (ल. ६) सहदत सत, दसरथ सुत । रिवकुळमण, रघुबर भण ॥ ३६ दूहौ दोय जगण यक चरणमें, सौ मालती सुभाय। कीरत जिणमें किसन' किव, रट रट स्त्री रघुराय ॥ ४० छंद मालती (ज.ज.) बडौ धन वेस, म खोय मुढेस । चवां चित चेत, पुणौ मत प्रेत ॥ भणां धन भाग, रघुब्बर राग ॥ ४१ अथ सप्त वरण छंद जात उस्णिक रगण जगण पय अंत गुरु, समांनिका कह सोय । दुजबर भगण पयेण जिण, छंद सबासन होय ॥ ४२ द समांनिका (र.ज.ग.) रांम नाम गाव रे, पाय कंज धाव रे। जांनकीस जांण रे, वेस तं जवांण रे ॥ ४३ ३८. ३८. रमा-लक्ष्मी। सोय-वड । सम-समान । कोर-किस । परीभ्रंम्म-(परब्रह्म परमात्मा । महारंभ-(महारम्भ) जिसके प्रारम्भ करने में महान यत्न करना पड़े महान, बड़ा। ३६. रिवकुळमण-रविकुलमणि। झण-कह । ४१. वडौ-महान, बड़ा। वेस-पायु, उम्र । म-मत । खोय-गमा, नष्ट कर । मुढेस-मूर्ख । चवां-कहता हूँ। चेत-सतर्क हो । पुणो-कहो । भणां-कहता हूँ। राग-प्रेम अनुराग । ४२. पय-चरण । सोय-वह । दुजवर-चार लघु मात्रा। पयेण-चरण । ४३. पाय-चरण। कंज-कमल । धाव-ध्यान कर । जानकीस-श्री रामचन्द्र भगवान । जांण-समझ। वेस-पायु, उम्र। जवांण-जवान, युवा । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास रघुवरजसप्रकास [ १२५ १२५ छंद सबासन (४ ल.भ. अथवा न.ज.ल.) खर खळ खंडण, महपत मंडण । रसण वडापण, रघुवर जंपण ॥ ४४ दुजबर जगण पयेण जिण, सौ करहची सुणंत । सात गुरु पय जास मध, सीखा छंद सुभंत ॥ ४५ छंद करहची (४ ल.ज. अथवा न.स.ल.) लसत चख लाज, सुकर धनु साज । सझण सगरांम, रसण भज राम ॥ ४६ छंद सिखा (७ ग. अथवा म.म.ग.) जाणै सौ राघौ जाणे, ठाणे सौ राघौ ठाणै । जीवाडै राघौ जैनं , तौ मारै केहौ तैनं ॥ ४७ अथ अस्टाखिर छंद वरणण, जात अनुस्टप आठ गुरू पद छंद जिण, विद्युन्माळा अक्ख । गुरु लघु क्रम अठ वरण पद, सौ मल्लिक विसक्ख ।। ४८ ४४. छंद सबासनका ठीक लक्षण नगरण जगरण और एक लघुसे बैठता है परन्तु कविने अपनी दक्षतासे चार लघु और एक भगरण कर दिया। खर-एक राक्षसका नाम । खळ-असुर। खंडण-नाश करने वाला । महपत-(महीपति) राजा । मंडण-आभूषण । रस-जिव्हा, जीभ । जंपण-जपना । ४५. दुजबर-चार लघु मात्रा। पयेण-चरण । पय-चरण ! करहची-इसका दूसरा नाम करहंस है। जास-जिसके । मध-मध्य । सुभंत-शोभा देता है। ४६. लसत-शोभा देता है, शोभा देती है। चख-(चक्षु) नेत्र, नयन । सकर-श्रेष्ट हाथ । धनु-धनुष । सझण-सुसज्जित होने के लिए। सगरांम-युद्ध । रसण-जीभ । ४७. जाणे-जानता है। ठांणै-विचारता है । जावाई-जीवित रखता है। जैनूं-जिसको । केहौ-कौन । तैनं-उसको। ४८. प्रस्टाखिर-अक्षर। अक्ख-कह। अठ-ग्राठ। विसक्ख-विशेष । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] रघुवरजसप्रकास छंद विद्युन्माला (८ ग. अथवा म.म.ग.ग.) राघौ राजा सीता रांणी, वेदांमें धाता वाखाणी । सौ गावै जोई है साचौ, कीटांनं गावै सौ काचौ ॥ ४६ छंद मल्लिका (र.ज.ग.ल.) आच आब जेम आय, जोव तांस छीज जाय । कोय अंत नाय काम, रे अबझ गाय रांम ॥ ५० छद प्रमाणी तथा अरध नाराज तथा तुंग (ज.र.ल.ग.) लघु गुरु क्रम वरण अठ, छंद प्रमाणी कथ्थ । दोय नगण फिर करण दे, सौ कह तुंग समथ्थ ॥ ५१ छंद प्रमाणी नमौ नरेस राघवं, दराज पाय दाघवं । उपंत स्यांम अंगयं, सनीर अव ढंगयं ।। दकूळ पीत लोभयं, सुरूप बीज सोभयं । निखंग पीठ रज्जयं, सुचाप पांणि सज्जयं ॥ मुखारविंद मोहनं, सुमंद हास सोहनं । जु बांम अंग जानकी, सु सोभना समांनकी ।। ४६. धाता-ब्रह्मा । वाखांणी-वर्णन की, यश गायन किया। सौ-उस, वह । जोई-वही । साचौ-सच्चा। कीटांनं-कीटोंको, तुच्छ देवोंको। काचौ-कच्चा । ५०. मल्लिका प्रथम गुरु फिर लघु इस क्रमसे रखे हुए पाठ वर्णका छंद । प्राच-हाथ । प्राब-पानी। जेम-जैसे । प्राय-पायु, उम्र । छीज जाय-नाश हो रही है, नाश होती है। कोय-कुछ। अबूझ-मूर्ख । ५१. प्रमाणी-प्रमाणिका छंद । कथ्थ-कह । करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । समथ्थ-समर्थ । ५२. दराज-लंबा, विशाल । उपत-शोभा देता है। स्यांम-श्याम। अंगयं-शरीर । सनीर कांतिवान । दकळ-वस्त्र । पीत-पीला। लोभयं-लोभायमान करने वाला। बीजबिजली। सोभयं-शोभायमान । निखंग, (निषङ्ग)-तर्कश । रज्जयं-शोभायमान । सुचाप-संदर धनुष । पाणी-हाथ । सज्जयं-धारण किए हुए है। मुखारविद--कमलस्वरूपी मुख। मोहनं-मोहित करने वाला। सुमंद-सुंदर और मंद। हास-हँसी । सोहनं-शोभायमान होती है। बांम-बायां: Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १२७ वसंत ध्यांन मंजगं, ह्रदे महेस कंजयं । तवै ज क्रीत तासयं, जनंम धन्य जासयं ॥ ५२ छद त्वंग तथा तुंग (न.न.ग.ग.) दस सिर खळ दाहं, सुचित सुजन चाहं । जप जप रघुराज, सु भुज समर लाजं ॥ ५३ दूहौ दुजबर जगण सु अंत गुरु, कमळ छंदस कहांण । भगण करण फिर सगण भिळ, मांन क्रीड़सु वखांण ॥ ५४ छंद कमल (४ ल ज ग.) रिव सुनिभ राजही, सुकर धनु साजही । सुकव धर सीस जौ, अवधपुर ईस जौ ॥ ५५ छंद मानक्रीड़ा (भ.ग.ग.स) स्यांम भजै ताम सुखी, दाम भजै और दुखी । सीतपती गाव सदा, राख जिको ध्यान रिदा ॥ ५६ च्यार तुकां लघु पंचमौ, खट आठम गुरु आण । दूजी चौथी सातमौ, लघु अनुस्टुप जाण ॥ ५७ ५२. मंजयं-मध्यमें। ह्रदे-हृदय । महेस-महादेव । कंजयं-कमल । तवै-कहता है, स्तवन __ करता है। क्रीत-कीति, यश। तासयं-उसका। जासयं-जिसका। ५४. दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । कहांण-कहा गया। करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । ५५. रिव-सूर्य । सुनिभ-समान, ग्राभा, प्रभा । राजही-शोभा देता है। साजही-शोभा देता है। अवधपुर-अयोध्या । ५६. स्यांम-स्वामी, श्याम, श्रीराम । तांम-बहुत, अधिक । सीतपती-(सीतापति) श्रीराम चंद्र भगवान । जिको-वह, उस । रिदा-हृदय । नोट--जिसके चारों चरणों में पांचवा अक्षर लघु और छठा अक्षर दीर्घ हो और सम पदोंमें सातवां अक्षर भी लघु हो, इनके अलावा अन्य अक्षरों पर कोई खास नियम न हो उसे श्लोक तथा अनुस्टुप कहते हैं । ग्रंथकारने जो अनुस्टुपका लक्षण दिया है वह संस्कृतके ग्रंथोंसे मेल नहीं खाता । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] रघुवरजसप्रकास वारता जीके चार ही तुकां पंचमौं ग्रखिर लघु ग्रावै, ग्ररु छठौ ग्राठमौ गुरु प्रावै, दूजै, चौथे, सातमौ लघु प्रावै, च्यार ही तुकां सौ ग्रनुस्टुप छंद छै । पैलौ तीजौ छिरको गुरु लघुकौ नेम ही नहीं, गुरु आवै भावे लघु, पंचमौ श्रखिर च्यार ही कां लघु, छठौ च्यार ही तुकां गुरु । दूजी चौथी तुकरा सातमौ अखिर लघु व सौ स्टुप के छै । छंद अनुष्टुप राघव जपतौ प्रांणी, मूढ आळस मां करै । श्रव दर आळपं, चेता अंध सचेत रे ॥ ५८ अथ बहती जात नव-अखिर छंद वरणण दूहौ महालिछमी पद मही, तीन रगण दरसंत | दुजबर कराह सगण दखि, सारंगिका लसंत ॥ ५३ छंद महालक्षमी ( र. र. र. ) रांम राजै रसा रूप रे, नेतबंधी वगै नूप रे I सीत वाळ पती साचरे, रे मना जेाहं राच रे ॥ ६० छंद सारंगिका ( ४ ल. ग. ग. स. अथवा न. य. स.) बिलकुल सीतावर रे । रघुबर भीली कर रे, रुचि करकंधू फळ रे, जमि हसि पीधौ जळ रे ॥ ६१ ५८. मूढ-मूर्ख । मां-मत । आव आयु, उम्र । दरब- ( द्रव्य) धन-दौलत । ग्राळ (अल्प ) - अल्प, कम । चेता- चितसे । महालिछमी - महालक्ष्मी । पद-चरण । ५६. बहती - ( बृहती ) | नव- श्रखिर - नवाक्षर वृत्ति। मही में | दरसंत - दिखाई देते हैं, देखे जाते हैं । करणह-दो दीर्घ मात्राका नाम | दखि कह कर । लसंत-शोभा देता है, शोभा देती है । दुजवर-चार लघु मात्राका नाम । 1 । । नेतबंधी - अपना निजका ६०. महालक्षिमी - महालक्ष्मी राजे - शोभा देता है रसा- पृथ्वी भंडा या ध्वजा रखने वाला, वीर । सीत-सीता । वाळौ -का जिससे । राच - अनुरक्त या लीन रह । | मना - मन । जेणहूं ६१. भीली - भिल्लनी । कर हाथ। सीताबर- सीतापति, श्रीरामचंद्र । बेरका फल या वृक्ष, बदरीफल । जमि खा कर । हसि-हँस कर । करकंधू ( कर्कन्धु) - पीधौ - पिया | Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास .. [ १२६ मगण भगण फिर सगा मुणि, पायत छंद प्रकास । गण बे दुजबर एक गुर, रति पद सौ सुख रास ।। ६२ छंद पायत (म.भ.स.) तौ पै धूळी सिल तरगी, वारी सारै हि......। ऊ ही राघौ तरणि उडै, छै य्यौ साकौ स कुळ छुडै ॥ धोवौ पै तौ कदम धरौ, कै कीरौ के करौ॥ ६३ ___ छंद रतिपद (८ ल.ग. अथवा न.न स ) धरण कर धनक है, जगत सह जनक है। समर कळतरस है, सुज जनम सरस है ।। ६४ न स य बिंब तोमर सगण, यक बे जगण स कोय । च्यार करण गुरु एक सौ, रूपा-माळी होय ॥ ६५ छंद बिंब (न.स.य.) मुण महण तार माथै, सुज गिरवरां समाथै । खळ सबळ वंस खोयो, जग सरब तेण जोयौ ॥ जस 'किसन' ते जपीजै, लभ रसण देह लीजै ॥ ६६ ६२. मुणि-कह कर । पायत-एक छंदका नाम, इस छंदका दूसरा नाम पाईता भी है । बे (द्वे) दो। दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । ६३. तौ-तेरे । पै-पैर । सिल-पत्थर । वारी-जल । ऊही-ऐसे ही। राघौ-श्रीरामचंद्र भगवान । तरणि-नौका, नाव। छुडै-छूट जाय । तौ-तब । कदम-चरण । ककड़ता है। कीरौ-कीर, धीवर, मल्लाह । कै-या, अथवा । करद-किराया या कर देने वाला। ६४ धरण-धारण किए हुए। कर-हाथ । धनक-धनुष । जनक-पिता। समर-स्मरगा कर । कळतरस (कल्पतरु)-कल्प वृक्ष । सरस-सफल । ६५ न स य-नगण सगरण यगणका संक्षिप्त रूप। बिब-एक छंदका नाम । यक-एक। करण दो दीर्घ मात्राका नाम ऽऽ । रूपामाळी-एक छंदका नाम । ६६. महण-महार्णव सागर, समुद्र । माथ-ऊपर । समाथै-समर्थ, महान । खोयौ-नाश किया। जोयौ-देखा। ते-उसका । जपीज-जप, जपना चाहिए। लभ-लाभ । रसणजिह वा, जीभ । देह-शरीर । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] रघुवरजसप्रकास छंद तोमर (स.ज.ज.) कटि तं ण चाप कराग, खळ भंज रावण खाग। पह सिद्ध बंधण पाज, मनमोट स्री महराज ॥ तिय जांनुकी भरतार, कुळमौड़ भू करतार । जप पात तू अठजांम, रिव वंस ओपम राम ॥ ६७ छंद रूपमाली (६. ग. अथवा म.म.म.) आपे लंकासी मौजां यं ही, तौ जेहौ आखां दाता तं ही। थूरै जंगां के दैतां थौका, झोका मौका जी राघौ मौका ॥ ६८ अथ दस अखिर छंद वरणण जात पंक्ति दूहौ एक सगण बे जगण गुरु, संजुतका सौ गाय। चंपक माळा भ म स गुरु, त्रिभग सारवति ठाय ॥ ६६ छंद संजुतका (स.ज.ज.ग.) जय राम संत सिहायकं, घण देत आहव घायक। मिथळेस राजकुमारयं, उरहार प्रांण अधारयं ॥ ६७. कटि-कमर । तूंण (तूरण)-तर्कश, भाथा । चाप-धनुष। कराग (कराग्र)-हाथमें । खळ-राक्षस। भंज-नाश कर। पह-प्रभु । सिद्ध-सफल, प्रयत्न । पाज-सेतु । मनमोटउदार । तिय-स्त्री। जानकी-सीता। कुळ मौड़-कुलश्रेष्ठ । भू-भूमि। पात (पात्र)-कवि । अठजांम-अष्ठ याम, आठों पहर । रिव (रवि)-सूर्य । प्रोपम-शोभा, कांति । ६८. प्रापे-दे दी, प्रदान कर दी, अर्पण कर दी। लंकासी-लंकाके समान । मौजां-दान । यंही-ऐसे ही। तौ-तेरे। जहौ-जैसा। अाखां-कहता है। दाता-दातार । थरैनाश करता है, संहार करता है। देतां-दैत्यों। जंगां-युद्धोंमें। थौका-समूह । झोका धन्य-धन्य । ६६. संजुतका-एक छंदका नाम, इसका दूसरा नाम संयुत भी है। भ म स-भगण, मगरण, सगरणका संक्षिप्त रूप । त्रिभग-तीन भगरण और एक गुरुका संक्षिप्त नाम । तारबति-एक छंदका नाम । ७०. सिहायक-सहायक । घण-बहुत, अधिक । दैत-दैत्य । पाहव-युद्ध । धायक-नाश करने वाला। मिथळेस-राजा जनक । राजकुमारयं-राजकूमारी। अधारयं-प्राधार । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १३१ तन कंद स्यांम सुभावनं, पटपीत विद्युत पावनं । 'किसनेस' पात उधारयं, धनु बांण पांणसु धारयं ॥ ७० छंद चंपकमाळा ( भ.म.स.ग ) गोह सरीखा पांमर गाऊ', ब्याध कबंधा ग्रीध बताऊ | नैट पापी गौतम नारी, ते रज पावां भेटत तारी ॥ देव सदा दीनां दुख दाघौ, रे भज प्रांणी भूपत राघौ ॥ ७१ छंद सारवती ( भ.भ.भग. ) चाप करां नूप रांम चढ़े, मांझ रजी तद भांग मढ़े । खोहण के सुरांण खपे, पंख सिवा पळ खाय त्रपे ॥ रे नित सौ जन भीड़ रहै, कंग जनां दुख देख कहै ॥ ७२ दूहौ तगण यगण भगरणह गुरु, सुखमा छंद सुभाय । नगरण जगण नगराह गुरु, अम्रित गत या भाय ॥ ७३ ७०. तन-शरीर । कंद - बादल । सुभावनं - सुन्दर । पटपीत - पीताम्बर । विद्युत - बिजली । पावनं - पवित्र । धनु- धनुष । पांणसु-हाथमें । धारयं धारण किए हुए । निषादराज जो श्रृंगवेरपुरका स्वामी था । सरीखा - समान, सदृश । पांमर-नीच । ब्याध ( विराध ) - एक राक्षसका नाम जिसको दण्डकारण्य में ७१. गोह (ग्रह) - प्रसिद्ध राम भक्त इसका मुँह इसके पेट में लक्ष्मणने मारा था। कबंधा-एक दानव जो देवीका पुत्र था, था। कहते हैं कि इन्द्रने इसको एक बार वज्र से मारा इससे शिर और पैर पेटमें घुस गये थे । इसे पूर्वजन्मका विश्वासु गंधर्व लिखा है । रामचंद्रजी से इसका दण्डकारण्य में युद्ध हुआ था । रामचंद्रजीने इसका हाथ काट कर इसको जीवित भूमिमें गाड़ दिया । ग्रोध- जटायु नापका पक्षी । नै-प्रोर । सट - मूर्ख । रज-धूलि । पावां-पैरों । भेटतस्पर्श करते ही । तारी - उद्धार कर दिया। दाघौ जलाया, जलाने वाला । भूपत ( भूपति ) - राजा राघौ - श्री रामचंद्र | ७२. चाप - धनुष । करां-हाथों । मांझ-मध्य में । रजी- धूलि । तद-तब | भांण - सूर्य । मढ़े - प्राच्छादित हो गया । खोहण (अक्षौहिनी ) - सेना । प्रसुरांण - श्रसुर, राक्षस ! खपेनाश हो गये। पंख - पक्षी । सिवा (शिवा) - शृगाली । पळ - श्रामिष । त्रपे संतुष्ठित हुए, अघाये । सौ-वह । भीड़-सहाय, मदद। कुंण- कौन । जनां भक्तों । देणदेने को | ७३. सुभाय - अच्छा लगे । यण- इस । भाय-प्रकार Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] रघुवरजसप्रकास __ छंद सुखमा (तय भ.ग.) नागेस भजै राघौ नत ही, साधार धरा भासै सत ही । जे गाव कवि तू धन्य जथा,क्यू और बखांणे आळ कथा ॥ ७४ छंद अंमित गति ( न.ज.न.ग. ) दसरथ राजकँवर है, सुभ कर धांनख सर है। रघुबर सौ किव रट रे, मळ तनचा सब मट रे ॥ ७५ अथ एकादस अखिर छंद वरणण, जात त्रिस्टप दूही तीन भगण दो गुरु जठै, दोधक छंद स दाख । दोय लघु त्रय सगण पद, सौ सुमुखी अहि साख ।। ७६ छंद दोधक ( भ.भ.भ.ग.ग.) राघव ठाकुर है सिर ज्यांरै, तौ किसड़ी घर ऊणत त्यांरै । की जिण राखस सेव करी सी,वेख भभीखण लंक वरी सी ॥ ७७ छंद समुखी ( ल.ल.स.स.स. अथवा न.ज.ज.ल.ग.) जय जय राघव देतजई, महपत मूरत साचमई। हरण अनेक विघंन हरी, कमळ करं प्रतपाळ करी ॥ ७८ ७४. नागेस-शेष नाग । नत-नित्य । साधार-अाधार, सहारा । धरा-पृथ्वी। भास-मालूम होता है, शोभा देता है । सत-सत्य । जे-अगर । जथा (यथा)-कथा, वृत्तान्त । क्यूं क्यों । बखांण-वर्णन करता है । प्राळ-व्यर्थ, असत्य । ७५. कर--हाथ । धानख-धनुष । सर-बाण। सौ-वह, उस। किव-कवि । मळ-मैल । तनचा-शरीरका । मट-मिटा दे। ७६. जठे-जहां । स-वह । दाख-कह । सौ-वह । अहि-शेषनाग । साख-साक्षी । ७७. ठाकूर-स्वामी। ज्यांरै-जिनके। तौ-तब। किसडी-कैसी। ऊंणत-प्रभाव, कमी। त्यारै-उनके । राखस-राक्षस । वेख-देख । भभीखण-विभीषण । वरी-प्रदान की। ७८. दैतजई-दैत्योंको (असुरोंको) जीतने वाला । महपत (महिपति)-राजा । मूरत-मूर्ति । साचमई-सत्यमयी । करं-हाथ । प्रतपाळ-रक्षा । करी-हाथी अथवा की। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १३३ दूही दोय करण फिर रगण दौ, अंत एक गुरु आंण । सुणियौ खग कहियौ सरप, छंद सालिनी जाण ॥ ७६ छंद सालिनी ( ४ ग.र.र.ग. अथवा म.त.त.ग.ग.) गावै राघौ सौभणौ पात गाढ़ौ । आवै वाणी यू 'किसन्नेस' आदौ । ते भूला राघौ, विगतौ भवि त्यांरौ। जाणैसी पीछे वडौ भाग ज्यांरौ ॥ ८० दूहौ दौ दुजबर अंतह सगण, मदनक छंद मुणंत । गुरु लघु क्रम ग्यारह वरण, सौ सेनका सुणंत ॥ ८१ छंद मदनक ( ८ ल.स. अथवा न.न.न.ल.ग.) हरण कसट जन हर है। विमळ बदन रघुबर है। सरब सगुण सह सरसै। दनुज दहण भुज दरसै ॥ ८२ ७६. करण-दो दीर्घ मात्राका नाम 55। प्रांण-ला कर । खग-गरुड़ । सरप-शेषनाग । ८०. राघौ-श्री रामचंद्र । सोभणौ-शोभा देने वाला। अथवा-सो = वह, भणौ = कहो। पात (पात्र)-कवि । गाढ़ौ-दृढ, गंभीर । पाखै-कहता है। प्राढ़ौ-पढ़ा गोत्रका चारण । ते-वे। विगतौ-बरबाद हा, व्यर्थ गया। भवि (भव)-जन्म या संसार । त्यांरौउनका। जाणसी-जानेंगे। पीछे-पश्चात् । वडौ-महान । भाग-भाग्य । ज्यांरौ जिनका। ८१. दुजबर-चार लघु मात्रा ।।।। मुणंत-कहा जाता है । सुणंत-सुना जाता है । ८२. बिमळ-पवित्र । बदन-मुख या शरीर । दनुज-राक्षस । दहण-नाश करनेको। दरस दिखाई देते हैं। www.jainelibrary Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ । रघुवरजसप्रकास छंद सैनिका (ग.ल.ग.ल ग.ल ग.ल.ग.ल.ग. अथवा र.ज.र.ल.ग) माथ पंच दूण जुद्ध मारणं । धांनुखं सरेण पांण धारणं ।। बार बार रांम क्रीत बोल रे। ताहरौ वडौ कवेस तौल रे ॥ ८३ दहौ मालतिका ग्यारह गुरु, बि तगण ज करण जाण । छंद इंद्र वज्रा छजै, वड कवि राम वखांण ॥ ८४ ___ छंद मालतिका (११ ग. अथवा म.म.म.ग. ग.) राघौ रूड़ौ स्री सीता स्वामी राजै । भारांथां लाखां दैतां थौका भांजै ॥ जैनं जीहा रातौ-दीहा जी जपौ। कांतो थे कीनासाहू ता ही कंपौ ॥ ८५ छंद इंद्र वज्र ( त.त.ज.ग.ग.) गोपाळ गोव्यंद खगेस-गांमी। नागेस सज्या क्रत सैन नांमी ॥ ८३. माथ (मस्तक)-शीश। दूण-दुगना। मारणं-मारने वाला। धांनुखं-धनुष । सरेण बाण, बासे । पांण (पाणि)-हाथ । धारणं-धारण करने वाला। क्रीत (कीति) यश। ताहरौ-तेरा। कवेस (कवीश)-महाकवि । तौल-मान, प्रतिष्ठा । ८४. बि (द्वे)-दो। ज-जगण । करण-दो गुरु मात्रा । छजै-शोभा देता है। बखांण वर्णन कर। ८५. रूडो-बढ़िया। राजै-शोभा देता है। भाराथां-युद्धों। थौका-समूह। भांजै-नाश करता है, तोड़ता है। जैन-जिसको। जीहा-जीभ । रातो-दोहा-रातदिन । जीजीव, प्रारण। जंपौ-याद करो, स्मरण करो। कांतौ-पति। कीनासहंता-यमराजसे । कंपौ-कम्पायमान है। ८६. गोव्यंद-गोविंद । खगेस-गांमी-गरुड पर सवारी करने वाला, गरुड़के वाहन से गमन करने वाला । नागस-शेषनाग । सज्या-शय्या। क्रत-करने वाला। सैन-शयन । नामीनाम वाला। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३५ रघुवरजसप्रकास है जंग वागां दस-माथ हता। माहेस वाछळ य सुकंठ मीता ॥ ८६ जगण तगण जगण करण, छंदस वज्रउपेंद। वज्र इंद ऊपयंद पद, मिळ उपजाती छंद ॥ ८७ उपेंद्रवज्रा (ज.त.ज.ग.ग.) अरेस जेतार जुधां अथाहं । बिसाळ ऊरंसु अजांनबाहं ।। धनेस देवेस दुजेस ध्यावै । गुणीस राघौ नित क्यं न गावै ॥ ८८ . छंद उपजात स्त्री जांनुकीनाथ सदा सराहौं । चिंतस बीजौ भजवा न चाहौ ॥ ८६. जंगवागां-युद्ध होने पर। दस-माथ-रावण। हंता-मारने वाला। माहेस-शिव । वाछळ्य-वात्सल्य । सुकठ-सग्रीव। मीता-मित्र । ८७. वज्रउपेंद-उपेन्द्रवज्रा नामक छंद । ऊपयंद-उपेन्द्रवज्रा छंद। उपजाती (उपजाति)-इन्द्र वज्रा और उपेन्द्रवज्राके योगसे बनने वाला छंद कहलाता है। इस प्रकारके छंद संस्कृत साहित्यमें १४ हैं जो इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्राके योगसे ही बनते हैं यथा कीति, वाणी माला, शाला, हंसी, माया, जाया, बाला, आर्द्रा, भद्रा, प्रेमा, रामा, ऋद्धि और सिद्धि । नोट-कहीं-कहीं इंद्रवंश और वंशस्थ तथा कहीं-कहीं सार्दूल विक्रीड़ित और स्रग्धरा छंदके योगसे बनने वाले छंदोंकी संज्ञा भी उपजाति मानी गई । ८८. अरेस (अरीश)-महाशत्रु । जेतार-जीतने वाला । अथाहं-अपार । ऊरंसु-उरसे, हृदयसे, वक्षस्थलसे । अजानबाह-पाजानबाहु । धनेस-कुबेर । देवेस-इन्द्र। दुजेस (द्विजेश)बड़े-बड़े ऋषि, नारद, व्यासादि। गुणीस (गुणीश)-महाकवि । राघौ-श्रीरामचंद्र । क्यं-क्यों ? न-नहीं । ८६. उपजात-उपजाति । सदा-नित्य । सराहौ-कीर्तन करो, यशगान करो। चितस-चितसे। बीजौ-दूसरा । भजवा-भजन करनेको। चाहौ-इच्छाकरो। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास दीनांदयावंछित मौज दाता । भला गुणां जोग अहेस भ्राता ॥ ८६ रगण नगण रगणह ध्वजा, रथो द्धिता सौ होय । रगणा नगण भगणह करण, जिको स्वागता जोय ॥६० छद रथोद्धिता (र.न.र.ल.ग) गौर स्यांम सिय रांम गाव रे, पात तं सपद ऊच पाव रे। नेक पाप हर जेण नाम रे, राज राज जगमौड़ रांम रे ।। ६१ छद स्वागता (र.न.भ.ग.ग.) रांम नाम सर पाथर तारे, आप पांण कपि सेन उतारे। जेण नाम सिव संकर जापै, मांझ कासि नर मोख समापै ॥ ६२ अथ द्वादसाखिर छंद जात जगती च्यार यगण पदप्रत्त चवां, छंद भुजंगप्रयात । लिखमीधर पदप्रत सुलछ, रगण च्यार दरसात ॥ ६३ छद भुजंगप्रियात निभौ राम जेणं तरी भ्रम्ह नारी । यं हीं ताड़का मार बांणां उधारी ॥ ८६. दीनांदयावंछित-दीनों पर दया करनेकी इच्छा वाला अथवा हे दीनों, जो तुम अपने पर दया की इच्छा करते हो। मौज-दान । दाता-देने वाला। भला-श्रेष्ठ । जोग-योग्य । अहेस (अहीस)-लक्ष्मण । १०. ध्वजा-एक लघ और एक दीर्घ मात्राका नाम । जिकौ-वह । ६१. रथोद्धिता-रथोद्धता नामक छंद । सिय-सीता । पात (पात्र)-कवि । नेक-थोड़ा, किंचित । जेण-जिसका । जगमौड़-संसार-शिरोमणि । ६२. सर-सागर, समुद्र । पाथर-पत्थर। पाण-शक्ति, बल, भुजा, हाथ। सेन-सेना । जापै-जपते हैं। मांझ-मध्यमें । मोख-मोक्ष । समाप-देते हैं। ६३. द्वादसाखिर छंद-द्वादशाक्षरावत्ति । पदप्रत-प्रति पद या चरण । चवां-कहता हैं। ६४. भ्रम्ह-ब्राह्मण, यहां गौतम ऋषिसे अभिप्राय है जिनकी स्त्रीका नाम अहल्या था । यूंही-ऐसे ही। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास सुबाह कियौ खंड खंडं सरखे । निमौ च्यारस कोस मारीच नंखे ॥ करी ज्याग स्याहाय मूनेस कज्जं । दखे जै जया बोल अनेक दुज्जं ॥ चितं चाय सीता सपीता अचूकं । कियौ चाप भूतेसरौ टूक-टूकं ॥ 'किसन्नेस' आखै रजी कविंदं । ast सरौ रांम पादारव्यंदं ॥ ६४ छंद लक्ष्मीधर ( र. र. र.र ) रांम वांळी रजा सीस ज्यरै रहै । कंण त्यांनै हुवा हीण मांणं कहै || वीसरै जीवहं जेह सीतावरं । न्यायहीण मदां होय तेता नरं ॥ ६५ दूहौ व्यार स तोटक च्यार तह, कह सारंग सुतत्थ । च्यार ज मुत्तीय दांम चव, च्यार भ मोदक कत्थ ॥ ६६ [ १३७ ६४. सरखे - बाणसे । च्यारसे चार सौ । नंखे- फेंक दिया, डाला । ज्याग-यज्ञ 1 स्वाहाय - सहायता । मूस (मुनीश) - विश्वामित्र मुनि । कज्जं - लिए । दखेकहते हैं । जै-जय । जया - जय । श्रनेक-अनेक । दुज्जं (द्विज) - ब्राह्मण । चायचाह कर । चाप–धनुष । भूतेसरौ - महादेवका । टूक-टूक - खंड खंड । श्राख - कहता है । रज्जी - प्रार्थना | कविदं ( कवीन्द्र ) - महाकवि । श्रासरौ - श्राश्रय, सहारा । पादारव्यंद(पादारबिंद ) कमलस्वरूपी चरण । ६५. लक्ष्मीधर - इस छंदके अन्य नाम कामिनीमोहन, लक्ष्मीधरा, श्रृंगारिणी तथा स्रग्विणी भी हैं। रजा - श्राज्ञा । ज्यांरं - जिनके । कूंण-कौन । त्यांने उनको । हीण - रहित । वीसरे - विस्मरण करता है। जीवहूं जीवसे । जेह-जिसको । सीतावरं - श्रीरामचंद्र | तेता-उतने । ६६. स- सगरण 115 तह-तगण SSI । ज - जगरण 151 | चव-कह । भ- भगरण 5|| | कत्थ - कह । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] रघुवरजसप्रकास छंद तोटक (स स.म.स.) रघुराज सिहायक संत रहै । कथ भेद जिको अज वेद कहै ॥ दसमाथ बिभंज भराथ दखं । पहनाथ समाथ अनाथ पखं ॥ पत-सीत प्रवीत सनीत पढं । दळ जीत लखां रिण जीत दढं ॥ रसना किसना' जिण क्रीत रटौ । दुख प्राचत ओघ अमोघ दटौ ॥ ६७ छंद सारंग (त.त.त त.) · राजेस स्रीरांम जे नैण राजीव । पातां अभै दांनकी जांनकी पीव ॥ औधेस आछेहके संत आधार । सारंग-पांणी 'किसन्नेस' साधार ॥ ६८ छंद मोतीदांम (ज.ज.ज.ज.) दिपै रघुनायक दीनदयाळ, पुणां खळ घायक सेवग-पाळ । चढे दसमाथ विभंजण वंक, लछीवर देण भभीखण लंक ॥६६ ६७. सिहायक-सहायक । जिकौ-जिस, वह । अज-ब्रह्मा। दसमाथ-रावण । बिभंज नाश कर। भराथ (भारत)-युद्ध । पहनाथ (प्रभुनाथ)-ईश्वर । समाथ-समर्थ । पखंपक्ष, मदद । पत-सीत (सीतापति)-श्रीरामचंद्र । प्रवीत-पवित्र । दळ-सेना। रिणयुद्ध । रसना-जीभ । जिण-जिसकी। क्रीत-कीर्ति, यश । प्राचत-पाप, दुष्कर्म । प्रोघ-समूह । अमोघ-निष्फल न होने वाला, अव्यर्थ । दटौ-नाश करो। १८. राजेस (राजेस)-सम्राट । जे-जिसके । राजीव-कमल । पातां-कवियों। पीव-पति। प्रौधेस-अयोध्या-नरेश, श्रीरामचंद्र । पाछेह-अपार । सारंग-पांणी (सारंग-पारिण) सारंग नामक धनषको धारण करने वाला, विष्णु, श्रीरामचंद्र । साधार-रक्षक । १६. दिपै-शोभायमान होते हैं। पूणां-कहता हूँ। खळ-असुर, राक्षस । घायक-विध्वंशक, नाश करने वाला । सेवग-पाळ-सेवक या भक्तकी रक्षा करने वाला। दसमाथ-रावरण। विभंजण-नाश करनेको, मिटानेको। वंक-बक्रता, गर्व । लछीवर-लक्ष्मीपति, श्रीरामचंद्र । देण-देनेको। भभीखण-विभीषण । लंक-लंका । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद मोदक ( भ भ भ भ . ) नायक है जग रांम नरेसर, ते कर लायक देवतरेसर | सीत तणौ त संत संधारण, चाव करे भज तू धिन चारण ॥ १० दू च्यार नगर पद में, तरळनयण भण तास । नगण भगण बे सगण निज, सौ सुंदरी सुभास ॥ १०१ रघुबर । छंद तर नयर (न.न.न.न. ) विकट कसट हर सभ्झत सुकर निज धनु सर ॥ भगत विछळ जि ब्रद भण । सुकवि 'किसन' तिरण भज सुरण ॥ १०२ छंद सुंदरी (न.भ.भ.स. ) समरमें दसकंठ जिण सजे, पह वडा हर चाप दळ पजे । मनव ते धन जांण सुध मता, रघुपति जस जेस नित रता ॥ १०३ [ १३६ चौपई सगण जगण सगह बे पच्छ । सौ प्रमिताखिर छंद सुलच्छ ॥ १०४ १००. नरेसर-नरेश्वर । देवतरेसर ( देवतरु ) - कल्प वृक्ष । सीत - सीता । तणौ-का । पतपति । सधारण- रक्षक, सहायक । त्राव - उत्साह उमंग, इच्छा । धिन धन्य । १०१. भण- कह । तास-उसको । सौ-वह । १०३. समर में - युद्ध में । दसकंठ-रावरण । जिण जिस । सजे-संहारे, मारे । पह- प्रभु, राजा । वडा - महा | हर महादेव । चाप-धनुष | दळ - समूह । पजे - पराजित किये, सजा दी । मनव-मानव, मनुष्य । धन-धन्य । जांण - समझ । मता (मति ) - बुद्धि । जेस जो । रता - अनुरक्त, लीन । १०४. बे (द्व ) - दो । पच्छ - पश्चात । सौ- वह । प्रमिताखिर - प्रमितासरा नामक छंद । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] रघुवरजसप्रकास छंद प्रमिताखिरा (स.ज.स.स.) लिछमीस रांम अण-भंग लखौ । परमेस पाळ जन दीन पखौ ॥ हर पाप ताप दुख-ताप-हरी । तिण पाय रेण रिख नार तरी ॥ १०५ अथ त्रयोदस अखिर छंद वरणण जात अतिजगति दूही पंच गुरू सगणह भगण, करणसु माया जाण । तोटकमें गुरु एक वध, तारक छंद वखांण ॥१०६ छंद माया (५ ग.स.भ.ग.ग. अथवा म.त.य.स.ग.) राघौ राघौ जंपणरी, ढील म राखै । देवा दैतां मानव नागा, सह दावै ॥ सीतारौ सांमी, जन पाळे । सतधारी थासी आदेही धन गायांजण थारी ॥१०७ ___ छंद तारक (स.स.स.स.ग.) घणस्यांम सरूप अनूप घणौ रे । तड़ता पळको पटपीततणौ रे ॥ १०५. अण-भंग-न भागने वाला, अखंड, वीर । लखौ-समझो। परमेस-परमेश्वर । पाळ रक्षक । जन-भक्त । पखौ-पक्ष, मदद। दुख-ताप-हरी-दुःख और ताप मिटाने वाला । तिण-उस । पाय-चरण । रेण-धूलि । रिख (ऋषि)-गौतम । तरी-उद्धरी, उद्धार हुआ। १०६. त्रयोदस अखिर छंद-त्रयोदशाक्षरा वृत्ति। करणस-दो दीर्घ मात्रासे । वखांण-वर्णन कर। १०७. राघौ-श्री रामचंद्र । जंपणरी-जपनेकी । ढील-विलंब, देरी। म-मत, नहीं। देवा देवता। दैता-दैत्यों । मानव-मनुष्य । नागा-नाग, सर्प। सह-सब। दाखै-कहते हैं। सांमी-स्वामी। सतधारी-सत्य या शक्तिको धारण करने वाला। थासी-होगी। प्रा-यह । देही-शरीर । धन-धन्य-धन्य। गायां-गाने पर । जण-जिसको। थारी तेरी। १०८. तड़ता (तड़िता)-बिजली। पळकौ-चमक । पटपीततणौ-पीताम्बरका। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १४१ धनु सायक पांण सुभायक धारै । रघुनायक लायक संतसु तारै ॥ १०८ दूहौ छंद भुजंगी पर लघु, श्रेक वधै सौ कंद । पंकावळि यक गुरु छ लघु, बिभगण कहत फुणिंद ॥ १०६ छंद कंद ( य.य.य.य.ल.) नरांनाथ सीतापती राम जै नाम । सत्रां भंज लाखां भुजां पांण संग्राम ॥ महाबाह बांणावळी कण जे मीढ । अखां रांम छै राम राजेस ही ईढ ॥ ११० छंद पंकावली (ग.छ.ल.भ.भ.) धांनुख-धर कर पंकज धारत । सेवग अगणत काज सुधारत ॥ जांमण मरणतणौ भय भंजण । राघव समर सिया मन रंजण ॥ १११ दूही सम पद दुज सगण जगण, करण अंत निरधार । दुज भगण रगण यगण, विसम अजास विचार ॥ ११२ १०८. धनु-धनुष । सायक-बांण। पांण (पाणि)-हाथ। सुभायक-शोभा देने वाला, सुंदर । तार-उद्धार करते हैं। १०६. बि (द्वि)-दो । फुणिद-शेषनाग । ११०. भंज-नाश करता है, नाश करने वाला । महाबाह-महाबाहु, बड़ी-बड़ी भुजाओं वाला, समर्थ। बांणावळी-धनुर्विद्यामें प्रवीण। कंण-कौन । जे-जिसके। मीढ-समान, समानता। अखां-कहता हूँ। ईढ-प्रतिस्पर्द्धा । १११. धांनुख-धर-धनुषधारी। कर-हाथ । पंकज-कमल । अगणत (अगणित)-अपार । काज-कार्य । सुधारत-सुधारता है। जांमण-जन्म । भंजण-मिटाने वाला । समर युद्ध । सिया-सीता। रंजण-प्रसन्न करने वाला। ११२. दुज-चार लघु मात्राका नाम । करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] रघुवरजसप्रकास छंद प्रजास (विषम-पद ४ ल.स.ज.ग.ग., सम-पद ४ ल.भ.र.य.) गढ कनक जिसा अगंज गाहै, सुर नर नाग महेस सा सराहै । कुळ-तरण जनां सिहायकारी, धनुसर पांण रहै सधीरधारी ॥११३ अथ चतुरदस अखिर छंद वरणण, जात सक्करी कहि वसंत तिलका त,भ ज दोय करण जिण अंत । आद अंत गुरु मध्य लघु, बारह चक्र लसंत ॥ ११४ छंद वसंततिलका (त.भ.ज.ज.ग.ग.) सारंगपांण जय राम तिलोकस्वांमी । भूपाळ-भूप भुजडंड प्रचंड भांमी ॥ ११३. कनक-स्वर्ण, सोना। अगंज-जिससे कोई जीत न सके, अजयी। गाहै-नष्ट कर देता है, ध्वंश कर देता है । सुर-देवता। महेस-महादेव। सराहै-प्रशंसा करते हैं, स्तुति करते हैं। कुळ-तरण (तरकुल)-सूर्यवंशी। सिहायकारी-सहायता करने वाला। सधीरधारी-धैर्यवान । नोट---छंद प्रजासके जो लक्षण ग्रंथकर्त्ताने दोहेमें दिये हैं उनसे उदाहरण नहीं मिलता। ११४. चतुरदस अखिर छंद-चतुर्दशाक्षरावृत्ति । सक्करी-शक्कर या शक्वरी । चौदह अक्षरों वाले छंदोंकी संज्ञाके अंतर्गत निम्नलिखित वर्णवृत्त संस्कृत साहित्यमें है, उनमेंसे ग्रंथकर्ताने सिर्फ उपर्युक्त दो वर्णवृत्तोंका ही उल्लेख किया है । वे वर्णवृत्त ये हैं- वसंततिलका, असंबाधा,अपराजिता,ग्रहणकलिका, वासंती, मंजरी, कुटिल, इन्दुबदना, चक्र, नांदीमुख, लाली तथा अनंद । उपर्युक्त वर्ण वृत्तोंमें वसंततिलकाको कवि-समाजमें अधिक महत्त्व दिया गया है। वैसे प्रस्तार-भेदसे चौदह अक्षरों वाले छंदोंकी कुल संख्या १६३८४ होती है। त-तगरण । भ-भगण । ज-जगण । दोय-दो। करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । ग्रंथकर्ताने चक्रछंदका लक्षण लिखते समय अपनी प्रखर बुद्धिसे सिर्फ यह लिख दिया कि जिसके आदि और अंतमें दीर्घ वर्ण और मध्यमें बारह लघु वरण हो सो भी अति सुंदर लक्षण है । इस छंदमें सात-सात वर्ण पर यति होती है। सारंग-पांण (सारंगपाणि)-विष्णु, श्री रामचन्द्र भगवान । तिलोकस्वामी-त्रिलोकपति। भूपाळ-भूप-राजाओंका राजा, सम्राट। भांमी-बलैया, बलैया लेता हूँ। न्यौछावर होता हूँ। ११५. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास भूतेस चाप छिनमेक चढाय भंज्यौ I राजाधिराज सिय मानस कंज रंज्यौ ॥ ११५ छंद चक्र (ग., ., १२ ल., ग. अथवा भ.न.न.न.ल.ग.) ७,७ राम भजन विण अहळ जनम रे 1 नांम समर पय सिर नित नम रे 11 मांस असत तन चरमसु मळ रे । स्त्रीवर रट रट रसण सफळ रे ।। ११६ अथ पनरह अखर छंद वरणण, जात प्रतिसक्विरी दू गुरु लघु क्रम आखिर पनर, सौ चामर सुखकंद । बि नगण २ करण १ बि रगण २ गुरु छजै सालिनी छंद ॥ ११७ [ १४३ छंद चांमर (र. ज. र. ज. र. ) कौड़ दैत भंज संज, पांण चाप सायकं । नागराज भ्रात बंस, मीत सीतनायकं ॥ देवराट क्रीत खाट, नाट बोल ना दखं । रे नरेस राघवेस, गावजै भजै रिखं ॥ ११८ समर - स्मरण कर । ११५. भूतेस - महादेव, शिव । चाप - धनुष । छिनमेक- एक क्षण । भंज्यौ-तोड़ा । सियसीता । मानस ( मानस ) - चित्त, हृदय, मन । कंज - कमल । रंज्यौ - प्रसन्न किया । ११६. हळ (अफल ) - निष्फल, व्यर्थ | सदैव । संत (स्थि) - हड्डी । चरमसु- चमड़ी | (श्रीवर) - विष्णु, श्रीरामचंद्र । रसण (रसना) - जिह्वा, जीभ । ११७. पनरह प्रखर छंद - पंचदशाक्षर वृत्ति । पन्द्रह वर्णोंके वृत्तोंकी संज्ञा प्रतिशक्वरी कही जाती है जिसके अंतर्गत कुल वृत्त प्रस्तार भेदसे ३२७६८ तक हो सकते हैं । पय-चररंण । नित- नित्य, मळ - मैल, विष्टा । स्त्रीवर ११८. कौड़ (कोटि ) - करोड़ । दैत ( दैत्य ) - प्रसुर । भंज - नाश कर, संहार कर । संजअस्त्र शस्त्र, उपकरण । चाप-धनुष । सायकं - बाण | नागराज - शेषनाग, लक्ष्मण । भ्रात - भाई ! मीत (मित्र) - सूर्य । सीतनायकं - सीतापति, श्रीरामचंद्र | देवराटइन्द्र । क्रीत - यश | खाट प्राप्त कर । नाट-नहीं । बोल वचन । ना नहीं | दर्दकहे कहते हैं ! नरेस ( नरेश ) - यहां यह शब्द नरके लिये प्रयोग हुआ है, राजा । राघवेस ( राघवेश ) - श्रीरामचंद्र । भजै-- भजते हैं। रिखं ऋषि । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ । रघुवरजसप्रकास छंद सालिनी (न-न.ग.र.र.ग.) महण मथण राघौ वाग संसार माळी । तिपुर घड़ण भंजै वाजन्तां हेक ताळी ॥ अहनिस भज तैनं आव संसार ओछी । छ-दरस यम आखे, जे बिना सब्ब छोछी ॥ ११६ सगण पंच भमरावळी, स ज दौ भ रह विवेक । सुकळ हंस चवदह लघू, रभस गुरु पद एक ॥ १२० छंद भ्रमरावली (स.स.स.स.स.) कर साझत रांम सुचाप सरं कळहं । दुगमं खळ सीस-दुपंच जिसास दहं । रघुनायक धारत मौज सुचित्त रूड़ी। गढ लंक जिसा दत आपत हेक घड़ी ॥ १२१ छंद कलहंस (स.ज.ज.भ.र.) रघुनाथ भंज दुपंच-माथ अभंग रे। जयवांन भूप अमांन आसुर जंग रे॥ ११६. महण (महार्णव)-सागर, समुद्र । मथण-मंथन करने वाला। तिपुर-त्रिपुर, त्रिलोक । घड़ण-रचना, घड़ना, घड़ता है । भंजै-नाश कर देता है। बाजतां-बजने पर। हेकएक । प्रहनिस-रात-दिन। तैनूं-उसको। आव-पायु । पोछी-कम। छ-दरस (षड़दर्शन)-न्याय मीमांसादि हिंदुओंके षड़दर्शन, या छ शास्त्र । यम-ऐसे । पाखै कहते हैं। जे-जिस । सब्ब-सर्व, सब । छोछी-व्यर्थ, निष्फल । १२०. स-सगण । ज-जगण । भ-भगण । रह-रगण । १२१. कर-हाथ । साझत-धारण करते हैं। सुचाप-सुंदर धनुष । सरं-बाण । कळहं युद्ध । दुगर्म-जबरदस्त, महान । खळ-असुर । सीस-दुपंच-रावण । जिसास-जैसे । दह-नाश, नाश करने वाला। सुचित्त-उदार चित्त । रूड़ी-बढ़िया, श्रेष्ठ । जिसा जैसा । दत-दान । प्रापत-देते हैं, दे दिया। हेक-एक । १२२. भंज-नाश करने वाला। दुपंच-माथ-रावरग। अभंग-न भागने वाला । अमान-अपार । प्रासुर (असुर)-राक्षस । जंग-युद्ध । www.jaine Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १४५ जळधार तार गिरंद बंधण पाज रे । लिछमीस दास अनाथ राखण लाज रे॥ मछराळ देव दयाळ ग्रीवसु म्यंत रे । 'किसनेस' गाव सचाव सीत-कंत रे ॥ १२२ छंद रभस (१४ ल.ग. अथवा न.न.न.स.) ६६ रिवकुळ मुकट अघट रघुबर है । सुरतर सर भर जिकण सुकर है ॥ हरा सकळ अघ करण अमर है। चव जस किसन' चवत थिर चर है ॥ १२३ अथ सोळ अखिर छंद वरणण, जात अस्टि दूही भ ज स न रह पनरह अखिर, निसपालिका सु गाव । लघु गुरु क्रम सोळह अखिर, सौ नाराज सुभाव ॥ १२४ छंद निसपालिका (भ.ज.स.न.र.) रांम सरखा नरप कोय यळ ना रजै । छात्रपत रांम सम रांम करगां छजै ॥ १२२. लिछमीस (लक्ष्मीश)-लक्ष्मीपति, विष्णु, श्रीरामचंद्र। दास-भक्त । मछराळ (मत्स्या वतार)-महान, जबरदस्त । ग्रीवसु-सुग्रीव । म्यंत (मित्र)-मित्र । सचाव उत्साहपूर्वक, उमंगपूर्वक । सीत-कंत (सीताकांत)-सीतापति, श्रीरामचंद्र भगवान । १२३. रिवकुल (रविकुल)-सूर्यवंश या सूर्यवंशी। अघट-जि सके समान दूसरा न हो, अद्वितीय । सुरतर-कल्पवृक्ष । सर-भर-समान । जिकण-जिसका । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । सकळ सब । अघ-पाप । चव-कह । चवत-कहते हैं। थिर-स्थावर, अटल । चर-जंगम । नोट-रभस छंदका दूसरा नाम शशिकला भी है। १२४. सोळे अखिर छंद-षोड़शाक्षरावृत्ति । अस्टि (अष्टि)-सोलह वर्णकी वर्ण-वृत्ति जिसके कुल भेद ६५५३६ तक हो सकते हैं। १२५. सरखा (सदृश)-समान । नरप (नृप)-राजा। कोय-कोई । यळ-पृथ्वी। छात्रपत (छत्रपति)-राजा। सम-समान । करगां-हाथ । छज-शोभा देता हैं । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास कोड़ अघ ओघ जिण नाम अरधै कट। रे ‘किसन' खांत कर क्यं न तिणनै रटै ।। १२५ अथ सौल अखिर छंद ब्रद्धिनाराज (ज.र.ज र.ज.ग.) न रूप रेख लेख भेख तेख तौ निरंजणं । न रंग अंग लंग भंग संग ढंग संजणं ॥ न मात तात भ्रात जात न्यात गात जासकं । प्रचंड बाहु डंड रांम खंड नौ प्रकासकं ॥१२६ दहौ पांच भगण गुरु अंत पद, सौ पद-नील सुछंद। गुरु लघु क्रम सोळह वरण, कहि चंचळा कव्यंद ॥१२७ छंद पदनील (भ.भ.भ.भ.भ.ग.) कौड़क तीरथ राज चिहं दिस धाय करै । सौ लख कौड़ अखंड वडा व्रत जे सुधरै ॥ ज्याग महा असमेध धरादिक दांन जते । तौ पण रांम प्रमाण तणै तिल जोड़ न ते ॥ १२८ १२५. परध-प्राधा। खांत-विचार । तिण-उस । . १२६. ब्रद्धिनाराज-बृहद नाराच । भेख (भेष)-पहनावा। तेख-तीक्ष्णता, क्रोध । तौ-तेरा। निरंजणं-मायारहित, दोषरहित, परमात्मा! लंग (लिंग)-चिन्ह । मात-माता । तात-पिता । गात (गात्र )-शरीर। जात-जाति । न्यात (ज्ञाति )-जाति । जासकं-जिसके । खंड-देश । नौ-नव । नोट-वहदनाराच छंदका दूसरा नाम पंचचामर भी है। ग्रंथकर्त्ताने इसके लक्षणमें प्रथम लघु फिर गुरु इस क्रमसेसोलह वर्ण माने हैं। १२७. सौ-वह । पद-नील-छंदके नाम । इस छंदके अन्य नाम नील, अश्वगति, लीला और विशेषक भी मिलते हैं। चंचळा-छंदका नाम विशेष । इस छंदका दूसरा नाम चित्र भी मिलता है । ग्रंथकर्त्ताने प्रथम गुरु फिर लघु इस क्रमसे सोलह वर्णका प्रत्येक चरण माना है। कब्यंद (कवीन्द्र)-महाकवि । १२८. कौड़क-करोड़ । चिह-चारों। दिस-दिशा। धाय करै-दौड़ करे, प्ररिभ्रमण करे । जे-जो, अगर । ज्याग-यज्ञ । असमेघ-अश्वमेध यज्ञ । धरादिक-भमि प्रादि । जतेजितने। तो पण-तो भी। जोड़-बराबर, समान । ते-वे । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १४७ छंद चंचला (र.ज.र.ज.र.ल.) देव देव दीन नाथ राज राज स्त्री दयाळ। वासुदेव विस्वदेव वंदनीक नै विसाळ ॥ नारसींध नार त्रैण नरांनाह नाभकंज। रांमचंद्र राघवेस रूपरास रमा रंज ॥१२६ अथ सतरै वरण छंद जात यिस्टी जगण सगण जगणह सगण, यगण ध्वज जिण अंत। सुजस रांम 'किसनौ' सुकव, प्रथ्वी छंद पढंत ॥ १३० छंद प्रथ्वी (ज.स.ज.स.य.ल.ग.) महा सुगण रूप है सुचित सार आचारमें। सखां कवण जोड़ जे, अघट आज संसारमें ॥ यळा सह वदै यसौ सुजन रांम साधार है। पुणां जस जिकै पढौ सुज कथा स आसार है ॥१३१ १२६. वासुदेव-वसुदेवके पुत्र, श्रीकृष्ण । विस्वदेव-ईश्वर । वंदनीक-वंदनीय । न-और । विसाळ-(विशाल) महान, बड़ा। नारसींघ-नृसिंहावतार । नरांनाह-नरनाथ । नाभकंज-नाभिमें जिसके कमल, विष्णु । रूपरास-रूपकी राशि। रमा-लक्ष्मी। रंज-प्रसन्न करने वाला, सन्तुष्ट करने वाला। नोट--चंचला छंदके तृतीय चरणमें छंदोभंग दोष है। १३०. सतर वरण छंद-सप्तदशाक्षरावृत्ति । जात यिस्टी-यहां पर मूल प्रतिमें यिस्टी लिखा मिला परन्तु यहां पर अति अस्टी या अति यिस्टी शब्द होना चाहिए था। सत्रह वर्गों की वर्ण वृत्तिका शुद्ध नाम अत्यष्टि है जिसके अन्तर्गत शिखरणी, हरिणी, पृथ्वी, मन्दाक्रांता आदि छंद होते हैं जिनकी कुल संख्या १३१०७२ तक होती है। ध्वज-प्रथम लघु फिर गुरु मात्राका नाम। जिण-जिस । पढंत पढ़ता है। १३१. सुगण-(सगुण) सत्व, रज और तम तीनों गणों पक्त परमात्माका एक नाम । सार सारांश, अस्त्र-शस्त्र, तलवार । प्राचार-व्यवहार । सखां-कहते हैं। कवण-कौन । जोड़-समान । जे-जिस । अघट-अद्वितीय । यता (इला)-पृथ्वी । सह-सब । वदैकहते हैं। यसौ-ऐसा । सुजन-श्रेष्ठजन, अथवा स्वजन । साधार-रक्षक । पुणांकहता हूँ। जिकै-जिसका । प्रासार-यह सार है, अथवा आश्रय है। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] रघुवरजसप्रकास दू दुज ज भ त गुर पायप्रत, सौं माळाधर कत्थ । ल गुरु पंच लघु पंच तस, सौ सिखरणी समध्य ॥ १३२ छंद मालाधर ( ४ ल.ज. भ.ज त.ग. अथवा न.स. ज.स.य.ल.ग.) नरं जनम जे दियौ समर जांनकीनाथ सौ | हप ईस रे जपत है सदा गाथ जौं 11 मत विलम तं करै भजण रांम माहीप रे । जप 'किसन' नांम जे जनम लियौ जीप रे ॥ १३३ छंद सिखररणी ( १ ल. ५ ग. न. स. भ. ल ग . अथवा य. म. न. स. भ. ल.ग.) aal राघौ राघौ करम घ दाघौ तनतणा । महाराजा सीता वलभ कुळ-मीता विण- मणा ॥ यरां जैता जंगां डर यक-रंगां जग अखै 1 सौ गावौ जीहा वस निस- दीहा अज सखै ॥ १३४ १३२. दुज-चार लघु मात्राका नाम । भ- भगरण | ज-जगरण । त-तगरण | पायप्रत प्रति चरण । सौ-वह । माळाधर - छंदका नाम । कत्थ- कह । तस-तगरण, सगरण । समय - समर्थ | १३३. जे - जिस । समर - स्मरण कर । जांनकीनाथ - सीतापति, श्री रामचन्द्र भगवान । सौ-उस, वह । श्रज - ब्रह्मा । ग्रहप - (हिप) शेषनाग | ईस - ( ईश ) महादेव । सदा - नित्य | गाथ-कथा । जौ-जिस । विलम - ( विलम्ब) देरी । माहीप ( महिपति, महिप) - राजा । जे-जिस, प्रगर । प्रौ-यह । जीप-जीत, विजय कर । १३४. तवा ( स्तवन ) - स्तवन करो, यश-गान करो । घ- पाप । दाघौ - जला दो, भस्म करो। तन शरीर । तणा-के । सीता वलभ ( सीतावल्लभ ) - सीताप्रिय, रामचंद्र | कुळ - मीता ( कुल + मित्र ) - सूर्य वंश, सूर्य वंशका | विण मणा - महान, अपार । यi ( श्ररियों ) - शत्रुनों । जैता जीतने वाला । श्रडर - निर्भय । यक- रंगा - एक ही रंगका, एक ही स्वभावका । - कहता है । सकौ - सब, उस | जीहा-जीभ । श्रवस - श्रवश्य । निस- बीहा - रात-दिन । श्रज - ब्रह्मा । सखै - साक्षी देता है । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास दूहौ 1 मगण भगरण फिर नगरण मुणि, तगण दोय फिर जोय करण एक अहराज कहि, मंदाक्रांता होय ॥ १३५ छंद मंदाक्रांता ( म.भ.न.त.त. ग.ग.) ४, ६, ७ सीता सीतारमण हरही नेक संताप संतां । भेख लज्जा समंतां ॥ भाग छै जेण मोटौ । मता मता सकुळ घर ही माधौ माधौ रस जप ही त्यांरा दासां सरब सुख रे हौ [ १४६ थरौ नांहि तोटौ ॥ १३६ नगरण सगण मगरणह रगण, सगण एक ध्वज अंत | खगपत सुख हपत अखै, हरिणी छंद कहंत ॥ १३७ छंद हरिणी ( न.स.म.र.म.ल.ग.) भजन करणौ जीहा भूपणं पती रघु भूपरौ । बिरद धरणौ बँका रे कोट भांग सरूपरौ ॥ सुजन वित देखौ लेखौ कीत गाथ सधीर है । हरण दुख व्है संतां मात-पिता रघुबीर है ॥ १३८ १३५. मुणि- कह कर करण- दो दीर्घ मात्राका नाम । प्रहराज (अहिराज ) - शेषनाग । १३६. सीतारमण - सीता के साथ रमण करने वाला, श्री रामचंद्र भगवान । हरही-दूर करेगा, मिटायेगा । नेक-थोड़ा । संताप - पीड़ा, कष्ट । माधौ - माधव, विष्णु, श्री रामचंद्र | रसण - (रसना) जिव्हा, जीभ । भाग - भाग्य | छँ - है । जेण- जिसका, जिससे । मोटो - महान । त्यांरा- उनके | दासां भक्तों । श्राथ रौ (अर्थस्य ) - धनका । नांहि-नहीं। तोटौ प्रभाव, कमी । १३७. ध्वज - प्रथम लघु फिर दीर्घ मात्राका नाम । खगपत ( खगपति ) - गरुड़ । ( हिपति ) - शेषनाग | कहंत - कहते हैं, कहा जाता है । १३८. जीहा - जिव्हा, जीभ । भूपां पती - (भूपपति) सम्राट । रघु - रघुवंशी । भूपरौ - राजाका । बिरद ( विरुद ) - यश | धरणौ धारण करने वाला । बंका-बांकुरे, महान । कोट ( कोटि ) - करोड़ । भांण । भानु ) - सूर्य । सरूपरौ - स्वरूपका । सुजन-सजन, स्वजन । वित- द्रव्य, धन-दौलत । देणौ - देने वाला । लेणी-लेने वाला । क्रीत - कीर्ति । गाथ - कथा । सधीर-धैर्यवान, दृढ़ । ग्रहपत Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] रघुवरजसप्रकास अथ अठार वरण छंद, जात ध्रति छ गुरु भगण मगणह सगण, मगण छंद मंजीर । र स ज ज फिर भगणह रगण, सौ चरचरी सधीर ॥ १३६ छंद मंजीर (६ ग.भ.म.स.म. अथवा म.म.भ.म स.म.) हाथी कीड़ी कांटे हेकण सौ तोल, जग जाणे सारौ। रंकां रावां जोड़े राखत, तैं कीजै निबळां निस्तारौ।। दीनां लंका जे हाथां न कजै दीधा जग सारौ जाणे । वेदां भेदां धाता वीठळ वारंवार रटै वाखाणे ॥ १४० छंद चरचरी (र.स.ज.ज.भ.र.) देव राघव दीन पाळ दयाळ बंछित दायकं । नाग मानव देव नाम रटंत सीय सुनायकं ॥ माथ-पंच दुयेण भंज अगंज भूप महाबळ । वंद तं 'किसनेस' पात सुपाय जे जन वाछळ ॥ १४१ पड़े यगण खट चरणा प्रत, क्रीड़ा छंद कहाय । 'किसन' सुकव अहपत कहै, रट कीरत रघुराय ॥ १४२ १३६. अठारै वरण छंद-अष्टदशाक्षरावति । जात ध्रति-अठारह वर्णोके वृत्तोंकी संज्ञा जिसमें हरिणी प्लता, चित्रलेखा, मंजीर आदि हैं और जिनकी संख्या २६२१४४ तक है । चरचरी-एक छंद। इस छंदका दूसरा नाम चंचरी भी है। १४०. कांटे-तराजुमें, तकड़ीमें । हेकण-एक । सारौ-सब। रंकां-गरीबां। रावां राजाओं। जोड़े-समान, बराबर। निस्तारौ-उद्धार । धाता-ब्रह्मा। वीठळ विष्णु, ईश्वर । १४१. वंछित-इच्छित, अभीष्ट । दायकं-देने वाला। रटंत-रटते हैं। सीय सुनायक-सीता पति श्री रामचंद्र भगवान। माथ-पंच-रावण । दुयेण-दो, यहां दो हाथोंसे तात्पर्य है। भंज-नाश किया । पात-कवि । सुपाय-सदर, श्रेष्ठ। जे-जो, जिसके । जन-भक्त । वाछळं-वात्सल्य । १४२. प्रत-प्रति, हर एक । क्रीडा छंद-इस छंदका दूसरा नाम महामोदकारी भी है। प्रहपत (अहिपति)-शेषनाग । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद क्रीड़ा ( यय.यय यय.) रौजां सदा हो जना चं पसं रांम रांमं । महाबाह सीतापती राखौ सेवतां संत सांमं ॥ कटी तूं पां सरं चाप माप तेजं कळासै । नरां नाथ सामाथ अनेक श्रघं घं दैत नासै ॥ १४३ अथ उगणीस प्रख्यर छंद, जात प्रतिप्रति दूहौ [ १५१ मगण सगण जगणह सगरण, तगण दोय गुरु एक । सारदूळविकी ड़तह, वरणौ छंद विसेक ॥ १४४ छंद सारदूल विक्रीड़त ( म. स. ज. स. त.त.ग.) जै जै औध नरेस संत सुखदं स्त्रीरांम नारायणं । सीतानाथ सुनाथ, दास करणं संसार सारायणं ॥ देवाधीस रिखीस ईस जयं ते सेव पारायणं । पायं कंज 'किसन्न' रक्खि सरणं आणंदकारायां ।। १४५ १४३. जांम आठूं - अष्टयाम, आठ पहर । जना-भक्त । चूंप सूं - दक्षतासे, चतुराईसे । महाबाह ( महाबाहु ) - विशाल भुजा वाला | सीतापती (सीतापति ) - श्री रामचन्द्र । राखणौ- रखने वाला । सांमं स्वामी । कटी ( कटि ) - कमर । तृण तर्कश, भाथा । पांणं ( पारि ) - हाथ । सरं- बारा । चाप-धनुष । श्रामाप - अपार, प्रसीम । सामाथसमर्थ । श्रनेक-अनेक । श्रोधं समूह | घं - पाप । दैत- असुर दैत्य । नासं-नाश करता है । १४४. उगणीस प्रख्खर छंद ( ऊनविंशत्याक्षरा वृत्ति) - उन्नीस अक्षरोंके छंद । छंद जात श्रतिधृति (प्रतिधृति) उन्नीस वर्णोंके छंदोंकी संज्ञा जो कुल प्रस्तार भेद से ५२४२८८ तक होते हैं । विसेक - विशेष । १४५. जै जै - जय-जय । श्रौत्र नरेस - अयोध्या नरेश, श्रीरामचंद्र भगवान । सुखदं - सुख देने वाला । सारायणं- शरण देने वाला । देवाधीस ( देवाधीश ) - इन्द्र । रिखीस (ऋषीश ) - महर्षि । ईस - शिव, महादेव । श्रजयं ( अ ज ) - ब्रह्मा । सेव - सेवा । पारायणं पूर्ण । पायं- पैर, चरण । कंज-कमल । श्राणंद-कारायणं-प्रानंद करने वाला । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास १५२ ] पुन अन्य च अपभ्रंस भाखा सारदूल विक्रीड़त (म.स.ज.स.त.त.ग.) आस्चर्यं रघुनाथ भूप-महदं त्वनांमंमुच्चारणम् । जन्म संचिदघोरघोर कळ सं नासं तमेकं-छिनम् ॥ ते अंभोरुह अंघ्रि एन सरणं प्राप्तं नामांमीस्वरम् । तेसां विघ्नविलीयमांन तुरितं ध्वांतमिव भास्करम् ॥ १४६ दूहौ अखिर गुणीसह अवर लवु, ग्यारहमी गुरु होइ । छ नगण गुरु अंतह सु फिर, धवळ कहावै सोर ॥ १४७ छंद धवल (१० ल.ग. ८ ल. अथवा न.न.न.ज.न.न.ल.) कळह मझ गहत जद रांम धनु निज सुकर । हरत रिम कटक घण-माळ उर सझत हर ॥ खुलत रिख नयण सुण पंख पळचर खरर । डगमगत यर घुसत भाज परबत डरर ॥ १४८ १४६. महदं-उत्सवदायक । त्वन्नाम-तेरा नाम। संचिदघोरघोर (संचित--अघोर+घोर) संग्रह किये हुए महान भयंकर । कळुसं-पाप । नासं-नाश । तमेकं-छिनम्-एक ही क्षण भरमें । ते-तेरा, तेरे । अंभोरुह-कमल । अंघ्रि-चरण । एन (अयन)-घर । प्राप्तं-प्राप्त होकर। तेसां ( तेषाम )-उनका, उनके। विघ्न-बाधा, अड़चन । विलीयमांन-नाश । तुरितं-शीघ्र। ध्वांतमिव-अंधेरेके समान । भास्करम्-सूर्य । १४७. अखिर-अक्षर । गुणीसह-उन्नीस ।। १४८. कळह-युद्ध । मझ (मध्य)-में। गहत-धारण करता है, करते हैं। जद-जब । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । हरत-मिटाते हैं, मिटाता है। रिम-शत्र । कटक-सेना। घणमाळ (शिर, मुख+माळ-माला)-रुंडमाला। सझत-धारण करते हैं। हरमहादेव । रिख-नारद ऋषि । पंख-पर, पक्ष। पळचर-ग्रामिषहारी। खररआवाज, ध्वनि विशेष । डगमगत-डाँवाडोल होते हैं, कम्पायमान होते हैं। यर (अरि)-शत्र । घुसत-प्रवेश करते हैं। परबत-पर्वत, पहाड़। डरर-भयसे । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ chcococchci रघुवरजसप्रकास । १५३ पुन अन्य विधि छंद धवल (न.न.न.न.न.न.ग.) जिण पय सुरसरि अघहर सरित जनम है । करत मजन तिण जळ जन कटत अकम है ॥ बिबुध सकळ अहनिससु जपत सियबर है । तव नित 'किसन' रसन रघुबर सुरतर है ॥ १४६ दही सगण तगण यगणह भगण, सात गुरू पय पच्छ । अहपत खगपतसं अवै, संभू छंद सुलच्छ ॥ १५० छंद शंभू (स.त.य.भ ७ ग. अथवा स.त.य.म.भ ग.) जग माथै राजत औ जेतै हरि एहौ आनं पा जापं । तितरै मां मानव तं त्रासे जमवाळी माने धू तापं ॥ 'किसनौ' यं आखत आचांके, बहनांमी भांमी बाबा रे । करणारौ बारध छै केसौ, अध नांमे संतां ऊधारै ॥ १५१ अथ वीस अखिर छंद वरणण जात ऋति सगण जगण बे भगण सुण, रगण सगण ध्वज थाय । सकौ गीतिका गंडिका, वीस गुरू लघु पाय ॥ १५२ १४६. जिण-जिस । पय-चरण । सुरसरि-गंगा नदी । अघहर-पापोंको मिटाने वाली । सरित-नदी। मजन-स्नान । तिण-उस। कटत-कटते हैं। अक्रम-पाप । बिबुधदेवता। सकळ-सब। प्रहनिससु-रातदिनमें । सियबर-सीतापति, श्रीरामचंद्र भगवान । तव-स्तवन कर। रसन-रसना, जीभ । सुरतर-कल्प-वृक्ष। १५०. पच्छ-पश्चात, बादमें । अहपत-शेषनाग । खगपतसं-गरुड़से । सुलच्छ-अच्छे लक्षण । १५१ माथै-ऊपर, पर। राजत-शोभा देता है। एहौ-ऐसा । पानपा (अनुप)-अनोखा । तितरे-तब तक । मां-मत । त्रासे-डरे। धू-निश्चय । तापं-भय । पाखतकहता है। बहनांमी-बहतसे नामों वाला, ईश्वर । भांमी-न्यौछावर, बलया। बाबाईश्वर । करणा (करुणा)-दया। बारध (वारिधि)-सागर। अध-ग्राधा । नामे नामसे । ऊधार-उद्धार करता है। १५२. वीस अखिर छंद-विशत्याक्षरावत्ति । बीस अक्षरोंके छंदोंकी संज्ञा कृति मानी गई है जिसके अनुसार प्रस्तार भेदसे १०४८५७६ तक भेद होते हैं। ध्वज-प्रथम एक लघु फिर एक गुरुका नाम । थाय-हो। गंडिका-एक वृत्तका नाम । पाय-चरण । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] रघुवरजसप्रकास छंद गीतिका (स.ज.ज.भ.र.स.ल.ग.) १२,८ करतार भू अधार केसव धार पांण सधांनखं । रघुनाथ देव समाथ राजत मां विसार स मांनुखं । जळ पाज बंध उतारजै कपि साज सेन सकाजयं । रसना 'किसन्न'सु जांम-आठ उचार सौ रघुराजयं ॥ १५३ ___ छंद गल्लिका (र ज.र.ज.र.ज.ग.ल.) रांम नाम आठ-जांम गाव रे सुपात एह देह सार । और धंध फंद सौ अनाख रे न आखरे गणं नकार ॥ औध-ईस जेण सीस आच रे थया सकौ सुनाथ थाय । जेण पाय कंज लीध आसरौ जके जनम जीत जाय ॥ १५४ अथ अकवीस वरण छंद वरणण जात प्रक्रति मगण रगण भगणह नगण, यगण तीन प्रति पाय । वीस एक सोभित वरणा, सौ स्रगधरा सभाय ॥ १५५ १५३. गीतिका-इस छंदके प्रथम चरणकी रचनामें छंद शास्त्रके नियमका निर्वाह नहीं हुआ। सुधांनखं श्रेष्ठ धनुष । समाथ-समर्थ । मां-मत । विसार-विस्मरण कर । सउसको । मांनुख-मनुष्य । रसना-जीभ । जांम-पाठ (अष्ट याम)--प्राठों पहर । सौ-उस, वह । १५४. गंडका, गंडिका गल्लिका छंद--रल्यका आदि इस छंदके अन्य नाम हिंदी व राजस्थानी भाषामें मिलते हैं । इसे छंद शास्त्रमें वृत्त भी कहा गया है। प्रथम गुरु फिर लघु इस क्रमसे बीस वर्णका यह वृत्त माना गया है। ऐसा ही लक्षण ग्रंथकर्त्ताने दिया है। पाठ-जांम (अष्टयाम)-पाठों पहर । सुपात (सुपात्र)-श्रष्ठ कवि । एह-यह। सारसारांश, तत्त्व रूप। धंध-धंधा, कार्य, काम। फंद-बंधन, जाल। अनाख (अनाहक)नाहक, व्यर्थ । पौध-ईस-श्री रामचंद्र भगवान । जेण-जिसके । पाच-हाथ । थयाहए। सकौ-सब, वह। पाय-चरण । कंज-कमल । लीध-लिया। प्रासरौ सहारा, पाश्रय। . १५५. अकवीस वरण छंद-एक विंशत्याक्षरावृत्ति । इक्कीस अक्षरोंके छंदकी संज्ञा प्रकृति कही जाती है जिसमें प्रस्तार भेदसे २०६७१५२ भेद होते हैं । