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रघुवरजसप्रकास
प्ररथ पैली तुकसूं लगायनै सोळे ही तुकां ताई तुक अंक प्रत मात्रा चवदै होय । अंत लघु होय । च्यार तुकारा मोहरा मिळ , सावझड़ौ, जिण गीतरौ नांम भाख कहीजै । इति भाख नांम गीत निरूपण। भाख गीतरी दोय तुकारा मोहरा मिळे सौ अरधभाख कहीजै-यणनै गजल पिण कहै छै ।
___ अथ गोत भाख उदाहरण
गीत सुंदर सोभत घणस्यांम, तड़िता पट-पीत छिब तांम । वांमे अंग सीता वांम, रूप अनंग कौटिग राम ॥ निज कटि सुघट तट तूनीर, सर धनु सुकर धार सधीर । भंजण कौड़ संतां भार, रे मन गाव स्त्री रघुबीर ।। विध त्रिपुरार रिख पाय बंद, सरणसधार करणसमंद । कह गुण गाथ किसन' किवंद, नाथ अनाथ दसरथनंद ॥ कवसळ सुता राजकुमार, अबखी बखत सुजन अधार । सुसबद कियौ तिण मत विसार, जीता जिके नर जमवार ॥२७८
अथ गीत अरधभाख लछण
दूही भाख गीत तुक कवि भणे, मोहरा दोय मिळत ।
अरध भाख जिणनं अखै, कोइक गजल कहंत ॥ २७६ २७७. तांई-तक, पर्यन्त । तुक प्रत-प्रत्येक । मोहरा-तुकबंदी । निरूपण-निर्णय । पिरण-भी। २७८. तड़िता-बिजली। पट-पीत-पीताम्बर । छिब-शोभा, कांति। वामे-बायां । वाम
स्त्री। अनंग-कामदेव । कौटिग-करोड़। कटि-कमर । सुघट-सुंदर । तूनीरतर्कश । सर-बारण, तीर । धन-धनुष । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । भंजण-मिटाने वाला। भीर-संकट, कष्ट । विध (विधि)-ब्रह्मा । त्रिपुरार-त्रिपुरारि, शिव । रिख-ऋषि । पाय-चरण। बंद-वंदन करते हैं। सरणसधार-शरण में आए हएकी रक्षा करने वाला । करणसमंद-करुणासागर । गाथ-कथा, वर्णन । किवंद-कवींद्र, कवि । अबखो-कष्टप्रद, भयावह, संकटका। बखत-समय । सुजन (स्वजन)-भक्त । अधारसहारा, आश्रय। सुसबद-यश। तिण-उस, जिस । मत-बुद्धि। जमवार-जीवन, जिंदगी, यमराजका प्रहार या वार ।
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