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________________ रघुवरजसप्रकास अथ गीत अरधभाख उदाहरण गीत पर हर वर धंध अपार, भज नित जांनुकी भरतार | करमत कलपना मन कोय, हरि बिग बिये मुकत न होय ॥ २८० अरथ लखपत पिंगळ मध्ये छंद उधोर जींरी च्यार तुकांरी प्रेक दूहौ सोही गीत भाख । इति अरथ । अथ गीत जाळीबंध बेलियौ सांणोर लछण दूहा Jain Education International अठार पर फिर, सोळ पनर क्रम जेण । अंत लघु सांगोर कहि, तबै वेलियौ तेण ॥ २८१ नव कोठा म क तुक, लखजै चित्त लगाय । उर बिचलाखर, दौड़ वंच दिखाय ॥ २८२ लखियां दीसै नव खिर, ऊचरियां अगीयार । जाळीबंध जिण गीतरौ, नांम सुकव निरधार ॥ २८३ अरथ जाळीबंध गीत वेलियो सांणोर होवे । जिणरै पैौली तुक मात्रा अठारै । दूजी तुक मात्रा परै । तीजी तुक मात्रा सोळं । चौथी तुक कहौ अथवा पाछी तुक मात्रा पनरै हो । पाछला तीन ही दूहां पैली तुक मात्रा सोळं । दूजी तुक मात्रा पनरै । तीजी तुक मात्रा सोळं श्रर चौथी तुक मात्रा पनरै होवै । ईं क्रमसूं होवै । श्रंत लघु होवै सौ वेलियो सांणोर जीको जाळीबंध वणै । जाळीबंधरै २८०. अवर (अपर) - अन्य । धंध-धंधा, कार्य । कलपना -विचार । बिये- दूसरेसे । मुकत - मुक्ति, मोक्ष । २८१. ठार - अठारह | तेण - उसको । २८२. कोठां-कोष्ठकों । पनर - पनरह | दौड़-दोनों श्रोर | वंच - पढ़ने की क्रिया । [ ३१३ २८३. ऊचरियां- उच्चारण करने पर । इस क्रम से । मझ-मध्य | उरध- ऊपर । सोळ - सोलह । जेण - जिस तवं - कहते हैं । प्रधबिचलौ - मध्यका, For Private & Personal Use Only बीचका । प्रगीयार - ग्यारह | निरधार - निश्चय । ईं क्रमसूं www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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