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास छंद त्रग्धरा (म.र.भ.न. य. य. य . ) जै राघौ राज राजं अमर नर अहं क्रीत जे जीह जापै ॥ आचारी भौक लागै छिनक मझ करां लंक सादांन आपे ॥ धींगां जाड़ा मरोड़े डर कर उभै, बांण धांनख धारै 1 तौनं जीहा रटतां जनम अघ हरै, दास धू जेम तारै ॥१५६ ܘ दूहौ भगण रगण दुजबर नगरण, दोय भगण गुरु दोय । अहपत खगपत अखै, छंद नरिंद सकोय ॥ १५७ ܘ { १५५ छंद नरिंद (भ.र. ४ ल.न.भ.भ.ग.ग अथवा भ.र.न.न.ज.ज.य.) १३,८ धारण मांग पांण सर धनखह रांम बडा ब्रद धर 1 आपण मोख दांन जस जग जिग, आठह-जांम उचारै ॥ सागर रूप सूरपण सरसत च्यार दसा मझ चावौ । गौ दुज पाळ तार निज जन जग गैंवर - तारण गावौ ॥ १५८ चौपई आठ गुरु बारह लघू होय, दीपै जि अंतै गुरु दोय | सौ कह हंसी छंद सकाज, जंपै नाग सुगौ खगराज साखै ।। १५६ १५६. जै-जय । अमर देवता । श्रहं (ग्रहि ) - नाग । क्रीत - कीर्ति । जीह-जीभ । जापैजपते हैं । श्राचारी- उदार, दातार । भौक- धन्य धन्य । छिनक - क्षण | मझ-मध्य | करां-हाथोंसे । सा - समान । श्रापे-दे दिया । धींगां-जबरदस्त । जाड़ा-जबाड़ा, जड़ । मरोड़-मरोड़ देता है । उभै- दोनों । धांनंख-धनुष । तौन्- तुझको । जीहा-जीभ । श्रघ-पाप । दास - भक्त । हरे - मिटाता है । ध-भक्त ध्रुव । जेम - जैसे । तारउद्धार करता है । १५७. दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । श्रहपत - शेषनाग । खगपत - गरुड़ । श्रख - कहता है । नरिंद-नरेंद्र छंद । सकोय-वह । १५८. पांण (पाणि) - हाथ । सर - बाण | प्राह-जांम (प्रष्टयाम ) - प्राठों पहर मझ-मध्य । चावौ - प्रसिद्ध, विख्यात । । १५६. दीप- शोभा देता है । जो कहता है । धनखह धनुष । श्रापण - देनेको । मोख - मोक्ष | सूरपण - शौर्य, वीरता । सरसत-सरसाता है । गैवर- तारण- गजका उद्धार करने वाला । नाग-शेषनाग । खगराज- गरुड़ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] रघुवरजसप्रकास छंद हंसी ( म.म.त.न.न.न.स.ग.) ८,१४ सारी बातां नीकी सोहै, रघुबर जस सह जग यम साखै 1 भाळौ रूड़ौ खोजै सेगा, भव स सि निगम भ्रहम रवि भाखै ॥ मौरा सौ हौ, समरण कर छिन छिन सुख मूळ । जाडा पापां दाहै जेही, तिलकरण दहण अगरण-मण तूळ ॥१६० दूहौ सात भगण मदिरा वदै, सात भगण दो गुरु मिळ, गुरु सुंदरी कहंंत | मत्त गयंद मुणंत ॥ १६१ छंद मदिरा ( भ भ भ भ . भ . भ . भ . ) रांम अभंगम सोभत जंग धनू सर हाथ सुधारण । रांम समाथ कहै जग गाथ तकौ सर पाथर तारण ॥ राम दयाळ नात्रय पाळ अनेक अनाथ उधारण । पारस रांम सरै सब कांम चवौ अठ-जांमसु चारण ॥ १६२ साख- साक्षी देता है । रूड़ौ । निगम - वेद । भ्रम - ब्रह्मा । १६०. नीकौ - उत्तम, श्रेष्ठ । सोहै- शोभा देता है । यम- ऐसे । उत्तम | सेणा - सज्जन । भव- महादेव । ससि चंद्रमा रवि - सूर्य । माधौ - माधव । राधौ - राघव, श्रीरामचंद्र । एहौ - ऐसा । छिनछिन-क्षरण-क्षरण | जाडा - घना, अधिक । दहण जलाने वाला । श्रगण-मणअगणित मन । तूळं - रूई । केसौ- केशव । नोट- हंसी छंदको इक्कीस अक्षरोंके वृत्तों में लिखा है परन्तु वास्तवमें यह वृत्त २२ वर्णका होता है । १६१. वदे - कहते हैं । मुणत - कहते हैं । १६२. अभंगम - नहीं टूटने वाला धनू-धनुष । समाथ - समर्थ । गाथ- कथा, वृत्तांत । तकौ - वह, उस । सर-सागर, समुद्र । पाथर - पत्थर । तारण- तारने वाला, तैराने वाला । श्रनात्रय- जिसका कोई आश्रय न हो । पाळ - पालन करने वाला। उधारण - उद्धार करने वाला । सर-सफल होते हैं । चवौ - कहो | नोट- मदिरा छंद २२ अक्षरका वर्ण वृत्त होता है जिसमें ७ भगरणके बाद एक दीर्घ वर्ण होना श्रावश्यकीय माना गया है परन्तु यहां पर केवल सात भगरण ही दिये गये हैं । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजस प्रकास छंद सुंदरी ब्रज भाखा (भ.भ.भ.भ.भ.भ.भ.ग.) आसन स्यंघ घटा तन स्यांम, पटंबर पीतसु विद्युत है । चाप सिलीमुख पांन विमोह सु बांम विभाग सिया जुत है ॥ त्यात केकौ कर चौर अनंत विनै कत है । पाय पलौटत वात-तनै यह ध्यान रघुब्बर राजत है ॥१६३ छंद मत्तगयंद (भ.भ.भ.भ.भ.भ.भ.ग.ग.) गौतम नार सुपाहन तैं रज पाय लगे रघुनायक तारी । पांर जात पुलिंद जु बोरसु जेवत स्रीमुख बार न धारी ॥ हाथन तैं करिस्राध जटायुसु पायनकी रजके सहि झारी । सौ रघुनाथ विसार भजै, अन तौ नर मूरख वात विगारी ॥ १६४ [ १५७ छंद चकोर लछरण चौपई सात भगा गुरु लघु जिण अंत, तिनं चंद चकोर तवंत ॥१६५ छंद चकोर ( भ.भ.भ.भ.भ. भ. भ. ग.ल.) स्त्रीरघुनाथ नाथ सिहायक दायक नौ निधि बंछित दांन । रावण से खळ घायक संगर माधव है सब लायक मांन ॥ पूरण हम ईस प्रथीप धेरै धनु सायक पांन । सौ सियाराम भज्यौं नहिं नेक जनम ब्रथा जगमें जिहिं जांन ॥१६६ १६३. पटंबर-पीत वस्त्र । विद्युत - बिजली । चाप-धनुष । सिलीमुख ( शिली - मुख ) - बारण, तीर । पान - हाथ। बांम-बायां । सिया- सीता । जुत-युक्त । त्यो - ऐसे ही 1 रिहा - शत्रुघ्न । वात-तने (वात तनय ) - वायु-पुत्र हनुमान । १६४. नार-नारी, स्त्री । पाहन - पत्थर । रज-धूलि । पुलिंद -एक प्राचीन असभ्य जाति । बार - देरी, विलंब । विसार भूल कर । अन- अन्य । १६६. सिहायक - सहायक । दायक - देने वाला । नौ-नव । वंछित वांछित, प्रभीष्ट । धायक - मारने वाला । संगर-युद्ध । श्रज - ब्रह्मा । ईस - महादेव । प्रथीप - राजा । सायक - बाण, तीर । पांन ( पारिण) - हाथ । जिहि- जिसका । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] रघुवरजसप्रकास अथ चौवीस अखिर छंद जात संस्क्रति दूहौ आठ भगर किरीट कहि, आठ स दुमिळा थात | सौ, महाभुजंगप्रयात ॥ १६७ आठ यगण पद परत छंद किरीट कौटिक तीरथ धाय कौंटिकरौ व्रत कौटिक ज्याग करौं, मेरु कौटिकरौ गवदांन दुजेसर || कौटिक जोग ठंग सधौ, ( ८ भ . ) करौ, देह बिया करि । अरु कौटि तपौ तप नेम धराबर | ये 'किसना' सुपने न कहं ू, यक स्त्री रघुनायक नांम बराबर || १६८ छंद दुमिला ( ८ स . ) जर " , नैन दियौ जननी जठरा हरि धाय कैय सिहाय कियौ | जनम्यौ जबते जिन पोख रख्यौ तन त्रय तौखते टारि लियौ || तरुनाईमें पहि ईस भयौ, जगदीसकं मूरख भूलि गियौ । ܘ १६७. चौवीस प्रखिर छंद- चतुर्विंशत्याक्षरावृत्ति । इस वृत्तिका शुद्ध नाम संस्कृति भी है। जिसके अंतर्गत १६७७७२१६ वृत्त प्रस्तार भेदसे बनते हैं । स- सगरण । थात- होता है । १६८. कौटिक - करोड़ । कौटि-करोड़ । बिथा- कष्ट । ज्याग - यज्ञ । श्रसमेध - श्रश्वमेध | गवदांन - गौ दान | दुजेसर ( द्विजेश्वर ) - महर्षि, ब्राह्मण । जोग- श्रटंग (अष्टाङ्ग योग ) - अष्टाङ्ग योग । सधौ - साधन करो । यक - एक । १६६. जठरा- जठर, गर्भ । पोख- पालन-पोषण । तरुनाई - युवावस्था । ईस - समर्थ | Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । १५९ 'किसना' भजि राम सियावरको , जिन चांच बनायके चं न दियौ ॥ १६६ ___ छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) मुख मंगळ नाम उचार सदा तन के अघ अोधन दाघव रे । हनमंत बिभीखन भांन तनै जिन कीन बडे जन लाघव रे॥ भुजगेस महेस दुजेस रिखी नित पै रज चाहत माधव रे । तजि ांन उपाय सबै 'किसना' भज राघव राघव राघव रे ॥१७० छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) बयकं ट बिलासनको तजि के बध कौन चहैं जमपासनकी। मृगराज पळासन त्यागनके चित ह स धरौ नहि घासनकी॥ कबहू नहि मंगत और पिया तजि संगत गौर व्रखासनकी। रघुनाथ जु रावरे दासनके चित आसन ांन उपासनकी ॥१७१ छंद पुनरपि दुमिला (८ स.) हम कीन अनेक गुन्हैं हरिजू तुम एक न लेख उतारिएजू । हम पापि महा जिद काहै करै, ब्रिद रावरकी पर पारिएजू॥ कुरुनामय राघव जानकीवल्लभ ए विनती उर धारिएजू । गुन छोडि हमारि ये बावरि बांनको रावर ओर निहारिएजू ॥१७२ १६६. चूंन (चूर्ण)-भोजन । १७०. बिभीखन-विभीषण । कीन-किया। भजगेस-शेषनाग। महेस-महादेव । दुजेस (द्विजेश)-महर्षि । रिखी-ऋषि । प्रान-अन्य । १७१. बिलासन-विलास करने वाला। बध-बंधन । मृगराज (मृगराज)--सिंह । पळासन आमिषहारी। हंस-अभिलाषा, इच्छा । १७२. कोन-किये । गुन्हें-अपराध। पर-प्रतिज्ञा, मर्यादा। बान-वाणी। ओर-तरफ। निहारिएजू-दे खए। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] रघुवरजसप्रकास ___ छंद महाभुजंगप्रयात (८ य.) नमौ राम सीतावर औधनाथं समाथं महाबीर संसार सारं । अनदं अघट्ट अरोडं अगंजं अनंमं अछेहं अरेहं उदारं ॥ अनेकं असंकं अलटं अरेसं खगां पांण अाजांणबाहू खपावै । गहीरं सधीरं रघुराज बीरं गरीबं निवाज कवी क्यों न गावै ॥१७३ अथ वरण उपछंद वरणण तत्र प्राद सालूर छंद तिण लछण वरणण दूही एक करण दुजबरसु खट, सगण अंत दरसाय । पिंगळ मत अहपत पुणे, सौ सालूर कहाय ॥१७४ __छंद सालर (ग.ग. २४ ल.स. अथवा त-+८ न+ल.ग.) पापोघ हरत अत जन चितवत । तिन हरख करत दुख हरत हरी ॥ सीतावर जसधर सुमति सदन सुभ्र । कळ ख सघन वन दहन करी ॥ १७३. औधनाथ-अयोध्यानाथ, श्रीरामचंद्र भगवान। समाथं-समर्थ । अनइं-अनहद । प्रघट्ट -अद्वितीय, अपार । अरोडं-जबरदस्त। अगंज-अजयी। अछेहं-अपार । अरेहंनिष्कलंक, पवित्र । असंक-शंका या भयरहित। अरेसं-शत्रु। पाण-प्रभाव, प्रताप । प्राजांणबाह-पाजानबाह । खपावै-नाश करता है। गहीर-गंभीर । सधीर-धैर्यवान। नोट-ग्रंथकर्ताने अपने ग्रंथमें माया छंद प्रकरणमें छंद, उपछंद और दण्डका भेद अति संक्षेपमें बतलाया है। वहां पर लिखा है कि २४ मात्राका छंद, २४ से २६ मात्रा तक उपछंद और छंद और उपछंदके मेलसे दण्डक छंद बनता है। यहां पर वर्ण छंदोंमें उदाहरणमें जो उपछंद दिए हैं-वे वास्तव में दण्डक वृत्तोंके अंतर्गत ही आते हैं। दण्डकवृत्तका लक्षण यही है कि जिस वर्ण वृत्तमें प्रत्येक पदमें २६ वर्णसे अधिक वर्ण हों वह वत्त दण्डक कहा जायेगा। वे दण्डक वृत्त भी दो प्रकारके माने गये हैं-एक साधारण दण्डक जो गरणबद्ध होते हैं, दूसरे मुक्त दण्डक जो गरगोंके बंधनसे मुक्त रहते हैं। १७४. करण-दो दीर्घ मात्राका नाम । दुजबर-चार लघु मात्राका नाम । खट (षट)-छ । प्रहपत (अहिपति)-शेषनाग । पुणे-कहता है। १७५. पापोघ-पापोंका समूह । हरत-मिटाता है। सदन-घर। कळुख (कलुष)-पाप । सघन-घना। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास सारंग समथ सर सझत सुकर जुध । असुर दसह-सिर अडर जरी ॥ सौ रांम 'किसन' किव समर समरि । जिहिं बिजय जिगन करि सियहिं बरी ॥ १७५ सौळह पनरह अखिर पर, होय जठै विसरांम । यकतीसाखिर अंत गुरु, निहचै मनहर नाम ॥ १७६ छंद मनहर छंद इकतीसौ कवित्त कपटी कळकी कूर कातर कुचाळ कोर , 'किसन' कहत कैसौं कळही अकांम हैं। बैंडौ हं, बकौरौं हं, बुरौ हैं बेसहूर बादी , निलज निमोही नाथ निपट निमांम हं.॥ जसहीन जुलमी जनात जीव जातनाको , जुगति बिनांही झखौ झूठ जांम जांम हं । गरुरके गांमी सुनौ रामचंद्र सांमी, गाढी गरीबी गुनाही तौ हूँ राबरौ गुलाम हं. ॥ १७७ अन्य कवित्त जांनुकी पुकारे जातुधांनकी बिनास का , आये बेग जलपै गिरंदनकी पाजके । १७५. सारंग-धनुष । समथ-समर्थ । दसह-सिर-रावण। जिगन-यज्ञ । सिय-सीता। बरी-वरण किया, पांरिण-ग्रहण किया । १७६. अखिर-अक्षर । जठे-जहां । विसरांम-विश्राम । यकतीसाखिर-इकतीस अक्षर । निहचै-निश्चय । १७७. कातर-कायर । कुचाळ-बूरी चाल चलने वाला । अकांम-बिना मतलबका, व्यर्थंका । बैडौ-उद्दण्ड । बकौरी-बातूनी, वाचाल । बादी-जिद्दी । निपट-बहुत । निमांममर्यादाहीन । जातना-यातना । गरुर-गरुड़ । सांमी (स्वामी)-मालिक । गाढौ-गहरा । गुनाही-गुनहगार । . १७८. जांतुकी-सीत।। जातुधान-राक्षस । गिरंदन-पर्वत । पाज-सेतु, पुल । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] रघुवरजसप्रकास टेर प्रहळादकी सुनत नरस्यंघ रूप , प्रगटे असंभ त्यौंही खंभते गराजके ॥ बाहनें तियाग के ऊबाहने पगन धाये , बाहरको जाहर रटत गजराजके । 'किसन' कहत रघुराज ढील कौन काज , मेरी लाज राखिबौ भुजन माहाराजके ॥ १७८ छंद पुनः कवित्त माया परिहरि रे पकरि रे चरन गुरु , जर रे कळ ख पुंज अक्रत न कर रे। अंतकते डर रे न धर रे सुदेह नित , कर रे सुक्रम सतसंगमें विचर रे॥ मरत अमर रे सु कौन तुव नर रे, पै स्रीमतको रर रे सु प्रेम द्रग भर रे । तर रे जगत सिंधु पर रे चरन कंज , धर रे हियेमें ध्यान राघव समर रे ॥ १७६ छंद पुनः कवित्त अक्रत करन कौन लावत है बार झठी , करत लबार बार बार आठं -जांममें। तन करतारको विचार हू न करे नेक , बांधत कुटंबके विटंब नेह दांममें ॥ १७८. नरस्यंध-नृसिंहावतार । असंभ-असंभव । खंभ-स्तंभ । गराजके-गर्जना करके । ऊबाहने- नंगे पैर । बाहर-रक्षा। ढील-विलम्ब, देरी। १७६. कळुख-(कलुष) पाप । पुंज-समूह । अक्रत-दुष्कर्म, पाप । अंतक-यमराज । सुक्रम श्रेष्ठ कार्य, पुण्य कर्म । अमर-देवता। रर रे-स्मरण कर । सिंधु-सागर, समुद्र । कंज-कमल। १८०. बार-समय । लबार-असत्यवादी, झूठा । विटंब-प्रपंच । नेह-स्नेह । दाम-रुपया, पंसा । www.jaine Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६३ स्वारथके काज जळ घांम सीत सहै , नित रहत बिलंबी के अनुरूप बांममें । एरे मन मेरे तेरे हितकी कहत है. मैं , तजि रे अन्हेरे काम देरे द्रग रांममें ॥ १८० छंद पुनः कवित्त मृत याकौ मूळ च्यार भूतते सथूळ कं त , गं थ दुख सहिके अभूत पूत जायेकौ । हाडनकी माळा मांस छाळाते लपेटी भरी , मळके मसाला ताळा पवन लगाये कौ ॥ बिटचार आखर बिराज्यौ ऐसे पिंजरामें , अंत उडि जेहैं पंछी बेद भेद गाय को । पर उपगार केबौ देबौ कछु दांन , सीताबर भजि लेबौ फळ पैबौ देह पाय कौ ॥ १८१ छंद पुनः कवित्त पाय जुवराज मंद अंध दुरजोधन सौ , भयौ मतिमंद रिंद फंद कर केतोई । 'किसन' कहत सिर धं त बिदुर संत , मुखं भयौ बंध द्रोन भीखम सहे तौई ।। पांचं पूत पंडके पटकि बैठे हिम्मतकौ , चूकि गौ छभाकौ भवतव्य बस चेतोई । १८०. घांम-गर्मी। सीत-सर्दी। बिलंबी-संलग्न, अनुरूप, अनुकूल, समान, उपयुक्त । बांम-स्त्री। अन्हेरे-अन्य, अनुचित । द्रग-नेत्र, नयन । १८१. मूत-मूत्र । याको-इसका। भूतते-पाकाश, पवन, अग्नि, जल, पृथ्वी आदि । सथूळ-स्थूल । कूत-मान कर, समझ कर। प्रभूत-अनोखा। छाळा-चमड़ी। बिटचार-ग्राम-शकर । १८२. द्रोन-द्रोणाचार्य । भीखम-भीष्मपितामह । पूत-पुत्र । पंड-पांडु। छभा-सभा। भवतव्य-भवितव्य। चेतोई-ज्ञान. चेतना। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] रघुवरजसप्रकास द्रौपदीकी लाज ब्रजराज जौ न राखै तौ , गुलांम दूसासन तौ कलाम छीन लेतोई ॥ १८२ छंद पुनः कवित्त गंगके सुथांन नख करत प्रकास भांन , रहत सदीव उर मधि पंचमाथके । पापहारी प्रगट अहल्याके उधारी सिर , मंडन सिखारी बनचा रिनके साथके ॥ कोमळ बिमळ कोकनदसे अरुन जे , तलासे जुत कुंकम सुगंध रमा हाथके । अकरम नास मेरे हिये बसिबौ करौ , वे धरमनिवास ऐसे पद रघुनाथके ॥ १८३ दही सोळह सोळह अखिर पर, है विसरांम हमेस । अंत लघु घण अखिरी, वरणव छंद विसेस ॥ १८४ छंद घणाखिरी ब्रज भाखा कवित्त केसव कमळ नैन संत सुख देन संभू , भूमि पार भजतै अनेक भांत टार भय । निपट अनाथनके नाथ नरस्यंघ नाम , नरक निवारन नरेस्वर निपुन नय ॥ .. . १८२. कलांम-वाक्य, वचन । १८३. सदीव-सदैव । मधि-मध्यमें । पंचमाथ-महादेव, हनुमान । पापहारी-पापको मिटाने वाला। उधारी-उद्धार करने वाला। कोकनद-लाल कमल । अरुन-लाल । १८४. अखिर-अक्षर । विसरांम-विश्राम । घण अखिरी-घनाक्षरी नामक कवित्त । घणाखिरी-घनाक्षरी। १८५. भांत- भांति, प्रकार । नरस्यंघ-नृसिंहावतार । निपुन-निपुण, चतुर, दक्ष । नय नीति । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । १६५ 'किसन' कहत करुनाके निध कौसलेस , परत सुरेस भुजंगेस औं रिखेस पय । सियानाथ बखतन काज जन लाज रख , जग सिरताज माहाराज रघुराज जय ॥ १८५ चौपई तेरै कौड़ बीयाळी लाख, सतरै सहंस सातसै साख । वळ छावीस कहै विख्यात, जांण छवीस वरण छंद जात ॥१८६ प्ररथ एक वरणसूं लगाय छाईस वरण छंदरी अतरी जात छै। यथा-१३००००००० तेरै कोड़ ४२००००० बीयाळीस लाख १७००० सतरै हजार ७०० सातसै २६ छाईस । तेरै करोड़ बीयाळीस लाख सतरै हजार सात सौ छाईस अतरी छवीस वरण छंदको जात छै। दूहा जपिया 'किसने' राम जस, एम वरण उपछंद। . अघ अांमय करसी अळग, नहचै दसरथ नंद ॥ १८७ संमत अठारौं असीयौ, चौथ तिथ सुद माह । बुधवार जिण दिन जनम, लियौ ग्रंथ सुभ लाह ॥ १८८ इति स्री रघुवरजसप्रकास पिंगळ ग्रंथ प्राढा किसना विरचिते वरण छंद वरण उपछंद नांम वरण व्रत्ति संपूरण । १८५. सुरेस-इंद्र । भुजंगेस-शेषनाग । रिखेस-महर्षि । पय-चरण, पैर । १८६. बीयाळी-बयालिस। छावीस-छब्बीस । छवीस-छब्बीस । छाईस-छब्बीस । बीयाळीस बयालिस। १८७. प्रांमय-रोग । नहचै-निश्चय । नंद-पुत्र । १८८. संमत अठारौ असीयौ-सं० १८८० । चौथ-चतुर्थी । तिथ-तिथि । सुद(सुदि)-शुक्ल । माह-माघ मास । लाह-लाभ । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत छंद वरणण दूहा ही मत कर भज भज हरी, गांडू मत धींग सदा करणौ धणी, सुणिया नह तजता स्रवण, मीरां स्त्री अंग में मिळी, मनां रळी घर मांन ॥ २ पेट हेक कज रे संभर दिन ५. संतांतणी भजतानै सोरठौ पात, मेट सोच संसौ म कर । रात, नांम विसंभर नारियण ॥ ३ १. गांडू - मूर्ख, कायर । गौंधाय - मनके बुरे भाव प्रकट कर, बदबू देना । संतांतणी - संतोंकी । सिहाय - सहायता । स्रवण ( श्रवण ) - कान । रळी-प्रानंद । २. ३. हेक - एक । कज लिए। पात (पात्र ) - कवि | सन्देह | म मत । संभर-स्मरण कर | नारायण । गींधाय । सिहाय ॥ १ भगवन | अथ गीत लछरण गीत ओटा घाटरा बांका नै त्रिबंक । गीत अनोखा गोखरा सुधा बसणं ॥ भूप रचेता भींतड़ां ईसर नीमंधी व । गाई ति गीतड़ां, अधक व अहराव ॥ ४ सोरठौ कसै पथर कमठाण, एक ठौड़ परठै इळा | मुख मुख नीम मंडांगण, तिणसं न डगै गीतड़ा ॥ ५ धींग- समर्थ | सोच-चिंता । संसौ (संशय) - शक, विसंभर- विश्वम्भर, ईश्वर । नारियण 1 ४. प्रोटपा-प्रद्भुत, विचित्र । घाट-रचना | बांका-वंक । श्रनं- श्रर । कठिन | रचेता - रचने वाला, बनाने वाला । भौंतड़ा-भवन । नीमंधी-रची, बनाई । श्राव- श्रायु, उम्र गीतड़ां - काव्यों, छंदों । अथक - अधिक । श्राव - श्रायु । अहराव - शेषनाग | कसै-कसे जाते हैं । बंधनसे दृढ़ करनेकी क्रिया । बड़ा कार्य । परठ - रचते हैं, बनाते हैं । इळा - पृथ्वी | मंडांण - रचना | त्रिबंक- टेढ़ा, ईसर - ईश्वर । गाई-वर्णनकी । तिणसूं - उससे । कमठाण - मकान आदि बनानेका Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६७ अथ गीतका अधिकारी कवि गीतको भाखा वरणण अधिकारी गीतां अवस, चारण सुकवि प्रचंड । कौड़ प्रकारां गीतकी, मुरधर भाखा मंड ॥ ६ __ अथ अगण दखिर दोस हरणं वैणसगाई वरणियां, अगण दधखर खैर । थई सगाई जेण थळ, वळे न रहियौ वैर ॥ ७ अथ गीतांकी नव उक्ति, ग्यारै जथा, ग्यारै दोस । दस वैणसगाई नाम लछण उदाहरण वरणण उकतसु नव ग्यारह जथा, दोख अग्यारह दाख । वयणसगाई दसह विध, भांणव रूपग भाख ॥८ ६. अधिकारी-योग्यता या क्षमता रखने वाला, उपयुक्त पात्र । अवस-अवश्य । प्रचंड महान । मंड-रचना । अगण-छंद शास्त्रमें चार प्रशभ गण जिनके नाम क्रमशः जगण, तगण, रगण और सगण हैं। छंदके प्रादिमें इनका रखना अमांगलिक माना गया है। दधखिर (दग्धाक्षर)छंद-रचनामें प्रथम प्रयोग न किए जाने वाले वे अक्षर या वर्ण जिनका छंदोंमें प्रथम उपयोग अमांगलिक माना गया है। वैणसगाई-वर्ण-मैत्री। डिंगल भाषामें गीत छंदोंकी रचनाका एक नियम विशेष जिसमें जिस वर्णसे जो पद (चरण) शरू होता है वही वर्ण पदकी समाप्ति पर समाप्तिके अन्तिम चार वर्गों में कहीं न कहीं अवश्य लाया जाता है। इस प्रकारकी वर्ण-योजनासे छंद शास्त्रमें जो दग्धाक्षर व अशुभ गण माने गए हैं, अगर वे छद-रचनामें पा जाये तो वैण-सगाई होनेसे उनका दोष नहीं लगता। दधखर-दग्धाक्षर । खैर-कुशल-क्षेम । थई-हुई । सगाई-संबंध, रिश्ता । जेण-जिस । थ-स्थान । वळे-फिर। वर-शत्रता, दुश्मनी। उकत-डिंगल छंद-रचनाका एक रचना नियम विशेष । जथा-डिंगल गीतोंकी रचनाका एक नियम विशेष जिसमें कहीं तो यह अलंकारके रूप में प्रयुक्त होता है और कहीं रीतिके रूपमें। दोख (दोष)-काव्यके गुणोंमें कमी लाने वाली साहित्य संबंधी बातें। दाख-कह। भाणव-चारण कवि, कवि । रूपग-डिंगलका गीत छंद । भाख-कह । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] रघुवरजसप्रकास छंद नव उक्ति नाम कवित्त छप्पै सनमुख पहली सुद्ध १ दुई गरभित सनमुख दख २ । परममुख सुद्ध प्रसिद्ध ३ अनै गरभित परमुख अख ४ ॥ सुद्ध परामुख सरस ५ परामुख गरभित होई ६। सुद्ध स्त्रीमुख सातमी ७ सुकवि स्त्रीमुख संजोई ८॥ उचरजै नमी मिस्रित उकति : पलट पयण दवाळ प्रति । रघुनाथ सुजस गावण रहस, अखी 'किसन' नव विध उकत॥ ६ वारता कैहवा-वाळा प्रसंगीरै सनमुख कवि कहै सौ सुद्ध सनमुख उक्ति कहावै । अथ सुद्ध सनमुख उक्ति उदाहरण दूहौ दससिर खळ मारण दुसह, हाथी तारण हाथ । क्रपा रूप 'किसनौ' कहै, निमौ भूप रघुनाथ ॥ १० वारता सनमुख अन्योक्ति कर कहणौ सौ गरभित सनमुख उक्ति कहावै, और ऊपरै कहे नै आपरा मननै समझावजै सौ गरभित सनमुख उक्ति कहावै । अथ गरभित मनमुख उक्ति उदाहरण उचरै श्राळ-जंजाळ अ, व्रथा करै बकवाद । निज मन 'किसना' अहनिसा, अवधेसर कर याद ॥ ११ 8. दुई-द्वितीय, दूसरी । अन-और। प्रख-कह। उचर-कहिए। वयण-वचन । दवाळ-डिंगल गीतका चार चरणका समूह। रहस-रहस्य। अखी-कही। कहवा-वाला कहने वाला। प्रसंगी-वह जिसके विषयमें प्रसंग चले, सम्बन्धी।। १०. वससिर-रावण । खळ-रक्षस । दुसह-महा भयंकर । उचरै-कहता है, वर्णन करता है। प्राळ-जंजाळ-व्यर्थका बवंडर। अहनिसा-रात दिन । अवधेसर-श्रीरामचंद्र भगवान । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६६ दूही साठ सहस सुत सगररा, नहचै मुवा निकांम । तै धन ग्रीध जटाय तं , रिण रहियौ छळ रांम ॥ १२ वारता जींनै रूपग कहै जींसू अपूठौ कहीजै सौ सुद्ध पर मुख उक्ति कहावै, औररौ जस और प्रतसूं भाखण करणौ सौ सुद्ध परमुख उक्ति । अथ सुध परमुख उक्ति उदाहरण सोरठौ जीपे दस सिर जंग, समंदां लग दीपै सुजस । ऊ रघुनाथ अभंग, जन पाळग समराथ जग ॥१३ वारता परमुख उक्तिनै अन्योक्तिरी कर कहणौ सौ गरभित परमुख उक्ति कहावै । अथ गरभित परमुख उक्ति उदाहरण दूहा हर समरौ होसी हरी, जीते जमरौ जंग । कर उदिम रोलंब करै, भमरौ कीटी भ्रग ॥ १४ जिणनं जांण अजांणरौ, ईखौ भेद अभंग । लाठी खर ऊपर लगत, पूजै जगत पमंग ॥ १५ वारता कवि विना वरणनीय नै पैलौ पैलानै कहै सौ सुद्ध परामुख उक्ति कहावै। १२. नहचै-निश्चय । निकांम-व्यर्थ । रिण--युद्ध । छळ-लिए। जीन-जिसको । रूपग गीत छंद । जींसू-जिससे । अपूठौ-उलटा । प्रौर-अन्य, दूसरा। प्रत-प्रति, लिए । भाखण-भाषण। १३. जीपे-जीत कर। दससिर-रावण। जंग-युद्ध । लग-पर्यन्त, तक। दीप-शोभा देता है। पाळग-पालन करने वाला। समराथ-समर्थ । १४. जंग-युद्ध । उदिम-उद्यम, उद्योग। रोलंब-भौंरा। भमरौ-भौंरा। कोटी-छोटा कीटाणु । भ्रंग-भौंरा । १५. जिणन-जिसको। अजांणरौ-अज्ञानका । ईखौ-देखो। खर-गधा। पमंग-घोड़ा। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] रघुवरजसप्रकास अथ सुद्ध परामुख उक्ति उदाहरण दूहौ समपी लंका सोवनी, दीन भभीखण दांन । जेण रांम उज्जळ सुजस, जपै सकळ जिहांन ॥ १६ वारता सकळ नाम सिवरौ है सौ सिवप्रत पारबती बचन छ । पैलौ पैलाने कहै सौ परामुख उक्त जिण राम सौ परमुख उक्त अदभुतरस, पारबतीरौ बयण सौ परामुख उक्त नै सिवप्रत संभाखण । वारता परामुखमें सनमुखरी छाया नीसरै सौ गरभित परामुख उक्ति कहावै । ___ अथ गरभित परामुख उक्ति उदाहरण दूहो हर जैरै कच-कूप मह, वसै कौड़ ब्रहमंड । केम प्रभू मावै तिके, परगट कीड़ी पिंड ॥ १७ वारता सातमी सुद्ध स्रीमुख नाम उक्ति जठै परमेस्वरको वचन तथा कोई देवताकौ, तथा राजाको वचन तथा नाग वचन, सौ सारा रूपगमें एक निव है सौ सुद्ध स्त्रीमुख उक्ति कहावै । अथ सुद्ध स्रीमुख उक्ति उदाहरण हौ हे पाखं नय वयण हिक, सांभळ भरथ सुजाण । करणौ तौ मौ अवस कर, पितचौ हकम प्रमाण ॥ १८ १६. समपी-दी। सोवनी-स्वर्णकी। दीन-गरीब । भभीखण-विभीषण । सकळ-समस्त, सब अथवा महादेव, शिव । जेहांन-संसार । पैलौ-पहिला या दूसरा। प्रत-प्रति । संभाखण-संभाषण । १७. हर (हरि)-विष्णु । जैर-जिसके। कच-कूप-रोम-कृप, रोम-छिद्र । मह-में । - ब्रहमंड-ब्रह्मांड । केम-कैसे । तिके-के। परगट-प्रकट । पिंड-शरीर । १८. हं-मैं। पाखं-कहता हूँ। नय-नीति । वयण-वचन। हिक-एक । सांभळ-सन । भरथ-भरत । सुजाण-चतुर । पितचौ-पिताका । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १७१ वारता आठमी कवि-कल्पित स्रीमुख उक्ति कहावै, जिणमें कवियण नै स्रीमुखरौ वयण दोनई नीसरै। वारता ___स्रीरांमजीरौ बचन लछमणप्रतिनै यूं कहियौ-अवधेस कवियण दोनूं भेळा छै। अथ कवि कल्पित स्रीमुख उक्ति उदाहरण कोपै तं मौ राज कज, सांभळ वायक सेस । गरवां मत ग्रहियो नहीं, यं कहियौ अवधेस ॥ १६ वारता नवमी मिस्रत उक्ति जठ गीत कवित्त छंदादिकमें तुक-तुक प्रति तथा दवाळा दवाळा प्रति वचन पलटै, सौ मिस्रित उक्ति कहावै । अथ मिस्रित उक्ति उदाहरण सोरठौ वांण सराहै वाण, खाग सराहै समर खळ । मौज उझळ महरांण, सारा है रघुबर सुकव ॥ २० __ इति नव उक्ति निरूपण । अथ अग्यारह प्रकार डिंगलकी जथा निरूपण अथ अग्यारह जथा नाम छंद चंद्रायण विधांनीक सर सिर फिर वरण वखांणजै । अहिगत आदसु अंत सुध पिण आणजै ॥ १८. कधियण-कविजन, कवि । दोई-दो ही। १६. मौ-मेरे । कज-लिए। सांभळ-सुन । सेस-लक्ष्मण । अवधेस-श्री रामचन्द्र । २०. दवाळा-गीत छंदके चार चरणका समूह। वांण-वारणी। वांण-सरस्वती या पंडित । खाग-तलवार। समर-युद्ध । खळ-शत्र । मौज-उदारता, दान । ऊझळ-तरंग, लहर। महरांण (महार्णव)-सागर। सारा है-प्रशंसा करते हैं। निरूपण-निर्णय, विचार । २१. ग्यारह जथाओंके नाम-विधांनीक, सर, सिर, वरण, अहिगत, अाद, अंत, सुध, अधिक, न्यून और सम। पिण-भी। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] रघुवरजसप्रकास अधिक न्यून सम नांम अग्यारह उच्चरै । 'किसन' जथा डिंगळ कवि आरै करै ॥ २१ वारता प्रथम तौ विधांनीक जथा कहावै जठै विधांनीक तिसर गीत वणै सौ । अथ विधांनीक नांमा जथा उदाहरण गीत सुपंखरौ ____जात विधांनीक तिसर गीत वंसी ऐराकरां छ-भाख पैराकरां खड़गवाहां , जोस मेधा पाखरां आसुरां भंज जंग । मोड़ाकरां नायबां-बाकरां अरांतोड़ा मनै , साकुरां श्राखरांजोड़ा ठाकुरां स्रीरंग ॥ अछेहां पै धाव सिधां सभाव पटैत अंगां कछ अंबा भांण कुळां अरेहां सकांम । दौड़ बाद जीपणां लूणचै काज भजे देहां , रेवंतां नीपणां सूरां रंजै अहां राम ॥ तेजरा जळोधां वाक अरोधां विरोधां तीखा , तातां पै निघातां जंगी होदां तेग ताव । २१. पार करै-स्वीकार करते हैं । २२. वंसी-वंशका | ऐराकरा-नस्ल विशेषके घोड़ों। छ भाख-छ भाषाओं। पैराकरा पार करने वाले। खड़गवाहां-योद्धाओं। मेधा-स्मरण रखने की शक्ति, धारण शक्ति, धारणा शक्ति। प्रासरी-शत्रुनोंको, राक्षसोंको। भंज-संहार करते हैं। जंग-यद्ध । मोड़ाकरां-नस्ल विशेषके घोड़े। नायबां-वाकरां-कवि । प्ररांतोड़ा-शत्रुओंका नाश करने वाले। साकुरां-घोड़ा। प्राखरांजोड़ा-कवि। ठाकुरी-योद्धाओं। नीरंग (श्री रंग)-विष्णु, श्री रामचंद्र। अछेहां-बहुत । धाव-दौड़। सिधां-सिद्धां । पटैतयोद्धा। कछ-देश विशेष जहांके घोड़े प्रसिद्ध होते हैं। अंबा-देवी, शक्ति। भाणसूर्य । अरेहां-शत्रुओंको मारने वाले, अथवा निष्कलंक । दौड-शीघ्र गमन या गति । बाद-शास्त्रार्थ । जीपणां-जीतने वाला। लूणचै-नमकके। भंजे-नाश करते हैं। रेवंताघोड़ों। नीपणां-कवियों। सूरां-योद्धाओं। रंजे-प्रसन्न होता है। श्रेहां-ऐसों पर । जळोधा (जलधि)-सागर। वाक-वाणी। तीखा-तेज । तातां-तेज स्वभाव, चंचल । निघाता-अति तेज । जंगी-बड़ा। होदां-हाथीकी पीठ पर रखनेकी अमारी। तेगतलवार। ताव-जोश। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास { १७३ बेग ऐण रोधां बैण सबोधां सक्रोधां बंदै , वाजंदां कव्यंदां जोधां इसां औधराव ॥ सीधुरां ढहाड़ सं बां दहाड़ बिभाड़ सत्रां , धाव सिघ्र बिरदाई प्रवाड़ धरेस । तुरंगां कव्यंदां बांबराड़ भड़ां राम ताखा , निखंगां रीझणा धाड़ जानकी नरेस ॥ २२ वारता दूजो सर नामा जथा सौ गीतरा दूहांरी तीन तुकमें तौ और वात वरणै नै च्यार ही दुहारी चौथी तुकमें कहै सौ वात निभी चाहै । प्रागै सात सांणौरां महैं वेलियौ सांणौर गीत छै जी महैं चरणारब्यंदारौ नाम च्यार ही दुहारी चौथी तुकमें साबत निभ्यौ छै सौ देख लीज्यौ । अथ सरजथा उदाहरण गीत वेलियौ सांणौर औयण जे राम सिया नित अरचै , सुज चरचै सिव भ्रहम सकाज । जग अघहरण सुरसरी जांमी राजतणां चरणां रघुराज ॥ २३ वारता तीजी सिर नामा जथा कहावै जठे प्रमाणिक चौसरसं लगाय नै प्रमाणीक सत सर तांई रूपग लखौ छै सौ अगाड़ी रूपगमें है, सत सर सुधी सांणौर कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । २२. बेग-गति । ऐण-हरिण। बैण-बचन । सबोधां-ज्ञान वाला। वाजंदां-घोड़ा। कव्यंदां-कवियों। जोधां-योद्धाओं। औधराव-श्री रामचंद्र भगवान । सींधराहाथियों। ढहाड़-गिराने वाला। सुंबां-कृपरणों। दहाड़-गर्जना, घोर ध्वनि । बिभाड़-संहार करने वाले। सत्रां-शत्रुओं। धाव-दौड़। बिरदाई-बिरुद वाले । प्रवाड़-शाका। धरेस-धारण करने वाले । तुरंगां-घोड़ों। कब्यंदा-कवियों। बांबराड़-जबरदस्त । ताखा-महान, जबरदस्त । निखंग-वह जो किसीका प्रभाव या रौब न मानता हो परन्तु कर्तव्यपरायण हो, निशंक । रीझणा-प्रसन्न होने वाले ! धाड़-धन्य-धन्य । महैं-में, अंदर । चरणारब्यंदां (चरणारबिंद)-कमल-चरण । २३. औयण-चरण। सज-वह। भ्रहम-ब्रह्मा। सुरसुरी-गंगा। जांमी-पिता, जनक । राजतणां-पापके, श्रीमानके। रूपग-गीत (छंद)। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] रघुवरजसप्रकास अथ सिर नामा जथा उदाहरण सुद्ध सांणौर सतसर गीत अडग तेज अणथघ सरद, ध्यान स्रुत आसती , नीम वर कार कळ जोग तप नाम । थिर प्रभा नीर पय यंद बुध नीत थट , मेर रिव समंद चंद भव भ्रहम राम ॥ २४ अथ चौथी वरण नाम जथा कहावै । वारता चौथी वरण नाम जथा कहावै, जिण महै नखसू लगाय सिख ताई, तथा सिखसूं लगाय नख तांई वरणण होवै सौ यण ग्रंथ मधे बावीस जातरा छप्पै वरण्या जठे एक तौ समवळ विधांन छप्प देख लीज्यौ। दूजौ बावीस छप्पैमें स्त्री प्रतें विधांनीक छप्पै । अथ वरण जथा उदाहरण समवल विधांन छप्पै नयणकंज सम निपट, सुभत आंनन हिमकर सम ॥ २५ ____ इत्यादि दुतीय विधांनीक छप्पै तुक सेस इंदु म्रग दीप, जांण कोकिल मृगपति गज । बेणि बदन चख नाक, बोल कटि जंघ चाल सज ॥ २६ वारता पांचमी अहिगत नाम जथा कहवै, जिण गीतरी आदरी तुकरा आदमें जो पदारथ कहै, जिणरौ संबंध तुकरा अंतमें नीसरै वचै और वात वरणै सापरीगत ज्यू रूपगरा वरणणरी वक्रगति होय सौ अहिगत नाम जथा कहावै । २४. अडग-न डिगने वाला, अटल । प्रणयघ-जिसका थाह न हो, अपार । स्रत (श्रुति) वेद । श्रासती-आस्तिकत्व । कार-मर्यादा, सीमा। कळ-कला (चंद्रकला)। जोगयोग। तप-तपस्या। थिर-स्थिर । प्रभा-कांति । पय-समुद्र। यंद-इन्द्र । बुधबुद्धि । नीत-नीति । थट-है। मेर-सुमेरु पर्वत । रिव-सूर्य । समंद-समुद्र । भव महादेव । भ्रहम-ब्रह्मा । नोट-सिर जथाके उदाहरणका गीत सतसर अगाड़ी मय अर्थके दिया गया है, उसे पढ़ कर पाठक समझें। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १७५ अथ अहिंगत जथा उदाहरण साणौर गीत सिव देवां इंद्र सिध सिध राजां , है ग्रह रिव, रिवचो है राज । तरसुर सरित गंग तरराजं , राजां सह सरहर रघुराज ॥ कनक करग धातां हिम करगां , रति-पति गरुड़ खगां सारूप । दधां विधाता दुजां खीर-दध , भूपां सिधां जांनुकी भूप ॥ गिरां हण रुद्रां सोवनगिर गाथां रुघ वेदां हरि गाथ । कोटां गणं गजानन लंका , नपां सिरोमण सीतानाथ ।। भारथ लखण सेस अह भायां , सुकवि दुति धारां सुकवियां डुडंद । लिछमीवर भगतां ध लायक , नायक जगत दासरथ नंद ॥ २७ वारता छठी आद जथा कहावै सौ पहलरा दवाळामें कहै सौ सारा दवाळामें कहणौ जिण जायगां थांणा-बंध वेलियौ रूपग गीत वणै सौ इण रूपग माहै अगाड़ी जांगड़ौ प्रहास थांणा-बंध वेलियौ गीत छै सौ देख लीज्यौ । सात सांणौरां महै छ। २७. तरसुर-कल्प-वृक्ष । सरित (सरिता)-नदी। गंग-गंगा नदी। कनक-सोना, स्वर्ण। धाता-धातुओंमें । हिम-स्वर्ण, सोना। रति-पति-कामदेव । दयां (उदधियों)-समुद्रों। विधाता-ब्रह्मा। दुजां (द्विजों)-ब्राह्मणों। खीर-दध (क्षीर उदधि)-क्षीर-समुद्र । गिरां (गिरियों)-पर्वतों। हणू-हनुमान । सोवनगिर-स्वर्णगिरि, सुमेरु पर्वत । गाथाकथाओं। रघ-ऋग्वेद । गाथ-कथा । सिरोमण-शिरोमणि । दुडंद-सूर्य, भानु । दवाळा-गीत छंदके चार चारणोंका समूह । जायगां-जगह, स्थान । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] रघुवरजसप्रकास अथ पाद जथा उदाहरण थांणबंध वेलियौ गीतरौ दूहौ छै गीत सरण वखांणे जगत चित विखाणे जेम सिंध , मौज किव वखाणे चंदनांमा । बुध गिरा राम हथवाह रिम वखाणे , वखांणे काछदृढ़पणौ बांमा ॥ २८ वारता सातमी अंत नामा जथा कहावै, जठ चौटीबंध रूपग वणै । जौ रूपग सारामें वरणन करै सौ अंतरा दवाळामें कहणौ, सौ इण ग्रंथरै पाद बावीस कवितां मध्ये चौटीबंध कवित छै सौ देख लीज्यौ, यूंही गीत जांणज्यौ । अथ अंत जथा उदाहरण चौटीबंध छप्पै सूरजपणौ सतेज, स्रवण यम्रत हिमकर सम ॥ २६ वारता पाठमी सुध नांमा जथा कहावै, सौ जठै रूपगरी एक राह निभै, पैहला दूहारी पैहली तुक में भाव सौ च्यार ही दूहारी पैहली तुकमें भाव। पैल्हारी दूजी तुकमें भाव सौ सारा दूहांरी दूजी तुक में भाव । पैलारी तीजी तुकमें भाव सौ सारा दूहांरी तीजी तुकमें भाव। पैलारी चौथी तुकमें भाव सौही दूजा दुहारी चौथी तुकमें भाव होय सौ सुध जथा कहावै सौ यण रूपगमें आगै घौड़ादमौ गीत छै सौ देख लीज्यौ। २८. दूहौ-गीत छंदके चार चरणका समूह। वखांण-वर्णन करते हैं। प्रशंसा करते हैं। सिंध-(सिंधु) समुद्र। मौज-उदारता। चंदनांमा-यश, कीर्ति । बुध-पंडित । गिरावाणी। हथवाह-हाथसे किया जाने वाला शस्त्र-प्रहार । रिम-शत्र । काछ- द्रढ पणी जितेन्द्रियता। संयमशीलता। बांमा-स्त्री। यूंही-ऐसे ही। २६. स्रवण-श्रवण । यम्रत-अमृत । हिमकर-चंद्रमा। सम-समान । जठ-जहां । रूपग गीत छंद, काव्य । कहावै-कही जाती है। यण-इस । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । १७७ अथ सुद्ध जथा उदाहरण __घोड़ादमी गीत राघव गह पला कीर कह पै रज , सिला उडी जाणे जुग सारौ । जीवन जगत कुटंब दिस जोवौ , पग धोवौ तौ नाव पधारौ ॥ ३० वारता नवमी अधिक नामा जथा कहावै, जठे रूपगमें अधिकासुंअधिकौ वरणण होवै, एक तौ फलांणातूं फलांणी अधिकौ यूं होय हर दूजी गणना क्रमसू होय । एक दोय तीन च्यार पांच इत्यादिक क्रमसूं दो भांतकी अधिक जथा। अथ अधिक जथा उदाहरण सोरठौ रट नर अधिका राज, राजां अधिका सुर रटै । सुरां अधिक सुर राज, अवधेसर सुरपत अधिक ॥ ३१ वारता दूजी यण ग्रंथरा बावोस छप्पै मध्ये नोस रणीबंध नाम छै. छप्पैमें देख लीज्यौ, अधिक क्रम छै सौ देख लोज्यौ । नीसरणीबंध छप्पै कवित्त एक रमा अह निसा, दोय रवि चंद त्रिगुण दख । च्यार वेद तत पंच, सुरत छह सपत सिंध सख ॥ ३२ ३०. गह-पकड़ कर। पला-अंचल । कीर-धीवर, नाविक। प-चरण । जग-संसार । सारौ-समस्त । दिस-तरफ। अधिकासू अधिकौ-अत्यधिक । अधिकौ-अधिक । यूं-ऐसे । ३१. राज-राजा। सुर-देवता। सुरराज-इन्द्र । अवधेसर-श्री रामचंद्र महाराज । सुरपत-इन्द्र । यण-इस । ३२. सपत-सप्त, सात । सिंध-(सिंधु) समुद्र । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] रघुवरजसप्रकास इत्यादिक प्रधिक जथा दुविधि वारता दसमी सम नांमा जथा कहावै, जिण महै प्रभेद सम रूपग वर, तथा सविसय सावयव रूपकालंकार वरण, तथा वागेटौ, जागेटौ, नागेटौ, वादेटौ, रूपग गीत वरर्णं सौ सम जथा कहावै । इण उदाहरणरा दूहा माफक गीत कवि नीसांणी छंद जांण लीज्यौ । अथ सम जथा उदाहरण दूह अवधि गगन बाजी यण, सयण कुमुद सुख साज । जस कर सिय रोहिणी जुकत, रामचंद्र महराज ॥ ३३ वारता अधिक न्यून ही छै । स्त्री रामचंद्रजीने हर चंद्रमाने समान वरण्या छै, सूं सम जथा जांणज्यौ | वारता अग्यारमी न्यून नांमा जथा कहावै, सौ प्रागै सुध नांमा आठमी जथा कही जींनै क्रम भंग कर अस्तव्यस्त कर कहणी सौ न्यून जथा जांणज्यो । पण रूपग मध्ये घड़उथल्ल नांमा गीत है । पैल्हा दूहारी पैली दोय तुकांरौ धरम तौ तीन दूहांमें नहीं छै, हर पाछला दूहांरौ धरम ग्रागला दूहांमें नहीं जींसूं क्रम भंग छं । अस्तव्यस्त पद छै जींसूं न्यूंन जथा छै । अथ न्यून जथा उदाहरण घड़उथल्ल गीत जम लग कठै भै सीस जियां, तन दासरथी नित वास तियां । तन दासरथी नह वास तियां " जम लगसी माथै जोर जियां ॥ ३४ इति ग्यारह जथा संपूरण २३. जिण - जिस । मह में । प्रभेदसमरूपग - प्रभेदसम रूपकालंकार | सावयव रूपकालंकाररूपकालंकारका एक भेद विशेष । ३३. सयण - सज्जन । सिय-सीता । जुकत-युक्त । हर और ३४. कठ-कहां । भै- डर, भय । माथ ऊपर । जियां जिनके । जींस - जिससे । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १७६ प्रथ गीतांका एकादस दोख निरूपण छप्पै कवित्त उकतसु सनमुख आदि निभै नह जिकौ अंध १ । निज वरणै भाख विरोध सही छबकाळ दोख सुज २ ॥ नह व्है जात पित नाम हीण दोखण सौ कहिये ३ । वरण होय विसुध निनंग दोखण ते नहिये ४ ॥ पद छंद भंग सौ पांगळौ ५ अधिक ओछ कळ ऊचरै । वेलिया खुड़द विच जांगड़ौ वणै सजात विरुद्ध रे ६ ॥ अरथ होय आमं झ अपस ७ सौ दोख उचारत । जथा निभै नह जेण नाळछेदक निरधारत ।। तिकौ दोख पख तूट जोड़ कच्ची जिण मांझळ । सुभ आखर मुड़ असुभ लखावै वधिर १० जिकौ वळ ॥ यक आद अंत वाळौ अखिर करै अमंगळ सोमकर । अगीयार दोख कवि आखिया से निवार रूपग ऊचर ॥ ३५ अथ अंधादिक एकादस दोख उदाहरण कथन छप्पै कवित्त कहियौ मैं के कहं किसं अंधौ तैं कहियौ । लिता पान धनंख राम छबकाळौ लहियौ ॥ अज अजेव जग ईस निमौ तैं हीण दोख निज । रत नदीतरत कवंध सार इम चली निनंग सुज ॥ ३५. निर्भ-निभता है। जिको-बह । अंध-एक साहित्यिक दोषका नाम। भाख-भाषा। छबकाळ-एक साहित्यिक दोषका नाम। सुज-वह। पित-पिता। हीण दोखण-एक साहित्यिक दोषका नाम । निनंग-एक साहित्यिक दोषका नाम । पांगळौ-एक साहित्यिक दोषका नाम । प्रोछ-कम । कळ-मात्रा। प्रामझ-वह जो कठिनतासे समझमें आवे। अपस-एक साहित्यिक दोषका नाम । नाळ छेदक-एक साहित्यिक दोषका नाम । तिकौ-वह । पखतूट-एक साहित्यिक दोषका नाम । जोड़-काव्यरचना। मांझळ-मध्यमें। वधिर-एक साहित्यिक दोषका नाम । वळ-फिर । अमंगळ-एक साहित्यिक दोषका नाम । ३६. छबकाळी-छबकाळ, दोषका एक नाम । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० । रघुवरजसप्रकास कवि छंदोभंग पंग कह तुक धुर लछण तोरमें । जात विरुध जांगड़ारौ दूही वणै लघू सांणोरमें ॥ ३६ विस्णु नाम कुळ विस्ण विस्णु सुत मित्र अपस बद । कच अहिमुख ससि लंक स्यंघ कुच कोक नाळ छिद ॥ मनख्या मत विललाय गाय प्रभुजी पख तूटल । रांमण हणियौ राम गृह खाधौ तारक खळ ।। यण भांत कहै बहरौ यळा महपतमें पय रांम रे। तुक एण अमंगळ आद अंत कवियण विध गुण नह करे॥ ३७ अथ ग्यारह दोख छप्पै प्ररथ कहियौ मैं अती सन्मुखादिक नव उक्ति कही ज्यां महली एक ही उक्तिरौ रूप निभै नहीं, उक्तिरी ठीक पड़े नहीं सौ अंध दोख । कहियौ मैं के कहूं किसू, अठै कवि वचन छै कै कोई और वचन छ, के देव नर नाग वचन छै कै मानसी विचार छ, अठै बचनरी खबर नहीं, संदेह छै, उक्तिरौ रूप रुळियौ छै । सनमुख छ के परमुख छ, के परामुख छ, के स्रीमुख छ, के गरभित छै, कै मिस्रित छै। अठै कांई निस्चय नहीं जिणसू अंध दोख छै । १ भाखा बिरुद्ध सौ छबकाळ दूखण कहावै। लिता, पान, धनंख रांम। लिता पंजाबी भाखा छै । पान ब्रज भाखा छै। राम देस भाखा। अठै तोन भाखा सांमल, जिणसं छबकाळ दोख छ। २ जातरौ पितारौ मुदौ जाहर न होवै सौ हीण दोख कहावै। अज अजेव जगईस नमौ। अठै अज सिवनै कह्यौ कै विस्ण नै, दोई अजैव दोई जगतरा ईस छ, यां दोयांईरै जात किसो नै मा बाप किसा, फेर अजन्मारै मा बापरौ लेखौ कांई ठीक नहीं, नामरी पण ठीक नहीं। जिण ताबै हीण दोख हुवौ । ३ ३६. पंग-पांगळा नामक एक साहित्यिक दोषका नाम । ३७. नाळ छिद-नाळ छेद नामक साहित्यिक दोषका नाम । पख-तूटळ-वह जिसका पक्ष खंडित हो-एक साहित्यिक दोषका नाम । खाधौ-ध्वंश किया, मारा। तारकतारकासुर नामक राक्षस । बहरौ-एक साहित्यिक दोषका नाम । ज्यां-जिन । महली-अन्दरकी। ठीक-ज्ञान, पता। कै-या, अथवा । मानसी मनुष्य सम्बन्धी । रुळि यौ-नष्ट हया। २. दूखण-दोष। सांमल-साथ । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [१८१ बिना ठिकांण विकळ वरणण होय सौ निनंग दोख तथा नग्न दोख । पैली कहवारी वात "छे बरणे, पछै वरणवारी वात पैहली वरण सौ विकळ वरणण वाजै ज्यूं अठै रत नद तिरत कबंध सार इम चली। पैहली तरवार चालै जद लोही प्रावै, जद नदी वहै, अठै पैहलो लोहीरी नदी वरणी, फिर कबंध वरण्या, जठा पछै तरवार चली कहो, ठिकांणाचूक वरणण छै, जींसू निनंग दोख हुवौ । ४ छंद भागै सौ छंदभंग, पांगुळौ दोख कहावै। तुक कवि छंदोभंग कह, इण तुकमें एक मात्रा घाट छै । गगा कका विच ससौ चाहीजै, छप्पैरी नवमी तुकरै तथा पांचमी तुकरै पूरबारधमें पनरै मात्रा चाहीजै सौ अठ चवदै मात्रा छ । एक मात्रा कम छै । छंद भागौ जींसू छंदभंग पांगळी दोख हुवौ । ५ ___ जात विरोध सौ लघु सांणौर मही गीत ४ वेलियौ सुहणौ खुड़द भेद भेळा होवै पिण जांगड़ौ भळी न हुवै। जांगड़ारौ दूहौ वणे सौ जात विरोध (दोख) हुवौ । ६ ___ जठे अमूझ्यौ अरथ होय दस्टकूट गूढा ज्यूं क्लिस्टारथ ज्यूं महाकस्टसू अरथ होय सौ अपस दोख कहावें ज्यूं विस्ण नाम कुळ विरण विस्ण सुत मित्र । इति विस्ण को नाम हरीनै हरी नाम सूरजको जींसू सूरजका वंसका रामचंद्र सूरज छ । फेर विस्ण को हरी नाम नै हरी नाम सूरजको जींसू सूरजका सुत सुग्रीवका मित्र स्त्री रामचंद्र इसी तरै महा कस्टसू अरथ होय सौ अपस दोख कहावै । ७ ।। जी रूपगमें विधांनीक अादि नव जथा नहीं निभै सौ नाळ छेद नाम दोख कहावै, कच अहि मुख ससि स्यंघ लंक कुच कोक नाळ छिद, चोटी कही मुख कह्यौ कमर कही नै पछै कुच कह्या, जींसू क्रम भंग हुवौ, चौथी वरण नामा जथा जठै सिख नखकै वरणण होय सौं अठ निभी नहीं । जींसू नाळ छेद दोख हुवौ। ८ जिण रूपगमें पतळी जोड़ होय सौ पख तूट दोख कहावै, मनख्या मत विललाय गाय प्रभूजी पख तूटल । अरथ मनख्या पद कची जोड़ ग्रांमीण विलोवड़ी, विललाय चौपद। गायक चौपद प्रभूजी प्रभूपद ठीक पिण जीकारासू यौ पण कचौ । इसी कची पतळी जोड़ जी रूपगमें होय सौ पख तूट दोख कहावै । ६ ३. मुदौ-ज्ञान । दोयांई-दोनों ही । ४. ठिकाणौ-स्थान । ५. घाट-कम । अमनौरथ-कविता या गद्यका वह अर्थ जो आसानीसे समझमें न पा सके, दृष्ट कट अर्थ । द्रस्टकूट-दृष्टकूट । क्लिस्टारथ-क्लिष्टार्थ । ८. जी-जिस । रूपग-गीत छंद या काव्य । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] रघुवरजसप्रकास सुभवायक है, सौ मुड़ नै पाछौ असुभ मालम हुवै सौ बहरौ दोख कहावै। रांमण हणियौ राम, गृह खाधौ तारक खळ, हणियौ पद राम रावण सब्द विचै छै सौ दुवांसू अरथ लागै छै, राम हणै या रामण हणै। राम रांमणनै हण्यौ कै रामण रांमनै हण्यौ, निरधार नहीं, तारकासुर दैतनै, गह नाम स्वामी कारतिकरौ छै सौ तारक खळ दुस्टनै स्वामी कारतिक खाधौ । जुधमें विनास कियौ अरथ छै, जीको सुभपणी मुडै नै असुभ अरथ मालम होवै छै। गूह खाधौ इसौ ग्लांण सब्दारथ असुभ भासै छ जींसू बहरौ दोख छै, तथा कोई कवि सींगमंड पिण इण दोखनै कहै छै । १० ___ रूपगरी पादरी तुकरौ आद अखिर नै रूपगसू पूरण होय जिण अंतरी तुकरौ अंतरौ अखिर मिळायां असुभ अरथ प्रगटै सौ अमंगळ दोख कहावै छै। ज्यूं महपतमें पय राम रै। अण तुकरौ आदरौ मकार अंतरौ रैकार भेळा कियां मरै । यसौ असुभ सब्द भासै छै जिणसूं अमंगळ नांम दोख हुवौ । ११ इति एकादस प्रकार दोख संपूरण । अथ नीसांणी त्रिविधि वैण सगाई नाम लछण उदाहरण दही वयण सगाई तीन विधि, आद मध्य तुक अंत । मध्य मेल हरि मह महण, तारण दास अनंत ॥ ३८ वारता दूहारी पैहलीरी दोय तुकांमें तुकरा प्राद अखिररौ तुकंतरा आद अखिरसू संबंध जिणसूं वैण सगाई हुई ।१। सौ यधक कहीजै । दुहारी तीजी तुकमें मध्य मेळ वयण सगाई हुई सौ समवैण सगाई ।२। दुहारी चौथी तुकमें अंत वयण सगाई, सौ न्यून वैण सगाई ।३। प्रादरौ अखिर तुकंतरा अखिर हेठे पावै सौ तौ उतिम वैण सगाई ।१। आदरौ अखिर तुकंतरा दोय अखिरां हेठे पावै सौ मध्यम वैण सगाई हुवै ।२। अादरौ अखिर तुकंतरा तीन अख्यरां नीचे आवे सौ मध्यम वैण सगाई हुई ।३। नै आदरौ अखिर तुकंतरा च्यार अखि रां हेठे प्रावै सौ अधमाधम वैण सगाई कहीजै ।४। अठा सवाय सौ निकमी सिथळ वयण छ । १०. दुवां-दोनों। हण्यो-मारा, संहार किया। खाधौ-भक्षण किया, ध्वंश किया। निरधार निश्चय। ग्लांण-ग्लानी। ३८. महमहण (विष्णु)-ईश्वर । यधक-अधिक 1 अखिर-अक्षर । हेठ-नीचे। उतिम उत्तम, श्रेष्ठ। वयण-वर्ण मैत्री, वयण सगाई। www.i Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ उतिम मध्यम अधिम अधमाधम च्यार प्रकार वैण सगाई उदाहरण सोरठौ लेणा देणा लंक, भुजडंड राघव भामणै । आपायत अणसंक, सूर दता दसरथ तणा ॥ ३६ वारता पैली तुकमें उतिम ।१। दूजी तुकमें मध्यम ।२। तीजी तुकमें अध्यम ।। चौथी तुकमें अधमाधम ।४। अ च्यार वैण सगाई। तीन प्रागै कहो इण प्रकार सात वैण सगाई कही। पैला दूहामें पाद वैण सगाई कही सौ नै दूजा दूहामें उतिम वैण सगाई कही सौ एक गिणां तौ छ भेद नै जुदी दोय गिणां तौ सात भेद छै । इण प्रकार वैण सगाई समझ लीज्यौ । अथ सावरणी अखिरांरी अखरोट वैण सगाई वरणण नीसांणी आ ई उ ए य व यता मित वरण मुणीजै । जझ ब व पफनणगघ बि बह औ मित्र अखीजै । त ट धठ द ड च छ सुकवते गत जुगम गिणीजै । अकाराद जुग जुग अखर अखरोट अखीजै । अधिक अनै सम न्यं न ऐ त्रहं भेद तवीजै ॥ ४० उदाहरण आद अखिर सौ अंतमें खुल अधिक सखीजै । अधिक खुलै तद बे अधिक सम तिको सहीजै । ज झ ब वाद १ क्रम २ न्यं न झै अछरोट कहीजै ॥ ४१ ३६. भांमण-बलैया, न्यौछावर । प्रापायत-शक्तिशाली, समर्थ । अणसंक-निर्भय, निशंक । दता-दातार । तणा (तनय)-पुत्र। तुक-पद्यका चरण । ४०. सावरणी-सवर्ण । अखरोट-राजस्थानी (डिंगल) साहित्य में वयण सगाईका ही एक भेद जहाँ पर मित्र वर्णसे या जुगम (युग्म) अक्षरका युग्म अक्षरमें यथास्थान मेल हो। अखिरांरी-अक्षरोंकी। यता-इतने। मित-मित्र । वरण (वर्ण)-अक्षर । मुणीज-कहे जाते हैं। अखीज-कहे जाते हैं। जुगम (युग्म)-दो, जोड़ा। गिणीज-गिने जाते हैं। जुग (युग)-दो। अखीज-कहे जाते हैं। अनै-और। तवीजै-कहे जाते हैं । ४१. सखी-साक्षी दी जाती है। अछरोट-अखरोट । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] रघुवरजसप्रकास अथ अकारादिक वकारांत अधिक मित्र अखरोट उदाहरण अवधि नगररै ईसरा, एहा हाथ उदार । यण सरणागत वासतै, दीध लंक सुदतार ॥ ४२ सम अखरोट उदाहरण कवित्त जस कज करै झळ स वाज गजराज वडाळा । पह दे पीठ अफेर गहर रघुनाथ सिघाळा ॥ नपत रूप मघवांण, अथ न्यून अखरोट । तसां वरसण द्रब अट्टळ । धमचा कां ढींचाळ डौळ खग झाट लखा दळ ॥ चौरंग उरस चाचर छिबै हर अज पूरण हं सरौ। महाराज रांम सम महपती दांन खाग कुण दूसरौ ॥ ४३ प्ररथ पैला दूहामें तौ वैण सगाई। बाद मध्य तुकांत तीन कही ज्यांनै हीज अधिक सम न्यून जांणजै ।१। दूजा दूहामें उतम मध्यमादिक च्यार प्रकार कही ।२। फेर नीसांणीमें सावरणी अख्यरांरी अखरोट कही सौ पैला दुहामें तौ प्रकारादि वकारांत कही सौ अधिक । पछै कवितरी पांच तुकांमें जकारादि णकारांत सम अखरोट कही, फेर छप्पैरी च्यार तुकमें तकारादि छकारांत न्यून वरण मित्र तथा वैण सगाई, तथा अखरोट कही सौ समझ लीज्यौ । दस प्रकार छै—ाद १ मध्य २ अंत ३ उतिम ४ मध्यम ५ अध्यम ६ अधमाधम ७ अधिक ८ सम 8 न्यून १० । इति दस वैण सगाई वरणण । ४३. झळूस-जलसा। वाज-घोड़ा। गजराज-हाथी। वडाळा-बड़ा। पह (प्रभु)-राजा। गहर-गंभीर । सिघाळा-श्रेष्ठ । मघवांण-इन्द्र । तसा-हाथों। वरसण-वर्षा करने वाला, दान देने वाला। अट्टळ-निरंतर । ढींचाळ-हाथी। चौरंग-युद्ध । उरसआसमान । चाचर-शिर । हर-महादेव । प्रज-ब्रह्मा। हंस-अभिलाषा। ज्यांनजिनको। हीज-ही। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १८५ अथ गोतांका नाम निरूपण पढ वसंतरमणी १ प्रथम, मुण जयवंत २ मुणाळ ३ । आदगीत त्रय अक्खिया, खगपत अगै फुणाळ ॥ ४४ पुनरपि सात सांणौरका नाम कथन ___छप्प सुध १ बडौ सांणौर २ समझ दूसरौ प्रहासह ३ । वळ तीजौ वेलियौ खुड़द चौथौ सर रासह ५ ॥ सुज पंचम सं हणौ छठौ जांगड़ौ सुछज्जत ६ । सोरठियौ सातमौ ७ विहद मुखक्रत वज्जत ॥ त्रय दुहै मांझ छपय सपत आद गीत अह अखीया । अन मिळे गीत यांसुं अवस भांत नदी दध भखीया ॥ ४५ अन्य प्रकार गीत नाम कथन दूहौ सांणौरांसं गीतके, अन छंदां होय । बेछंदां मिळ गीतके, वरणं नाम सकोय ॥ ४६ अथ पुनरपि गीत नांम कथन छंद बेप्रख्यरी स्री गणराज सारदा सुखकर । बगसौ सुमत राम सीताबर ॥ ४४. निरूपण-निर्णय, विचार । मण-कह। प्रक्खिया-कहे। खगपत-गरुड़। फुणाळ शेषनाग। ४५. वळ-फिर । सुज-फिर । सुहणौ-सोहणी नामक गीत छंद । सुछज्जत-शोभा देता है। प्रह-शेषनाग । अखीया-कहे । अन-अन्य। यांसू-इनसे। अवस-अवश्य। दध (उदधि) समुद्र । भखीया-कहे। ४६. सकोय-सब। ४७ गणराज-श्री गणेश । सारदा-सरस्वती। बगसौ-प्रदान करो, दो। सुमत (सुमति) श्रेष्ठ मति, सुबुद्धि । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ ] रघुवरजसप्रकास पिंगळ नाग क्रपा जौ पाऊ। गीत नांम दीठा जं गाऊ ॥ गीत अपार अगम जग गावै । दीठा जेण जिता दरसावै ॥ ४७ अथ फेर गीतांका नाम कथन छंद बे अख्यरी विधांनीक १ पाडगती २ वेवड ३ । वंकौ ४ वबंकड़ौ ५ सुकवी धड़ ॥ चौटी-बंध ६ मुगट ७ दौढौ ८ चव । सावझड़ौ ह हंसावळ १० सूत्रव ११ ॥ गजगत १२ त्रिकुटबंध १३ मुड़ियल १४ गण । तिरभंगौ १५ एक अखर १६ भांण १७ तण ।। भण अड़ीयल १८ झमाळ १६ भुजंगी २० । चौसर २१ त्रिसर २२ रेणखर २३ रंगी २४ ॥ अट्ठ २५ दुअट्ठ २६ बंधअहि २७ अक्खव । सुपंखरौ २८ सेलार २६ प्रौढ ३० तव ॥ विडकंठ ३१ सीहलोर ३२ सालूरह ३३ । भमर-गुंज ३४ पालवणी ३५ भूरह ३६ ॥ घणकंठ ३७ सीह ३८ वगा उमंगह ३६ । दूणौगोख ४० गोख ४१ परसंगह ॥ प्रगट दुमेळ ४२ गाहणी ४३ दीपक ४४ । सांणोरह ४५ संगीत ४६ कहै सक ४७ ॥ सीहचलौ ४८ अर अहरनखेड़ी ४६ । भणिया नाग गरुड़ सांभेड़ी ॥ ४७. पिंगळ नाग--शेषनाग । दीठा-देखे । जू-जैसे । गाऊ-वर्णन करूं । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास ढोलचाळौ ५० घड़उथल ५१ रसखर ५२ । चितविलास ५३ कैवार ५४ सहुचर || हिरणकंप ५५ घोड़ा दम ५६ मुड़ियल ५७ । पढ लहचाळ ५८ भाखड़ी ५६ अणपल ॥ वळ हेकरिण ६० फेर पढ काछौ ६२ भाख ६४ गीत फिर अरघभाख ६५ भण । मांगण जाळीबंध ६६ रूपक मुण ॥ कहै सवायौ ६७ सालूरह ६८ त्रीको ६६ धमाळ ७० सातखणौ ७१ ऊमंग ७२ इकाखर ७३ । यक अमेळ ७४ बे गंजस ७५ भमर ७६ ॥ कवि चौटियौ ७७ मंदार ७८ लुपतझड़ ७६ । त्रीपंखौ ८० ध ८१ लघु ८२ सावझड़ ८३ ॥ दुतिय झड़मुकट ८४ दुतिय सेलारह ८५ । त्राटको ८६ मनमोह ८७ विचार || धमळ ६१ गजगत ६३ मुकताग्रह ८६ ललितमुकट पंखाळौ ६० अ गीत वसंतरमण ६१ आद aa गीत निनांण नांम सुणिया दीठा जिके विणा दीठा किण भांत राम सुजस देसी सुधां भगतां सुध वखांणां । परमांणां ॥ किव । तव ॥ लेखौ । परेखी ॥ aara 1 गिणावै ॥ सखीजै । वदीजै ॥ | १८७ रघुराई । दिखाई ॥ ४८ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत वरण्या तत्रादि वसंतरमणी नामा गीत लछण दूहौ आद पाय उगणीस मत, बीजी सोळ वखांण । अंत भगण जिण गीतनं , वसंतरमणि बखांण ॥ ४६ अथ गीत वसंतरमणी नाम सावझडौ उदाहरण गीत कर कर आदमें हिक नगण सुभंकर । धुर उगणीस मत्त नहचै धर ॥ बे लघु होय तुकंत. बराबर । सुसबद राम कहै मझ सुंदर ॥ गीत वसंत रमण किव गावत । सोळह पद-प्रत मात सुभावत ॥ पात जको जग सोभा पावत । रच सावझड़ौ राम रिझावत ।। मांझ रदा भासै कौसत-मण । भुज प्राजांन आसुरां भांजण ॥ वण भ्रगु लात उवर विसतीरण । तण दासरथ धनौ जन तारण ॥ साझै पय बंदगी सुरेसर । जस प्रभणे अह सिंभ दुजेसर ॥ ५०. हिक-एक । सुभंकर-श्रेष्ठ । धुर-प्रथम, प्रारम्भमें। मत्त-मात्रा, कला। नहचै निश्चय । सुसबद-यश, कीर्ति । मझ-मध्य, में। किव-कवि । गावत-वर्णन करता है। पद-प्रत-प्रतिपद, चरण । सुभावत-सुन्दर लगती है। जकौ-वह जो। सोभाकीर्ति । पावत-प्राप्त करता है। रिझावत-प्रसन्न करता है। कौसत-मण (कौस्तुभमणि)पुराणानुसार एक रत्न जो समुद्र-मंथनके समय मिला था और जिसको विष्णु अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं। प्रासुर-असुर राक्षस । भांजण-नाश करनेको, नाश करने वाला। तण (तनय)-पुत्र। धनौ-धन्य-धन्य। जन-भक्त । तारण-उद्धार करने वाला । साझे-करते हैं। पय-चरण । बंदगी-सेवा, टहल । सुरेसर-इन्द्र । प्रभणैवर्णन करते हैं। प्रह-शेषनाग । सिंभ-शंभु, महादेव । दुजेसर-द्विजेश्वर, महर्षि । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १८६ 'किसन' कहै कर जोड़ कवेसर । नमौ राम रघुवंस नरेसर ॥ ५० अथ मुणाळ नांम गीत सावझडौ लछण दूहौ आद चरण अट्ठार मत, सोळह अवर सचाळ । जांण सगण तुक अंत जिण, मुण सौ गीत मुणाळ ॥ ५१ अथ मुणाल नाम गीत उपाहरण धैधींगर कदम आवळा धरतौ । झड़ वरसात जेम मद भरतौ ॥ सुज आयौ जळ पीवण सरतौ । करणी जूथ बीच सुख करतौं । मैंगळ कुटंब सहत उनमतरै । आब हिलोळ चोळ की अतरै ॥ धं म सुणै चख आग धकतरै । जाजुळ ग्राह जागीयौ जतरै ॥ चख मिळ बिहं हुवौ चख-चड़बौ । जोम अथाग जाग उर जुड़बौ ॥ ५०. कवेसर-कवीश्वर । ५१. प्राद-आदि, प्रथम । अट्ठार-अठारह। मत-मात्रा । अवर-अपर, अन्य। जिण जिस । मुण-कह । ५२. धंधींगर-हाथी । आवळा-विकट । धरतौ-चरण रखता हुा । झड़-छोटी-छोटी बूंदकी निरंतर होने वाली वर्षा । जेम-जैसे । झरतौ-टपकता हुआ, श्रवता हुआ । सुजवह । सरतौ (सरिता)-नदी। करणी-हथनी। जूथ-यूथ, झुण्ड । करतौ-करता हुआ। मैंगळ-हाथी । सहत-सहित । उनमत-उन्मत्त, मस्त । आब-जल । हिलोळविलोड़ित कर । चोळ-क्रीड़ा। अतरै-इतनेमें । धूम-कोलाहल । चख (चक्षु)-नेत्र । आग-अग्नि । धकतर-प्रज्वलित होते हैं। जाजुळ-भयंकर । जतरै-जितने में । बिहूंदोनों। चख-चड़बौ-कोपसे लाल नेत्र । जोम-जोश, आवेग । अथाग-अपार । जुड़बौभिड़ना, टक्कर लेना। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. ] रघुवरजसप्रकास बिहं वां नह सूधौ बाहुड़बौ । भारथ हुवौ ग्राह गज भड़बौ ॥ कर प्रब सहंस बरस भारथको । जोर टूट बीछड़बौ जुथकौ ॥ सुज बळ बध जळ ग्राह समथको । थळचारी जिण हं गज विथको ॥ चौवळ ग्राह तंत गज चरणां । जकड़ डबोवण खंच जबरणां ॥ बे आंगुळ जळ संड उबरणा । करी करी हरिहं ता करणा ॥ दीन पुकार स्रवण सुण हसती । तज कमळा पाळा करत सती ॥ आतुर चक ग्राह हण असती । हरि ग्रह हाथ तारियौ हसती ॥ असरण दीन दुखित ऊपररौ । धू धारण झेलौ गिरधररौ ॥ कीजंतां ऊपर निज कररौ । विरद हुवौं जुग जुग रघुबररौ ॥ ५२ ५२. बिहुवां-दोनों। सूधौ-सीधा। बाहुड़बौ-वापिस मुड़ना, वापिस पाना या होना । भारथ युद्ध । भड़बौ-टक्कर, टक्कर लेना। प्रब- पर्व । बीछड़बौ-दूर होना। जुथ (यूथ)झुण्ड । समथ-समर्थ । थळ चारी-स्थलचारी । जिण-जिस । हूं-से । विथको-व्यथापूर्ण, पीडित, दुखी। चौवळ-चारों ओर । तंत-तंतु। जकड़-बांध कर । डबोवणडुबानेको। खंच-खींच कर । जबरणां-जबरदस्तीसे, बलात् । बे (द्व)-दो। प्रांगुळउंगली। उबरणा-बची। करी-हाथी। करी-की। हरिहूंता-ईश्वरसे । करणा (करुणा)-आर्त, पुकार । दीन-पात, करुणापूर्ण । स्रवण-कान । हसती-हाथीकी । कमळा-लक्ष्मी। पाळा-पैदल । अातुर-तेज। हण-मार कर। असती-दुष्ट । धू-धारण-निश्चय । झेलौ-सहारा, मदद । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास दूहौ धुर उगणीसह कळहधर, अन तुक सोळह ठाह । गण जिण अंतकरण गण, सौ जयवंत सराह ॥ ५३ अथ गीत जयवंत सावझड़ौ उदाहरण गीत तीकम पाळगर जन रात दिनां मुख नांम 1 देवतरौ सौ ररौ सौ ॥ सरौ सौ I भरोसौ ॥ समरण त्रास कीनास भारी राघवतणौ जोय ग्री कपि कारज दे द्रग सवरी गौहद सारै ॥ सारै थं विसवास राख मन थारै सांमळियौ जन नौज विसारै ॥ गाढौ प्रसन रहै जस गायां । बाधार ईजत बिरदायां ॥ ऊगै नहीं अरक दिन आयां । सीताबर भूलै पर प्रहळादतणी वळ धू अखी कियौ सरणायां ॥ प्रतपाळी | वनमाळी || ܘ [ १६१ ५३. धुर-प्रथम । उगणीसह उन्नीस । कळह - मात्रा, कला । अन - अन्य दूसरी । ठाह-रख । करण - दो दीर्घ मात्राका नाम । सराह - प्रशंसा कर । ५४. तीकम (त्रिविक्रम) - विष्णु, ईश्वर । पाळगर - पालनकर्ता । जन-भक्त । देवतरौदेवताका | ररौ-र ग्रक्षर जो राम नाममें प्रथम प्राता है भारी-बड़ा, महान । राघवतणौ- रामचंद्रका | भरोसौ - विश्वास । सवरी - भिल्लनी । गौहद-गुह नामक निषादराज जो रामका भक्त था । थू-तू । विसवास - विश्वास । थारै तेरे । सामलियाँश्रीकृष्ण | नौज - नहीं । विसारं भूलता है, विस्मरण करता है । गाढौ - गहरा, पूर्ण । प्रसन - प्रसन्न, खुश । श्ररक ( अर्क) - सूर्य । सीताबर- श्रीरामचंद्र | सरणायां- शरण में आए हुए, भक्त । पर - प्ररण, प्रतिष्ठा, मान, इज्जत । प्रहळादतणी-भक्त प्रह्लादकी । प्रतपाळी - पालनकी, निभाई । वळ- दैत्यराज वलि । धू -भक्त ध्रुव । श्रखी - अमर । वनमाळी - श्रीकृष्ण । Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] तीकम वाहर रघुवरजसप्रकास करै तीसरी नाथ अनाथां ताळी | वाळी ॥ ५४ अथ बड़ा सांगौर याद सप्त गीत निरूपण अथ गीत बड़ा सांणौर लछण चौपई धुर तुक कळ तेवीसह धार, विखम वीस सम सतर विचार | लघु गुरु मोहर क दुगुरु मिळाय, सौ प्रहास सांगौर सुभाय ॥ ५५ वीस विखम तुक सम दस आठ, पात गुरु लघु मोहरै पाठ | समझ सुध सांगौर सकोय, जिण मोहरै गुरु लघु कवि जोय ॥ ५६ सुज मिळ सुध प्रहास सुजांग, वडौं जिको सांगौर वखांण ॥ ५७ वारता कठे'क लघु तुकंत दवाळौ कठे' क गुरु तुकत दवाळी प्रावै । सुद्ध नै प्रहास सांणोररा दवाळा भेळा श्रावै सौ वडौ सांणोर कहावै । श्रथ गीत वडौ सांणीर उदाहरण गीत करी चूर कुळ सुभावहंत सादूळ कह, विधु नखित्र सोभ भरपूर वरसै 1 कमळ - भवत कहजै दूजां नूर कुळ, सूर कुळ दासरथहं ूत ं सरसै ॥ ५४. तीकम (त्रिविक्रम ) - श्रीकृष्ण, विष्णु । वाहर-रक्षा | ५५. निरूपण - विवेचन, निर्णय, विचार । घुर-प्रथम, पहिले । तुक-पद्यका चरण । कळमात्रा । तेवीसह - २३ । धार - रख । विखम-विषम । सतर - सतरह । ५६. मोहरे-पद्य द्वितीय और चतुर्थ चरणोंके अंतिम अक्षरोंका मेल । ५७. सकोय - सब । कठे क -कहीं । ५८. करी - हाथी । चूर-ध्वंश नाश । सार्दूळ ( सार्दूल) - सिंह । विधुचंद्रमा । नखित्रनक्षत्र । सोभ- कांति, दीप्ति । कमळ-भवहंत ब्रह्मासे । दूजां (द्विजां ) - ब्राह्मणों । सूर कुळ- सूर्यवंश, वीर पुरुषोंका वंश । दास रथ हूँत - श्रीरामचंद्र से । सरसै- शोभा पाता है । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६३ सिधां-सुत गंग अणभंग साहसीयां , सुज अजन सिधा यर नसियां साथ । हर दियै आब थट सिधां आहंसियां , निपट रवि-वंसियां आब रघुनाथ ॥ सह तरां रूप कळविरछ अवै सकळ , थरू दुत मेर सिखरां अथाघौ । नगां आकरतणौ रूपहर मणी निज , रूप कुळ दिवाकरतणौ राघौ ॥ सुरा-सुर नाग नर अडग राखण सरण , धरण धानंख दुखहरण सुख-धांम । सूर कु हेळक दुत करण अचरज किसं , राज त्रिभुवण प्रभा करण रघु-रांम ॥ ५८ अथ सुद्ध सांणौर गीत लछण तेवीसह मत पहल तुक, बी अठार ती बीस । चौथी तुक अठार चव, लघु गुरु अंत लहीस ॥ ५६ बीस अठारह क्रम अबर, दूहां मांझळ दाख । गीत सुध सांणौर गण, सौ अह-पिंगळ साख ॥ ६० वारता सुध सांणौररै पली तुक मात्रा २३, तुक दूजी मात्रा १६, तुक तीजी मात्रा बीस, तुक चौथी मात्रा १८, पछ दूजा साराई दूहांरी पैली तुक मात्रा बीस, दूज़ी तुक मात्रा १८ होवै। ५८. निपट-बहत, अधिक । प्राब-कांति, दीप्ति । सह-सब । तरां-तरुओं, वक्षों । कळविरछ-कल्पवृक्ष। प्रखै-कहते हैं। सकळ-सब । मेर-सुमेरु पर्वत । अथाघौवह जिसकी सीमाका थाह न हो, बहुत, बहुत ऊंचा। दिवाकरतणौ-सूर्यका, भानुका । राघौ-श्रीरामचंद्र भगवान । अचरज-पाश्चर्य । प्रभा-कांति, दीप्ति । ५६. मत-मात्रा। पहल-प्रथम । बी (द्वि)-दूसरी। ती-तीसरी। चव-कह । ६०. दूहां-गीत छंदके चार चरणोंका समूह । मांझळ-मध्य, में । दाख-कह। प्रह-पिंगळ शेषनाग । साख-साक्षी। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ ] रघुवरजसप्रकास गीत सुध सांगौर उदाहरण ( गीत जात सतसर ) गीत " " " अडग तेज अरणथघ सरद ध्यान स्रुति नीम वर कार कळ जोग जप थिर प्रभा नीर पय यंद बुध नीत थट मेर रिव समंद चंद भव भ्रहम रांम ॥ भूमंडळ पाज नभ सिखर पुर उवर भव गुरत दुत गहर मुद कोप छिब गाथ | रिख रिखी रिख उदध हिम कज दासरथ नाग खग दुध हरी हर बिरंचनाथ || देव चक्र हंस दुध सिद्ध दुज जन नंद स्रग ग्रह् कभ गण विप्र अवनीस | सद्रढ तप अथग हेम सिध मेघ सत द्र हरि सिंघ निसय सिव दुहित ईस || विवुध कंज मीन तर भूप जग सेवगा भैमुद सुख अनंद वर य थ | हेम गिर भांग दुध चंद स्रब भ्रहम, " " . हं निज जनां पाळगर अधिक रघुनाथ || ६१ ܬ अथ अरथ सुध सांणोर गीतरै श्रादरी तुक मात्रा २३ तेवीस होवे । तुक दूजी मात्रा १८ अठारै हो । तुक तीजी मात्रा २० बीस होवै । तुक चौथी मात्रा १८ अठार होवे । गीत के अंत में लघु होवै, और दूहां मात्रा पैली तुककी मात्रा २०, तुक दूजी मात्रा १८, तुक तीजी मात्रा २०, तुक चौथी मात्रा १८ ईं प्रकार होवै सौ सुध सौर गीत कहीजै । यो गीतको संचौ अब गीतकी सतसर जात छै जींसूं प्ररथ लखां छां । ६१. सतसर - वड़ी सांरगौर, प्रहास सांरगौर आदि गीतोंकी संज्ञा विशेष । हूं-से । सती; नांम | Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६५ पहला दूहाको प्ररथ सुमेर १ । सूरय २। समुद्र ३ । चंद्रमा ४ । सिव ५ । ब्रहमा ६ । हर सातमा । श्रीरामचंद्र १ । सुमेरको अडगपणौ १। सूरयको सतेजपणौ २। समुद्रको अथगपणौ ३। चंद्रमाको सीतळपणौ ४। सिवको ध्यानपणौ ५। ब्रहमांकौ वेदधारणपणौ ६ । श्रीरामचंद्रकौ आस्तीकपणौ ७ । १ सुमेरकी नीम द्रढ । सुरजको वर द्रढ । समंदकी कार द्रढ । चंद्रमाकी कळा द्रढ । सिवको जोग द्रढ । ब्रहमाको तप द्रढ । रामचंद्रको नाम नहचळ २ । सुमेर २ । सुमर थिरपणांनै धारण करै । सूरच प्रभान धारै । समुद्र जळनै धारै । चंद्रमा अम्रत धारै । सिव चंद्रमा धार । ब्रहमां बुध धारै । श्रीरामचंद्र नीत धारै । ३ दूजा दूहाको अरथ सुमेर जमी पर रहै । सूरय मंडळमें रहै । समंद पाजमें । चंद्रमा प्रासमांनमें रहै । सिव सिखर कैळास रहै । ब्रहमा ब्रहमलोकमें रहै । श्री रामचंद्र सिवका ह्रदामें रहै ।१। सुमेरकी गुरता। सूरजकी दुती । समंदको गहरापणौ । चंद्रमाको आणंदपणौ। सिवको कोप। ब्रहमाकी खिमा। रामचंद्रजीको जस गाथा। सुमेरको पिता कस्यप रिखी । सूरयकौ पिता कस्यप । समंदकौ पिता कस्यप । चंद्रमाको पिता समंद । सिवको पिता ब्रहमा । ब्रहमाको पिता कमळ । रामचंद्रजीको पिता राजा दसरथ । ३ तीजा दूहाको प्ररथ सुमेर देवतांनै सुखदाई । सूरच चकवानै । समंद हंसांन। चंद्रमा कुमोदनीनै । सिव सिधांनै । ब्रहमा ब्राहमणांनै । स्री रामचंद्र संतान सुखदाई ।१। सुमेर परवतांकौ राजा । सूरय ग्रहांको राजा। समुद्र जळको । चंद्रमा रिखभकहतां तारागण छत्रांको। सिव गणांकौ। ब्रहमा द्विजांको। स्री रामचंद्र राजांकी राजा ।२। अथगपणौ। चंद्रमाकौ सीतळपणौ । सिवको सिद्धपणौ । ब्रहमाको मेधाबुधपणौ । स्रो रामचंद्रको सतपणौ । ३ १. ब्रहमा-ब्रह्मा। हर-और। अडगपणौ-स्थिरत्त्व या अटलत्त्व । तेजपणौ-तेजत्त्व । प्रथगपणौ-असीम, गहराई। सीतळपणौ-शीतलता, शैत्य । पास्तीकपणौ-आस्तिकता। कार-मर्यादा। ब्रहमाकौ-ब्रह्माका । नहचळ-निश्चल, अटल। थिरपणा-स्थिरत्व । नीत-नीति । २. पाज-मर्यादा, सीमा। ह्रदा-हृदय । गहरापणौ-गहराई । पाणंदपणौ-आनंद । खिमा क्षमा । ३. सुखदाई-सुख देने वाला । ब्राहमणांन-ब्राह्मणोंको । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] रघुवरजसप्रकास चौथा दूहाको प्ररथ सुमेर विवुध देवतांनै अभै दै । सूरय कमळांने मोद दै । समुद्र मीनांनै सुख दै। चंद्रमा रूख अठार भार वनास्पतीका रुखांन पाणंद दै। सिव राजानै बर दै । ब्रहमा जगतनै अखै बर दै। स्री रामचंद्र संतांनै ग्राथ दै। दोई तुकांकौ अरथ भेळौ ।२। सुमेर १ । सूरय २ । समंद ३ । चंद्रमा ४ । सिव ५। ब्रहमा ६ । यां छ ही देवतां वचै स्री रामचंद्रमें संतांसू दीनदयाळपणौ सरणाई साधारपणौ अधिक । इति अरथ । ४ अथ गीत दूजा प्रहास सांणौररौ लछण धुर तुक मत वेवीस धर, सतर बीस सतरास्य । वीस सतर गुरु अंत बे, सौ जांणजै प्रहास ॥ ६२ प्ररथ पैली तुक मात्रा २३ । दूजी तुक मात्रा १७ । तीजी तुक मात्रा २० । चौथी तुक मात्रा १७ । तुकांत दोय गुरु अखिर आवै, पछै सारा दूहां मात्रा पैली तुक २० । दूजी तुक मात्रा १७ । तीजी तुक मात्रा २० । चौथी तुक मात्रा १७ होवै जिण गीतरौ नाम प्रहास सांणौर कहै छै । अथ गीत प्रहास सांणौर उदाहरण थांणबंध बेलियौ जिणमें आद जथारौ वरण छ । गीत सरण वखाणे जगत चित वखाणे जेम सिध , मौज किव वखाणे चंदनांमा । बुध गिरा राम हथवाह रिम वखाणे वखाणे काछद्रढ़पणौ बांमा । विवध-देवता । अभ-अभय, निर्भयता । दै-देता है। मोद-पानंद। मीना-मच्छियों। प्रख-अक्षय। प्राथ-धन, दौलत । भेटौ-साथ । यां-इन । वर्च-अपेक्षा। सरणाई साधारपणौ-शरणमें आए हुएकी रक्षा करनेका कर्तव्य ।। ६३. मौज-दान । किव-कवि। चंदनांमा-यश, कीर्ति । बध-पंडित। गिरा-वाणी। हथवाह-शस्त्र-प्रहार । रिम-शत्रु । वखांण-प्रशंसा करते हैं। काछदृढ़-जितेन्द्रियता, संयमशीलता । बांमा-स्त्री। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ १६७ कोपियां बाळ सुगरीव छंडे कळह , घरोघर भटकियौ विपत घायौ । पांण ग्रह राम कहि मित्र अपणावतां , पय सरण आवतां राज पायौ ॥ बन पिता हुकम जुत सिया चवदह बरस , एक आसण सयन जोग जगीयौ । धण बिनां चल मन रांम सह त्रिया धन , द्रढ मदन ताप मन निकं डिगीयौ ॥ अंजसै कनक भूखण पहर नप अवर , कनकमें विधाता कुट कीधी । लहर हिक सरण हित भभीखण रंक लख , दान गढ लंक अणसंक दीधी ॥ स्रत सम्रत छंद खट पंच नव संपूरण , भेदगर च्यार दस बोध भाळी । अरथ जुत बोलबौ हेळ बीजा 'अजा' वेळ अम्रततणा उदधवाळी ॥ दासरथ सुजस नव खंड जाहर दुझल , करां भुजदंड वाखांण केहा । ६३. बाळ-बालि बंदर। कळह-यूद्ध । घरोघर-प्रत्येक घर। भटकियो-भ्रमण किया। घायौ-पीडित, दुखी। पांण-हाथ । अपणावता-अपना बनाने पर। पय (पाद)चरण । पायौ-प्राप्त किया। जुत-युक्त । सिया-सीता । सयन-सोना। धणअर्धांगिनी। सह-साथ । त्रिया-स्त्री। मदन-कामदेव । निकुं-नहीं। अंजसै--गर्व करते हैं। कनक-स्वर्ण, सोना। भूखण-ग्राभूषण । प्रवर-अन्य। विधाता-ब्रह्मा । त्रिकुट-लंका स्थित एक पर्वत अथवा लंकाका एक नाम । कीधी-की, किया। भभीखणविभीषण । रंक-गरीब । लख-देख कर । अणसंक-निशंक । दीधी-दी। न त (श्रति)-वेद । सम्रत-स्मति । भेदगर-भेद जानने वाला, भेदका पता लगाने वाला। बोध-विद्या। भाळी-देखी। वेळ-तरंग, लहर । उदध (उदधि)-सागर । दासरथश्रीरामचंद्र भगवान । जाहर-जाहिर । दुझळ-वीर । केहा-कैसा। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] रघुवरजसप्रकास जुधां टंकारिया धनख राघव जारिया दुसह दहकंध पाय वय जोर बुध रूप नूपता नयण लख छटा नाता " अनाता । जनुकी विना तरणी अवर जिकांनं मुणी बेटी वहन काय माता ॥ देखतां छहं बिध 'सगर' 'हरचंद' दुवा निस सुभावै । " सौ अधिक असरण सरण सीतारमण कमण गीत छोटा सांणौर लछण दूहा कहजै गुरु मोहरा कठै, वण कठैक लघुवंत | सुज छोटौ सांगौर सौ, कवि मत ग्रंथ कहंत ॥ ६४ भेद च्यार जिगरा भणौ, द वेलियौ क्ख । कवी सोहगौ २ खुड़द ३ कह, वळ जांगड़ौ ४ विसक्ख ॥ ६५ अथ गीत मिस्र वेलिया लछण रांम पार ज तैं । जेहा ॥ प्रसिध भूप गुण राज ܕ ܢ " पावै ॥ ६३ समिळ वेलियो सोहगौ, सझ फिर खुड़द समेळ । मिस्र लियौ कवि मुौ, भळ जांगड़ौ न भेळ ॥ ६६ ६३. टंकारिया - धनुषकी प्रत्यंचा चढ़ाई या प्रत्यंचाकी ध्वनि की । दुसह - शत्रु, दुष्ट । दहकंध - रावण | जेहा - जैसा । छटा-शोभा, सुन्दरता । जांनकी-जनक पुत्री, सीता । श्रवरअन्य दूसरी । जिकांनूं-जिनको । मुणी-कही । काय या प्रथवा । सगर - सूर्यवंशी हरचंद - सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र । दुवा - दूसरा, वंशज । ग्रहनिसरातदिन । कमण - कौन पावै प्राप्त करता है । राजा सगर । ६४. कहजै - कहिए । मोहरा - छंदके द्वितीय तथा चतुर्थ चरण के अन्तिम शब्दों या अक्षरोंका परस्पर मेल, तुकबंदी | कहंत - कहते हैं । ६५. वळ- फिर, और ६६. समिळ - साथ | मुणे-कहता है । भळ-फिर । भेळ - मिला, मिश्रित कर । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । १६६ वेलियौ १ । सोहणौ २ । खड़द ३। तीन ही गीत भेळा वणै जिण गीतरौ नांम मिस्र वेलियौ कहीजै । यां भेळौ जांगड़ारौ दूही वणै नहीं नै वणै तौ जातविरोध दोस कहीजै । यूं सारौ समझ लेणौ । अथ गीत मिस्र वेलियौ उदाहरण गीत बुडतो सरवर फील उबारे , गुणतै बेद उचारै गाथ । धना नाम दे सदना उधारे , नेक जनां तारे रघुनाथ ।। गणका अजामेळ सवरीगण , दुख अघ अोघ मिटाय दिया । किता अनाथ सुनाथ क्रपा कर , कोसळराज-कुंवार किया । सीता हरण भभीखण रिवसुत लख जटाय कोसिक मिथळेस । हेर हेर लज रखी हुलासा , धणियप कर दासां अवधेस ॥ रख जन अभै त्रास जम हरणा , सुज ऊबरणा जगत सहै । ६७. बतौ-डबता हा। सरवर-सरोवर, तालाब । फील (सं० पील)-हाथी। उबारे बचाया! धना-एक हरि-भक्तका नाम । नामदे-एक भक्तका नाम। सदन-घर । गणका-एक वेश्या जो ईश्वरकी परम भक्त थी । अजामेळ-अजामिल नामक एक कन्नौज निवासी ब्राह्मण जिसने आजीवन न तो कोई पुण्य कार्य किया और न ईश्वराधन । इसके पुत्रका नाम नारायण था। कहते हैं कि मत्युके समय इसने अपने पुत्रको नाम लेकर बलाया जो कि भगवानके नामका पर्याय था और इसीसे इसकी सदगति हो गई। सवरी-शबरी. भिल्लनी जो राम-भक्त थी। प्रध-पाप । अोघ-समूह । किता-कितने। भ भीखण-विभीषण । रिवसुत (रविसुत)-सुग्नीव । जटाय-जटायु नामक गिद्ध । कोसिकविश्वामित्र । मिथळेस-राजा जनक । धणियप-स्वामित्व, कृपा, महरबानी । त्रास-भय । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] रघुवरजसप्रकास सं पी सरम चरण तो सरणा , करणानिध किव 'किसन' कहै ॥ ६७ गीत वेलिया सांणौर लछण मुण धुर तुक अठार मत, बीजी पनरह बेख । तीजी सोळह चतुरथी, पनरह मता पेख ॥ ६८ सोळह पनरह अन दुहां, गुरु लघु अंत बखांण । कहै ऐम सुकवी सकळ, जिको वेलियौ जाण ॥ ६६ प्ररथ जिण गीतरै पैहली तुक मात्रा १८ होय, दूजी तुक मात्रा १५ होय, तीजी तुक मात्रा १६ होय, चौथी तुक मात्रा १५ होय । दूजा सारां दूहां मात्रा १६।१५।१६।१५। तुकके अंत पाद गुरु अंत लघु आवै, जिण गीतरौ नाम वलियौ सांणौर कहीजै। अथ गीत वेलिया सांणौररौ उदाहरण गीत ओयण जे रांम स्त्रीया नित अरचै , सुज चरण सिव ब्रहम सकाज । जग अघ हरण सुरसुरी जांमी , राज तणा चरणां रघुराज ।। धाय मुनेस सेस सिर धारै , निज सिर जिकां सुरेस नमाय । ६७. करणानिध-करुणानिधि । किव-कवि । ६८. मुण-कह । धुर-प्रथम । अठार-अठारह । मत-मात्रा। बीजी-दूसरी । बेख-देख । तीजी-तीसरी। चतुरथी-चौथी। मता-मात्रा। पेख-देख । ६६. अन-अन्य । बखांण-कह । ७०. श्रोयण-चरण। स्रीया (श्री)-लक्ष्मी, सीता। अरचै-पूजा करती है। हरण-मिटाने वाला। सुरसुरी-गंगा नदी। जांमो-पिता । मुनेस (मुनीश)-महर्षि । सुरेस-इन्द्र । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास जोतसरुपता आगर पोत रूप भव सागर गायब अरच चींतव सुख मत छोडै नेहा जस , पाय || गेहां " मतमंद | जग दुख हरण सरण जग जेहा ऐहारांम चरण " अरव्यंद || नाथ अनाथ दासरथ नंदण " स्त्री रघुनाथ 'किसन' साधार | कदम पखी पखी ज्यां काळा " खी पुळवाळा आधार || ७० [ २०१ अथ चौथा सूहा सांणौरको लछण दूहौ धुर तुक मह ठार मत, चवद सोळ चवदेख | सोळ चवद लघु गुरु मोहर, जांण सोहगौ जेण ॥ ७१ अरथ धुर कहां पहली तुक मात्रा १८ अठारै होवे । दूजो तुक मात्रा १४ चवदै हो । तीजी तुक मात्रा १६ सोळं होत्रै । चौथी तुक मात्रा १४ चवदै हो । पछे दूजा दूहा मात्रा १६ सोळ १४ चवदै ईं क्रम होवै जींके प्राद लघु अंत गुरु तुकांत होवें जीं गीतकौ नांम सोहणी सांणौर कहै छ । ७०. जोतसरूपतणा - ज्योतिस्वरूपका । आगर-घर । पोत- नौका, नाव । भव-संसार | अरच - पूजा कर । चतव - स्मरण कर । नेहा - स्नेह । मतमंद (मतिमंद) - मूर्ख | हरणहरने वाला । जेहा - जैसा । ऐहा- ऐसा । अरव्यंद ( अरविंद ) - कमल । दासरथदसरथ । नंदण-- पुत्र । साधार-रक्षक, सहारा । पखी वह जिसका कोई पक्ष करने वाला हो । प्रपखी - वह जिसका कोई पक्ष करने वाला न हो । अबखी - विषम, कठिन | पुळ - समय । ७१. धुर - प्रथम । तुक-पद्यका चरण । मह में। श्रठार - अठारह । मत मात्रा । चवदचौदह | चव देण-चौदह से । मोहर-पद्यके द्वितीय और चतुर्थ चरणका परस्पर मेल । जेण - जिससे । दूजी - दूसरी । तीजी - तीसरी । पछे - पश्चात । दूजा - दूसरा । ईइस । जीके - जिसके । जीं - जिस । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] रघुवरजसप्रकास अथ सोहणा गीत उदाहरण गीत पंचाळी बेर बधायौ पल्लव करतां टेर सिहाय करी । समरथ भीखम पैज साहियौ हाथ चरण स्थतणौ हरी ॥ तैं मुख कमळ सदांमा तंदुळ पाया बिलकुल भरे पुसी । बिदुरतणी भगती हित बाधा खाधा केळा छोत खुसी ॥ गोपी चित राचियो गोब्यंद बदावन नाचियो बळी । धरियौ पद चौरस गिरधारी गौरस कारण गळी गळी॥ समरथ विरुद लोक त्रहं सांमी पुणां भांमी समथ्थपणौ। जन सादवियौ अंतरजांमी घणनांमी आसनौ घणौ ॥ ७२ अथ पांचमा गीत पूणिया सांणौर नै जांगड़ा सांणौर लछण दै मत्ता धुर आठ दस, बार सोळ मत बार । गिण तुकंत जिण दोय गुरु, नौ जांगड़ो उचार ॥ ७३ प्ररथ जिण गीतरै पैहली तुक मात्रा अठारै होय । तुक दूजी मात्रा बारै होय । तुक तीजी मात्रा सोळ होय । तुक चौथी मात्रा बारै होय । पछै दूजा दूहां मात्रा तुक पैहली सोळह। तुक दूजी मात्रा बारै । तुक तीजी मात्रा सोळ । तुक चौथी मात्रा बारै । सोळ बारै ईं क्रमसू होय । तुकांतमें दोय गुरु आखिर आवै जी गीतको नाम पूणियौ सांणौर कहीजै नै यण पूणियानै जांगड़ौ पण कहै छ । ७२. पंचाळी-द्रोपदी। बेर-समय । बधायौ-बढ़ाया। पल्लव-चीर, अंचल । टेर-पुकार । सिहाय-सहायता। भीखम-भीष्मपितामह । पंज-प्रण । साहियौ-धारण किया । सदांमा-सुदामा । तंदुळ-चावल । पाया-भोजन किये, खाये । पुसी-पसर । हित-- लिये । खाधा-खाये। छोत-छिलका। रचियौ-रंग गया, लीन हया। गोब्यंद-गोविंद । बळी-फिर । गोरस-दूध, दही। कारण-लिये। गळी-बीथि । पुणां-कहता हूं । भांमी-न्यौछावर, बलैया । समथ्थपणौ-समर्थत्व । सादवियौ-पूकारा, दूखमें याद किया। घणनामी-जिसके अनेक नाम हो । प्रासनौ-पाश्रय, सहारा । घणौ-बहुत, अधिक । ७३. दै-देते हैं। मत्ता-मात्रा! धर-प्रथम, प्रारंभमें। बार-बारह। सोळ-सोलह । मत-मात्रा । बार-बारह । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २०३ अथ गीत पूणियौ तथा जांगड़ौ सांणौर उदाहरण गीत कैटभ मधु कुंभ कबंध कचरिया, संख संभ सारीसै । खळ अवगाढ अनेकां खाया, दाढ पीसतौ दीसै ॥ रांमण इंद्रजीत खर दूखर, गंजे कंण गिणावै। खांत लगे केता खळ खाधा, वळे दांत वहजावै ॥ हरणकस्यप हैमुख हरणायख, खाधा के फिर खासी । तोपण भूख न गी तिण ताबौ, बाबौ खाय उबासी ॥ प्रसण मार रख संत सहीपण, राघव जीपण राड़ा। निज हेकल धापियौ न दीसै, जे खळ पीसै जाड़ा ॥ ७४ अथ छठौ गीत सोरठियौ सांणौर जीको लछण मत अठार धुर तुक अवर, दस सोळह दस देह । सोळह दस अन अंत लघु, जप सोरठियौ जेह ॥ ७५ ७४. कैटभ-मधु नामक दैत्यका छोटा भाई जिसका विष्णुने संहार किया। मधु-कैटभ नामक दैत्यका अग्रज जो श्रीकृष्ण द्वारा मारा गया था। कुंभ-रावणका भाई कुंभकर्ण । कबंध-एक असुरका नाम जिसका संहार रामचंद्रजीने किया था। कचरिया-ध्वंश किये। संख-एक असुरका नाम । संभ-एक असुरका नाम । सारीसै-समान । अवगाढ-शक्तिशाली। खाया-संहार किये, ध्वंश किये। दाढ पीसतौ-क्रोधमें दांतोंको कटकटाता हुआ, दांत पीसता हुआ। रांमण-रावण। इंद्रजीत-रावणका पुत्र मेघनाद। खरएक राक्षसका नाम जो रावण तथा सूर्पणखाका भाई कहा जाता है। दूखर-एक राक्षसका नाम । गंजे-नाश किये, पराजित किये। कण-कौन। गिणावे-गिना सकता है। खांत-ध्यान । केता-कितने। खाधा-नाश किये, ध्वंश किये। वळे-फिर । दांत वहजावैदाँतोंको क्रोधमें टकराते हुए ध्वनि करता है, क्रोध प्रकट करता है। हरणकस्यप-हिरण्यकशिपु, एक दैत्यराज जो प्रह्लादका पिता था। हैमुख-हयग्रीव भागवतके अनुसार एक विष्णुके अवतारका नाम, इनका वध विष्णुने मच्छावतार लेकर किया और वेदोंका उद्धार किया। हरणायख-हिरण्याक्षक नामक असुर जो हिरण्यकशिपुका भाई था। के-कई । खासी-ध्वंश करेगा, नाश करेगा। तोपण-तो भी। बाबौ-ईश्वर। उबासी-जंभाई। प्रसण-पिशुन, दुर। रख-ऋषि । संत-साधु । सही-कुशल । जीपण-जीतने वाला। राड़ा-युद्ध । हेकल-एक, अकेला । धापियौ-अघाया। पीस जाड़ा-क्रोधमें दाँत टकराता है। ७५. मत-मात्रा । अठार-अठारह । धुर-प्रथम । देह-दे, दीजिए। अन-अन्य । जेह-जिसको। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ जिणरै पादरी तुक मात्रा अठारै होय, तुक दूजी मात्रा दस होय । तुक तीजी मात्रा सोळह होय । तुक चौथी मात्रा दस होय । दूजा साराई दूहांमें पैली तुक मात्रा सोळ । चौथी तुक मात्रा दस । इण क्रम होवै। तुकंत लघु आखिर होवै जी गीतको नाम सोरठियौ सांणौर कहीजै । अथ गीत सोरठिया सांणौरको उदाहरण गीत सोरठियौ आलम हाथरौ रघुनाथ अचरिज, अवध भूप असंक । दिल गहर दीधी सरण हित दत, लहर हेकण लंक ॥ भभीखण सरण आय भूधर, महर कर मनमोट । धुरधमळ व्रवियौ धनख-धारण, कनकवाळी कोट । भयभीत कंपत सीसदस भय, दीन देख निदान । अवधेस दाटक दियौ आचां, दुरंग हाटक दांन ॥ निरवहण किसना' सरम नह●, असुर दहण असेस । सारवा दासां काम समरथ, निमौ राम नरेस ॥ ७६ अथ सातमौ गीत खुड़द छोटौ सांणौर लछण दूहौ धुर मत्ता अठार धर, दस सोळ दसेण । दु लघु अंत सांणौर लघु, जप खुड़द किव जेण ॥ ७७ ७५. प्रादरी-प्रारम्भकी। दूजी-दूसरी। तीजी-तीसरी । दूजा-दूसरे। साराई-सब ही। दूहां-द्वालों, गीत छंदके चार चरणके समूहों। इण-इस । पाखिर-अक्षर । जी-जिस। ७६. पालम-संसार, ईश्वर । अचरिज-आश्चर्य । गहर-गंभीर। दीधी-दे दी। हेकण एक । भभीखण-विभीषण । भूधर-ईश्वर । महर-कृपा । मन-मोट-उदार । धुर-धमळ-अग्रगामी। प्रवियौ-दान दिया। धनख-धारण-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र भगवान । कनक-सोना। सीसदस-रावण । दाटक-महान । प्राचां-हाथों। हाटक स्वर्ण, सोना । सारवा-सफल करनेको, सिद्ध करनेको। दासां-भक्तों । ७७. मता-मात्रा। दस-तेरह । सोळ-सोलह । दसेण-तेरह । किव-कवि । जेण-जिस । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरथ जीके आद तुक मात्रा अठारै होय | तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा पैली सोळं मात्रा | पछै तेरै मात्रा, फेरे सोळ, तुकांत दोय लघु होवै जीं गीतको नांम छोटो सांणौर हंसमग कहीजै । ग्रंथ गीत खुड़द सांणौर हंसमग उदाहरण गीत खुड़द छोटो सांणौर स्त्रीधर स्त्रीरंग सियावर स्रीपत, करणाकर कारण-करण | व्रज नायक विसवेस विसंभर, घणनांमी आणंदघण ॥ नरहर नागनाथ नारायण, गोब्यंद गौप्रिय गोपवर । धराधीस धानंख गिरधारी, कमळाकंत सकमळकर ॥ विमळानन विबुधेस विहारी, संख चक्र धारी सुमण । भव तारण भूधर भय भंजण, हिरणगरभ त्रय ताप हण ॥ नायक रमा नयण कज नरवर, सुखदायक निज जन सयण । भगत-विळ्ळ मन महणसुभायक, निमौ सुधा स्रायक नया ॥ ७८ इति सात सांगौर गीत संपूरण दूजी तुक मात्रा तेरै होय । तेरै होय । पछळां हां फेर तेरै ईं क्रमसूं होवे । ७७. जीके - जिसके । श्राद- श्रादि प्रथम शुरूका | पछळां- पश्चातके । पछे - बादमें | ईइस । जीं जिस । ७८. स्त्रीधर - विष्णु, श्रीरामचंद्र भगवान । स्रीरंग - विष्णु । सियावर - सीतापति । स्रीपत कारण-करण - कारण और करने श्राणंदघण - श्रानन्दघन | नरहर - ( श्रीपति) - विष्णु । करणाकर- करुणा करने वाला । वाला । विसवेस - विश्वेश । विसंभर- विश्वंभर | नृसिंहावतार | नागनाथ - नागको नाथने वाला, श्रीष्कृरण । गोव्यंद - गोविंद । गौप्रियगोवल्लभ । गोपवर - गोपीपति । धराधीस धराका स्वामी । धानंख-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र | कमळात - कमलापति, विष्णु । सकमळकर - वह जिसके हाथमें कमूलपुष्प हो, विष्णु । विमळानन - विमल मुख । विबुधेस-देवताओंके स्वामी, विष्णु, इन्द्र । सुमण - श्रेष्ठ मरिण यहां कौस्तुभमरिण से अर्थ है । भव-संसार । भूधर - ईश्वर । भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला । हिरणगरभ- हिरण्यगर्भ, वह प्रकाश रूप या ज्योतिर्मय पिंड जिससे ब्रह्मा और समस्त श्रृष्टि प्रकट हुई है । त्रय - तीन । ताप-संकट, कष्ट । हण - पिटाने वाला, नाश करने वाला | नायक - पति । रमा - लक्ष्मी । नयण - नेत्र | कज- कमल । सुखदायक - सुख देने वाला । जन-भक्त । सयण-सज्जन । भगत विछळभक्तवत्सल । महण ( महार्णव ) - सागर । सुभायक - सुरुचिकर, सुन्दर । सुधा - अमृत । सायक- टपकने या टपकाने वाला, श्रवने वाला | I Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] रघुवरजसप्रकास अथ अन्य प्रकार गीत जात वरणण वारता विधांनीक गीत वडौ सांणौर होवै। विधांन कहौ भावै सर कहौ सौ छ सर सत सर तौ लघु सांणौर होवै नहीं । वडौ सांणौर होवै सो ई ग्रंथमें प्रथम सतसर तथा सप्त विधांनीक गीत कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । इति विधांनीक विधि संपूरण । अथ पाङगत, पाङगती वरणण छंद लछण दूहा धुर तुक अखिर अठार धर, चवद सोळ चवदेस । सोळ चवद अन अंत लघु, सौ सुपंखरौं सुदेस ।। ७६ गुणी सुपंखरा गीतमें, वरणण नृत्य वखांण । कहियौ धुर पिंगळ सुकव, जिकौ पाड़ गति जाण ॥ ८० अथ पाङगती सुपंखरा उदाहरण गीत दड़ी पड़तां द्रहामें चढे झांकियौ कदंब डाळ , नीर थाघे अथाघ चडतां वाद नार । खेल्ह बाळवदरै करंतां लगाड़ियौ खेटौ , काळी नाग जगाड़ियौ नंदरै कंवार ॥ ७८. भाव-चाहे। ई-इस । ७६. पाड़मत, पाड़गती-सुपंखरा, त्रिवड़ आदि गीतोंकी संज्ञा विशेष। धुर-प्रथम । तुक पद्य का चरण । अखिर-अक्षर। अठार-अठारह । चवद-चौदह । सोळ-सोलह । चवदेस-चौदह । अन-अन्य। सौ-वह। सुपखरी-गीत छंदका नाम, कहीं-कहीं सुपखरौ भी लिखा मिलता है। ८०. गुणी-कवि, पंडित । ८१. दड़ी-गेंद । द्रहामें- नदीमें, अधिक जल या गहराईके स्थानमें । झांकियो-छलांग भरी, कदा, उछल कर ऊपरके पदार्थको पकड़ा। डाळ-टहनी। थाघे-थाह लिया। प्रथाघ-- अथाह, अपार । खेल्ह-खेल। बाळ ब्रदरै-बाल-समूहके। खेटौ- छलांग । कंदारकुमार। www.jainel Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २०७ फैल क्रोध चसमां कराळां आग-झाळा फुणां , ताळा दै भुजाळा त्यं गुपाळा तीरवांन । विरदाळा सिघाळा अड़ाळा जोध चाळाबंध , जूटा बिह, काळा नै बिचाळा जोरवांन । कदमां करगां घाव दाव व्है अभूतकारा उडै फतकारा विखां फुणांरा अमाव । जंद हरी बंध काळीसं घणा जोड़िया जकै संध संध विछौड़िया नंदरै सुजाव ॥ महा भुजंगेसनाथ समाथ खंडियौ मांण , खंभ ठौर भराथ तंडियौ जैत-खंभ । दंडियौ अदंड नीर उचाटां मिटाय डहे , रंजे मित्र फुणाटां मंडियौ नाटारंभ ॥ धू ध कटां ध्रु कटां ध्रु कटां धू धू कटां धार , ता धिंना ता धिंना धिन्ना ता धिंन्ना सुताळ । ताथेई ताथेई थेई थेई थेई ताता , गतां लै अहेस माथा नंदरौ गवाळ ॥ ८१. चसमां ( चश्मां )-नेत्र । कराळां-भयंकर, भयावह । प्राग-झाळा-अग्निकी लपट । ताळा-ताली, करताली । त्यूं-तैसे । गुपाळा-ग्वाले। तीरवांन-तट पर खड़े । विरदाळा-विरुदधारी, यशस्वी। सिघाळा-श्रीष्ठ । अडाळा-पड़ने वाला। चाळाबंधलड़ने वाला, उत्पाती। जूटा-भिड़े। बिहुं-दोनों। जोरवांन-शक्तिशाली । कदंबांचरणों पैरों। करगां-हाथों। घाव-प्रहार । दाव-पेंतरा। अभतकारा-अभूतपूर्व अनोखा । फूतकारा-सर्पके मुखकी आवाज । विखा-विषों। अमाव-अपार । संघसंधि । बिछोडिया-दूर किया। सजाव-पत्र। भगेसनाथ-कालीनाग। समाथसमर्थ । खंडियौ-खंडित किया, मिटाया। मांण-गर्व, मान। खंभ-भजा, बाहमूलके ऊपरका भाग, कंधा। ठौर-ठोक कर । भराथ-यूद्ध । तंडियो-जोशपूर्ण आवाजकी। जैत-खंभ-विजयी, विजयस्तंभ । अदंड-जिसे कोई दंड न दे सकता हो। उचाटां-चिंता, भय । रंजै-प्रसन्न कर। फुणाटां-सर्पके फनों। मंडियौ-रचा, किया। नाटारंभनत्य, नाच । गतां-वाद्योंके बजानेकी प्रणाली विशेष या नत्यकके नत्यकी गति विशेष । अहेस-ग्रहीश नागराज । Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] रघुवरजसप्रकास रंमां-झमां रंमां झंमां रंमां झमा झमां रंमां , ठमंकां रमकां झंका रमकां ठमक । पाड़गती गीत राधा रंजणा पयंपै प्रथी , नाग धू संजणा निमौ संगीत निसंक ॥ ८१ ____ अथ त्रिवड़ तथा हेलौ नाम गीत लछण दूहा आठ तीस मत पूबअध, उतरारध अठतीस । तुक विहं वै अघ तेवड़ी, तेवड़ गीत तवीस ॥ ८२ पहली दूजी तुक मिळे, तीजी छठी मिळत । मिळ चौथीसं पंचमी, जस रघुनाथ जपंत ॥ ८३ प्ररथ जी गीतके अठतीस मात्रा पूरबारध होय अर अठतीस ही मात्रा उतरारध होय । समांन दो ही अरथ होय । तीन तुक पूरबारध होय, तीन तुक उतरा'रध होय । तेवड़ी तुकां होय । सारा दूहामें तुक छ होय । पैली तुकको तुकांत तो दूजी तुकसू मिळे । तीजी तक छठी तुकसं मिळे । चौथी तुक पांचभी तुकसूं मिळे । तेवड़ी तुकां हर तेवड़ौई तुकांतको मिळाप जींसू गीतको नाम तिवड़ अंत लघु कहीजै । कोई कवि इण गीतनै हेलो पिण कहै छै । अथ त्रिवड़ तथा हेला नांम गीत उदाहरण गीत रांम असरण सरण राजै । भेटियां दुखदुंद भाजै ॥ ८१. रंमां-झमां-चलने या नत्यके समय आभूषणोंकी होने वाली ध्वनि । ठमकां-चलते समय या नत्यके समय पैर रखनेका ढंग विशेष । रंजणा-प्रसन्न करने वाला। पयंपै-कहता है, कहती है। धू-शिर, मस्तक । संजणा-करने वाला। ८२. पाठतीस-अड़तीस । पूबअध-पूर्वार्द्ध । विहुंवै-दोनोंमें । तेवड़ी-तिगुनी, तीन तहका। तवीस-कहा जायेगा, कहा जाता है। ८३. दूजी-दूसरी । मिळंत-मिलती है। जपंत-जपता है, जपा जाता है। जी-जिस । पर अोर । मिळाप-मिलना । जींसू-जिससे । पिण-भी। ८४. राज-शोभा देता है। भेटियां-मिलने पर। दुखदंद-दुख-द्वन्द । भाजै-मिट जाते है। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २०६ देव दीन दयाळ । निरवहै व्रत हेक नारी, धींगपांण धनंखधारी । प्रगट संतां पाळ ॥ चुरस मारग नीत चालै, घाघ भागां निकं घालै । समरसं रस धीर ॥ वीरवर दासरथ-वाळी, कळह आसुर अंत काळौ । बिरद धारण बीर ॥ छत्रपत अनी मांण छंडे, खत्र रख हर चाप खंडे । जानकीवर जेण ॥ राय हर पण जनक राखै, सूर ससि रिख देव साखै । मुणै जस प्रथमेण ॥ तोयधी गिरराज तारे, प्रगट कर कपि सेन पारे । रची लंका राड़ ॥ दसाणण घणराव दाहे, गहर कुंभ अरोड़ गाहे । धींग राघव धाड़ ॥ ८४ ८४. निरवहै-निभाता है। धींगपांण-समर्थ, शक्तिशाली। धनंखधारी-धनुषको धारण करने वाला । पाळ-पालक, रक्षक । चुरस-श्रेष्ठ । नीत-नीति । घाव-प्रहार, वार । निक-नहीं। समरसू-युद्धसे । दासरथ-वाळी-दशरथका। छत्रपत-छत्रपति, राजा । अनी-अन्य । मांण-गर्व, मान । छंडे-छोड़ देते हैं। चाप-धनुष । खंडे-खंडित किया। पण-प्रण। सर-सूर्य । ससि-चंद्रमा। रिख-ऋषि । साखै-साक्षी देते हैं। मुणेकहते हैं, वर्णन करते हैं। प्रथमेण-पृथ्वी, संसार । तोयधी (तोयधि)-समुद्र, शागर । गिरराज-पर्वतराज। कपि-बंदर । सेन-सेना, फौज । राड-यूद्ध । दसाणण-दसानन, रावण । घणराव-मेघनाद, इन्द्रजीत । दाहे-संहार किया। गहर-महान, गंभीर । कुंभ-रावणका भाई कुंभकर्ण । अरोड़-जबरदस्त, शक्तिशाली। गाहे-ध्वंश किया । धींग-समर्थ । धाड़-धन्य । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] रघुवरजसप्रकास अथ वंकगीत वरण छंद लछण दूहौ च्यार जगणकी एक तुक, वरण छंद निरधार । चौ तुक मोती दाम मिळ, वंक गीत सु विचार ॥ ८५ प्ररथ जी गीतरी एक तुकमें च्यार जगण होय, च्यार ही तुकमें बार बारै अखिर होय । तुक प्रत च्यार जगण होय । अंत लघु होय । मोतीदांम छंदकी च्यार तुकको एक दूहौ होय, जीनै वंकनांमा गीत कहीजै । अथ बंक गीत उदाहरण गीत न रूप न रेख न रंग न राग , अपार न पार निधार अधार । अलेख अदेख अतेख अभेख , अतारस तार सुसार असार । अरेस असेस दहेस अभंग , धरेस सुरेस नरेस सधीर । अरोड़ अमोड़ अवीह अलार , निबाह अथाह चटै कुळ नीर । सनीत सकीत सजीत सराह , समाथ तिराय गिरंद समंद । ८५. बार-बारह । अखिर-अक्षर । प्रत-प्रति । ८६. निधार-आधारहीन । धरेस-शेषनाग, पर्वत । सुरेस-इन्द्र। नरेस-राजा। अरोड़ शक्तिशाली। अमोड़-नहीं मुड़ने वाला। प्रवीह-निडर, निर्भय । समाथ-समर्थ । गिरंद-पर्वत । समंद-समुद्र । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २११ रघुवरजसप्रकास दयाळ नूपाळ सिघाळ ब्रदाळ , अरेह अनाट अछेह अमंद ॥ रमीस प्रमीस हणे अघरीस , तवै जस आलम जेण तमाम । महा बळवांन अभंग महीप , रटां जन लाज रखै रघुराम ॥ ८६ अथ त्रंबकड़ा गीतको लछण धुर मत्ता अठार घर, सोळह तुक सरबेण । गिण तिण दोय तुकंत गुर, जप त्रंबकड़ो जेण ॥ ८७ प्ररथ जी गीतकै पहली तुकमें मात्रा अठारा अर सारी ही तुकां मात्रा सौळा सोळा होय । तुकांत दोय गुरु अखिर होय जी गीतनै त्रंबकड़ो कहीजे । पैली तुक अठार होय अर लारली पनरैई तुको मात्रा सोळ सोळं होय । अथ त्रंबकड़ा गीत उदाहरण गीत मुखहं ता भाख 'किसन' महमाहण , प्रभु नित भीड़ साच पखा रे । ग्राह जिसा अधमां दीन्ही गत , तोनं राघव कांय न तारै ॥ ८६. सिघाळ-श्रेष्ठ । ब्रदाळ-बिरुदधारी। तवै-स्तुति करते हैं, वर्णन करते हैं। पालम संसार । जेण-जिस । ८७. धुर-प्रथम । मत्ता-मात्रा। अठार-अठारह । सरबेण-सब, समस्त । लारली-पीछेकी । पनरैई-पनरहही। ८८. मुखहूंता-मुखसे । भाख-कह । महमाहण-ईश्वर । भीड़-सहायता, मदद । पख पक्ष । जिसा-जैसा। दोन्ही-दी। गत-मोक्ष । तोन-तुझको। कांय न-क्यों नहीं। Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] रघुवरजसप्रकास रात दिवस भज रांम नरेसर , पात राख नहचौ मन पूरौ । धूधारण कारण लख धूरौ , उधारणरौ किसौ, अणं रौ । के जम नाम तणौ तन सज कर , भै जमह डर डर मत भाजै । किया सुनाथ हाथ ग्रह केतां , वीठळनाथ अनाथां वाजै ॥ जम दळ वटपाड़ौ वह जासी , थासी नहीं विगाड़ी थारै । जगपत निस दिन नाम जपंतां , संता सारा काज सुधारै ॥ ८८ अथ गीत चौटियाळ लछण दहौ सुज प्रहास सांणौर, दस मत अरध सिवाय । मेल दोय पूरब उतर, चौटियाळ गुण चाय ॥ ८६ अरथ एचाटियाळ गोत प्रहास सांणौर होवै, जीके अाधा गीतके अाधा दूहा सिवाय दस मात्राकी एक तुक पूरबारधमें सिवाय होवै । एक तुक उतरारधमें दस मात्राकी सिवाय होवै । पूरबारध पर उतरारधमें दोय मेळ तुकांत होवै । पैली तुकांतकै, अंत दो गुरु होवै । दूजा तुकांतकै अंत रगण होवै । पैली तुक मात्रा २३, तुक दूजी मात्रा १७, तुक तीजी मात्रा १०.तुक चौथी मात्रा २०, तुक पांचमी मात्रा १७, तुक छठी ८८. नरेसर-नरेश्वर । नहचौ-धैर्य । पूरी-पूर्ण, पूरा। किसौ-कौनसा । अणूंरौ-अभाव कमी। ग्रह-पकड़ कर । केतां-कितनोंको। वीठळनाथ-स्वामी, ईश्वर । वाजै-पुकारा जाता है। ८९. मत-मात्रा। अरध-ग्राधा। सिवाय-अतिरिक्त, विशेष । गण-गीत छन्द । चाय चाह । जीके-जिसके। www.jainelib Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २१३ मात्रा १० पछै दूजा सारा वहां मात्रा बीस, सत्रै, दस, बोस, सत्रै, दस ईं तरै तुकां होवै जी गीतको नांम चौटियाळ गीत कहीजै । ग्रथ चौटियाळ गीत उदाहरण गीत महाराज प्राजांनभुज रांम रघुवंसमण, राड़ रिम जूथ वनाड़ रोहै, गढां गह गंजणा । बार निरधार आधार आधार आलम वणै, सरण साधार जिण विरद सोहै, भिड़े दळ भंजणा || जांनकीनाथ समराथ जाहर जगत चुरस धमचक रचरण वीरचाळा, से खेत वीरती | ताखड़ा जो आरोड़ दसरथतणा, कीजिये किसौ नूप जोड़ काळा, जग की || सूरकुळ मुकट घट नट जीह सुज, वयण मुख दाखिया अंक वेहा, दया जन दक्खणा । ८६. सत्रै - सतरह । ईं - इस । तरै- तरह, प्रकार । जीं - जिस । ६०. प्राजांन- भुज-प्राजानुबाहु | रघुवंसमण - रघुवंशमरिण । राड़ - युद्ध | रिम-शत्रु | जूथयूथ, समूह । श्रवनाड़ - जबरदस्त, नहीं मुड़ने वाला । रोहे-ध्वंश करता है, संहार करता है | गह गर्व । गंजण-जीतने वाला, मिटाने वाला, नाश करने वाला । वार-समय । श्रालम - संसार, ईश्वर । सरण - साधार - शरण में आये हुयेकी रक्षा करने वाला । भिड़ेभिड़ कर, युद्ध कर । भंजणा - पराजित करने वाला । समराथ- समर्थ । चुरस - महान । धमचक-युद्ध | वीरचाळा - वीरोंका कार्य, वीरोंका चरित्र । वीरती - शौर्य, वीरता । ताखड़ा-तेज | जोध-योद्धा । किसौ-कौनसा । जोड़-बराबर । काळा - महावीर, योद्धा । कीरती - यश । सूरकुळ - सूर्यवंश । श्रणघट - अपार । नट-नहीं नटने वाला। जीहजीभ, जिव्हा । वयण - वचन | दाखिया - कहे । वेहा- विधाता, ब्रह्मा । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ 1 रघुवरजसप्रकास सामरथ भभीखण रंक राखै सरणा, तसां आपण सुदत लंक तेहा, रजवट्ट रक्खणा ॥ अवधरा धणी रिण सीह भंजण असह, लीह संतांतणी निकं लोपै, भणै किव भेदमें। तई सामाथ प्रभ बंधु दीनांतणा, अनाथां नाथ भुज बिरद अोपै, वणे कथ वेदमें ॥ ६० अथ गीत लेहचाळ अथवा लहचाळ लछण चौपई कळ दस धुर फिर आठ सकांम । मझ तुक विखम दोय विसरांम ॥ सम अठ अंत रगण जीकार । चतुर गीत लैहचाळ उचार ॥ ६१ प्ररथ पैली तुक मात्रा १८ होय । दोय विसरांम पैलो मात्रा १० दूजो मात्रा पाठ पर, ऊहीं तुक तीजी विखम मात्रा विसरांम मोहरा होय । गुरु लघुको नेम नहीं । तुकांत तुक सम दूजी चौथी जीकै मात्रा पनरह आठ मात्रा पछै रगण पछै जीकार सबद होय । यूं दूजी चौथी तुक होय । यण प्रकार सरव दवाळा होय, जिण गीतरौ नांम लहचाळ कहीजै। ६०. सामरथ-समर्थ । भभीखण-विभीषण । तसां-हाथों । पापण-देने वाला। तेहा-तैसा, वैसा। रजवट्र-क्षत्रियत्व, शौर्य । रक्खणा-रखने वाला । रिण-रण, युद्ध । भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला। असह-शत्रु । लीह-रेखा, मर्यादा। संतांतरणी-संतोंकी। सामाथ-समर्थ । विरद-विरुद । श्रोपै-शोभा देता है । कथ-कथा, वृत्तांत ।। ६१. मझ-मध्य । विखम-विषम । विसरांम-विश्राम । अठ-आठ । ऊहीं-ऐसे ही । मोहरा तुकबंदी । नेम-नियम । यूं-ऐसे ही । यण-इस । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २१५ अथ गीत लैहचाळ उदाहरण गीत निरधार निवाजण भै अघ भांजण , सेवग तार सधीर सौ जी । दुख देवां दहण दैत दपट्टण , बीर निको रघुबीर सौ जी ॥ म्रगनैण सिया मन रूप सुरंजन , कौटिक काम सकाम सौ जी । दनियां बरदायक सेव सिहायक , रैण किसौ नूप राम सौ जी ॥ निज कोसळ नंदण देवत बंदण , धारण पांण धनंखरौ जी । सझ कुंभ सकारण रांवण मारण , लेण भुजां बळ लंकरौ जी ॥ जन सोच बिभजण प्राचत पंजण , दांन अभैवर देणरौ जी । 'किसना' निसचैं कर राच सियाबर , जाण भरोसौ जेणरौ जी ॥ ६२ १२. निरधार-जिसका कोई सहारा या आश्रय न हो। निवाजण-प्रसन्न होने वाला। भै भय । घ-पाप । भांजण-नष्ट करने वाला। सधीर-धैर्यवान । दहण-नाश करने वाला । दैत-दैत्य । दपट्टण-ध्वंश करने वाला। सेव-सेवा, सेवक । सिहायक-सहायक । रैण-भूमि । किसौ-कौनसा। नंदण-पुत्र । वंदण-वंदनीय । पांण (पाणि)-हाथ । कंभ-रावणका भाई कुंभकर्ण । विभंजण-मिटाने वाला। प्राचत-पाप। पंजण-नष्ट करने वाला, मिटाने वाला । निसच-निश्चय । राच-लीन हो जा। सियाबर-श्री रामचन्द्र । भरोसौ-विश्वास । जेण-जिसका। . Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत गोख लछण दूही धुर तुक मत तेवीस धर, अवर वीस लघु अंत । चौथी तुक बे वीपसा, कवि ते गोख कहत ॥ ६३ प्ररथ चौथी तुकमें दो वीपसा होय । मात्रा प्रमाण कहां छां। पाद पैलरी तुक मात्रा तेवीस होय । पाछली पनरैई तुकां मात्रा वीस वीस होय । तुकांत लघु अखिर आवै, अथवा नगण पावै, जी गीतनै गोख कहीजै। एक सबदनै दोय बार कहै सौ वीपसा कहावै । अथ गीत गोख जात सावझडाको उदाहरण गीत तनै कहं समझाय मतमंद जग फंद तज । अरप तन मन सुध न वेग सुणसी अरज ॥ उभै साचा अखर कहै रिख सिंभ अज । हरी भज हरी भज हरी भज हरी भज ॥ लछीरा चहन घण वीज वाळी लपट । क्रोध ममता नता मूढ तज रे कपट ॥ झौड़ मत कर अवर काळ लेसी झपट । रांम रट राम रट राम रट राम रट ।। काटसी घणा अघ ओघवाळा करम । बेध नह सके जम पहर इसड़ौ वरम ॥ ६३. धुर-प्रथम । मत-मात्रा । वीपसा (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसके अर्थ या भाव पर बल या शक्ति लगाने से होने वाली शब्दापत्ति । कहत-कहते हैं। पाछली-पीछे की, बाद की। जी-जिस । ६४. तनै-तुझको। मतमंद (मतिमंद)-मूर्ख । फंद-जाल। रिख-ऋषि । सिंभ--शंभू, शिव । अज-ब्रह्मा । लछीरा-लक्ष्मीके । चहन-चिन्ह । घण-बादल । वीज-बिजली। लपट-चमक । काळ-यमराज । घणा-बहत । अघ-पाप। प्रोघ-समूह । नह-नहीं। जम-यमराज । इसड़ी-ऐसा । वरम-कवच । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास सही भ्रगुलता उर संपूजिनै सरम | पढ परम पढ परम पढ परम पढ परम || उदर दधौ जिकौ पूरसी जळ असन । वणै छिब घणै पटपीत पहरण बसन || करे चित खांत निस दिवस रट रे 'किसन' | सीकिसन सीकिसन सीकिसन सीकिसन ॥ ६४ पण झड़ मुगटनै रुगनाथ रूपग मध्ये गोख नांम लख्यौ छै । कोईक जंघखोड़ो पण है छै । अथ गीत चितईलोळ लछण हौ किव सोरठिया गीतके, अधिक दोय तुक ऋण । चवद चवद मत दोढसौ, चितईलोळ [ २१७ अरथ सोरठिया गीतरै पहली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा अठारै । तीजी तुक मात्रा सोळं । चौथी तक मात्रा दस होवै । पछे सारा दूहां मात्रा सोळं दस होवै । जी सोरठियाकै सिरै जातां चवदै चवदै मात्राकी दोय तुकां सवाय होवै जीं गीतको नाम दोढोकै छै तथा कोई कवि चितईलोळ कै छै । तुकांत लघु होवै । छ तुकां होवै । चौथी तुकरा तुकांतरी प्राव्रत उलट पढवासूं पांचमी तुक होय । क्यूंक छठी में पण प्राभास चौथी तुककौ होय सौ दोढी । अथ गीत चितई लोळकी उदाहरण गीत दीनां पाळगर धन सुतन दसरथ " सकज सूर समाथ । पहचांण ॥ ६५ ६४. परम - ईश्वर । उदर- पेट । दीधौ दिया। जिको वह । श्रसन-भोजन । छिब-शोभा । पटपीत - पीताम्बर । • बसन-वस्त्र | खांत विचार । सी-श्री । नोट- मूल प्रतिमें लिखा मिला है कि 'पण झड़ मुगटने रुघनाथरूपगमें गोख नांम लिख्यौ छै, कोईक जंगखोड़ी पिण के छै' परन्तु यह लिखावट बिलकुल अशुद्ध है, गोख गीतके लक्षण रघुवरजस प्रकास और रघुनाथरूपकमें समान ही हैं । ६५. किव - कवि । चवद-चौदह । मत मात्रा । श्राव्रत-श्रावृत्ति । क्यूंक कुछ । पण-भी । ६. दीनां - गरीबों । पाळगर - पालनकर्त्ता । धन-धन्य । सुतन- पुत्र । सूर-वीर । समाथ - समर्थं । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] रघुवरजसप्रकास " रिखेत भंजण सकुळ रांवण नेत - बंध रघुनाथ रे रघुनाथ । रघुनाथ " तौ रिवकुळ आभरण रघुनाथ ॥ तन स्यांम सघण सरूप पत 9 बीज सकाज | प्रोट रक्खण सुपट रिम कोट हा जन मोट मन तौ महराज रे माहव मोट मन बिरदैत रे धारणौ " महराज । हक-बगां लाखां असुर जुधां करणौ चाढणौ कुळ जळ दळद बाढौ ती बिरदां बळ थकां महराज, महराज ॥ हरणौ " जैत । चौजां 9 बिरदैत | बिरदैत " बिरदै ॥ बखी बखत बेली " तवै जगत तमांम | ६६. भंजण-ध्वंश करनेको । नेत-बंध-अपना स्वयंका झंडा रखने वाला । श्राभरण - श्राभूषण । सरूप - स्वरूप । श्रोपत - शोभा देता है । सुपट - सुन्दर । बीज - बिजली । रिममोट मन-उदार चित्त । माहव । हरणौ - मिटाने वाला ध्वंश करने चाढणौ-चढाने वाला | जळ शत्रु । कोट- गढ़ अथवा करोड़ । श्रोट-शरण । माधव, विष्णु, श्रीरामचंद्र । हक-बगां-युद्ध होने पर वाला । करणौ - करने वाला । जैत- विजय, जीती। कांति, दीप्ति | दळद - दारिद्रय, कंगाली। चौजां-उदारता | बाढणौ-काटने वाला | बिरदंत - विरुदधारी, यशस्वी । धारणौ - धारण करने वाला । थकने पर । श्रबखी - कठिन, दुरूह । बेली - सहायक, मित्र । वर्णन करता है । तमांम - सम्पूर्ण । बळ - शक्ति । थकांतबै स्तुति करता है, Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २१६ नित ‘किसन' किव रट नाम निरभै , रसन स्त्री रघुराम । तौ रघुराम रे रघुराम , रजवट धारियां रघुराम ॥ ६६ अथ गीत पालवणी तथा दुमेळ सावझड़ा लछण ग ल अनियम उगणीस धुर, अन तुक सोळह आण । पालवणी चव तुक मिळे, दुमिल दुमेळ वखांण ॥ ६७ प्ररथ पैहली तुक मात्रा उगणीस बाकीरी पनरैई तुका मात्रा सोळं सोळं होय । तुकांत गुरु लघुरौ नेम नहीं। तुक च्याररा मो'रा मिळे सौ पालवणो कहीजै नै दो दौ तुकरा मोहरा मिळे सौ दुमेळ सावझड़ी कहीजै ईके मध्य अंतमेळ कियां-थकां यौ ही त्रंबकड़ी कहीजै। अथ पालवणी उदाहरण गीत सिया बाहर समर दसाणण साझा , ववी उछाहर, दीन निवाजा । दीठां थाहर कनक दराजा , रीझ खीज जाहर रघुराजा ॥ साझण जुधां वीसभुज आसुर , दीन निवाजण अनुज सहोदर । १६. रसन-जिव्हा। रजवट-क्षत्रियत्व, शोर्य । ६७. ग-गुरु । ल-लघु । उगणीस-उन्नीस । धुर-प्रथम । अन-अन्य । प्राण-ला, लाकर । चव-चार । दुमिळ-जहां दो चरण मिलते हों। मोरा-तुकबंदी। मोहरा-तुकबंदी। ईके-इसके । कियां-थकां-करने पर। यौ-यह। १८. वाहर-रक्षा। समर-युद्ध । दसाणण-रावण । साझा-संहार किया, मारा। व्रवी दे दी, दान दी। उछाहर-उमंग। निवाजा-प्रसन्न होकर । दीठां-देखने पर । थाहरगढ़, किला। कनक-स्वर्ण, सोना । दराजा-महान, बड़ा । रीझ-प्रसन्नता। खीजकोप। जाहर-जाहिर, प्रसिद्ध । साझण-मारनेको, संहार करनेको। वीसभुजरावण । प्रासुर-प्रसूर, राक्षस। दीन-गरीब । निवाजण-प्रसन्न होकर। अनुजछोटा भाई। सहोदर-भाई। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] रघुवरजसप्रकास बोलै साख त्रिकुट लिछमीबर , उमंग रीसवाळी अवधेस्वर । मथ रिण उदध मांण दसमथका , आपण सरण भभीखण अथका । सोबन गढ जस अोप समथका , क्रपा कोप आखै दसरथका ॥ १८ अथ गीत दुमेळ सावझड़ौ उदाहरण गीत जिण मुख जोवतां दुख प्राचत जावै । थरू अाथ घर नवनिध थावै ॥ नाम लियां जम-किंकर नासै । सौ राघव संकर उर वासै ॥ बीर जगत अखिया रघुबीरा । साचै दिल भखिया सवरीरा ॥ दुल्लभ देव रिखां बिरदाळौ । बल्लभ जनां दासरथवाळी ॥ तिण रघुनाथ वहत मग तारी । निज पग रजहंता रिख नारी ॥ ६८. साख-साक्षी। त्रिकुट-लंका। लिछमीबर-विष्णु, श्रीरामचंद्र । अवधेस्वर-रामचंद्र । मथ-मंथन कर। रिण-युद्ध । उदध (उदधि)-सागर, समुद्र। मांण-मान, गर्व । दसमथका-रावणका । प्रापण-देने वाला। भभीखण-विभीषण । अथका-धन-दौलतका । सोबन-सुवर्ण, सोना। समथका-समर्थका । पाखै-कहते हैं। ६६. प्राचत-पाप, दुष्कर्म । थरू-अटल, स्थिर । पाथ (अर्थ)-धन-दौलत । थावे-होते हैं । जम-किंकर-यमराजका दूत । नासै-भग जाते हैं। वास-निवास करता है, बसता है। भखिया-खाये, भक्षण किये। सवरीरा-शबरीके, भिल्लनीके । दुल्लभ-दुर्लभ । रिखांऋषियों। बिरदाळौ-बिरुदधारी। बल्लभ-प्यारा। जनां-भक्तों। दासरथवाळौदशरथका पुत्र, श्रीरामचंद्र भगवान । तिण-उस। वहत-चलते हुए। मग-मार्ग । तारी-उद्धार किया। रजहूंता-धूलिसे । रिख-ऋषि । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २२१ भारथ खळ जाड़ा भानंखी । धाड़ा एक बीर धानखी ॥ लंका मार दसाणण लेणौ । दांन भभीखण सेवग देणौ ॥ तोटौ केम रहै घर त्यारे । रांम धणी मोटौं सिर ज्यारै ॥ ६४ अथ गीत सावझ अडियळ लछण दूहौ सोळह मत्ता वरण दस, पद पद झमक गुरंत । 'किसन' सुजस पढ स्री किसन, अड़ियल गीत अखंत ॥ १०० अरथ जीके अादकी तथा सारी ही तुकां प्रत मात्रा सोळ होय, तुक प्रत आखिर दस दस होय, तुकांत दोय गुरु होय, अंतमें जमक होय सौ अड़ियल गीत कहीजै । तुक प्रत अख्यर दस छै जिता बे वरण छंद छै। कोइक अण गीतनै सावझ अडल पिण कहै छै । च्यार दूहा होय सौ तौ अड़ियल नै एक दूहौ होय सौ चौसर गाहौ तथा गाथा कहावै । __ अथ अड़ियल गीत उदाहरण गीत. निज संतां तारै घणनांमी, नहच्यौ ज्यां नैडौ घणनांमी । निरपखां पखौ घणनांमी, नाथ अनाथांचौ घणनांमी ॥ ६६. भारथ-युद्ध । खळ-असुर । जाड़ा-जबड़ा। भानंखी-तोड़ने वाला । धाड़ा-अातंक, रौब, धन्य-धन्य। धानखी-धनुषधारी। दसाणण-रावण । लेणी-लेने वाला । भभीखण-विभीषण । सेवग-भक्त । देणौ-देने वाला। तोटौ-कमी, अभाव । त्यारै-- उनके । ज्यारै-जिनके । १००. मत्ता-मात्रा। वरण-अक्षर। झमक-झमकाव । गरंत-जिसके अंतमें गुरु (वर्ण) हो। प्रखंत-कहते हैं। जीके-जिसके । तुकां-प्रत-प्रति तुक या प्रति चरण । प्रख्यर अक्षर । कोइक-कोई। प्रण-इस । पिण-भी। १०१. घणनांमी-ईश्वर । नहच्यौ-धैर्य, निश्चितता । ज्यां-जिन । नैडौ-निकट । निरपखा जिसका कोई पक्ष न हो। पखौ-पक्ष, मदद, सहायता। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ] रघुवरजसप्रकास रीझ सदांमासं गिरधारी, ध्रवी अाथ बाथां गिरधारी । धारै चक्र भुजां गिरधारी, धायौ गज बाहर गिरधारी ॥ ग्रीध ग्राह तारण गोव्यंदौ, गणका गत देणौ गोब्यंदौ । ग्रहीयां जम भीड़ गोव्यंदौ, गुण गावण जेहौ गोव्यंदौ ॥ सिघां तीन लोकां सांवळियौ, सूर कुळां छोगौ सांबळियौ । साहै चाप राम सांवळियौ, सीतावर सांमी सांवळियौ ॥ १०१ अथ गीत धड़उथल लछण सोळे मत्ता सरब तुक, अंत एक गुरु होय । उलटै पाछौ अरधहूं, कह धड़ उथल सकोय ॥ १०२ प्ररथ सोळं ही तुकांमें मात्रा सोळं होय । एक तुकांत गुरु होय । प्राधातूं तुकां पाछी उलट तथा पूरबारधसूं उतरारध वणै । लाटानुप्रास अलंकार होय सौ धड़उथल गीत कहीजै। कोइक इणनै कवि ईलोळ पण कहै छ। गीत धड़ उथलमें न्यूंन जथा छै सौ देख लीज्यौ । अथ गीत धड़उथल उदाहरण _गीत जम लगै कठे भै सीस जियां, तन दासरथी नित वास तियां । तन दासरथी नह वास तियां, जम लगसी माथै जोर जियां ॥ १०१. रीझ-प्रसन्न होकर । ध्रवी-दान दी। प्राथ (अर्थ)-धन-दौलत । बाथां-दोनों भुजाओंको अापसमें फैला कर मिलानेसे बनने वाला बीचका स्थान या इस स्थानमें समा सके उतना पदार्थ, बाहपाश । धायौ-दौड़ा। बाहर-रक्षा । गोव्यंदौ-गोबिंद । गणका-गनिका। गत-गति, मोक्ष । देणौ-देने वाला। ग्रहीयां-पकड़ने पर। जम-यमराज । भीड़सहायक। गण-यश । जेहो-जैसा। सिघां-श्रष्ठ। सांवळियौ-श्रीकृष्ण। छोगौ अवतंश । साहै-धारण करता है । सीतावर-सीतापति । सांमी-स्वामी । १०२. मत्ता-मात्रा। पाछौ-वापिस । पण-भी। १०३. कठ-कहां । भै-भय । सीस-शिर, ऊपर । जियां-जिनको। दासरथी-श्रीरामचंद्र भगवान । तियां-उनमें । नह-नहीं। . Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास { २२३ समरै न जिके नर सामळियौ, क्रत-अंत जिकां सिर काहुळियौ। क्रत-अंत करै की काहुळियौं, समरंत जिके नर सांमळियौ ॥ गज-तार न वाक जिकां गुणियौ,सुत-भांण दियै दुख त्यां सुणियौ। सुतभांण तिकां दुख नां सुगियो,गज-तार तिकां मुखहं गुणियौ ॥ रसना पतसीत नकं ररियौ, भव डंड जिकां जमरै भरियो । रसना पतसीततणौ ररियौ, भव डंड जिकां जम नां भरियौ ॥१०३ अथ गीत सीहचला लछग दूही अंत रगण अठार धुर, दूजी तेरह जांण । . सोळह तेरह तुक सरब, सीह चलौ वाखाण ॥ २०४ प्ररथ जीके पैली तुक मात्रा उगणीस होय । दूजी तुक मात्रा तेरै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय। चौथी तुक मात्रा तेरै होय । तुकांत रगण होय जी गीतरौ नाम सीहचलौ कहीजै । अथ गीत सीहचलौ उदाहरण गीत सीता सुंदरी अरधंग ससोभत, सेवग मारुत सारखा । बाळ जिसा बळवंड बिहंडण, पांण भुजाडंड पारखा ॥ १०३. समरै-स्मरण करते हैं। जिके-जो । सामळियौ-ईश्वर, श्रीकृष्ण । क्रत अंत-कृतान्त, यमराज । जिकां-जिनके। काहुटियो-कोप किया। को-क्या । समरंत-स्मरण करते हैं। जिके-जो. वे। गज-तार-गजका उद्धार करने वाला। वाक-वाणी। जिका-जिन्होंने । गुणियौ-वर्णन किया । सुत-भांण-यमराज । त्यां-उनको। तिकांउनको। नां-नहीं। मुखहं-मुखसे । रसना-जिव्हा, जीभ । पतसीत-सीतापति. श्रीरामचंद्र । नक-नहीं। ररियौ-रटा। भव-डंड-संसारका दण्ड या साजा । पतसीततणौ-सीतापतिका। १०५. अरवंग-प्रर्द्धागिनी। मारुत-हनुमान । सारखा-समान, सदृश । बाळ-बालिबंदर । बळवंड-शक्तिशाली, जबरदस्त । बिहंडण-ध्वंश करने को, या ध्वंश करने वाला। पाण-शक्ति। भुजाडंड-बली, शक्तिशाली। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] रघुवरजसप्रकास कोसिक ज्याग अभंग सिहायक, दांणव घायक दूधरी । पाय रजी रघुराय परस्सत, आ त्रीय गौतम उधरी ॥ प्राझौ राख जनकतणौ पण, मौड़ खळां दळ मांनकी । धींग भुजां सत खंड करी धनु, जेण बरी प्रिय जानकी ॥ साल निवार सुरीस कियौ सुख, बीसभुजा हण बंकरौ । बेख दियौ रघुराज भुजां बळ, राज भभीखण लंकरौ ॥ १०५ अथ गीत बध चितविलास लछण दूहा सझ खट कळ कर वीपसा, विच संबोधन वेस । . तिण पर चवदह मत तुक, मोहर दुगुरु मिळेस ॥ १०६ गाय अरटिया गीतरौ, यण पर दूहौ ओक । प्रथम चरण अध अंत पढ, सुचितविलास विसेक ॥ १०७ अथ गीत ब्रधचितविलास उदाहरण गीत गह गंजैरे गह गंजै, भिड़ जंग वडा खळ भंजै । ग्रीधां सांमळ दीध पळां गळ, मेंगळ खागति मंजै ॥ १०५. कोसिक-विश्वामित्र । ज्याग-यज्ञ । सिहायक-सहायक । दाणव-राक्षस । घायक संहार करने वाला, नाश करने वाला। पाय-चरण । रजी- परस्सत-स्पर्श करते ही। १०५. प्राझौ-अटल। जनकतणौ-जनकका। पण-प्रण। धींग-जबरदस्त । जेण-जिस । साल-शल्य, दुख । सुरीस-सुरेश, इन्द्र । बीसभुजा-रावण ! बेख-देख । १०६. सझ-रख । खट (षट)-छ । कळ-मात्रा। वीपप्ता (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसमें अर्थ या भाव पर जोर देनेके लिये शब्दावृत्ति होती है, दुबारा कहनेकी क्रिया या भाव । तिण-उस । चवदह-चौदह । मत-मात्रा। मोहरा-तुकबन्दी। मिळेस मिलते हैं। १०७. यण-इस । दूहौ-गीत छंदके चार चरणोंका समूह । १०८. गह-गर्व । गंजै-नाश करते हैं। भिड़-यूद्ध कर । खळ-दुष्ट, राक्षस । भंज-ध्वंश करते हैं। सांमळ-एक मांसाहरी चीलकी जातिका पक्षी विशेष । पळां-मांसोंका। गळपिंड, निवाला। मेंगळ-हाथी। खागति-तलवारसे । भंजै-ध्वंश करते हैं, मारते हैं। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २२५ सूरजवंसतणौ नप सूरज, पाधर आसुर पंजै । रे गह गंजै ॥ जिण जीता रे जिण जीता, भड़ रांवण कुंभ अभीता । आस्रय राख भभीखण आतुर, लाख मुखां जस लीता ॥ भार ग्रहे घणनाद जिसा भट, चौपट मार अचीता । रे जिण जीता ॥ जग जाणै रे जग जांणै, जिण लंक ब्रवो जग जाणै । स्री-मुख दाख सुकंठ सहोदर, राख प्रभाव घरांणै ॥ कारुणस्यंध किकंध पते कर, बाळ हतै रिण बाणै । रे जग जाण ॥ जस जापै रे जस जापै, ते संत हरे त्रिण तापै । संघट तोड़ अघां घण स्रीरंग, कौड़ जमांभय कांपै ॥ आसा राघव पूर अनेकां, थानक दासां थापै । रे जस जापै ॥१०८ अथ लघु चितविलास लछण चवद चवद मत च्यार तुक, अठ मत पंचम आंण । बि गुरु अंत आवरत तुक, चित विलास पहचांण ॥ १०६ १०८. सूरजवंशतणौ-सूर्य वंशका । पाधर-खुला मैदान । प्रासुर-राक्षस । पंजे-ध्वंश करते हैं। जिण-जिस । भड़-योद्धा । कुंभ-कुंभकर्ण । अभीता-वह जो डरे नहीं, निशंक । प्रास्त्रय-शरण । भभीखण-विभीषण। प्रातुर-दुखी। लीता-लिया। घणनादमेघनाद, इन्द्रजीत । भट-योद्धा। चौपट- नाश, ध्वंश। अचीता-बिना चिंता । लंक-लंका। वीवी-दान दे दी। स्री-मुख-स्वयं, खुद । दाख-कह । सुकंठसुग्रीव । सहोदर-भाई। घराण-वंशका, वंशमें। कारुणस्यंध-करुणासिंधु, कृपासागर। किकंध-किष्किधा। पते-पति, स्वामी। बाळ-बालि नामक बंदर । हस-संहार कर । जापै-वर्ण करते हैं, जपते हैं। ते-उस । त्रिण-तीन । तापै-ताप, कष्ट । संघटदुख । तोड़-मिटा कर, नाश कर । अघां-पापों। घण-बहुत, अधिक। स्त्रीरंग विष्णु, श्रीरामचंद्र । जमां-यमराजों। थानक-स्थान। दास-भक्त। थाप-स्थापन करता है। १०६. चवद-चौदह । अठ-पाठ। प्रांण-ला, रख । बि (द्वि)-दो । प्रावरत-आवर्त, आवृत्ति । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ पैली तथा च्यार ही तुकांमें मात्रा आठ होवै, दोय गुरु अखिर तुकांत होवै। पै'ली तुकरौ आध सौ पांचमी तुक होवै। आवरत पद होवै। आवरत फेर पढणौ कहीजै, जी गी तकौ नाम लघु चितविलास कहीजै । पैली तुकरी छ मात्रा करने वीपसा करणौ, विचै जीकार संबोधन धरणौ । __ अथ गीत लघु चितविलास उदाहरण गीत घणनांमी जी घणनांमी, निज जोर परां घणनांमी । भुज लोक त्रिहूंपत भांमी, बिरदैत बहै धुर बांमी । जी घणनांमी ॥ बिरदाळौ जी बिरदाळी, दुज गाय पखी बिरदाळौ । सीताचौ सांम सिघाळौ, पौह सेवगरां प्रतपाळौ । जी बिरदाळौ ॥ रघुराजा जी रघुराजा, रणधीर बडौ रघुराजा । सुज तारण संत समाजा, लह बहियां राखण लाजा । जी रघुराजा ॥ हद हाथां जी हद हाथां, है लंक ववी हद हाथां । सत्र भंज जुधां समराथां, गुण राखण बिसुधा गाथां । जी हद हाथां ॥ ११० १०६. पै'ली-प्रथम। धरणौ-रखना। ११०. घणनांमी-ईश्वर । भामी-न्यौछावर, बलैया । बिरदैत-विरुदधारी, योद्धा, वीर । धुर-तरफ। बांमी-बायीं। बिरदाळो-विरुदधारी, यशस्वी। दुज (द्विज)-ब्राह्मण । पखी-पक्षी । सीताची-सीताका । साम-स्वामी, पति । सिधाळौ-श्रेष्ठ। पौह-प्रभ, राजा । सेवगरां-सेवकों । प्रतपाळौ-रक्षक । तारण-उद्धार करने वाला। हद-धन्य, धन्यवाद । लंक-लंका। ववी-दे दी, प्रदान की। सत्र-शत्रु । भंज-तोड़ कर । समराथांसमर्थो । गुण-यश । बिसुधा-पृथ्वी। गाथां-कथाओं। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [२२७ अथ गीत घोड़ादमौ लछण दूहौ अट्ठारह मत पहल अख, सोळ मत्त तुक आंन । दाख गीत घोड़ादमौ, दु गुरु अंत तुक दांन ॥ १११ प्ररथ जी गीतकै पै'ली तुक मात्रा अठ्ठारा होय । दूजी सारी ही तुकां मात्रा सोळे होय । तुकांत दोय गुरु अखिर पावै, जिण गीतरौ नाम घोड़ादमौ कहीजै । घोड़ादमा नै त्रबंकड़ो एक छै। यण गौतमें सुध जथा छ । अथ गीत घोड़ादमौ उदाहरण गीत राघव गह पला कीर कह पै रज , सिला उडी जाणे जग सारौ । जीवन जगत कुटंब दिस जोवौं , पग धोवौ तौ नाव पधारौ ॥ पदमण रिख असमांन पहंती , पंखां विनां जिहांन पढीजै । केवट कुळ प्रतपाळ दयाकर , चरण पखाळ जिहाज चढीजै ॥ हिक छिन मांझ सुरगळ अहल्या , पूगी है फळ रूप रज पै सौ । १११. अठ्ठारह-अठारह । मत-मात्रा। पहल-प्रथम । अख-कह । सोळ-सोलह । मत्त मात्रा । प्रान-अन्य । दाख-कह । ११२. गह-पकड़ कर । पला-अंचल । कीर-मल्लाह । पै-चरण, पांव । दिस-प्रोर, तरफ । पदमण-पद्मिनी। रिख-ऋषि । पहूंती-पहुँची। केवट-मल्लाह। प्रतपाळ-रक्षा, पालन-पोषण । पखाळ-धो कर। जिहाज-जहाज, नाव, नौका। हिक-एक । छिन क्षण। मांझल-मध्य, में। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] रघुवरजसप्रकास मोहित काळ कहै कमळमुख , बौहित बिमळ औण कर बसौं ॥ मुळक जानकी रांम लिच्छंमण , भणियौ दुचै स करम न भाई । राधव चरण धुवाय क्रपा कर , तरण कीर सकुटंब तिराई ॥११२ अथ गीत अरटिया लछण दूहौ धुर अठार फिर बार धर, सोळ बार गुरु दोय । सोळ बार मत तुक सरब, सखै अरटियौ सोय ॥ ११३ पै'ली तुक मात्रा अठार होय। दूजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळे होय । चौथी तुक मात्रा बारै होय । पछै दूजां दूहां पै'ली मात्रा सोळ । दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळे । चौथी तुक मात्रा बारै । सोळे, बारै ई क्रमसू होय । दोय गुरु तुकांत होय, जी गीतनै अरटियौ कहीजै । अथ अरटिया गीत उदाहरण गीत दाखां आठरै खट भाख चवदह, पाठ विधांन पिछाणै । जिकै अकाथ ज्ञान बिन झूठा, जे रघुनाथ न जाणे ॥ दीनदयाळ बिना गुण दूजा, आळ-जंजाळ अलप्पै । 'किसनौ' कहै पात जे केहा, जेहा रांम न जंपै ॥ ११२. बौहित-नाव, नौका। बिमळ-विमल, निर्मल। गौण-चरण । बसौ-बैठिए । मळक-हंस कर । लिच्छमण-लक्ष्मण । तरण-नाव, नौका। तिराई-तैरा दी. पार कर दी। ११३. धुर-प्रथम । बार-बारह । सखे-कहते हैं । जी-जिस । ११४ भाख-भाषा। चवदह-चौदह । जिकै-जो, वे। अकाथ-व्यर्थ । गुण-काव्य-रचना। दूजा-दूसरा। प्राळजंजाळ-व्यर्थका प्रलाप। अलप्पै-अल्प, तुच्छ । जे-जो । केहाकैसा । जेहा-जीभ ! जंपै-पढ़ते हैं, वर्णन करते हैं। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरा प्रसाद भेद बुध चारण जनम पाय सुध बूडा जे कर कर जस बुध सारू रघुवरजसप्रकास गाथां, बातां झूठ Laura I तारणनह गावै || चूका, गिर बंबां, संमां ऊमर सारौ । [ २२६ गायौ सीताबर, जीता जिकै जमारौ ॥११४ दूहौ सोळ प्रथम बीजी चवद, मगण यगण पछ दाख । सोळ चवद मत क्रम सुकव, भल सेलार सु भाख ॥। ११५ अरथ I 1 पैली तुक मात्रा सोळं । दूजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा सोळं । चौथी तुक मात्रा चवदै । पै'ली, तीजी तुकरे मोहरे मगण होय । दूजी चौथी तुकरै मोहरै गण हो । तुकांत मगण यगण होय । इं गीतरै सारा दूहां पै' ली तुक मात्रा सोळं । दूजी तुक मात्रा चवदै, ईं क्रम च्यार ही दूहां मात्रा होय सौ गीत नांम सेलार कहावै । लखपत पिंगळ मध्ये छंद सेलार छै, जिणरै तुक प्रथम प्रतमात्रा तेरै छै । यणरै पै' ली तुकमें मात्रा तीन वधी । दूजी तुकमें मात्रा एक वधी जींसूं गीत सेलार छै। पै' ली तीजी तुकरै अंत मगण होय । दूजी चौथी तुकरै अंत यगण अथवा दुगुरु होय । अथ सेलार गीत उदाहरण गीत मह ईजत स्राव अमंपै रे, चढ सीम जिकां कुंण चंपे । कीनास भये नह कंपै रे, जे राघव दिन सोहै प्राथतदवारे रे, बद ईजल जे नर धन धन जमवारे रे, सीताचौ राघव जपै ॥ व बारे । सांम संभारै ॥ ११४. गिरा - सरस्वती । प्रसाद - कृपा । बुध - पंडित | सुध - ध्यान । गिरतारण- रामचंद्र भगवान । बूडा-डूब गये । बूंबां-जोरकी प्रावाज । सूमां कृपणों । ऊमर - उम्र । सारौ - सब । जमारौ - जीवन । कंपै ११६. मह - महान । श्राव- श्रायु, उम्र । चं- भयभीत करे । कीनास - यमराज । डरे । जंप - स्मरण करे । सोहे - शोभा देता है । श्राथ-धन-दौलत । दवारे-द्वार पर । धन-धन-धन्य-धन्य । जमवारे जीवनमें। सीताचौ - सीताका । सांम - स्वामी, पति । संभार - स्मरण करते हैं 1 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] रघुवरजसप्रकास एकतर बंस उधारै रे, निज लोक उभै निस्तारै । साराह जिकां जग सारै रे, अवसर जीह उचार ॥ करुणानिध जनहितकारी रे, बांमै अंग सीतबिहारी । सारी ज्यां बात सुधारी रे, धरियौ उर धानंखधारी ॥ ११६ अथ गीत माळ लछण दूहा दूहौ पहलां दाखजै, चंद्रायणौ सुपच्छ । दूहा उलटै चवथ तुक, सोय झमाळ सुलच्छ ॥ ११७ दूहौ अर चन्द्रायणौ, विहुवै मत्ता छंद । यां लछण कहिया गै, पिंगळ मांझ कव्यंद ॥ ११८ अरथ पै'ां तौ हौ होय । पछै चंद्रायणौ होय । दूहारी चौथी तुक दोय बखत पढी जाय सौ झमाळ नांमा गीत कहीजै । दृहौ चंद्रायणौ दोई मात्रा छंद छै सौ यण पिंगळमें लछण दोयांरा कह्या छै, सौ कांम पड़े तो देख लीज्यौ । दूहौ पैली तुक मात्रा तेरै । तुक दूजी मात्रा इग्यारै । तुक तीजी मात्रा तेरै । तुक चौथी मात्रा इग्यारै | चंद्रायणौ तुक प्रतमात्रा इकीस । अंत रंगण सौ चंद्रायणौ । आाद दूही पछै चंद्रायणौ सौ झमाळ नांमा गीत कहावै । अथ माळ गीत उदाहरण गीत घाड़ा राघव धुर-धमळ, अवनाड़ा ऋणबीह | ऊबेड़ण जाड़ा असह, सुज घांसाड़ा-सीह ॥ ११६. निसतारै - उद्धार करता है । हितकारी-हित करने वाला । बांमै-बायां । धानंखधारीधनुषको धारण करने वाला । चंद्रायणौ - चंद्रायरण नामक मात्रिक छंद । ११८. श्ररर । विहुंव-दोनों । मत्ता - मात्रिक | यां - इस प्रकार, इनका । लछणलक्षण | - पहिले, पूर्व । मांझ-मध्य | ११७. पहलां - प्रथम, पहिले । दाखजै - कहिए । सुपच्छ - पश्चात । चवथ - चतुर्थं । ११६. धाड़ा - धन्य धन्य । धुर-धमळ - अग्रगामी । श्रवनाड़ा- वीर योद्धा । प्रणबीह - निडर, निशंक । ऊबेड़ण - उखड़ना । जाड़ा - जबड़ा । श्रसह - शत्रु । घांसाड़ा- सीह - सेनाको पीछे हटाने वाला, शक्तिशाली । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २३१ सुज घांसाड़ासीह अबीह अचल्लणा । असर खाग तियाग भुजाडंड झल्लणा ॥ रहचण दस सिर जिसा असह मझ राड़ रे । बेढक अंकी बार धनंकी धाड़ रे ॥ रखवाळण जिग रायहर, रजवट पाळण राह । दिया लखण रघुनाथ दहुँ,नप रिखसाथ निबाह ।। नप रिख साथ निबाह नंद रख नाहरां । पंथ ताड़का निपात जिका कथ जाहरां ॥ परसुबाह हत सर मारीच अताळियौ । जिग कोसिक रिखराज राज रखवाळियौ ॥ रख्ये जिग कोसिक अडुरपुरो, मिथळेस पधार । पंथ अहल्या पाय रज, राधव कियौ उधार ॥ राघव कियौ उधार निपट रिख नाररौ । बळ धानख लख घटे नूपां जिण बाररौ ॥ दासरथी बर सीत पराक्रम दक्खियौ । राघव भंजै धनंख जनक पण रक्खियौ ॥ आवंतां मारग अवध, डरवध हरख अमाप । आय फरस धर आफळण, चाप बैर हर चाप ॥ ११६. अबीह-निडर, निर्भय । तियाग-त्याग । भुजाडंड-समर्थ, शक्तिशाली । झल्लणा धारण करने वाला। रहचण-वंश करनेको, संहार करनेको। दससिर-रावण । मझ-मध्य । राड़-युद्ध । बेढक-जबरदस्त । अकी-अंकित की। बार-समय । धनंकीधनुषधारी । धाड़-धन्य-धन्य । जिग-यज्ञ । निपात-संहार कर, मार कर । जाहरांप्रसिद्ध । परसुबाह-परशुराम । सर-तीर, बारण । अताळियौ-उडाया, दूर फेंका। कोसिक-विश्वामित्र। रिखराज-ऋषिराज । राज-श्रीमान, आप । रखवाळियौरक्षा की। मिथळेस-राजा जनक । पाय-चरण । रिख-ऋषि । दासरथी-श्री रामचन्द्र । बर-पाणिग्रहरण कर । सीत-सीता । दक्खियौ-प्रकट किया, बतलाया। पणप्रण । रक्खियौ-रखा । अवध-अयोध्या। हरख-हर्ष । अमाप-अपार । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ] रघुवरजसप्रकास चाप बैर हर चाप जाप धक्ख जपिया । उभै राम जुध कारण ताम अड़ पिया ॥ लछवर धनंख साथ तेज निज हर लिया । रद कर मद दुजराम अवधपुर प्राविया ॥ ११६ अथ मुडैल अठताळौ गीत लछण दूहा चवद प्रथम बो ती चवद, चौथी दस मत जाण । पंच छठी सप्तम चवद, अष्टम दस मत प्रांण ॥ १२० पहल दुती तीजी मिळ, दु गुरु अंत जिण दाख । मिळ तुक चौथी आठमी, अंत लघु जिण आख ॥ १२१ पंचम अठमी सातमी, मिळे अंत गुरु दोय । मुड़ियल अठताळी मुणै, किव जिण नांम सकोय ॥ १२२ प्ररथ जिणरै पहलै तुक मात्रा चवदै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवै। तीजी तुक मात्रा चवदै होवै। चौथी तुक मात्रा दस होवै । पांचमी चवदै, छठी चवदै, सातमी चवदै, मात्रा चवदै चवदै होवै । तुक आठमी मात्रा दस होवै । पै'ली दूजी तीजी तुकां मिळे । तुकांत दोय गुरु होय । चौथी तुक आठमी तुकसू मिळे । तुकांत लघु होय । पांचमी, छठी, सातमी तुक मिळे । तुकांत दोय गुरु होय, जिण गीतनै मुडैलअठताळौ कहीजै । अठताळौ ग्रंथांतरसू पिण लछण सुध छ । हमीरपिंगळमें मुडैलअठताळौ कहै छै नै रुगनाथरूपगमें अठताळी हीज कहै छै । अथ मुडैलअठताळौ गीत उदाहरण गीत सुख दियण दुख गमण स्वामी, नाथ त्रिभुवन आपनांमी , भंज दससिर भुजां भांमी, राम भूप अरेह । ११६. मद-गर्व । दुजरांम-द्विज-राम, परशुराम । १२०. बी (द्वी)-दूसरी । ती (तृतीय)-तीसरी । चवद-चौदह । मत-मात्रा। १२१. दुती (द्वितीय)-दूसरी। दु-दो। दाख-कह । पाख-कह । १२२. मणे-कहते हैं। किब-कवि । सकोय-सब । १२३. दियण-देने वाला । गमण-गमाने या मिटाने वाला । अापनांमी-अपने नामसे प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला । भांमी-बलया। अरेह-निष्कलंक । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २३३ चुरस चित ब्रत नीतचारी, निरवहे व्रत हेक नारी , धींग पांण धनंखधारी, निपट संतां नेह ॥ असीचौ-लख जीव एता, जपै तौ प्रभ जीह जेता , भजै जटधर निगम भेता, नंद दसरथ नाम । गरुड़ध्वज रिममांणगाळा, वैर बाहर सीत वाळा , कहां झोक अनूप काळा, रूप भूपां राम ॥ विसू रक्खण सुजस वाता, इंद्र कौसळ आखियातां , देव वंछित दांन दाता, दुझल दीन दयाळ । गाव दस सिर बांण गंजे, प्रगट खळ जन भूप भंजे जनक पण रख चाप भंजे, भले अवध भवाळ । गरब प्रासुर समर गाहे, सधर भुज खित्रवाट साहे , रटे जग जग सीस राहे, गहर कीरत गाथ । तेण सर गिरराज तारे, महा खळ दहकंध मारे , अडर उरबी भर उतारे, नमौ स्त्री रघुनाथ ॥१२३ ___ अथ गीत हिरणझप लछण धुर सोळह दूजी चवद, ती चौवीस तवंत । चौथी पंचम मत चवद, छठ चौवीस छजंत ॥ १२४ १२३. चुरस-श्रेष्ठ। नीतचारी-नीति पर चलने वाला। निरवहे-निभाया। हेक-एक । धींग-जबरदस्त । धनंखधारी-धनुषधारी। निपट-बहत । असीचौ-लख-चौरासी लाख । एता-इतने । तौ-तुझको। प्रभ-प्रभु । जीह-जीभ । जेता-जितने । जटधर-शिव । निगम-वेद, वेद-मार्ग । नंद-पुत्र । गरुड़ध्वज-विष्णु श्रीरामचन्द्र । रिम-मांण-गाळाशत्र ओंका गर्व गंजन करने वाला। वाहर-रक्षा। सीत-सीता । झोक-धन्य-धन्य । अनूप-अनोखा । काळा-वीर । विसू (वसु)-पृथ्वी। आखियातां-अद्भत । दुझलवीर । चाप-धनूष । अवध-अयोध्या। भवाळ-राजा। प्रासुर-राक्षस । समर-युद्ध । गाहे-नष्ट किया। खित्रवाट-क्षत्रियत्व । साहे-धारण किया। गाथ-गाथा, कथा । तेण-उस । सर-समुद्र । गिरराज-पर्वत । खळ-असुर, राक्षस । दहकंध-रावरण । उरबी-भूमि । भर-भार । १२४. धुर-प्रथम । दूजी-दूसरी। चवद-चौदह । ती-तीसरी। तवंत-कहते हैं। छजंत शोभा देता है, शोभा देती है। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] रघुवरजसप्रकास पहली दूजी मेळ पढ, तीजी छठी मिळाप । मेळ चवथी पंचमी, जपै वडा किव जाप ॥ १२५ धुर बी चौथी पंचमी, भगण नगण यां अंत । तीजी छठी अंत तुक, जगण अहेस जपंत ॥ १२६ प्ररथ पै'ली तुक मात्रा सोळं, तुक दूजी मात्रा चवदै, तुक तोजी मात्रा चवदै, तुक चौथी मात्रा चवदै, तुक पांचमी मात्रा चवदै, तुक छठी मात्रा चौवीस होवै। पै'ली दूजी रै पछै नगण । चौथी, पांचमी तुकरै अत भगण तथा अंत लघु होवै । तीजी छठी तुकरै अंत जगण होवै। दूजा दूहां-पैली, दूजी, चौथी, पांचमी तुका मात्रा चवदै होवै। तीजो छठी तुक मात्रा चौबीस होवै, जी गीतरौ नाम हिरणझंप कहीजै। अथ गीत हिरणझए उदाहरण गीत निज आठ जोग अभ्यास अहनिस , सधै सुर घर जुगम रवि सस , करै रेचक पूरक कुंभक, वहै दम सिर ठाम । असी च्यार सुधार आसण , धौत बसती नीत धारण , करौ श्रेता कठिण विधक्रम, न सम राघव नाम । १२५. चवथी-चतुर्थ। १२६. बी (द्वि)-दूसरी । यां-इन । अहेस (अहीश)-शेष-नाग । १२७. पाठ-जोग-प्रशंग योग । अहनिस-रात-दिन । सुर (स्वर)-नाकसे निकलने वाली वायु । जुगम (युग्म)-दो। रवि-सूर्य । सस (शशि)-चन्द्रमा। रेचक-प्राणायामकी एक क्रिया विशेष जिससे खींचे हुए सांसको विधिपूर्वक बाहर निकाला जाता है। पूरक-प्राणायामकी प्रथम क्रिया या विधि जिसमें सांसको भीतरकी ओर बलपूर्वक खींचते हैं। कुंभक-प्राणायामकी एक विधि जिसमें सांसकी वायुको भीतर ही रोक रखते हैं । दम-सांस । धौत-शरीर-शुद्धि की योगकी एक क्रिया, धौति । बसती (वस्ति)-योगकी एक क्रिया विशेष । नीत-कपड़ेकी एक पतली धज्जीको गलेसे पेटमें डाल कर प्रांतोंको शुद्ध करनेकी हठयोगकी एक क्रिया-(सम-बराबर, समान) Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २३५ बंकनाळ समीर वासय , चक्रखट तत पंच भिद चय , सुचित मधुकर वसै संतत, जळज भ्रकुटी मझार । भूम रखेचर चाचरी भण , मुनीउन आ गोचरी मुण , निवह मुद्रा तपण नाहि, मीढ रेफ मकार । अधोमुख उध पाय आसण , धूम्रपान सदीव धारण , महा झै विध कठिण मानव, करौ लाख करोड़ । तप क्रिया व्रत होम तीरथ , अवर परबी दांन हिम अथ , निपट झै विध कदे नावै, जाप राघव जोड़ । तरुण गणिका नाम जै तर , पेख सवरी जात पांमर , बार अबखी देख बारण, पेख कीध पुकार । अजामेळ सरीख आधम , बाळ्मीक पुलिंद बेखम , 'किसन' हेकण छिनक कीधौ, यतां नाम उधार ॥ १२७ १२७. बंकनाळ-योगियोंकी बोलचालमें सुषुम्ना नामक नाड़ीका एक नाम । समीर-हवा । चक्रखट (षटचक्रो-योगके शरीरस्थ छ चक्र । तत-तत्त्व । पंच-पांच । मधुकरभौंरा । संतत-सदैव, निरन्तर । जळज-कमल । मझार-मध्य । खेचर-खेचरी-मुद्रा । चरचरी (चर्चरी)-योगकी एक मुद्रा। मुनीउन (उनमुनी)-हठ योगकी एक मुद्रा। मुण-कह । मोढ-समान, बराबर । रेफ- र अक्षर । मकार-म अक्षर । अधोमुखऔंधा मुख । उध-ऊपर । पाय-चरण । सदीव-नित्य । हिम-स्वर्ण, सोना । कद-कभी। जाप-जप । जोड़-समान, बराबर। पांमर-नीच । बार-वेला, समय। अबखीकठिन । बारण-हाथी। कोध-की। सरीख-समान । प्राधम-नीच। पुलिद-एक प्राचीन असभ्य जाति । हेकण-एक । छिनक-क्षण, थोडा। कीधौ-किया। यतांइतने। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत कैवार लछण दूहौ धुर अठार बी नव धरौ, ती सोळह नव वेद । दु गुरु अंत चौथी दुती, भण कैवार सुभेद ॥ १२८ प्ररथ पै'ली तुक मात्रा अठारै होवै । तुक दूजी मात्रा नव होवै। तुक तीजी मात्रा सोळे होवै । तुक चौथी मात्रा नव होवै । पछै सोळे नै नव ई क्रम होवै। दूजो चौथी तुकरै अंत दोय गुरु होवै, ती गीतरौ नाम कैवार कहीजै । अथ कैवार उदाहरण गीत कीजै वारणे छिब काम कौटिक, दीन दुख दाघौ । साभाव सरण-सधार स्रीवर, राजरौ राघौ । धानंखधारी विरद धारण, तोय गिरतारी । राजवाळी नंद दसरथ, भरोसौ भारी ॥ भव चाप भंज जनक भूपत, राज पण रक्खै । सुज पूर खित्रवट वरी सीता, सूर सिस सक्खै ॥ रघुनाथ संत समाथ तारण, नाथ बोहौ नामी । दसमाथ भंज प्रचंड दाटक, भुजाडंड भांमी ॥ १२६ १२८. बि (द्वि)-दो, दूसरी । ती-तीसरी । तीं-उस । १२९. बारण- न्यौछावर । छिब-शोभा। कौटिक-करोड़ । दाघौ-दग्ध, जला हुअा। साभाव स्वभाव । सरण-सधार-शरणमें पाए हएकी रक्षा करने वाला। स्रोवर (श्रीवर)विष्णु। राजरौ-श्रीमानका। राधौ-राघव, रामचन्द्र भगवान । तोय-पानी । गिरतारी-पर्वतोंको तैराने वाला । राजवाळी-श्रीमानका, आपका। नंद-पुत्र । भवमहादेव, शिव । चाप-धनुष । पूर-पूर्ण । खित्रवट-क्षत्रियत्व । सूर-सूर्य । सिस (शशि)-चन्द्रमा । सक्खै-साक्षी है। समाथ-समर्थ । बोहो-बहुनामी। दसमाथरावण । भंज-नाश कर। दाटक-जबरदस्त, शक्तिशाली। भुजाडंड-जबरदस्त । भांमी-बलैया, न्यौछावर । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास . [ २३७ अथ गीत दोढा लछण दूहा धुर बी ती चवदह धरौ, चौथी बार चवंत । पंच छठी सप्तम चवद, अठमी बार अखंत ॥ १३० पहली बीजी तीसरी, मेळ रगण पळ होय । मिळ चौथीसू आठमी, जै तुकांत लघु जोय ॥ १३१ पंचम छठी सातमी, मेळ रगण पय छेह । भाख रांम गुण किसन' भल, आखत दोढौं श्रेह ॥ १३२ दोढा गीतरै पै'ली दूजी तीजी तुक मात्रा चवदै होय । चौथी आठमी तुक मात्रा बारै होय । पांचमी छठी सातमी तुक मात्रा चवदै होय । पै'ली दूजी तीजी तुकां मिळ, अंत रगण होय । चौथी पाठमी तुक मिळं , अंत लघु होय । पांचमी छठी सातमी तुक मिळे , अंत रगण होय, जी गीतको नाम दोढी कहीजै । अथ गीत दोढा उदाहरण गीत भड़ असुर आहव भंजिया, गह कुंभ सरखा गंजिया । रघुराज संतां रंजिया, वडवार कीरत ब्यंद ॥ आजांनभुज बळ अंगरौ, जैतार दससिर जंगरौ । अख रूप कौट अनंगरौ, बिबुधेस नीत पय बंद ॥ १३०. धुर-प्रथम । बी-दूसरी। ती-तीसरी । चवदह-चौदह । बार-बारह । चवंत-कहते हैं। चवद-चौदह । प्रखंत-कहते हैं। १३१. पछ-बादमें, पश्चात । १३२. पय-चरण । छेह-अंत । भल-ठीक । पाखत-कहते हैं। ऐह-यह । चवंदै-चौदह । बार-बारह । जी-जिस । १३३. भड़-योद्धा । असुर-राक्षस । श्राहव-युद्ध। भंजिया-ध्वंश किये। गह-गंभीर, महान । कुंभ-रावणका भाई कुंभकर्ण। सरखा-समान । गंजिया-ध्वंश किये। रंजिया-प्रसंन्न किये अथवा प्रसन्न हुए। बार-समय । कीरत-कीर्ति । ब्यंद-बंदन । प्राजांनभुज-आजानबाह। जैतार-जीतने वाला, जीत कर उद्धार करने वाला। दससिर-रावण । प्रख-कह । कौट-करोड़ । अनंगरौ-कामदेवका । बिबुधेस-इन्द्र । पय-चरगा। बंद-बंदन करता है। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ ] रघुवरजसप्रकास कौटेक घळ काटणौ, थिर संत थांनक थाटणौ, सुज तेज कौटक सूररौ, सुरेस मूळ उपाटणौ । अभनिमौ सगर रोड़ || रज कौट इंद्र जहूररौ । निज समुख रजवट नूररौ, महराज रिव कुळ मोड़ || बांनैत भूपत बँकड़ा, घण भंज रिण असुरां घड़ा । सुजदास टाळण संकड़ा, लहरेक आपण लंक ॥ भूपाळ सिघ धन भूपती, रिझवार कीरत बडरती । अंग लियां पौरस आसती, अवधेस जुध अणसंक ॥ सुज भ्रात जेठी सेसरा, दइवांण वंस दनेसरा | हद कंज मधुप महेसरा, मन महण रूप समाथ ॥ हद भाळ सुसबद भळहळा, निज कदम समहर नहचला । साधार सेवग सांवाळ, नूपराज दसरथ नंद ॥ १३३ अथ गीत हंसावळौ सांणौर लछण दूहौ धुर अठार फिर पनर घर, सोळ पनर सरवेण । ल है अंत लघु, जपै वेलियौ जेण ॥ १३४ वंश | १३३. श्रघ - पाप | दळ-समूह । काटणौ-काटने वाला । श्रसुरेस - रावण | मूळ - जड़, उपाटणौ - मिटाने वाला । थिर-स्थिर । थानक स्थान । थाटणौ - शोभा बढ़ाने वाला, वैभव बढ़ाने वाला । अभनिमौ-वंशज । सगर - एक सूर्यवंशी राजाका नाम । श्ररोड़जबरदस्त । सुज-वह । कौटक - करोड़ । सूररौ -सूर्यका । रज-वैभव । जहूर ( जुहूर ) - प्रकाशन, प्रकट | रजवट - क्षत्रियत्व, शौर्य । नूर - क्रांति, दीप्ति, सुन्दरता । रिव-सूर्य । बांनैत वीर भूपत - भूपति राजा । बंकड़ा - बंकुरा | घण-बहुत अधिक। रिणयुद्ध प्रसुरां - राक्षसों घड़ा (घटा ) - सेना । दास-भक्त | टाळण - मिटानेको, दूर करने को । संकड़ा - संकुचित, संकट | आपण - देने वाला । लंक- लंका । सिघ-श्रेष्ठ । धन-धन्य | रिझवार - प्रसन्न होने वाला । बड - महान, बड़ी । रती-कांति, दीप्ति । प्रासती - महान, प्रबल । थणसंक- निडर, निर्भय । भ्रात-भाई । जेठी (जेष्ट ) - बड़ा ! सेसरा - लक्ष्मणका । दइवांण - महान, जबरदस्त । दनेसरा ( दिनेशका ) - सूर्यका । हदहृदय । कंज - कमल । मधुप-भौंरा । महेसरा - महादेवका । महण ( महार्णव) - समुद्र | समाथ - समर्थ । सुसबद - कीर्ति, यश कदम ( कदम ) - चरण । समहर युद्ध | साधाररक्षक, सहायक । सेवग भक्त | सांवळा - श्रीकृष्ण, श्रीराम । नंद - पुत्र | १३४. धुर-प्रथम । ठार - ग्रठा रह । पनर - पन रह । सोळ-सोलह | सरवेण - सबमें । * Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २३६ तुक प्रत बेबे कंठ तव, रा रा सबद सरास । कहै नाम जिण गीतकौं, हंसावळी सहास ॥ १३५ স্মথ वेलिया सांणौर गीतरै तुकप्रत बेबे अनुप्रास एक सरीखा होवै। सोळे तुकांमें बतीस कंठ होवै सौ गीत हंसावळी सांणौर कहावै । अथ गीत हंसावळारौ उदाहरण गीत सतरा हरचंद सुमतरा सागर, चितरा विलंद सुदतरा चाव । वतरा व्रवण प्रभतरा वाधण, नतरा तार सुक्रतरा नाव ॥ वनरा वांस समनरा काज वस, पुनरा निध तनरा आपांण । भय मेटण जनरा भन भनरा, महदनरा मनरा महरांण ॥ रिखरा निज मखरा रखवाळण, दुखरा तन लखरा जन दाह । धखरा खळ मुखरादस धड़चण, नरपखरा पखरा निरबाह ॥ सुखकररा थिररा वासी सुज, संकररा उररा सामाथ । वररा सीत तार गिरवररा, हररा अघ रघुबररा हाथ ॥१३६ १३५. कंठ-अनुप्रास । सरास-रसपूर्ण । सहास-आनंदपूर्वक, हर्षपूर्वक । १३६. सतरा-सत्यका। हरचंद-राजा हरिश्चंद्र । सुमतरा-सुमतिका । चितरा-चितके । विलंद-महान, बड़ा । सुदतरा-श्रेष्ठ दानका। चाव-उमंग । वतरा-धनका । व्रवणदेने वाला । प्रभतरा-यशका, कीतिका । वाधण-बढ़ाने वाला । नतरा-नहीं तैर सकने वाला पापी, पर्वतादि । तार-तैराने या उद्धार करने वाला । सतरा-श्रेष्ठ कार्यका। समनरा-देवताओंका। काज-काम । पुनरा-पुण्यका । निध (निधि)-खजाना । तनराशरीरका। प्रापांण-शक्ति, बल। महरांग (महार्णव)-समुद्र । रिखरा-ऋषिका । मखरा-यज्ञका । रखवाळण-रक्षा करने वाला। लखरा-लाखोंका। धखरा-द्वषका, कोपका। खळ-राक्षस । मखरादस-रावण । धड़चण-मारने वाला, काटने वाला। नरपखरा- जसका कोई पक्ष या सहायक न हो। पखरा-पक्षका । निरबाह-निभाने वाला। थिररा-पथ्वीका। सामाथ-समर्थ । तार-तैराने वाला। गिरवररापर्वतोंका। अघ-पाप । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० । रघुवरजसप्रकास अथ गीत रसखरा लछण दूहा धुर सोह बीती चवद, चौथी दस मत चाह । पंच छठी सप्तम चवद, धुर बीती पंचम छठी, मिळ चौथीसूं आठमी, भल तुकंत लघु भेळ ॥ १३८ नगरक भगण तुकंत खट, तगण जगण चव आठ । सुकव रसखरौ गीत सौ, पढ जस राघव पाठ ॥ १३६ दस आठमी सराह ॥ १३७ सप्तम खट तुक मेळ । अरथ पै'ली तुक मात्रा सोळ होवे । दूजी तुक मात्रा चवदे होवें । तीजी तुक मात्रा चवदै हो । चौथी तुक मात्रा दस होवै । पांचमी तुक मात्रा चवदै हो । छठी तुक मात्रा चवदै होवै । सातमी तुक मात्रा चवदै होवै । श्राठमी तुक मात्रा दस होवै । पैली, दूजी, तीजी, पांचमी, छठी, सातमी तुकां मिळ । यांछ ही तुकांरै अंतमें नगण तथा भगण तुकांतमें आवै अर चौथी तुक प्राठमो । ज्यां दोयांरे तुकांत नगण तथा जगण होवै, जी गीतरौ नांम रसखरौ कहीजै । गुरुवंत है । हिरणप रसखरारौ ब्रेक लछण छै । सूं अथ गीत रसखरारी उदाहरण गीत सुज रूप भूप अनूप स्यांमळ, जेम बरसण घटा छिब जळ । व अंबर पीत वीजळ, सुकव क्रीत सराह ॥ १३७. धुर-प्रथम । बो- दूसरी । ती-तीसरी । चवद - चौदह । मत - मात्रा | १३८. खट छ । १३६. नगणक - नगरण । चव- कह । सुकव- श्रेष्ठ कवि । यां-इन । ज्यां-जिन । दोयांरैदोनोंके । जीं - जिस । गुरुवंत - वह जिसके अन्तमें गुरु हो । नोट - मूल प्रतिमें गुरुवंत शब्द लिखा मिला। यहां पर लघ्वांत होता तो ठीक रहता क्योंकि रसखरा गीत में सर्वत्र अन्त लघु वर्ण ही होता है । १४०. स्यांमळ - श्याम, कृष्ण । बरसण-वर्षा । छिब- कांति । अंबर - वस्त्र, ग्राकाश । पीतपीला । वीजळ - बिजली, विद्युत सराह - प्रशंसा । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २४१ कंज सरभर समुख कोमळ, कान झगमग हरि कुंडळ । नयण परसत पत्र निरमळ, दूठ राम दुबाह ॥ भुजा बळ खळ भंज भारथ, अथघ अपहड़ ब्रवण किव अथ । सरब बातां वणे समरथ, धार बांण धनंख ॥ कहै मुख मुख जगत जस कथ, असुर समहर नाथ ऊनथ । दुझल राघव सुतण दसरथ, लियण भुजबळ लंक ॥ घड़ण नोखा घाट अणघट, वणै लंगर पाय रिणवट । घणूं व्यापक ईस घट घट, संत कारज सार ॥ मेल दळ घण रीछ मरकट, पाज बंध समंद जळ पट । खळां सबळां भंज खळ खट, विजै कर रणवार ॥ बिहद भूपत सीत वाहर, जार दस सिर समर जाहर । थरर लंका जिसा थाहर, विसर त्रंबक वाज ॥ नेतबंध रघुनंद नाहर, छत्री सरण हित ऊछाहर । __ भभीखण कर लंक स्रीवर, मौज की महराज ॥१४० अथ गीत भाखड़ो लछण दूहा एक दवाळी अंकणी, औ पैला कर प्रेम । ग्यार मत्त धुर नव दुती, निज ग्यारह नव नेम ॥१४१ अवर दवाळां वीस खट, तुक प्रत मत्त तवंत । मिळे च्यार तुक अंत लघु, किव भाखड़ी कहंत ॥ १४२ १४०. कंज-कमल । सरभर-समान। झगमग-दमक-चमक । हीर-हीरा । दूठ-जबरदस्त । दुबाह-वीर। भंज-नाश कर। भारथ-युद्ध । अथघ-अपार । अपहड़-दानवीर, दातार । ब्रवण-दान देने वाला। किव-कवि। अथ (अर्थ)-धन-दौलत । नाथनाथना, वशमें करना। ऊनथ-वह जो बन्धनमें न हो, उद्दण्ड । दुझल-वीर । सुतण पुत्र। लियण-लेने वाला। १४१. दवाळी-गीत छंदके चार चरणका समूह । ग्यार-ग्यारह । मत्त-मात्रा। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ भाखड़ीनांमा गीतकै पै'ली तौ प्रांकणीको एक दवाळी होय, सौ दवाळी भाखड़ीका सारा दवाळांकै प्रागै पढयौ जाय, जी अांकणीका दवाळाको पैली तुक मात्रा इग्यारे, चौथी तुक मात्रा नव होय और गुरु अंत होय और भाखड़ीका दवाळाकी सारी तुकां प्रत मात्रा छाईस होय । अंत लघु होय, जों गीतको नाम भाखड़ी कहीजै। मात्रा उपछंद छै । अथ गीत भाखड़ी उदाहरण गीत खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ रिणवटां राघव खळां रहचण भुजबळां अणभंग । सुज पळां प्रधळां दियण समळां, गळां ग्रीध सुचंग ॥ चळवळां जोगण खपर चढवै, सिंभ कमळां स्रग। जग गीत चिहूंवै-वळां जाहर, सुजस हुवै सुढंग ॥ खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ भड़भड़े के लड़थडै भारथ, अड़े के अखडैत । वड़बडै के हड़हडै वीजळ, जडै के जरदैत ॥ अड़वड़े के धड़हडै आतस, जुड़े के कज जैत । विच समर हेकण धडै राघव, बडै रंग बिरदैत ॥ १४३. खग-तलवार। दत-दान । खटा-प्राप्त करें। रजवटां-क्षत्रियत्व। थरण-ध्वंश करना, नाश करना, संहार करना। खळ-शत्रु । थटां-दल । रिणवटां-युद्धों। रहचण-संहार करनेको। अणभंग-नहीं भगने वाला वीर। पळा-मांस । प्रघळांबहत । दियण-देने वाला। समळां-मांसाहारी पक्षी विशेष । गळां-मांस-पिंडों। चळवळ-रक्त, खून । जोगण-योगिनी, चंडी । सिंभ-शंभु, महादेव । कमळां-मस्तकों। संग (शृक)-माला। चहंवैवळां-चारों ओर । सुढंग-श्रेष्ठ । भड़-योद्धा । भडैभिड़ते हैं, युद्ध करते हैं। लड़थडे-लड़खड़ाते हैं। भारथ (भारत)-युद्ध । अड़े-पड़ते हैं, भिड़ते हैं। के-कई। अखडैत-योद्धा । वड़वड़े-भिड़ते हैं। हड़हडे-हंसते हैं। वीजळ-तलवार । जई-प्रहार करते हैं। जरदैत-कवचधारी योद्धा । अडवडे-हड़बड़ाते हैं। धड़हड़े-तोपोंकी ध्वनि होती है। जुडै-भिड़ते हैं। कज-लिये । जैतविजय । विच-बीच में । समर-युद्ध । हेकण-एक । धड़े-तरफ, अोर, दलमें । बिरदैतबिरुदधारी, वीर। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २४३ खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ पह बीरहाक पनाक पणचां, बाज डाकत्रबाक । असनाक पर ग्रीधाक श्रावध, करग बाज कजाक ॥ चठठा करत खप्पराक चंडी, राग बज अयराक। रिणछाक चढ़ रिव ताक राघव, लखण सहित लड़ाक ॥ खग दत ब्रद खटांजी राखण रजवटां । थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां ॥ पाराथ सेवग अाथ आपण करण सिध मन काथ । दसदूण हाथ समाथ दाटक, मार खळ दसमाथ ॥ जुड़हाथ माथ नमाय जपै, गुणां 'किसनौ' गाथ । सरणाय लंक समाथ समपण, निमौ स्त्री रघुनाथ ॥ खग दत व्रद खटांजी, राखण रजवटां। थूरण खळ थटांजी, राधव रिणवटां ॥ १४३ अथ अन्य विधि गीत भाखड़ो लछण धुर नव मत जीकार फिर, चवद गुरू लघु अंत । एम च्यार तुक अांकणी, किव भाखड़ी कहंत ॥ १४४ १४३. बीरहाक-वीर-ध्वनि । पनाक-धनुष । पणचां-प्रत्यंचाओं। डाक-डंका । त्रबाक-नगाड़ा । चट्ठा-द्रव पदार्थको जीभसे खींच कर पीनेसे होने वाली ध्वनि । अयराक-तेज, भयंकर। रिणछाक-युद्धोन्मत्तता। रिव (रवि)-सूर्य । लखण-लक्ष्मण। लड़ाकयोद्धा । पाराथ-प्रार्थना । सेवग-भक्त। प्राथ-धन-दौलत । प्रापण-देनेको । काथ-कथा। दसण-बीस । समाथ-समर्थ । दाटक-जबरदस्त, महान । खळराक्षस । दसमाथ-रावण । जुड़हाथ-कर-बद्ध होकर। माथ-मस्तक । नमायनमा कर, झुका कर । जंपै-कहता है। गणा-यश, कीर्ति । गाथ-कथा, गाथा। सरणायशरण में आया हुअा। समाथ-समर्थ । समपण-समर्पण करनेको, समर्पण करने वाला। १४४. धुर-प्रथम । मत-मात्रा । चवद-चौदह । कहत-कहते हैं। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ । रघुवरजसप्रकास अथ गीत दुतीय भाखड़ी उदाहरण गीत सीवर सारणौ जी, केतां निबळ संतां काम । महपत मारणौ जी, मह जुध फरसधरसां मांम ॥ घजबंध धारणौ जी, बंका बरद भुज बरियांम । सरण-सधारणौ जी, रिवकुळ आभरण रघुराम ॥ रघुराम भूपत आभरण, रिववंस अडर अरेह । भुज धरण बंका बिरद अणभंग, तीख खित्रवट तेह ॥ दिल गहर ओपत सुतण दसरथ, बोल मुखलखबेह । सुत पूर आसां सरब समरथ, निपट दासां नेह ॥ १४५ अथ गीत अरधभाखड़ी तृतीय लछण दूही अरध दवाळी अांकणी, बीजौं अरध वखांण । अरधभाखड़ी कवि अखै, जुगत त्रिहूं विध जाण ॥ १४६ अथ गीत अरधभाखड़ी उदाहरण गीत आरख अंगरा जी दुती भळळाट रवि दरसेण । रूप अनंगरा जी जोयां हुवै रद छबि जेण ॥ १४५. सीवर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र । सारणी-सिद्ध करने वाला, सफल करने वाला। केतां-कितने। निबळ-निर्बल । महपत (महिपति)-राजा। मारणौ-मारने वाला । फरसधरसां-परशुरामजीसे । माम-गर्व, प्रतिष्ठा । धजबंध-वीर । धारणौधारण करने वाला। बंका-बांकुरे। बरद-विरुद। बरियांम-श्रेष्ठ । सरण-सधारणौ शरणमें पाए हुएकी रक्षा करने वाला। प्राभरण-प्राभूषण । रिववंस (रविवंश)सर्यवंश । तीख-विशेषता। खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता । गहर-गंभीर । प्रोपत-शोभा देता है । सुतण-पुत्र । बोल-यश, शब्द । निपट-बहुत । दासां-भक्तों। नेह-स्नेह । १४६. दवाळी-गीत छंदके चार चरणका समूह । बीजौ-दूसरा। अखे-कहते हैं। जुगत युक्ति । त्रिहूं-तीनों । विध-विधि, प्रकार, तरह। जांण-समझ।। १४७. पारख-चिन्ह, लक्षण । दुति (द्यति)-कांति, दीप्ति । भळळाट-चमक, दमक । रवि सूर्य। दरसेण-दर्शनसे। अनंगरा-कामदेवका। जोयां-देखने पर। रद-खराब, निकम्मा, रद्द । छबि-शोभा । जेण-जिससे । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २४५ जिण जोय रद छबि हुवै जाहर कौट काम काम । सुत भूप दसरथ नूप सोभा रूप रविकुळ रांम ॥ १४७ प्ररथ यण तरै च्यार दवाळा तथा यधक दवाळांई होय, तिणने अरधभाखड़ी कहीजै । तुक दो अांकणीरी हुवै । अथ गोखौ गीत लछण बारह मत तुक आठ प्रत, आख वीपसा अंत । छीनूं मत दवाळ प्रत, यूं गोखौ आखंत ॥ १४८ प्ररथ बध गोखा गीतरै तुक पाठ होवै । तुक अंक प्रत मात्रा बारै होवै नै आठमी तुक वीपसा होवै, जिको गोखौ सावझड़ौ गीत कहीजै। __अथ गीत गोखा उदाहरण गीत साझीके बखत सांम, बेल संत बारियांम । ते कहै प्रथी तमांम, नमो आप आप नाम ॥ धार चाप तेज धांम, वांम अंग रमा बाम । किता सार संत काम, सिया राम सिया रांम ॥ १४६ __ अथ दुतीय गोखौ गीत लछण दही मझ खट तुक बारह मता, बेद अठम नव जांण। कळ नेऊ लघु अंत कह, इक गोखौ इम आण ॥ १५० १४७. जोय-देख कर । कौट-करोड़ । नूप (अनूप)-अद्भ त । यण-इस । तरै-तरह, प्रकार । यधक-अधिक । तिणनूं-उसको । हुवै-होती है। १४८. मत-मात्रा । प्रत-प्रति । पाख-कह । वीपसा (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसमें अर्थ या भाव पर बल देने के लिए शब्दावृत्ति होती है। दवाळ-गीत छंदके चार चरणोंका समूह । यूं-ऐसे। पाखंत-कहते हैं। १४६. बेल-मदद । बारियांम-श्रेष्ठ । तमांम-सब । धार-धारण कर ! चाप-धनुष। वांम बायां । रमा-लक्ष्मी, सीता। किता-कितने । सार-सफल कर । १५० मझ-मध्य । खट-छ। मता-मात्रा । बेद-चतुर्थ, चौथी। अठम-पाठमी। कळ __ मात्रा। नेऊ-नब्बे । इक-एक । इम-ऐसे । प्राण-ला, रच । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ दूजा गोखारै तुक तीन, पै'ली दूजी तीजी मात्रा बारै होय। तुक चौथी मात्रा नव होय । तुक पांचमी, छठी, सातमी मात्रा बार-बारै होय । तुक आठमो मात्रा नव होय । कुल मात्रा एक दवाळामें नवे होय । गुरु लघु तुकंत पैली दूजी तीजी मिळे । चौथी पाठमी मिळे । पांचमी छठी सातमी मिळे । कोई कवि यूं पिण गोखौ कहै छै तोई सावझड़ी छ । अथ दुतीय गोखा गीत उदाहरण गीत साझीके बखत सांम, बेल संत बारीयांम । ते कहै प्रथी तमांम, नमो आप नाम ॥ धार चाप तेज धाम, बांम अंग रमा बाम । किता तार संत कांम, राम राम राम ॥ समै बंदगी सुरीस, देव तौ जपै दनीस । लाखलछीस, नांमणौ नरीस ॥ बाढ जंग भुजावीस, रीझियां लँका वरीस । कियौ जे सखा कपीस, ईस ईस ईस ॥ भेत गुणां गाथ भेव, आभडै न अहंमेव । ईदसा सुरा अजेव, साझ तास सेव ॥ कीरति वाणी कहेव, दिला धरै संभदेव । वाह जेण चेत वेव, देव देव देव ॥ १५०. यूं-ऐसे। पिण-भी। तोई-तब भी। १५१. सझे-करता है। बंदगी-टहल, सेवा। सुरीस (सुरेश)-इन्द्र । तौ-तुझे। दनीस (दिनेश)-सूर्य । लछीस (लक्ष्मी+ईश)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। नांमणौ-नमाने वाला, झुकाने वाला। नरीस (नरेश)-राजा । बाढ-काट कर । जंग-युद्ध । भुजा-बीसरावण । रीझिया-प्रसन्न होने पर। लंका-वरीस-लंकाका दान देने वाला। सखामित्र । कपीस-सुग्रीव । भेव-भेद । प्राभड़े-स्पर्श करता है। अहंमेव-अभिमान, गर्व । ईदसा-इन्द्र के समान । सुरा-देवता । साझ-करते हैं। तास-उस । सेव-सेवा । वांणीसरस्वती। कहेव-कहती है। संभ (शंभू)-शिव । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकासः [ २४७ नरेस अनाथ. नाथ, अनाथियां घरे आथ । करै तं सुधारे काथ, रटां सांमराथः ॥ भंज के खळां भराथ, गुणां वेद ब्रह्म गाथ । मुणै तौ नमाय माथ, नाथ नाथ नाथ ॥ १५१. अथ गीत ढोलचलौ तथा ढोलहरी-सावझड़ो लछण धुर बी ती तुक सोळ मत, चौथी मत्त अढार । सावझड़ौ तुक अंत लघु, ढोलहरौ निरधार ॥ १५२ प्ररथ जिण गीतरै पैली, दूजी, तीजी तुक मात्रा सोळ होय । तुक चौथी मात्रा अढारै होय । पण लघु कर पढ्या चाहै तौ सोळे ही पढी जाय, सावझड़ी होय । कदा'क पैली, दूजी, तीजी, तुकांमें मात्रा सोळ सूं अधिक होय तौ अटकाव नहीं। पण सोळं सूं घटती तो नहीं संभवै । जूनौ गीत देख कीदो छ । अथ गीत ढोलचलौ तथा ढोलहरौ सावझड़ी उदाहरण गीत पेख बणै जिण बाह परध्धर, धींग भुजां निज चाप सरध्धर । जेण भजै रिखी ब्रह्म जट धर, गावबे गावबे गाव मिरधर ॥ तौ चित चाह उधार सुतंनह, सेवत तौ दसरथ सुनिह । रात दिनां कर खांत रसनह, बोलबे बोलबे बोल विसंनह ॥ १५१. अनाथियां-गरीबों। प्राथ-धन-दौलत । काथ-कार्य, काम। सामराथ-समर्थ । भराथ-युद्ध । मुणे-कहते हैं। तौ-तुझको। नमाय-नमा कर । माथ-मस्तक । १५२. धुर-प्रथम । बी-दूसरी। ती-तीसरी। सोळ-सोलह । मत-मात्रा। मत्त-मात्रा। अढार-अठारह । निरधार-निश्चय। पण-परन्तु । कदा'क-कदाचित् । अटकाव अड़चन। कीदौ-किया। १५३. पेख-देख कर । बणे-बनता है। धींग-जबरदस्त । चाप-धनुष । सरध्धर-बाण धारण करता है। जेण-जिसको। रिख-ऋषि । ब्रह्म-ब्रह्मा। जटधर-शिव । गिरधरगिरधारी। तौ-तेरे । चाह-इच्छा। सुतंनह-पुत्र । खांत-विचार । रसनह-जीभ । विसंनह-विष्णु । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ] रघुवरजस प्रकास बेखौ यम ऊबर सौ बित, चाळ-जंजाळ विसार अलच्छत । सांन विमास विसास धरेसत, पढबे बढबे पढ्ढ रघुपत ॥ कारुणच निध जांनकीकतह, स्यांम सुनाथ करै घण संतह | तूं ‘किसना' चित रक्ख नच्यंतह, अखबे अखबे अक्ख अनंतह ॥ १५३ अथ गीत त्रकुटबंध लछण दूहा धुर चवदह चवदह दुती, तीजी मत छाईस । चवदह चौथी पंचमी, इम तुक पंच कहीस ॥ १५४ आठ तुकां फिर कंठकी, पै'ली सोळह मत्त । चवद चवद कळ आठ तुक, नवमी दसह निरत्त ॥ १५५ पै'ली दूजीसूं मिळे, तिरै गुरु तुकंत । तीजी दूहा अंतरी, उभ मिळे लघु अंत ॥ १५६ मिळ चवथी पंचमी, जिकां अंत गुरु जांण । अनुप्रासकी आठ तुक, मिळे अंत लघुमांण ॥ १५७ कुटबंध तिण गीतनै, कहै सरब कवियांण । राघव जस जिण मझ रटै, वळ सतारथ वांण ॥ १५८ १५३. बेढ - लड़ाई । बखौ - कष्ट, दुःख । ऊंबर (उम्र) - श्रायु । श्राळजंजाळ - व्यर्थका प्रपंच । विसार-भूल जा । सांन - बुद्धि । विमास - विचार कर । विसास- विश्वास । कारुणचौ निध करुरणाका खजाना। जांनुकीकतह - जानकीका पति, श्री रामचंद्र | स्यांमस्वामी । घण- बहुत । नच्यंतह - निश्चित । श्रखबे - कह रे । श्रक्ख - कह | अनंतहविष्णु, श्री रामचंद्र । १५४. चवदह-चौदह । दुती - दूसरी । मत मात्रा । छाईस - छब्बीस । कहीस - कह, कही जाती है । १५५. कंठ - अनुप्रास | चवद-चौदह | १५७. चवथी - चौथी | लघुमांण-लघु । १५८. कवियांण- कविजन । राघव- श्री रामचन्द्र भगवान । मझ-मध्य । वळं-फिर । सतारथ (सत्यार्थ ) - सत्य । वांण-वाणी, वचन । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजस प्रकास अस्थ कुबंध गीतरै पै' ली तुक मात्रा चवदै । दूजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा छाईस । पै'ली दूजीसूं मिळ तुकंत गुरु । तीजी सारा ही दूहांरी अंतरी तुक मिळं । तीजी ने अंतरी अंत लघु । विचली अनुप्रासांरी तुक प्राठ, ज्यां में पैलोरी तुक तो मात्रा सोळं और सात ही तुकां प्रत मात्रा चवदै चवदै होय । अनुप्रासरी आठ ही तुकांरा मोहरा मिळ नै तुकंत लघु होय । यण प्रकार गीत कुबंध कही । श्रनुप्रासांरी तुक ग्राठ ज्यांमेंसूं च्यार घटती कहै जींने मुगटही अतरौ त्रकुटबंध मुकटबंधरै भेद छै । वजू दोनूंई एक छै, कांई तफावद नहीं । अथ गीत त्रकुटबंध उदाहरण गीत अवधेस लंका ऊपरै, धर कुरख धंखा जुध धरै । अट्ठार पदम कपेस घट, मेळ दळ महराज ॥ गत विसर त्रंबक गड़गड़ै । भारथ कपी र भड़े । [ २४६ भड़ अनड़ बडबड मुड़ जुध भड़ । दुजड़ पड़ झड़ बड़ड़ खित झड़ । दड़ड़ रत पड़ भ्रगुट दडदड़ । चड़ड़ ऊघड़ प्रगड चख म्रड | खड़ड़ नरहड खपर खड़खड़ । १५८. चवद - चौदह । बिचली-बीच में, मध्यकी । ज्यांमें- जिनमें । यण- इस । तफावत, तफावद - फर्क, अन्तर । १५६. कुरख - कोप | धंखा-इच्छा । पदम - गणित में सोलहवें स्थानकी संख्या । कपेस- बानर । घट-अपार । गत प्रकार, तरह। विसर - भयंकर, भयावह । त्रंबक -नगाड़ा | गड़गड़े-बजते हैं । भारथ-युद्ध । कपी-वानर । श्रसुर-राक्षस । भिड़े युद्ध करते हैं । भड़-योद्धा । श्ननड़-स्वतंत्र । बडबड-बड़े-बड़े । श्रमड़ नहीं मुड़ने वाले । दुजड़तलवार | झड़- प्रहार । बड़ड़-ध्वनि विशेष । खित- पृथ्वी । झड़-कट कर । दड़ड़द्रव पदार्थका तेज प्रवाह या ध्वनि । रत- रक्त, खून। भ्रगुट - शिर । हड़दड़-ध्वनि विशेष | खड़ड़-ध्वनि विशेष । खड़खड़-ध्वनि विशेष । Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० । रघुवरजसप्रकास हड़ड़ नारद बीर हड़हड़। धड़ड़ आतस सिखर धड़हड़। गहड़ बिखम बंक गड़गड, गडड़ धर नभ गाज ॥ पड़ मार तरवर पाथरां, रिण विकट कपी रघुनाथरां । दससीस दळ भुजबळां, द्रहवट कीध अडर सकोप ॥ नभ खंचरथ अवनाड़रा। खिलकत कौतूक राड़रा। दळ प्रबळ चौवळ कळळ दमंगळ । भळळ बीजळ सेल भळहळ । अहप सिर लळ अचळ चळ यळ । वाज हंकळ कळळ वळवळ । खळळ चळवळ सरित खळहळ । समळ पळगळ लीध सांमिळ । मिळ कमळ स्रगनेत मंगळ । जुध वयळ कुळ नमळ चढ जळ, अचळ राघव ओप ॥ धख हणू भुजब्रद धारखा, सूग्रीव अंगद सारखा । नळ नील दध-मुख पणस नाहर, बिहद जंबूवांन ॥ १५६. हडड-हंसनेकी ध्वनि । हडहड़-हंसने की ध्वनि । धडड-तोपोंकी ध्वनि । बिखम विषम । गड़गड़-नगारेकी ध्वनि, नगाड़ा बजना। गडड-ध्वनि विशेष । नभआकाश । तरवर-वृक्ष । पाथरां-पत्थरों। रिण-युद्ध । विकट-भयंकर । दससीसरावण । दळ-सेना । भजबळां-भजाबलसे । द्रहवट-ध्वंश, नाश । प्रवनाडरा-सर्यका। राड़रा-युद्धका । चौवळ-चारों ओर । कळळ-कोलाहल । दमंगळ-युद्ध । भळळ-चमक, दमक । बीजळ-तलवार । सेल-भाला। भळहळ-चमक, दमक । अहप-शेषनाग । लळ-झुक जाते हैं, झुक गये । अचळ-पर्वत । चळ-चलायमान । यळ (यला)-पृथ्वी। वाज-घोड़ा। हुंकळ-घोड़ोंकी हिनहिनाहटकी ध्वनि । कळळ-कोलाहल । वळवळचारों ओर । खळळ-द्रव पदार्थके बहनेकी ध्वनि । चळवळ-रक्त, खून । सरित-नदी। खळहळ-बहने लगी । समळ-मांसाहारी पक्षी विशेष । पळ-मांस । गळ-पिंड, कौर । वयळ-सूर्य। नमळ-निर्मल । जळ-कांति, दीप्ति । अचळ-अटल । प्रोप-कांति । हणू-हनुमान । सारखा-समान । जंबूवान-जामवन्त । Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २५१ जग वय मयंद गवाखसा । लड़ हेक भंजण लाखसा । इर अतर लसकर समर ओर । सधर धण सुर कंवर दससिर । सुकर धर सर बजर ससतर । गहर हर वह पथर तर गिर । वहर सिर कर देह वाखर । पहर चौसर सुवर अपछर । सधर रघुबर दुछर वह सर । असुर दससिर दुसर छिद उर, मछर भज अमांन ॥ क्रोधाळ लिछमण कामरौं, रिण लडै बंधव रामरौ । तिण मेघनाद विभाड़ ताखै, पाड़ असहां पूज ॥ कुंभेण दससिर क्रांमती। पह भंज हेकल रघुपती। रिण कुंभ सुरघण मार रावण । कठण खळ जण कीध कणकण । विभीखण जग चरण वासण । सरणहित तिण लंक समपण । ऊछव घण सिय तरण आणण । प्रसण हण मन महण द्रढ पण । १५६. चौसर-पुष्पहार । अपछर-अप्सरा ! दछर-वीर। मछर-गर्व। क्रोधाळ-क्रुद्ध । लिछमण-लक्ष्मण । बंधव-भाई। विभाड़-संहार कर, मार कर। ताखै-वीर । असहां-शत्रुओं। पूज-समूह । पह (प्रभु)-योद्धा, राजा। कणकण-तितर-बितर । ऊछव-उमंग । घण-बहुत। सिय-सीता। प्रांणण (आनन)-मुख । प्रसण-शत्रु । महण (महारर्णव)-समुद्र । Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] रघुवरजसप्रकास सयण हुलसण दुयण सकुचण । ग्रहण मोखण धरण सुरगण । जपण कविजण सुजस जणजण, जैत रांम अंगज ॥ १५६ अथ गीत दुतीय त्रकुटबंध चौपई जांण उभय तुक भंवर गुंजार, सोळह प्रथम चवद बी सार । ती चवदह दस गुरु लघुवंत, यण मुहमेळ चवदमी अंत ॥१६० चवद मत तुक दोय चवंत, रटजै मूहमेळ रगणंत । अनुप्रासरी तुक रच आठ, पढ धुर सोळह चवद अन पाठ ॥१६१ प्रत तुक कंठ च्यार प्रमाण, उभै कंठ घट तुक यां आंण । तुक आलूं ही होय लघृत, नवमी दस मत गुरु लघु अंत ॥१६२ दूहा श्रेक प्रत यम तुक होय, साखै बियौ वृकुटबंध सोय ॥१६३ अथ दुतीय गीत त्रकुटबंध उदाहरण गीत जांनकी नायक जगत जाहर, वीर संतां करण वाहर । वहत कथ सुज वेद दुजबर, धनौ करुणाधांम ॥ १५६. सयण-सज्जन । हुलसण-हर्ष, प्रसन्नता। दुयण (दुर्जन)- शत्र, दुष्ट । मोखण छोड़ना। सुरगण-देवता । जपण-जपने को। कविजण-कविजन। जणजण-प्रत्येक व्यक्ति। जैत-विजय । अगंज-जो जीता न जा सके। १६०. उभय-दोनों। चवद-चौदह । बी-दूसरी। ती-तीसरी । लघुवंत-जिसके अन्तमें लघु हो । यण-इस । मुहमेळ, मूहमेळ-तुकबंदी । चवदमी-चौदहवीं । १६१. चवंत-कहते हैं। रगणंत-जिसके अंतमें रगण हो। अन-अन्य । १६२. कंठ-प्रनुप्रास । लघुत-जिसके अंतमें लघु हो। १६३. प्रत–प्रति । यम-इस प्रकार । साखं-कहते हैं, साक्षी देते हैं। बियौ-दूसरा । सोय-वह । १६४. वाहर-रक्षा । वहत-चलता है। कथ-आज्ञा । दुजबर-ब्राह्मण । धनौ-धन्य-धन्य। करुणाधांम-करुणासागर । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास यभ दास तारण‍ वास 1 पोह छंड कमाळा पासतै । सुरतुर गिर कर स्रवण स्त्रीवर । तळप परहर अतुर चढ तुर । चकरघर मग सघर संचर । सिथळ पर घर जांण ईसर । छांड नगधर धरण दूछर । मकर यर सर चकर मोखर । फंद हर पग सथर कर फिर । वळ सुकर गह सुकर रघुबर, तार सिंधुर तांम ॥ १६४ अरथ ईं प्रकारसूं च्यार ही दूहां दूसरी त्रकुटबंध जांणज्यौ । । २५३ अथ गीत सुपंखरौ वरण छंद लछण दूहौ धुर तुक अखर ठार घर, चवद सोळ चवदेख | सोळ चवद क्रम अंत लघु, जपै सुपंखरौ जेण ॥ १६५ अरथ चवदै होय । तीजी सुपंखरौ गोत वरण छंद तिरपरै मात्रा गिणती नहीं । अखिर गिणती होय । जीरे पहली तुकरा प्रखर अठारै होय । दूजी तुक प्रखर तुक प्रखर सो होय । चौथी तुक प्राखर चवर्द होय । पाछला दूहांरी पै'ली तुक हर तीजी तुक प्राखर सोळ होय । दूजी, चौथी तुक प्राखर चवदै होय । तुकांत लघु होय । जीं गीतनै सुपंखरी कहीजै । १६४. यभ (इभ) - हाथी । दास-भक्त । वासतै लिए । पोह- प्रभू । छंड छोड़ कर । कमळालक्ष्मी | पास-पास से तळप ( तल्प ) - शय्या, पलंग । परहर छोड़ कर । चकरधरविष्णु | मग - मार्ग । सधर- सधैर्यं । संचर - गमन । सिथळ-मंद। जांण-समझ कर, जान कर । छांड-छोड़ कर । नगधर - गरुड़ । दूछर-वीर । मकर-ग्राह । यर-शत्र ु । चकर-चक्र | मोख' र छोड़ कर । फंद - बंधन, जाल । हर - मिटा कर । सथरस्थिर, अटल | वळ-फिर । सुकर - हाथ । गह पकड़ कर सिंधुर - हाथी, गज । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ । रघुबरजसप्रकास अथ गीत सुखरौ उदाहरण गीत पैंडां नीतरा चलाक धू छ-च्यार भंज पलीतरा । सूर धीर चीतरा अछेह अोप संस ॥ धीतरा कीतरा रिखी सुकंठ मीतरा धनौ । वाहरू सीतरा रांम अदीतरा वंस ॥ वंदनीक पायरा गायरा दुजां विसावीस । आसुरां भंजणा आडे घायरा अमाव ॥ अडोळ पायरा सीह सुभायरा आसतीक । सिहायरा जनां औधरायरा सुजाव ॥ खेस जंद द्वंद राम दंधरा सिंघार खरा । दहै बाळरा स्रीनंदरा भांण दात ॥ दासरथी सिधरा अबंधरा बंधरा देण । __ पंच दूण कंधरा कबंधरा निपात ॥ हणू जिसा किंकरा पधोर के वंकरा हल्लां । जूधां जीत अनंकरा रोड़णा जोधार ॥ १६६. पैंडा-कदमों। नीतरा-नीतिके । चलाक-चलने वाला। धू-शिर । छ-च्यार-दस । पलीतरा-असुरके । अछेह-अपार । रिखी-ऋषि । सुकंठ-सुग्रीव । मीतरामित्रके। धनौ-धन्य । वाहरू-रक्षक । सीतरा-सीताके । अदीतरा-सूर्यके । वंदनीक-वंदनीय । पायरा-चरणोंके । दुजां-ब्राह्मणों। विसावीस-पूर्ण । प्रासुरांराक्षसों। भंजण-संहार करने वाला। प्राडे-विरद्ध। घायरा-प्रहारका | प्रमापअपार । अडोल-दृढ़, अटल । पायरा-चरणका । सीह-सिंह । सुभायरा-स्वभावका । प्रासतीक-समर्थ, शक्तिशाली, आस्तिक । सिहायरा-सहायताके । जनां-भक्तों। औधरायरा-राजा दशरथके । सुजाव-पुत्र । खेस-असुर । जंद-असुर । द्वंद-युद्ध । सिंघारविध्वंश । दासरथी-श्री रामचन्द्र । सिंधरा-समुद्र । प्रबंध-बंधनरहित । बंधराबंधनका । देण-देने वाला। हणूं-हनुमान । जिसा-जैसा। किंकरा-सेवक । पधोरसीधा करने वाला । वंक-वक्र । अनंकरा-नगाड़ाके। रोडणा-बजाने वाला। जोधारयोद्धा, वीर। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २५५ रोळे लेण लंकरा निसंकरा विभाड़ राम । हाथां झोक रंकरा लंकरा देणहार ॥ १६६ अथ गीत हेकलवयण तथा मात्रारहित हंसगमण लछण धुर अठार उगणीस मत, दस सोळ बदसेण । दु लघु अंत सांणौर लघु, जपै खुड़द कवि जेण ॥ १६७ जिण छोटा सांणोरमें, गुरु अखिर नह होय । सरब लघु सोळह तुकां, हेकल वयण स कोय ॥ १६८ प्ररथ खुड़द लघु सांणोर तथा वेलिया सांणोर गीतरी सोळ ही तुकांमें गुरु अखिर अंक ही न होय । सोळ ही तुकांमें सरब लघु अखिर होय, जी गीतरौ नाम हेकलवयण कहीजै तथा मात्रारहित कहीजै। कठे'क दवाळा एकरा तुकांत प्रत गुरु श्रेक होय । इणनै धणकंठ सांणोर पिण कहीजै । अथ गीत हेकलवयण उदाहरण गीत जग जनक धनक हर हरण करण जय । चत नरमळ नहचळ चरण ॥ अकरण करण समरण अघ अणघट । सक रघुबर असरण सरण ॥ ललवर सधर अमर नर रख लज। महपत समरत हरत मळ ।। १६६. रोळे-युद्ध में । विभाड़-वीर । झोक-धन्य । रंकरा-गरीबका । देणहार-देने वाला। १६७. उगणीस-उन्नीस । मत-मात्रा। दस-तेरह । १६८. सोळ-सोलह । दसेण-तेरहसे । दु-दो। जेण-जिसको। अखिर-अक्षर । सकोय वह । कठे'क-कहीं पर । पिण-भी। १६६. जनक-पिता । धनक-धनुष । हर-महादेव । हरण-तोड़ने वाला। चत-चित्त । नरमळ-निर्मल । नहचळ-निश्चल, अटल । अघ-पाप । अणघट-अपार, नहीं मिटने वाला। लछ (लक्ष्मीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। सधर-दृढ़ । लज-लज्जा । महपत (महिपति)-राजा। समरत-स्मरण करते हैं । मळ-पाप, मैल । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५.६ ] रघुवरजसप्रकास छजत बयण पय सरस मयण छब । कमळ नयण रव तरण कळ ॥ सकर धनख सरस रस सदन सख । नरख बदन जग भय नसत ॥ तन मन बय सम स जन सहज तूय । लछण भरथ अरिघण लसत ॥ तन घण बरण धरण दसरथ तण । सदय समन गरवत सहज ॥ तज तज अवर 'कसन' कव नत-प्रत । धर मन नहचळ गरड़-धज ॥ १६६ . अथ गीत भुजंगी लछण बारा अखिर तुक श्रेक प्रत, यगण चार गुरु अंत । गीत भुजंगी तास गण, वरण छंद बुधवंत ॥ १७० प्ररथ जा गीतरै तुक अक प्रत च्यार यगण होय । अंत गुरु होय, वरण छंद छ । मात्रा गिणती नहीं । जिण गीतनै भुजंगी कहै छै । अथ गीत भुजंगो उदाहरण गीत महाराज औधेस आधार संतां, वार खारी रखै लाज बेखौ । हरी काज पै आसरा दीह हेके, लछीनाथ दी सेवगां लंक लेखौ॥ १६६. छजत-शोभा देता है। बयण-वचन । मयण-कामदेव । छब-कांति, दीप्ति । रव-सूर्य । तरण-तरुण । धनख-धनुष । सदन-घर । नरख-देख कर । बदन-मुख । नसत-नाश होता है। लछण-लक्ष्मण । अरिघण-शत्र घ्न । लसत-शोभा देते हैं। घण-बादल । धरण-धारण करने वाला । तण (तनय)-पुत्र । नत-प्रत-सदैव । नहचळ-निश्चल । गरड़-धज-गरुड़ध्वज, विष्णु। १७०. बारा-बारह । तास-उस । गण-समझ। बुधवंत-बुद्धिमान। गिणती-गिनती, संख्या। १७१. प्रौधेस (अवधेश)-दशरथ, श्री रामचन्द्र । खारी-भयंकर । बेखौ-देखो। लछीनाथ (लक्ष्मीनाथ)-विष्णु। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २५७ तवै भू अहल्या गणका तिराई, रटां बोर भीलीतणा खाय रीधौ । सरां ताड़का मार ऊधार समिी, करां ग्रीधवाळौ वळे साध कीधौ ॥ रदा सिंभ वांमे सदा अकरंगी, गवै जास पंगी नरां बेद गाथां । तनां खीणहूंतो मुणै भ्रात तोनूं , हणे बाळ सुग्रीव दे राज हाथां ॥ कसौ जोड़ भूमंड तै ओर कीजै, भुजाडंड मोटा ब्रदां जोग भाळौ । अठुजांम जीहां 'किसनेस' आखै, वडौ आसरौरांम पै कंज वाळौ ॥१७१ अथ गीत वडी सांणोर अहरणखेड़ी लछण तेवीसह मत पहली तुक, बी अठार ती बीस । चौथी तुक अठार चव, लघु तुक अंत लहीस ॥ १७२ वडा जेण सांणोर बिच, पवरग ऊ न पयंप । अहरणखेड़ी नाम उण, जस राघव मझ जंप ॥ १७३ प्ररथ पैली तुक मात्रा तेवीस । दूजी तुक मात्रा अठारै । तीजी तुक मात्रा बीस । चौथी तुक मात्रा अठारै होय सौ गीत बडौ साणोर कहावै । अंत लघु होय । जी बडा सांणोरमें पवरगरा पांच आखर प फ ब भ म अर ऊ व, श्रे सात पाखर सारा गीत में न होय अर गीत पढतां होठ मिळे नहीं, जी गीतरौ नाम अहरणखेड़ी कहीजै । अहर-होठ न खेड़ी कहतां खड़े नहीं, हालै नहीं यौ अरथ छ । १७१. तव-स्तुति करते हैं । भू-संसार । भीली-भिल्लनी । वळे-फिर । कीधौ-किया। रदा हृदय । सिंभ-शंभू, शिव । गदै-गाया जाता है। जास-जिसका। पंगी-कीति, यश । मुणे-कहता है । तोनू-तुझको । बाळ-बालि वानर । कसौ-कौनसा । जोड़-बराबर, समान । भमंड-भुमंडल । भजाउंड-शक्तिशाली, समर्थ । जोग-योग्य । भाळी-देखो। अळूजांम-अष्टयाम । जीहा-जीभ । प्राख-कहता है। प्रासरौ-सहारा । पै-चरण । कंज-कमल । १७२. मत-मात्रा। बी-दूसरी। ती-तीसरी। चव-कह । लहीस-लेगा। १७३. पयंप-कह । मझ-मध्य । जंप-कह । सौ-वह । यौ-यह। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत ग्रहरण (न) खेड़ी उदाहरण गीत करां धाड़ लागै रघौराज दत कीजतां । सरसतां रीझतां संत सुख साज ॥ लीजतां नखत्र-डर सरण हेकरण लहर । रीझतां दियौ लंका जिसौ राज ॥ सर धनंख धरण कर दहण दैतां सधर । दुख नरक त्रास हरण जनां जगदीस ॥ हरख रिण इंद्रतण नास कीधौ हठी । अरकतण कियौं केकंध गढ ईस ॥ तिकां सिर दया रुख होय हरि तौ तणी । किणी दिन न लागै जिकां आतंक || घणाघण छटा तन कति धरियां घणी । सह जनां संकट हरण धणी निरसंक | चरण असरण सरण है चतुर । होनिस संत जण करण आणंद || दूणदसहाथ हण गाथ राखण दूनी । नाथ 'किसनेस' कौसळतणा नंद ॥ १७४ १७४. करां-हाथों । धाड़ - धन्य । रधौराज-श्री रामचन्द्र । नखत्र-डर दहण-नाश । जिसौ- जैसा । हरख - हर्ष रिण - युद्ध | ( नखत्र - भै + डर - भीखण - भभीखरण ) - विभीषरण : सधर- दृढ़ । त्रास-भय, आतंक | जनां-भक्तों । इंद्रण ( इन्द्रतनय ) - बालि वानर । कीधौ किया। हठी हठ करने वाला, जिद्दी । अरकतण ( अतनय ) - सुग्रीव । कियौ - किया । केकंध - किष्किंधा। ईस-राजा तिकांउन, जिन । रुख - इच्छा । तौ तणी-तेरी । किणी-किसी । प्रातंक - डर, भय । घणाघण- बादल । छटा-कांति, दीप्ति, विजली । ऋत - कांति, दीप्ति । धरियांधारण किये हुए । घणी - बहुत । धणी - स्वामी। निरसंक- निशंक, निर्भय । श्रांणणचतुर ( चतुरानन) - ब्रह्मा । दूणदसहाथ - रावण । हण मार कर । गाथ- कीर्ति, यश । दुनी - दुनियां, संसार । नंद-पुत्र । दत-दान । | Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २५६ अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ लछण दूहा धुर तुक मत चौवीस धर, वळ दूजी अकवीस । ती चौवीसह चतुरथी, कळ अकवीस कवीस ॥ १७५ दख यम मता चव दूहां, अंत लघू तुक ओक । सोळ चवद अखिर सुक्रम, कह विडकंठ विमेक ॥ १७६ प्ररथ पै'ली तुक मात्रा चौवीस होय । दूजी तुक मात्रा अकवीस होय । तीजी तुक मात्रा चौवीस होय । चौथी तुक मात्रा अकवीस होय । यण क्रमसू च्यार ही दूहां मात्रा होय । अंत तुकरै अंक लघु होय । इण लेखे तौ विडकंठ गीत मात्रा छंद छै नै पै'ली तुक पाखर सोळे । दूजी तुक पाखर चवदै। तीजी तुक आखर सोळ अर चौथी तुक आखर चवदै होय । यो क्रम च्यार ही दवाळां होय । आखर गिणतीके लेखे विडकंठ वरणछंद छै । इण प्रकार विडकंठ गीत कहीजै । गणांको क्रम गीतको तुकांसू देख लीज्यौ। लछणका दूहा घणा होय जिणसूं न कह्या छै। कोई इण गीतरौ नाम वीरकंठ पिण कहै छै । अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ उदाहरण गीत जै नरेस राघवेस आसुरेस जुधां जेस । के कवेस देस देस कीरती कहंत ॥ स्त्रीधराज राख लाज कीध काज संत साज । हेल सिंध रूप इंद विरदां वहंत ॥ १७५. वळ-फिर । अकवीस-इक्कीस । ती-तीसरी। चतुरथी (चतुर्थी)-चौथी। कळ मात्रा। कवीस-महाकवि, कवि । १७६. दख-कह । यम-ऐसे। चव-चार । सोळ-सोलह । चवद-चौदह । अखिर-अक्षर । विमेक-विवेक । यौ-यह । १७७. जै-जय । नरेस-राजा । राघवेस-श्री रामचन्द्र भगवान । प्रासुरेस-राक्षस, रावण । के-कई। कवेस (कवीस)-महाकवि । कीरती (कीर्ति)-यश। कहंत-कहते हैं। स्त्रीधराज-श्री विष्ण, श्री रामचन्द्र। कीध-किया। हेल-लहर । सिंध-समुद्र । इंदइन्द्र । बिरदां-बिरुदों। वहंत-धारण करते हैं। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] रघुवरजसप्रकास साज पांण चाप बांण खळां खांण घमंसांण । सुरांरांण भुजांपांण जै कियौ असंक ॥ ताप खाय दितांराय बंद आय पाय तास । लखै रंक ही अवंक मेट दीध लंक ॥ अोप अंग स्यांम रंगते सुचंग जै अन । पीतरंग नी सारंग भंग कौड़ पाप ॥ सूरवीर जनां भीर गज्जगीर पै सधीर । जळे पाप अणमाप जेण नाम जाप ॥ दुनी पाळ इंद्र ढाल बिरदाळ जै दयाळ । गुणी साथ सांमराथ रटै क्रीत गाथ ॥ नांम जेस करे खेस पटै सेस ‘किसनेस' । निराधार ज्यां अधार निमौ औधनाथ ॥ १७७ अथ गीत अट्ठा लछण छंद अरध नाराजरी, चौ तुक दूहां सचीत । लघु गुरु क्रम तुक बरण अठ, गिण तिण अट्ठौ गीत ॥ १७८ प्ररथ वरण छंद छै अठौ गीत । जिणमें अरधनाराच छंदरी तुक च्यारसू श्रेक दूही होय। पै'ली लघु पछै गुरु, इण क्रमसूं तुक अंक प्रत आखर पाठ होय । जिणरै च्यार ही तुकारौ तुकांत अक होय । सावझड़ी होय, जिणनै अट्ठौ गीत कहीजै । १७७. साज-धारण कर सज कर । पाण-हाथ । चाप-धनुष । खळां-राक्षसों। खांण-नाश कर, नाश करनेको, नाश करने वाला। घमंसाण-युद्ध । सुरांरांण-इन्द्र। भुजांपांणभजाके प्रभावसे । जे-जिस । असक-निर्भय । ताप-भय, आतंक । दितांराय-दैत्यराज। पाय-चरण । तास-उसके। दीध-दी, दिया। पीतरंग-पीला रंग । जनांभक्तों । भीर-मदद, सहायता । गज्जगीर-युद्ध । पै-चरण । सधीर-धैर्य-युक्त, अटल । अणमाप-अपार, असीम । जेण-जिस । दुनी-संसार । पाळ-पालक । ढाल-रक्षक । बिरदाळ-विरुदधारी। गणी-कवि। साथ-समूह । सामराथ-समर्थ । औधनाथ श्रीरामचन्द्र भगवान । १७८. चौ-चार । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ गीत द्वौ वरण छंद उदाहरण गीत तवं विरूद तास रे । अभंग रांम आस रे ॥ प्रसिद्ध सिंध पाज रे । रहूं अधार राज रे ॥ पटैत रूप पांगरा, खळां भराथ खांणरा । सुखी रहूं सुजांगरा, भरोस वंस भांगरा ॥ जनां निबाह लाज रे, प्रसन्न दास प्रीतरा, बियार जुधां दयंत जीतरा, सरंम दुखै 'किसन्नदास' रे, सदा वसां हुलास रे, सुकीरती समाज रे, अत्थबीतरा । नाथसीतरा ॥ १७६ अथ गीत दूणौ अट्ठौ वरण छंद लछण दूहौ छंद धनाराचरी, चौ तुक हेक दवाळ | वरण छंद सौ गीत वद, दूणौठौ दिखाळ ॥ १८० अरथ ब्रधनाराचरी च्यार तुकांरी ग्रेक दवाळौ होय सौ सावझड़ो गीत दूणौ प्रठौ कहावै । लघु गुरु ईं क्रमसूं तुक प्रेक प्रत अखिर सोळह होय । इण प्रकार सोळं ही तुकां होय सौ दूणौ अट्ठी गीत तुकंत गुरु वरण छंद छै । अथ गीत दूणी अट्ठी सावझड़ौ उदाहरण गीत विभाड़ पंचदूमाथ आथ देण मकार ध्यान कंज सौ वसै रदा | २६१ वेस रे I महेसरे ॥ तास-तेरे । हुलास - आनन्द, 1 सिंध - समुद्र । पाज-सेतु, पटैत- वीर, योद्धा । पांणरा १७६. देखे - कहता है । तबूं-स्तुति करता हूँ, वर्णन करता हूँ । हर्ष । प्रभंग नहीं भागने वाला, वीर । श्रासरे - आश्रय में पुल । निबाह - निभाने वाला । राजरे - श्रीमानके, आपके । शक्तिका । भराथ-युद्ध | खांणरा-ध्वंश करने वाला, नाश करने वाला । भरोसविश्वास, भरोसा | भांग - सूर्य । दयंत- देने वाला अथवा दैत्य । नाथसोतरा - सीतानाथके । १५०. दवाळ - गीत छंढके चार चरणोंका समूह । दिखाळ - दिखला दे, दिखला । १८१. विभाड़ - ध्वंश कर, संहार कर । पंचदूणमाथ - रावण । श्राथ-धन, द्रव्य । मकारमध्य । कंज - ब्रह्मा । रदा - हृदय । महेसरे - महादेवके । Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] रघुवरजसप्रकास सदा नमंत औधराय पाय धू सुरेस रे । वदां नरेस न कूरण जोड़ राघवेस रे || निबाह सीतनाथ वाह संतचा अमोघ बाण चाप पण वांग जे जुधां निपात सांमराथ लंकनाथ जेहड़ा । कहां नरिंद दासरथनंद जोट केहड़ा | अपार तेज अंगधार धार तेज आकती । पै अमाप पाप ताप नांम जाप कांमती ॥ जुधां जयंत सेवमें रहै अनंत साजती । भणा किसौ समांन ांन कौसळ स भूपती ॥ महामदंध सुरां सुरंद चाड मारणा । त्रिलोकनाथ गोह ग्राह ग्रीध बाद तारणा ॥ 'किसन्न' पात व्है दयाळ पाळ सिध कारणा | धनौ नरेस राघवेस चीत नीत धारणा ॥ १८१ अथ भांण गीत मात्रा वरण प्रमाण लछण दूहा धुर बीजी मत बार धर, वद तीजी बावीस | बारह चौथी पंचमी, वळ छठी बावीस ॥ १८२ १८१. श्रीधराय - श्री रामचन्द्र भगवान । पाय - चरण । धू - शिर, ध्रुव । सुरेस - इन्द्र । वदां -कहे । नरेस-राजा । श्रांत-प्रन्य । कूरण-कौन । जोड़-बराबर, समान । राघवेसश्री रामचन्द्र भगवान । नेहड़ा - स्नेह । श्रमोघ- नहीं चूकने वाला अव्यर्थ, अचूक | निपात- गिराना । सांमराथ- समर्थ । लंकनाथ-रावरण । जेहड़ा - जैसा । नरिदराजा । दासरथ्थ - राजा दशरथ । नंद-पुत्र । जोट जोड़ी । केहड़ा - कैसा । कपकाटते हैं । श्रमाप- अपार । ताप - श्रातंक, भय । जयंत- जीतना । सेवमें सेवामें । अनंत - लक्ष्मण । जती - जितेन्द्रिय, यती । किसौ-कौनसा । श्रनि श्रन्य । श्रासुरां - राक्षसों । सुरंद-इन्द्र । चाड - पुकार मारणा-मारने वाला । गोह-गुह नामक निषाधराज । श्राद-आदि । ताररणा - तारने वाला । पात - कवि । पाळ-रक्षा | सिंधसिंधुर, गज । कारण- कारण, करने वाला धनौ- धन्य । चीत-चित्त । नीत-नीति । धाररणा - धारण करने वाला । १८२. धुर - प्रथम । बीजी- दूसरी । मत - मात्रा । बार-बारह । वद कह | वळ - फिर । नेहड़ा । छेहड़ा | Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २६३ पहली दूजीसूं मिळ, तीजी छठी समेळ । मिळ चवथी पंचमी, भल तुकंत लघु भेळ ॥ १८३ आठ वरण धुर दूसरी, तीजी पनर तुकंत । पुण ठ चौथी पंचमी, छठी पनर छजंत ॥ १८४ विध इण मत्ता वरणरौ, परगट जांण प्रमांण । भांग - गीत जिण नांम भल, भणजस रघुकुळ भांग ॥ १८५ अरथ पै' ली तुक मात्रा बारे । दूजी तुक मात्रा बारे । तीजी तुक मात्रा बावीस | चौथी तुक मात्रा बारै। पांचमी तक मात्रा बारे । छठी तुक मात्रा बावीस होय । तुकांत लघु हो । पै'ली दूजी तुक मिळं । तीजी छठी तुक मिळं । चौथी पांचमी तुक मिळे अथवा च्यार तुक कीजै तौ पैली तुक मात्रा चौबीस । तुक दूजी मात्रा बावीस । तुक तीजी मात्रा चौबीस । तुक चौथी मात्रा बावीस । यूं तौ भांण गीत मात्रा छंद होय । प्रखर गिणती कीजै तौ तुक पैली दूजीरा श्राखर आठ होय । तीजी छठीरा प्राखर पनरै पनरै होय । चौथी पांचमीरा श्राखर आठ होय तथा च्यार तुकां कीजै तौ पैली तीजी तुकरा ग्राखर सोळं होय । दूजी चौथी तुकरा प्रखर पनरै पनरै होय ! तुकांत लघु । ईं तरै भांण गीत वरण छंद होय | अथ भांग गीत उदाहरण गीत नरेस रांम नं मळां, उरां सभाव ऊजळा । अस भंज दवां, करेस देव काज ॥ सपांणचाप सायकं, घड़ा रेस घायकं । चवंत सिद्ध चारणं, प्रसिद्ध सिंघ पाज ॥ १८३. चवथ्यो - चतुर्थ, चौथी । भल-ठीक । १८४. पुरण - कह । श्रठ-ग्राठ। पनर-पनरह । छजंत-शोभा देता है । १८५. विध प्रकार, तरह। मत्ता - मात्रिक भरण- कह । बार - बारह । यूं- ऐसे । श्रखरअक्षर । इं- इस । तरै-तरह । १८६. नू मळां-निर्मल । उरां-उर, हृदय । ऊजळा-उज्ज्वल । श्ररेस - शत्रु । सपणचापहाथमें धनुष सहित । सायकं तीर । घड़ा-सेना | घायक- संहार करने वाला । चवंतकहते हैं। सिंध - समुद्र । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] . रघुवरजसप्रकास गरब सत्रां गंजणा, रमा सुचित रंजणा । भुजां सजोर भंजणा, चढाय सिंभ चाप ॥ गळे दुजेस गावरा, सधीर जे सभावरा । अभंग हेम अद्रसा, अडोळ नंग आप ॥ अनेक संत आसरे, वसे सहीव वासरे । प्रथीप रांम पोखणा, अमी सुदीठ अंग ॥ सधीर भ्रात सेससा, मनां रटै महेससा । खळां अनेक खेसणा, जपां अपीठ जंग ॥ दितेस सेन दाहणा, रघूस क्रीत राहणा । करी ऊधार कारणा, हरी विलंद हाथ ॥ नमे सुरेससा नगां, सधार दीन सेवगां । 'किसन' पातसूं कहै, नमौ अनाथ नाथ ॥ १८६ अथ गीत दुमेळ लछण दहौ तुक धुर तीजी सोळ मत, दोय मेळ दाखंत । दूजी चौथी मत दस, अख दुमेळ लघु अंत ।। १८७ प्ररथ धुर कहतां पै'ली तुक मात्रा सोळ होय । पै'ली दूजी तुकमें दोय मेळ प्रावै जींसू गीतरौ नाम दुमेळ कहावै। दूजी तुक मात्रा दस होय । चौथी तुक मात्रा दस होय । दूजी चौथी तुकरै तुकांत लघु होय। जिण गीतको नाम दुमेळ कहावै । १८६. गरब-गर्व, अभिमान । गंजणा-मिटाने वाला । रमा-लक्ष्मी । रंजणा-प्रसन्न करने वाला। सजोर-शक्तिशाली। भंजरणा-नाश करने वाला। सिंभ-शंभु, शिव । दुजेस-द्विजेश, महर्षि, परशूराम । सभावरा-स्वभावका । अभंग-ढ, अटल । हेम अद्रसा-हिमालय पर्वतके समान । नंग-पैर, चरण । प्रथीप-राजा । पोखरणापोषण करने वाला। अमी-अमृत । सुदीठ-सुदृष्टि । खेसरणा-नाश करने वाला। अपीठ जंग-वह जो युद्ध में अपनी पीठ शत्रको न दिखाता हो। दितेस-असुरेश, रावणादि । दाहरणा-ध्वंश करने वाला । रघूस-रघुवंश । क्रीत-कीर्ति । राहणा-रखने वाला। नगां-पैरों। सधार-रक्षक । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २६५ अथ गीत दुमेळ उदाहरण गीत भूपाळां भांमी नेक नांमी, सेव पाय सुरेस । सुज दया सिंधू दीनबंधू, अखै क्रीत अहेस ॥ बटपंच बास सत्रनासे, राज कज सुरराज । खर खेत खंडे थूर थंडे, सूर कुळ सिरताज ॥ भुजवीस भंजे गाव गंजे, स्रोण भुंजे सार । सरणा सधारे बिरदधारे, तोय पाथर तार ॥ निरबळां नेकां कोध केका, साहि हाथ सुनाथ । गुण किसन' गावै प्रसिध पावै, अमर ईजत अाथ ॥ १८८ अथ गीत उवंग सावझड़ी लछण दूही सगण सोळ मत प्रथम तुक, दो गुर अंत दिपंत । आंन चवद अख, उभै वीपसा अंत ॥ १८६ प्ररथ पैली तुकरै पाद तौ सगण नै सोळं मात्रा होय । और साराई गीतरी पनरै ही तुकां मात्रा चवदै होय । तुकांत दोय गुरु अखिर होय जिण सावझड़ा गीतनै उमंग कहीजै तथा कोई कवि उवंग पण कहै छै। चौथी तुक में दोय वीपसा आवै छै। १८८. भांमी-न्यौछावर, बलैया । सेव-सेवा करता है । पाय-चरण । सुरेस-इन्द्र । सिंधू समुद्र । अखे-कहता है, वर्णन करता है। अहेस-शेषनाग। बटपंच-पंचवटी। सत्रशत्र । नास-नाश किये । कज-लिये। सुरराज-इन्द्र। भुजवीस-रावरण । भंजेनाश किया। गाव-गर्व । गंजे-मिटाया, नाश किया। स्रोण (शोणित)-खुन, रक्त । भंजे-भक्षण किया। सार-तलवार । सरणा-शरणागत । सधारे-रक्षा की । तोयपानी । पाथर-पत्थर । कीध-किया किये। केकां-कई। गण-यश, कीर्ति । प्रसिधकीर्ति, प्रसिद्धि । प्राथ-धन, दौलत । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत उवंग सावझड़ी उदाहरण गीत जगनाथ अंतरतणौ जामी, गाहणौ खळ गुरड़ गांमी। साच वायक सिया सांमी, भुजां भांमी भुजां भांमी ॥ थूरण रिण दैतां थोका, लाज रक्खण संत लोका। रांम रिण दसमाथ रोका, करां मौका करां मौका । देण सेवग लंक दाता, घल्ल व्याध कबंध घाता। बिसू रखण क्रीत वातां, हद्द हातां हद्द हातां ॥ मीढ ना अज इस माधौ, थाह दिल नावै अथाघौ। देव दीनां कसट दाधौ, रंग राघौ रंग राघौ ॥ १६० अथ गोत अरधगोखौ सावझड़ी वरण छंद लछण दूहौ रगण जगण गुरु लघु हुवै, जिणरै तीन तुकंत । होय वीपसा चवथ तुक, अरध गोख पाखंत ॥ १६१ जिण गीतरै पैली दूजी तीजी तीनां तुकां तौ पैली गण गण । पछै जगण गण । पछै गुरु लघु । ई क्रमसू आठ अखर तीन तुकां होय । चौथी तुक पैली रगण । पछै जगण छ अखिर होय । ईं क्रमसू च्यार तुकां होय सौ अरधगोख वरण छंद सावझड़ी कहीजै नै जीके ई क्रमसू आठ तुकां होय जिणनै वधगोख कहीजै, सौ वधगोख तौ प्रागै कह्यौ ईज छै सौ देख लीज्यौ । १६०. अंतरतणौ-भीतर का, अन्दर का। जांमी-पिता । गाहणौ-नष्ट करने वाला । खळ राक्षस । वायक-वाक्य, वचन। सिया-सीता। भांगी-बलैया, न्यौछावर । थरण नाश करना, ध्वंश करना । दैतां-दैत्यों। थोका-समूह । दसमाथ-रावण । झोकाधन्य-धन्य । घातां-नाश । विसू-पृथ्वी, संसार । क्रीत-कीति । मीढ-समान, सदृश्य । अज-ब्रह्मा । ईस-शिव । माधौ-माधव । थाह-गहराई, गंभीरता। प्रथाघौ-अपार, असीम । दाधौ-जलाने वाला। रंग-धन्य-धन्य । राघौ-श्री रामचन्द्र । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २६७ अथ गीत अरधगोखौ सावझड़ो उदाहरण गीत बंद पाय राघवेस, जोध मेघनाद जेस । बंध वांमणी विसेस, सेस सेस सेस ॥ पाड़िया जुधां बिपच्छ, रांम पाय सेव रच्छ । ओर मेर रूप अच्छ, लच्छ लच्छ लच्छ ॥ सूर धीर तास संत, मांण पांण तेज मंत । दाहणौं जुधां दयंत, नंत नंत नंत ॥ चीत प्रीत क्रीत चाह, दैत राज सेस दाह । लेण रांम सेव लाह, वाह वाह वाह ॥ १६२ अथ गीत धमळ तथा रिणधमळ, सम तथा असम चरण लछण धुर तुक मत छाईस धर, छै बीजी छाईस । तीस मत तुक तीसरी, चौथी मात्र चौवीस ॥ १६३ अवर दवाळा अवर विध, नहीं मत्त निरबाह । ईसर बारठ अक्खियो, असम चरण यणराह ॥ १६४ अथ धमळ गीत अन्य विध लछण वदिया लछण अवर विध, खट तुक होय विसक्ख । चवद प्रथम दूजी चवद, अठाईस त्रिय अक्ख ॥ १६५ १६२. बंद-नमस्कार कर । पाय-चरण । राघवेस-श्री रामचन्द्र । जोध-योद्धा। मेघनाद इन्द्रजीत । जेस-जैसा। पाड़िया-मारे। बिपच्छ-विपक्षी, शत्र । दाहणौ-मारने वाला, ध्वंश करने वाला। दयंत-दैत्य । सेव-सेवा। लाह-लाभ । वाह-वाह धन्य.धन्य। १६३. धुर-प्रथम । तुक-पद्यका चरण । मत-मात्रा। छाईस-छब्बीस । छै-है। बी दूसरी । मझ-मध्य, में । दवाळा-गीत छंदके चार चरणका समूह । १६४. अवर-अन्य । निरवाह-निर्वाह। अक्खियौ-कहा। यणराह-इसके। १६५. वदिया-कहे । लछण-लक्षण । विसक्ख-विशेष । चवद-चौदह । दूजी-दूसरी । त्रिय तीसरा। अक्ख-कह । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] रघुवरजसप्रकास चवदह चौथी पांचमी, छट्ठी वीस विचार । असम चरण तौपण अवस, वद यम धमळ विचार ॥ १६६ त्रकुटबंधरी आद तुक, पांच देख परमांण । उभै तुका मिळ अंतरी, जुगत धमळ यम जांग ॥ १६७ अरथ धमळ गीतकै मात्रा वरण प्रमांण नहीं जिणसं असम चरण है । पै'लो तुक मात्रा छाईस होय । दूजी तुक मात्र छाईस होय । तीजी तुक मात्रा तीस होय । चौथो तुक मात्रा चौबीस होय । बाकी और हां ईं प्रकार तथा और ही तरै मात्रा होय पण सम मात्राको निरबाह नहीं। आगे बारठजी स्त्री ईसरदासजी ऋत गीत धमळ स्त्री परमेसर में छै सौ परण इण तरै छै जींने देख नै मैं कह्यौ छै तथा श्रौर लछण करने मात्राकौ निरूपण करां तौ परण असम चरण छै । और विध मात्रा प्रमांण करां छ । छ तुक करने सौ कवेसर देख विचार लीज्यो । गीत ररणधमळकै छ तुकां हुवै छै । पै'ली तुक मात्रा चवदै । दूजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा प्रठावीस । चौथी तुक मात्रा चवदै । पांचमी तक मात्रा चवदै | छठी तुक मात्रा चौबीस । अंत लघु तौ पिण रणधमळ असम चरण छंद छै और सुगम लछण कहां छां । गीत त्रकुटबंधरी पांच तुकां तौ प्रादरी नै दोष तुकां दूहारै अंतरी, प्रेक कंठरी नै क दूजी यां दोयांरी क तुक करणी । यां छ ही तुकांनै भेळी कर पढजै, सौही धमळ जांणणो । सोई ग्रंथ में पण त्रकुटबंध कयौ छै सौ देख लीज्यो । इति रणधमळ गीत लछण निरूपण समापत । इण गीतरौ नांम धमळ को छै । अथ गीत धमळ उदाहरण गीत तूंच सांमाथ तूं सुरनाथ रघुनाथ तूं दसमाथ रामण, रिमघात तूं रघुनाथ । भांजवा भाराथ || १६६. तो पण-तो भी । श्रवस - अवश्य । वद कह । यम- इस प्रकार | आद ( प्रादि ) - प्रथम | उभे-दो, दोनों। जुगत-युक्ति । पण- परन्तु । पण भी। निरूपण - विचार, निर्णय | कबेसर - कवीश्वर | १७. श्रठावीस - अठाईस । श्रादरी-प्रादि की। कंठ अनुप्रास । यां-इन । दोयांरी-दोनोंकी । भेळी-साथ | १६८ सांमाथ - समर्थ । सुरनाथ - देवताओंका स्वामी । रिमघात - शत्रु का विध्वंशक था संहारक | दसमाथ-दस शिर भांजवा - नाश करनेको । भाराथ-युद्ध । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अबीह तूं नरसीह ईस वा अघात हाथां व्रवण रंकां प्राथ ॥ लंकाळ सेवग तू लांगौ, भ्रात लिछमण खळां- भांगौ । पती - कुळ स्वारथो पांगौ, करण सह निकंद ॥ जांनकी नायक जंगमें, रोसेल बीरत रंगमें । बिरदैत जस रथ धमळ बँका, निमौ दसरथनंद ॥ जुध दुसह दस सिर जारणा, मह कुंभसा खळ मारणा । धनुबां धारण पांण धजबंध, जबर जोम जिहाज ॥ जटाजूट सिर बन पट झल, अंग घट रजवट ऊफळे 1 अणभंग जैतां जंग सुर, रंग कोसळराज || रख पय भभीखण रंकरा, लहरे क आपण लंकरा | काकुसथ खळदळ भसम कर, साधार - सरण सभेव ॥ निज बिरद नाथ अनाथरा, सुज धरण भुजां समायरा । कित्र 'किसन' बेग सुनाथ कीजै, दीनबंधव देव ॥१६८ " [ २६ε पै, लौह संतां नकूं लोपै । अथ गीत त्रिभंगी लछण दूहौ धुर ठार बी बार घर, ती सोळह चव बार । बि गुरु अंत सौ पूर्णियौ, सोय त्रिभंगी सार ॥ १६६ १६८. अणबीह-निर्भय, निडर । लीह-रेखा, मर्यादा । नकूं- नहीं । लोपै - उलंघन करता हूँ । व्रवण देने को देने वाला । रंकां-गरीबों । श्राथ-धन । लंकाळ -वीर, श्री रामचन्द्र भगवान | तुझ-तेरा। लांगौ-हनुमान । लिछमण - लक्ष्मण | खळां भांगौराक्षसों का नाश करने वाला । पांगौ- पंगु । असह - शत्रु । निकंद-नाश । रोसेल - जोशीला । बीरत-वीरत्व । बिरदैत- विरुद्ध धाररणकरने वाला । पण (पाणि) - हाथ । धजबंध -अपनी ध्वजा या झंडा रखने वाला वीर । जबर - जबरदस्त । जोमजोश। जिहाज - जहाज । जटजूट- जटाजूट | अघट - अपार । रजवट - क्षत्रियत्व | ऊ - उमड़ता है | आपण देने वाला । साधार-सरण - शरण में श्राए हुएकी रक्षा करने वाला । किव-कवि । बेग-शीघ्र । १६६. बी- दूसरी । बार-बारह । तो-तीन, तीसरी । चव-चार, चौथी । बि-दूसरी । सोयवह, वही । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ त्रिभंगी गीतरै पै'ली तुक मात्रा अठारै। दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा सोळे । चौथी तुक मात्रा बारै होय । पछै सारा ही दूहां पै'ली तुक मात्रा सोळ । दूजी तुक मात्रा बारै। ईं प्रमाण होय सौ गीत त्रिभंगी कहावै नै सोई पूणियौ सांणोर कहावै । नाम दोय छै । लछण दोय नहीं जींसू पूणियौ सांणोर प्रागै पहली कह दीधौ छै जींसू नहीं कह्यौ छै। कांम पड़े तो सात सांणोरां मांय देख लीज्यौ। अथ गीत सीहलोर लछण दूहो सीहलोर पिण पूणियौ, सुध लछणां सुभाय । अठ दस बारह सोळ अख, बार बि गुरु पछ पाय ॥ २०० अरथ सीहलोर पिण पूणियौ सांणोर छै । इणमें कोई भेद नहीं । पै’ली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळे । चौथी तुक मात्रा बारै । तुकांत दोय गुरु । पछला दूहां पै'ली तुक मात्रा सोळं । दूजी तुक मात्रा बारै । ई क्रम होय । त्रिभंगी सीहलोर से दोई पूणिया गीत छै। नामको भेद, लछण भेद नहीं जींसू प्रागै पूणियौ कह दीधौ छै सौ फेर नहीं कह्यौ । इति सीहलोर लछण निरूपण । अथ गीत सारसंगीत लछण दही गीत बडा सांणोर गणा, सको सार संगीत । तेवीसह अट्ठार मत, वीस अठार प्रवीत ॥ २०१ प्ररथ सार संगीत गीतनै बडौ सांणोर गीत एक छै । नाम दोय छै। लछण एक । पै'ली तुक मात्रा तेवीस । दूजी तुक मात्रा अठारै । तीजी तुक मात्रा बीस । चौथी १६६. अठारै-अठारह । बार-बारह । ई-इस । दोधौ-दिया। जींसू-जिससे । कह्यौ-कहा। २०० पिण-भी, परन्तु । अख-कह। बार-बारह । बि-दो, दूसरी। पछ-पश्चात, बाद । पाछला-पश्चातका, बादका । दीधौ-दिया। २०१. सकौ-वही, वह । अट्रार-अठारद । मत-मात्रा। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २७१ तुक मात्रा अठारै अंत लघु । सौ बडौ सांणोर सोई सारसंगीत कहावै । सौ प्रोदमें सुध सांणोर सतसर कह्यौ छ सौ देख लीज्यौ । इति गीत सारसंगीत निरूपण । अथ गीत सोहवग सांणोर लछण दूहौ धुर अठार चवदह धरौ, सोळ चवद गुरु अंत । वेखह सोई सीहवगौ, किव सांणोर कहत ॥ २०२ अरथ जिण गीतरै पै'ली तुक मात्रा अठारै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवै । तीजो तुक मात्रा सोळ होवै। चौथी तुक मात्रा चवदै अावै सौ मोहणौ सांणौर, सोई सीहवंग कहीजै। नाम भेद छै, लछण भेद नहीं । पैली सांणोर कह्यौ छै मो देख लीज्यौ । इति सीहवग गीत निरूपण । अथ गीत अहिगन सांणोर लछण धुर अठार मत्त सुधर, पनर सोळ पनरेण । . अंत लघु सौ अहिगन, जपै वेलियौ जेण ॥ २०३ अरथ गीत अहिगन नै वेलियौ सांणोर अंक छै। नांममें भेद छै, लछण में भेद नहीं । पै'ली तुक मात्रा उगणीस तथा अठार होय । दूजी तुक मात्रा पनरै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा पनरै होय। तुकांत लघु होय । पछै मात्रा सोळ , पनरै होय । ई क्रमसू होय सौ वेलियौ सांणोर, सोई अहिगन सांणोर, पै'ली अागे सांणोरांमें कह्यौ छै सो देख लीज्यौ । इति अहिगन गीत निरूपण। अथ गीत रेणखरौ लछण रटां गीत रेणखरौ, सौं जांणजै प्रहास । तिल भर भेदन तेणमें, सुध लछण सर रास ॥ २०४ २०२. सोळ-सोलह । चवद-चौदह । वेखह-देख । कहत-कहते हैं । सोई-वही । २०३. पनर-पनरह। पतरेण-पनरहसे । जेण-जिसको। सोळे-सोलह । पछै-पश्चात, बादमें । सोई-बही। २०४. तेणमें-उसमें । अगाडी-पहिले । ज्यां-जिन । हर--अर, और । सोई-वह, वही। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ ] रघुवरजसप्रकास अरथ रेणखरौ गीत नै प्रहाससांणोर दोन्यूं गीत अंक छै । नाम दोय छै । लछण एक छै । पैली तुक मात्रा तेवीस । दूजी तुक मात्रा सतरै । तीजी तुक मात्रा बीस । चौथी तुक मात्रा सतरै होय । अंत दोय गुरु पछै बीस सतरै इण क्रमसू मात्रा होवै छै । प्रागै सांणोरमें प्रहास क ह्यौ छै सो देख लीज्यौ। इति रेणखरा गीत निरूपण। अथ गीत मुड़ियल सावझड़ी लछण मुड़ियल सावझड़ी हुवै, पालवणीस दुमेळ । सावझड़ौ जयवंत सौ, सुध लछणां समेळ ॥ २०५ अरथ मुड़ियल गीत सावझड़ौ दुमेळ तथा पालवणी तथा जयवंत नाम सावझड़ी। अगाड़ी पै'ली प्रथम तीन सावझड़ा कह्या ज्यां मध्ये जयवंत सावझडौ जिणनै दुमेळ कर पढणौ। सोई पालवणी, हर सोई मुड़ियल कहावं। मात्रा प्रमाण । पैली तुक मात्रा उगणीस तथा मात्रा अठारै होय और पनर ही तुकां मात्रा सोळे सोळ री होय । तुकांत दोय गुरु अखिर आवै सौ मुडैल ( मुड़ियल ) सावझडौ तथा पालवणी दुमेळ जयवंत अंक छै । प्रागै जयवंत पालवणी कह्या छै सौ काम पड़े तो देख लीज्यौ। इति मुड़ियल गोत निरूपण। अथ गीत प्रौढ सांणोर निरूपण लछण सोरठिया हर प्रोढ मझ, भेद रती नह भाळ । सोरठियौ यण ग्रंथ मझ, दीधौ प्रथम दिखाळ ॥ २०६ - अरथ प्रोढ सांणोर हर सोरठियौ सांणोर अंक छ । यारा लछरण अंक छै । रती भेद नहीं। नाम दोय छै। मात्रा प्रमाण पै'ली तक मात्रा उगणीस तथा सोळ । बीजी तुक मात्रा दस । तीजी तुक मात्रा सोळं होय । चौथी तुक मात्रा दस होय । तुकांत लघु होय । पछै मात्रा इग्यारै, दस, सौळ दस ईं क्रमसू होय । प्रागै इण ग्रंथमें कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । इति गीत प्रोढ निरूपण । २०६. हर-अर, और । मझ-मध्य । भेद-फरक । नह-नहीं। भाळ-देख । यण-इस । दीधौ दिया। दिखाळ-दिखलाई। यारा-इनके। पछ-बादमें। ई-इस । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २७३ अथ गीत दीपक वेलियौ सांणोर लछण दूहा दीपक सोही वेलियौ, भेद अधिक तुक हेक । तीजी तुक व्है बेवड़ी, वद तुक पंच विवेक ॥ २०७ धुर उगणीस अठार धर, पनरह दुती पढंत । व्रती चवथी सोळ मत, पंच पनर पुणंत ॥ २०८ प्ररथ गीत दीपक नै गीत वेलियौ सांणोर अंक हौवै छै। यणांमें इतरौ भेद छ । वेलियासांणोररै तुक च्यार होवै छै। पै'ली तुक मात्रा अठारै तथा उगणीस होवै । दूजी तुक मात्रा पनरै हो । तीजी तुक मात्रा सोळ होवै । चौथी तुक मात्रा सोळे होवै । पांचमी तुक मात्रा पनरै होवै । इण भांत दीपकरै पांच तुकां दूहा एक प्रत होवै । दूजा दूहां मात्रा सोळे पनरै सोळ सोळ पनरै ईं प्रमाण होय । तुकांत लघु होय सौ गोत दीपक । वेलियारै च्यार तुक यौई फरक । इति दीपक लछण । अथ गीत दीपक उदाहरण गीत सुंदर तन स्यांम स्यांम वारद सम, कौटक भा रद काम सकांम । नायक सिया दासरथ नंदण, विमळ पाय सुरराजा वंदण । रीझवजै महराजा राम ॥ कमर निखंग पांण धनु सायक, सुखदायक संतां साधार । कीधां कहर माथदस कापे, अकण लहर लंक गढ आपे। आठ पहर जिण नाम उचार ॥ २०७. सोही-वही। बेवड़ी-दोहरी। वद वह। पंच-पांच । २०८ दूती-दूसरी। पढंत-पढ़ते हैं। ती-तीसरी । चवथी-चौथी। पुणंत-कहते हैं। पण परन्तु । इण भांत-इस प्रकार । योई-यही । २०६. वारद-बादल । सम-समान । कौटक-करोड़ । भा-हुए। दास रथ-दसरथ। नंदण पुत्र । विमळ-पवित्र । पाय-चरगा। सुरराजा-इन्द्र । रीझवजै-प्रसन्न कीजिए। निखंग-तर्कश। पाण-हाथ । धन-धनुष । सायक-तीर, बांण । सुखदायक-सुख देने वाला। साधार-रक्षक । कीधां-करने पर। कहर-कोप। माथदस-रावण । कापे-काट दिये, मारा। प्रापे-दे दिया । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ । रघुवरजसप्रकास ते रज पाय तरी रिख तरणी, मझ बेदा बरणी भ्रहमेण । डहिया विरद वडा भुजडंडे, तीख करे मिथळापुर तंडे । जटधर चाप विहंडे जेण ।। जनक सुता मनरंजण जगपत, भंजण खळ रांवण भाराथ । सरणसधार काज जन सारण, 'किसन' अहौनिस गाव सकारण । नप रघुनाथ अनाथां नाथ ॥२०६ अथ गीत अहिबंध वरण छंद लछण स दूहा रगण सगण अंतह गुरू, तुक खट यण बिध कीन । यगण रगण अंतह लघु, चौथी आठम चीन ॥ २१० अठाईस पूरब अरध, ऊतर अठाईस । प्रेम गीत अहिबंध अख, बरण छंद बरणीस ॥ २११ प्ररथ अहिबंध गीत बरण छंद छै, मात्रा छंद नहीं। तिणरै गण तथा तुक प्रत अखिरांरी गिणती छै । दूहा अंक प्रत तुक आठ पाठ होवै । तुक अंक प्रत प्रखर सात सात होवै। दूहा एक प्रत पाखर छपन होवै। सारा गीतरा दहा च्यार प्राखर दोयसौ चौबीस होवै। पै'ली तुक दूजी तोजी तुक रगण सगण अक गुरु सवाय होवै। यूंही तुक पांचमी छठी सातमी तुक रगण सगण श्रेक गुरु होवै । तुक चौथी और आठमी यगण रगण श्रेक लघु सवाय होवै। पाठ ही तुकां प्रत आखर सात सात होवै । तुक पै'ली दूजी तीजीरा तुकांत मिळ । तुक चौथी तुक अाठमीसू मिळे । यण प्रकार गीत अहिबंध कहीजै। जूं बंध हुवौ थकौ साप २०६. ते-उस । रज-धूलि । रिख-ऋषि । तरणी (तरुणी)-स्त्री। भ्रहमेण-ब्रह्मासे । डहिया-धारण किये। तीख-विशेषता। तडे-जोशपूर्ण आवाज की । जटधर-महादेव । विहंडे-नाश किया। मनरंजण-मनको प्रसन्न करने वाला। जगपत (जगतपति)ईश्वर, श्री रामचन्द्र । भंजण-नाश करने वाला। खळ-राक्षस । भाराथ-युद्ध । सरणसधार-शरणमें आए हुएकी रक्षा करने वाला। काज-कार्य । जन-भक्त । सारण-सफल करने वाला । प्रहौनिस-रात-दिन । गाव-स्मरण कर, गुणगान कर। २१०. यण-इस । विध-प्रकार । कीन-की, रची। २११. प्रख-कह । यूंही-ऐसे ही। Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २७५ कड़ौ चालै जूं तुकां ठसती संकड़ती चालै, जीं ताबै गीतरौ नाम अहिबंध छै । गीत ग्रड़बड़ाट पढ्यौ जावै, जीं ताबै नांमरौ यो लछण लख्यौ छै । अथ गीत ग्रहिबंध उदाहरण गीत राम नांम रसा रे, जाप संभ जसा रे । बोल तू म बिसारे, सेस भ्रात सही रे, पहारें कौड़ पाप ॥ कंज जात कही रे । दैत थाट दही रे, चहीरै बांण चाप ॥ ते संत तराया, गाथ बेदस गाया । लेख हाथ लगाया, दळां संख दाट ॥ तार बांम रखीते, सू चंदर सखीते । पाळ दीन पखीते, कळसां सत्र काट ॥ कोसकेस कंजारां, लीध वंस लजारां । हां दैत हजारां, धजारां बद धार ॥ ग्राह गोह गयंदां, देख ब्याध मधां । पेख ग्रीध पुलिंदां, पयोध नध पार ॥ आच साह अनेकां, कीध वार वसेकां । मांग राख वमेकां, करे के संत कांम ॥ हेळ पाप हताजे, जमंवार जीताजे । माह ऊंच मताजे, २११. जूं-जैसे । संकड़तौ-संकुचित होता हुआ । २१२. जाप जप कर । संभ (शम्भु) - महादेव। जसा-जैसा । म मत नहीं । बिसारेभूलना। पहारै-मिटाता है । सेस - लक्ष्मण । कंज जात - ब्रह्मा । दैत दैत्य थाटबांम-स्त्री । रखी - ऋषि । दल, समूह । दही रे - नाश किया। गाथ-कथा । सूर-सूर्य । चंद-चंद्रमा । सखी ते साक्षी दी। वाला । हांण-हानि । धजांरां-ध्वजा, ऊंचा । पाळ - पालक । पखी ते पक्ष करने गोह-गुह नामक निषादराज । यंदा - गज, हाथी । पुलिंदां एक प्राचीन पिछड़ी जाति । पयोध ( पयोधि ) - समुद्र | ॥२१२ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ | रघुवरजसप्रकास अथ गीत ग्ररट मात्रा छंद लछण हौ धुर ठार ग्यारह दुती, सोळ व्रती चव ग्यार । सोळ ग्यार कम अंत लघु, अरट गीत उचार ॥ २१३ अरथ रट गीत सांणोर गीत छै पण सात सांणोर गीतांसूं भिन्न छै । दूजी चौथी तुक ग्यारै मात्रा, यौ भेद छे जींसूं जुदो कही दिखायौ छै । पै'ली तुक मात्रा ग्रठारै होय । दूजी तुक मात्रा ग्यारै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा ग्यारै होय । पछे सोळं ग्यारै ईं क्रमसूं पाछली तीन ही दूहां मात्रा होय । दूजी चौथी तुकरे तुकांत लघु होय, जीं गीतनै प्रस्ट नांम सांणोर कहीजै । कोई ईनै उमंख नांम गीत पिण कहै छै । त्राटको पण योही कहीजै, जींसूं त्राटको पण द नहीं को छै । अथ गीत अरट सांणोर उदाहरण गीत धन राघव हाथ अभंग धुरंधर, आथवरीस संक । दीघ भभीखण आस्रय देख कर, लीघ बिना दत लंक ॥ बाळ महाबळ घायक भूबळ, सारंग सायक संठ । भ्रात कहेस किकंधपुरी भल, कीध नरेस सुकंठ ॥ संत अनाथ 'दस सायक, धू पहळाद उधार | कांम उबारण प्राय सकारण, बारण तारण बार ॥ २१३. ग्यार-ग्यारह । दुती-दूसरी । सोळ - सोलह । ती (तृतीय) - तीसरी । चव- चौथी, चतुर्थ | पण - परन्तु । यौ-यह । जुदौ- पृथक, अलग । पर्छ - पश्चात | पाछलीपीछेकी । पिण-भी । पण भी । योहो-यही । नोट -- रघुनाथरूपकमें जो त्राटका गीत है वह गीत इस गीतसे भिन्न है । २१४. प्राथवरीस रुपयोंका दान देने वाला । दीध दिया। भभीषण-विभीषरण । लोधलिया, ली। दत दान। बाळ-बालि वानर । धायक - संहारक । सारंग - धनुष । सायक-तीर, बाण । संठ - मजबूत, दृढ़, जबरदस्त । किकंधपुरी - किष्किंधापुरी | भलठीक । कीध किया। नरेश राजा । सुकंठ-सुग्रीव । धू -भक्त ध्रुव । पहलादभक्त प्रह्लाद | बारण- गज । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २७७ कोट गयंद सतौल निधे कर, तोलण हेक तराज । पात 'किसन' अडोल रघुपत, बोल गरीबनवाज ॥ २१४ अथ गीत अठताळौ लछण दूही ले धुरसं तुक सोळ लग, चवद चवद मत चीत । अंत गुरु जस नाम अख, गण अठताळौ गीत ॥ २१५ प्ररथ जिण गीतरै पै'ली तुकसू लगाय नै च्यार ही दुहारी सोळं ही तुकांमें चवदैचवदै प्रत तुक मात्रा होय । अंत गुरु होय। सावझड़ी होय, जिण गीतनै अठताळौ कहीजै। अथ गीत अठताळौ सावझड़ी उदाहरण गीत अंग.धार आरख ऊजळा, करतार चित चढती कळा । विसतार जस चहूंवैवळा, साधार सेवग सांवळा ॥ सिर-जोर खग दत संजणा, पह रोर आंमय पंजणा । भड़ जुध असंतां भंजणा, रघुराज संतां रंजणा ॥ विपळ सत सघण नवीनरा, अत गाय दुज आधीनरा । भुज दहण खळ जस भीनरा, दिल महण बंधव दीनरा ॥ मह सीत वर महराज रे, लख जनां राखण लाज रे । किव किसन' वसै सकाज रे, रघु चरण सरणे राज रे ॥ २१६ २१४. तराज-समान, तुल्य । २१५. सोळ-सोलह । लग-तक । चवद-चौदह । मत-मात्रा। चीत-विचार कर। प्रख कह। २१६. पारख-चिन्ह, लक्षण । चहूंवैवळा-चारों ओर । साधार-रक्षक । रोर-निर्धनता। प्रांमय-रोग । पंजणा-मिटाने वाला। भंजणा-नाश करने वाला। रंजणा-प्रसन्न करने वाला! दुज (द्विज)-ब्राह्मण । महण (महार्णव)-सागर । सीत-सीता। लेखदेवता। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत काछौ मात्रा समचरण छंद लछण दूहा तीन कंठ ति धुर-अठार चवदह दुती, बारह तीजी तीन कंठ धुरतुकता, मत चौमाळ मुबी तुक छाबीस मत, पूरब अरध तुकं तरै, अंत लघु तुक तीजी अठवीस मत, बेद छबीस रणरण कंठ तुकंत लघु, चौथीत उचार ॥ २१६ न दूहां धुर तुकतणै, मत चाळीस मंडांण । आ राह ॥ २१८ बिचार | छावी बीजी चतुरथी, ती अठवीस प्रमाण || २२० अनुप्रास गुरु अंत अख, भण तुकंत लघु भाय । जपियां छौ रांम जस, काछौ गीत कहाय ॥ २२१ बेस । मुणेस ॥ २१७ माह । अरथ काछा गीत तुकां च्यार दूहा प्रत जिणरै मात्रा प्रमांण । पैौली तुक मात्रा चौमाळीस | कंठ तीन पैली तुकमें होय । पहली कंठ तौ मात्रा ग्रठारै ऊपर होवे । जो ग्रनुप्रास मात्रा चवदै पर होवे । तीजी ग्रनुप्रास मात्रा बारे पर होवे । पूं पैली तुक तीन ग्रनुप्रास गुरुवंत होवै । मात्रा चौमाळीस होवै । तुक दूजी मात्रा छाईस होवै । अनुप्रास तीन । पै' ली कंठ मात्रा नव पर । दूजी कंठ मात्रा सात पर । तीजी कंठ मात्रा दस पर । तीसरौ पूरवारध नै उतरारध दोनोंही लघु अंत होय । तुक तीजी मात्रा अठावीस (अठाईस ) तीन कंठ होय । चौथो तुक मात्रा छाईस २१७. दुती- दूसरी । कंठ अनुप्रास । धुरतुकरुणा-प्रथम चरण के । मत मात्रा । चौमाळचवालीस | मुणेस - कह 1 २१८. मुण - कह | बी- दूसरी । छाबीस-छब्बीस । तिण-उस । माह में । २१६. प्रठवीस - अठाईस । बेद-चार, चतुर्थ । छबीस - छब्बीस । त्रण - तीन । चौथीतणेचौथीके | २२०. श्रन - अन्य | हां- गीत छंदके चार चरणोंके समूहका नाम। धुरनुकतण - प्रथम चरणके । मंडांण-रख । छावी- छब्बीस । बीजी-दूसरी । तो तीसरी । अठवीसअठाईस । २२१. अख-कह | यूं - ऐसे । गुरुवंत - जिसके अन्त में गुरु वर्ण हो । छाईस - छब्बीस | Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २७६ तीन कंठ होय । यूंही सारा गीतरी प्रेक तुक प्रत कंठ तीन तीन गुरु कंठ होय । हारे तुकंत लघु होय । और सारा ही गीतरा दूहां प्रत मात्रा प्रमांण कहां छां । पै'लो तुक मात्रा चाळीस होवै । दूजी तुक मात्रा छावीस होवै । तीजी तुक मात्रा ठावीस होवे | चौथी तुक मात्रा छावीस होवै। यूं तीन ही लारला दवाळां मात्रा होवे, जिण गीतनै काछौ कहीजै । चार ही तुकां मात्रा सम नहीं, जीसूं असम चरण छंद छै । ग्रंथ गीत काछौ उदाहरण गीत पहपत रघुपती दत भौक पांणां । वदत सुज कथ वेद-वांगां सधर पांणां साहणौ । सारंग बांणां, जुध सझांणौ पण मुड़ांणां पूठ ॥ सुखवर सुरांगां, गौ दुजांणां माघवांणां सुख मिळे | मह जिग मंडांणां थांगथांगां दैत घांणां दृठ ॥ धनक सायक भुजाधारी, तेण रज रिख नार तारी पायचारी पंथ | " मिथळा विहारी स्त्रीमुरारी रमां नारी रंज ॥ पह छत्रधारी मिळ पारी मांग हारी मंडळी । धनु जेणवारी रावणारी जटाधारी भंज ॥ २२१. यूंही - ऐसे ही । २२२. पहपत ( पृथ्वीपति ) - राजा । दत दान | भौक-- धन्य धन्य । पांणां-हाथों | वदतकहता है । सुज - वह । कथ कथा । वेद-बांणां - वेदवाणी । सधर - दृढ़ । साहणौधारण करने वाला । सारंग - विष्णुके धनुषका नाम । वांणां-तीरों, बारणों । सुरांणांदेवताओं । दुजांणां - ब्राह्मणों । माघवांणां - इन्द्र । मह - पृथ्वी, महान । जिग-यज्ञ । मंडांणां रचा गया । थांणयांणां स्थानों स्थानों । दैत- दैत्य | घांणां-नाश । दृठदु । धनक-धनुष । सायक- वारण, तीर । तेण उस । रज-धूलि । रिख-ऋषि । पायचारी - पदचारी | पंथ में मार्ग में । रमां शत्रु ग्रों। रंज-दुख । पह-योद्धा ! छत्रधारी - राजा । श्रपारी- असीम। मांण-मान, गर्व | मंडळी - समूह। धनु-धनुष । जेणवारी - जिस समय । जटाधारी महादेव । भंज-तोड़ दिया । Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० ] रघुवरजसप्रकास पित आय सचित प्रकासे, वीर वट-पंच वासे , असुर नासे पाहवां । भय मेट दासे विरद भासे, खळां त्रासे खूर ॥ पड़ लंक पासे जंग जासे, अत प्रकासे प्रावधां । ग्रीधां ढीगासे मांस ग्रासे, सुज हुलासे सूर ॥ करणभूपत देव काजा, मांण रख गौदुज समाजा , क्रीत पाजा दध कहै । ते सुकव ताजा ब्रवण बाजा, गजां राजा गांम ॥ छज ऊच छाजा दिलदराजा, जेत वाजा जंगियं । लख राख लाजा संत साजा, महाराजा राम ॥ २२२ ___ अथ गीत सवैयौ वरण छंद लछण दोय सगण पद च्यार दख, पंचम चव सगणांण । सावझड़ौ कह चरण ब्रती, जिको सवायौ जाण ॥ २२३ प्ररथ सवायौ गीत वरण छंद होय जिणरै तुक पांच, दूहा अंक प्रत होय । तुक श्रेक प्रत सगण दोय आवै । अखिर छ प्रावै । इसी तुक च्यार होय । पांचमी तुकमें च्यार सगण गण पड़े । अखिर बारा होय । पांच ही तुकारा मोहरा मिळे , जिणसू सावझड़ो सवायौ गीत जांणजे । अथ गीत सवैयौ उदाहरण गीत थिर बूध थटौ क्रतहीण कटौ, दुख ओघ दटौ मह पाप मटौ । रिववंसतणौ रिव राम रटौ ॥ २२२. वट-पंच-पंचवटी। वासे-निवास किया। नासे-नाश किया । पाहवां-युद्धों। खळां राक्षसों । खूर-समूह । ढोगासे-ढेर, समूह । ग्रासे-भक्षण किया। हुलासे-प्रसन्न हए । सूर-सूर्य । दुज-ब्राह्मण । क्रीत-कीति । पाजा-पुल । दध-समुद्र, सागर । ब्रवणदेने को। बाजा-घोड़े। छज-शोभा। ऊंच-ऊंची। छाजा-शोभा देती है। दिलदराजा उदार दिल, दातार । २२३. दख-कह । चव-कह । सगणांण-सगण गण । अखिर-अक्षर । २२४. थिर-स्थिर, अटल। बुध-बुद्धि। थटौ-धारण करो । कतहीण-पाप । कटौ-काट डालो। ओघ-समूह । दटौ-नाश कर दो। मह-महान । मटौ-मिटा दो। रिववंसतणौ-सूर्यवंशवा। रिव-सूर्य । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास 1 २८१ तन खेत तजौ मत सुद्ध मजौ, सुभ रीत सजौ वड संत वजौ। भव तारण कौसळनंद भजौ ॥ हिय लोभ हरौ धख पुन्य धरौ, क्रत ऊंच करौ सुरराज सरौ । रघुनायक दायक मोख ररौ ॥ मन भाव मढौ दुज सेव दढौ, गुरु वेण गढौ चित रंग चढौ । पतसीत सप्रवीत सप्रवीत पढौ ॥ २२४ अथ गीत सालूर लछण दूहौ धुर अठार वारह दुती, सोळे त्रति चव बार । आद वेद मिळ बी व्रती, यूं सालूर उचार ॥ २२५ अरथ पै'ली तुक मात्रा अठारै होय । दूजी तुक मात्रा बारै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा बारै होय । पै'ली तुक नै चौथी तुक मिळे दु गुरु तुकंत होय । बोजी तुक नै तीजी तुक मिळे । लघु तुकत होय सौ सालूर गीत कहीजै। अथ गीत सालूर लछण गीत सुज बीजै नर पकां मनह सीधौं । जनक तांम मुख जापत, आ जौ महमा काळ अमापत । क्रत पण खंडत कीधौ ॥ २२४. खेत-क्षेत्र । तजौ-छोड़ दो। वजौ-कहे जाओ, प्रसिद्ध हो। भव-जन्म संसार । कौसळनंद-श्री रामचंद्र भगवान । धख-इच्छा। ऋत ऊंच-उत्तम कार्य । सुरराज-इन्द्र । दुज-ब्राह्मण । दढी-दृढ़ करो। पतसीत-श्री रामचन्द्र । सप्रवीत-पवित्र । २२५. दुती-दूसरी। ऋति-तीसरी। चव-चार । बार-बारह । वेद-चौथी। बी-दूसरी। त्रती-तीसरी। यूं-ऐसे । २२६. महमा-महिमा । अमापत-प्रपार | खंडत-खंडित। कीधी-किया । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ ] रघुवर जसप्रकास तायक लखण पयंपै तेथी । वायक रोस विरुता, है नर बीर जनक न राघव जेथी ॥ राघव मंगे । खित्रवट नूर उमंगे ॥ चहोड़े । जंप मुनि मित्त यस छक घण रोम ऊछाजै, बूटै ऊठै सूर चाप उठाय नमाय तोड़े खळां तंका, बरी सिया राघव डंका मुखहूंता । विराजै 1 दासरथी बँका | रोड़ै || २२६ अथ गीत त्रिकौ लछण दूहौ सोळ कळा धुर सोळ बी, ती बतीस गुरवंत । त्रि बखत उलटै तुक त्रती, कविस त्रिबंक कहंत ॥ २२७ अरथ पैली तुक मात्रा सोळं होय । दूजी तुक मात्रा सोळ होय । तोजी तुक मात्रा बतीस होय । जिण तीजी तुकरै दोय मात्रा तौ प्राद नै पछे दोय चौकळ गण ज्यांन तीन बखत पढणा उलट-पलट करने, जठा पछै छ मात्रा फेर हुवै, तुक तीनका मोहरा मिळें । एक दोय गुरुको तौ नेम ही नहीं पिण तुकंत गुरु हो सौ त्रको गीत कहीजै । अथ गीत बंक उदाहरण गोत रे राखै ऊजळ भाव रदा, गहिया कज नीरज चक्र गदा । सुज रे मन राघव रे मन राघव, रे मन राघव जाप सदा ॥ २२६. लखण लक्ष्मण । पयंपै कहता है । तेथी-वहां । विरुता - पूर्णं । मुखहंता - मुखसे । जंप - कह । राघव - रामचन्द्र भगवान । जेथी- जहां । छक-जोश । चहौड़े चढ़ाते हैं । प्रकाप्रातंक | २२७ सोळ - सोलह । कळा-मात्रा | बी- दूसरी । ती-तीसरी । त्रती-तीसरी । कहंतकहते हैं । जठा पछै - जिसके बाद । २२८. भाव-विचार । रदा - हृदय । कज-कमल । नीरज-शंख । जाप जप, स्मरण कर । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [२८३ गजग्राहै जाहर ग्राहांणी, जिण वाहर कीधी जग जांणी । मह माधव केसब केसव माधव, माधव केसव पढ प्राणी ॥ लंका हण रावण जुध लीजै, दत दीन भभीखणनं दीजै। रे कौसळनंदण नंदण कौसळ, कौसळनंदण समरीजै ॥ पै रज रिखधरणी गति पाई, वळ तरणी झीवर तिरवाई। भण सीता रघुबर रघुबर सीता, सीता रघुबर भण भाई ॥२२८ अथ गीत धमाळ लछण पूरबारध मत भाख पढ, ऊपर नव मत अक्ख । है तुकंत लघु गुरु हरख, सौ धमाळ विसक्ख ॥ २२६ प्ररथ भाख गीत सावझड़ा गीतरी तुक मात्रा चवदैरी होवै सौ भाख गीतरी तुक सवाय मात्रा नव होवै । लघु गुरु तुकंत होवै । च्यार ही मोहरा मिळ सौ धमाळ गीत कहावै। अथ गीत धमाळ उदाहरण गीत कवसळ सुता राजकंवार, क्रत जन काजरा । दरसै चखां दत खग दोय लंगर लाजरा ॥ २२८. जिण-जिस । वाहर-रक्षा | कीधी-की। माधव-विष्णु। दत-दान ! दीन-गरीब । भभीखण-विभीषणको। नंदण-पुत्र। समरीजै-स्मरण कीजिए। पै-चरण । रज-धूलि । रिख-ऋषि । घरणी-गृहिणी। गति-मोक्ष । वळ-फिर । तरणी नौका। झीवर-मल्लाह । भण-कह। नोट-त्रिबंक गीतके लक्षण रघनाथरूपक में अधिक स्पष्ट हैं। यहाँ पर उसकी नकल दी जाती है। त्रिबंक गीतमें प्रत्येक पदमें सोलह मात्राएँ होती हैं। प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ पदके तुकांत मिलाये जाते हैं। तीसरे पदमें आदिमें दो मात्राएँ मध्यमें दो चौकल और अंतमें एक षटकल रखना चाहिए। तीसरे पदमें जो चौकल आवे वह पलट कर चौथे पदमें भी पानी चाहिए। उदाहरण देखनेसे स्पष्ट हो जायेगा। २२६. मत-मात्रा। भाख -एक गीत छंदका नाम । अक्ख-कह । विसक्ख-विशेष । २३०. क्रत-काम । चखां (चक्ष)-नेत्र, नयन । दत-दांन । खग-तलवार । लंगर-पैरोंको बांधने का बंधन विशेष, पैरों का एक प्राभूषण । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ ] रघुवरजसप्रकास जपां कमण नूप ता जोड़ अधपत आजरा । बंदां मघादिक सुर ब्रद रघुबर राजरा ॥ छत्रवट तूझ दसरथ नंद ओप अच्छेहड़ा । बाढे खगां रिण दसमाथ कर धड़ बेहड़ा ॥ वळमुखहंत निकसै वैण आखर वेहड़ा । जुग पद घसै मुगट सहीव सुरपत जेहड़ा ॥ वेढक फरसधर विकराळ बंक बंकसा । सुज जिण कीधा राम नरेस सूधसणंकसा ॥ लहरे हेक दीधी लछीस थांनक लंकसा । सुज पय नमै अविरळ सीस सुरप असंकसा ॥ दखू किसू हे महाराज दासां दास रे । वरणं जीभहूं बुध जोग नित जसवास रे ॥ हिरदै वसौ ध्यान हमेस रूप हूलास रे । जपै 'किसन' रख रघुराज, ौ पण आस रे ॥ २३० अथ गीत रसावळ लछण दूही प्रथम तीन तुक चवद मत, मोहरे रगण मिळाय । चवथ ग्यार मत सगण मुख, रसावळी खगराय ॥ २३१ २३०. कमण-कौन । ता-उस । जोड़-समान, बराबर । अवधपत-श्रीरामचंद्र भगवान । मघादिक-इंद्र आदि । सुर-देवता। ब्रद-समूह । छत्रवट-क्षत्रियत्व । तूझ-तेरा। नंद-पुत्र । अच्छेहड़ा-अपार । बाढे-काट डाले। रिण-युद्ध । दसमाथ-रावण । धड़शरीर । बेहड़ा-एक के ऊपर एक रखने की क्रिया या ढंग, तह । वैण-बचन । वेहड़ाविधाताके । जुग-दो। पद-चरण । सुरपत-इन्द्र । जेहड़ा-जैसा । बेढक-वीर । फरसधरपरशुराम। कीधा-किया। सूधसणंकसा-बिलकुल सीधा । लहरे-तरंगमें, उमंगमें। दीध-दे दी, दे दिया। लछीस-लक्ष्मीपति। थानक-गढ़। लंकसा-लंकाके समान । पय-चरण । अविरळ-निरंतर । सुरप-इन्द्र । दखू-कहू। दासांदास-भक्तोंका दास । बुध-बुद्धि । जोग-योग्य । जसवास-यश, कीर्ति । हिरदै-हृदयमें । २३१. मोहरे-तुकबंदी। चवथ-चौथी। खगराय-गरुड़ । नाग-शेषनाग । खगराज-गरुड़। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २८५ प्ररथ जिण गीतरै प्रथमरी तीन ही तुको मात्रा चवदै चवदै होय । मोहरे रगण गण होय । तुक पै'ली मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक दूजी मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक तीजी मात्रा चवदै, तुकांत रगण होय । तुक चौथी मात्रा अग्यारे, तुकांत मोहरे सगण होय सौ गीत नाग कहै छै । हे खगराज गरुड़ सौ गीत रसावळी कहावै छै । अथ गीत रसावळौ उदाहरण गीत सझ भुजां निज धानंख सरा, मझ अडै भूहां मौसरा । रिण राम नप दसमाथरा, रिक्त वेध लगा खरा ।। उण दसा राखस आहुड़े, भड़ भाल कपि यण दस भडै । लूथबथ अह घणसुर लड़े, गज धरा नभ गड्डै ॥ कोमंड कीधां कुंडळां, वरसाळ सर दुत वीजळा । खळ कुंभ राघव खंडळा, झड़ नयण भाग झळा ॥ भड़ रांम दस सिर भंजिया, दत लंक सरणागत दिया । विभ अवध सिय ले प्राविया, कळ चंदनाम किया ॥२३२ अथ गीत सतखणा लछण दहा लघु सांणोर क पूणियौ, धुर अठार बी बार । सोळ बार क्रम मत सरब, दु गुरु तुकंत बिचार || २३३ २३२. धानख-धनुष । सरां-बाण, तीर | मझ-मध्य । मोसरा-श्मश्रु, मूंछे । दसमाथरा रावरणका। खित-पृथ्वी । वेध-युद्ध । दसा-पोर, तरफ। राखस-राक्षस । पाहु.भिड़े। भड़-योद्धा। भाल-रीछ । कपि-बंदर। यण-इस । दस-तरफ, अोर । लथबथ-परस्पर भिडने की क्रिया, द्वन्दयूद्ध । प्रह-लक्ष्मण। घरणसर-मेघनाद । यमान हुए। कोमंड-धनुष। वरसाळ-वर्षा । सर-तीर, बाण । दुत-द्यति । वीजळा-बिजली, तलवार । दस सिर-रावण । दत-दान । विभ-वैभव । अवध-अयोध्या। सिय-सोता। कळ-युद्ध । चंदनामा-यश । २३३. बी-दुसरी। बार-बारह । सोळ-सोलह । मत-मात्रा। दु-दो। ग Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] रघुवरजसप्रकास सोळ मत तुक पंचमी, संबोधन धुर मध । तुक छठी मझ नव कळा, सौ सतखणौ प्रसिध ॥ २३४ प्ररथ गीत छोटौ सांगोर तथा पूणियौ सांणोर पै'ली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळं होय नै बीच संबोधन रेकार शब्द पांचमी तुकरै पाद मध्य आवै नै तुक छठी मात्रा नव होवै जिणनै गीत सतखणौ कहीजै । ___ अथ गीत सतखणौ उदाहरण गीत प्रांणी सौ झूट कपट चित परहर, गुण हर काय न गावै । जमदळ आय फिरेलौ जाडौ, आडौं कोय न आवै । रे दिन जावै रे दिन जावै, लाहौ लीजिये ॥ बेखै मात पिता त्रिय बंधव, कुळ धन धंधव काचौ । चौरंग मझ जमहूँत बचायब, साहिब राघव माचौ । रे जग काचौ रे जग काचौ, लाहौ लीजिये । अंत दिनां अाडौ खम पासी, साचौ जनां संबंधौ । डिग चित अबरां दिसी म डोलै, बोलै लिछमण बंधौ । रे जग धंधौ रे जग धंधौ, लाहौ लीजिये । धू पहळाद भभीखण सिंधुर, अपणाया सुख प्रापे । पीतंबर काटै दुख पासा, थिरके दासां थापे । रे हरि जापै रे हरि जापै, लाहौ लीजिये ॥२३५ २३४. मध-मध्य । मन-मध्यमें । कळा-मात्रा। २३५. परहर-छोड़ दे। गुण-यश । काय न-क्यों नहीं । जाडौ-बहुत, घना। कोम न कोई नहीं। लाहौ-लाभ । बेख-देखते हैं। त्रिय-स्त्री। बंधद-भाई धंधव-धंधा, काम । चौरंग-आवागमनका बंधन यह। मझ-मध्य में। जमहत-यमराज से। साहिब-स्वामी। जना-भक्तों। संबंधौ-संबंध । श्रवरां-ग्रन्यों। दिसी-पोर, तरफ । म-मत । लिछमण-लक्ष्मगा। बंधौ-भाई, बंध। धू-ध्र व भक्त। पहळादप्रहलाद । सिंधुर-गाज। शीतंबर-पीताम्बर वस्त्र धारण करने वाला विष्णु । जापैजप, स्मरण कर । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ गीत उमंग सावझड़ौ लछण दूहौ सोलह मत तुक प्रत सरब, मोहरा च्यारू मेळ । सबड़ौ सगणंत सख, सोय उमंग सचेळ ॥ २३६ [ २८७ अरथ घड़ उथल पण तुक प्रत मात्रा सोळं होय । अंत गुरु होय नै यूंही उमंगरै तुक प्रत सोळं मात्रा नै अंत गुरु होय पिण प्रतरौ भेद छै सौ घड़उथल तौ प्राधासूं उलटै नै उमंग सावझड़ौ च्यारू तुकां मिळेने उलटे नहीं यौ भेद छै । अथ गीत उमंग सावझड़ी उदाहरण गीत नर नाग सुरा सुर जोड़ नथी, कथ वेद पुरांण दुजां कथी । मुरकीटमधु हरा सिंध मथी, रट रे मन राघव दासरथी || के नाथ अनाथ सुनाथ किया, सुज जेण वेरी दळ चाप सिया । वळ रांवण कुंभ जिसा वहिया, है कांम भलौ भज राम हिया ॥ मह पाळ सिधां कुळ मित्तारौ, पह पाळक संतां पीसारौ 1 जग जाय जमारौ जीतारौ, सुज संभर सायब सीतारौ ॥ वाराधिप सेतां बंधगरौ, कुळ राखस जूथ निकंदणरौ । दिल तूं 'किसना' जग बंदगरौ, नहचौ रख कौसळ नंदणरौ ॥२३७ २३६. सगणंत - जिसके अन्तमें सगण हो । सख- कह । २३७. जोड़ - वराबर, समान । नथी- नहीं । कथ - कथा । दुजांण ( द्विज) - महर्षि, मुनि । सिंध - समुद्र | दळ । कीटमधु - मधुकैटभ । । भलौ - उत्तम, ठीक । कथी - कही । मुर - एक ग्रसुरका नाम तोड़ कर । चाप-धनुष । सिया - सीता । वहिया - चले गये महपाळ - ( महिपाल ) राजा । सिधां श्रेष्ठ । कुळ मीतारौ -सूर्य का वंश | संभरस्मरण कर । सायब - ( साहिब) स्वामी । वाराधिप-समुद्र । जूथ-समूह । निकंदणरौनाश करने वाले का । नहचौ-विश्वास, धैर्य । नंदणरौ-पुत्रका Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ | रघुवरजसप्रकास अथ गीत यकखरौ (इकखरौ ) लछण सरलोकौ मात्रा चवदै तुक हे मांहै | आंगै सोळ तुक यरण विधा है || काय सावझड़ौ रगणांत कीजै । मोहरा सोळं हीरे रे मेलीजै ॥ गोत कखरौ या विध कवि गावै । रीझावै ॥ राघव राजा जसर चव बीसू मत पद हे लीज वरतारी समझे चोख । सरलोकौ ॥ २३८ अस्थ यकखरा गीत सोळं ही तुकां प्रत चवदै मात्रा आवै । तुकंत रगण श्रावै । सारी ही तुकां प्रतरै यसौ संबोधनरौ एक प्रखर आवै । मोहरे सौ यकखरौ गीत कहावै । यणरा लछणांरौ छंद सरलोकौ छै । वांणिया, जती तथा भोजक बोहोत पढै छै । अथ गीत यकखरौ उदाहरण गीत रे 1 रे 11 कौसिक रिख जग काज रे, जाचिया स्त्री रघुराज सुजविदा दसरथ साज रे, मेल्हिया स्त्री महराज गत पंथ तारक गाह रे, सुज सपत दिन जिग साह हरण खंड की सुबाह रे, मारीच नख दध माह रे 1 रे २३८. हेकरण - एक । मांहै- में । ऊछा है - उमंग में, जोशमें । प्रांण-रखे, ले आये । यरण - इस विध प्रकार, तरह | कायब - काव्य, कविता | रगणांत - वह छंद जिसके अंत में रगरण हो । कीजै - करिये । मेलीजै - रखिए। रोभावे - प्रसन्न करे । चवजें - कहिए । बीस-बीस | मत - मात्रा पद-चरण, तुक । चोखौ-उत्तम । वरतारौ - वह छंद या गद्य परिभाषा जिसमें छंद विशेषके रचनाके नियम व मात्रा वर्ण प्रादि दिए हुए हों । सरलोकौ - राजस्थानीका एक मात्रिक छंद विशेष । यरण - इस । लछरग- लक्षण | बोहोत - बहुत । यसौ - ऐसा । प्रखर- अक्षर | २३६. कौसिक - विश्वामित्र । रिख ऋषि । जिग-यज्ञ । काज लिए जाचिया याचना की । खंड-नाश, ध्वंश । कोध किया । नख डाल दिया । दध - समुद्र । माह में । 11 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २८६ जिग जनक आरंभ रांम रे, कर रिखी गवण सकांम रे । भव सिला गौतम भाम रे, रज पाय तारी रांम रे ॥ दस कमळ बळ सुत दैत रे, नूप अवर मांण नमैत रे । जिग धनंख हण की जैत रे, बर स्रीया जद बांनैत रे ॥२३६ __अथ गोत अमेळ लछण सरस वेलिया सूहणा, सांमिळ तुकां सझाय । मोहरा अंत मिळे नहीं, सौ अमेळ सुभाय ॥ २४० प्ररथ वेलिया गीतरी नै सोहणा तथा खुडदरी तुकां सांमिळ होय । अंत मोहरा मिळे नहीं, जिण अमेळ सांणोर कहीजै। यणहीज तरै सुपंखरौ पिण अमेळ वणै छ । अथ गीत अमेळ सांणोर उदाहरण गीत दसरथरा नंद मुकतरा दाता, असुर जुधां घाता असेस । निज कुळ मुकट जानकीनायक, सुखदायक सेवगां सही ॥ उर भ्रगु लात सुहात अनूपम, जग जाहर विक्रम राजेस । किती बार महराज त्रविक्रम, राजहंत तन लाज रही ॥ बाढ सबाह जिगन रखवाळ, महण बीच डाल मारीच । ताई विमद करे नप ताखा, विरदाई जानकी वरी ॥ २३६. रिखी-ऋषि । गवरण-गमन । भाम-भामिनी, स्त्री। पाय-चरण । दसकमळ रावण । अवर-ग्रन्य। मांग-गर्व । हाग-नाश कर। बांनैत-वीर । २४०. सूहरणा-सोहणा नाम गीत छंद । सांमिळ-साथ, शामिल । सझाय-सज कर, रख कर । जिणनं-जिसको। पिण-भी। २४१. नंद-पुत्र। मुकतरा-मुक्तिके। दाता-देने वाला। घाता-संहारक । असेस-अपार । अनुपम-अद्भत । लात--पद-प्रहार। सुहात-शोभा देता है। विक्रम-वीरता। कितीकितनी। त्रविक्रम-त्रिविक्रम । राजहूंत-श्रीमानसे । बाढ-काट कर, मार कर । जिगन-यज्ञ । महण-समुद्र। ताई-शत्रु । विमद-गर्वरहित । ताखा-वीर । विरदाई-विरुदधारी । Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] रघुवरजसप्रकास फसण अरस कर आडौ फिरियौ, हुवौ फरसधर तेजविहण । जग मझ राम न को तौ जेहो, केही भूपत मीढ करां ॥२४१ अथ गीत भंवरगुंजार लछरण दूहा सोळ प्रथम चवदह दुती, ज्यांरै लघू तुकंत । ती चवदह नव चतुरथी, अख बी गुरु जिण अंत ॥ २४२ यण हीज विध उत्तर अरध, चतुर सुकवि विचार । भण जस रस रघुवर भंवर, गीत भंवर गुंजार ॥ २४३ प्ररथ भंवरगुंजार गीतरै तुक अाठ मात्रा प्रमाण कहां छां । तुक पैली मात्रा सोळे । तुक बीजी मात्रा चवदै । तुक तीजी मात्रा चवदै । तुक चौथी मात्रा नव । तुक पांचमी मात्रा सोळ । तुक छठी मात्रा सोळे । तुक सातमी मात्रा चवदै । तुक अाठमी मात्रा नव होय । पै'ली बीजी तुकरा मोहरा मिळे । तुकंत लघु होय । तीजी चौथीसू भेळी पढी जाय । पाठमी तुकरा मोहरा मिळनै तुकांत दोय गुरु होय । पांचमी छठी तुकरा मोहरा मिळनै तुकांत लघु होय । सातमी आठमी तुक भेळी पढ़ी जाय । यण प्रकार च्यार ही दूहां प्रत मात्रा होय, जिण गीतरौ नाम भंवरगुंजार कहीजै। अथ गीत भंवरगुंजार उदाहरण गीत . रे अधम नर समर रघुबर , सिया नायक दया सागर । कड़े दध जिण सुजस कहजै भिडै खळ भजे ॥ जपै सिव रिव सेस जाहर , वेख की प्रहलाद बाहर । रूप नाहर धार राघौ गाव रिम गंजे ॥ २४१. फसण-लड़नेको । अरस-कोप । फरसधर-परशूराम। तेजविहीण-कांतिहीन । मझ मध्य । को-कोई, कौन । तौ-तेरे । जेहो-जैसा । केहौ-कौनसा । मीढ-समान, तुल्य । २४२ दुती-दूसरी। त्यांर-उनके। ती-तीसरी । चतुरथी-चौथी। अख-कह । बी-दो। २४३. यण-इस । २४४. कड़े-तट पर । दध-समुद्र । खळ-असुर । रिव (रवि)-सूर्य । वेख-देख । व रक्षा। नाहर-नृसिंहावतार । राधौ-श्रीरामचन्द्र । रिम-शत्रु | गंजे-नाश किये। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २६१ बळ थियौ दित हरणाक्ष्य अप्रबळ , तेज मीहर धर रसातळ तांम । ब्रहम पुकार रघुपत करण मुख कहै ॥ गरुड़धुज विप धांम गिड़ , प्रळय जळ मग गंध सुध पड़ । आंण घर घर देत अणघट, विकट अर वहै ॥ तन मछ जोजन स्रग लख तण , रेण जन सत वरत रखण । समंद प्रळय विहार स्रीरंग, वेद मुख वाणी ॥ वळ चवद रतन उधार हित वप , __कठण पिठ धारी मंद्र कछप । उदध कर मंथांण अणघट, प्रगट कंज पांणी ॥ बळ छळण तन धरि हास बावन , पुरंदर द्रढ कर सपावन । फरसधर विप धार हरि फिर, खत्र खळ खंड ॥ रच रांम तन यर रहच रांमण , हुवा हळधर बुध दित हण । वळे की वंकी होण राघव, मही सत्त मंड ॥ २४४ अथ गीत दूजौ भंवरगुंजार लछण चवद प्रथम दूजी चवद, सोळ व्रती नव च्यार । पूब उतर सम अंत गुरु, जुगम भंवर गुंजार ॥ २४५ २४४. बळ-फिर। थियौ-हुआ । दिन-दैत्य । हरणाक्ष्य-हिरण्याक्ष । अप्रबळ-अत्यन्त बलशाली। मीहर-सूर्य । अणघट-अपार । मछ-मत्स्य । जोजन-योजन। पिठपीठ। मंद्र-मंद्राचल पर्वत । उदध-समुद्र। कंज-कमल। पांणी-हाथ । बळराजा बलि । पुरंदर-इन्द्र । सपावन-पवित्र । फरसधर-परशूराम । खत्र-क्षत्रियत्व । रहच-मार कर। २४५. ती-तीसरी। जुगम (युग्म)-दो, दूसरा । भेळी-साथ । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ बीजा भमरगुंजाररै पै'ली तुक मात्रा चवदै । बीजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा सोळे । चौथी तुक मात्रा नव । यूंही उतरारधरी च्यार तुकां होय । पै'ली दूजीरा मोहरा मिळे । अंत गुरु होय । तीजी चौथी भेळी पढ़ी जाय । चौथी अाठमीरा मोहरा मिळे । अंत गुरु होय । पांचमी छठीरा मोहरा मिळे । गुरु अंत होय । पूरबारध उतरारध समान मात्रा होय । यूं च्यार ही दूहा होय सौ बीजौ भंमरगुंजार गीत कहावै। अथ गीत बीजौ भंमरगुंजार उदाहरण गीत सुभ देह नीरद सुंदर, साधार सेवग स्रीवरं । रघुनाथ नाथ अनाथ रहे, हेल अध हरणं ॥ धर सुकर सायक धानुखं, लड़ समर रहचण लखं। दुज राज गरब विभंज दस्सत, सरब जग सरणं ॥ २४६ अथ गीत चौटियौ लछण दूही प्रगट जांगड़ा गीत पर, अधिक मत्त उगणीस । अंत दु गुरु तुक आणजे, कवि चौटियौ कहीस ॥ २४७ प्ररथ वैलियौ, सूहणौ, खुड़द, जांगड़ौ, यां च्यार ही गीतां छोटा सांणोरां मेहलौ । जांगड़ौ गीत पै'ली तुक मात्रा अठारै । बीजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळ । चौथी तुक मात्रा बारै होय । दो गुरु तुकत होय, पछै सोळ बार ई क्रम होय, जी जांगड़ा गीतरा दूहारै पांचमी तुक एक मात्रा उगणीसरो अधिक होय । दो गुरु तुकंत होय । इण प्रकार सू च्यार ही दूहा होय, जिणनै चौटियौ गीत कहीजै। २४६. नीरद-बादल । साधार-सहायक, रक्षक । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । सायक-तीर । धांनुखं धनुष । २४७. मत-मात्रा। उगणीस-उन्नीस । कहीस-कहेगा। बीजी-द्वितीय, दूसरी। बार बारह। ई-इस । Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । २६३ अथ गीत चौटियौ उदाहरण गीत जांमी अघ भान सुरसरी जेथी, ध्यांन मुनीसां धायौ । वरणे वेद यसा नग राघव, आं सरणे हूं आयौ । __ केसव रावळौ निज दास कहायो । त्रिभुवण मांझ नहीं त्यां तोलै, ओळे सुतअरब्यंदौ । म्है किव 'किसन' हुलासे चितमें, आसे लियौ अमंदौ । बर-सी राजरै चोटीकट बंदौ ॥ रज परसण उदमाद करै रिख, मरै हूंस मघवांणौ । क्रत दत कौट कियां हूं यधकौ, हरि नग ओट रहाणौ । कुळमें धन्य हूं किंकर कहांणौ ॥ भण चौरासी घेर उदध-भव, नरपत फेर नह नाचूं । कौसळनंद अडग 'किसनौ' कह, जुग जुग याही जाचूं । राघव रावळा चरणां नित राचूं ॥२४८ अथ गीत मंदार लछण दूहा तुक धुर बी सोळह मता, मोहरा मेळ गुरंत । ती अठार चौथी त्रिदस, तेरै कह रगणंत ॥ २४६ २४८. जामी-पिता । अघ-पाप । सुरसरी-गंगा नदी। जेथी-जहां । धायौ-स्मरण किया, भजन किया । यसा-ऐसा। नग-चरग। प्रां-उन। हं-मैं। रावळोश्रीमानका, आपका। त्रिमुवण-तीन लोक । मांझ-में, मध्य। तोलै-समान । सुत अरव्यंदौ-ब्रह्मा । बर-सी-सीतावर, श्रीरामचंद्र भगवान । राजर-अापके, श्रीमानके । बंदौ-सेवक, अनुचर। रज-धूलि । परसण-स्पर्शन । उदमाद-इच्छा। रिखऋषि । हूंस-अभिलाषा ! मघवांणौ-इंद्र । ऋत-कार्य, काम । दत-दान । यधकोअधिक। प्रोट-पाड़, शरण । रहाणौ-रह गया हूँ। हं-मैं। किंकर-दास, भक्त। कहांणी-कहा गया । रावळा-अापके। २४६. धुर-प्रथम । बी-दूसरी। मता-मात्रा। ज्यांरै-जिनके। गुरंत-जिस शब्दके अंतमें गुरु वर्ण हो। रगणंत-जिसके अंतमें रगण हो। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ ] रघुवरजसप्रकास अध पूरब जिम उतर अध, समझौ कवि सुविचार । क्रीत जेण बिच रांम कह, दाख गीत मंदार ॥ २५० अरथ पै'ली तुक मात्रा सोळे । बीजी तुक मात्रा सोळ । तीजी तुक मात्रा अठारै । चौथी तुक मात्रा तेरै होय । पैली बीजी तुक मिळे ज्यांरै गुरंत होय । पूरबारध उतरारध समान होय । पांचमी तुक मात्रा सोळे । छठी तुक मात्रा सोळे । सातमी तुक मात्रा अठारै और आठमी तुक मात्रा तेरै होय । अाठमीके रगणंत होय सौ मंदार नाम गीत कहीजै । अथ गीत मंदार उदाहरण गीत पण-राखण दास गदापांणी, मझ सौ कथ जाहर भूमांणी । अपखी प्रहळाद जिसा आतुर, संग्रहिया निज हाथसूं ॥ जे जुध हरणकुसनं जरियौ, धड़ नाहर मानवचौं धरियौ । जिण कारण देव दितेस दुजेसर, न्याय नमै रघुनाथरौँ । पित मात दसा तजया लंकन , बित जे चित हूं धू बाळकनें । बन जाय करे तप हेत विसंभर, अंक पया दळ ऊपरी ॥ घण साधै जोग सधीर घणे, सुर राजा कांपैं बात सुणै । निरधार अधार पधार नरायण, भूप कियौ द्रढ भूपरी ॥ दुरवासा डारण स्राप दियौ, लखजे अंबरीख उबार लियौं । बिच पेट परीछत मीच बचायर, थेट हरी जन थापिया ।। २५१. गदापाणी-विष्णु । भूमांणी-संसार, भूमंडल। अपनी-वह जिसका कोई पक्ष न करता हो । संग्रहिया-अपनाया, रक्षा की। जे-जिसने । हरणकुसनूं-हिरण्यकशिपुको । जरियौ-संहार किया। धड़-शरीर । नाहर-सिंह । मानवचौ-मनुष्यका । धरियोधारण किया। दितेस-दैत्य, दैत्येश । दुजेसर-द्विजेश्वर, महर्षि । विसंभर-ईश्वर । पया-पैर । दुरवासा-एक ऋषिका नाम। डारण-जबरदस्त। नाप-शाप । परीछतपरीक्षित । मीच-मृत्यु। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २६५ बळमीक पुळिंद रिखी बागौ, कीधौ गुरु सुकनाधिप कागौ । भख अंठित बोर करां कर भीलण, प्रेम घणां पद अप्पिया ॥ निरधारां अोठम घणनांमी, भुज दीन सीहाय ब्रद भांमी । नह विसार संभार ग्रहोनिस, जैनूं आलूं जांममें ॥ दिल ऊजळ ठाकर दासरथी, कथजे गुण आकर वेद कथी। कर तूं अभिलाख रदा 'किसना' किव, राख सदा चितरांममें ॥२५१ अथ गीत झडलुपत सावझड़ौ लछण सावझड़ी रमणी वसंत, तुक धुर बी मिळ बेद । मोहरौ तुक तीजी अमिळ, सौ झड़लुपत सुभेद ॥ २५२ प्ररथ गीतांरा प्रकरणमें पै'ली तीन सावझड़ा कहया । अक वसंतरमणी, बीजौ जयवंत नै तीजौ मुणाळ, ज्यांमें पै'लौ वसंतरमणी नाम सावझड़ौ, जिणरै पैली तुक मात्रा अठारै होय नै और सारा ही गीतरी सारो ही तुकांमें सोळे सोळ मात्रा होय। तुकंत भगण होय सौ तौ वसंतरमणी सावझड़ौ, जिणरी च्यार ही तुकां मिळे नै झड़लुपतरी पैली तुक दूजी तुक चौथी तुक मोहरा मिळे नै तीजी तुक मोहरौ मिळे नहीं, जिणनं झड़लुपत कहीजै तथा कोई कवि यणने त्रिमेळ पालवणी पण कहै छै सौ पण सत्य छै। अथ गीत त्रिमेळ पालवणी तथा झड़लुपत सावझडौ उदाहरण दत किरमर जोड़ नको विरदायक । घण दळ रोड़ कौड़ खळ घायक ॥ २५१. बळमीक-बाल्मीकि ऋषि। पुळिद-एक प्राचीन कालकी पिछड़ी जाति । रिखी-ऋषि । कीधौ-किया। सुकनाधिप-गरुड़। कागौ-काकभुशुण्डि । अंठित-ऊच्छिष्ठ । अोठमशरण, सहारा। घणनामी-ईश्वर । ब्रद-विरुद। भामी-बलैया। जैन-जिसका। पाठं जांममें-अष्ठ याममें । दासरथी-श्रीरामचंद्र भगवान । २५२. धुर-प्रथम। बी-द्वितीय । बेद-चतुर्थ, चौथी। मोहरौ-तुकबंदी। अमिळ-नहीं मिलने वाली। ज्यांमें-जिनमें । यण-इस । पण-भी। २५३. दत-दान । किरमर-तलवार । जोड़-समान । नको-कोई नहीं। विरदायक-विरुद धारी, यशस्वी। घण-बहुत । दळ-सेना, फौज। रोड़-रोक कर। खळ-शत्रु । घायक-संहार करने वाला। गीत Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ । रघुवरजसप्रकास अघ तम दळद तोड़ दुत आसत । निज कुळ मौड़ जानकी नायक ॥ जुध आचार भार भुज जोपत । रिमहर मार धजा जय रोपत ॥ वदै तमाम वेद मनीवर । औ रवि वंस राम रवि ओपत ॥ नूप खग दांन लियां मुख नूर ज । प्रसणां भांन खित्रीवट पूरज ॥ बळबळ प्रथी सुजस सद बोलत । सूरज तड़ दासरथी सूरज ॥ सदन सुकंठ भभीखण सामंत । निरख कंठदस भांज अनामत ॥ रे कुळभांण भांण नूप राघव । कौड़'क भांण लियां मुख क्रांमत ॥ २५३ अथ गीत त्रिपंखौ लछण धुर बी तुक मत सोळ धर, ती तुक बीस मताय । गळ अनियम मिळबौ, श्रेक त्रिपंखौ गाय ॥ २५४ २५३. अघ-पाप । तम-अंधेरा। दळद-दारिद्रय, कंगाली। दुत-द्युति । आसत-शक्ति । प्राचार-दान । जोपत-जोशमें होता है । रिमहर-शत्र । रोपत-रोपता है । तमांम-सब । रविवंस-सूर्य वंश। रवि-सूर्य । प्रोपत-शोभा देता है। नप-राजा। नूर-कांति, दीप्ति । ज-ही। प्रसणां-शत्रयों। भान-नाश कर। खित्रीवटक्षत्रियत्व। पूरज-पूर्ण । बळ बळ-चारों ओर। सद-शब्द। बोलत-बोलता है। तड़-दल । दासरथी-श्री रामचन्द्र । सदन-भवन । सुकंठ-सुग्रीव । भभोखणविभीषण । सामंत-योद्धा। निरख-देख, देख कर। कंठदस-रावण । भांज-नाश कर । अनामत-जो नहीं झुकता या नमता था। कुळ भाण-सूर्य वंश । भांण-सूर्य । कौड़' क-करोड़ों। क्रांमत-कांति, दीप्ति । २५४. बी-दूसरी । मत-मात्रा । तो-तीसरी। मताय-मात्रा । गळ-अनुप्रास, तुकबंदी। Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २९७ प्ररथ पै'ली तुक मात्रा सोळे । दूजो तुक मात्रा सोळ होय । पै'ली ही दूजी तुकारा मोहरा मिळे । तुकांत लघु गुरुरौ नेम नहीं। कठेक गुरु मोहरा, कठे'क लघु मोहरा होय । तुक तीजी मात्रा बीस होय । मोहरौ मिळे नहीं। गुरु लघु तुकांत नेम नहीं । यण रीतसू च्यार ही दवाळा होय जिण गीत त्रिपंखौ गीत कहै छै। अथ गीत त्रिपंखौ उदाहरण गीत सारंग हण आया अवधेसर, सेसहूंता पूछ राजेस्वर । किण-विध न दीसै सीत सूनी कुटी ॥ काहिल बांण कूक म्रग कीधी, दौड़ लछण अग्या मौ दीधी। भूप म्हैं नटै जद कटुक कथ भाखिया ॥ अह वायक सुण रांम उचारै, वनिता वयण पुरख न विचारै । करी वन त्री ढली जका भोळप करी॥ अह कथ सुण बंधव आगी, जपै सेस ज्वाळा तन जागी। सत्र कर भंज हं आंण बंधव सिया ॥ भ्राता कंठ लगाडै भाई, स्त्रीबर सुर कज बात सुणाई। त्रिलोकीराव नर भाव तन विसतारे ॥२५५ २५५. सारंग-हरिण । हण-मार कर । अवधेसर-श्री रामचंद्र भगवान । सेसहूंता-लक्ष्मणसे। राजेस्वर-राजेश्वर। किण-विध-किस प्रकार । दीस-दिखाई देता है। सीत-सीता। काहिल-घायल । कूक-पुकार । कोधी-की। लछण-लक्ष्मण । अग्या-अाज्ञा। मौमुझको। दीधी-दी। जद-जब । कटुक-कटु, कठोर । कथ-वचन । भाखिया-कहे। प्रह-लक्ष्मण। वायक-वचन । वनिता-स्त्री। वयण-वचन । पुरख-पुरुष। त्रीस्त्री। ढली-छोड़ी। जका-जो। भोळप-भूल । अह-यह । कथ-वचन । बंधवभाई। प्रागी-अगाड़ी। जंपै-कहता है । सेस-लक्ष्मण । ज्वाळा-कोपाग्नि। तनशरीर । सत्र-शत्रु । भंज-संहार, ध्वंश। हं-मैं । प्राण-ले आऊँ। बंधव-भाई। सिया-सीता। स्रीबर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचंद्र । सुर-देवता। कज-लिए । त्रिलोकीराव-श्री रामचंद्र। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] रघुवरजसप्रकास वारता गीत पालवणी १, गीत झड़लुपत २, गीत दुमेळ ३, गीत त्रबंकड़ौ ४ नै सावक अडल, श्रे पांच छोटे सांणोररी विखम तुक पै'ली, तुक तीजी श्रे विखम तुक त्यांरा वणै नै यतरा गीतारै तुक प्रत सोळ मात्रा हुवै नै मोहरामें तफावत होय । कठे'क गुरु तुकांत कठे'क लघु तुकांत होवै नै यतरा गीत बडा सांणोररी विखम तुकारा वणे, सावझड़ो परध सावझड़ौ प्राद। तुक प्रत मात्रा बीस होय । पै'ली तुक मात्रा तेवीस होय । अथ गीत वडा सावझड़ा तथा अरध सावझड़ा लछण दूहौ मुण धुर तुक तेवीस मत, अवर वीस रगणंत । मिळ चव तुक वड सावझड़ौ, दुमिळ अरध दाखंत ॥ २५६ प्ररथ गीत बडौ सावझड़ी नै अरध सावझडौ दोन्यूई वडा सांणोररी विखम तुक पै'ली तीजोरा हुवै। पै'ली तुक मात्रा तेवीस । बीजी तुक मात्रा बीस और सारा ही तुकां मात्रा बीस होय । तुकांत रगण पावै नै च्यारू तुकारा मोहरा मिळे सौ वडौ सावझडौ नै अरध सावझड़ारै दोय तुकांत मिळे नै कठेक रगण तुकांत आवै, कठे'क गुरु करणगण तुकांत पावै ौ भेद सौ अरध सावझडौ कहावै । अथ गीत वडौ सावझड़ौ उदाहरण गीत लछग कसीसै भुजां धांनंख दध लाजरा । गोम नभ धड़ड़ आनंक जय गाजरा ॥ सझण पारंभ किय उछव सांमाजरा । रे असुर देख आरंभ रघुराजरा ॥ २५६. मुण-कह । अवर-अन्य । रगणंत-जिस पद्य के चरणके अंतमें रगण हो। चव-- चार। दाखंत-कहते हैं। नै-और। दोन्यूई-दो ही, दोनों ही। बीजी-दूसरी । कठेक-कहीं पर। करणगण-दो दीर्घ मात्रा का नाम । २५७. लछण--लक्ष्मण । कसीस-धनुषकी प्रत्यंचा चढ़ाता है। धांनंख-धनुष । दध (उदधि) सागर। गोम-पृथ्वी । धड़ड़-ध्वनि हो कर, गर्ज कर। प्रानंक-नगाड़ा। पारंभ-तैयारी। प्रारंभ-तैयारी। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ २६६ रारियां सुभट तूट दमंग रीसरा । त्रिलोचण जिसा खुटै नयण तीसरा ॥ सिर कसै ऊकसै लसै भुजगीसरा । जोय दससीस थट कीस जगदीसरा ॥ दहल पुर नयर पूगी महळ दोयणां । भय रहित किया सुर नाग नर-भोयणां ।। उमंग जुध करग चंचळ अचळ औयणां । लेख लंकेस अवधेस दळ लोयणां ।। मांन पीव वचसूप ससमाथनै । हर चरण जाह जुड़ दूणदसहाथनै ॥ कुळ अनेक करै निज सुधारै काथनै । नांम तौ माथ दसमाथ रघुनाथनै ॥ २५७ . अथ गीत अरध सावझडौ उदाहरण [ऊपरला सावझड़ा गीतनै दुमेळ कर पढणौ तथा दरसावां छां] गीत कमर बांधियां तूण सारंग गहियां करां । सकर खग दांन जेहांन ऊचासरा ॥ २५७. रारियां-नेत्रों । दमंग-अग्निकरण । त्रिलोचण-शिव । खूट-खुलते हैं । भुजगीसरा-शेषनागके । जोय-देख कर । दससीस-रावण । थट-समूह, दल । कोसवानर । दहल-धाक, रौब । नयर-नगर । पूगी-पहुंच गई। दोयणां-शत्रुओं । सुर-देवता । नर-भोयणां-नर लोक, संसार । करग-हाथ । प्रौयरणां-चरणों, पैरों। लेख-देख कर, समझ कर। लंकेस-रावण । अवधेस-श्रीरामचन्द्र भगवान । दळसेना) लोयणां-तेत्रों, लोचनों। पीव-पति । वच-बचन । ससमाथ-समर्थ, शिव । दुणदसहाथ-रावण। काथन-वैभवको। नाम-झुका दे। तौ-तेरा। माथमस्तक । दसमाथ-रावण । ऊपरला-उपर्युक्त, ऊपर का। दुमेळ-बह छंद या पद्य जिसके प्रथम दो चरणोंकी तुकबंदी हो। २५८. तूण-तर्कश। सारंग-धनुष । गहियां-पकड़े हुए। करां-हाथों। जेहांन-संसार । ऊंचासरा-श्रेष्ठ । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० ] रघुवरजसप्रकास सुचित धंका जनां निवारण सांकड़ा । वाह रघुनाथ लंका लियण बांकड़ा ॥ २५८ अथ दुतीय गीत झड़मुकट लछण खुड़दतणै तुक अग्ग पछ, देह झमक दरसाय । जिणनूं दूजौ झड़ मुकट, रटै वडा कविराय ॥ २५६ खुड़द गीत छोटौ सांणोर होय ! पैली तुक मात्रा अठारै । दूजो तुक मात्रा तेरै। तीजी तुक मात्रा सोळे नै चौथी तुक मात्रा तेरै होय । तुकांत दोय लघु होय सौ खुड़द गीत कहावै । जी खुड़द गीतरी सोळे ई प्रत तुकरै पाद अंत जमक होय सौ गीत बीजौ झड़मुकट कहावै । अंक प्रागै कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । सावझडौ छै। अथ गीत झड़मुकट उदाहरण गीत रेणायर मथण मथण रेणा यर, भर धर टाळण समर भर । कर जन साता जगत अभै कर, वरदाता जानकीवर ॥ सारंग पांण बांण तन सारंग, धरणसुता धव खग धरण । वारण जम भै तारण वारण, करण प्रसुण अघ सुख करण ॥ धर ध्रम चाळण घरम धुरंधर, कमळ पांरण मुख चख कमळ । नायक अकह जांनुकी नायक, अचळ तार दध जुध अचळ । २५८. धंका-इच्छा · बांकड़ा-बाँकुरा ।। २५६. जी-जिस । झमक-यमकानुप्रास । बीजो-दूसरा । २६०. रेणायर-समुद्र। मथण-मंथन । रेणा-पृथ्वी । यर-शत्र । भर-बोझ । धर पृथ्वी। टाळण-दूर करने वाला। समर-यूद्ध। साता-कुशल । वरदाता-वरदान देने वाला । जानकीवर-सीतापति, श्रीरामचंद्र भगवान । सारंग-धनुष । बांणतीर । सारंग-बादल, मेघ। धरण-सुता-सीता। धव-पति । खग-तलवार । वारण-मिटाने वाला। जम-यमराज। भै-भय। तारण-तारने वाला। वारणहाथी । पाण-हाथ। चख-चक्ष, नेत्र । प्रचळ-पर्वत । दध-उदधि, समुद्र । प्रचळ-हढ़, अटल । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३०१ धन अन विलस जनम मानव धन, म कर ईरखा तन मकर । सर पर कियौ चहै व्है जग सिर, धर निज मन रघुवर सधर ॥२६० अथ गीत दुतीय सेलार लछण दूहौ धुर अठार सोळह सरब, सावझड़ौ अध सोय । अलंकार विध चतुर तुक, सख सेलारह सोय ॥ २६१ प्ररथ अंक सेलार गीत तौ पैली कह्यौ अर दूजारौ यौ लछण छै। पै'ली तुक मात्रा अठारै और सारी तुकां मात्रा सोळे सोळ होय । गुरु लघु तुकंतरौ नेम नहीं पण गुरु तुकंत बोहोत होय । चौथी तुकमें कह्यौ सब्दारथ फेर कहणौ विधअलंकार होय, जी गीतनै दुतीय सेलार गीत कहीजै । अथ गीत सेलार उदाहरण गीत चित करणी म्रखा दिसी नह चाहै, आप विरदचा पखा उमाहै। पतित खीण कुळहीण अपारै, तारै रे सीतावर तारै ॥ कळिया दुख सागर जन काढे, विपत रोग अघ आगर बाढै । नातौ दीनदयाळ निहाळे, पाळे रे संतां हरि पाळे ॥ अजामेळ सा घोर अधम्मी, नारी गणिका भील निकम्मी। असरण दीन अनाथ अथाहै, साहै रे माधौ कर साहै ।। २६०. धन-धन्य । म-नहीं। ईरखा-इर्ष्या । २६१. अध-प्राधा, अद्भ। सोय-वह, उस। सख-कह । सारी-सब । बोहोत-बहुत । जी-जिस । दुतीय-द्वितीय । २६२. म्रखा (मृषा)-असत्य, व्यर्थ । खीण-क्षीण । अपार-अपार । सीतावर-श्रीरामचंद्र । कळिया-डबा हा, मग्न । जन-भक्त। काई-निकालते हैं। प्रध-पाप । प्रागर-समुह । बाढे-काटते हैं। नातौ-संबंध, रिश्ता। निहाळे-देखते हैं। पाळ-पालन-पोषण करते हैं। अधम्मी-अधर्मी । निकम्मी-बेकार, नीच । साहै-उद्धार करते हैं । माधौमाधव, विष्ग्ग। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ ] रघुवरजसप्रकास गाफिल आळ जंजाळ न गावै, 'किसन' कह जमहूंत म कंपै, जंपै रे मन भुज सांभळ सरम भळावै I राघव जपै ॥ २६२ अथ गीत त्राटकौ लछण दूहा धुर अठार सोळह दुती, ती सोळह मिळतेह | बेद ग्यार तुकंत बळ, ख गुरु लघु ग्रच्छेह ॥ २६३ मिळ तीन तुक चादरी, त्रिण तुक अंत मिळत | मिळ चवथी आठमी, किव त्राटको कहंत ॥ २६४ अरथ त्राटकरै पै'ली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा सोळं । तीजी तुक मात्रा सोळ | चौथी तुक मात्रा अग्यारै । गुरु लघु तुकंत होय । पांचमी तुक मात्रा सोळं । छठी तुक मात्रा सोळ । सातमी तक मात्रा सोळ होय । प्राठमी तुक मात्रा ग्यार होय । गुरु लघु तुकंत होय । पछै सारा दूहां पै'ली तुक सोळं । दूजी तुक मात्रा सोळं । तीजी तुक मात्रा सोळं तुक मात्रा सो । छठी तुक मात्रा सोळ | तुक मात्रा श्रग्यारै । पै'ली दूजी तीजीरा मोहरा मिळं । पांचमी छठी सातमीरा मोहरा मिळ । यण रीत होय सौ गीत त्राटको कहा । । चौथी तुक मात्रा प्रग्यारै। पांचमी सातमी तुक मात्रा सोळं । ग्रामी अथ गीत त्राटको उदाहरण गीत भज रे मन रांम सियावर भूपत, अंग घणाघण सोभ अनूप । नीरज जात सुगाथ निरूपित, कौटिक कांम सकांम ॥ २६२. सांमळियौ - श्रीकृष्ण, श्रीराम | भळा - सौंप देता है । जमहंत - यमराजसे । कंप डरना । २६३. दुती - दूसरी । ती - तीसरी । बेद-चौथी, चतुर्थ । श्रग्यार- ग्यारह | बळ - फिर । प्रख - कह । श्रच्छेह - अंत में । २६४. तिण-तीन । चवथी-चौथी। किव - कवि । कहंत कहते हैं । पछे - बादमें, पश्चात । मोहरा - तुकबंदी | २६५. सियावर - सीतापति, श्रीरामचंद्र । घणाघण-- बादल । अद्भ ुत । नीरज - कमल । सुगाथ - सुन्दर शरीर । सोभ- कांति, दीप्ति । श्रनूपकौटिक करोड़ 1 Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३०३ पीत दूकूळ कटी लपटांणौ, बीर अभंग निखंग बंधांणौ । अंस अजेव धनू उरमाणौ, रूप यसै नप रांम ॥ सोहत बाम दिसा निज सौता, बादळ बीज प्रभाव वनीता। पाय खळांहळ गंग पुनीता, की ताखै अघ कोड़े। लोभत कंज सरभ्र लोयण, भाळ सखी नहचै नर-भोयण । आहव खंभ विजै जिम औयण, माणस दोयण मोड़े ॥ जै रघुराज जपै जगजाहर, है उर मांझ निवास सदा हर । सेस धनेस दिनेस स्टै सुर, ईखण जे अभिलाख ।। माथ पगां सुरनाथ नमावै, गौरव सारद नारद गावै । पार गुणां करतार न पावै, सौ स्रति संप्रत साख ॥ मारुति जेण कियौ अजरामर, केकंध भूप सुकंठ दियौ कर। रीझ भभीखण लंक नरेसुर, की जन सारै काज ॥ ऊ करसी चित सोच असंन्नह, सास उसास संभार रसंन्नह । कीरत स्त्रीवर भाख 'किसन्नह', राख रिदे रघुराज ॥२६५ अथ गीत मनमोह लछण दूही कह दूहौ पहला सुकब, कड़खा ता पर कथ्थ । पंथ प्रगट कड़खौ दुहौ, सौ मनमोह समथ्थ ॥ २६६ २६५. पोत-पीला । दूकूळ-वस्त्र । लपटांणी-प्रावेष्ठित । निखंग-तर्कश । धनू-धनुष । सोहत शोभा देती है। बांभ-बायां । दिसा-तरफ, ओर। बीज-बिजली । वनीता-स्त्री। पायचरण । खळांहळ-जलप्रवाहकी ध्वनि । गंग-गंगा नदी। पनीता-पवित्र । लोभतलोभायमान होते हैं। कंज-कमल । लोयण-लोचन, नेत्र। भाळ-देख । नहचैनिश्चय । नर-भोयण-नर लोक । पाहव-युद्ध । औयण-चरण । मांणस-मनुष्य । दोयण शत्र । मांझ-मध्य। हर-महादेव । धनेस-कुबेर । दिनेस-सूर्य । सुरदेवता। ईखण-देखनेकी। अभिलाख-अभिलाषा, इच्छा। माथ-मस्तक । पगांचरणों। सुरनाथ-इन्द्र । गौरव-यश । सारद-सरस्वती। मारुति-हनमान । जेण-जिस । अजरामर-वह जो न तो बद्ध हो और न मरे, अमर । केकंध-किष्किया। सुकंठ-सुग्रीव। रीझ-दान। भभीखण-विभीषण । ऊ-वह। असंबह-भोजन । रसंन्नह-जीभ । भाख-कह । रिदे-हृदय । २६६. ता-उस । कथ्थ-कह । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ पै'लां तौ अंक दूहौ कहीजै। पछै दूहा ऊपर कड़खा छंदरी च्यार तुकां कहीजै। यण तरै अंक अक हौ वणै । यसा च्यार दूहा होवै जिण गीतरौ नांम मनमोह कहीजै। दूहारी तुक प्रत मात्रा तेरै। ग्यारै, तेरै, ग्यारै कड़खारी तुक प्रत मात्रा सैंतीस होय । दुहा कड़खारौ लछण यण ग्रंथमें प्रसिध छै सौ देख लीज्यौ। अथ गीत मनमोह उदाहरण गीत तारै दासां त्रिकमाह, भय वारै जम भूप । हूं बळिहारी स्रीहरी, रै थांने निज रूप ॥ रूप थारौ हरि हरि भूप त्रयलोकरा । मांझ अनूप त्रैभू न मावै ॥ नाग नर देव भूपाय आहुट नथो । गणी बळदाब तळ वेद गावै ॥ दास तन भजन विन तौ सबी दासरथ । थिरू बस कौड़ बाते न थावै ।। देवपत रूप वैराट थारौ दुगम । अणु मन सेवगां सुगम आवै ॥ आवै तूं ऊतावळौ, पावै दास पुकार । धारण गिर ज्यूं धांमियो, बारण तारण बार ॥ वार वारण तिरण करण कारण विसन । घरण तज तरण ब्रद चीत घालै ॥ २६७. त्रिकमाह (त्रिविक्रम)-विष्णुका एक नाम । वार-दूर करता है। मांझ-मध्य, में । भू-तीन भवन, त्रिभुवन । देवपत-विष्णु। वैराट-महान, बड़ा। दुगम-दुर्गम । सुगम-सरलता से । ऊतावळौ-शीघ्रतासे। पावै प्राप्त करता है। बारण-हाथी । बार-अवसर, समय । विसन-विष्णु। घरण-गृहिणी, स्त्री। Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास मंद लख वाह सुपरण तजे मागमें | चरण ऊबांह धरण चाले || [ ३०५ हरोली | हरण नकण व सुदरसण पाय तंता गरण छिद अपाळ ॥ खंड जळवार गिरधार आरत खटक | फटक करतार करतार झाले ॥ झाले भुजडंड झूसरी, मार कुंड यर मांग । भांज रांम कोडंड भव, प्रचंड खित्रीवट पांण ॥ पांग खित्रीवट घट मित्र जग पायौ 1 रिख त्रिया तिरी रिखदेव रंजे ॥ जानकी व्याह उछाह पर धनुख जिग । सुज नूपत नग आरंभ संजे ॥ सैबळ भूप न जनक मन दुमन लख । भुजां बळ दासरथ चाप भंजे ॥ बांण दसमाथ भ्रगुनाथ दे दबोह | गाव रघुनाथ खळ साथ गंजे ॥ गंजे रिम केतां गरब, धार सरब बद घेठ । दे कौड़ां दुजबर दरब, जीत परब जग-जेठ || २६७. वाह - गति. चाल, वाहन । सुपरण- गरुड़ । मागमें मार्ग में । ऊबहिण - बिना वाहन या बिना पैरोंमें जूती पहने हुए । धरण-भूमि । हरण - मिटाने को । नक्रण- मगर, घड़ियाल | सुदरसण - सुदर्शन चक्र । हरोली- ग्रग्र, अगाड़ी । भटक- शीघ्र | भांजतोड़ कर । कोडंड-धनुष । भव- महादेव । खित्रीवट -क्षत्रियत्व । पांण-बाहु, भुजा, । हाथ | श्रघट - अपार । मित्र - विश्वामित्र । जग-यज्ञ । पाळियौ-रक्षा की। रिखऋषि । त्रिया - स्त्री । रंजे प्रसन्न हुए । व्याह - विवाह । पण-भी, परन्तु । धनखधनुष । जिग-यज्ञ । लसै शोभा देते हैं प्रन - अन्य । दुमन खिन्न उदासीन । लखदेख कर । दासरथ - श्रीरामचंद्र भगवान । चाप - धनुष । बांण - बाणासुर राक्षस । दसमाथ - रावण । भ्रगुनाथ- परशुराम । श्राद- प्रादि । बोह-बहुत । खळ- असुर । साथ-समूह | गंजे - नाश किया, मिटाया । रिम-शत्रु । केतां- कितनोंका । गरबगर्व । ब्रद- विरुद | घेठ-जबरदस्त । कौड़ां-करोड़ों । दुजबर - ब्राह्मण । दरब-धन, द्रव्य । परब-उत्सव, यज्ञ । जग-जेठ-ईश्वर, श्रीरामचंद्र भगवान । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ ] रघुवरजसप्रकास जेठरा भांग सम सह बरफांग जम | मांण दुजरांण असहांग मारे ॥ किता जुध जीत ग जीत नहचळ कदम । सेवगां प्रीत कर काज सारे ॥ रोपियां दास यर जास कीधा सरद । धींग रविवंस भुज बिरद धारे || रटै कवि 'किसन' महराज तन लाज रख । ते रघुराज के संत तारे ॥ २६७ दूजा दूहारौ रथ वाणी धारी आरतरी जिण खटक क्रोध पर जळचर ग्राहनै खंड्यौ न करतार कर झाले हाथ पकड़ कर हाथीने तारयौ झटक सताबीसू - इति प्ररथ । अथ गीत ललितमुकट लछण दूहौ प्रथम दूहौ कर तास पर, दाख त्रिभंगी छंद । ललित मुकट जिमसीहलख, कह जस रांम कव्यंद ॥ २६८ श्ररथ पैली हो कही । जठाउपरांत दूहा पर त्रिभंगी छंदरी तुक च्यार कहीजै । यण तरै च्यार ही दूहा होय । सिंघावलोकण तरै तुक होय जिण गीतरौ नांम ललितमुकट कहीजै । दूहारौ नै त्रिभंगी छंदरौ लछण या ग्रंथ में प्रसिद्ध छै जिणसूं प्रठे दूहारी नै त्रिभंगीरौ लछण न कह्यौ छै । २६७. जेठरा- जेष्ठ मासका | भांग सूर्य । सम-बराबर, समान । श्रसह शत्रु । बरफांणबर्फ, हिम । जम- एकत्रित । मांण - गर्व । दुजराण - परशुराम । श्रसहांण-शत्र ु, शत्रु राजा । श्रगजीत-विजयी । नहचळ - निश्चल, ग्रटल । कदम-चरण । सेवगांभक्तों । प्रीत-प्रीति, प्रेम काज कार्य । सारे सफल किये । यर-शत्रु । कीधाकिये । सरद - पराजित | धींग -जबरदस्त, समर्थ । तेण उस के कई । तारेउद्धार किये । वांणी - पुकार । प्रारतरी-दुखीकी । खटक - क्रोध | खंड्यौ - मारा । सताबी- शीघ्र | 1 २६८. तास-उस । दाख- कह । जठाउपरांत - तत्पश्चात । कव्यंद ( कवीन्द्र ) - महाकवि । सीहलस - सिंहावलोकन | यण- इस । तरै- तरह, प्रकार | Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ गीत ललित मुकट उदाहरण गीत वडा भाग ज्यांरी विसू, लछबर चरणां लाग । पाव रांम गुण प्रीतसूं, आठ पहर अनुराग ॥ राघव अनुरागी भव बडभागी मति सुभ लागी पंथमही । हरि संत कहांही जम भय नांही स्यंध तिरांही सुभ वसही ॥ कहि सिव सनकादं धू प्रहळद ग्रहपत बाद जेण जपै । सुक नारद व्यासं जल कहि जासं थिर कर तासं दास थपै 11 थपे दास कर सथर, रघुबर किता अरोड़ | बिरद पीत 'सागर' बिये, मीततकुळ मौड़ | मौड़ कुळमीता धरि जीता, लख जस लीता वन खै । दास उधारे सरण - सधारे रांमण मारे सुमन सखै ॥ सुग्रीव सकाजा रच कपिराजा भूपत निवाजा भ्रात भये । भुरजास भभीखण क्रत दत कंचण साख पुरांगण वेद सुणे || सु छकोटा तन सुजस, रिम दोटा सुर रंज । धन राघव मोटा धणी, भव जन तोटा भंज ॥ [ ३०७ २६६. ज्यांरी - जिनकी । विसू-भूमि । लछबर - लक्ष्मीपति । गुण-यश । श्रनुराग- प्रेम । अनुरागी - प्रेमी । भव - संसार, जन्म | बडभागी - बड़ा भाग्यशाली । मति- बुद्धि । जम - यमराज | स्यंध (सिंधु) - समुद्र । धू -भक्त ध्रुव । ग्रहपत - शेषनाग | श्रादआदि । जेण - जिसको । जासं जिसका । थिर-स्थिर, दृढ़ । तासं उसको । दासभक्त । थप - स्थापित करता है । थपे - स्थापित किये । सथर (स्थिर) - अटल । किता - कितने । श्ररोड़ - जबरदस्त । सागर-सूर्यवंशी एक राजाका नाम । बियेवंशज, दूसरा । मीततणकुळ- सूर्यके वंशका | मौड़ - श्रेष्ठ । कुळमीता - सूर्यवंश । अवन - पृथ्वी, संसार । श्रख - कहता है । सरण-सधारे - शरण में आए हुएकी रक्षा की । सुमन - देवता । सखे - साक्षी देते हैं । ऋत - किया । दतदान | कंचन - सुवर्ण, सोना। छकोटा - समूह, पुँज । रिम-शत्रु । दोटा-नाश । सुरदेवता । रंज- प्रसन्न कर । भव-संसार, जन्म । तोटा कमी, प्रभाव, हानि । भंज श्रुत-बहुत नाश । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ ] रघुवरजसप्रकास तूं भंजण तोटा अनम अंगोटा जुध यर जोटा जै वाणं । रिख गोतम नारी उपळ उधारी देह सुधारी देवांणं ॥ पय मिथुला पथ्थं साझ समथ्थं हण धनु हथ्थं पह पांणे । सिय परण सिधाये दुजपत आये गरब गमाये जग जाणे ॥ जग जाणै बळ जगतपत, कुळ हांणे दसकंध । सुख गिरबांण समपिया, आणे सिया उकंध ॥ आणे सिय उकंध जीपण जंग रूप अभंगं दासरथी। आकाय अनंत तारण संतं क्रीत सुमंतं वेद कथी । न भजै रघुनंदं दयासमंदं जे मतमंदं जांण जडा। गुण राघव गाणे ‘किसन' कहाणै विच प्रथमांणे भाग वडा ॥२६६ अथ गीत मुकताग्रह लछण दही कह प्रहास सांणोर किव, अंत विखम सम ाद । तुक सिंघाविलोकण तिम, मुकताग्रह मुरजाद ॥ २७० अरथ प्रहास सांणोर कहौ तथा गरभित सांणोर कहौ जिण प्रहास सांणोररी २६६. भंजण-नाश करने वाला। अनम-नहीं नमने या मूडनेका भाव । अंगोटा अंगुष्ठ । यर-शत्र । जोटा-समूह । उपळ-पत्थर । उधारी-उद्धार किया। देवाणंदेवता। पय-चरण । पथ्थं-मार्ग । समथ्थं-समर्थ । हण-नाश कर । धनु-धनुष । हथ्थं-हाथ। पह-प्रभ । पांणे-शक्तिसे, बलसे । परण-विवाह कर। सिधायेप्रस्थान किया। दुजपत-परशराम । गरब-गर्व । गमाये-नाश किया। जगसंसार । बळ-शक्ति। जगतपत-ईश्वर, श्रीरामचंद्र भगवान । हांणे-नाश किया। दसकंध-रावण। गिरबाण-देवताओंको। समपिया-दिया। उकंध-उद्धरस्कंध । जीपण-जीतनेको। जंग-युद्ध । दासरथी-श्रीरामचन्द्र भगवान । प्राकाय-शक्ति, बल । अनंतं-अपार, ईश्वर, श्रीरामचंद्र । क्रीत-कीर्ति । रघुनंदं-श्रीरामचंद्र । दयासमंद-दयासागर । जे-वे, जो। मतमंद-मतिमंद, मूर्ख । विच-बीच । प्रथमाणे पृथ्वी में, संसारमें। २७०. किव-कवि। मरजाद-मर्यादा। www.jaineli Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३०६ विखम तुक कहतां पै'ली तीजी नै सम तुक कहतां दूजी चौथो पै'लो तुकरौ अंत नै सम तुकरौ श्राद होय जठे स्यंघाविलोकण तरै होय, जिणनै मुकताग्रह गीत कहीजै । अथ गीत मुकताग्रह उदाहरण गीत सुतण दासरथ रूप लसवांन कौटक समर । समर जसवांन नूप सियासांमी ।। तवंतां नाम नसवान अघ भवतणा । भवतणा हिया वसवांन भांमी ।। चीत ऊदार दत कनक आपण चुरस । चुरस निज जनक कुळ आब चाड़ा ॥ धड़च दससीस खळ रहण हिकधारणा । धारणा धनख सर भुजा धाड़ा ॥ लोभियां क्रीत कज गंज समपण लछी । लछीवर सराहे त्रिहूं लोका ॥ खेध अह पंज विमुहा खड़े झाट खग । झाट खग थाट यर भंज झोका ॥ २७०. जठे-जहां। स्यंघाविलोकण-सिंहावलोकन । तरै-तरह । २७१. सुतण-पूत्र । लसवान-शोभायमान । कौटक-करोड़ों। समर-कामदेव । समर युद्ध । जसवांन-यशपूर्ण, यशस्वी। सियासांमी-श्रीरामचंद्र । तवंतां-कहने पर । नसवांन-नाश । अघ-पाप । भवतणा-जन्मके, संसारके । भवतणा-महादेवके । हियाहृदय । वसवांन-निवास करने वाला। भांमी-न्यौछावर, बलैया। चीत ऊदारचित्त उदार, दातार। दत-दान । कनक-सुवर्ण, सोना । पापण-देनेको, देने वाला। चरस-चाहसे, इच्छासे, हर्ष, प्रसन्नता । चुरस-श्रेष्ठ । जनक-पिता । प्राब-कांति, दीप्ति । चाड़ा-चढ़ाने वाला । धड़च-संहार कर, मार कर । दससीस-रावण । हिकधारणा-एक ही तरह । धारणा-धारण करने वाला। धनख-धनुष । सर-तीर, बारण। धाड़ा-धन्य-धन्य । लोभियां-लोभ करने वाले। कज-लिये। गंज-पुज, समूह। समपण-देने को। लछी-लक्ष्मी। लछीवर-लक्ष्मीपति, विष्णु। सराहेप्रशंसा करते हैं , खेध-द्वष । प्रह-नाग, हाथी। पूज-समूह । विमहा-विमुख । झाट-प्रहार । खग-तलवार । थाट-समूह, दल। यर-शत्रु । झोका-धन्य-धन्य । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० ] रघुवरजसप्रकास संत जण तरण चख क्रपा रुख साहरै । साह रे विरद भुजडंड सिघाळा ॥ वीस भुज भांजणा समर हथवाह रे । वाह रे राम अवधेस वाळा ॥ २७१ अथ गीत पंखाळौ लछण दहौ छोटा वडा सांणोर रौ, नेम नहीं नहचेण । निमंधे त्रिण दूहा निपट, तवै पंखाळी तेण ॥ २७२ अथ गीत पंखाळौ उदाहरण गीत दसरथ नप नंदण हर दुख दाळद, मिटण फंद जांमण मरण । कर आणंद वंद नित 'किसना', चंद रांम वाळा चरण । दीनानाथ अभै पद दानंख, भांनख अंतक समर भर । मांनख जनम सफळ कर मांगण, धांनखधर पद सीसधर ॥ सुरसर सुजळ नमळ संजोगी, दळ मळ अघ ओघी दुख दंद। साझ कमळ पद रांम असोगी, मन अलियळ भोगी मकरंद ॥२७३ अथ दुतीय वरण उपछंद गीत सालूर लछण दूहा धुर बे गुरु चौवीस लघु, अंत सगण तुक ओक । सावझड़ौ यम च्यार तुक, विध सालूर विवेक ॥ २७४ २७१. जण-भक्त। चख-नेत्र। साह-अापके । साह-धारण करता है। सिघाळा-वीर। बीस-भुज-रावण । भांजणा-संहार करने वाला । समर-युद्ध । हथवाह-प्रहार । वाह रे-धन्य है। २७२. नेम-नियम । नहचेण-निश्चय । निमंधे-रचे, बनाये । त्रिण-तीन । तवै-कहते हैं। २७३. नंदण-पुत्र। हर-मिटा । दाळद-कंगाली। फंद-बंधन, जाल । जांमण-जन्म । मरण-मृत्यु । मानख-मनुष्य । मांगण-याचक । धानखधर-धनुषधारी। सुरसरगंगा नदी। नमळ-निर्मल । अघ-पाप । श्रोधी-समूह । अलियळ-भौंरा। भोगी भोग करने वाला, रसास्वादन करने वाला। मकरंद-फूलोंका रस । २७४. यम-ऐसे। विध-प्रकार, तरह । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३११ यक तुक गुणतीसह अखिर, जांण वरण उपछंद । वरण व्रतरा अंत विच, कहियौं अगर कविंद ॥ २७५ प्ररथ सालूर गीत वरण उपछंद छै । तुक अक प्रत गुणतीस अखिर होवै । पै'ली दोय गुरु होवै । पछै चौबीस लघु होवै। पछै अंक सगण होवै। यौ ईं गीतको संचौ छै । ss IIIIIIII IIs प्रेक करण, छ दुजबर, ब्रेक सगण, यौ अक तुक प्रमाण, यूं पनरै तुकां होवै। अंक दूहा प्रत तुक च्यारका मोहरा मिळे , सावझड़ो छ । यो गीत वरण व्रतमें वरण छंदांमें सालूर छंद कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ । अथ गीत सालूर उदाहरण गीत माया मत भिद सम हण भव दुसतर । तरण मनव सुण सर समझौ ॥ सीतापत समर सुज अहनिस । सुतन लहण फळ सुमन सझौ ॥ लाखां छळ कपट झपट अणघट । लख ललच मुचत लत करण लजौ ॥ भूपाळ धनखधर म धर अडर जग । अवर करत तज सु हर भजौ ॥ २७६ ई प्रकार दुतीय सालूररा च्यार ही दूहा जांणणा अथ गीत भाख मात्रा छंद लछण दही ले धुरहूं तुक सोळ लग, चवदह मत्त सवाय । सावझडौ तुक अंत लघु, भाख गीत यण भाय ॥ २७७ २७५. यक-एक। अगर-अगाड़ी, पहिले। कविद-कवि । यो-यह । ई-इस । संचौ छंद रचनाका नियम । करण-दो गुरु मात्राका नाम । दुजबर-चार लघु मात्राका नाम। २७६. अहनिस-रातदिन । सुमन-देवता, श्रेष्ठ मन । अणघट-अपार । २७७. लग-तक, पर्यन्त । मत्त-मात्रा। यरण-इस । भाय-तरह, प्रकार । Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ पैली तुकसूं लगायनै सोळे ही तुकां ताई तुक अंक प्रत मात्रा चवदै होय । अंत लघु होय । च्यार तुकारा मोहरा मिळ , सावझड़ौ, जिण गीतरौ नांम भाख कहीजै । इति भाख नांम गीत निरूपण। भाख गीतरी दोय तुकारा मोहरा मिळे सौ अरधभाख कहीजै-यणनै गजल पिण कहै छै । ___ अथ गोत भाख उदाहरण गीत सुंदर सोभत घणस्यांम, तड़िता पट-पीत छिब तांम । वांमे अंग सीता वांम, रूप अनंग कौटिग राम ॥ निज कटि सुघट तट तूनीर, सर धनु सुकर धार सधीर । भंजण कौड़ संतां भार, रे मन गाव स्त्री रघुबीर ।। विध त्रिपुरार रिख पाय बंद, सरणसधार करणसमंद । कह गुण गाथ किसन' किवंद, नाथ अनाथ दसरथनंद ॥ कवसळ सुता राजकुमार, अबखी बखत सुजन अधार । सुसबद कियौ तिण मत विसार, जीता जिके नर जमवार ॥२७८ अथ गीत अरधभाख लछण दूही भाख गीत तुक कवि भणे, मोहरा दोय मिळत । अरध भाख जिणनं अखै, कोइक गजल कहंत ॥ २७६ २७७. तांई-तक, पर्यन्त । तुक प्रत-प्रत्येक । मोहरा-तुकबंदी । निरूपण-निर्णय । पिरण-भी। २७८. तड़िता-बिजली। पट-पीत-पीताम्बर । छिब-शोभा, कांति। वामे-बायां । वाम स्त्री। अनंग-कामदेव । कौटिग-करोड़। कटि-कमर । सुघट-सुंदर । तूनीरतर्कश । सर-बारण, तीर । धन-धनुष । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । भंजण-मिटाने वाला। भीर-संकट, कष्ट । विध (विधि)-ब्रह्मा । त्रिपुरार-त्रिपुरारि, शिव । रिख-ऋषि । पाय-चरण। बंद-वंदन करते हैं। सरणसधार-शरण में आए हएकी रक्षा करने वाला । करणसमंद-करुणासागर । गाथ-कथा, वर्णन । किवंद-कवींद्र, कवि । अबखो-कष्टप्रद, भयावह, संकटका। बखत-समय । सुजन (स्वजन)-भक्त । अधारसहारा, आश्रय। सुसबद-यश। तिण-उस, जिस । मत-बुद्धि। जमवार-जीवन, जिंदगी, यमराजका प्रहार या वार । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ गीत अरधभाख उदाहरण गीत पर हर वर धंध अपार, भज नित जांनुकी भरतार | करमत कलपना मन कोय, हरि बिग बिये मुकत न होय ॥ २८० अरथ लखपत पिंगळ मध्ये छंद उधोर जींरी च्यार तुकांरी प्रेक दूहौ सोही गीत भाख । इति अरथ । अथ गीत जाळीबंध बेलियौ सांणोर लछण दूहा अठार पर फिर, सोळ पनर क्रम जेण । अंत लघु सांगोर कहि, तबै वेलियौ तेण ॥ २८१ नव कोठा म क तुक, लखजै चित्त लगाय । उर बिचलाखर, दौड़ वंच दिखाय ॥ २८२ लखियां दीसै नव खिर, ऊचरियां अगीयार । जाळीबंध जिण गीतरौ, नांम सुकव निरधार ॥ २८३ अरथ जाळीबंध गीत वेलियो सांणोर होवे । जिणरै पैौली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा परै । तीजी तुक मात्रा सोळं । चौथी तुक कहौ अथवा पाछी तुक मात्रा पनरै हो । पाछला तीन ही दूहां पैली तुक मात्रा सोळं । दूजी तुक मात्रा पनरै । तीजी तुक मात्रा सोळं श्रर चौथी तुक मात्रा पनरै होवै । ईं क्रमसूं होवै । श्रंत लघु होवै सौ वेलियो सांणोर जीको जाळीबंध वणै । जाळीबंधरै २८०. अवर (अपर) - अन्य । धंध-धंधा, कार्य । कलपना -विचार । बिये- दूसरेसे । मुकत - मुक्ति, मोक्ष । २८१. ठार - अठारह | तेण - उसको । २८२. कोठां-कोष्ठकों । पनर - पनरह | दौड़-दोनों श्रोर | वंच - पढ़ने की क्रिया । [ ३१३ २८३. ऊचरियां- उच्चारण करने पर । इस क्रम से । मझ-मध्य | उरध- ऊपर । सोळ - सोलह । जेण - जिस तवं - कहते हैं । प्रधबिचलौ - मध्यका, बीचका । प्रगीयार - ग्यारह | निरधार - निश्चय । ईं क्रमसूं Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ ] रघुवरजसप्रकास तुक एक प्रत कोठा नव होवै । लिखतां पाखर कोठामें न दीसै । सूधी अोळां पाखर लेखैतौ अग्यारै होवै । नव कोठारै माहै ऊपरलौ नै हेठलौ विचाळा दोय कोठारा दोई आखर दोय वेळां वंच सौ गीत जाळीबंध सांणोर चित्रकाव्य कहीजै । अथ जाळीबंध गीत वेलियौ सांणौर उदाहरण गीत साखी रे भांण नसापत सारै, कीध महाजुध कीत सकाम । साच तकौ कज साधां सारत, राच महीप सु रांमण राम ॥ दासरथी सुखदाई सुंदर, नमै पगां सुर नर आनूप । नरकां मिट जन तारै नको, भाख पयोध प्रभाकर भूप ॥ पती-सीत भूतप परकासी, वासी सिव उर वास विसेस । आपी तसां लंक आसत अत, नरा सत्र हण नमौ नरेस ॥ कळ नावै नेडी कह 'किसन, आव थरु सुख आसत अाथ । दख नांके जैरै दन अदना, नाथ थयां समना रघुनाथ ॥२८४ २८३. सूधी-सीधी। प्रोळां-पंक्तियों। लेखै-नियमसे, हिसाबसे । अग्यारै-ग्यारह । ऊपरलौ-उपर्युक्त, ऊपरका। हेठलौ-नीचेका। बिचला-मध्यका। वंच-पढ़े जांय । २८४. साखी-साक्षी । भाग-सूर्य । नसापत-चंद्रमा। कीध-किया। तकौ-वह। कज काम । सारत-सफल करता है । राच-लीन हो। महीप-राजा । दासरथीश्रीरामचंद्र भगवान । सुखदाई-सुख देने वाला । सुर-देवता । नको-कोई नहीं। भाखकह । पयोध-समुद्र । प्रभाकर-सूर्य, चन्द्रमा। पत-सीत (सीतापति)-श्रीरामचंद्र भगवान । वासी-निवास करने वाला। सिव (शिव)-महादेव । प्रापी-दी, प्रदानकी। तसा-हाथों। लंक-लंका। प्रासत-शक्ति, बल । अत-अति । सत्र-शत्रु । हरणनाश करने वाला । कळ-पाप, कलयुग। नेडी-निकट । प्राथ-धन-दौलत । दख-- दूख । जैरै-नाश करे । दन-दिन । अदना-बूरा, खराब । थयां-होने पर । समनाअनुकूल, प्रसन्न । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३१५ धां सु दवाळा AIY644 1650 दवाका नू | मि | कां: | नै । प्रा दवाळ! ती 14 | | डौ । क ह ख । प्रा दवाळा नै । ळ कि सु । व त | जै IVE ख, अ धु वै नाः स रु थ: प्रा | कौ | नांः । द यां, थः - - - अथ गीत गहांणी वेलियौ सांणोर लछण गाहा लछण ग्रंथरै, वदियौ आद विचार । सुज बेलियौ सांणोररौ, लिखियौ लछण लार ॥ २८५ पहली गाही पर वजै, गीत दूहौ यक पच्छ । फिर गाहौ दूहौ सुफिर, गीततणौ दख दच्छ ॥ २८६ च्यारू गाथा गीतरा, च्यार दूहां धुर तथ्थ । गाहा सामिळ गीत जिण, नाम गहांणी कथ्थ ॥ २८७ २८५. लछरण-लक्षण । वदियो-कहा। प्राद-आदि, शुरूपातमें। सुज-ौर । लार-पीछ । २८६. यक-एक । पच्छ-पश्चात । गीततणौ-गीतका। दख-कह । नोट- :-प्राचीन राजस्थानीमें पूर्ण विराम का चिन्ह । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ ] रघुवरजसप्रकास प्ररथ __ वेलिया सांणोर गीतरा दूहा दूहा प्रत आद गाथौ होय । च्यार ही गीतरा दुहारै पाद च्यार गाथा होय । क्यूंक गाथारी चौथी तुकरा अखिरांरौ अाभास गीतरी पैली तुकमें होय । गाथौ नै गीत सांमिळ छै जिणसूं गीतरौ नांम गहाणी छ। मात्रा दंडक छंद छै । गहांणी तथा गाथारौ लछण पैली ग्रंथमें कह्यौ छै नै वेलिया सांणोर गीतरौ पण लछण कह्यौ छै जिणसू अठै लछण न कह्यौ छै। ___ अथ गीत गहांणो उदाहरण गीत नर नह ले हरि नाम, जड़िया जंजीर कौड़ अघ जीहा। नर ले राघव नाम, ज्यां सिर रांम अनुग्रह जाणे ॥ सिर ज्या जाण अनुग्रह स्रीवर, चरणकमळ चींतवण सचेत । पातक दहणतणौ गह पैंडौ, हरिहर कहणतणौ मन हेत ॥ सह पढियौ गुण सार न, नह पढियौ हेक नाम रघुनायक । पढ पसु नाम प्रकार, पेखौ जे मानवी पायौ ॥ पढ खट भाख संसक्रत पिंगळ, सुकवी वगौ समझ गुण सांम । प्रांणी रांम नाम विण पढियां, निज पढ पसु धरायौ नाम ॥ सुरसरी राघव सुजस, मंजण जिण कीध सुध चित मानव । तीरथ अड़सठ तेण, बोलै त लाभ ग्रह बासत ॥ बोलै बेद लाभ ग्रह बासत, तीरथ अड़सठ सुफळ तयार । निज मन हुलस सांप. जे नर, जस रघुबर सुरसरी मझार ॥ वदन सुरस ना वांणी, सिर लोयण उदर हाथ पग सहता। जस तिलक लख पै जळ, जुइ फिर राम पवितर जेण ॥ २८८. जड़िया-जटित किये। अघ-पाप। जीहा-जीभ । अनुग्रह-कृपा, दया। स्रीवर (श्रीवर) विष्णु, श्रीरामचंद्र। पातक-पाप। दहणतणी-जलाने वालेका । गहपकड़ । पैडौ-मार्ग, पीछा। कहणतणौ-कहनेका । पेखौ-देखो, देखिए । सुरसरी गंगा नदी। मंजण-स्नान । हुलस-प्रसन्न होकर, हर्षपूर्वक । सांपड़े-स्नान करते हैं। जे-जो, अगर, यदि । मझार-मध्य । लोयण-नेत्र। सहता-सहित । पै-चरण । पवितर-पवित्र । जेण-जिस । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३१७ दीध प्रदछण हाथ जोड़ न हरि, चरणाम्रत दरस निहार । करै तिलक राघव जस किता, जीता 'किसन' जिके जमवार ॥२८८ अथ गीत घणकंठ सुपंखरौ लछण दूहा पहल अठारह बी चवद, सोळ चवद लघु अंत । श्राद अंत गिणती अखर, गुण सुपंखरौ गिणंत ॥ २८६ कंठ सुपंखरा बीच कह, आठ प्रथम बी सात । आठ सात क्रम यण अधिक, नावै कंठ निघात ॥ २६० आद कंठ चव अक्खिरां, अंत दोय ठहराव । यौ सुबंध घट अक्खियां, बिगड़े कंठ वणाव ॥ २६१ अरथ सुपंखरौ गीत वरण छंद छै जिकै तुक प्रत आखिर गिणती। पै'ली तुक वरण अठारै । दूजी तुक वरण चवदै । तीजी तुक वरण सोळे । चौथी तुक वरण चवदै होवै । पाछला दूहारा वरण सोळ चवदै सोळे चवदै ई क्रमसं होवै, जींसू सुपंखरा गीतमें कंठकी हद कहै छै। पै'ली तुकमें कंठ पाठ होय । दूजी तुकमें कंठ सात होय । तीजी तुकमें कंठ पाठ होय । चौथी तुकमें कंठ सात होय । अठा प्रागै कंठ न होय । च्यार ही पाखरांरौ कंठ तौ उरलौ होय । अठा सवाय अाखर आयां कंठ सिथळ होय । दोय अखिरसूं कंठ घटतौ न होय । दोय अखिरसू कंठकी हद छै सो दरसाई छ । पछै पाछला दूहां में कंठ घाट-बाध छै । घणा कंठांमें कारण कारज सारथक आवै नहीं। थोड़ा कंठां में कारण कारज सारथक आवै । घणा कंठांसू तुक पाछी वणै नहीं। समभाव कंठसू तुक रूप पावै । २८८. दोध-दी । प्रदछण-प्रदक्षिण। दरस-दर्शन । निहार-देख कर। किता-कितने । जमवार-जीवन, यमराज का प्रहार । २८९ बी-दूसरी । चवद-चौदह । सोळ-सोलह। गण-काव्य, कविता, गीत । गिणंत गिनते हैं, समझते हैं। २६०. कंठ-अनुप्रास । निघात-अधिक । २६१ चव-चार । अक्खिरां-अक्षरों। घट-कम । वणाव-रचना, बनावट । पाछला पीछेके । हद-सीमा । अठा प्रागै-इससे अगाडी । उरलौ-चौड़ा, विस्तारपूर्ण । घटतौ-कम । घाट-बाद-कम-अधिक । पाव-प्राप्त करे। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ ] रघुवरजसप्रकास अथ गीत घणकंठ सुपंखरौ उदाहरण गीत कार कार खार बार धार सुरार संघार कार । प्यार राख मार छार कार बार पार ॥ डार गार लार लार चार हार भार डार । बार नार तार सार धार बार बार ॥ सुराळ नराळ व्याळ आळ पाळ ढाळ सक। सिघाळ अकाळ काळ टाळ वेद साख ॥ आळ पाळ बंधमां विसार रे जंजाळ आळ । दयाळ विसाळ भाळ विरदाळ दाख ॥ भांम गांम धाम ठांम ठहांम नकू भ्रांम । तमाम निहार सांम ले अरांम ताम ॥ दांम दांम विसार निकांम झौड़ ह उदांम । नरां जांम जांममें उचार राम नाम ॥ पनंगेस धरेस सुरेस तेस सझै पेस। भूतेस विसेस चिंतवेस ध्यान भेस । जीतेस अरेस बंध सेस क्रीत जपो जेस । 'किसनेस' कवेस नरेस कोसळेस ।। २६२ २६२. कार-सीमा, मर्यादा। खार-बार धार- समुद्र । सुरार-राक्षस । संघार-संहार । कार-करने वाला। मार छार कार-महादेव, शिव । डार-समूह । लार लार-पीछेपीछे। बार नार-गणिका। बार नार तार-वेश्याको तारने वाला, ईश्वर । सुराळदेवता। व्याळ-सर्प । सक्र-इन्द्र । सिघाळ-श्रेष्ठ । काळ-मौत। साख-साक्षी। जंजाळ पाळ-संसारका प्रपंच । दयाळ-दया करने वाला। विरदाळ-विरुदधारी। दाख-कह । भांम-स्त्री। तमांम-सब । विसार-भूल जा। निकांम-व्यर्थ । झोडटंटा, कळह । जांम जांममें-याम याममें । पनंगेस-शेषनाग । घरेस-सुमेरु पर्वत, राजा। सुरेस-इन्द्र । भूतेस-महादेव, शिव । चितवेस-चितन करते हैं। जीतेसजीतने वाला। अरेस-शत्रु। सेस-लक्ष्मण । कवेस-कवीश, महाकवि। नरेसराजा। कोसळेस-श्रीरामचंद्र भगवान । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अरथ कंठ सांकड़ा छै । गोतरा पहला दूहारा जीं ताबै पहला दूहारौ प्ररथ लिखां छां । तुक पै'ली प्ररथ स्रोरांमचंद्र किसाक छै । अरथ ग्रन्वयसू लागसी । खार बार धार कैतां - खार समुद्र जीकै कार कार कैतां म्रजादाकौ करणहार दरियावके पाज नहीं, म्रजादकी पाज कोधी इसौ स्रीरामचंद्र फेर सुरार राखस ज्यांकी सिंहारकार कैतां सिंघारकरता इसौ रांम ॥ १ [ ३१६ तुक दूजी प्ररथ - जीं रामचंद्रजीसूं मार छार कार कैतां कांमदेवका बाळणहार सिant प्यार छै, हर फेर रांम नांम तथा जस महातमका सित्र समुद्र छै, इसौ रांम जीने हे प्रांणी तूं भज । तुक तीजीरौ रथ - हे प्रांणी, तूं मार कैतां मारियां स जींकौ डार समूह मानवी छै जींका लार लार कैतां पाछै पाछै चार कैतां चालणौ, माटी का मनखांरी लार लार फिरवासूं हार कैतां हठ मती । फिरै भार डार कैतां संसार की कामनाको भार बोझ सौ डार कैतां पटक दे, श्रळगौ मेल । 1 तुक चौथीरौ प्ररथ - हे प्रांणी, तूं तरबौ चाहै छै तौ बार नार तार कैतां बेस्या गणकाकौ तारणहार स्त्री रामचंद्र सार छै, सत्य छै, जीं तूं हरदामें बार बार धारण कर । जीभसूं तौ रांम नांम लै, हर ध्यांन कर, सौ गणका नीच जात जांणसूं सुवौ पढ़ावतां तारी इसौ त्री रामचंद्र दयाळ छै तौ तीनै सुध मन भजतां तारै ही तारै । ईमें संदेह नहीं । यौ पै'ला दूहारौ अरथ छै । कठण जिणसूं लख्यौ छै । बाकीरा तीन ही दूहांरौ अरथ सुगम छै जींसूं नहीं लख्यौ छै । यूं कोई कवि घणकंठ गीत वणावौ सौ देख विचार लीज्यो । हैंतो म्हारी बुध माफक गैलो बताय दीधौ छै । कोई बात सुध असुध होवै तौ वडा कवि तगसीर खिमा कीज्यौ । हैंतो स्त्री रांम जस कीधौ छे सौ सीतारांमजीन सरम छै । अथ गीत सुखरौ उरला कंठां ताबै तथा सांकळिया कंठां ताबै अरथरा कारण कारज सहेत स्री हरणूंमांनजीरौ किसना क्रत । कीधी - की। सुरार २९२. कंठ - अनुप्रास । सांकड़ा - पास-पास, संकुचित । किसाक - कैसा । ( सुरारि ) - राक्षस । राखस - राक्षस । हर प्रौर। पाछै पाछे-पीछे पीछे । सुवौ - तोता । सुगम - सरल । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० ] रघुवरजसप्रकास गीत मही राखण गाथरा आखियातरा गातरा मेर । दैण सत्रां दाथरा हाथरा घाव दान ।। साथरै माथरा भंज क्रोधवांन समाथरा। स्रीनाथरा जोध भौका वातरा-सुजाव ।। धांनमाळी पछाड़ा हुकमां चाड़ा सीस धणी । रोखंगी ऊपाड़ा द्रोण भुजां राह दूत ॥ बैरियां ऊबेड़ जाड़ा धंखी माह बांबराड़ा। दुबाह अखाड़ाजीत धाड़ा रांमदूत ॥ तेही लंक सांगा सौ जोजनां गिणै तूछरेल । मछरेल अढांगा अयारां मेल मीच ॥ डरावणे रूपरा दयंतां भांगा दूछरेल । भांमणै रांमरा लांगा पूंछरेल भीच ॥ संतां अभैदानकी उछाह रे अरोड़ा सदा। बिजै रोड़ा आंनकी जाहरे बार बार ॥ २६३. गाथरा-यशका। प्राखियातरा-अद्भ त, विचित्र, अमर । गातरा-शरीरका। मेर सुमेरु पर्वत । दैण-देनेको। सत्रां-शत्रुनो। दाथरा-संहारका। माथरा-मस्तकका। भंज-नाश। समाथ रा-समर्थके। स्रीनाथरा-विष्णुका। जोध ( योद्धा )-वीर । झोका–धन्य-धन्य । वातरा-सुजाव-वायु-पुत्र, हनुमान । धानमाळी-एक असुरका नाम। पछाड़ा-मारने वाला, गिराने वाला। चाड़ा-चढ़ाने वाला। सीस-शिर । धणी-मालिक। रोखंगी-जोश वाला, रोष वाला। ऊपाड़ा-उठाने वाला। द्रोणद्रोणाचल पर्वत । ऊबेड़-उन्मूलन कर, उखाड़ कर । जाड़ा-जबड़ा। धंखी-जोश वाला, उमंग वाला, द्वेष वाला । बांबराड़ा-जबरदस्त । दुबाह-वीर, योद्धा । अखाड़ाजीत-युद्ध विजयी। धाड़ा-धन्य-धन्य, शाबास । जोजनां-योजनों। तूछरेल-वीर । मूछरेल-मूछों वाला, वीर । अढांगा-महान, विकट । अयारां--शत्रुओं । मीच-मृत्यु, मौत । डरावणे-भयप्रद, भयावह । दयंतां-दैत्यों । भांगा-नाश करने वाला, वीर । दूछरेलवीर, योद्धा । भामणै-न्यौछावर, बलैया। लांगा-हनुमान। पूंछरेल-पूंछधारी । भीच-योद्धा। उछाह-उमंग, जोश । अरोड़ा-जबरदस्त । बिजै-विजय । रोड़ाबजाने वाला, बजवाने वाला। प्रांनकी-नगाड़ा। जाहरे-प्रसिद्ध । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३२१ मोड़ा जातधानंकी ग्रीवरा हणू उमाहरे । जांनकी पावराखोड़ा बाहरे जोधार ॥ २६३ अथ गीत दुजौ स्री हणमानजीरौ गीत जयवंत सावझड़ी ओपत तन तेल सिंदूरां आंगा, आच गदाधर रूप अढंगा। भारथ थोक सबळ खळ भांगा, लागै झोका महाबळ लांगा ॥ खळ दसखंध उपाड़ण खूटा, कीरत भुज जाहर चिहूं कूटा । लखण काज आणण गिर लूंठा, टेक निवाह वाह किप-टंटा ॥ दायक खबर राम सिय दौड़ा, तोयक काळ नेस सिर तोड़ा। राड़ फतै पायक आरोड़ा खायक असुर धाड़ भड़ खोड़ा । जै नांमी गढ़ लंक जयंता, सिव एका दसमा निज संता। कीधौ अमर जांनुको कंता, हुकमी दास जाण हणमंता ॥२६४ दूही किया निरूपण किसन' किव, गुण हर विध विध गीत। जड़ता दाधव कवि जनां, जस राघव जग जीत ॥२६५ २६३. मोड़ा-मोड़ने वाला, पीछे हटाने वाला। जातधांनकी (यातुधान)-राक्षस । हणू हनमान । जांनकी-सीता। पावराखोड़ा-लंगडा । वाहरे-धन्य-धन्य । जोधार-योद्धा, वीर। २६४. प्रांगा-पहनावा। प्राच-हाथ। गदा-एक प्रकारका शस्त्र विशेष । अढंगा-अद्भ त । भारथ-युद्ध । थोक-समूह । भांगा-तोड़ने वाला, नाश करने वाला। मौका-धन्यवाद । लांगा-हनुमान । खळ-राक्षस । दसकंध-रावण । उपाडण-उखड़ने वाला । खूटाजड़ । चिहं कंटा-चारों दिशाओं । प्रांणण-लाने वाला। गिर-द्रोणाचल पर्वत । लूंठा-जबरदस्त । टेक-प्रण, मान । निवाह-निभाने वाला। वाह-शाबास । किपटूटा-हनुमान । दायक-देने वाला। दौड़ा-दौड़ने वाला, सेवक । तोयक-दुष्ट । नेसघर । सिर तोड़ा-शिरको तोड़ने वाला। राड़-युद्ध। पायक-प्राप्त करने वाला। प्रारोड़ा-जबरदस्त। खायक-नाश करने वाला, ध्वंश करने वाला। धाड़-शाबास, धन्य । भड़-योद्धा । खोड़ा-हनुमान । जयंता-जीतने वाला । कोधौ-किया। जांनुकी-सीता । कंता-पति । हुकमी-हुक्म मानने वाला। हणमंता-हनुमान । २६५. निरूपण-वर्णन । गुण-यश । हर-हरि, विष्णु, श्रीरामचंद्र । विध विध-तरह तरहके। जड़ता-अज्ञान । दाघव-जलानेको । Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ ] रघुवरजस प्रकास अथ गीत रूप तथा दुतीय गजगत लछण गीत च्यार दूहांके च्यार ही, धुर प्रकरणी दवाळ | ग्यार मत धुर नव दुती, ग्यारह नव क्रम भाळ ॥ २६६ अठाईस मत अंत गुरु, न दवाळा होय । रूपग जस रघुनाथ रट, समझौ गज गत सोय ॥ २६७ बीस छ मता अंत लघु, छजै भाखड़ी छंद । आठ वीस मत अंत गुरु, गजगत से प्रबंध ॥ २६८ अरथ । कणीरौ दवाळौ भाखड़ोरै तौ दवाळां सारां प्रत श्रेक ही होय । हर गजगतरै दवाळा दवाळा प्रत प्रकणीरौ दवाळी नवीन नवीन होय । क तौ गजगत नै भाखड़ीरौ यौ भेद होय । दूजौ भेद भाखड़ीरै दूजा भाखड़ीरा दवाळां मात्रा छाईस अंत लघु होय । गजगतरै दुजा दवाळांरी तुक नेक प्रत मात्रा अठाईस ने अंत गुरु होय । प्रतरौ भेद होय दूजां गजगत भाखड़ी श्रेक तरैरा रूपग छै । प्रकणीरी मात्रा नव नव होय । सवाय रैकार तथा जीकार अंत होय । तुक पै' ली तीजीरै प्रमांण वैली तुक मात्रा अग्यारै, दूजी तुक मात्रा नव, तीजी तुक मात्रा प्रग्यारै, चौथी तुक मात्रा नव, अंत गुरु होय । दूजा दवाळां प्रत तुक मात्रा ठावीस सारी तुकां होय । अंत गुरु होय । ई प्रकार रूपग गजगत कहीजै । आगे गजगत गीत न कह्यौ छै, भूल गया जींसूं पछै कह्यौ छै । गीत गजगतरी प्रांकणी तो भाखड़ीरीज होवै । भाखड़ीरै तुक नेक प्रत मात्रा छबीस हो । अंत लघु होय । गजगतरै तुक नेक प्रत मात्रा प्रठावीस होय, अंत गुरु होय तथा भाखड़ीरी तुकरै अंत क स ना य गुरु अखर धरजै सोई गीत गजगत रूपग छै । २६. धुर - प्रथम । दवाळ - गीत छंदके चार चरणों का समूह । दुती - दूसरी । २६७ श्रांन - दूसरा । सोय-वह । २६८. यौ-यह । रे कार-रे तू शब्द कह कर पुकारनेका शब्द । लघु रूपसे पुकारने का शब्द, संबोधन शब्द | जीकार - जी, सम्मानपूर्वक पुकारनेका शब्द । Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३२३ अथ गीत रूपग गजगत उदाहरण गीत रिव कुळ रूपरा रे, समथ सरूपरा, प्रगट अनूपरा रे , भुज रघु भूप । भूपरा रघु भुजदंड भास तरह चयर सगरांमरा । नव खंड भूम अरोड़ नांमण कौट मंड सकांमरा । धुज धरम सर कोदंड धारण मेर अोपत मामरा । आनूप भुज परचंड आहव रूप रिवकुळ रांमरा । सुज ब्रद साहणौ रे निबळ निबाहणौ चित जिस चाहणौ रे , गज थट गाहणौ ॥ गाहणौ गज थट अघट गाढंम प्रगट रजवट पेखजै । लंकाळ घट घट अलल लाटण तीख कुळवट तेखजै । जिण कीध वटपट निपट जळधर अद्र तार ऊभेखजै । सिर मुगट जग रट अघट स्त्रीवर विरद धार विसेखजै । मह जस मंडियौ रे बाळ बिहंडियो ते रण तंडियौ रे , खळदळ खंडियौ ॥ खळदळां कंकळ सबळ खंड वीर तंडै भुजबळी । सुज गळां समपै ग्रीध समळां पळां भोजन परघळी । २६८. समथ-समर्थ । भूम-भूमि । अरोड़-जबरदस्त । नामग-नमाने वाला। सर-जाण । कोदंड-धनूष । मेर-समेरू। मामरा-दृढ़ता का। पाहव-युद्ध। साहणौ-धारण करने वाला। निबाहणौ-निभाने वाला। चाहणी-चाहने वाला। थट-दल, समूह । गाहणौ-ध्वंश करने वाला । गाढंम-शक्ति। रजवट-क्षत्रियत्व । लंकाळ-वीर । तीख-विशेषता । जळधर-समुद्र । अद्र-पर्वत । बाळ-बालि वानर । विहंडियौ-ध्वंश किया, मारा। रण-युद्ध । तंडियौ-दहाड़ा, जोशपूर्ण शब्द किया। खंडियौ-संहार किया। कंकळ-युद्ध । खंडे-संहार किये । भुजबळी-शक्तिशाली। गळां-मांस-पिंड। समळां-मांसाहारी पक्षी विशेष । पळां-मांस । परधळी-पूर्ण, अपार । Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ ] रघुवरजसप्रकास खळहळां खत चळवळां खापर वीसहथ भर विळकुळी । मह वळां चव रघुनाथ अमलां मंड सुसबद मंडळी । संत सधारिया रे जुध रिम जारिया भुज बद भारिया रे , अवन उचारिया ॥ ऊचरै अवनी विरद अहनिस करण सिध सुरकाजरा । दस माथ दुसह सिंघार दारुण सूर कुळ सिरताजरा । कर तेण गजगत किसन कवि कह लखां जन रख लाजरा । साधार संत अपार स्रीवर रांम सुसबद राजरा ॥२६६ २६६. चळवळां-रक्त, खून । खापर-खप्पर । वीसहथ-देवी, दुर्गा, रणचंडी। विळकुळी मस्त हुई,प्रसन्न हुई। सुसबद-यश, कीर्ति । सधारिया-रक्षा की। रिम-शत्रु । जारियासंहार किया। अवन-पृथ्वी, अवनी। अहनिस-रात-दिन। यसमाथ-रावण । दुसह-भयंकर, जबरदस्त । सिंघार-संहार कर । सूर कुळ-सूर्य वंश । सिरताजराश्रेष्ठका शिरोमणिका। राजरा-श्रीमानके, आपके । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ निसांणी छंद वरणण अथ निसांणी लछण दूहौ छै नीसांगी मांझक तुक अरथ निसांणी छंदरै प्रेक तुक प्रत मात्रा तेवीस प्रावै । इण लेखे तौ निसांणी मात्रा छंद छै नै क तुकरा विभाग तथा विस्रांम दोय छै । क पहलौवित्रांम तौ मात्रा तेरैं ऊपर होवै । दूजौ विस्रांम मात्रा दस पर होवै यौ लछण है । पै'ली मात्रा असम चरण छंद कह्या जठे छंद निस्रणिका कह्यौ, सोई निसांणी छंद जांणणौ । जिके च्यार प्रकाररा छं सौ फेर कहां छां । दूहा रे नी सांगी छंदरा, पढ़िया तिण लछण निरतिकौ, वर १. मुकांम - विश्राम | छंदरै, मत तेवीस मुकांम | दस दस, वदै दोय विसरांम ॥ १ [ ३२५ दु लघु तुकंत अख, बीजी गुरु लघु अंत | अंत तीसरी लघु गुरु, चौथी बि गुरु तुकंत ॥ ३ अरथ निसांणी छंद एक तुक प्रत मात्रा तेवीस होवै । जिणरा च्यार प्रकार । करै तौ तुरंत दोय लघु प्रखर होवे । दूजीरे तुकंत बाद गुरु अंत लघु हो । तीजी तुकंत प्रद लघु अंत गुरु होवै । चौथीरं तुकंत दोय गुरु करणगण होवे । च्यार प्रकाररी निसांणी छै । अथ प्रथम लघु तुकंत गरभितनांमा निसांनी जांगड़ी उदाहरण निसांरगी गह भर राघव तारिया, दरियाव विच गेंवर । किया खाध जटायका, निज हत्थ नरेसर || यौ - यह । जठे - जहां पर । च्यार प्रकार | सुकव विचार || २ मांझ-मध्य | दस - तेरह । वदे - कहते हैं । विसरांम- विश्राम | २. तिण- उस । ३. ख- कह । करण-गण-दो दीर्घ मात्राका नाम ऽऽ । ४. गह - गर्व । तारिया - उद्धार किये । दरियाव - समुद्र, सागर । विच-बीच, मध्य । गेंवर - हाथी । त्राध - श्राद्ध । जटायका- जटायुके । हत्थ - हाथ । नरेसर - नरेश्वर, राजा । Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ ] रघुवरजसप्रकास मन रुच खाया बेर फळ, जिण सवरी पामर । ते कदम रज आभड़े, अवरत गौतम तर ॥ तोते कीन्ह सहाय हत, यळ गणका उद्धर । परचौं नाम तिराइया, पांणी सिर पाथर । जेण उधारे अवधपुर, जग सारे जाहर । नांम ब्रह्म सिव बाद ले, प्रभणै अह सुर नर ॥ वे जिन्हां जीता जमार, गाया सीताबर ॥ ४ अथ निसांणी दुमळा नांम जांगड़ी (प्राद गुरु अंत लघु तुकंत) उदाहरण निसांरगी । विप ानप सरूप स्यांम, घट वरसण वार । कसियौ कट तट कोमळा, चपळा पट-चार ॥ भुज-प्राजांन विसाळ भाळ, कट संघ प्रकार । नयण भ्रह नासिका कमळ, धनु सुक निरधार । परम जोत दसरथ प्रथीप, ते ग्रह अवतार । जंग अडोळ अबोळ नाट, दस सिर खळ जार ॥ सोवन्न लंक भभीखणह, दी सरणसधार । श्री जगनायक रामचंद, निरधार अधार ॥ ५ ४. सवरी-भिल्लनी। पांमर-नीच । ते-तेरी। कदम-चरण । रज-धुलि । प्राभड़े स्पर्श की। अवरत-औरत । तोते-तोता, शूक । कीन्ह-की। यळ-पृथ्वी। परचौचमत्कार। सिर-ऊपर । पाथर-पत्थर । जग-संसार। सारे-सब । जाहर-प्रसिद्ध । प्रभण-वर्णन करते हैं, स्मरण करते हैं। प्रह-नाग। जमार-जन्म, जीवन। गाया वर्णन किया। सीतावर-श्रीरामचंद्र ।। ५. विप-शरीर। प्रानूप-अनुपम । कट-कटि, कमर । कोमळा-कोमल । चपळाबिजली। पट-चार-वस्त्र । भुज-प्राजांन-पाजानबाहु । भाळ-ललाट । कट-कमर, कटि । संघ-सिंह। नासिका-नाक । सुक-तोता। जोत-प्रकाश। प्रथीप-राजा । ते-उसके । ग्रह-घर । जंग-युद्ध । अडोळ-दृढ़ । नाट-निषेधात्मक शब्द। दससिर-रावण । खळ-राक्षस। जार-ध्वंश, संहार। सोवन्न-सुवर्ण, सोना। सरणसधार-शरणमें आए हुएकी रक्षा करने वाला। निरधार-जिसका कोई आश्रय या सहारा न हो। नोट-उपर्युक्त दुमिळा निसांणी छंदका लक्षण ग्रंथमें स्पष्ट नहीं है । इस दुमिळा निसांणी छंदके प्रत्येक चरणमें चौदह और नव पर विश्राम सहित कुल २३ मात्राएँ हैं तथा अंतमें गुरु लघु होते हैं। Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ दुतिया दुमिळा निसांणी छंद लछण दूहौ धुर चवदह नव फेर घर, अंत गुरु लघु क्ख । यक तुक मिळ मोहरा उभै, सौ दुमिळा कवि सक्ख ॥ ६ अथ दुतिय दुमिळा निसांणी उदाहरण निसांरगी अह नर सुर कह कवण ओोड़, जै दत खग जोड़ । चक्रवत कर सुधा नीचोड़, मद वहिया मख रिख ठोड़ ठोड़, काटे तेगां खळ दसमाथ तोड़, रघुनाथ वंका भय अथ सुद्ध निसणी जांगड़ी (तीजो तुकांत लघु गुरु ) उदाहरण निसांरणी [ ३२७ मौड़ ॥ कौड़ । अरोड़ ॥ ७ तैं रघुनाथ बिसारिया, त्रिहुं ताप तपणा । छूटा गरभ ग्रभवासमें, बह बार छपणा || घर घर तन सी चियार, लख जोगां धपणा । खिणखिण आव संसारह, बुदबुद ज्यूं खपणा ॥ कर कर पर उपकार पुन, तन प्राचत कपणा । संसारी दा भगळखेल, जांगै जिम सपणा ॥ ६. धुर-प्रथम । श्रक्ख - कह । यक- एक । मोहरा - तुकबंदी । उ-दो । सक्ख - कह, साक्षी दे । ७. ग्रह-नाग । कवण - कौन । श्रोड़ समान । जै-जीत । दत - दान । जोड़-समानता । चक्रवत - राजा, चक्रवर्ती राजा । सुधा-सीधा । मद-गर्व । वंका-बाँकुरा । मौड़श्रेष्ठ । मख यज्ञ । रिख ऋषि । तेगां-तलवारों | खळ- राक्षस | दसमाथ-रावरण । तोड़-संहार कर, काट कर । श्ररोड़ जबरदस्त । ८. तैं - तूने । विसारिया - विस्मरण किया । त्रिहुं तीन । ताप-तप, तपस्या । तपणा तप करने वाला । गरभ - गर्व । ग्रभवास में - गर्भवासमें । बह-बहुत । छपांणागुप्त रहा। सीचियार- चौरासी । जोणां-योनियों । खिण-क्षरण । बुदबुद (बुद्ध बुद्ध) - पानीका बुल्ला बुल्ला, जलका फफोला । खपरणा- नाश होना । संसारीदा-संसारका । भगळ खेल - इन्द्रजाल, मायावी, धोखा | सपणा - स्वप्न । Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ ] रघुवरजसप्रकास आखर-दिन अवधेस विण, नह कोई अपणा । जिण कज हे मनरांम रांम, जीहा नित जपणा ॥ ८ अथ सुद्ध निसांणी जांगड़ी चौथी तुकांत दौ गुरु उदाहरण निसारणी कदम सुभंदा मेरगिर, नहचळ मझ कंका । सुज तर बंक पधोर कोध, के सूध-सणंका ।। बहिया बाळ मुकाळ बुळ, हीया ब्रद बंका । डारण सज्झे दहकमळ, वज्जे जस डंका ॥ रिम सबळ मारण सुभाव, साधारण रंका । धू-धारण कारण जनां, कज सारण धंका ॥ आचां झौंक रामचंद, सुदतार असंका । लिन्हां-विण जिण दिन्हियां, सरणायत लंका ॥ अथ निसांणी मारू लछण मत सोळह फिर बार मुण, दख मोहरे गुरु दोय । मारू नीसांणी मुणै, सुकव महा मत सोय ॥ १० ८. पाखर-दिन-मृत्यु-समय । कज-लिए। जीहा-जीभ । ६. कदम-चरण । सुभंदा-शोभा देते हैं। मेरगिर-सुमेरुगिरि । नहचळ-अटल, निश्चल । मझ-मध्य, में। कंका-युद्ध । कोध-किये, कियो । सूध-सणंका-बिलकुल सीधा । डारण-जबरदस्त । सज्झे-संहार किया, मारा। दहकमळ-रावरण। जस-यश, जिसका। रिम-शत्र । साधारण-उद्धार करने वाला, रक्षा करने वाला। रंका-गरीब । ध-धारण-निश्चय । कज-कार्य, लिए । सारण-सफल करने को। धंका-इच्छा। प्राचा-हाथों। झोक-धन्य-धन्य । प्रसंका-निर्भय, निशंक । लिन्हां-विण-बिना लिए ही। जिण--जिस । दिन्हियां-दे दी। सरणायत-शरणागत । १०. मत-मात्रा । बार-बारह । मुण-कह । दख-कह । मत-बुद्धि। सोय-वह । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३२६ अथ मारू निसांणी उदाहरण निसांगो कांम क्रोध मद लोभ मोह कर, अवस रहे अडगांणे । लाह नह रख न सोच अलाभे, मन संतोख समांणे ॥ सत्र मित्र पर भाव अक सम, पत्थ रहेम प्रमाणे । धरमें 'किसन' कहै ते नर धन, जे मन राघव जाणे ॥ ११ अथ निसांणी वार लछण दूही मुण तुक प्रत जिण तीस मत, मगण क र तुकंत । वार निसांणी 'किसन' कवि, मत उपछंद मुणंत ।। १२ प्ररथ तुक अंक प्रत मात्रा तीस होय, तुकंत मगण अथवा रगण होय सौ निसांणी वार नामा मात्रा उपछंद छै । अथ वार नामा निसांणी उदाहरण निसारणी बंध ग्राह दरीयाव बीच, पड़ संघट फील पुकारियां । ईस ऊबाहण-पाय आय, धर हत्थू सूंड उधारियां ॥ धू भजीया हरी धूधड़े, कर नहचळ ते सुखकारियां । सत-ब्रत भगती सज्झीयां, ते प्रळय पयोनिध तारियां ॥ ११. अवस-अवश्य अडगांणे-अटल, निश्चल । लाह-लाभ। संतोख-संतोष। समाणे समा गया, समाया हुआ। सत्र-शत्रु। पत्थ-मार्ग। रहेम-ईश्वर । धर-पृथ्वी। धन-धन्य। १२. मुण-कह । तुक प्रत-प्रति चरण । जिण-जिस । मत-मात्रा। क-या, अथवा । र-रगण गण । मुणंत-कहता है। १३. दरीयाव-सागर । संघट (संकट)-दुख । फील-हाथी। पुकारिया-पुकार करने पर । ऊबाहण-पाय-नंगे पैर । धर-पकड़ कर । हत्थू-हाथसे। उधारियां-उद्धार किया । ध-भक्त ध्रव । धड़े-निशंक, निर्भय । नहचळ-निश्चल । सत-ब्रत (सत्यव्रत)सातवें मनुका नाम, इक्ष्वाकुवंशी हरिश्चंद्रके पिताका नाम । सज्झीयां-साधन किया। ते-वे। पयोनिध-समुद्र, सागर । Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० ] रघुवरजसप्रकास बेख दास प्रहळाद बारह, बिप नरहर धार उबारियां । सत्य बळ दे सोह जग सखै, हरि तन सझ मंगणहारियां ॥ गोह अहल्या सवरी गीध, बळ व्याध कमंध बिचारियां । भी सुग्रीव भभीखणांह, ब्रजराज सतोल बधारियां ॥ निबळ अनाथ निधार नेक हरि, सबळां कीन्ह निहारीयां । सीताबर संत सधारियां, सीताबर संत सधारीयां ॥ १३ अथ मात्रा उपछंद निसांणी हंसगत तथा रूपमाळा लछण मुण तुक प्रत बत्तीस मत, अंत भगण गण आंण । गण निसांणी हंसगत, वरणत राम बखांण ॥ १४ प्ररथ तुक अंक प्रत बतीस मात्रा होय । तुकके अंत भगण गण होय, सौ निसांणी हंसगत कहीजै तथा बेअखरी छंदरी दोय तुकांसू अक तुक वणे सौ हंसगत निसांणी। हंसगत निसांणीरै नै बेअखरी छंदरै अतरौ तफावत छ सौ कहां छां। बेअखरी छंदरै तौ तुकरै अंत गुरु लघुरौ नीयम नहीं छै । कठैक तुकंत गुरु, कठैक तुकंत लघु होय नै हंसगतरै तुकंत भगणहीज आवै सौ लघु तुकंतरौ नेम छै । यतरौ भेद छ । यणनै कोई रूपमाळा पिण कहै छ। अथ हंसगत निसांणी उदाहरण निसांगी स्रीरघुनाथ अनाथ नाथ सुज, बेढ सत्र दसमाथ विहंडण । जाहर मही जहूर सुजस जिण, महपत नूर सूरकुळ मंडण । १३. बेख-देख कर। बिप (वपु)-शरीर। नरहर-नृसिंहावतार । उवारियां-रक्षा की। तन-शरीर। सझ-धारण कर । गोह-गुहनामभक्त, निषादराज जो रामका परम भक्त था। बळ-राजा बळि । सधारीयां-रक्षा की, रक्षा करने पर । १४. मुण-कह। तुक प्रत-प्रति चरण । मत-मात्रा । बखांण-यश । अतरौ-इतना । तफावत-भेद, फर्क। कठेक-कहीं पर । नेम-नियम । यतरौ-इतना । यणनै-इसको। पिण-भी। १५. बेढ-युद्ध। सत्र-शत्रु । दसमाथ-रावण । विहंडण-संहार करने को। जाहर जाहिर, प्रसिद्ध । मही-पृथ्वी। जहूर-प्रकाशन । सुजस-सुयश । महपत-राजा । नूर-कांति, दीप्ति। सूरकुळ-सूर्य वंश । मंडण-आभूषण । Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३.१: झूठ अवाच अपूठ महाजुध, दूठ सरूठ अदंडांदंडण । भुज परचंड मंड जय भासत, खंडपरस कोदंड बिखंडण ॥ दसरथनंद निकंद पाप दळ, घणनांमी आणंदतणौ घण । संतां काज सकाज सुधारण, महाराज सुरराज सिरोमण ॥ दीनदयाळ पाळकर गौ दुज, निज प्रिया सिया मनरंजण । जाप 'किसन' मा बाप राम जस, भव त्रय ताप पाप दळ भंजण॥ १५ अथ निसांणी झींगर लछण दूहौ धुर अठार फिर चवद धर, मोहरे मगण मिळत । झींगर निसांणी जिकाह, 'किसन' कवेस कहंत ॥ १६ अथ झींगर निसांणी उदाहरण निसारणी जिण कीड़ी कुंजर जीव दुनीदा, रूप चराचर रच्चा है। रक्ख हत्थं डोर लख चौरासी, नाच नच्चाय नच्चा है॥ तिणदी विण जोत गोत मिट्टी तन, 'किसन' कहै सब कच्चा है। बोलै स त संम्रत स्यंभ अज वायक, सीतानायक सच्चा है ॥१७ १५. अवाच-नहीं कहना । अपूठ-पीठ फेरनेकी क्रिया। द्रठ-जबरदस्त । सरूठ-क्रोध करने पर । प्रदंडांदंडण-जो किसीसे दंडित न किया जाय ऐसे समर्थको अथवा जो कुटिल हो उसको भी दंड देने वाला । खंडपरस-महादेव। कोदंड-धनष । बिखंडण-तोडने वाला। निकंद-नाश करने वाला, नाश । सुरराज-इन्द्र। सिरोमण-शिरोमणि, श्रेष्ठ । पाळकर-पालन करने वाला। गौ--गाय। दुज (द्विज)-ब्राह्मण । सिया-सीता । मनरंजण-प्रसन्न करने वाला । जाप-जप कर, भजन कर। भव-संसार । त्रय-तीन । ताप-दुख । दळ-समूह । भंजण-मिटाने वाला। १६. मोहरे-तुकबंदीमें । मिळंत-मिलता है। कवेस (कवीश)-महाकवि । कहंत-कहता है, कहते हैं। १७. कीड़ी-चिउंटी। कुंजर-हाथी। दुनीदा-संसारका। रच्चा है-रचा है, बनाया है। हत्थू-हाथ। चौरासी-चौरासी लाख जीव योनि । तिणदो-उसकी। सतश्रुति । संम्रत-स्मृति । स्यंभ-शंभु, शिव। प्रज-ब्रह्मा। वायक-वाक्य, वचन । सीतानायक-सीतापति, श्रीरामचंद्र। सच्चा है-सत्य है। Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ ] रघुवरजसप्रकास अथ निसांणी सीहटप लछण दूही तुक प्रत मत छबीस तव, तगण क जगण तुकंत । सौ निसांणी सीहटप, हणु आंकणी कहंत ॥ १८ प्ररथ प्रत तुक मात्रा छावीस होय । तुकंतमें जगण बोहत होय। कठैक तगण गण पण तुकंतमें होय । दोय तुकारै पछै हण इसा सबदरी प्रांकणी होय सौ निसांणी सीहटप पण कहीजै। अथ सीहटप निसांणी उदाहरण निसांगी यक आद-पुरुख अनादसू दख भ्रहम माया दोख । त्रय भ्रहम विसन महेस ने गुण हुवा जिण जग होय ॥ हणु हुवा जिण जग होय हरखित चाह बेद चियार । तत पंच कर खट तरक तै दरियाव सात उदार ॥ हणु सात दध दस आठ सर जे नवे ग्रह नर नाह । अवतार दस कर रुद्र ग्यारह बारह मेघ दुबाह ॥ हणु बारह मेघ नीर विरचित मास तेरह मंड । दस च्यार विद्या रतन दाखव पनर तिथि परचंड ॥ हणु पंच दस तिथ सोळ कळ पढ सरस नार सिंगार । साहस सतरह खंड गूजर थाप ग्रांम बिथार ॥ हण थाप गांम बिथार भार अठार वन कर भेद । उगणीस वरसे भोम जोबन विसावीस अखेद ॥ १८. तुक प्रत-प्रति चरण । मत-मात्रा। छबीस-छब्बीस । तव-कह । क-या, अथवा । कठेक-कहीं पर। १६. यक-एक। पाद-पुरुख-प्रादि पुरुष। दख-कह । भ्रहम-ब्रह्मा । विसन-विष्णु। महेस-महादेव। दध (उदधि) सागर, समुद्र । दाखव-कह । तिथ-तिथि, तारीख । सोळ-सोलह । बुध-पंडित । खंड-देस। विसावीस-पूर्ण, पूरा। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३३ a विसावी खेद विचार बुध यण कीध मंड अनेक । सौ दपुर उचार 'किसना' अचळ राघव क ॥ श्रथ न्यविधि निसांणी सोहटप तथा सीहचली लछण चौपई सोळह दस मत यक पद साज, गीत प्रोढ गुरु लघू गाय । सीहचली तुक उलट सकाय, ॥ २० अथ दुतीय सीहचलो निसांणी उदाहरण निसांरगी तन स्यांम अंबुद रूप तड़िता, वसन पीत विचार | वासन्न पीत विचार सरवर, धनुख सायक धार ॥ धानंख सायक घर धरम घर, भुजां झल्ला भार । जुध जार दससिर कुंभ जेहा, सकळ कांम सुधार ॥ सह कांम दास सुधार समरथ, श्रेक रांम उदार ॥ २१ " अथ निसांणी सिरखुली लछण हौ मध्य मेळ मत बार पर, नव मत सीस खुलाय । तुक प्रत मत यकवीस तव, सिर खुल्ली कह साय ॥ २२ अरथ जिण निसांणीरै तुक नेक प्रत मात्रा यकवीस होय । तुक प्रेकका दोय विभाग होय । पै'ला विभागरी मात्रा बारै होय जठे मध्य मेळ निसांणीरौ तुकंत, दूजौ विभाग मात्रा नवरी होय जठे सिरखुली कहीजै । २०. मत - मात्रा । यक- एक 1 २१. अंबुद-बादल । तड़िता-बिजली | वसन-वस्त्र । पीत- पीला । वासन्न-वस्त्र । धनुखधनुष । सायक- बारण, तीर । भल्लण - धारण करने वाला । जार-संहार कर, मार व्यभिचारी पुरुष | कुंभ - रावणका भाई कुंभकर्ण । जेहा - जैसा | सह- सब | २२. बार-बारह । यकवीस - इक्कीस । तव कह | कर, Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ ] रघुवरजसप्रकास अथ सिरखुली निसांणी उदाहरण निसांगी राघव सिफत बखांणी, सच्चे सायरां । आफताब दुनियांणी, दीद नगाहए | जिन्हां तज जुलमांणी, हक्क सराहियां । रुख चुगलक ब "जांनी, सिरदह सझियां ॥ परस लिया मद पांनी, दार जुनारदा | arita aगसांगी, लंक पनाहियां ॥ खळक तमांम रचांनी, छिनमें खानी खालकां । जपै सुकर जबांनी, कुदरत कौनदी || बंदु परवर सांनी, सीतासांइयां ॥ २३ अथ घग्घर निसांणी लछण दूहौ लछण संजुत आठ तुक, जोड़ त्रिभंगी छंद । अंत जगण बत्तीस मत, घग्घर प्रबंध || २४ ह अरथ त्रिभंगी छंदरौ लछण सोई घग्घर निसांणीरौ लछण छै । त्रिभंगी छंदरी आठ तुक सोई घग्घर निसांणी । तुक प्रेक प्रत मात्रा बतीस । च्यार विस्रांम । पै'लौ विस्रांम दस पर होवै । दूजौ विस्रांम मात्रा ग्राठ पर होवै । तीज विस्त्रांम मात्रा आठ पर होवै । चौथौ विस्रांम मात्रा छै पर होवै । अंत जगण होवे । सोई त्रिभंगी छंद, सोई घग्घर निसांणी । त्रिभंगीको तुकांत मिळ । घग्घर निसांणीका तुकांत क अखिर ऊपर मिळे सौ २३. सिफत - विशेषता, गुण । सायरां-कवियों । ग्राफताब - सूर्य । दुनियांणी- संसारका | दीद - देखादेखी, दर्शन । नगाहए ( निगाह ) - दृष्टि, नजर, कृपा, मेहरबानी । जिन्हां(जिना) परस्त्रीगमन | जुलमांणी - जुल्म, श्रत्याचार, हक्क, कर्तव्य । सराहियां - सराहना कीजिए । बभ्भीछण- विभीषरण | बगसांणी-प्रदान कर दी । दे दी । पनाहियां शरण में आने वाले, पनाह लेने वाले । खलक ( खल्क ) - मानव जाति, सब मनुष्य । खालकांईश्वर । जपै - प्रार्थना करते हैं । सुकर (शुक्र) - कृतज्ञता । परवर - पालन करने वाला । पालक, ईश्वर । सांनी - जोड़का, समान, दूसरा । सीतासांइयां - श्रीरामचंद्र भगवान । २४. लछण-लक्षण | संजुत-संयुक्त 1 मत मात्रा । श्रेह - यह । सोई - वही । और ग्रखिर ऊपर भेद छै । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास अथ मात्रा उपछंद घग्घर निसांणी उदाहरण निसांरगी पोह कत कविराजं हरख उछाजं सुजस समाजं दध पाजं । रिखबर मुनिराज सिवसिध राजं स्तुति दुजराजं नित साजं ॥ मुख सहस समाजं जपि अहिराजं रटत सकाजं सुर राजं । मुख जोतिस काजं कबि ग्रहराजं जांन सुभाजं खगराजं ॥ कज संख गदाजं चक्र उद्वाजं आयुध साजं भुज भ्राजं । मह गौ दुजमानं रिखि नर राजं सुचित दराजं दत साजं । रघुकुळ सिरताजं जन रखि लाजं जय महाराजं रघुराजं ||२५ ग्रंथ दुतीय घग्घर निसांणी लछण हो दस मत विसरांम दौ, चवद तियौ विसरांम | अंत मगण जिणनूं घग्घर, कौ कवि कहै सकांम ॥ २६ अथ दुतीय घग्घर निसांणी उदाहरण निसांरगी हिरणायख हांणे संख सझांणे हयग्रीवा खळ हंता है । हरणाकुस हत्ते महणसु मध्ये छितले बळि छळता है ॥ यमराज उधारे रांमण मारे ते हा कंस मता है । कह बुद्ध किलंकी ईस असंकी कळ पूरण सीकंता है | २७ [ ३३५ ू २५. दध–समुद्र । पाजं - पुल, सेतु । अहिराजं - शेषनाग । प्रकाश । ग्रहराजं सूर्य । जांन ( यान ) - वाहन । श्रायुध-शस्त्र । भ्राजं - शोभा देता है । जन-भक्त । २६. चवद - चौदह । तियौ-तीसरा । विसरांम - विश्राम । २७. हिरणायख - हिरण्याक्ष नामक राक्षस । हांणं - मारा | सां-संहार किया । हयग्रीवा - एक राक्षसका नाम । हरणाकुस - हिरण्यकशिपु । हत्ते संहार किया | महणसु- समुद्र छित - पृथ्वी । सीकंता - श्रीकंत, विष्णु, श्रीरामचंद्र भगवान । संख - एक असुरका नाम । हंता है-मारने वाला है । । मथ्थे - मंथन किया । सुरराजं - इन्द्र । जोतिस - ज्योति, खगराजं - गरुड़ | कज- कमल । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ ] रघुवरजसप्रका अथ पैड़ी निसांणी लछण दूहौ ठार सोळ सोलह चवद, तुक प्रत मत चवसाठ | नीसांणी मगणंत निज, पैड़ी या विध पाठ ॥ २८ अरथ पैड़ी निसांणी तुक प्रेक प्रत मात्रा चौसठ होय । तुकांत गुरु होय तथा मग होय । तुक कमें विसरांम च्यार होय । पै'लौ विसरांम मात्रा अठार पर होय । दूजौ विसरांम मात्रा सोळं पर होय । तीजौ विसरांम मात्रा सोळ पर होय । चौथौ विसरांम मात्रा चवदं पर होय । ईं प्रकार च्यार विसरांम होय । तुक क प्रत मात्रा चौसठ होय, सौ पैड़ी नांम निसांणी कहीजै । ग्रंथ पैड़ी निसांणी उदाहरण निसांखी भारा कांत हुबंदी भूम्मी, वरतंदी सुरवार विक्खम्मी | अमरं कथ भ्रहमांण अखंम्मी, थंदे उध्थल थांनूंदा ॥ आदम अरु भदेव मिळियंदे, आए सब दरियाखीरंदे | काहल दस्तबंध कुत्ररंदे, गिरीश्ररि गुजरांनंदा ॥ अरज सुण कर दरियाफत अल्ला, बरदे महरबान के बुल्ला । हूं दे तुम कज जंगूं हमल्ला, यळ अवतार असांनंदा || संभूमन नूप दसरथ्य समथ्थी, कोसळ्या सत रूपा कथ्थी । जाहर पूत च्यार जग जी, जांमण सेर जवांनूदा || २८. ठार - अठारह | सोळ - सोलह । चवद-चौदह । विसरांम - विश्राम । चवसाठ-चौसठ । यण - इस । । उथल - उलटा । २६. भारा - भार, वजन । प्राक्रांत - घिरा हुआ, आवृत । हुवंदो होती । भूम्मी (भूमि) - पृथ्वी । वरतंदी - हो रही हो । सुरवार - देवताओं का समय । विखम्मी - विषम | श्रमरूं-देवता । कथ कथा । भ्रमण - ब्रह्मा । अखंम्मी - कही थांदा-स्थान । श्रादम - ईश्वर, शिव । बंभदेव-ब्रह्मा । मिळियंदे खीरंदे - क्षीर सागर पर । काहल व्याकुल । दस्तबंध -कर-बद्ध । गिरीश्ररि (गिरिरि ) - इन्द्र | श्रल्ला - ईश्वर । हूं दे- मैं । कज लिये । यळ - भूमि । प्रसांनंदा - मेरा, हमारा । संभूमन - स्वायंभू मनु । मिले । दरिया Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३७ कौसिकदे जिग परबरसी कित्ता, पै रज करी सिला परवित्ता । भंजे चाप अमाप अभित्ता, सीता ब्याह सुमांदा ॥ ते तेज हरा दुजरांम अताई, पितदे हुकम रिखी व्रत पाई। मारे ब्याध कबंध अमाई, वाटीपंच वमांनंदा ॥ रांमण तद हरी जानुकी रांणी, भोली बेर भखांनंदा । मिळ कपि हणुमंत सुकंठी म्यता, चौपट मारे बाळ अचंता। दांन भभौखण लंक दीयंता, बध पाज जळवांनंदा ॥ .....................। बंबी जद घोर जंगदा बग्गा, लड़ण मेघनाद रिण लग्गा। भिड़ तिण सेस भुजू बळ भग्गा, मिटा सोच मघबांनंदा । जोधा रिण कुंभ दसानन जुट्ट, कोपे रांम बिहूं सिर कट्टे । आंण सिया दुख देव अहुट्ट, जपै क्रीत जिहांगंदा ॥ २६ अथ मछटथळ तथा सोहणी नाम निसांणी लछण दही तेर प्रथम सोळह दुती, मझ तुक बे बिसरांम । गुणति मत अंते बे गुरु, निमंध मछटथळ नाम ॥ ३० प्ररथ मछटथळ नाम निसांणीरै तुक प्रत मात्रा गुणतीस होय । तुकरै अंत दोय गुरु अखिर होय । तुक अंक प्रत मात्रा गुणतीस होय, जीरा दोय विसरांम होय । २६. कौसिकदे-विश्वामित्र । जिग-यज्ञ । परबरसी (परवरिश)--रक्षा, पालन-पोषण । चाप-धनुष । अभिता-निर्भय,निशंक । दुजरांम-परशुराम । पितदे-पिताका | वाटीपंचपंचवटी । भोली-भिल्लनी । भखांदा-खाये, भक्षण किये । सुकंठी-सुग्रीव । म्यंता-मित्र । चौपट-खुला मैदान । बाळ-बालि वानर । पाज-पुल । जळबांदासमुद्रकी। बंबी-नगाड़ा। जद-जब । जंगदा-युद्धका । बग्गा-बजा। भिड़-योद्धा । सेस-लक्ष्मण । मघबानूंदा-इन्द्रका। जु-भिड़े। बिहूं-दोनों। कट्ट-काट डाले । अट्ट-नाश हुए। जंपै-वर्णन करता है। जिहांनूंदा-संसारके । ३०. तेर-तेरह। दुती-दूसरी। बे-दो। गुणति-उनतीस । मत-मात्रा। निमंध-रच, बना । गुणतीस-उनतीस । Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ ] रघुवरजसप्रकास पै'लौ विसरांम तौ मात्रा तेरै ऊपर होय । दूजौ विसरांम मात्रा सोळं ऊपर होय, सौ निसांणी मछटथळ नांमा कहीजै। इणरौ दूजौ नाम सोहणी पिण छ । अथ मछटथळ तथा सोहणी निसांणी उदाहरण निसांगी तज मक्कर फक्कर तसं, उर सुध करखे रात अपंदे । वस करदे इंद्री अवस, तन मझी तप सील तप्पंदे ॥ आप रहंदे अघ अळग, पर छिद्र निसदीह ढपंदे । सेव सझदे सांइयां, पै करमूं कबहू न लपंदे ॥ आदम लखू दरमियांन, छित विरल नर नांहि छिपदे । सत ग्रह रदे तजदे असत, धर कदमं सुभ पंथ धपदे । नाम जिन्हूदा अमर नित, खित जाये जे जीव खपंदे । जिन्हां जीतब जीतिया, जे रघुबर नित जीह जपंदे ॥ ३१ ___ अथ मात्रा असम चरण कड़खा छंद लछण धुर तुक मत चाळीस धर, तुक अन मत सैंतीस । अंत गुरु तुक प्रत अखिर, कड़खौ छंद कहीस ॥ ३२ प्ररथ पै'ली तुकरी मात्रा चाळीस होय । पछली तीन ही तुकां तथा सवाय करै तौ पिण तुक प्रत मात्रा सैंतीस होय । तुकंत गुरु अखिर तथा करणगण होय । जीं ३१. मक्कर-गर्व, अभिमान । फक्कर (फक्र)-दीनता, गरीबी, आवश्यकतासे अधिक किसी पदार्थकी कामना न करना। मझी-मध्य। तप-तपस्या। तप्पंदे-तपस्या कर। अघपाप । अळग-दूर । पर-दूसरोंके। छिद्रं-छिद्र । निसदीह-रात दिन । ढपंदे-ढकते हैं। सेव-सेवा। सांइयां-ईश्वर। प्रादम-ईश्वर। लखू-देख, देखता हूँ। दरमियांन-मध्य । छित-पृथ्वी। विरले-कोई। छिपंदे-छिपते हैं। रदे-हृदय । असत-असत्य । जिन्हूंदा-जिनका। खित-पृथ्वी। जाये-जन्मे । जे-जो, वे । खपंदे नाश होते हैं । जिन्हां-जिन्होंने । जीतब-जीवन । जीह-जीभ । जपंदे-जपते हैं । ३२. अन-अन्य । मत-मात्रा। कहीस-कहूँगा। पछली-बादकी, पश्चातकी। सवाय विशेष । करणगण-दो दीर्घ मात्रा का नाम ऽ । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३३६ छंदरौ नांम कड़खौ छंद कहीजै । निसांणी छंदरै उतरारधमें कड़खौ छंद ढाढ़ी बोहत है छै । अथ कड़खौ छंद उदाहरण छंद रसरणा रांम रट रांम रट रांम रट | राम रट रांम रट राम रट रांम रट ॥ नेह आह आह सुख गेह निज । पतीसीय भांम ॥ भूप आनूप पांण पंचाण पह | पण धनुबां ठाह गुण गाह जग ठांम ठांम ॥ सुकवि 'किसनेस' महेस भुजगेस सुज । जाप जस जेस प्रति जांम जांम ॥ ३३ अथ कळसरौ छप्पै कवित्त छप्पै घ कमण प्रभौ गिरण रज कण । गण || भक्खै । खै ॥ था कुरण दुध बूंदां जळ वरसात गिरौ केहौ तारक पुणे कमण तर पत्र भ्रम माया कुण मह उत्तर पथ माप आप लहरां कुण कुण सकै जोग निरणौ करै रे गोरख सिव राजरौ । किव 'किसन' समर्थ कुण जस कहण रामचंद्र महराजरौ ॥ ३४ ३३. रसणा- जीभ । सीय-सीता । भांम-स्त्री । पांण-हाथ । श्रापांण-शक्ति | पंचांगसिंह | ठाह - स्थान, ज्ञान । ठांम-स्थान । माहेस- शिव । भुजगेस- शेषनाग । जेसजिसका जांग जांम-याम याम । 1 ३४. था- सीमा या ह्दकी जांच करे । कुण-कौन । दध-समुद्र । श्रथघ प्रथाह, असीम । कमण - कौन । प्रमणे कहे। रज-धूलि । केहौ-कौन पान । ब्रह्म ब्रह्मा । भक्ख कहे । मह - भूमि, पृथ्वी । समय - समर्थ | पुणे- कहै । तर वृक्ष | पत्रश्राप - पानी । श्रक्खे - कहे । Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० ] रघुवरजसप्रकास अथ कविवंस वरणण छप्पै कवित्त छप्प 'दुरसा' घर ‘किसनेस' 'किसन' घर सुकवि ‘महेसुर' । सुत 'महेस' “खमांण' 'खांन साहिब' सुत जिण घर ।। 'साहिब' घर 'पनसाह' ‘पना' सुत 'दुलह' सुकव पुण । 'दुल्ह' घरे खट पुत्र 'दान' 'जस' 'किसन' 'बुधौ' भण ॥ 'सारूप' 'चमन' मुरधर उतन, प्रगट नगर पांचेटियौ । चारण जाती आढा विगत 'किसन' सुकव पिंगळ कियौ ॥ ३५ उदियापुर प्राथांण रांण भीभाजळ राजत । कवरां-मुकट 'जवांन' नीत मग जग नीवाजत । अट्ठारै सै समत वरस असियौ माह सुद। बुद्धबार तिथ चौथ हुवौ प्रारंभ ग्रंथ हद । अठारै अनै अकियासिये, सुद आसोज सराहियौ । सनि बिजैदसमी रघुबर सुज किसन'सुकवि सुभकत कियौ ।। ३६ दहा रघुबर सुजस प्रकासरौ, अहनिस करै अभ्यास । सकौ सुकवि वाजै सही, रांम क्रपा सर रास ॥ ३७ प्रगट छंद अनुस्टपां, संख्या गिणियां सार । सुज रघुबर प्रकास जस, है गुण तीन हजार ॥ ३८ जिणरौ गुण भण जेणनूं , न गिणै गुर निरधार । पड़ रौरव ले प्रगट, अवस स्वांन अवतार ॥ ३६ इति स्रीरघुवरजसप्रकास पिंगळ ग्रंथे अाढा किसना विरचिते कड़खौ अंक अकादस प्रकार निसांणी निरूपण वरणण नांम पंचमौ प्रकरण संपूरण । समाप्त । ३५. उतन-वतन, जन्म भूमि । Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ पद्यानुक्रमणिका पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ० ० क्र.सं. पंक्ति गाथा १ अघ हर सुख कर अमळं २ प्रजामेळ यक वारं ३ प्रसनं वसन जळ अहनिस ४ असमझ समझ अखीज ५ प्रहमत तज भज ईसर ६ माळस न कर प्रजारण ७ कमळनयरण कमळाकर ८ की कहरणौ कौसल्या ६ जगत जनक हरि जय जय १० जन लज रखरण जरूरह ११ जिण दिन रघुबर जंपै १२ जीहा राघौ जंपै १३ तो सारीखौ तूंही १४ निज कुळ कमळ दिनेसं १५ नित जप जप जगनायक १६ पढ़ सीतावर प्राणी १७ भुजबळ खळ दळ भंजण १८ रघुबर सौ प्रभु तज कर १६ रट रट स्रीरघुरांम २० रिखय मख कर रखवाळं २१ रिख सिख गंगा राम २२ रै झोका स्रीराम २३ वेदां भेदां वेखौ २४ सज्झी न राघव सेवं २५ सुन्दर स्यांम सरीरं २६ है कांनै मौताहळ ८० २ १६८ सोभा ७८ २ १६० कांती ८१ २ १७३ सिंघी ८० २ १६६ गाहेणी ८० २ १७० चक्वनी ७६ २ १६१ महामाया ७६ २ १६२ कीरती ७७ २ १५२ लज्जा ८१ २ १७४ हंसी ८१ २ १७१ सारसी ७६ २ १६४ मारणरणी ७७ २ १५१ बुद्धी ७६ ३ १४६ लछी ७६ २ १६५ रामा ८० २ १६६ हरिणी ७८ २ १५७ धात्री ८१ २ १७२ कुररी ८० २ १६७ वसंत ७८ २ १५६ छाया ७६ २ १६३ सिद्धी ७८ २ १५८ चूरणा ७६ २ १५० रिद्धी ७७ २ १५३ विद्या ७८ २ १५६ गौरी ७७ २ १५५ देवी ७७ २ १५४ खम्या 0 0 0 0 गीत १ अडग तेज प्ररथघ सरद, ध्यान रति प्रासती १७४ ४ २ अडग तेज प्रथघ सरद, ध्यान न ति प्रासती १९४ ४ २४ सुद्ध सागोर ६१ सुद्ध सागोर Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ ] क्र.सं. पंक्ति ३ श्रवधेस लंका ऊपर घर कुरख धंखा जुधधरं भारख श्रंगराजी दुती भळळाट रवि दरसे ५ श्रालम हाथरौ रघुनाथ चरिज, श्रवध भूप प्रसंक ४ ६ श्रोत तन तेल सिंदुरां प्रांगा ७ ८ & श्रय जे रांम स्त्रीया नित प्ररचं प्रोयरण जे रांम सोया नित श्ररच अंगधार श्रारख ऊजळा १० कमर बांधियां तूण सारंग गहियां करा ११ १३ कर कर बाद में हिक नगरण सुभंकर १२ करां धाड़ लागे रघौराज दत कीजतां करी चूर कुळ सुभावहं सादूळ कह कवसळ सुता राजकंवार क्रत जन काजरा कारकार खार बार धार सुरार संधारकार कीजै वार छिब कांम कौटिक, दीन दुख दाघौ २३६ ४ १४ २८३ ४ १५ ३१८ ४ १६ १७ कैटभ मधु कुंभ कबंध कचरिया २०३ ४ रघुवरजसप्रकास १८ १९ कौसिक रिख जग काजरे गह गंज रे गह गंज २० खगदत ब्रद खटांजी राखरण रजवटां २१ घरणनांमी जो घरणनांमी २२ चितकरणी खा दिसी नह चाहे २३ २४ २५ २६ जग जनक धनक हर हररण कररण जय जगनाथ अंतरतरणौ जांमी जम लग कठै में सीस जियां जम लग कठे में सीस जियां २७ जांनकी नायक जगत जाहर जांभी अघभांन सुरसरी जेथी २६ जिरण मुख जोवतां दुख प्राचत जावे २८ ३० जँ नरेस राघवेस श्रासुरेस जुधां जेस ३४ ३५ ३१ त कहूँ समझाय मत मंद जग फंद तज ३२ तारं दासां त्रिकमाह, भय वारे जम भूप तोकम पाळगर जन देवतरौ सौ ३३ थिर बूध थटो क्रत हीरण कटौ दखे "किसन्न " दासरे तवं विरुद्ध तास पृष्ठ प्रकरण पद्यांक २४६ ४ १५६ २४४ ४ १४७ २०४ ४ ७६ ३२१ ४ २६४ जयवंत सावझड़ौ ४ ७० वेलिया सांरगौर वेलियो सांरगौर २०० १७३ ४ २३ २७७ ४ ११६ २६६ ४ २५८ १८८ ४ ठताळी सावझड़ौ अरध सावभड़ौ वसंतरमरणी ५० २५८ ४ १७४ प्रहररण (न) खेड़ी ast सांगौर १६२ ४ ५८ २३० धमाळ २६२ १२६ ७४ २८८ ४ २३६ २४४ ४ १०८ ४ २४२ २२६ नाम त्रकुट बंध प्ररव भाखड़ी सोरठियो कंठ सुखरौ कैवार पूणियाँ तथा जांगड़ौ सांगौर यकखरौ ब्रध चितविलास १४२ भाखड़ी ४ ११० लघुचितविलास ३०१ ४ २६२ २५५ ४ १६६ २६६ ४ १६० १७८ ४ ३४ २२२ ४ १०३ २४८ २५२ ४ १६४ २६३ ४ २२० ४ ६६ २५६ ४ १७७ २१६ ४ ३०४ ४ २७६ १६१ ४ ५४ ६४ २८० ४ २२४ सवैयौ २६१ ૪ १७६ श्रट्टौ सेलार हेकल वयरण उवंग सावड़ौ घड़उथल्ल धड़उथल्ल कुटबंध चौटियो दुमेळ सावझड़ौ विड़कंठ तथा वीरकंठ गोख सावड़ी मनमोह जयवंत सावभड़ौ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३४३ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ३६ दड़ी पडतां द्रहा में चढ़े झांकियौ कदंब डाळ २०६ ४ १४८ पाड़गती सुपंखरौ ३७ दत किरमर जोड़ नको विरदायक २६५ २५३ त्रिमेळ पालवणी तथा झडल पत सावझड़ो ३८ दसरथ नप नंदरण हर दुख दाळद ३१० ४ २७३ पंखाळो ३६ दसरथरा नंद मुकतरा दाता २८६ ४ २४१ अमेळ सांरणोर ४० दाखा पाठरै खट भाख चवदह २२८ ४ ११४ अरटियौ ४१ दीनां पाळगर धन सुतन दसरथ २१७ ४ ६६ चितईलोळ ४२ धन राघव हाथ अभंग धुरंधर २७६ ४ २१४ अरट सांगौर ४३ धाड़ा राघव धुर धमळ अवनाड़ा प्रणबीह २३० ४ ११६ झमाळ ४४ धंधींगर कदम प्रावळा धरती १८६ ४ ५२ मुरगाळ ४५ नर नह ले हरिनाम जड़िया जंजीर कोड़ ३१६ ४ २८८ गहाणी प्रघ जीहा ४६ नर नाग सुरा सुर जोड़ नथी २८७ ४ २३७ उमंग ४७ न रूप न रेख न रंग न राग २१० ४ ८६ बंकगीत ४८ नरेस रांम नमळा, उरां सभाव ऊजळां २६३ ४ १८६ भारण ४६ निज पाठ जोग अभ्यास अहनिस २३४ ४ १२७ हिरणझंप ५० निज संतां तार घणनामी २२१ ४ १०१ अड़ियल ५१ निरधार निवाजण भै अघ भांजण २१५ ४ १२ लेहचाळ ५२ पण राखण दास गदापारणी २६४ ४ २५१ मंदार ५३ परहर प्रवर धंध अपार ३१३ ४ २८० अरधभाख ५४ पहपत रघुपती दत झोक पांरणां २७६ ४ २२२ काछौ ५५ पेख वर्ण जिरण बाह परध्धर २७४ ४ १५३ ढोलचलो ५६ पंडां नीतरा चलाक धू छ-च्यार भंज पलीतरा २५४ ४ १६६ सुपंखरौ पंचाळी बेर बधायौ पल्लव २०२ ४ ७२ सोहरणौ ५८ प्रांरणी सौ झूट कपट चित परहर २८६ ४ २३५ सतखरणी ५६ बुडतो सरवर फोल उबारै ६७ मिस्र वेलियो ६० बंद पाय राघवेस, जोध मेघनाद जेस २६७ १६२ अरध गोखौ सावझड़ो ६१ भड़ असुर पाहव भंजिया २३७ ४ १३३ दोढ़ा भज रे मन राम सियावर भपत . ३०२ ४ २६५ त्राटको ६३ भूपाळां भांमी नेकनांमी २६५ ४ १८८ दुमेळ ६४ मह ईजत प्राव अमंप रे २२६ ४ ११६ सेलार ६५ महाराज प्राजांनभुज राम रघुवंसमण २१३ ४ ६० चौटियाळ ६२ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ] क्र.सं. पंक्ति ६६ महाराज प्रौधेस प्राधार संतां ६७ मही राखण गाथरा प्राखियातरा गातरा मेर मात्रा चवदे तुक हेकरण मांहै मुखहूता भाख 'किसन' मह माहरण पै रज ७० राघव गह पला कीर कह ७१ राघव गह पला कीर कह पै रज ७२ राम प्रसरण सरण राजे ७३ राम नांम रसा रे जाप संभ जसा रे ७४ रिव कुळ रूपरा रे, समय सरूपरा प्रगट अनूपरा रे ७५ रे प्रथम नर समर रघुवर ७६ रेणायर मथरण मथरण रेखा पर भर धर ६८ ६६ ७७ ७८ ७६ Το ८१ ८२ ८४ ८५ ८६ टाळरण समर भर रे राखे ऊजळ भाव रदा लछरण कसीस भुजां धांनंख ८७ ८८ रघुवरजसप्रकास दध लाजरा वडा भाग ज्यांरी विसू लछबर चरणां लाग विभ्गड़ पंचदूरणमाथ प्राथ देख वेसरौ वंसी ऐराकरां छ भाख पैराकरां खड़गवाहां ८३ सतरा हरचंद सुमतरा सागर, चितरा विलंद सुदतरा चाव - सररण वखां जगत चित वखां जेम सिध सररण वखार जगत चित वखां जेम सिध साखी रे भांग नसापत सारं, कीध महाजुध कीत सकांम स भुजां निज धांनंख सरा, मझ छड़े भूहां मौसरा साझी के बखत सांम, बेलसंत बारियांम साकी के बखत सांम, बेल संत बारियांम पृष्ठ प्रकररण पद्मांक नाम २५६ ४ १७१ भुजंगी ३२० ४ २६३ २८८ २११ ४ १७७ २२७ २०८ २७५ ४ २३८ सरलोकौ २६८ बंकड़ौ ४ ३० घोड़ादमौ ३०७ २६१ ३२३ ४ २६६ २६० ४ २४४ भंवरगुंजार ४ ११२ ४ ८४ ४ २१२ ३०० ४ २६० झड़मुकट २८२ ४ २२८ त्रबंक ८८ ४ 33 त्रिवड़ तथा हेलो श्रहिबंध ४ २५७ वडौ सावकड़ो १७२ ४ रूपग गजगत २६६ ४ १८१ दूणौ श्रो सावड़ौ ललित मुकट २२ सुपंखरौ २८५ ४ २२ रसावळौ २३६ ४ १३६ हंसावळौ १७६ ४ २८ १६६ ई ६३ थांरबंध वेलियो प्रहास सांरगोर ३१४ ४ २०४ जाळीबंध बेलियो २४५ ४ १४६ गोखा २४६ ४ १५१ गोखा Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. τε ६० सांमाथ तूं सुरनाथ तूं ६४ ६५ ६६ ६७ ६१. सिया वाहर समर दसारगरण साझा सिव देवां इंद्र सिध सिधराजां ६२ ६३ पंक्ति सारंग हा श्राया श्रवधेसर, सेसह ता पूछे राजेस्वर ५ ६ وا දීපු सुतरण दासरथ रूप लसवांन कौटक समर ६६ सुभ देह नीरद सुंदर, साधार सेवग स्रीवरं १०० सुंदर तन स्यांम स्यांम वारद सम, कौटक भा रद कांम सकांम ८ सीता सुंदरी धरधंग ससोभत सेवग मारुत १०१ सुंदर सोभत घरणस्यांम १०२ सीधर सीरंग सियावर सीपत करणाकर काररण कररण रघुवरजसप्रकास सारखा सीवर सारणौजी, केतां निबळ संतां कांम सुख दियरा दुख गमरण स्वांमी सुज बीजें नर पकां मनह सीधौ ह सुज रूप भूप अनूप स्यांमळ, जेम बरसरण घटा छिब जळ १ २ ३ श्रंक तीसरौ पूरण हूत ४ अंत गुरु हेठ लघु प्रांणौ अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ श्राठ गुरु बारह लघू होय श्राद लघु तळ गुरु धरियेएम अंत लघु तळ गुरु धरिएहौ अंत लघु सिर गुरु परठीजं उलट क्रम दखिरगसूं अंक कळ दस धुर फिर श्राठ सकांम १० क्रम विपरीत अंक लघु सीस ११ जांग उभय तुक भंवर गुंजार १२ ते रे कौड़ बीयाळी लाख १३ थल विपरीत नस्ट कळ कोज १४ थिर गुरु अंत सीस लघु थाप चौपाई पृष्ठ प्रकरण पद्यांक २६७ ४ २५५ २६८ ४ १६८ धमळ २१६ ४ ६८ पालवरणी १७५ ४ २७ सांगौर २७३ ४ २०६ ३१२ ४ २७८ २२३ १०५ सोहचलो ४ ४ २४४ १४५ २३२ ४ १२३ २८१ ४ २२६ २०५ २४० ४ १४० रसखरारौ ३०६ ४ २७१ मुकताग्रह ४ २४६ भंमरगुंजार २६२ २५२ १६५ ४ १५५. ३ १५६ २२ १ १३ १ २२ १ १७ १ २३ १ २२ १ २५ १ २१४ ४ २१ १ ४ नाम ३ १६ १ २३ १ त्रिपंखौ ७८ { ३४५ दुतीय भाखड़ी मुड़ैल श्रठताळौ सालूर दीपक भाख गीत छोटो सांगोर ७३ ४६ ७१ ५८ ७५ ७२ ७८,७६ ६ १ ६८ १६० से १६३ १८६ ६३ ७६,७७ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ ] क्र.सं. पंक्ति १५ धुर गुरु सीस प्रथम लघु धारौ १६ धुर तुक कळ तेवीसह धार १७ के ऊरध गुरु धरौ १८ १६ २० २१ भाग कळप दखिरण कर श्रोर २२ भेद सीस दखिरण व्रत क २३ रूप सोस दखिरण व्रत अंक २४ २५ २६ २७ २८ २६ १ २ धुर लघु पूरण अंक सूं तीजौ श्रंक पूरब मत्त पर मत्त मिळाय बीय रूप लिख कहै बताय ८ ह वरण संख बे दुगरणी वेस विध यरण नस्ट संख्य विपरीत सगर जगरण सगह बे पच्छ रघुवरजसप्रकास सात भगरण गुरु लघु जिरग अंत सुधा क्रम कळपौ भाग सोलह दस मत यक पद साज छप्पै पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २३ १६२ २२ १३ २१ प्रजय विजय वळकररग श्राद सुन्य गुरु पंत, अंक अन गुरु लघु श्रारख ३ उक्तसु सनमुख श्रादि निभै नह जिको श्रंध १७६ ४ ११५ उक्ता प्रत्युक्ता प्रखत, मध्या वखांगत ५ उदियापुर प्राथांग रांग भीमाजळ राजत ३४० ६ एक रमा प्रहनिसा, दोय रविचंद त्रिगुरण दख १०२ ७ करीत उदस्टि देहु, पररण अंक बामह कमळ उदध कळवरछ, भांरग मघवरण मेर ससि कर सम बेबे कोठ अंत यक अंक भरीजं १३ २६ १ २१ १ २६ १ १३ १ २६ १ १३६ ३ १५७ १ ४ ३ २५ १ ३३३ ५ १ १ १ १ ३० १०६ ८६ २ ३८ १ ४ १० कह सेवा की कहै ? नांम परजंक कवरण भरल ११ कहियौ मैं के कहूँ किसूं, धौ त कहियौ १२ १३ किव पूछे जौ कोय, ग्यांन खट भांत एक थळ कोसळ भा सुख कररण, नेत-बंध दसरथ नंदरण १४ चोप प्ररच हरिचरण, चोप फिररे परदछरण १५ जपं रसरण रघुबर जिकं श्रघ त्यां कप प्रमाण जस कज करें भऴस बाज गजराज वडाळा १८४ जिरण भजियौ जगदीस, जिको जमहूत न ६६ भजियाँ १६ १७ १७६ ३८ ६८ २८ १ && २ ४ १ २ १०३ २ १०४ २ ४ २ ७४ ५५ से ५७ ७० ४७ ६६ ५० ८५ ६७ ८४ ४८ ८३ १०४ १६५. ८२ २० ३ ५ ३६ २ १ २ २०४ १११ ३५ ४ २३७ नोसररणीबंध ६७ २६१ ६५ १२६ छत्रबंध ३६ १०६ २२७ २४१ २४५ कुंडलिया ४३ २२३ चौपाई छप्प वळता संख Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [३४७ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १८ जिरण राघव जापियां थरू घर नवनिध थावत १०१ २ २३५ ब्रवनाळीक १६ जै जै भूपां भप सदा सतां साधारै ८९ २ २०३ अजय २० ट ठ ड ढ ण गण अरेह, मात्रा गरण पंच प्रमाणे ७ १ २५ २१ तरण सरस छब तरण, सरण प्रसरण हरखरण १०७ २ २५३ हेकल्लवयरण सक or or r m २२ तिण मारी ताड़का, जिकरण रिख मख रखवाळे १०० २ २३३ लघुनाळीक थाघे कुरण दध प्रथघ कमरण प्रभरणे गिरण रज ३३६ ५ ३४ करण २४ 'दुरसा घर किसनेस' किसन घर सुकवि ३४० ५ ३५ महेसुर २५ नयरण कंज सम निपट सुभग प्रांगण हिम कर सम ६५ २ २१६ समबळ विधान २६ " " " " " " " " , १७४ ४ २५ " , " २७ नारायण नरकार, नाथ नरहर जग नायक १०६ २ २५६ प्रहर प्रळग २८ नारंगी संसार नीम अंबर कर अंबह १०५ २ २४६ होराबंधी २६ पूर अपूरिय प्रास, तौ पिरण उमरथी पूरिय ६७ २ २२५ सांकळ ३० पंकत खट करि प्रथम, संख्य मत्ता कोठा सम ३८ १ ११० ३१ पंखी मुनि मन पंख, तीर भव सिंधु तरायक ८८ २ २०१ ३२ प्रथम परठ खट पंत कोठ वरणां समांन कर ३६ १ ११२ ३३ प्रथम भ्रम मझ बैद, छंड मारग दरसायौ ३४ भव व्रहमा जिरण भजै, भजै तिरण नाम पापभर १०३ २ २४३ मुकताग्रह ३५ भ्रमर भ्रामरौ सरभ सैन ६३ २ ८३ ३६ मात्रा नष्ट विधान, कहत कविराज प्रमाणहु १५ १ ५५ ३७ भिन्न भिन्न रिध सिध, मित्र दासह जय पावत ४ १ ११ ३८ मेर मकर सद सिद्ध ६० २ २५० ३६ यूं जे तें न कियौ करसु यूं जरण जण प्रागळ १०६ २ २५१ करपल्लव ४० रट रट रे नर ईस, नाम औरण जिरण सीसं १०८ २ २५७ ताळरव्यंब ४१ लच्छी रिद्धी बुद्धी, लज्जा विद्या खंम्या ७६ २ १४७ ४२ लाभ नहीं प्रहलोक नहीं परलोक निरभय १०२ २ २३६ नाट वळता जाता संख कमळ बंधह समवळ कह ६३ २ २१० ४४ विस्ण नाम कुळ विस्ण विस्ण सुत मित्र १८० ४ ३७ अपस वद ४५ सगर सुतरण जिग करत प्रगत हकनाहक दोनी ६६ २ २२१ जातासंख ४६ सनमुख पहली सुद्ध हुई गरभित सनमुख दख १६८ ४ ६ ४७ सुध बडौ सांगोर, समझ दूसरी प्रहासह १८५ ४ ४५ ४८ सूरजपरणौ सतेज, स्रवरण अम्रत हिमकर सम १०५ २ २४७ चौटीबंध mr m ४३ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ ] रघुवरजसप्रकास -- क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ४६ सूर प्रभवतो तेज, तेज नहं इम्रत नायक १११ २ २६४ नाटसळा ५० सेस इंदु म्रग दीप जांण कोकिल म्रग पति गज ११० २ २६२ विधांनीक ५१ , , , , , , , , , १७४ ४ २६ ५२ स्त्रीलंबोदर परम संत बद्धवंत परम सिद्धिवर ११ । १ ५३ स्वाद मीठा कह किसौ ? किसू मूरख यूं कहजै १०० २ ३११ मझ अखिरा ५४ हल हल्लिय गिर पाठ, सपत हल्लिय जळ १०८ २ ' ५५ हल्लव सायर छंद १ अक्रत करन कौन लावत है बार झूठी १६२ ३ १८० मनहर २ प्रख मत्त सोळ यक जगरण अंत ४७ २ २५ पाउरी ३ अरेस जेतार जुधां प्रथाहं १३५ ३. ८८ उपेंद्र वज्रा ४ अवधपति अनम सुज, तेज रवि कौट सम ६० २ ७० माळा ५ प्रहनर सुर कह कवरण प्रोड़ जै दतखग जोड़ ३२७ ५ ७ निसांणी ६ प्राई उ ए य व यता मित वरण मुरगोजे १८३ ४ ४० , ७ पाच प्राब जेम प्राय १२६ ३ ५० मल्लिका ८ माद अखिर सौ अंत में खुल अधिक सखोज १८३ ४ ४१ निसारणी ६ पाद अंत लघु संनिध तळ गुरु प्रांणजे १७ १ ५६ चंद्रायणी १० प्राद मत्त अगीयार, दुतीय पद तेर मात दख ५० २ ३५ काव्य ११ प्रापे लंकासी मौजां यू ही १३० ३ ६८ रूपमाळी १२ पासन स्यंघ घटा तन स्यांम, पटंबर पीतसु १५७ ३ १६३ सुंदरी १३ पास्चर्य रघुनाथ भूप-महदं त्वनांममुच्चारणम् १५२ ३ १४६ सारदूळ विक्रीडत १४ ईद चंद्रमा अहेस ११६ ३ २४ धांनी १५ एक रमा प्रहनिसा १७७ ४ ३२ नीसरणी बंध १६ औयरणमत चौवीस होय जिरग रोळा प्राखत ५० २ ३ रोळा १७ अंत भगण ईकत्तीस मत्तपद छ स सवैयौ छाजत ५२ २ ४० सवैइयो १८ अंत रेख तिरण प्राद हेठ गुरु प्रख्य १७ १ ६० चंद्रायणी १६ कटि तूण चाप कराग, खळ भंज रोवरण खाग १३० ३ ६७ तोमर २० कपटी कलंकी कर कातर कचाळ कोर १६१ ३ १७७ मनहर २१ करतार भू अधार केसव धार पांरण सुधांनक १५४ ३ १५३ गीतिका कर साझत राम सुचाप सरं कळहं १४४ : १२१ भ्रमरावळी २३ कळदह पंचजांरण जैकरी ४५ २ १९ जैकरी कळधुर सोळ बार सौ ककुभा ७१ २ १२० ककुभा २५ कळ भांरण पाय कहंत . ४४ २ १५ उध्दौर २६ कळ सत कंत, जिरण जगणंत ४२ २६ कता २७ कळह मझ गहत जळ रांम धनु निज सुकर १५२ ३ ४८ धवळ २८ कायब दूहासू मिळे कुंडळियौ सुध कत्थ १११ २ २६५ कुंडळियो Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m m m m m ur 90 m m रघुवरजसप्रकास [ ३४६ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक , नाम २६ केकंधा लंका कहै, जस रघुनाथ सुजाण ११२ २ २६९ कुंडळियौ दोहाळ ३० केसव कमळ नैन संत सुख देन संभू १६४ ३ १८५ घणाखरी ३१ कौड़क तीरथ राज चिहू दिस धाय करै १४६ ३ १२८ पदनील ३२ कौड़ दैत भंज संज, पारण चाप सायकं १४३ -३ ११८ 'चांमर ३३ कोटिक तीरथ धाय करौ १५८ ३ १६८ किरीट ३४ खर खळ खंडण, महपत मंडण १२५ ३ ४४ सवासन ३५ खळ दळ समर खपावत किव जण गावत कीरती ५६२६४ गगनागा ३६ गढ़ कनक जिसा अंगज गाहै ... १४२ ३ ११३. प्रजास ३७ गंगा के सुथांन नख करत प्रकास भान १६४ : ३ .१८३ . मनहर ३८ गावै राघौ सोभरणौ पात गाढरे १३३ ३ । ८. सालिनी ३६ गाहा मात्र सताधन गावै ८२:२:१७६से१८६ बेप्रख्यरी ४० गिरिस गिरा गौ गौरी ७३ : २.१३० महा ४१ गुरु अंत मत चवदेह गिरण ४५ . २ : १८ झंपताळ ४२ गुरु लघु अनियंम सोळ मता गरण - ४७ २ २६ बैप्रख्यरी ४३ गुरु लघु विरण नियम तीस बिमत्ता ___ ५५ .. २ ५२ लीलावती ४४ गोपाल गोव्यंद खगेस गांभी १३४ . ३ ८६ इंद्रवज्रा ४५ गै। गै । स्त्री। थी। . ११६. ३ ७ स्त्री छंद ४६ गोह सरीखा पामर गाऊ, व्याध कबंधा ग्रोध १३१ ३७१ चंपकमाळा बताऊं ४७ गौतम नार सुपाहन ते रज पाय लगे रघु-: १५७ ३ . १६४ मत्तगयंद नायक तारी ४८ गौ दौ। कांमौ ११६ ३. ।। ८ काम गौर स्मांम सियराम गाव रे १३६ ३ ६१ रथोद्धिता घणस्यांम सरूप अनूप घरणौ रै १४० ३. १०८ तारक चव प्राद खटकळ दुकळ गुरु यक पाय सतः ५१ २ ३८ हरिगीत अठ नीसयं ५२ चव कळ उरोज थळ च्यार बोज ५५ २ ५४ वरवीर ५३ चव कळ जगांरण, मधु भार जाण ४२ २ १० मधुभार ५४ चव लघु सिव मत चरण ४३ २ १३ रसिक ५५ चाप करां नप राम चढ़े मांझ रजी तद भांण १३१ ३ ७२ सरवती मढ़ ५६ छ मत बांमसमरि स्यांम ४१ २५ बाम ५७ जग मार्थ राजत प्रौठ जेतै हरि एहो पानपा १५३ ३ १५१ संभू नायं ५८ जनक सुता मन रंजण गंजरण... ___५६ २ ६६ द्रुपदी Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ५६ जय जय राघव देत जई १३२ ३ ७८ समुखी ६० जय राम संत सिहायकं, घरण दैत माहव १३० ३ ७० संजुतका घायक ६१ जर नैन दियौ जननी जठरा हरि धायके १५८ ३ १६६ दुमिळा प्राय सिहाय कियौ ६२ जारणे सौ राघौ जारण १२५ ३ ४७ सिखा ६३ जनुकी पुकार जातुधानको बिनास कार्ज १६१ ३ १७७ मनहर ६४ जिण पय सुरसरि अघहर सरित जनम है १५३ ३ १५६ धवळ ६५ जज प्रौध नरेश संत सुखदं स्त्रीराम नारायणं १५१ ३ १४५ सारदळविक्रीड़त ६६ जैपय सिव मत जांरण ४४ २१४ प्राभीर ६७ जे रघी राजं राज अमर नर प्रहं क्रीत जे १५५ ३ १५६ स्रगधारा जीह जाप ६८ जौ बंदै, गोबंदै तौ देही नां रेही - ११७ ३ १४ ताळी ६६ तवौ राघौ राघो करम अघ दाघौ तन तणा १४८ ३ १३४ सिखरगो तेरै मत्त लघु अंत ४४ २ १६ प्रनाम ७१ तोप धूली सिल तरगी, वारी सारैहि १२६ ३ ६३ पायत ७२ त्रय खटकळ अंत रगण नाम छंद हीर है ४६ २ ३२ हीर ७३ दुज गुर कळ चवद तठे १७ हाकळ ७४ दळ सझत खळ दाह य भ बाज प्ररण थाह ५६ २ ६८ उध्दत ७५ दस अठ अठ छामं चव विस्रांम छंद सुनांम ५३ २ ४७ त्रिभंगी तिरभंगी ६६ दस अठ चवदेस दंड कळेसं मत्त बत्तेसं जेण पयं ५४ २ ५० दंडकळ ७७ दसमाथ भंज समाथ भुज रघुनाथ दीनदयाळ ५१ २ ३६ रामगीत ७८ दस माथ विहंडण प्रासुर खंडण, राघव भूप अरोड़ा ५२ २ ४५ चतुरपदी ७६ दसरथ राज कंवर है सुभ कर धानख सर है १३२ २ ७५ अभूत गति ८० दसवसु खट पाठं इक पद पाठं सौ पदमावती ५४ २ ४६ पदमावती छंद सही ८१ दस वसु खट ठाणौ फिर वसु प्राणौ दुमिळा ५४ २ ५१ दूमिळा ठांणी करणंता ८२ दस सिर खळ दाहं सुचित सुजन चाहं १२७ ३ ५३ स्वंग तथा सुंग ८३ दसाननं विनासनं असेख पाप नासनं ११६ ३ २५ निगल्लिका ८४ दिप रघुनायक दीनदयाळ १३८ ३६६ मोतीदांम ८५ दहा अध पर पंच मत ७० २ ११७ चूळियाळा WW० ० ० Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 ८६ क्र.सं. ८६ देव देव दीननाथ राज राज स्त्री दयाळ ८७ देव राघव दीनपाळ दयाळ वंछित दायकं दौ लघु अंत पयं मत्त खोडस धन धन हरि चाप निखंगधरी धरण कर धनक है जगन सह जनक है। धर धनक जग जनक धाररण माण पांण सर धनवह रांम बड़ा ब्रद्र धारै ६३ धारत कर सायक धनुख जे भोयण सिरताज ९४ धांनंखधारी, पं नीतचारी ६० ६१ २ पंक्ति रघुवरजसप्रकास ६५ धनुखधर कर पंकज धारत ६६ धुर मत्त सोळ प्रवर चवदह धर ६७ ६८ εe ११३ ११४ नमौ नरेस राघवं दराज पाय दाघवं नमो रघुनाथ सधीर समाय नमी राम सीतावरं श्रौधनाथ समाथं महाबीर संसार सारं १०० नरं जनम जे दियौ समर जांनकीनाथ सौ नरांनाथ सीतापती रांम जे नांम १०१ १०२ न रूप रेख लेख भेख तेख तौ निरंजण १०३ नागेस भजै राधौ नत ही १०४ नायक है जग रांम नरेसर १०५ नांम है रामकौ क श्रारांमको १०६ निज प्राखे किव 'किसन' निरूपण १०७ निमौ रांम जेणं तरी भ्रम्ह नारी १०८ नौ मात जेरें, गुरु अंत रे १०६ पद दस पंचह मत्त प्रमाण ११० पनरै तेरह मत्त पय १११ पंच मत गमक सत ११२ पापोघ हरत श्रत जन चितवत पाय जुवराज नंद अंध दुरजोधन सौ बयकूंट विलानस को तजि के बध कौन चहें जम पासन की भगत विछळ नयन कमळ... ११५ ११६ भजन करणौ जीहा भूपां पति रघु भूप रौ ११७ भव तेरह मत श्रीरंग, कोय उपदोहा भाख पृष्ठ प्रकरण पद्यांक १४७ ३ १२६ चंचळा १४१ चरचरी १५० ३ ४६ २ २४ श्ररिळ ४६ २ २२ सिंहविलोकण १२६ ३ ६४ रतिपद १२० ३ १५५ ३ नाम २ ३० जमक १५८ नरिंद ४८ १२० ३ १४१ ३ १११ ७१ २ ११६ चौबेला १२६ ३ ५२ प्रमांणी १६ म्रिगेंद्र ११८ ३ २८ २८ हारी [ ३५१ चूड़ामरण १६० ३ १४८ ३ १३३ १४१ ३ ११० १४६ ३ १२६ १३२ ३ १७४ १३६ ३ १०० १२१ ३ ७३ २ १३६ ३ ४३ २ ११ ४५ २ २० ७२ २ १२३ ४१ २ ४ १६० ३ १७५ साळूर १६३ ३ १८२ मनहर १५६ ३ १७१ दुमिळा पंकावळी १७३ महाभुजंगप्रयात माळाधर कंद ब्रद्धिनाराज सुखमां मोदक ३४ विजोहा १३१ से १४६ बेग्रखरी ४ भुजंगप्रयात ११८ ३ २१ कमळ १४६ ३ १३८ हरिरणो ५० २ ३४ बथुवा रसकळ चौपई रस उल्लाला गमक Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ११८ भुज वंड लीजै भामरण अध्रियांवरण अभीत ११२ २ २६७ कुंडळिया झड़उलट ११६ भूप रघुवर सझत धनुसर ४२ २ ८ सुगति १२० महरण मथरण राघौ वाग लंसास माळी १४४ ३ ११६ सालिनी १२१ महदीप छंद तेरहै दस मत पय जारणी ४६ २ ३१ महादीप १२२ माथ पंच दूरण जुद्ध मारणं १३४ ३ ८३ सैनिका १२३ माया परि हरि रे पकरि चरन गुरु १६२ ३ १७६ मनहर १२४ माहाराजा दसरथके घर रामचंद्र जनम लिया ८५ २ १६३ दवावैत १२५ मख मंगळ नांम उचार सदा तनके अघ प्रोघन १५६ ३ १७० मिळा दाघव रे। १२६ मुरण पाय दह मात, दीपक सुख दात ४३ २ १२ दीपक १२७ मुण महरण तार माथै, सुज गिरवरां समाथै १२६ ३ ६६ बिव १२८ मूत याको मूळ च्यार भूतते सथळ किंतू १६३ ३ १८१ मनहर १२६ महा सुगरण रूप है सूचित सार प्राचारमें १४७ ३ १३१ प्रथ्वी १३० यिक रघुनाथ उजाळी सारौ रघुवंस जेरण ११३ २ २७१ कुंडळणी दुति सरसत १३१ रखरण जन सरण रघुराज कोसळ कंवर ५८ २ ६२ खंज १३२ रघुनाथ भंज दुपंच माथ अभंग रे १४४ २ १२२ कळहंस १३३ रघुनाथ रटौ क़त हीरण कटौ १२१ ३ ३३ तिलका १३४ रघुराज सिहायक संत रहै १३८ ६ ६७ तोटक १३५ रघुवर भीली कर रै १२८ ३६१ सारंगिका १३६ रघुवर महाराज गाव नहचै यक पळ न लाव ६१ २ ७२ पंचवदन १३७ रज पाय परस जिरण नार रिखी ५७ २ ६० मदनहरा १३८ रट दासरथी कथ बेद कथी ११७ ३ १७ रमण १३६ रटौ जाम प्रारीं सदा हो जनां चूपसूरांम रांम १५१ ३ १४३ क्रीड़ा १४० रटौ रामचंद्र, कटौ पाव कंद ११७ ३ १५ ससी ९४१ रमा उमा। पियं वियं ११६ ३ १० मही १४२ रसरणा राम रट राम रट राम रट ३३ कड़खौ १४३ राघव जपतौ प्रांणी मूढ़ पाळस मां करै १२८ ३ ५८ अनुस्दप १४४ राघव ठाकुर है सिर ज्या १३२ ३ ७७ दोधक १४५ राघौजी जौ गावौ प्राझी लच्छी पवौ १२१ ३ ३२ सेखा १४६ राघौ राघौ जंपगरी ढील म राखे १४० ३ १०७ माया १४७ राघौ राजा सीता राणी १२ ३ ४६ विद्युन्माळा १४८ राघौ रूडौ स्री सीता स्वामी राजे १३४ ३ ८५ मालतिका १४६ राजेस स्रीराम जे नरण राजीव १३८ २ १८ सारंग س Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [३५३ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १५० रामचंद्र जिसा सिध रजपूत कोई वेळापुळ ८७ २ १६५ वारता गद्य छंद होवै छ १५१ रामचंद भूप बंद... . ११७ ३ १३ सार १५२ रामण भंगम सोभत जंग धन सर हाथ सुधारण १५६ ३ १६२ मदिरा १५३ राम भजीजे, झोड़ तजोज १२० ३ २६ हंस १५४ राम नाम प्राठ जांम गाव रे सुपात एह देह सार १५४ ३ १४५ गल्लिका १५५ राम नाम गाव रे, पाय कंज धाव रे १२४ ३ ४३ समांनिका १५६ राम नाम सर पाथर तारे १३६ ३ ६२ स्वागता १५७ राम भजन विरण अहळ जनम रे १४३ ३ ११६ चक्र १५८ राम महराज, करण जन काज ४२ २ ६ पगरण १५६ राम राजै रसा रूप रै। १२८ ३ ६० महालक्षिमी १६. राम वाळी रजा सीस ज्यांर रहै १३७ ३ ६५ लक्ष्मीधर १६१ राम सरखा नरप कोय यळ नो रजै १४५ ३ १२५ निसपालिका १६२ राम सीता पती, और वो अक्रती ११७ ३ १६ प्रियाछंद १६३ रिख मख त्राता, दिन कुळ घाता १२२ ३ ३५ चऊरस १६४ रिखं साथ रामं गये काम धाम १२२ ३ ३७ संखनारी १६५ रिवकुळ मुकट प्रघट रघुवर है १४५ ३ १२३ रभस १६६ रिव सुमित्र राज ही, सुकर धनु साज ही १२७ ३ ५५ कमळ १६७ लग मत्ता चौबीस छंद मत्त लेख ४१ २ ३ चंद्रायणौ १६८ लसत चख लाज सुकर धनु साज १२५ ३ ४६ करहची १६६ लिछमीस रांम प्रण भंग लखौ १४० ३ १०५ पुमिताखिरा १७० वडौ धन वेस, म खोय मढ़ेस १२४ ३ ४१ माळती १७१ विकट कसट हर रघुवर १३६ ३ १०२ तरळनयरण १७२ विधांनीक पाड़गती त्रेवड़ १८६ ३ ४८ बेनख्यरी १७३ विधांनीक सर सिर फिर वरण वखार जै १७१ ४ २१ चंद्रायण १७४ वेद चव भेद खट तरक नव व्याकरण वळे खट भख जीहा वरणरण ५६ २ ५७ अलणा १७५ सझ तेरह धुर फेर दस, जाणौ निस्रणी ७१ २ ११८ निस्रणका १७६ सत दुजबर ठाणौ त्रयकळ प्राणी कहि ५३ २ ४६ धत्ता धत्तायक तीसकळ १७७ सब लघु पय पय वरि पछ यक गुरु करि ५५ २ ५३ जनहरण १७८ समर में दस कंठ जिण सजे १३६ ३ १०३ सुंदरी १७६ सर धनख सझत जन सरण ७२ २ १२२ सिख १८० सहदत सत, दसरथ सुत १२४ ३ ३६ मदनक Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ ] क्र सं . १८१ १६६ १६७ १८२ १५६ ३ १६० हंसी १४२ ३ ११५ ११८ ३ २० मंद १८३ १८४ सीत प्रांरणेस, राजा राजेसं ११६ ३ २६ समोहा १८५ सीतारमा सोय, कीजं समं कोय १२४ ३ ३८ मंथांगी १८६ सीता राघौ गावं सोई ११६ ३ जीरा १८७ सीता सीता रमरण हरही नेक संताप संतां २३ १३६ मंदाक्रांता १४६ ३ १८८ सीता सी रांगी वेद वखांरगी, सारंगपांगी सांम ५२ २ ४२, ४३ मरहट्टा १८६ सीस दीधौ जिको नांम रघूनाथ सूं सौ पद कूळ पय मत्त सोळं १६० ११ स्यांम घटा तन रूप विराजत संमळा १६२ स्यांम भर्ग तांम सुखी.. १६३ स्री गरगराज सारदा सुख कर १६४ स्त्री जांनुकीनाथ सदा सराहौ १६५ स्त्री रघुनाथ नाथ सिहायक दायक नौ निधि वांछित दांन १ २ ३ ४ ५ ६ ७ पंक्ति सारी वातां नीकौ सोहै, रघुबर जस सहजग यम साखे ८ Ε सारंगपांग जयराम तिलोक स्वांमी सीतपती श्रोध श्रघं दह रघुवरजसप्रकास ...... स्त्री रांम राजेस, सेवो 'किसनेस' हम कीन अनेक गुन्हें हरिजू तुम एक न लेख उतारिएजू प्रखर अठारह चररण चव श्राखिर गुणीसह श्रवर लघु श्रजामेळ पर श्राविया अठ दुजबर खट कळ सुयक ठाईस पूरब प्रध अठाईस मत अंत गुरु अठारह मत पहल ख श्रध पूरब जिम उतर अध अधिकारी गीतां श्रवस पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १६८ हररण कसट जनहर है १६६ हरि हरि हरि २०० हाथी कोड़ी कांटे हेकरण सो तोल जग जांगो सारौ २०१ हांजी ऐसा महाराज रामचंद्र प्रसरण सरण ८६ २ हा ५७ ४६ २ ४६ २ १२७ ३ १८५ ४ १३५ ३ २ १५७ २ १६६ चकोर ११७ ३ १८ पंचाळ १५६ ३ १३३ ११६ ३ 1 ५८ उप लगा २३ चरनाकुळक ३० चंद्रायणौ ५६ मांनक्रीड़ा ४७ बेखवरी ८६ उपजात १७२ दुमिळा २ ८२ सदनक ह मधु १५० ३ १४० १९४ वसंततिलका १०० २ २३२ १५२ ३ १४७ ६२ ३ ७८ २ ५६ ४ २११ ५७ २७४ ३२२ ४ २६७ ४ २२७ १११ २५० २६४ ४ १६७ ४ ६ मंजीर वचनका Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २७८ ४ २२० २७८ ४. २२१ ६७ २ १०३ बाघ २४४ ४ १४६ १७८ ४ ३३ १८४ ४ ४२ २६७ ४ १६४ १४२ ८८ २ १६६ १ " Kai mma <<<< १२५ ३ ४८ २०८ ४ ८२ २४८ ४ १५५ x WAMKE KAMNAWG m ८० १० प्रन दूहां घर तुक तरण ११ अनुप्रास गुरु अंत अख १२ अमरत दध नह तिय अधर १३ अरध दवाळी प्रकरणी १४ अवधि गगन बाजी अयण १५ अवधि नगर र ईसरा १६ अवर दवाळा अवर विध अवर दवाळा वीस खट १८ असम चरण मात्रासु यम १६ असौ अंक पूरण अंकसू प्राखर वरण उदीठ पर २१ पाठ गुरू पद छंद जिण २२ पाठ तीस मत पूब्बअध २३ पाठ तुकां फिर कंठ की २४ पाठ पंच कळपाय यक २५ दखिण क्रमसू भाग दै २६ दवावैत फिर बात दख २७ दस अठ मत बिसरांम दौ २८ दस दस पर विसरांम चव २६ दस सिर खळ मारण दुसह ३० दीपक सोही वेळियौ ३१ दुज ज भ त गुर पाय प्रत ३२ दु.बर जगरण पयेण जिरण ३३ दुजबर जगरण सु अंत गुरु ३४ दुजबर नत्र ता पछ रगरण ३५ दूहा पूरब परध पर ३६ दूहा लघु गिगा प्राध कर ३७ दूही पर चंद्रायणौ ३८ हौ धुर धुर पच्छ तुक ३६ दही पहला दाख नै ४० देव धरा जळ चंद प्रह ४१ दै मत्ता धुर पाठ दस ४२ दोय करण फिर रगरण दौ ४३ दोय जगरण यक चरण में ४४ दोय मगरण सेखा तिलक १६२ ३३५ ५ ४ . २०७ १३२ १२५ ३ ___४५ १२७ ३ ५४ - .or ८ r m २ ११४ चौटियो ७० २ ११६ २३० ४ ११२ २ २३० ४ ११७ २६६ r 0 २०२ ४ १३३ ३ १२४ ३ १२१ ३ ७३ ७६ ४० ३१ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २८० ४ २२३ १३३ ३ ८१ ६४ २ २१६ ६७ २ २२६ ६७ २ १०१ २५५ ४ १६७ २७६ ४ २१३ २७८ ४ २१७ २७१ ४ २०२ २३८ ४ १३४ २२८ ४ ११३ १५८ ३ १६७ २१ १ ६६ २६३ ४ १८४ . ४५ दोय सगरण पद च्यार दख ४६ दो हुजबर अंतह सगरण ४७ द्वादस छपय अह दखे ४८ द्वादस बळ द्वादस तुकां ४६ धन धन कुळ पति मात धन ५० धुर अठार उगरणीस मत ५१ धुर अठार ग्यारह दुती ५२ धुर अठार चवदह दुती ५३ धुर अठार चवदह धरौ ५४ धुर अठार फिर चवदह घर ५५ धुर अठार फिर पनर घर ५६ धुर अठार फिर बार घर ५७ प्रांठ भगरण किरीट कहि ५८ प्राठ भांत प्रस्तार मत्त ५६ पाठ वरण धुर दूसरी पाठ सुमत्ता करम ए ६१ प्राद अठार पनर फिर प्राद अंत टुप्पय नगरण ६३ प्राद अंत तुकरै झमक ६४ माद अंत लघु ऊचरै प्राद कहै सौ अंतमें प्राद कंठ चव अक्खिरां प्राद चरण अट्ठार मत ६८ प्राद पाय उगरणीस मत ६६ प्राद लघु लघु अंतमें ७० प्रायुध गरम कह पंचकळ ७१ प्रांगळियां करतूं प्ररथ ७२ इंद्रासण रवि चाप कहि ७३ उकतसु नव ग्यारह जथा ७४ उगरणीसह चव पद अखिर ७५ उगाही कर पाद यक ७६ उचरै प्राळ जनाळ अ ७७ उलटौ रस उलाल उरण ७८ एक अंक लोपै तिकरण ७६ एक करण दुज बरसु खर U ३१३ ४ २८१ ६५ २ २१७ १०३ २ २४२ ४४ २४६ १०५ ३१७ ४ २६१ १८६ १८८ ४ ४६ mour १०६ २ २५० १ २७ GK १०१ २ २३४ ११३ २ २७० ७२ २ १२५ ३७ १ १०४ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. ८० ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ६५ ६६ ६७ पंक्ति एक गुरु स्त्री छंद कहि एक छकळ फिर च्यार कळ एकरण दु लघु तुकंत श्रख एकरण हीरौ विहरियां एक दवाळी प्रांकरी एक दोय त्ररण ऐण क्रम एक दोध लिख पुब जुगं ८८ ८६ एक सौ श्रर बावन प्रखर ६० श्रं श्रौ श्रंमळ अग्रका ६१ श्रं मात्रा उप छंद ६२ अंक मत उदिस्ट लिख ९३ अंत गुरु तळ लघु धरौ ६४ अंतरगरण ठार धुर कमळ छत्रबंधह कवित एक सगरण बे जगरण गुरु एक सबकी तेवड़ी कररण दु गुरु करताळ सौं कर दुजवर नव रगरण हिक ६८ कर विचार मन हूं कहू ६६ कवित प्रस्थ बाहर लिखे १०८ १०६ ११० १०० कसं पथर कमठांरण १०१ कहर्ज गुरु मोहरा कठै १०२ कह दूही पहला सुकव १०३ कह प्रहास सांगौर किव १०४ कहि वसंत तिलका त... १०५. काय उल्लाला मिळे १०६ १०७ किया निरूपण 'किसन' किव... किवराजां सू किसन किव किव सोरठिया गीत के .. कीजै हौ प्रथम यक केसव भजतौ हरख कर १११ कोड़ा पापां कोजतां ११२ कप तूं मौ राज काज ११३ कंठ सुपंखरा बीच कह क्रम संख्या विपरीत बे ११४ रघुवरजसप्रका पृष्ठ प्रकरण पद्यांक ११६ ३ ५६ ३२५ ५ १०५ २ २४१ મ १०१ २ ११ १ १३० १०७ mo ३१७ २७ २ ३ ६७ २ २ ५ १ ६१ २ ३३ १ १७ १ २२३ ४ ६४ २ ८ १ ५८ २ ६४ २ १०० २ १६६ ४ ५ १६८ ४ ६४ ३०३ ४ २६६ ३०८ ४ २७० १४२ ३ ११४ ८८ २ २०० ३२१ ४ २६५ ११४ २ २७३ २१७ ४ ६५ ४८ २ ६६ ६४ ३ १७१ ४ U Nrm, ६ ६५ ३ २४८ १४१ २३६ ३६ ६६ २२४ २५२ १६ ७३ ες ܫ १ ५७ १०४ २१४ २८ ६१ २१३ २३० २ ह २७ ४ २६० ६१ ८६ १६ नाम [ ३५७ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ७१ ३०० २ ४ १२१ २५६ ८५ २१६ २ १६१ ४ १७ २२४ ४ ३१५ १०७ ४ २८५ २०६ २७० ४ २०१ २०६ ४ ८० १४३ ३ ११७ ११५ खट दुजवर कर प्रथम पद ११६ खुड़दतरण तुक अग्ग पछ ११७ गरण संजोगी प्राद गरु ११८ गद्य पद्य बे जगतमें ११६ ग ल अनियम उगरणीस धुर १२० गाथारा लघु अखिर गिरिण १२१ गाय अरटिया गीतरौ १२२ गाहा लछरण ग्रंथ रै १२३ गिरण छप्पय चा बरण लघु १२४ गीत प्रोटपा घाटरा १२५ गीत बड़ा सांरगोर गरण १२६ गुरणी सुपंखरा गीतमें १२७ गरु लघु क्रम पाखिर पनर १२८ गुरु लघु सार वखारगजे १२६ गुरु सिर ऊपर अंक जे १३० गुरु सिर वाळा अंक गिरिण १३१ चवद चवद मत च्यार तुक १३२ चवद प्रथम दूजी चवद १३३ चवद प्रथम बी ती चवद १३४ चवदह चौथी पांचमी १३५ चित्त जे मत व्है चळ विचळ १३६ चोप हल्लव कवीत ए १३७ च्यार चतुकळ सोळ मत १३८ च्यार जगरणकी एक तुक १३६ च्यार तुकां लघु पंचमी १४० च्यार दूहांके च्यार हो १४१ च्यार नगरण पद एकमें १४२ च्यार यगरण पद प्रत चा १४३ च्यार स तोटक च्यार तह १४४ च्यारू गाथा गोतरा १४५ छ गुरु भगरण भगरण ह सगरण १४६ छ निसांणी छंद रै १४७ छोटा वडा सांरपोररौ १४८ छंद अरध नाराजरी १४६ छंद भुजंगी पर लघू १४ १ ५२ १८ १ ६२ २२५ ४ २६१ ४ २४५ २३२ ४ १२० २६८ ४ १६६ ६६ २ ६६ ६४ २ २१२ ४६ २ २१ २१० ४ ८५ १२७ ३ ५७ m w Moro or w w x १३६ ३ १०१ ० ० W1 mm ० ० WwNGwww mG WWm १३७ ३ ६१ ३१५ ४ २८७ १५० ३ १३६ ३१० २६० १४१ ४ २७२ ४ १७८ ३ १८४ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्ति छंद वध नारावरी जगरण तगरण जगरण कररण जगरण सगरण जगरगह सगरग १५३ जपियो 'कसने' रांम जस १५४ जाई बेटी जांनकी १५५ जांणण छत्रां मुख जपरण १५६ जिरण छोटा सांपोर में १५७ जिरणनूं जांरग श्रजांगरौ १५८ जिरण पय मंदाकिरण जनम १५६ जिरण में समता वराजे क्र.सं. १५० १५१ १५२ जिरौ गुण भरण जेरणनूं जिण हर सरजत नर जनम जीपे दससिर जंग १६० १६१ १६२ १६३ जीरण चररणह व्यार गुरु १६४ जुध करणौ जमराज हूँ १६५ ठार सोळ सोळह चवद १६६ १६७ १६८ १६६ तव प्रमुक प्रस्तार १७० ताळी, ससो, प्रिय, रमण १७१ तिरभंगी पदमावती तगरण यगरण भगरगह गुरु तगरण व्यौम कर सगरण तव तविया गरण एता तकौ ज १७२ तीन भगरण दौ गुरु १७३ तीस समत पूरब अरध १७४ तुक तीजी प्रठवीस मत १७५ तुक धुर तीजी सोळ मत १७६ तुक धुर बी सोळह मता तुक प्रत बे बे कंठ तव १७७ १७८ तुक प्रत मत छबीस तव १७६ तेर प्रथम सोळह दुती १८० तेर मत्त पद प्रथम जप १८१ १८२ १८३ १८४ तेवीसह मत पहल तुक तेवीसह मत्त पहली तुक त्रकुटबंध तिरण गीतनै कुटबंधरी श्राद तुक रघुवरजसप्रकास पृष्ठ प्रकरण पद्यांक २६१ ४ १८० १३५ ३ ८७ १४७ ३ १३० १६५ ३ १८७ ६४ २ ८ मंडूक २ १ ४ ४ १६८ ४ १५ ५१ २ ३७ ६५ २ २१८ ३४० ५ ३६ ६८ २ १०४ विडाल १६६ १३ सोरठौ ४ ११८ ३ २२ २ १ ६ ३३६ ५ २८ १३१ ३ ७३ ७ १ २४ १० १ ३५ १२ १ ४३ २५५ १६६ ११६ ४ १२ ४८ ५.३ २ ३ ७६ ७३ २ १२६ २७८ ४ २१६ २६४ ४ १८७ २६३ ४ २४६ २३६ ४ १३५ ३३२ ५ १८ ३३३ ५ ३० १३२ ६२ २ ७६ १६३ ४ ५६ २५७ ४ १७२ २४८ ४ १५८ २६८ ४ १६७ नाम ३५६ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २ ३६ ل २५६ ४ १७६ ३६ ४ १२८ ४ १६६ Wwwm mmm ४ २०३ २२५ ل ८१ ४ ०२ ४ الله २६३ २६१ الله له १८५ त्रे खट कळ लघु गुरु चरण १८६ थळ विपरीत उदस्टि सिर १८७ दख मम मता चव दूहां १८८ धुर अठार बी नव धरौ १८६ धुर अठार बी बार धर १६० धुर अठार मत्त सुधर १६१ धुर अठार बारह दुती १६२ धुर अठार सोळह दुती १६३ धुर अठार सोळह सरब १६४ धुर उगरणीस अठार घर १६५ धुर उगणीसह कळहधर १६६ धुर चवदह चवदह दुती १६७ धुर चवदह नव फेर धर १६८ धुर तीजै मत बार घर १६६ धुर तुक प्रखर अठार धर धुर तुक आखिर अठार धर धुर तुक मत चाळीस धर २०२ धुर तुक मत चौबीस धर २०३ धुर तुक मत छाईस धर २०४ धुर तुक मत तेवीस धर २०५ धुर तुक मत बेवीस धर २०६ धुर तुक मत अठार मत २०७ धुर नव मत जीकार फिर २.८ धुर बी चौथी पंचमी ०६ धुर बीजी मत बार घर २१० धुर बी ती चवदह धरौ २११ धुर बी ती तुक सोळ मत २१२ धुर बी ती पंचम छठी २१३ धुर बी तुक मत सोळ धर २१४ धुर बे गुरु चौबीस लघु २१५ धुर मत्ता अठार धर २१६ धुर मत्ता अठार घर २१७ धुर सोळह दूजी चवद २१८ धुर सोळह बी ती चवद २१६ ध्वज चिन्ह वास चिराळ ४ २०८ १६१ ४५३ २४८ ४ १५४ ३२७ ५६ २ ११२ नंदा २५३ ४ १६५ २०६ ४ २३८ ५ २५६ ४ २६७ ४ KG MMMG WG a १६६ ४ २०१ ४ ७१ २४३ ४ १४४ २३४ ४ १२६ ६२ ४ २३७ ४ १३० २४७ ४ १५२ १३८ २६६ ४ २५४ २७४ २०४ ४ ७७ २११ ४ ८७ २३३ ४ १२४ २४० ४ १३७ ६१ २६ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३६१ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २४० ४ १३६ १४६ ३ १३७ २२० नगणक भगरण तुकंत खट २२१ नगरण सगरण मगरगह रगरण २२२ नर-कायब करवा नियत २२३ नर तन पावै जे नरा २२४ नव कोठा मझ एक तुक २२५ न सघ बिब तोमर सगरण २२६ नस्ट संख्य विपरीत निदान २२७ ना कोज्यौ सैरणां नरां २२८ नाट सबद गिरण कवितमें २२६ निज प्रिय कहिये परम प्रिय २३० नपुर रसना भरण फरिण २३१ पड़े यगण खट चरण प्रत २३२ पढ़ता होठ मिळे नहीं २३३ पढ़ वसंत रमरणी प्रथम २३४ पद प्रत मत गुरण तीस पढ़ि २३५ पनर पनर मत दोय पय २३६ परगट कट तट तड़त पट २३७ परठ दच्छ सुधी पंगत २३८ पह ज्यांरा चित्त लागा २३६ पहल अठारह बी चवद २४० पहल ऋतीय पद सोळ मत २४१ पहल दुती तीजी मिळे २४२ पहला गुरु तळ लघु परठ २४३ पहला दूहौ एक पुरण २४४ पहली गाहो पर वजै २४५ पहली दूजी तुक मिळे २४६ पहली दूजी मेळ पढ़ २४७ पहली दूज तूं मिळे २४८ पहली बीजी तीसरी २४६ पहली तीज बार पढ़ २५० पांच भगरण गुरु अंत पद २५१ पूछ अन कवि छंद पढ़ि २५२ पूछ यूं अन कवि प्रसन २५३ पूरब अंक सिर अंकसूं २५४ पूरब अंक सिर पंतसू ७५ ३१३ ४ १२६ ३ २० १ ६५ ६४ २ ८५ भ्रमर १०२ २ २३८ .१० १ ३३ १० १ ३२ १५० ३ १४२ १.६ २ २५८ १८५ ४ ४४ ५२ २ ४१ ७२ २ १२६ ६८ २ १०५ सुनक ३५ १ १०२ ७० २ ११३ ३१७ ४ २८९ ६६ २ १०८ २३२ ४ १२१ १०४ २ २४४ ३१५ ४ २८६ mrYYY 0 rur १२५ WAA <<< << nam w - ११० १८३ १३१ ६६ २ १४६ ३ १२७ १२ २ २०७ २८ १ १४ ३७ १ १०६ ३७ १ १०७ x Mo 99 Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २८३ ४ २२६ २ १५ ८८ २ १९८ २४८ ४ १५६ १४० ३ १०६ २३२ ४ १२२ २३७ ४ १३२ ३४० ५ ३८ २६२ ४ २४७ २८४ ४ २३१ ७२ २ १२७ ३०६ ४ २६८ २५७ ४ १७३ ५८ २५५ पूरब जुगल पहलां पढ़ी २५६ पूरबारध मत भाख पढ़ २५७ पेट काज नर जस पढ़े २५८ पेट हेक कज पात २५६ पेट हेक कज पात २६० पैली दूजी सूं मिळे २६१ पंच गुरू सगरगह भगरण २६२ पंचम अटम सातमी २६३ पंचम छठी सातमी २६४ प्रगट छंद अनुस्टपां २६५ प्रगट जांगड़ा गीत पर २६६ प्रथम तीन तुक चवद मत २६७ प्रथम त्रीये मत बार पढ़ २६८ प्रथम दूहो कर तास पर २६९ बड़ा जैरण सांणोर विच २७० बार प्रथम तेरह दुतीय २७१ बारह मत तुक पाठ प्रत २७२ बारा प्रखिर तुक एक प्रत २७३ बिबुध भाख ब्रज भाख बिच २७४ बीस अठारह क्रम प्रवर २७५ वीस छ मता अंत लघु २७६ बीस बीस चोपद वरण २७७ बे छंदां मिळ छंद व्है २७८ बे सुद्ध थळ विपरीतरै २७६ भख पहुंचावै भूधरौ २८० भगरण रगरण दुजबर नगण २८१ भगवत गीता ऊ भरणे २८२ भ ज स न र ह पनरह अखिर २८३ भमर अखिर छाईस भरण २८४ भाख गीत तुक कवि भरणे २८५ भाग चीतवौ वरण नव २८६ भाचा रस तांडव कहाँ २८७ भेद च्यार जिरणरा भरणौ २८८ भौळा प्रांणी राम भज. २८६ मगरण त्रिगरण मगरगह लघु २४५ ४ १४८ २५६ ४ १७० १६३ ४ ६० ३२२ ४ २६८ २ २४० २ १६६ ८८ ६५ २ ६४ मदकळ ३ १५७ ८८ २ १६७ १४५ ३ १२४ ६३ २ ८४ ३१२ ४ २७६ १६८ ४ ६५ ६४ २८८ २ १७ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३६३ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २६३ मगणरण १४६ ३ १३५ १२६ ३ ६२ १५४ ३ १५५ १५१ ३ १४४ २४५ ४ २०३ ७५ २ ८० ३२८ ४१ २१ ४१ २ २ ३३३ ५ २२ ६६ २ ६५ पयोधर २६० मगरण नाम संभू मुरण २६१ मगण भगरण फिर नगर मरिण २६२ मगरण भगरण फिर सगरण मणि मगण रगरण भगरगह नगण २६४ मगरण सगरण जगरगह सगण २६५ मझ खट तुक बारह मता २६६ मत प्रठार धुर तुक अवर २९७ मत ऊदिस्ट सुरूप लिख २९८ मत जकड़ी भव माग २६६ मत सोळह फिर बार मुण ३०० मत्त छंद 'किसन' मुण ३०१ मत्त व्रतमें सुकव मुरण ३०२ मत्त व्रत हिक अह मुणि ३०३ मध्य मेळ मत बार पर ३०४ मन दुख दाधा डौल मत ३०५ मन सुमित्र य भ दास मुरण ३०६ मरण जनमचौ सळ मिटरण ३०७ महाराजो रघुवंस मरण ३०८ महालिछमी पद मही ३०६ मात्रा वंडक वरणिया ३१० मानौ वारवार मैं ३११ मालतिका ग्यारह गुरु ३१२ मानवियां छाडौ मती ३१३ मिळे चवथी पंचमी ३१४ मिळे तीन तुक प्रादरी ३१५ मिळे न पुळ पुळ तन मनख ३९६ मुड़ियल सावझड़ौ हुवै ३१७ मुरण अमका प्रस्तार मझ ३१८ मुग तुक प्रत जिण तीस मत ३१६ मुण तुक प्रत बत्तीस मत ३२० मुरण धुर तुक अठार मत ३२१ मुरण धुर तुक तेवीस मत ३२२ मुरण बी तुक छाबीस मत ३२३ मुरिणया भेळा मेरमें २४ मरख जाचक जाच मत m ६१ २ ७४ ७० २ ११५ १२८ ३ ५६ ११४ २ २७२ ६४ २ ८७ सरभ १३४ ३ ८४ ६५ २ ६१ करभ २४८ ४ १५७ ३०२ ४ २६४ ६७ २ १०० कछप २७२ ४ २०५ २७ १६३ ३२६ ५ १२ ३३० ५ १४ २०० ४ ६८ २६८ ४ २५६ २७८ ४ २१८ m m m m m m 9 m mm ६५ २६३ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ ] रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ६३ २ ८१ तू बेरौ ३११ ४ २७५ ११० २ २६३ arr २५ १ ८१ ११५ ३ ५ १२२ ३ ३६ ३८ १ १०८ २६० ४ २४३ २६६ ४ १६१ १२४ ३ ४२ 0 1 ३२५ मेवा तजिया मह महरण ३२६ यक तुक गरगतीस अखिर ३२७ यक तुक तौ थाप श्ररथ यक दौ च्यार सु पाठ विध - यकसू दुगणा रूप सिर ३३० यकसू वरण छवीस लग यगरण संख्य नारी उभय ३३२ यरण विध पूरब अंक जड़ ३३३ यरण हीज विध ऊत्तर प्ररध ३३४ यतरी मत यतरा वरण ३३५ रगरण जगण गुरु लघु हुवे ३६ रगरण जगरण पय अंत गुरु ३३७ रगण नगरण रगरणह ध्वज ३३८ रगरण मध्य लघु सगरण र ३३६ रगरण सगरण अंतह गुरू ३४० रघुबर सुजस प्रकासरौ ३४१ रट नर अधिका राज ३४२ रटा गीत रेणखरौ ३४३ रस उल्लाल तिथ तेर मत ३४४ रस स्यंगार य हासरस ३४५ राघव रट रट हरख कर ३४६ राम भजनसू राता ३४७ रे चित व्रत द्रढ़ एम रख ३४८ रे नाहर रघुनाथरा ३४६ रे नीसारणी छंदरा ३५० रे चित ब्रत द्रढ़ प्रेम रख ३५१ रोम रोममें रम रि'यौ ३५२ लखियां दीस नव अखिर ३५३ लघु गुरु क्रम वरण पाठ ३५४ लघु दीरघ दोरघ लघु ३५५ लघु सांगणोर क पूणियो ३५६ लछण संजुत पाठ तुक ३५७ लागे पढ़तां ताळवे ३५८ ले खट हूंतां नव लगे ३५६ लेखव वरण छवीस लग २७४ ४ २१० ३४० ५ ३७ १७७ ४ ३१ सोरठौ २७१ ४ २०४ ७२ २ १२४ ६५ २ २२० ६८ २ १०६ ६९ २ १११ ६३ २ २०८ ३२५ ५ २ ६६ २ ६७ वानर ६५ २ ६२ ३१३ ४ २८३ १२६ ३ ५१ २८५ ४ २३३ ३३४ ५ २४ १०८ २ २५६ १०६ २ २६० Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. ३६० लेण देण लंक ३६१ ले धुर सू तुक सोळ लग ३६२ ले धुर हूं तुक सोट लग ३६३ लंक अम्हीणा भाग लग पंक्ति ३६४ वदिया लछरण श्रवर विधि ३६५ वदीस तुक पाछी वळं ३६६ वयरण सगाई तीन विधि ३६७ वररण तरणा प्रस्तार विधि ३६८ वररण पताका श्रांन विध ३६६ वररण व्रति सौ दोय विधि वळ ग्रह पिंगळ कवितरी वळता जाता संख लघू ३७० ३७१ ३७२ वांग सराह वारण ३७३ विण लिखियां मात्रा वरण ३७४ विध इरण मत्ता वररगरौ ३७५ विध यकहत्तर छपय पद ३७६ विध यरण गाथा वरणिया ३७७ विरळी पूररण अंक वि बीस बीस चौतुक प्रखर ३७८ ३७६ बोस मत्त विसरांम वंग सगाई वरणियां सगण जगण बे भगरण सुरग ३८० ३८१ ३८२ सगरण तगरण यगरगह भगरण सगरण पंच भमरावळी ३८३ ३८४ सगरण सोळ मत्त प्रथम तुक ३८५ सभ्झ खटकळ कर वीपसा ३८६ सात टगरण फिर त्रिकळ यक ३८७ सतविस गुरु त्रय लघु ३८८ सत्रु मित्र सुन्य फळ ३८६ सम पद दुज सगरण जगण ३६० समपी लंका सोवनी ३६१ समिळ वेलियों सौहरणो ३६२ सरब कवितकौ श्ररथ सौ ३६३ सरस वेलिया सूहरणा ३६४ सह रांचे जन सादियां रघुवरजसप्रकास पृष्ठ प्रकरण पद्यांक १८३ ४ २७७ ४ ३११ ४ १ ४ १६५ ६ २६७ ६६ १८२ १२ १ ३७ १ ११५ ३ ६३ २ ६४ २ १७१ २६३ ८६ २ २२२ ४ ३८ १५ १ ४ KAMUK ४ २० २ २ १ २ २ ४ ३६ सोरठौ २१५ २७७ १८ && २ २८६ ४ ६६ २ ४२ १०५ २ २०६ २११ ८२ ३३ १०८ ५६ १६७ १५३ ३ १५२ १५३ ३ १५० १४४ ३ १२० २६५ ४ १८६ २२४ ४ १०६ ६० २ ७१ ७६ २ १४८ ५ १ १२ १४१ ३ ११२ १७० ४ १६ १६८ ४ ६६ ५४ १८५ २०२ १७५. हह २५४ नाम २८८ २४० ५५ सोरठौ ७ ६६ सोरठौ ३६५ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १६६ ४ १२ ५२ २ ४४ ७२ २ १२८ ४२ २७ २६५ ४ २५२ ४६ २२ २७० ४ २०० ८६ २१२ १६६ ४ २ २७ १ ८६ २७ १ ६२ ११२ २ २६८ २६ १८७.८८ ३६५ साठ सहस सुत सगररा ३६६ सात चतुकळ चरणमें ३६७ सात चतुर कळ अंत गुरु ३६८ सात भगरण मदिरा वर्द ३६६ सात मत्त पद प्रत पड़े ४०० सावझडौ रमणी वसंत ४०१ सांरगौरासं गीतके ४०२ सिर दस दस सिर साबत ४०३ सीहलोर (पिरण) पूरिणयौ ४०४ सुज उलटायां सोरठी ४०५ सुज प्रहास सांगौरर ४०६ सुरि या न तजता स्रवरण ४०७ सुद्ध बिहु उदिस्ट नस्ट ४०८ सुद्ध बे सुद्ध थळ उळट बे ४०६ सुध कुंडळिया अंत सुज ४१० सुध सुध विपरीत थळ ४११ सुरपति पट्टह ताळकर ४१२ सूधै क्रम दै अंक सिर ४१३ सोरठिया हर प्रोढ़ अझ ४१४ सोळ कळा धुर सोळ बी ४१५ सोळ प्रथम चवदह दुती ४१६ सोळ प्रथम बीजी चवद ४१७ सोळ मत तुक पंचमी ४१८ सोळह पनरह अन दूहां ४१६ सोळह मत तुक प्रत सरब ४२० सोळह मत्ता वरण दस ४२१ सोळह सोळह अखिर पर ४२२ सोळे मत्ता सरब तुक ४२३ सौ दूहा तैईस सुज ४२४ सोळह पनरह अखिर पर ४२५ संख्या अक्खर कोठ सझ ४२६ संख्या प्रस्तर सूचिका ४२७ संख्या में कहिया सकौ ४२८ संजोगी पहलौ अखिर ४२६ संमत अठारौ असीयौ २० १ ६४ २७२ ४ २०६ २८२ ४ २२७ २६० ४ २४२ २२६ ४ ११५ २८६ ४ २३४ २०० ४ ६६ २८७ ४ २३६ २२१ ४ १०० १६४ ३ १८४ २२२ ४ १०२ wwku <<<< १६१ ३ १७६ M ur ० ११ १ ४० ० १६५ ३ १८८ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३६७ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ४३० स्री गणनायक सारदा ४३१ ह भ ध र ध न ख भ पाठ ही ४३२ हर जरै कच कप मह १७० ४ १७ ४३३ हर मत छोडै रै हिया ६५ २ १० मरकट ४३४ हर रिण दस सिर विजय हित ६८ २ १०७ सरप ४३५ हर समरौ होसी हरी १६६ ४ १४ ४३६ हर ससि सूरज सुर फरणी ४३७ हर हर जप अनम कर हर ६७ २ १०२ अहिवर ४३८ हारी तगरण सु करण यक ११६ ३ २७ ४३६ हीमत कर भज भज हरी ४४० होरा वेधी हिक वयण __६४ २ २१५ ४४१ हूँ पाखू नय वयण हिक १७० ४ ८८ ४४२ हेत हांण तन रोग व्है नीसांणी छंद १ कदम सुभंदा मेर गिर नहचळ मझ कंका ३२८ ५ ६ नोसारणी २ काम क्रोध मद लोभ मोह कर अवस रहै अडगांरणे ३२६ ५ ११ मारू निसारणी ३ गह भर राघव तारिया दरियाव विच गेंवर ३२५ ५ ४ निसारणी ४ जिण कोडी जर जीव दनिदा, रूप चराचर रच्चा है ३३१ ५ १७ झोंगर निसारणी ५ तज मक्कर फक्कर तसू, उर सुव करखे रात अपंदे ३३८ ५ ३१ मछटथळ तथा सोहणी ६ तन स्यांम अंबुद रूप तड़िता २१ सोहचली निसारणी ७ तें रघुनाथ विसारिया त्रिहुं ताप तपरणां ३२७ ५ सुद्ध जांगड़ी निसांणी ८ पोह क्रत कविराज हरख उछाजं सुजस समाज दध पाजं २५ घग्घर निसारणी ६ बंधग्राह दरीयाव बीच पड़ संकट फील पुकारियां ३२६ ५ १३ वार निसारणी भारा अाक्रांता हुवंदी भूम्मी, वर तंदी सुरवार विक्खमी __३३६ ५ २६ पैडी निसारणी ११ यक प्राद पुरुख अनादसूं दख भ्रहम माया दोख ३३२ ५ १६ सोहटप निसारणी १२ राघव सिफत बखारणी, सच्चे सायरा ३३४ ५ २३ सिरखूली १३ विच अनूप सरूप स्यांम, घट वरसरण वार ३२६ ५ ५ दुमला निसांगी Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास ३६८ ] क्र.सं.. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ३३० ५ १५ हंसगत निसारणी ३३५ ५ २७ घग्घर निसांगी ७८ २ १६० ७९ २ १६२ ८१ २ १७२ २ १५४ " " " " " " " २ १७० २ १५८ २ १५६ ७७ २ १५५ ७८ २ १५१ " " " १४ स्त्री रघनाथ अनाथ नाथ सज, बेढ़ सत्र दस माथ विहंडण १५ हिरणायख हारणे संख सझांग हय ग्रीवा खळ हंता है वर्णानुक्रमणिका १ कांती गाथा २ कीरतो गाथा ३ कुररी गाथा ४ खम्या गाथा ५ गाहेणी गाथा ६ गौरी गाथा ७ चक्कवी गाथा ८ चरणा गाथा छाया गाथा १० देवी गाथा ११ धात्री गाथा १२ बुद्धी गाथा १३ महामाया गाथा १४ मांगरणी गाथा १५ रामा गाथा १६ रिद्धी गाथा १७ लछो गाथा १८ लज्जा गाथा १६ वसंत गाथा २० विद्या गाथा २१ सारसी गाथा २२ सिद्धी गाथा २३ सिंघी गाथा २४ सोभा गाथा २५ हरिणी गाथ २६ हंसी गाथा गोत १ अड़ियल २ अठताळौ सावझड़ो ३ अट्ठौ " " " " " २ " WWWor r9 o 9 or do० ० ० १५० १४६ १५२ १६७ १५३ १७१ १६३ १७३ " " " २ " " " १६६ ८१ २ १७४ " २२१ ४ २०१ २७७ ४ २१६ २६१ ४ १७६ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३६६ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम २८६ ४ २४१ २७६ ४ २१४ २२८ ४ ११४ २६७ ४ १६२ ३१३ ४ द २४४ ३ w X ४ प्रमेळ सांपोर ५ अरट सारणोर ६ अरटियो ७ अरध गोखौ सावझड़ो ८ परध भाख 8 परध भाखड़ी १० अरध सावझड़ो ११ अहरण(न)खेड़ी १२ अहिबंध १३ उमंग गीत १४ उवंग सावझड़ी १५ कोछौ १६ कैवार १७ खुड़द छोटो सांणोर १८ गहांगी १६ गोख सावझडौ २० गोखा २१ घरण कंठ सुपंखरौ २२ घड़ उथल्ल २३ घोड़ादमौ २४ चितईलोळ २५ चौटियाळ २६ चौटियो २७ जयवंत सावझडौ २८ जाळीबंध २६ झड़मुकट ३० झमाळ ३१ ढोलचलो तथा ढोलहरौ सावझडौ ३२ कुटबंध ३३ त्रबंक (बंकी) ३४ बंकड़ो ३५ त्राटको ३६ त्रिपंखो ३७ त्रिमेळ पालवणी तथा झड़लुपत ३८ त्रिवड तथा हेलो ४ २५८ ४ १७४ २७५ ४ २१२ २८७ ४ २३७ २६६ ४ १६० २७६ ४ २२२ २३६ ४ १२६ २०५ ४ ७८ ३१६ ४ २८८ २१६ ४ ६४ २४५, २४६ ४ १४६, १५१ ४ २६२ १७८ ४ ३४ १७७, २२७ ४ ३०, ११२ २१७ ४९६ २१३ ४ ६० २६३ ४ २४८ १६१, ३२१ ४ ५४, २६४ ३१४ ४ २८४ ३०० ४ २६० २३० ४ ११६ २४७ २४६, २५२ ४ १५६, १६४ २८२ ४ २२८ २११ ४ ८८ ३०२ ४ २६५ २६७ ४ २५५ २६५ ४ २५३ २०८ ४ ८४ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास ३७० ] क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १७६ ४ २८ २७३ ४ २०६ २६५ ४ १८८ २२० ४ ६९ २६१ ४ १८१ २३७ ४ १३३ २२२ ४ १०३ २६८ ४ १६८ २८३ ४ २३० २०६ ४ ८१ २१ . ४८ २०३ ४ ७४ ३१० ४ २७३ ३६ थांणाबंध वेलियौ ४० दीपक ४१ दुमेळ ४२ दुमेळ सावझड़ो ४३ दूणौ अट्ठौ सावझड़ो ४४ दोढ़ा ४५ धड़ उथल ४६ धमळ ४७ धमाळ ४८ पाड़गती सुपंखरौ ४६ पालवणी ५० पूरिणयौ तथा जांगड़ी सागौर ५१ पंखाळो ५२ प्रहास सांगौर ५३ बंक ५४ भाख ५५ भाखड़ी ५६ भांग ५७ भुजंगी ५८ भंमरगुंजार ५६ भंवरगुंजार ६० मनमोह ६१ मिस्र वेलियौ ६२ मुकताग्रह ६३ मल अठताळो ६४ मुरगाळ ६५ मंदार ६६ यकखरौ ६७ रसखरारौ ६८ रसावळी ६६ रूपग गजगत ७० लघु चितविलास ७१ ललित मुकट ७२ लैहचाळ ७३ बडौ सावझड़ो २१० ४ ३१२ ४ २७८ २४४, २४२ ४ १४५, १४३ २६२, २६३ ४ १८६ २५६ ४ १७१ २६२ ४ २४६ २६० ४ २४४ ३०४ ४ २६७ १६६ ४ ६७ ३०६. ४ २७१ २३२ ४ १२३ १८६ ४ ५२ २६४ ४ २५१ २८८ ४ २३६ २४० ४ १४० २८५ ४ २३२ ३२३ ४ २६६ २२६ ४ ११० ३०७ ४ २६६ २१५ ४ १२ २६८ ४ २५७ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास [ ३७१ क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम ७४ वडो सांपोर ७५ वसंत रमणी सावझड़ो ७६ विड़कंठ ७७ वेलियौ सांणोर ७८ वध चितविलास सतखरणौ ८० सवैयौ ८१ सांरगौर सालूर सोहचळो ८४ सुद्ध सांरगोर १८८ ४ ५० २५६ ४ १७७ १७३, २०० ४ २३, ७० २२४ ४ १०८ २८६ ४ २३५ २८० ४ २२४ १७५ ४ २७ २८१. ३११ ४ २२६, २७६ २२३ ४ १०५ १७४ ४ २४ ____४ ६१ १७२ ४ २२ २५४ ४ १६६ २२६ ४ ११६ १६४ ८५ सुपंखरौ ८६ सेलार P ७२ ८७ सोरठियो ८८ सोहणी ८६ हिरणझंप ६० हेकल वयण ६१ हंसावळी २०४ २०२ ४ २३४ ४ १२७ २५५ ४ १६६ २३६ ४ १३६ छप्पै ov in GmW W m x अजय छप्पै प्रहर अळग कमळबंध करपल्लव ५ कुंडळिया ६ चौटीबंध ७ चौपाई छत्रबंध जातासंख १० ताळरब्यंब नाट १२ नाटसळी ८६ २ २०३ १०६ २ २५६ १८ २ २२७ १०६ २ २५१ ०४ २ २४५ १०५ २ २४७ १०३ २ १९ २ २२६ ६६ २ २२१ १०८ २ २५७ १०२ २ २३६ १११ २ २६४ २४१ is w Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ ] . रघुवरजसप्रकास क्र.सं. पंक्ति पृष्ठ प्रकरण पद्यांक नाम १३ नीसरणीबंध १४ ब्रधनाळीक १५ मझखिरा १६ मुकताग्रह १७ लघुनाळीक १८ वळता संख १६ विधांनीक. २० समबळ विधान २१ सांकळ २२ हल्लव २३ हीराबेधी २४ हेकल्लवयण ه ه २५ अन्य कवित्त १०२ २ २३७ १०१ २ २३५ १०० २ २३१ १०३ २ २४२ १०० २ २३२ २ २२३ १७४ २ २५ १७४ ४ ६७ २ २२५ १०३ २ २२५ १०५ २ २४६ १०७ २ २५३ पृष्ठ अंक पृष्ठ अंक १ (१, २) ४ (११) १७ (२५) १५ (५५) २८ (६५) ३० (६७) ३८ (१०६, ११०, १११) ३६ (११२) ६३ (८३) ७६ (१४७) (२०१) ८६ (२०४) ६० (२०५) १३ (२१०) १०६ (२६१) ११० (२६२) ११५ (४) १६१ (१७८) १६२ (१७९, १८०) १६३ (१८१, १८२) १६४ (१८३) १६८ (६) १७६ (३५, ३६) १८० (३७) १८४ (४३) १८५ (४५) ३४० (३५, ३६) 9 ernational www.jaineli Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ छंदानुक्रमणिका नाम पृ. प्र. छंदांक नाम पृ. प्र. छंदांक १ प्रजास १४२ ३ ११३ २ अनाम ४४ २ १६ ३ अनुस्टुप १२८ ३ ५८ ४ अम्रित गति १३२ ३ ७५ ५ रिल ४६ २ २४ ६ पाभीर ४४ २ १४ ७ इंद्र वज्र १३४ ३ ८६ ८ उद्धत ५६ २ ६८ ६ उद्धौर ४४ २ १५ १० उपजात १३५ ३ ८६ ११ उपझूलगा ५७ २ ५८ १२ उपेन्द्रवज्रा १३५ ३ ८८ १३ ककुभा ७१ २ १२० १४ कड़खौ ३३६ ५ ३३ १५ कमळ ११८, १२७ ३ २१, ५५ १६ करहची १२५ ३ ४६ १७ कळहंस १४४ ३ १२२ १८ काव्य ५० २ ५८ १६ काम २० किरीट १५८ ३ १६८ २१ क्रीड़ा १५१ ३ १४३ २२ कुडळणी ११३ २ २७१ २३ कुंडळिया झड़उलट ११२ २ २६७ २४ कुंडळियौ १११ २ २६५ २५ कुंडळियौ दोहाळ ११२ २ २६६ २६ कंता २७ कंद १४१ ३ ११० २८ खंज ५८ २ ६२ २६ गगनागा ५६ २ ६४ ३० गद्य ८५२ ३१ गमक ४१ २ ४ ३२ गल्लिका १५४ ३ १५४ ३३ गीतिका १५४ ३ १५३ ३४ घणाखरी १६४ ३ १५८ ३५ चऊरस १२२ ३ ३५ ३६ चकोर १५७ ३१६६ ३७ चक्र १४३ ३ ११६ ३८ चतुरपदी ५२ २ ४५ ३६ चरचरी १५० ३ १४१ ४० चरनाकुळक ४६ २ २३ ४१ चांमर १४३ ३ ११८ ४२ चूड़ामरण ४८ २ २८ ४३ चूळियाळा ७० २ ११७ ४४ चौबोला ७१ २ ११६ ४५ चौपई ४५ २ २० ४६ चंचळा १४७ ३ १२६ ४७ चंद्रायणौ १७ (५६, ६०) ४६ (३०) १७१ (२१) ४८ चंपकमाळा १३१ ३ ७१ ४६ जनहरण ५५ २ ५३ ५० जमक १२० ३ ३० ५१ जीरणा ११६ ३ २३ ५२ जकरी ४५ २ १६ ५३ झपताळ ४५ २ १८ ५४ झूलगा ५६ २ ५७ ५५ तरळनयरण १३६ ३ १०२ ५६ तारक १४० ३ १०८ ५७ ताळी ११७ ३ १४ ५८ तिलका १२१ ३ ३३ ५६ कोटक १३८ ३ ६७ ६० तोमर १३० ३ ६७ | ६१ त्वंग तथा तुंग १२७ ३ ५३ in or nm mm Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ ] नाम ६२ त्रिभंगी ६३ दवावंत (गद्य) ६४ दुमिळा ५४ (५१) १५ (१७०, ६५ द्र पदी ६६ दीपक ६७ दोधक ६८ दंडकळ ६६ धत्ता ७० धत्तानंद ७१ घवल ७२ धांनी ७३ नरिंद ७४ निगल्लिका ७५ निसपाळिका ७६ नित्र एका ७७ नीसरणीबंध ७८ निसणी ७६ पगरण ८० पदनील ८१ पदमावती ८२ पाद्धरी ८३ पायत ८४ पंकावळी ८५ पंचवदन ८६ पंचाळ ८७ प्रथ्वी ८८ प्रमांणी ८६ प्रमिताखिरा ६० प्रिया ६१ बथुवा ६२ बांम ६३ बिंब पृ. प्र. छंदांक ५३ २ ४७ ८५ २ १६३ १५८ (१६९ ) १७१, १७२) ५६ २ ६६ ४३ २ १२ १३२ ३ ७७ ५४ २ ५० ५३ २ ४६ १५२ ३ १५२, १५३ ३ १४८, १४६ ११६ ३ २४ १५५ ३ १५८ ११६ ३ २५ १४५ ३ १२५ ७१ २ ११८ रघुवरजसप्रकास १७७४ ३२ १८३४४०, ४१ ३२७ ५ ७ ४२ २ ह १४६ ३ १२८ ५४ २ ४६ ४७ २ २५ १२६ ३ ६३ १४१३ १११ ६१ २ ७२ ११७ ३ १८ १४७ ३१३१ १२६ ३ ५२ १४० ३ १०५ ११७ ३ १६ ५० २ ३४ ४१ २ १२६ ३ ५ ६६ पू. प्र. छंदांक ६४ बेप्रख्यरी ४७ (२६) ७३ (१३१ से १४६) ८२ (१७६ से १८६) १८५ (४७, ४८) १४६ ३ १२६ १३६ ३ ६४ १४४३ १२१ १५७ ३ १६४ १२४ ३ ३६ १३३ ३ ८२ नाम ६५ ब्रद्धिनाराज १६ भुजंगप्रयात ६७ भ्रमरावळी ६८ मत्तगयंद ६६ मदनक १०० मदनहरा १०१ मदिरा १०२ मधु १०३ मधुभार १०४ मनहर १०५ मरहट्टा १०६ मल्लिका १०७ महाद १०८ महादीप १०६ महाभुजंगप्रयात ११० महालक्षिमी १११ मही ११२ माया ११३ मालतिका ११४ मालती ११५ माळा ११६ माळावर ११७ मांनक्रीड़ा ११८ मोतीदांम ११६ मोदक १२० मंजीर १२१ मंथांरणी १२२ मंद १२३ मंदाक्रांता १२४ निगेंद्र १२५ रड़. १२६ रतिपद ५७ २ ६० १५६ ३ १६२ ११६ ३ ह ४२ २ १० १६१ ३ १७७ ५.२ २ ४३ १२६ ३ ५० ७३ २ १३० ४६ २ ३१ १६० ३ १७३ १२८ ३ ६० ११६ ३ १४० ३ १०७ १३४ ३ ८५ १२४ ३ ४१ ६० २ ७० १४८ ३ १३३ १२७ ३ ५६ १३८ ३ ६६ १३६ ३ १०० १५० ३ १४० १२४ ३ ३८ ११८ ३ २० १४६ ३ १३६ ११८ ३ १९ ४८ २ १२६ ३ १० ६४ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रघुवरजसप्रकास । ३७५ नाम पृ. प्र. छंदांक नाम पृ. प्र. छंदांक GWW १२७ रथोद्धिता १३६ ३ ६१ १२८ रभस १४५ ३ १२३ १२६ रमण ११७ ३ १७ १३० रस उल्लाला ७२ २ १२३ १३१ I. काम उल्लाला १३२ 2. छप्पय उल्लाला १३३ 3. बरंग उल्लाला १३४ 4. स्याम उल्लाला १३५ रसकळ ४३ २ ११ १३६ रसिक १३७ राम गीत १३८ रूपमाळी १३६ रोळा ५० २ ३३ १४० लक्ष्मीधर १३७ ३९५ १४१ लीलावती ५५ २ ५२ १४२ वचनका ८६ २ १६४ १४३ वरवीर १४४ वसंततिलका १४२ ३ ११५ १४५ वारता ८७ २ १६५ १४६ विजोहा १२१ ३ ३४ १४७ विद्य माळा १२६ ३ ४६ १४८ सबासन १२५ ३ ४४ १४६ समांनिका १२४ ३ ४३ १५० समुखी १३२ ३ ७८ १५१ समोहा ११६ ३ २६ १५२ सवैइया ५२ २ ४० १५३ ससी ११७ ३ १५ १५४ सार १५५ सारंग १३८ ३ १८ १५६ सारदूळ विक्रीड़त १५१,१५२ ३ १६१ सिख ७२ २ १२२ १६२ सिखरणी १४८ ३ १३४ १६३ सिखा १२५ ३ ४७ १६४ सिंहविलोकरण ४६ २ २२ १६५ सुखमा १३२ ३ ७४ १६६ सुगति ४२ २८ १६७ सुन्दरी १३६,१५७ ३ १०३,१६३ १६८ सेखा १२१ ३ ३२ १६६ सैनिका १३४ ३ ८३ १७० संखनारी १२२ ३ ३७ १७१ संजतका १३० ३ ७० १७२ संभू १५३ ३ १५१ १७३ स्रगधरा १५५ ३ १५६ १७४ स्री १७५ स्वागता १३६ ३ ६२ १७६ हरि गीत ५१ २ ३८ १७७ हाफळ ४५ २ १७ १७८ हरिणी १४६ ३ १३८ १७६ हारी १२० ३ २८ १८० हीर ४६ २ ३२ १८१ हंस १२०३ २६ १८२ हंसी १५६ ३ १६० दूहा ६७ २ १०२ ६८ २ १०६ ६७ २ १०० ६५ २ ६१ ६९ २ १०८ १ अहिबर २ ऊंदर ३ कछप ४ करभ ५ चरणा ६ चळ ७ चौटियौ ८ तूंबरी है त्रिकळ १० नर ११ नंदा १५७ साखती १३१ ३ ७२ १५८ सारंगिका १२८ ३ ६१ १५६ सालिनी १३३, १४४ ३८०,११६ १६० साळूर १६० ३ १७५ ७० २ ११४ ६३ २ ८१ ६६ २ १८ ६५ २ ६२ ६६ २११२ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ ] रघुवरजसप्रकास नाम पृ. प्र. छंदांक नाम पृ. प्र. छंदांक ६६ २ ६५ ६६ २ १०६ ६७ २ १०३ ६४ २ ८५ ५ पड़ी १२ पयोधर १३ पंचा १४ बाघ १५ भ्रमर १६ भ्रामर १७ मच्छ १८ मदकळ १६ मरकट २० मराळ २१ मंडक २२ वानर २३ विडाळ २४ सरप २५ सरभ २६ सादूळ २७ सांकळियौ २८ सुनक ६६ २ ६९ ६५ २ ६४ ६५ २ ६० ६५ २ ६३ ६४ २ ८६ ६६ २ ६७ ६८ २ १०४ ६८ २ १०७ ६४ २ ८७ ६७ २ १०१ ६२ २ ८० ६८ २ १०५ २६ सैन ६४ २ ८८ निसांणी १ घग्घर निसाणी ३३५ ५२५,२७ २ झींगर ३ दुमिळा ३२७, ३२७ ५ ५, ७ ४ निसांपी जांगड़ी ३२५ ५ ४ ३३६ ५ २६ ६ मछटथळ तथा साहरणी ३३८ ५ ३१ ७ मारू ३२६ ५ ११ ८ वार ३२६ ५ १३ ६ सिरखुली ३३४ ५ २३ १० सीहचली ३३३ ५ २१ ११ सुद्ध तथा जांगड़ी ७२७ ५ ८ ३२८ ५ १२ हंसगत तथा रूपमाळा ३३० ५ १५ ernational www.jainel Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके कुछ ग्रन्थ प्रकाशित ग्रन्थ संस्कृतभाषाग्रन्थ-१. प्रमारणमंजरी-तार्किकचूडामणि सर्वदेवाचार्य, / 2. यन्त्रराजरचना-महाराजा सवाई जयसिंह, मूल्य 1.75 / 3. महषिकुल श्रीमधुसूदन ओझा, मूल्य 10.75 / 4. तर्कसंग्रह-पं० क्ष्माकल्याण, मू 5. कारकसम्बन्धोद्योत-पं० रभसनन्दि, मूल्य 1.75 / 6. वृत्तिदीपिका-पं० मूल्य 2.00 / 7. शब्दरत्नप्रदीप, मूल्य 2.00 / 8. कृष्णगीति-कवि सोमनाथ 6. शृङ्गारड़ारावली-हर्षकवि, मूल्य 2.75 / 10. चक्रपाणिविजयमहाकाव्य धरभट्ट, मूल्य 3.50 / 11. राजविनोद-कवि उदयराज, मूल्य 2.25 / 1 मूल्य 1.75 / 13. नृत्यरत्नकोश, प्रथम भाग-महाराणा कुम्भकर्ण, मूल्य 3.75 रत्नाकर-पं० साधुसुन्दरगणि, मूल्य 4.75 / 15. दुर्गापुष्पाञ्जलि-पं० दुर्गाः मूल्य 4.25 / 16. कर्णकुतूहल तथा कृष्णलीलामृत-भोलानाथ, मूल्य 1.50 / बिलास महाकाव्य-श्रीकृष्ण भट्ट, मूल्य 11.50 / 18. पद्यमुक्तावलीश्रीकृष्णभट्ट, मूल्य 400 / 16. रसदीधिका-विद्याराम भट्ट, मूल्य 2.00 / राजस्थानी और हिन्दी भाषा ग्रन्थ-१. कान्हडदे प्रबन्ध-कवि प 12.25 / 2. क्यामखांरासा-कवि जान, मूल्य 4.75 / 3. लावारासा-गोपा 3.754. वांकीदासरी ख्यात-महाकवि वांकीदास, मुल्य 5.50 / 5. राजस्थ संग्रह, भाग 1, मूल्य 2.25 / 6. जुगल-विलास-कवि पीथल, मूल्य 1.75 / / कल्पलता-कवीन्द्राचार्य. मूल्य 2.00 / 8. भगतमाळ-चारण ब्रह्मदासजी, 9. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग 1, 10. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग 1, मूल्य 8.50 न.पै. / 11. रघुवरजसप्रका आढ़ा, मूल्य 8.25 न.पै. प्रेसोंमें छप रहे ग्रन्थ संस्कृत-भाषा-ग्रन्थ-१. त्रिपुराभारतीलचुस्तव-लघुपंडित / 2. शकुन शर्मा।३. करुणामृतप्रपा-ठक्कुर सोमेश्वर / 4. बालशिक्षा व्याकरण-ठक्व 5. पदार्थ रत्नमञ्जुषा-पं० कृष्णमिश्र।६. काव्यप्रकाशसंकेत-भद्र सोमेश्वर विलास फागु। 8. नत्यरत्नकोश भाग 2 / 9. नन्दोपाख्यान। 10. वा 11. चान्द्रव्याकरण। 12. स्वयंभूछंद-स्वयंभू कवि। 13. प्राकृतानंद-कनि 14. मुग्धावबोध आदि औक्तिक-संग्रह / 15. कविकौस्तुभ-पं. रघुनाथ 16. दशकण्ठवधम्-पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी। 17. भुवनेश्वरीस्तोत्र सभाष्य-पृथ्व पद्मनाभ / 18. इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध / 16. हम्मीरमहाकाव्यम्-जयचन्द्रसूरि। 20 रचित रत्नपरीक्षादि। राजस्थानी और हिन्दीभाषा ग्रन्थ-१. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भार नैणसी। 2. गोरावादल पदमिणी चऊपई-कवि हेमरतन। ३.चंद्रवंशावली-कवि 4 सजान संवत-कवि उदयराम। 5. राजस्थानी दूहा संग्रह / 6. वीरवाण७. राठोडारी वंशावली। 8. सचित्र राजस्थानी भाषा-साहित्य ग्रंथ सची। पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रंथोंकी सूची, भाग 2 / 10. देवजी ब प्रतापसिंह म्होकमसिंधरी वात। 11. पुरोहित बगसीराम और अन्य वार्ताएँ। 12 हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग 1 / इन ग्रंथोंके अतिरिक्त अनेक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन राज हिन्दी भाषामें रचे गये ग्रंथोंका संशोधन और सम्पादन किया जा रहा है।